Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, अक्टूबर 05, 2018

नास्तिक और तर्कवादी

नास्तिक = कोई भी जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता है या कोई ऐसा व्यक्ति जो विश्वास करता है कि कोई देवता मौजूद नहीं है।

युक्तिवादी = कोई भी जो अवलोकन तथ्यों पर जोर देता है और उत्पत्ति या अंतिम कारणों के बारे में गूढ़ परिकल्पना को शामिल करता है।

उपर्युक्त दोनो परिभाषित शब्दों को देख कर आप समझ सकते हैं कि एक सिर्फ देवता/ईश्वर पर विश्वास नहीं करता जबकि दूसरा ऐसी किसी चीज पर विश्वास नहीं करता जो प्रयोगों और तर्को से साबित न हो सके। मैं युक्तिवादी हूँ जिसमें देवता/ईश्वर, आत्मा, भूत, प्रेत, पिशाच, जादू, टोना, तँत्रमन्त्र, औरा, टेलीपैथी, फेंगशुई, एक्यूप्रेशर/पंचर, फिजियोथेरेपी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी पैथी, व्यक्ति वादी आस्था आदि सभी तर्क और सुबूतों के आधार के कल्पना मात्र हैं।

PS: थोड़ा बहुत सही जो लगता है वह सब जानबूझकर विश्वसनीय बनाने के लिये उनमें सत्य को और विज्ञान को मिलाया जाता है। जैसे आयुर्वेद हर्बल sciance का प्रयोग करके कुछ रोग ठीक कर देता है ऐसे ही होम्योपैथी भी हर्बल निष्कर्ष को कहीं कहीं दवा के रूप में प्रयोग करता है।

तंत्र मंत्र वाले सुपारी किलर होते हैं। औरा, रेकी, फेंगशुई, एक्यूप्रेशर/पंक्चर वाले समेत सभी आपके विश्वास के साथ खेलते हैं और शरीर में मौजूद placebo effect को जाग्रत करके आपको लाभ पहुचाते हैं। जो कि वास्तव में धोखा कहलाता है। यह अच्छा है लेकिन जब इसके बदले धन का धंधा चलता है तब हमें सत्य बताना पड़ता है क्योकि गम्भीर बीमारी में और गम्भीर परिस्थितियों में आपको इन सब से सिर्फ एक ही लाभ होगा और वह होगा इस जीवन से जल्द मुक्ति और आपके घर वालों को बीमाधन मिलेगा।

विस्तार में लिखने में आलस आ रहा है। कोई प्रोत्साहित करना नहीं चाहता तो मैं भी कचरे में डाल रहा हूँ यह जानकारी, ऐसी भावना मन में आती है। पढ़ लो जो अगर कोई हो ज़हरबुझे सत्य का प्रेमी इधर। सही में खोजी होगे तो pseudoscience नाम के शब्द का अर्थ और विस्तृत वर्णन ढूंढ लोगे। ~ ज़हरबुझा सत्य (VS SC) 2018©

बुधवार, अक्टूबर 03, 2018

वर्जित रिश्तों का सत्य

संस्कारी रिश्ते उस समय के हैं जब गर्भनिरोधक का पता नहीं था और बच्चे हो जाते थे। कोई भी उसकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था। यह एक संस्था जिसे विवाह संस्था कहते हैं का सहउत्पाद है। क्योकि अगर ऐसा न करें तो जिनके घर कोई लड़कीं न हो तो उनको सेक्स सुख कैसे उपलब्ध कराया जाता?

साथ ही वंशवादी सोच ने रक्त की शुद्धता को सिर्फ पुरुष के आधार पर नापा। धर्मग्रंथों में साफ लिखा है कि महिला खेत है और पुरुष सम्भोग करके उसमें हल चलाता है और शुक्र (वीर्य) रूपी बीज उसमें बोता है जिसके फलस्वरूप बच्चा रूपी फसल उगती है।

अगर रक्त सम्बन्धी यौन सम्बंध बनते तो इस कल्पना का क्या होता? जो कि इस नियम के विरुद्ध ही है क्योंकि वंश रक्त शुद्ध तब होगा जब भाई/बहन/पिता/पुत्री/माता आदि ही आपस में बच्चा उतपन्न करें। ऐसा इसलिये है क्योंकि विज्ञान से साबित हुआ है कि बच्चे में नर-मादा दोनो के ही 14-14 गुणसूत्र मौजूद होते हैं।

अतः पुरुष और महिला दोनो का बराबर अंश बच्चे में होता है। अब यदि आपको अपने माता पिता के वंश को शुद्ध रूप से बढ़ाना है तो आपको अपनी ही बहन या माता से सम्भोग करके बच्चा पैदा करना होगा। वंशवाद का विचार इस आधार पर आया था कि बुद्धिमानी और पराक्रम आनुवंशिक होते है।

यह सत्य है लेकिन इसमें महिला यदि दूसरे परिवार से है तो बच्चे के गुण में माता-पिता दोनो के गुण-अवगुण आएंगे ही। अतः अब तक जो होता आया वह गलत था। वंशवादी लोगों ने मूर्खता ही की। सही तरीका है, सुजननिकी। ~ Shubhanshu 2018©

स्तनों का रहस्य

महिला के उभरे हुए स्तन दरअसल मैथुन सहायक गद्दियाँ हैं जो सम्भोग के समय पुरुष को उत्तेजित करती रहती हैं मर्दन के साथ। उनकी जरूरत बिना बच्चा किये भी सम्भोग के आनन्द के लिए ज़रूरी है।

आप एक प्रयोग से यह साबित कर सकते हैं। सम्भोग, फोरप्ले के समय महिला के स्तनों के साथ खेलने, चूमने से महिला कामोत्तेजित होती है। अतः वह पहले से ही पूर्ण है आनंद की क्रिया के लिए।

हमेशा ही बच्चा हो या न हो यह गारन्टी नहीं होती किसी भी जंतु में लेकिन वह मैथुन का आनन्द ले सके इसकी गारन्टी अवश्य हो जाती है स्तनों से जो कि मैथुन के समय दोनो पक्षों को आनन्दित और कामोत्तेजित करते रहते हैं। इसीलिए बड़े स्तन की महिला पुरुषों की पहली पसन्द होती है।

पुरुष के स्तन इसलिये हैं क्योंकि सर्वप्रथम भ्रूण महिला ही बनता है बाद में y गुणसूत्र के होने के कारण उसमें कायिक परिवर्तन आ जाता है और स्त्री की भगनासा (clitorise) पुरुष के लिंग में परिवर्तित हो जाती है। हार्मोन की कमी के कारण स्तन अल्पविकसित रह जाते हैं और महिला और पुरुष का भेद उतपन्न हो जाता है। ~ Shubhanshu 2018©

सोमवार, अक्टूबर 01, 2018

व्यवहारवादी (practical) या भ्रष्टाचारी

लोग अपने आप को जब तक अकेडमिक (शैक्षणिक) सिद्धान्तों के अनुसार नहीं ढालते, देश क्या विश्व विष के घूंट पियेगा।

शैक्षिक सिद्धान्त वे हैं जो आपकी पाठ्य पुस्तकों में लिखे हैं। जो भ्रष्टाचार आप करते हैं वह अशिक्षा है। गांव में भृष्ट अधिक हैं। अधिकतर सरकारी कर्मचारी गांव से आते हैं। क्योंकि उनके पास पढ़ाई के अलावा कोई काम नहीं होता और वे वही करते हैं शहर में रह कर।

ऐसे गांव के लोग बस रटन्त विद्या सीखते हैं क्योंकि उनको ज्ञान नहीं होता सब कुछ समझने का। वे पढ़ाई बस पास होने के लिये करते हैं। आप उनकी भाषा और व्यवहार देख के समझ सकते हैं कि इन्होंने खाली पढ़ाई को सीढ़ी बनाया पैसा प्राप्त करने के लिए। वे उस शिक्षा को अपने वास्त्विक जीवन मे कभी नहीं उतार पाएंगे क्योकि उन्होंने सिर्फ पढ़ा था, याद किया था लेकिन समझा कुछ भी नहीं था। इसी को शिक्षा और वास्तविक शिक्षा के बीच का अंतर कहा जाता है।

वास्तविक शिक्षा वह है जो आप शिक्षित होने के लिये लेते हैं। और दूसरी शिक्षा जिसे आप व्यवहारिक शिक्षा कह सकते हैं वह सिर्फ आपकी मार्कशीट में अंक बढ़ाने के लिए ली जाती है। यही बर्बादी की जड़ है। आप धन तो कमा लेंगे लेकिन उसे मैनेज नहीं कर पाएंगे, भ्र्ष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे,आपमें और एक अशिक्षित में व्यवहारिक समानता होगी। इनको पढ़े लिखे अनपढ़ों की श्रेणी में रखा जाता है।

भारत में इस समय 90% स्नातक अयोग्य हैं। वे बस परीक्षा पास करने की ट्रिक जानते हैं। उनकी अधिकांश ज़िन्दगी मंदिर/मस्जिदों में या चिकित्सकों के पास कटने वाली है और यही लोग अस्वस्थ सरकार को चुनेंगे। इस बात का प्रमाण आप सिर्फ इस बात से पा सकते हैं कि विद्यार्थी कितनी भी पढ़ाई क्यों न कर ले, वह दुआ/मन्नत मांगने ज़रूर जाएगा। क्योकि उसे खुद पर भरोसा ही नहीं है। जबकि जो बातें हमें पसन्द आती हैं, उनको हमें याद नहीं करना पड़ता, वह याद रह जाती हैं। जो हमें याद रह जाता है वही हम जीवन मे उतारते हैं और जो रट लेते हैं उसे हम बस दूसरे को पढ़ा/सुना सकते हैं। समझ/समझा नहीं सकते।

इन सब का सार इसी बात से सामने आ जाता है कि हम भारतीय लोग नौकरी तो सरकारी चाहते हैं लेकिन कोई सरकारी जगह हमें पसन्द नहीं आती।

इंसान को शिक्षा का ज्ञान नहीं बल्कि सुविधा का लालच लुभाता है और यही इस विश्व की परिणति है कि अब महान ज्ञानी लोग पैदा नहीं होते। धूप में लाइन में लगा व्यक्ति खिड़की से AC की ठंडक में बैठे बाबू को देख कर यही दुआ मांगता है कि काश वह भी बाहर नहीं बल्कि भीतर होता।

अब हर कोख से एक भृष्ट पैदा होता है। जिसमे सब अवगुण ही होते हैं, कोई गुण नहीं होता और उसको जीत मिलती है क्योंकि लोग यही चाहते हैं। अगर कोई भृष्ट नहीं होगा तो बिना लाइसेंस की बन्दूक और गाड़ी कैसे चलाएंगे? जल्दी काम कैसे करवाएगे? अपराध करके कैसे बचेंगे?

ब्रायन का लिखा लेख इसी बात की ओर इशारा करता है कि हम जन्म से और कर्म से भृष्ट पैदा होते हैं और उसका कारण हमारा भेदभाव और धर्म है। "हम कभी सुधर नहीं सकते" ऐसा लगता है लेकिन याद रखिये हर सुधरे हुए व्यक्ति ने कभी यही शब्द कहे थे। नमस्कार।  2017/09/30 03:12 लेख: Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

गुरुवार, सितंबर 20, 2018

मैथुन और हस्तमैथुन का ज़हरबुझा सत्य

सीमेन सैक में कुछ मिलीलीटर वीर्य होता है। उसको संकुचित करने वाली मांसपेशियों को ताकत लगा कर उस गाढ़े वीर्य को बाहर फेंकना होता है ताकि गर्भाशय मुख से जुड़ कर वीर्य की पिचकारी उसमें भर सके। इस कार्य में वह वाल्व थोड़ा सा घायल हो जाता है इसलिए दोबारा उसे ठीक होने में 1 दिन का समय लगता है। वीर्य को ताज़ा और पुष्ट होने में 3 दिन का समय लगता है।

दिन में 3 बार 4 घण्टे के अंतराल पर व 3 दिन बाद दोबारा करने पर शरीर सहन योग्य स्वस्थ रहता है लेकिन रोज 1 या 2 बार भी कर सकते हैं। यही विपरीत लिंग से सम्भोग करते समय भी लागू होता है। दोनो में कोई अंतर नहीं है। ज्यादा वीर्यत्याग करने पर वाल्व में घाव हो जाता है और दर्द के साथ मन उचटने लगता है। इसी घाव में अगर पस/मवाद पड़ जाए तो फिर वीर्य बिना किसी छेड़खानी के असमय बहने लगता है जिसे लोग धातु निकलना कहते हैं।

एक बात दिमाग में डाल लें। सेक्स का मतलब पुरुष के लिए वीर्यत्याग और महिला के लिए चर्मोत्कर्ष है। अब इसे आप प्राकृतिक रूप से करें, मुहँ से, हाथ से, मशीन या फिर सेक्स खिलौने से। कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु अति सर्वस्य वर्जयेत।

दोबारा मत पूछना। वैसे भी कुछ मूर्खों को यह पोस्ट भी अश्लील लगने वाली है। कमंडल से पैदा होने वालों के लिये यह पोस्ट नहीं है। धन्यवाद! ~ Shubhanshu 2018©

गुरुवार, सितंबर 13, 2018

परिवार विवाह का मोहताज नहीं

आदिमानव विवाह के बिना ही सभ्यता को यहाँ तक ला सके।
अब जब विवाह है तब जाति/धर्म/भेदभाव/सम्मान और रक्तसम्बंधों से जुड़ी नफरतों ने बस हत्या और नफरत ही की है। प्रेमियों को मौत की सज़ा दी जाती है तो सोचिये नफरत करने वाले कितने होंगे और मजे में तो पक्का होंगे।

आदिमानव यह अनजाने में करता रहा लेकिन आज आप वैज्ञानिक सोच से उस सत्य को स्वीकार करके भी उससे कुछ अच्छा सीख सकते हैं। शुरुआत में हम लोग ज्यादा नहीं सोचते और सामान्य जीवन जीते हैं लेकिन फिर हम धर्मों के गुलाम हो जाते हैं और फिर हमें आदिमानव दिखना बन्द हो जाता है।

धर्म उसका वजूद ही मिटा देता है, केवल विज्ञान उसे जीवित रखता है। कमाल की मूर्खता है न विद्वान होने का दम्भ भरते मानव की कि सारी दुनिया में काल्पनिक धर्म का बोलबाला है और हम खुद को आधुनिक कहते हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? दुनिया का लगभग हर व्यक्ति इसकी बेड़ी में जकड़ा हुआ है। केवल विज्ञान ही हमें आदिमानव और डायनासौर दिखा सका जिससे हम जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को समझ कर सत्य और असत्य में भेद कर सके। ~ तपस्यारत शुभाँशु 2018©

बुधवार, सितंबर 05, 2018

भीमवादी या आतंकवादी

शुभ्: क्या हाल है?

भक्त: जय भीम।

शुभ्: अरे हाल-चाल पूछ रहे हैं?

भक्त: जय भीम, नमो बुद्धाय!

शुभ्: अरे पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र घर में करो। मैं यह सब नहीं मानता। विज्ञानवादी हूँ। विज्ञान किसी की भक्ति नहीं सिखाता। हम खुद ही खुद के मालिक होते हैं। बाबा साहेब ने किसी की भक्ति नहीं की तभी ज्ञानी हुए और आप भक्ति के चक्कर में विचार-विमर्शो से दूर होकर रट्टू तोता बन गए। जैसे और धर्म के लोग हैं। वे भी बस आमीन, जय श्री..., अल्लाह हु...फलाना-धिमाका बोलते रहते हैं। विचार बांटिए। लोग खुद ही आपकी तुलना इन महापुरुषों से करने लगेंगे।

भक्त: हरामजादे, तूने मेरे बाबा को गाली दी, तेरी बहन खोद दूँगा, मनुवादी चादर मोद! मेरे बाबा ने मुझे बात करने का तरीका सिखा दिया। तुझ जैसे मनुवादियों का नामोनिशान न मिटा दिया तो मैं बाबा का बेटा नहीं। मर साले। खच्च। (चाकू घोंप दिया)

Note: आप सबको शिकायत थी कि क्या समस्या है जय भीम, नमो बुद्धाय से? तो ये है समस्या। ~ Shubhanshu 2018©

सोमवार, सितंबर 03, 2018

फलाहारी था आदिमानव

प्रारंभ में आदिमानव सिर्फ मीठे फल और मीठे-फूल कंद खाते थे। सब्जियों में स्वाद न होने के कारण उनको आग की खोज और नमक्/मसालों के मिलने के बाद पका कर खाया गया। इंसान कुदरती फलाहारी था और है। शिकार करना अपने आप आ गया जब जंगली मांसाहारी जानवरों को भगाने के लिये उसने हथियार बनाये। उस समय तक वह मरे जानवर नहीं देखता था क्योकि कच्चा मांस ख़ाकर कई आदिमानव फ़ूड poisioning से मर गए। जब खराब परिस्थितियों में सूखा और बाढ़ ने वनस्पति नष्ट कर दी तब जाकर मानव का ध्यान मांस पर गया। तब आग की सहायता से उसने मांस को भून कर उसमें रहने वाले कीटाणुओं को मार दिया और उसे मुलायम बना कर चबाने लायक बना पाया। ~ शुभाँशु 2018©

शुक्रवार, अगस्त 31, 2018

आओ बनाएं बेहतर आज़

"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझें भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्

"बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो?" ~ Vegan Shubhanshu Rationalist

"कुछ लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"
~Vegan Shubhanshu Rationalist

लेकिन इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार है।

साथ ही, धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी काफी बाद में शुरू हुआ था।

मैं किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?

धर्म एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से सिर्फ अच्छा ही चुनें?

"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।

और यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन) नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है। मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना बर्बाद कर दे रहे हैं।

अधिक जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा, अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।

चीन में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप करेंगे क्या?

आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?

मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।

"बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।"
~ Vegan Shubhanshu Rationalist

आप इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।

बुधवार, अगस्त 29, 2018

रक्तसम्बंधों में प्रजनन

जंतुओं में 90% बच्चे incest से होते हैं। विज्ञान का एक प्रभाग अनुमान लगाता है कि incest से पैदा हुए बच्चे गड़बड़ होते हैं क्योंकि एक ही DNA कई बार टूटता है। बेहतर सन्तति के लिये DNA नवीनीकरण आवश्यक है। परन्तु जंतुओं में हम ऐसा नहीं होते देखते। साथ ही मिस्र के राजवंश जो कि बेहद ज्ञान विज्ञान के रहस्य समेटे हैं वे सभी incest से ही राजवंश चलाते थे।

वंश चलाने की वास्तविक शर्त यह है कि वंश की संतति में किसी और DNA की मिलावट न हो। यह बात मिस्र का राजघराना और ब्रिटेन का राजघराना जानता है। बाकी इस बात से अंजान रहे और एक मिश्रित वंश को अपना वंश कहते रहे। हम सब आज भी इसी गलतफहमी में रहते हैं कि अगर हम किसी अन्य परिवार की लड़की से विवाह/बच्चे करते हैं तो हम अपना वंश आगे बढ़ा रहे हैं। जबकि आने वाला बच्चा आपके और आपकी पत्नी/साथी दोनो का 50-50 प्रतिशत DNA लेकर आता है, अर्थात दो भिन्न लोगों का वंश। एक दूषित वंश।

यही आगे चलकर जब नाती-पोतों तक पहुँचता है तो आपके वंश का बेहद सूक्ष्म अंश मात्र ही भावी सन्तति में शेष रह जाता है। बाकि उसमें दूसरों का DNA ही ज्यादा होता है। इस प्रकार आपकी खूबियाँ या कमियां, जो भी हैं, वह आने वाली सन्तानों में नहीं रहतीं। दूसरों की आ जाती हैं।

पशुओं/जंतुओं में 90% से अधिक incest sex होने के कारण ज्यादा शुद्ध वंश होता है तथा उनके पुरखों के अनुवांशिक लक्षण जस के तस बने रहते हैं। जबकि मानव भिन्न DNA से संयोग (प्रजनन) करके अजीब-अजीब नए प्रयोग कर रहा है। परिणामतः अजीब-अजीब लोग (अच्छे या बुरे) पैदा हो रहे हैं।

यथा-

अच्छा पुरुष + बुरी स्त्री = अच्छा-बुरा बच्चा/बच्ची
अच्छा पुरुष + अच्छी स्त्री = अच्छा बच्चा/बच्ची
मूर्ख पुरुष + बुद्धिमान स्त्री = 50-50% गुण यानी सामान्य बच्चा/बच्ची
बुद्धिमान पुरुष + मूर्ख स्त्री = 50-50% गुण यानी सामान्य बच्चा/बच्ची
सामान्य पुरूष + सामान्य स्त्री = सामान्य बच्चा/बच्ची
सामान्य व्यक्ति + X व्यक्ति = 50-50% सामान्य तथा X गुण।
मूर्ख पुरूष + मूर्ख स्त्री= मूर्ख या महामूर्ख बच्चा/बच्ची
बुद्धिमान पुरुष + बुद्धिमान स्त्री = बुद्धिमान या महाबुद्धिमान बच्चा/बच्ची

जहाँ, X = अच्छा, बुरा, बुद्धिमान, मूर्ख, महामूर्ख, महाबुद्धिमान संयोग आदि।

नोट: अच्छा/बुरा/मूर्ख/बुद्धिमान के पैमाने = एकल व्यक्ति के समस्त गुणों का निष्कर्ष

जबकि incest में -

व्यक्ति के विशेष गुण/अवगुण (अनोखापन) बरकरार रहता है। जैसे:

एक ही माता पिता की सन्तति का बच्चा/बच्ची अपने खानदान की प्रतिकृति होगा। अब या तो मूल पुरखा मूर्ख हो या बुद्धिमान। उसका वंश उसी के गुणों/अवगुणों को आगे बढ़ायेगा और योग्यतम की उत्तरजीविता के नियम से बचेगा या समाप्त हो जाएगा।

अब वह विज्ञान की चेतावनी किसलिये और किस आधार पर है? वह दरअसल इन्हीं कुछ राजवंशों के वंश बेल का अध्ययन ही है जिसमें कुछ मूर्ख लोग भी थे।

विशेष note: संशोधन का विकल्प खुला है। पूर्णतया स्मृति ज्ञान पर आधारित जानकारी। कोई गलती होने पर सुधारें। ~ शुभाँशु जी 2018©