Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, अगस्त 15, 2018

ज़िद है मेरी

दोस्तों, मैंने अपना पूरा जीवन विश्व सुधार को समर्पित किया है। जितना समय मैं आपको देता हूँ, जितना मैं लिखता हूँ, जितना प्रेम से बात करता हूँ यह सब करना आसान कार्य नहीं है मेरे लिए। सब कुछ छोड़ कर आपके लिये आया हूँ।

मेरी अपनी पारिवारिक ज़िन्दगी भी उजड़ गई इस नशे में जो मुझे न जाने कब से चढ़ा है। सभी जानने वाले लोग छोड़ गए। दोस्त नहीं रहे। नौकरी नहीं रही। घर बार न रहा। सब चला गया। रह गया तो सिर्फ मेरा सपना। जिसे कोई पूरा नहीं होने देना चाहता और हम हैं कि ज़िद पर अड़े हैं।

"जो हो नहीं सकता, वही तो करना है।
ऐसी ज़िन्दगी, जिसमें ज़िन्दगी न हो, तो...
मुझे मरना है।" ~ Shubhanshu 2018©

रविवार, अगस्त 12, 2018

सेक्स प्रकृति है

प्रकृति को रोक नहीं सकते आप। सेक्स पर नियम बनाने से सेक्स की कुंठा में आज  बच्चियां/बकरियां शहीद हो रही हैं। उधर लडकिया क्या कर रही हैं? लेस्बियन बन रही हैं। इस संस्कृति का ढोंग आपको कामसूत्र की किताब, मंदिरों की कामुक मूर्तियों में नहीं दिखता? बर्बाद कर दिया मेरा देश तुम्हारी दोहरी संस्कृति ने। वह संस्कृति जो लिंग-योनी पूजती है। उसे पवित्र मानती है और तुम उसे घिनौना बोल कर कमरे ढूंढते हो किसी के साथ घिनौना बनने के लिए?

कितना दोहरा है समाज। सदियों पहले से सेक्स को आज़ाद रखा गया। सेक्स की आज़ादी ने बलात्कार को शून्य बनाये रखा। देश में मुगल आक्रमण से पहले महिलाओं के शरीर इतने नहीं ढंके जाते थे जितना उनके आने के बाद ढंके जाने लगे। जब हिन्दू-मुस्लिम साथ रहने लगे तो उनमें रोमांस होने लगा। प्यार ने अपनी कलियाँ खोलीं। प्यार जातपात और धर्म से ऊपर उठने लगा। तभी धर्म के ठेकेदारों को अपना धंधा खतरे में जाता लगा।

राजनेताओं को अपना वोट बंटता लगा। धर्म और जाति के नाम पर जो वोट बैंक थे सबको दो धर्मों के प्रेम ने खतरे में डाल दिया। परिणाम क्या होना था? मार दिया गया उन मासूमों को काट कर, जला कर जिन्होंने अपनी प्रकृति से विद्रोह नहीं किया। ऑनर किलिंग मतलब अपने ही बच्चों की अपने काल्पनिक सम्मान की खातिर हत्या। सिर्फ सेक्स जैसे साधारण सी, आधारभूत ज़रूरत के खिलाफ? शर्म उस समय नहीं आई तो आज क्या आएगी।

जिनको शर्मनाक कार्य करने में गर्व होता है, जिनको गांधी जैसे दुर्बल, इंदिरा, राजीव जैसे निहत्थों को मारने में, खालिस्तान, पाकिस्तान, तेलंगाना, हरिजनिस्तान, कश्मीर बनाने में गर्व होता है, देश के टुकड़े करने में, हर महिला को सेक्स की विषयवस्तु समझने में, तिजोरी/रत्न जैसा वस्तु से तुलना करने में, अपने उपनाम, जाति, स्टेटस पर गर्व का गरबा करने से फुर्सत नहीं ऐसे लोगों को सत्य बताना भी सत्य का अपमान सा लगता है।

लिखना मुश्किल हो रहा है, दिख नहीं रहा, आँखों में पानी भर आया है, रुक ही नहीं रहा। आंसू पोछ कर एक-एक शब्द लिख रहा हूँ। शायद अब इस देश से इंसान मिट चुके हैं। शायद इस देश में अब देश नहीं रहा। अगर अब भी कोई फर्क नहीं आया तो आ भी नहीं सकेगा। भारत को विश्व गुरु बनाने की बातें करने वालों ने ही मेरा देश खा लिया। :-( ~ ज़हरबुझा सत्य via Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 6:18am 2018©

ज़िन्दगी और सत्य ही हैं गुरु

ज़िन्दगी और सत्य से बड़ा कोई गुरु नहीं और यह सबके साथ रहते हैं। किसी व्यक्ति को गुरु बना कर उनकी पूजा करने वाले, उनकी कमी बताने वाले से नफरत करने लगते हैं। व्यक्तिगत हमले करते हैं, पुरानी दोस्ती और एक् दूसरे की प्रतिभा को मानसम्मान देना भूल जाते हैं और हकीकत को स्वीकार करने की क्षमता खो देते हैं।

ऐसे लोग देश, दुनिया के लिये खतरा हैं जो किसी को परफेक्ट मान लेते हैं। ओशो, मार्क्स, अम्बेडकर, गाँधी, अन्ना, एडिसन, आइंस्टाइन, टेस्ला, बुद्ध, नानक, महावीर आदि बहुतों को भगवान् बनाया जा चुका है जबकि सबका काला पहलू अवश्य है। इसलिये इनको साधारण इंसान जैसा मान कर उनके कर्मों को याद रखना चाहिए न कि उनसे भावनात्मक लगाव रखना चाहिए।

भावनाओं में बहकर ही दंगे, अपराध और ज़ुल्म होते हैं। इस दुनिया में सिर्फ विचारों का सम्मान होना चाहिए। व्यक्ति का साधारण सम्मान होना चाहिए। जो लोग इस बात को नहीं समझते, वही भविष्य के अपराधी हैं।

धार्मिक लोग किसी महापुरुष के नाम पर ही कत्लेआम करते हैं। जो धार्मिक नहीं वह किसी महापुरुष को ढाल बना कर उनके कंधे पर बन्दूक रख कर चलाता है। यह भी उनसे कम नहीं हैं।

ऐसे लोगों से सावधान रहें जो अपने निजी क्षणिक स्वार्थ के लिये किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की तस्वीर, नाम आदि को अपनी ढाल बना कर बात करते हैं और उनको सबसे बेहतर बताते हैं। यह स्थिति ईश्वरीकरण कहलाती है। वही बात जिससे हम सभी बचना चाहते हैं।

मेरी उपरोक्त बात बहुतों को कड़वी लगेगी। मैं कड़वा ही बोलता हूँ। छुपाया गया सत्य कड़वा होता है, ज़हरबुझा होता है और हमने ज़हरबुझे सत्य को सामने लाने का बीड़ा उठाया है। आपको अच्छा लगे या बुरा। सत्य आपके सामने घुटने नहीं टेकेगा।

जबकि सत्य के आगे बाकी सबको झुकना चाहिए। यही सार्थक है। यही ज़रूरत है। यह कार्य जो कर ले समझिये उसका जीवन सफल! मैं सत्य के आगे झुकता हूँ और किसी के आगे नहीं। आप से भी यही उम्मीद है। आपकी भलाई इसी में है। सबकी भलाई इसी में है कि सत्य को स्वीकार लो। सत्यमेव जयते! ~ ज़हरबुझा सत्य via vegan Shubhanshu SC 2018©

शनिवार, अगस्त 11, 2018

आर्थिक आरक्षण?

आर्थिक आरक्षण की मांग करने वाले दोस्तों के लिये मेरा उत्तर:

आर्थिक मदद समाजकल्याण विभाग देता है न। सम्विधान में लिखा है कि जब तक सम्बंधित आयोग यह साबित नहीं करेगा कि आरक्षित वर्गों को समान अवसर मिलने चालू हो गए है आरक्षण प्रति 10 वर्ष आगे बढ़ता जाएगा।

इसका निर्धारण सम्बंधित आयोग आरक्षित वर्ग के प्रति होने वाले अपराध, शोषण आदि के मामलों को गिन कर करता है। जिनमें sc/st एक्ट भी शामिल है। आरक्षण बनाये रखने के लिये एक मात्र शर्त है कि आरक्षित वर्ग के प्रति कोई अपराधी न पकड़ा जाए। इसके लिए दलित नेता सवर्णो को गाली-गलौच करके उकसाते हैं ताकि यह सब चलता ही रहे। नहीं तो आरक्षण खत्म हो जाएगा।

उदाहरण के लिये आप आरक्षित वर्ग के नेताओं के पिछलग्गुओं की बोली देखिये। नफरत और अपमान से भरा व्यवहार देखिये। यह सब जान बूझ कर झगड़ा करवाने का प्लान है ताकि वे अपने आरक्षण को बचाये रख सकें।

अफसोस है कि सवर्ण लोग इतने मूर्ख हैं कि वे इनके जाल में फंस कर गलत बन जाते हैं और अपरोक्ष रूप से जातिगत आरक्षण को ही सुरक्षा देते हैं।

यही बस एक राजनैतिक खराब पहलू है जो सही नहीं है। बाकी आरक्षण अपनी जगह ठीक है वह दबाव बनाता है ताकि समानता का अधिकार अपना मतलब न खोए। ~ Shubhanshu SC 2018©

आईना

मैं अपनी गलतियों से सीखा हूँ इसलिये कोई पथ प्रदर्शक नहीं मिला मुझे। जो भी सीखा है वह बहुत कड़वा है। लेकिन पचने में आसान। दवाई जैसा। नीम पर करेला चढ़ा जैसी कड़वी दवाई।

इसीलिये आत्मविश्वास से भरा हुआ हूँ। जो आपको कभी ego तो कभी घमण्ड लग सकता है।

कोई मुझे आत्ममुग्ध कह कर अपमानित करता है तो कोई आत्म मंथन करने वाला ज्ञानी कह कर सम्मानित भी करता है।

किसी को मेरा समर्पण धमकी लगता है तो किसी को वह मेरा बड़प्पन लगता है।

ये लोग ही हैं जो मुझे कभी काला और कभी सफेद बताते हैं, लेकिन मैंने जब भी खुद को देखा, तो खुद में बस एक चमकदार आईना ही नज़र आया। जिसमें जिसने झांका, उसने खुद को ही पाया। ~ Shubhanshu

प्रगति और स्वार्थ

अभी की सभी प्रगति लोगों की व्यक्तिगत प्रगति का ही नतीजा है। न अम्बानी को ऊपर उठने की महत्वाकांक्षा जागती, न आज देश में इंटरनेट क्रांति आती।

जाने अनजाने स्वार्थी इंसान लोगों का भला करता है। रतन टाटा ने अपने लिये सबकुछ किया लेकिन दरअसल वह हमारे लिये ही कर रहा था। उसने लोगों को मोटरसाइकिल के दाम मे कार दे दी। जबकि और कम्पनियाँ मारुति 800 से ज्यादा कुछ नहीं दे सकी जिसको अफोर्ड करना भी आम आदमी के लिये मुश्किल था।

थॉमस एडिसन भी महत्वाकांक्षी था। गरीबी से तंग आकर उसने मेहनत की, दिमाग लगाया और अकेले ही अपने स्वार्थ की पूर्ति करते करते हर पृथ्वीवासी को अपने एहसान तले दबा दिया।

मैंने भी अपनी खुशी के लिये लिखना शुरू किया लेकिन दुनिया की खुशियां उसमें भर डालीं। कोई भी स्वार्थी हो ही नहीं सकता क्योकि अकेले यह शब्द एक भृम है।

धार्मिक लोग भी तुलसी का उदाहरण देते हैं कि उसने अपने स्वार्थ 'स्वान्तः सुखाय' के लिये रामचरित मानस नाम का अनुवाद किया लेकिन उसे इस्तेमाल घर घर ने किया। भले ही वह कल्पना हो लेकिन क्या हम कल्पना नहीं करते? वह भी लेखक था। स्वार्थ से ही सफल हो गया।

स्वार्थ के बिना कोई जीवित रह ही नहीं सकता। आप भोजन करते हो खुद के लिये, पानी पीते हो खुद के लिए, सांस लेते हो खुद के लिए, सोते हो खुद के लिए फिर कैसे इनको कोई छोड़ सकता है? स्वार्थी लोग ही दुनिया बदलते हैं। निस्वार्थ कोई होता ही नहीं।

स्वार्थ सिर्फ क्षणिक हो तो ही स्वार्थ लगता है। स्वार्थ के साथ जब तक क्षणिक नहीं लगता वह अपना बुरा मतलब नहीं दिखा सकता। इसलिये क्षणिक स्वार्थ से बचिए। दीर्घकालिक स्वार्थ में डूब जाइये। यही समाज सेवा है। यही सामाजिक प्रगतिशीलता की चाभी है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2018©

बुधवार, अगस्त 08, 2018

मार्क्सवाद/साम्यवाद का ज़हरबुझा सत्य

- भैया ये मार्क्सवाद क्या है ?

- इसके लिए कुछ आसान सवालों के जवाब देने होंगे .  दोगे ?

- हां भैया , बिल्कुल.

- अच्छा , बताओ..हमारे देश में एक तरफ अम्बानी जैसे अमीर हैं तो दूसरी तरफ कल्लन जैसे गरीब हैं. क्या ये अमीर गरीब की खाई मिटनी नहीं चाहिए ?

- बिल्कुल मिटनी चाहिए भैया.

- यही तो है मार्क्सवाद.

- ओह !

- अब ये बताओ , कल्लन फैक्ट्री में मजूरी करता है. वह रोज 5 हज़ार का सामान बनाता है जो मार्किट में 8 हज़ार का बिकता है. 3 हज़ार मालिक को मुनाफा मिलता है. यानी महीने में कुल 90 हज़ार का मुनाफा मालिक को मिलता है. लेकिन कल्लन को तनखाह कितनी मिलती है. 7 हज़ार रुपये. बाकी 83000 मालिक का. क्या कल्लन को अपनी मेहनत के बदले 40000 भी नहीं मिलना चाहिए ? अच्छा छोड़ो , 40 नहीं तो उसका चौथाई 10 हज़ार तो मिलना चाहिए. लेकिन नहीं मिलता. उतना भी पाने के लिए उसे हड़ताल करनी पड़ती है जिसमें उसकी 3-4 दिन की पगार कट जाती है. ये सब बंद कर के कल्लन को कम से कम 50, 60 , 70 , नहीं तो आधा यानी 40 हज़ार तो पगार मिलना चाहिए कि नहीं चाहिए ?

- भैया बिल्कुल मिलना चाहिए. यह तो उसका अधिकार है.

- यही तो है मार्क्सवाद.

- अच्छा !

- अब अगले सवाल का जवाब दो. कल्लन को पढ़ाई लिखाई पसंद थी. वह पढ़ने में बहुत तेज था.  टीचर बनना चाहता था. लेकिन उसे गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वह फैक्ट्री मज़दूर बन गया. क्या उसे टीचर बनने का अधिकार और इसके लिए सरकार की ओर से सुविधा मिलनी चाहिए थी कि नहीं चाहिए थी ?

- भैया , बिल्कुल मिलना चाहिए थी. सरकार हमारे भले के लिए ही तो होती है.

- बिल्कुल. यही तो है मार्क्सवाद.

- अच्छा अब ये बताओ .. क्या ये दुनिया ऐसी नहीं होनी चाहिए , जहां न कोई अमीर हो , न कोई गरीब हो . बल्कि सब एक बराबर हो. सबको ढंग का रोटी , कपड़ा , मकान , शिक्षा , पर्यावरण आदि मिले. जहां देश- प्रदेश का बंटवारा न हो , सीमा को लेकर झगड़े न हों. जहां पूरी दुनिया ही अपना घर हो.

- बिल्कुल होना चाहिए भैया. इससे तो दुनिया बेहद खूबसूरत हो जाएगी.

- बस , यही तो है मार्क्सवाद.

- अब ये बताओ कि अगर किसी अच्छे और समाज के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति को ऐसी दुनिया बनाने के लिए लड़ना भिड़ना पड़े , आंदोलन करना पड़े , विरोध करना पड़े तो क्या उसे पीछे हट जाना चाहिए ? या डटे रहना चाहिए.

- भैया डटे रहना चाहिए. मैं तो कहता हूं , जान लगा देनी चाहिए.

- तुम समझ गए. यही तो है मार्क्सवाद.

- भैया मार्क्सवाद तो बहुत अच्छी चीज है. फिर लोग इसे बुरा क्यों समझते हैं ? आम लोग इससे दूर क्यों हैं ?

- वो इसलिए हैं क्योंकि अमीर बुरे हैं. और उनसे भी बुरे हैं मार्क्सवादी. वो समाज के हित की बजाय अपना हित साधने में लगे हैं. उन्हें विद्वान और धनवान बनना है. उन्हें मार्क्सवाद के नाम पर कल्लन का वोट हासिल कर सत्ता चाहिए. उन्होंने एक खूबसूरत विचार को धंधा बना दिया है और अब वो भी अमीरों की तरह फलफूल रहे हैं. इसीलिए.

- और कल्लन ? कल्लन क्या कर रहा है.

- वो तो इन सब बातों से अनजान है. वो आज भी वहीं फैक्ट्री में मजूरी कर रहा है! लेखक: Pradyumna Yadav

रविवार, अगस्त 05, 2018

सभी रोगों का इलाज, अभी और आज

जब आपके विरोधी भी आपसे प्रेम करने लगें और विपरीत विचारों के बाद भी आपसे प्रेम से बात करें तो समझिये कि आप सही राह पर जा रहे हैं। आप सबको साथ लेकर चलना सीख गए। ज़रूरी नहीं है कि आप हर जगह आ जा सकें। पुराने समय में लोग दूत भेजते थे और कार्य आगे बढ़ते थे।

आज इंटरनेट और फोन कॉल से वही काम तुरन्त हो सकता है। अतः फेसबुक को कोई छोटा माध्यम न समझें। हाँ, यहाँ खाली हवाबाजी करने का कोई लाभ नहीं यानी नकली ID बना कर आप अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते। कारण है कि कभी भी वह हटाई जा सकती है।

आपको असली नाम से वेरीफाई ID ही रखनी चाहिए। फ़ोटो चाहें लगाएं या नहीं लेकिन ज़रूरत पड़ने पर दिखा भी सकते हैं। साथ ही ध्यान रहे कि केवल उन्हीं को दिखाएं जिन पर भरोसा किया जा सकता है। यदि आपके विचारों से किसी का आर्थिक या सामाजिक नुकसान हो रहा है तो वह आपके लिए खतरा हो सकते हैं। उनसे अपनी पहचान छिपा लीजिये।

लेकिन बेहतर होगा कि खुद को किसी के नुकसान की वजह न बनने दें। केवल तटस्थ रूप से विचार प्रस्तुत करें। जैसा न्यूज़ में होता है। मैं यही करना चाहता हूँ।

आपको ऐसा सत्य बताना चाहता हूँ जो मीठे झूठ से कहीं ज्यादा कड़वा लेकिन आपके लिए सबसे ज्यादा जरूरी होगा। याद रखिये मैं बड़ा व्यापारी नहीं हूँ इसलिये आपको पसन्द आने की गारंटी नहीं दे सकता लेकिन एक चिकित्सक ज़रूर हूँ जो अपनी कड़वी दवा से आपकी समस्या रूपी बीमारियां मिटा सकता हूँ। बस नाक बंद करके निगल जाइये। ~ Shubhanshu SC VEGAN Religion Free 2018©

शुक्रवार, अगस्त 03, 2018

बिना तीर के निशाना

मैं जब भी कभी टूर पर नए लोगों के साथ जाता था तो मैं उनसे भिन्न होने के कारण सबको बुरा लगता था। लेकिन जब वापस आता था तो सबको बस मैं ही अच्छा लगता था। बाकी सब में कोई न कोई बुराई उनको दिखने लगती थी।

दरअसल मेरे साथ जो अत्याचार होते थे (रैगिंग जैसे) वह मेरे जैसे निर्दोष व्यक्ति के ऊपर किया जाना और मेरा हंसते-हंसते उन को सह जाने से लोगों का अच्छा पहलू जाग जाता था और वे मेरे ऊपर हुए हर गलत व्यवहार का जवाब देना सीख जाते थे। अतः वहाँ ग्रुप 2 भागों मे बंट जाता था जो मेरे पक्ष और विपक्ष मे होते थे।

अंततः पक्ष, विपक्ष को बहुत डाँटता था और फिर विपक्ष को मुझसे माफी मांगनी पड़ती थी और साथ ही मुझे प्रसन्न करने का कार्य भी करना होता था। तो पक्ष और  विपक्ष दोनो ही मेरे पक्ष में हो जाते थे। बिना तीर चलाये निशाना मुश्किल ज़रूर होता है लेकिन अगर आप सच्चे हैं तो जीत आपकी ही होगी। ~ Shubhanshu SC Vegan Religion Free 2018©