Zahar Bujha Satya

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बुधवार, जून 27, 2018

विज्ञानवादियों के लिये चेतावनी ~ Shubhanshu

मेरे Scientific Method Friends♀ आपको एक गहरी सलाह। आप किसी से अनर्गल बहस न करें। आपकी सोच को चोट लगी तो उलझ जायँगे और फिर भटक सकते हैं।

अग्नोस्टिक लोग आपको Atheist or Theist or Rational बन कर मिल सकते हैं और वे आपका समय खराब कर सकते हैं, उल्टे सीधे ट्रिक प्रश्नो से जिनको इनके आकाओं (तथाकथित आध्यत्मिक गुरु) ने बहुत मेहनत से तैयार करके दिया है। उनमें आप उलझ जाओगे। वह कुछ साबित नहीं करेंगे। बस कह देंगे कि कोई है और आप सारा घर छान मारोगे और वे कहते रहेंगे कि है कोई, ढूँढो।

वे बैठे रहेंगे लेकिन आप की घुइयां बिक जाएंगी, उसे ढूंढते-ढूंढते। यही है सन्देह पैदा करो की नीति। चक्रव्यूह वाली नीति। जिससे आज तक आस्तिकता जीतती आई है और परोपकारी नास्तिक उनकी मदद करने के बहाने बर्बाद होते रहे हैं।

वे पूछेंगे कि ब्रह्मांड कैसे बना?

आप कहोगे कि बिग-बैंग या स्ट्रिंग सिद्धान्त से लेकिन वे कहेंगे कि यह तो सिद्धान्त है। क्या सुबूत है कि ऐसा ही हुआ था?

आप फिर उलझ जाओगे और आपके मन में भी यह लोग सन्देह पैदा कर देंगे, क्योकि हम लोग भूतकाल में जाकर कुछ नहीं देख सकते।

ये फिर कहेंगे कि यह दुनिया अपने आप कैसे चल रही है? जीवन-मृत्यु क्यों हो रही है? नए जीव जंतु, पृथ्वी का घूमना, सुबह, शाम का होना कैसे है?

आप इनको गुरुत्व का सिद्धांत बताओगे तो वे कहेंगे कि यह भी क्या सत्य है? क्या पता यह घनत्व हो? सूर्य चन्द्र वैसे न हों जैसा विज्ञान बताता है। क्या पता यह सब झूठ हो? आपने थोड़े ही जाकर देखा है उपर अंतरिक्ष में। फिर आपको सन्देह उतपन्न हो जाएगा क्योकि आप ऐसे ही नासा के यान में नहीं जा सकते।

गए भी तो वह कहेंगे कि आप झूठे हो। उन्होंने (नासा) आपको खरीद लिया है और आप उनकी बोली बोल रहे हो। सब सुबूत नकली हैं। आप फिर से हताश हो जाओगे।

फिर वह कहेंगे कि शरीर से ऐसा क्या निकल जाता है (जबकि शरीर स्वस्थ हो) जिससे मृत्यु हो जाती है?

यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रश्न है। आप ऐसे ही इसका उत्तर नहीं दे सकते। यह प्रश्न ही गलत है क्योकि पूछने वाले को पता ही नहीं है कि मस्तिष्क की मृत्यु ही असली मृत्यु है। मस्तिष्क में कोई समस्या होने पर मृत्यु हो सकती है या बूढ़ा शरीर दिमाग को रक्त भेजने में असमर्थ हो जाये तब भी।

पूछने वाला पहले से आत्मा की अवधारणा से ग्रस्त है। वह बस आपके मुहँ से यह निकलवाना चाहता है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हैं। आत्मा जैसा कुछ होता तो हमारा शरीर कभी मरता ही नहीं। जैसे आत्मा मृत शरीर में घुस कर उसको जीवित कर देने का कथित गुण रखती है उस प्रकार तो आत्मा को स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए। जबकि खून बहने, ज़हर से शरीर क्षतिग्रस्त होने भर से मृत्यु हो जाती है।

कुछ लोग कोमा में लकवाग्रस्त होकर वर्षों तक जीवित रहते हैं लेकिन उनकी कथित आत्मा उनका साथ नहीं छोड़ती। 4 हाथ-पैर से लाचार लोग भी पूरा जीवन जीते हैं। इस हिसाब से आत्मा बेकार के शरीर को छोड़ देती है जैसी अवधारणा भी समाप्त हो गई।

अतः शरीर के कमजोर होने से या क्षतिग्रस्त होने से ही मानसिक मृत्यु हो सकती है। हेड ट्रांसप्लांट के ज़रिये यह बात भी साबित हो रही है कि हम सिर्फ दिमाग ही है और हम शरीर बदल सकते हैं यदि अनुकूल उपकरण और तकनीक उपलब्ध हो।

लेकिन इतना ज्ञान इन अनपढों के पास नहीं होता इसलिये आप इनको कितना भी समझा लो वे कहते रहेंगे, "क्या? कुछ समझ में नहीं आ रहा।" कोई लिंक देंगे तो भी इनका वही जवाब होगा कि कुछ समझ में नहीं आया। दरअसल यह वह सब पढ़ते ही नहीं। उनको थोड़े ही बदलना है खुद को। वे तो आपको तोड़ने आये हैं।

दीवार पर सिर मारने से दीवार को चोट नहीं लगती। शायद आप समझ गए हों। बाकी आपकी मर्जी। सत्यमेव जयते!

♀ Scientific Method (वैज्ञानिक विधि): देखें विकिपीडिया। जिसने इसे जान लिया समझो दुनिया को जान लिया। गहरा राज़ है जो आपको बता रहा हूँ क्योंकि आपसे कुछ उम्मीदें हैं। मानवता को बचाने की। मैं तो मस्त हूँ। नमस्ते। ~ Mr. Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Dharmamukt (Religion Free)  2018/06/27 03:24

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