Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

बुधवार, जून 27, 2018

Veganism एक धर्ममुक्त/तटस्थ जीवनशैली है ~ Shubhanshu

वीगनिस्म को लोग हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख धर्म से जोड़ कर देख लेते हैं, जबकि कोई भी हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख vegan नहीं होता। वो lacto-ovo-honay-vegetarian होते हैं। अर्थात dairy, honey और eggs को वनस्पति अधारित भोजन के साथ खाने वाले।

जबकि धर्म के नज़रिए से देखा जाए तो मांसभक्षियो में सिख, मुस्लिम, ईसाई, पारसी इत्यादि आते हैं। शाकाहार एक सर्वाहारी प्रकार की diet है जबकि वीग्निसम एक जीवनशैली है जिसमे herbivores diet सिर्फ एक भाग है जो ये भी साबित करती है कि मनुष्य का सर्वाहारी होना एक मिथक है।

मनुष्य पूरी तरह स्वस्थ√ और लम्बा यौवन भरा* जीवन जी सकता है अगर वह इसे जल्दी ही अपनाता है अर्थात, 30 साल की उम्र से पहले। मैंने 10 वर्ष की उम्र में अपनाया।

उसके बाद अपनाने में जो carsinogens, bad cholesterol, hormones etc मजबूती और गहराई से जमा हो चुके होते हैं उनको हटाने में बहुत देर हो सकती है। तब तक शायद वे अपना काम कर जाएं।

साथ ही

1. क्रूरता मुक्त जीवन शैली।
2. खुद को जानवरों के साथ जोड़ने का आनंद, जैसे आप अपने कुत्ते को प्यार करते हैं।
4. जियो और जीने दो के सिद्धांत के पालन का सुख।
5. जानवरों को वस्तु न समझ कर मित्र समझने का सुख।
6. उनका शोषण रोकने में, जैसे तांगा, बैल गाड़ी इत्यादि।
7. उनका फर, चमड़े, और भोजन (जैसे शहद, दूध इत्यादि) को न लेना।
8. Dairy उद्योग नर बछड़े के हिस्से का दूध छीन कर उसे मार देने का और जानवर के साथ बलात्कार तथा अत्याचार का प्रमुख ज़िम्मेदार है।

√क्योकिं arteries में cholesterol ही अवरोध पैदा करता है और ह्रदयघात का मुख्य कारण है। सभी के मांस, अंडे और दूध में carsinogens और cholesterol पाए जाते हैं, जो कैंसर, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, गठिया और अन्य लाइलाज बीमारियों का जनक बनता है। जबकि वनस्पति जगत इन सब से मुक्त है।

*क्योकि फ्री रेडिकल जो बूढ़ा बनाता है, उसे नष्ट करने वाला एंटीऑक्सीडेंट केवल वनस्पतियों में ही पाया जाता है।

- एक खास post उनके लिये जिनको वीगनिस्म धार्मिक लगता है। vegan नास्तिकों से जुड़ने के लिये vegan atheist ग्रुप join करें। Shubhanshu

विज्ञानवादियों के लिये चेतावनी ~ Shubhanshu

मेरे Scientific Method Friends♀ आपको एक गहरी सलाह। आप किसी से अनर्गल बहस न करें। आपकी सोच को चोट लगी तो उलझ जायँगे और फिर भटक सकते हैं।

अग्नोस्टिक लोग आपको Atheist or Theist or Rational बन कर मिल सकते हैं और वे आपका समय खराब कर सकते हैं, उल्टे सीधे ट्रिक प्रश्नो से जिनको इनके आकाओं (तथाकथित आध्यत्मिक गुरु) ने बहुत मेहनत से तैयार करके दिया है। उनमें आप उलझ जाओगे। वह कुछ साबित नहीं करेंगे। बस कह देंगे कि कोई है और आप सारा घर छान मारोगे और वे कहते रहेंगे कि है कोई, ढूँढो।

वे बैठे रहेंगे लेकिन आप की घुइयां बिक जाएंगी, उसे ढूंढते-ढूंढते। यही है सन्देह पैदा करो की नीति। चक्रव्यूह वाली नीति। जिससे आज तक आस्तिकता जीतती आई है और परोपकारी नास्तिक उनकी मदद करने के बहाने बर्बाद होते रहे हैं।

वे पूछेंगे कि ब्रह्मांड कैसे बना?

आप कहोगे कि बिग-बैंग या स्ट्रिंग सिद्धान्त से लेकिन वे कहेंगे कि यह तो सिद्धान्त है। क्या सुबूत है कि ऐसा ही हुआ था?

आप फिर उलझ जाओगे और आपके मन में भी यह लोग सन्देह पैदा कर देंगे, क्योकि हम लोग भूतकाल में जाकर कुछ नहीं देख सकते।

ये फिर कहेंगे कि यह दुनिया अपने आप कैसे चल रही है? जीवन-मृत्यु क्यों हो रही है? नए जीव जंतु, पृथ्वी का घूमना, सुबह, शाम का होना कैसे है?

आप इनको गुरुत्व का सिद्धांत बताओगे तो वे कहेंगे कि यह भी क्या सत्य है? क्या पता यह घनत्व हो? सूर्य चन्द्र वैसे न हों जैसा विज्ञान बताता है। क्या पता यह सब झूठ हो? आपने थोड़े ही जाकर देखा है उपर अंतरिक्ष में। फिर आपको सन्देह उतपन्न हो जाएगा क्योकि आप ऐसे ही नासा के यान में नहीं जा सकते।

गए भी तो वह कहेंगे कि आप झूठे हो। उन्होंने (नासा) आपको खरीद लिया है और आप उनकी बोली बोल रहे हो। सब सुबूत नकली हैं। आप फिर से हताश हो जाओगे।

फिर वह कहेंगे कि शरीर से ऐसा क्या निकल जाता है (जबकि शरीर स्वस्थ हो) जिससे मृत्यु हो जाती है?

यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रश्न है। आप ऐसे ही इसका उत्तर नहीं दे सकते। यह प्रश्न ही गलत है क्योकि पूछने वाले को पता ही नहीं है कि मस्तिष्क की मृत्यु ही असली मृत्यु है। मस्तिष्क में कोई समस्या होने पर मृत्यु हो सकती है या बूढ़ा शरीर दिमाग को रक्त भेजने में असमर्थ हो जाये तब भी।

पूछने वाला पहले से आत्मा की अवधारणा से ग्रस्त है। वह बस आपके मुहँ से यह निकलवाना चाहता है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हैं। आत्मा जैसा कुछ होता तो हमारा शरीर कभी मरता ही नहीं। जैसे आत्मा मृत शरीर में घुस कर उसको जीवित कर देने का कथित गुण रखती है उस प्रकार तो आत्मा को स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए। जबकि खून बहने, ज़हर से शरीर क्षतिग्रस्त होने भर से मृत्यु हो जाती है।

कुछ लोग कोमा में लकवाग्रस्त होकर वर्षों तक जीवित रहते हैं लेकिन उनकी कथित आत्मा उनका साथ नहीं छोड़ती। 4 हाथ-पैर से लाचार लोग भी पूरा जीवन जीते हैं। इस हिसाब से आत्मा बेकार के शरीर को छोड़ देती है जैसी अवधारणा भी समाप्त हो गई।

अतः शरीर के कमजोर होने से या क्षतिग्रस्त होने से ही मानसिक मृत्यु हो सकती है। हेड ट्रांसप्लांट के ज़रिये यह बात भी साबित हो रही है कि हम सिर्फ दिमाग ही है और हम शरीर बदल सकते हैं यदि अनुकूल उपकरण और तकनीक उपलब्ध हो।

लेकिन इतना ज्ञान इन अनपढों के पास नहीं होता इसलिये आप इनको कितना भी समझा लो वे कहते रहेंगे, "क्या? कुछ समझ में नहीं आ रहा।" कोई लिंक देंगे तो भी इनका वही जवाब होगा कि कुछ समझ में नहीं आया। दरअसल यह वह सब पढ़ते ही नहीं। उनको थोड़े ही बदलना है खुद को। वे तो आपको तोड़ने आये हैं।

दीवार पर सिर मारने से दीवार को चोट नहीं लगती। शायद आप समझ गए हों। बाकी आपकी मर्जी। सत्यमेव जयते!

♀ Scientific Method (वैज्ञानिक विधि): देखें विकिपीडिया। जिसने इसे जान लिया समझो दुनिया को जान लिया। गहरा राज़ है जो आपको बता रहा हूँ क्योंकि आपसे कुछ उम्मीदें हैं। मानवता को बचाने की। मैं तो मस्त हूँ। नमस्ते। ~ Mr. Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Dharmamukt (Religion Free)  2018/06/27 03:24

सफेद कपड़े का रहस्य ~ Shubhanshu

नेता जनता को पति समझ कर उसकी सेवा करने का संकल्प लेता है। लेकिन ज्यादातर मामले में जनता मर जाती है।

उसपे मारने का आरोप न लगे इसलिये पहले से विधवा बना घूमता है।

अब कोई मुझे, सच्चाई, पवित्रता, सादगी, ईमानदारी, शांति का रंग सफेद मत बताने लगना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। नेता ऐसे नहीं होते। हाँ ये और बात है कि कायरता यानी संधि का रंग भी सफेद होता है यह हम मानते हैं। ~ Mr. Shubhanshu 2018©

मंगलवार, जून 26, 2018

आह्वान ~ Shubhanshu

पूर्व में हुए महान लोगों की उपलब्धियों को देखते हुये लगता है कि इनके जितना कर पाना सम्भव नहीं है। लेकिन ये तो मुझे भी स्कूल देख के लगा था कि इसे पास कर पाना सम्भव नहीं है। पहाड़ देख कर कभी नहीं लगता कि हम कभी इस पर चढ़ भी पाएंगे लेकिन पता भी नहीं चलता कब पार कर गए हम उसको।

अतः मान लीजिये कि पहले वाले लोगों ने कुछ ज्यादा नहीं कर पाया तभी तो हम आज भी दुःखी हैं। आप और हम मिल कर उनसे भी बड़े महापुरुष/महास्त्री बन कर दिखलायेंगे। आ जाओ इस अघोषित प्रतियोगिता में। छोड़ दो घर-बार घर-गृहस्थी। हो जाओ आज़ाद और निकल पड़ो, कलम और कागज लेकर अपना जीवन बदलने। विचार बनाये मानव, मानव बनाये दुनिया। विचार बनाये दुनिया।

कहीं ठोकर खाना तो मुझे खूब गालियां देना लेकिन कुछ बन जाओ तो मेरा नाम न लेना। अपनी ही शक्ति से तुम कुछ पा लोगे। मेरे नाम से सब खो जाएगा। सब तुम्हारा होकर भी मेरा हो जाएगा। तुम सब पाकर भी खो दोगे। मुझ को मील का पत्थर समझो और भूल जाओ।

तुम अपना जीवन लाये थे उसे जी जाओ। इस असली ज्ञान को पी जाओ। छोड़ो आलस, और अपने चाहने वालों को, जियो अपने सपने अपने ही दम पर। आओ, निकलो घर से, निकलो समाज से, अकेले हो जाओ। दुनिया तुमको ढूंढेगी, तुमसे मिलना चाहेगी। अभी कुछ नहीं हो तुम तब बहुत कुछ होंगे। अभी बुद्धू हो तुम, तब बुद्ध होंगे। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free, आह्वान एक नए युग का, आह्वान एक नए जीवन का, आह्वान एक नई सदी का। 🙆

शनिवार, जून 23, 2018

मैं हूँ अंक 1 ~ Shubhanshu

जानिए कि क्यों हूँ मैं सँख्या क्रमांक 1:-

1. यह डिजिटल दुनिया है।

2. यह कंप्यूटर की बाइनरी भाषा में लिखी गयी है।

3. इस भाषा में 0 और 1 का ही प्रयोग सब कुछ बनाने में किया जाता है। बाइनरी मतलब 2 अंक।

4. 1 का अर्थ होता है on यानी yes और 0 का अर्थ होता है off यानी no.

5. वास्तविक दुनिया में yes मतलब सकारात्मक (positive) और no मतलब नकारात्मक (negative).

6. सकारात्मक विचार नकारात्मक से 1000 गुना शक्तिशाली पाया गया है। इसी को आशा कहते हैं और यह ही हमको जीवित रखती है। सुना होगा कि उम्मीद पर दुनिया कायम है।

7. मैं positivist हूँ अतः सकारात्मकता वादी (तर्कवादी), परफेक्शनिस्ट भी इसलिये मेरे लिये इस बाइनरी भाषा वाली दुनिया के लिये 1 अंक उचित है।

8. शून्य (0) बर्बादी का प्रतीक है। विनाश का प्रतीक है। 1 का मतलब सृजन है। मैं बनाता हूँ इसलिये मेरे लिए यह 1 उचित लगा खुद को दर्शाने के लिये।

~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion free 2018©

माफ़ करना! जीरो नहीं हूँ मैं।

एक हाल ही का अनुभव बताता हूँ। मुझे fb ने कुछ लोगों के नाम सुझाये जिनके प्रोफाइल में लिखा था "शून्य हूँ मैं या जीरो हूँ मैं" आदि। मुझे लगा कि बेचारे सीधे हैं सच में। मैंने इनको लिस्ट में जोड़ लिया।

अब इनकी post देखीं। सभी में यह खुद को सर्वे सर्वा बता रहे थे। इनकी सोच अंतिम सोच होती है। इसके आगे कोई सोच ही नहीं सकता ऐसा महसूस हुआ।

इनकी व्यवहार शैली भी एक समान मिली। मेरे fb app में जब कोई दूसरा कमेंट करता है जब मैं लिख रहा होता हूँ तो सारा लिखा हुआ गायब हो जाता है। इसलिये मैं एक दो वाक्य लिखते ही या जैसे ही कोई कमेंट लिख रहा है का संकेत आता है तो मैं लिखा हुआ ही पोस्ट कर देता हूँ। इसको ये लोग कहते हैं कि मैं उत्तेजित हो गया हूँ या दूसरे को मौका ही नहीं देता हूँ। धैर्य नहीं है मुझमें आदि तमाम व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं।

खुद मेरे एक भी विचार को like  नहीं करेंगे, टिप्पणी तभी करेंगे जब अपमान करना हो और भाषा में आप ज़रूर होगा लेकिन लहज़ा बार बार आप के ऊपर हंसने वाला, मजाक उड़ाने वाला होगा। फिर सोचता हूँ कि वह जीरो कैसे आया इनके दिमाग में।

दरअसल इनको इनके घमण्ड के चलते सब लोगों ने डांटा है कि आप अपने को समझते क्या हैं? आप कुछ नहीं हैं! आप जीरो हैं।

बस इन्होंने यह ताना इतनी बार सुना कि सुधरने के स्थान पर खुद को ही जीरो का टैग लगा दिया। अब लोग इनको बोलेंगे जीरो, तो ये कहेंगे कि हां वे तो पहले से ही लिखे हुए हैं। यह घमण्ड और खुद को सर्वेसर्वा समझने की निशानी है कि कोई खुद को शून्य लिखे।

खुद को अहं बृहमास्मि कहने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं इसलिये विनोदी व्यवहार के लिये ऐसे शब्द प्रयोग करते हैं जिनसे खुद के लिए आदर का भान होता है। लेकिन वे दिल के साफ होते हैं। उनसे आप कहेंगे कि आप कुछ नहीं हैं तो वे कहेंगे कि आप सिखा दीजिये।

आगे से खुद की तारीफ करने वाले अकेले पड़ गए लोगों को गलत मत समझियेगा क्योकि वे अपनी तारीफ इसलिये करते हैं क्योकि कोई और नहीं करता।

लेकिन जो खुद को कमतर और नीचा दिखाते हैं वे दरअसल बेशर्म होते हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या कहा जायेगा इसलिये वे खुद को ढीठ बनाने के लिये पहले ही वह लेबल लगा लेते हैं।

मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा लेकिन देखना उनकी ईगो उनको यहाँ खींच लाएगी। वह सुना है न, चोर की दाढ़ी में तिनका। 😀 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Dharmamukt 2018©

सोमवार, जून 18, 2018

अविवाहित नवयुवतियों के लिये मौका

यदि आप महिलाओं को अंध्विश्वास, मुक्त सोच के प्रति जागरूक करते हैं तो आप समझिये आपने उसके पूरे वंश को जागरूक कर दिया।

माँ ही होती है बच्चे की पहली शिक्षक फिर लडकियों की तो हर कोई सुनना चाहता है। रुचि होने के कारण उनका प्रयोग जब धर्म और चुनाव जैसे बेकार कामो में किया जा रहा है तो अच्छे कार्यों में क्यों नहीं?

इसीलिये अविवाहित महिला मित्रों से निवेदन है कि मुझसे व्यक्तिगत तौर पर मिल कर जागरूकता फैलाएं। विवाहितों को तो उनके पति ही न आने देंगे। इसलिये उनको इससे मुक्त रखा है। ~ Shubhanshu The Satisfaction 2018©

रविवार, जून 17, 2018

ज़हरबुझा फल

बुद्धिमान मित्र: भाई आजकल फलों की दुकान ऑनलाइन चालू की है क्या?
भोला शुभ: नहीं भाई, खुद भूखा सो रहा हूँ।
मित्र: फिर ये क्या है खरबूजा सत्य?
शुभ: 😵 रहम कर भाई। तेरे से न हो पायेगा! रहन दे। चश्मा बनवा लियो जाकर आज ही। नहीं तो मिल मत जाना दोबारा। समझे। 😬😤
~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

शनिवार, जून 16, 2018

दो दोस्त

दो लोग आपस में बात कर रहे थे।

😂: यार ये देख, ये कबूटिया कौन है? इसकी फ़ोटो देख। एक दम कोई स्मैकिया लग रहा है। बाल भी उड़े हुए हैं और दाढ़ी तो जैसे दादा की लगा ली है। कैसे-कैसे लोग fb पर आ जाते हैं।

😬: तुझें पता है? ये कौन हैं?

😂: हाँ Shubhanahu Singh Chauhan.

😬: तो ये बात उनके प्रोफाइल pic पर जा के लिख दे न? दाढ़ काहे फटे जा रही है लिखने में?

😕: अब क्या कहूँ। लिख दूँगा तो पता नहीं वो क्या करे। कहीं ब्लॉक मार दिया तो?

😒: मतलब क्या है तेरा? जुड़ा ही क्यों है उनसे जब पसन्द नहीं करता तो? तेरा 1 भी लाइक नहीं देखा मैंने उनकी किसी post में।

😧: अब कुछ कह दूँ जो जैसे बाकियों की धोते हैं मेरी भी धुल देंगे तो अपनी बेइज़्ज़ती न करवानी उनसे। like इसलिये नहीं करता क्योंकि उनको और मेरे दोस्तों को पता चल सकता है कि मुझे उनकी सभी post पसन्द आती हैं।

😮: अभी तो कह रहा था कि स्मैकिया हैं वो?

😧: तो वो मैं फ़ोटो की बात कर रहा था। फ़ोटो और शक्ल का क्या अचार डालना है? ये आदमी सिर्फ नास्तिकता पर नहीं लिखता बल्कि और भी बहुत कुछ लिखता है जो बहुत रोमांचक है, नया है और हैरान करने वाला है।

एक पोस्ट से असहमत हो भी जाओ तो दूसरी से सहमत होना ही पड़ता है। अब बताओ कैसे छोड़ दूं इनको? जितना ये जानते हैं उतना मेरा पण्डित बाप भी नहीं जानता तो बताओ कौन बड़ा?

पता नहीं क्या है इस आदमी में कि बस दिन भर इसी की पोस्ट पढ़ता रहता हूँ। आदमी है या कंप्यूटर? इतना जानकारी लाता किधर से है? अपने से तो गूगल पर गूगली ही हो जाती है। एक दिन में 50 पोस्ट कर देता है ये। ज्यादा भी। कोई भरोसा नहीं।

😑: अबे करेले के बीज, तू बुराई कर रहा है या तारीफ?

😁: यार कुछ मत पूछ, मेरा तो दिमाग ही बन्द हो गया है। दिन भर इसी के post दिमाग में घूमते रहते हैं। खुद दुनिया से भरोसा उठने लगा है। ये आदमी है क्या चीज़?

😏: भाई तू रहन दे। दिमाग पर ज्यादा जोर न डाल। तू समझने लगा है उनको और तुझे पता है वे क्या कहते हैं?

😶: क्या कहते हैं?

😀: जो उनको समझ गया, वो गया...

😗: मतलब मर गया?

☺: नहीं। उनके जैसा हो गया और फिर तू भी समाज में अजूबा बन जायेगा और मूर्ख समाज तुमको भी उनकी तरह पागल कहेगा। यानी तुम्हारी सामान्य ज़िन्दगी गई। दोस्त और रिश्तेदार भी। फिर वह मरे के समान ही हुआ न? दूसरे के लिए?

😊: अच्छा ये बात है। सुन एक बात कहूँ?

😏: बोल?

😁: भाड़ में जाये दुनिया!

शुक्रवार, जून 15, 2018

पौधे और जंतुओं का ज़हरबुझा सत्य ~ Shubhanshu

सामान्यतः जंतु तकलीफ महसूस करते हैं क्योंकि उनमें मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र होता है। सामान्यतः वनस्पतियों में मस्तिष्क और तंत्रिकाओं का पूर्णतः अभाव होता है इसलिये जगदीशचंद्र बसु का क्रिस्कोग्राफ सिर्फ एक धोखाधड़ी वाला प्रयोग था।

मस्तिष्क हीन जंतु जैसे जेलीफिश और बहुत से जलीय स्थिर जंतु खुद पौधे जैसे दिखते हैं होते हैं वे दर्द महसूस नहीं करते बल्कि जलीय दबाव के प्रति क्रिया दर्शाते हैं। उसे एक निर्जीव क्रिया समझा जा सकता है।

पौधों की जन्तुओ से तुलना करने वाले मूर्ख लोगों को यह पता होना चाहिए कि पौधे और जंतुओं को जोड़ने वाली कड़ियाँ सिर्फ अपवाद होती हैं जो कि वर्गीकरण में भिन्न स्थान पर रखी जाती हैं।

मूल वर्गीकरण पौधे और जंतु में किया गया है जो कि मस्तिष्क हीन जीवन और मस्तिष्क युक्त तंत्रिका तंत्र से व गतिमान अवस्थाओं, जंतु-वनस्पति कोशाओं के मूलभूत अंतर पर और मानव से उसकी समानता पर जंतु जगत में और सजीव परन्तु जड़ निकायों के रूप में पौधों (वनस्पतियों) में किया गया है।

स्वपोषी में भी क्लोरोफिल वाली वनस्पतियों के अतिरिक्त कवक व मशरूम शामिल हैं जो अपना भोजन मृतोपजीवी के रूप में स्वयं ही बनाते है। प्रकृति में भोजन स्वयं बनाने वाली प्रत्येक खाने योग्य वस्तु/जीव जो किसी का अन्य का शिकार न करती हो वह प्राथमिक भोजन होती है।

जो जैसे पाचन तंत्र के साथ पैदा हुआ है उसे वैसा ही भोजन करना चाहिए और मानव वनस्पति आधारित पाचनतंत्र के साथ पैदा हुआ है यही अंतिम सत्य है। सर्वाहारी जंतु के रूप में भालू और बंदर आपके सामने हैं उनसे खुद की तुलना करके खुद देख लें। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©