मैं जब भी कभी टूर पर नए लोगों के साथ जाता था तो मैं उनसे भिन्न होने के कारण सबको बुरा लगता था। लेकिन जब वापस आता था तो सबको बस मैं ही अच्छा लगता था। बाकी सब में कोई न कोई बुराई उनको दिखने लगती थी।
दरअसल मेरे साथ जो अत्याचार होते थे (रैगिंग जैसे) वह मेरे जैसे निर्दोष व्यक्ति के ऊपर किया जाना और मेरा हंसते-हंसते उन को सह जाने से लोगों का अच्छा पहलू जाग जाता था और वे मेरे ऊपर हुए हर गलत व्यवहार का जवाब देना सीख जाते थे। अतः वहाँ ग्रुप 2 भागों मे बंट जाता था जो मेरे पक्ष और विपक्ष मे होते थे।
अंततः पक्ष, विपक्ष को बहुत डाँटता था और फिर विपक्ष को मुझसे माफी मांगनी पड़ती थी और साथ ही मुझे प्रसन्न करने का कार्य भी करना होता था। तो पक्ष और विपक्ष दोनो ही मेरे पक्ष में हो जाते थे। बिना तीर चलाये निशाना मुश्किल ज़रूर होता है लेकिन अगर आप सच्चे हैं तो जीत आपकी ही होगी। ~ Shubhanshu SC Vegan Religion Free 2018©
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