Zahar Bujha Satya

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If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, अक्टूबर 17, 2018

ज्योतिष का ज़हरबुझा सत्य

ज्योतिष में कुंडली की कम्प्यूटेशन की जा सकती है क्योंकि वह और कुछ नहीं आज की घड़ी का पौराणिक विस्तार ही है।

पहले ग्रहदशा अर्थात ग्रह किस दिशा में हैं को देख कर समय का पता लगाया जाता था। आज आप आधुनिक घड़ी से समय देखते हो तो सॉफ्टवेयर पुराने जमाने के समय मापने के तरीके में बदल कर आपको समय लिख देता है।

रही बात वर्षफल/भविष्य/गुण/ग्रहविचार इत्यादि की तो वह प्राचीन काल से एक समय/एक स्थान पर पैदा होने वाले लोगों के बारे में उनके जीवन वृत्त की जानकारी का सर्वेक्षण है। जो पुराने पंडितों ने घर घर जाकर डेटा एकत्र करके बनाया।

अतः इसका सार यह है "जो लोग एक समय/एक स्थान पर पैदा होते हैं वे एक सा जीवन जीते हैं"

इसी के आधार पर आपका भविष्य बताया जाता है। इसी तरह हस्तरेखाओं पर भी सर्वेक्षण किये गए और पाया गया "एक सी रेखाओं वाले लोगों का जीवन भी एक समान होता है।"

फिर पूर्व की तरह लोगों के जीवन वृत्त का अध्धयन करके भविष्य का तानाबाना बना लिया गया जो कि जीन और जलवायु के आधार पर काफी सही बैठ जाता है। बाकी आज लोग अपनी प्रकृति के विरुद्ध जाकर बहुत कुछ कर रहे हैं तो बताया गया भविष्य कुछ हद तक गलत भी आ जाता है।

सार यह है कि आप इसका केवल सकारात्मक हिस्सा देख सकते हैं परंतु नकारात्मक हिस्से को बदलना असम्भव न समझें। आप अपनी प्रकृति को आज पढ़े लिखे होने के कारण बदल सकते हो।

और हाँ जो उपाय इसमे बताए गए हैं न, वह सिर्फ आपका मन रखने के लिये और आपका गुस्सा शांत करने के लिये दिए गए हैं। उनसे होता कुछ नहीं है।  2017/10/17 00:07 Vegan Shubhanshu S.C.

खुद को बदलो, दुनिया बदलेगी

प्रश्न: क्या हमें दूसरों को जगाना, समझाना, सिखाना नहीं चाहिये?

उत्तर: प्रायः नहीं। प्रकृति प्रदत्त हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती। हमारा घमण्ड ही हमें दूसरों को बदलने के लिए प्रेरित करता है। मैं लोगों को प्रायः सिखाने के लिये नहीं लिखता। मैं जो कर रहा हूँ, जो महसूस करता हूँ, वह लिखता हूँ। वह कोई जबरन सिखाया गया सबक नहीं है। लोगों के लिए मेरी जीवनचर्या है, डायरी है जिसे लोग अपनी इच्छा से पढ़ते, अनदेखा करते, अंगीकृत करते, स्वीकार करते या दुत्कारा करते हैं।

यह लोग हैं। यह अन्य इंसान हैं। मेरे जैसे। कोई आज़ाद है मेरे जैसा तो कोई परतंत्र है जैसा मैं कभी था। बस समय का फेर है। सभी लोगों में बस हिम्मत और ज़िद आनी बाकी है फिर वे खुद सीखेंगे। अभी उनके सामने ज्ञान-विज्ञान का खज़ाना उड़ेल रखा है लेकिन वे उसे अनदेखा करते हैं। डर है उनके भीतर कि यह सब बता कौन रहा है? वह व्यक्ति उदाहरण है तो कोई प्रसिद्ध व्यक्ति क्यों नहीं? लोग प्रायः विवेक से नहीं बल्कि बहुमत से फैसले लेते हैं। प्रजातंत्र से बेहतर उदाहरण क्या होगा?

एक जंगल में मौजूद प्राणियों को देखो। कोई किसी से मतलब नहीं रखता। जो हो रहा है होने देता है और सभी अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। जबकि मानव हमेशा अपने बुद्धि और ज्ञान के घमण्ड के चलते खुद कुछ खोज कर दूसरो को देने, अपना नाम कमाने चल पड़ता है ताकि कोई उसे धन्यवाद दे, उसे ऊंचा समझे। उसकी आवभगत करे।

इसलिये बेहतर है कि शान्ति से खुद का ख्याल रखो। दूसरे की मदद, बिना करे भी की जा सकती है और वही सार्थक है; प्रभावी है और निःस्वार्थ है।

कैसे? यह जानना आवश्यक तो नहीं है लेकिन एक युक्तिवादी होने के नाते मैं यह भी जानता हूँ।

यह कैसे होता है? हमारे मन में ईर्ष्या नाम का एक भाव होता है। सहानुभूति नाम का भी। प्रेरणा नाम का भी। यह तीनों मिल कर सुधार करते हैं। कोई इसे जबरन करवा कर हमें उसके परिणाम से प्रभावित करके, आश्चर्य चकित करके, ज़ल्दी ज़रूर कर सकता है, जैसे एक शिक्षक/गुरु लेकिन अगर आपका मन उस जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करता, आपकी इच्छाशक्ति और ज़िद बड़ी है तो आप कुछ नहीं कर सकते।

और यही सत्य है कि स्वतन्त्र मानव इन्हीं शक्तियों से लैस है। अतः आज गुरु/शिक्षक की कोई खास भूमिका शेष नहीं रह गई है।

आज भी केवल वही गुरु/शिक्षक प्रभावी हैं जो खुद को बदल सके।

दरअसल यह खुद को बदलना, खुश रहना ही प्रेरणा है। इसे ईर्ष्या उकसाती है। दूसरे के चेहरे पर मुझसे ज्यादा मुस्कुराहट कैसे? दूसरा मुझ से सुखी कैसे? ये प्रश्न उसे आपकी बदली हुई छवि की ओर आकर्षित करते हैं।

एक और भाव नएपन का होता है। लोग नई वस्तु/व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं। एक ढर्रे पर चलना बोर करता है।

खुद की देखभाल, खुद को ऊंचा बनाना एक उदाहरण बन कर स्पष्टीकरण प्रदान करता है कि हाँ, यह कार्य सही है। आप दरअसल उसके प्रयोग का हिस्सा हैं जिसे अगला आज़मा रहा है। आप ही परिणाम बनिये और देखिये कैसे आपके आस-पास, आप से, आपके राज़ जानने के लिए भीड़ एकत्र होने लगती है।

तब आप उनको अपने राज़ बताइए। तब वे सुनेंगे। तब वे उनको अपना लेंगे। सबको अपने साथ बदल डालने का सपना मत देखिये। याद रखिये, आप प्रयोग हैं, लोग वैज्ञानिक और यह जीवन एक प्रयोगशाला है। प्रयोग जब सफल होगा तभी वैज्ञानिक उससे अपने सिद्धांत बनाएंगे और तभी आप बनोगे एक सिद्द इंसान। नमस्ते। ~ Shubhanshu SC 2018© एक प्रयोग जीवन का जीवन में।  2018/10/17 07:29

सोमवार, अक्टूबर 15, 2018

युक्तिवादी होने के लाभ ~ Shubhanshu

व्यक्तिगत रूप से मैं कोई ज्यादा धनी नहीं हूँ लेकिन युक्तिवाद ने मुझे समस्त बुराईयों से लड़ना और प्रेम करना सिखाया है।

युक्तिवादी होने के बाद मैं vegan, atheist, marriage/religion/child free, open minded, positive, scientific और बेहद प्रसन्न हो गया।

Zoology के जीवन की उत्पत्ति और उद्विकास को गहराई से पढ़ने पर मैंने जीवन के रहस्य को समझा और ईश्वर की अवधारणा का उसमें खंडन पाया।

वैज्ञानिक विधि पढ़ने के बाद मैं युक्तिवादी हो गया। कुछ मूर्ख क्षद्मनास्तिकों से मिलने के बाद मुझे पता चला कि मैं उनसे भिन्न हूँ।

मैंने पाया कि सामान्य नास्तिकों का कट्टर आस्तिक शिकार करते हैं, इसलिये वह उनसे जुड़ते, बात करते हैं। नास्तिक उनके लिये ग्राहक जैसा होता है।

मैंने कई कट्टर और विज्ञान से लैस आस्तिकों से हफ़्तों तक चर्चा की। उन्होंने बहुत तर्क दिए जिनको काटना कठिन था। लेकिन मैं डटा रहा।

अंततः उन्होंने हार कर कहा, "तुम कौन हो? हमने जिसे पकड़ा उसे आस्तिक/धार्मिक बना कर अपने धर्म/समुदाय में शामिल कर लिया। तुम आम नास्तिक नहीं हो सकते।"

तब मैं उनसे कहता, "सही पकड़े, मैं आम नास्तिक नहीं हूँ। मैं हूँ युक्तिवादी! आप मुझसे नहीं जीत सकते, आस्तिक धर्म मिशनरी जी।"

युक्तिवादी होने के कारण मैं आत्मविश्वास से भर गया कि मैं अब सत्य तक पहुँचने की विधि जान गया हूँ। यही कारण है कि मैं बिना किसी प्रमाणिक प्रमाण के किसी की बात नहीं मानता। जबकि ज्यादातर लोग सिर्फ भीड़ की सुनते हैं।

भीड़ की न सुनने के कारण मुझे घमंडी कहा गया। क्षद्मनास्तिको ने भी मुझे अपमानित किया जब वे मुझे न समझा सके। इसी दौरान मुझे पता चला कि 90% नास्तिक वास्तविक युक्तिवादी नहीं थे। वे बस उदारवादी होने के नाते नास्तिकों में शामिल हो गए थे।

उदारवादी मतलब आम भाषा में सेक्यूलर या धर्मनिरपेक्ष होना। ये धर्मनिरपेक्ष कथित नास्तिक सभी धर्मों के पाखण्ड में शामिल होकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते थे। जिसे अपने धर्म में मांस खाने को न मिला वह दूसरे के धर्म में मांस ख़ाकर तृप्त हो रहा था।

जिसे अपने धर्म में लड़कियों से मिलना मुश्किल लगता था, वे दूसरे के धर्म में नई लड़कियों को अपना target बनाने लगता था क्योकि दूसरे धर्मस्थलों में लड़कियों की कोई कमी न थी।

कुछ धर्मों के त्योहारों में छेड़छाड़ करने को बुरा नहीं माना जाता था तो वे उनके भी साथी होकर एक दूसरे को छूने लगे। कुछ धर्मों में मुफ़्त के भंडारे/लंगर होते हैं तो वे उधर जाकर दावत भी उड़ाने लगते।

कुल मिला कर धर्मनिरपेक्ष होना, एक आम इंसान के लिए फायदे का सौदा था। उनके अनुसार स्थिर विचारधाराओं का होना बेकार और नुकसान देने वाला होता है। जबकि वे क्यों शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे इसका उनको कभी ज्ञान नहीं होने वाला था।

जंतुजगत में केसीन, पशुउत्पाद, पशुवसा आदि मौजूद होते हैं जो कि प्रत्येक धर्म का व्यक्ति अपने भोजन में शामिल करता है। नास्तिक भोजन में कोई परिवर्तन नहीं करते क्योंकि चिकित्सा जगत का एक बड़ा वर्ग इन उत्पादों श्रेष्ठ बताता है। यहाँ तक कि आर्थिक प्राणिविज्ञान भी। ऐसा तो हर व्यापार में होता ही है।

आप जब कोई व्यापार करते हैं तो आपका टारगेट ग्राहक लाना और अपना उत्पाद बेचना ही होता है। इसके लिए आप हर वह तरीका अपनाते हैं जिसने औसत बुद्धि का ग्राहक खरीदारी करते समय अवश्य आपका मुरीद हो जाये। यही सबसे बड़ी नीति होती है कि अपने ग्राहकों को कम लागत पर बनी वस्तुओं को अधिक मूल्य पर बेचा जाए।

ऐसा कब होगा? ऐसा तभी सम्भव है जब ग्राहक प्रसन्न हो। हम जानते हैं कि हानिकारक वस्तुएं हमको क्षणिक प्रसन्नता देती हैं और बाद में गहरा नुकसान। लेकिन यह व्यापारी को बहुत धनी भी बनाती हैं। अच्छी वस्तुओं की कभी ज्यादा मांग नहीं होती।

अगर आपको लगता है कि किसी अच्छी वस्तु की मांग ज्यादा है तो आपको भी बहकाया गया है। उदाहरण के लिये शराब, तम्बाकू, गांजा, चरस और अफीम को किसी विज्ञापन की ज़रूरत नहीं पड़ती। अत्यंत हानिकारक होने पर भी लोग धर्मस्थल से ज्यादा इनकी दुकानों पर दिखते हैं। अरे हाँ मैं बताना भूल ही गया। धर्म स्थल भी नशे की दुकान ही हैं।

आपको गाहे-बगाहे शराब और खैनी की तारीफ़ करते गीत, चुटकुले और कविताओं का पुलिंदा दिखता रहता होगा। टीवी पर भी आपको शराब बनाने वाली कम्पनी के खाली सोडा वाटर पीते दिखाते अभिनेता शराब का क्षद्मविज्ञापन करते नज़र आ जाएंगे।

ऐसे ही गुटखा बनाने वाली कम्पनी पानमसाला और सुपारी का क्षद्म विज्ञापन करती दिख जाएगी।

अब यह तो हुआ दृश्यमान नशा। अब ज़रा अदृश्य नशे को देखते हैं। अरे, यह क्या? यह डेयरी में सुबह-सुबह शराब के खरीदारों की तरह लम्बी लाइन कैसी? इतनी भीड़ तो सब्जी मंडी में भी नहीं दिखती। कमाल है! हर मानव माँ के स्तन में दूध है फिर भी उसका बच्चा जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध पीने आया है?

क्या कहा? मां के दूध नहीं उतर रहा? अरे इधर डेयरी वाला भी कुछ ऐसा ही कह रहा था फिर उसने एक इंजेक्शन लगाया और सब ठीक। अरे ये नई माताएं माँ बनना नहीं चाहतीं लेकिन समाज को दिखाने के लिए बांझ नहीं हैं साबित करना है। इसलिये डॉक्टर से स्तनों का दूध सुखाने की दवा ले लेती हैं चुपचाप।

जिनको सच में दिक्कत होती है उनको दूध उतारने की दवा दी जाती है न कि जानवरों का दूध पिलाया जाता है। जानवर का दूध जानवर के बच्चे के हिसाब से बनता है न कि मानव के बच्चे के हिसाब से। मानव दूध पतला और विशेष अमीनो एसिड से मिल कर बना होता है जबकि जानवर के दूध में इनका अलग और भिन्न संघटन होता है जो कि मानव शिशु के लिए हानिकारक होता है।

कुछ लोग एक भिन्न दुधारू जानवर के दूध को मानव समतुल्य बता कर अपने धार्मिक ज्ञान का हवाला देते हैं और उस भिन्न जानवर को अपनी माँ ही घोषित कर देते हैं। जैसे उनकी असली माँ उनके पैदा होते ही मर जाती हो हमेशा।

सत्य तो यह है कि वह भिन्न पशु दूध आम पशु दूध से कुछ हल्का अवश्य होता है और मानव शिशु उसे स्वीकार कर लेता है। लेकिन यह वैसा ही है जैसे आप पेट्रोल की जगह गाड़ी डीजल से चला तो लेते हैं लेकिन कुछ समय बाद पूरा इंजन ही कबाड़ी को देना पड़ता है।

ऐसे बच्चों का पोषण की कमी से मानसिक विकास नहीं हो पाता और यह बड़े होकर मूर्ख कहलाने लगते हैं: http://bbbgeorgia.org/physicalBreastfeeding.php

पशु दूध के खतरे: https://hindi.firstpost.com/culture/drinking-milk-and-consuming-milk-products-is-hazardous-to-human-health-36204.html

भारत में सबसे ख़तरनाक हत्यारा कौन है? https://timesofindia.indiatimes.com/india/Whats-killing-Indians/articleshow/54930853.cms

क्या आपको हत्यारे का नाम मिला? जी हाँ, धमनियों में फंसा वह बाहरी वसा (bad cholesterol) जो कि मानव शरीर में खुद नहीं बनता। इसे हम लोग अपने शरीर में खुद डालते हैं आत्महत्या करने के लिए। आपको आश्चर्य होगा कि इसका एकमात्र स्रोत पशुउत्पाद हैं। यानि दुग्ध, अंडे और माँस। यहाँ देखिये किसमें और कितनी मात्रा होती है bad cholesterol की:  www.ucsfhealth.org/education/cholesterol_content_of_foods 

मुझे जल्दी नहीं मरना है और किसी को तकलीफ भी नहीं पहुँचानी। मानवता की बात करते हो तो वह दया, करुणा और सहानुभूति ही है। पशुजगत भी हमारी ही तरह है उसे भी जीने का उतना ही हक है जितना कि हमको। उत्तराखंड ने पहल करते हुए सभी पशुजगत को मानवाधिकार प्रदान कर दिए हैं। https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttarakhand/dehradun/uttarakhand-high-court-declares-entire-animal-kingdom-as-legal-entity/articleshow/64858994.cms अब उनको इंसान के समान अधिकार मिल गए हैं।

चिकित्सा जगत किस तरह बिका हुआ है इसका पता कभी न चलता अगर कुछ कर्मठ लोगों ने जासूसी करके दवा कम्पनियों और चिकित्सा संस्थाओं की पोल न खोली होती। देखिये यह खतरनाक डॉक्यूमेंट्री 
http://www.whatthehealthfilm.com (english).

ये तो था मेरे vegan होने का रहस्य अब आते हैं विवाह, शिशु और ओपन रिलेशनशिप की ओर। इसको समझने के लिए बड़ा लेख लिखा जा चुका है उसी की यह अगली कड़ी है। यह लेख पढिये यहाँ http://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/04/blog-post_53.html

नग्नतावादी या nudist होने के पीछे के राज जानने के लिए जाइये यहाँ https://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/05/nudism.html?m=1 साथ ही शरीर को सूर्य का प्रकाश विटामिन D देता है जो पानी में मौजूद कैल्शियम को हमारे शरीर में सोखने लायक बनाता है। अतः हड्डियां मजबूत करने के लिये नँगा रहना बहुत ज़रूरी है।

आकर्षण का सिद्धांत: किसी भी वस्तु या व्यक्ति को जी जान से चाहो उसे ही सोचो तो वह आपकी ओर आकर्षित होने लगती है। आप चुम्बकीय शक्ति उतपन्न करने लगते हैं। यह एक सिद्धान्त है इसका कोई तोड़ नही। यही कालांतर में ईश्वरिकरण के रूप में बदनाम किया गया। लेकिन आप इसे तार्किक रूप से भी अपना सकते हैं बस धन्यवाद देने के लिए समय को या सत्य जैसी भाववाचक संज्ञा को चुनिए। यह आपको वह सब दिला सकती है जो आपने सोचा भी नहीं कि वह हो सकता है कभी। ईश्वर जैसा खुद को महसूस करिये। कुछ भी अब असम्भव नहीं।

युक्तिवादी होने का सफर अभी यहीं तक रखते हैं। कुछ समय लगा कर सभी लिंक पढ़िये। एक साथ न पढ़ें तो टुकड़ों में पढ़िये। आपको अजर-अमर बनना है तो वह भी बना दूँगा। इसके लिए इस लिंक पर जाइये https://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/10/blog-post_8.html?m=1

अब अगर मुझे सब कुछ हासिल कर लेने का सच्चा आत्मविश्वास प्राप्त है और आप मुझे अपने झूठ से झुका नहीं पाते तो कमी आप में होगी। मैं तो पहले ही आपकी सेवा मे हाजिर हूँ। करोड़ों रुपये की कीमत की जानकारी वर्षों की मेहनत से हासिल करके आपको मुफ्त में दे रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ आप इसका दुरुपयोग नहीं करेंगे। धन्यवाद! आपका V.S.S. Chauhan 2018©  2018/10/15 19:10

बुधवार, अक्टूबर 10, 2018

प्यार: एक चिड़िया

मैंने एक बार एक बहुत प्यारा कुत्ता पाला। वह भाग न जाये इसलिये उसे रात-दिन बांधे रखा। जो भी देखता कहता कि अगर मुझे यह बाहर मिल गया तो उठा ले जाऊंगा/जाऊंगी। मेरा डर और बढ़ गया।

अब मैं उसे घुमाने भी नहीं ले जाता। उसे छत पर ही छोड़ देता था। बाद में जाकर गंदगी साफ करता था। उसके नाखून बढ़ गए और उसकी रौनक जाती रही। वह बीमार भी रहने लगा। एक बार उसने छत पर रखे गमलों में भरी गोबर की खाद को खा लिया। वह बीमार हो गया। मैं डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने बहुत दवा लिखी, इंजेक्शन लगवाया।

लेकिन वह नहीं ठीक हुआ। एक दिन तंग आकर मैंने सोचा कि ये भाग ही जाए और मैंने उसे आज़ाद कर दिया। वह सच में भाग गया।

वह 2 घण्टे कहीं गायब रहा। दरवाजे पर किसी के कुत्ते के रोने की आवाजें सुन कर बाहर आया तो वह घायल अवस्था में अंदर आने के लिए हाथ पैर मार रहा था। वह घायल था। उसे कुत्तों ने जगह-जगह काट लिया था। वह सम्भवतः दूसरे कुत्तों के झुंड से मिलने गया था। मैंने दया करके दरवाजा खोला तो वह तेजी से भाग के सोफे के नीचे छुप गया।

मैंने नीचे झांका तो वह गुर्राया। मैंने फिर भी उसे पानी लाकर दिया और उसने पी लिया। दिन भर वह वहीं दर्द से सिसियाता रहा। मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं दूसरे कमरे में चला आया। फिर भी किसी न किसी बहाने से उसे देख आता कि वह ठीक है या नहीं। मैं सोच रहा था कि उसे प्रतिरैबीज का इंजेक्शन लगवाना होगा अब जल्दी ही।

उसी शाम एक कंपाउंडर के साथ मैंने उसे इंजेक्शन लगवा दिया। लेकिन अब मेरा उससे पहले वाला मोह खत्म हो चुका था अतः मैंने दरवाजा खुला रखा। वह दो दिन घर में ही कैद रहा और दूसरे कुत्तों को देख कर वापस सोफे के नीचे दुबक जाता।

उसकी सेवा करते ही मेरा समय गुजरा लेकिन जल्द ही समय बदला और वह दरवाजे से बाहर थोड़ा इधर उधर घूमने लगा। अब मैं उसका उत्साहवर्धन करने के लिए उसके साथ बाहर जाने लगा। अब वह खुशी से कूदता हुआ, मेरे साथ-साथ दौड़ लगाता था। अब उसका डर खत्म हो गया और वह अपने आप घूम कर वापस घर आने लगा।

कमाल था कि जिसे मैंने बाँधा वह मुझ से दूर जाने लगा था और जिसे आज़ाद किया वह मेरे करीब से नहीं हटा कभी। ज़िन्दगी की असल घटनाएं जो सिखाती हैं वह कोई किवदंती या लोककथाओं का जमघट नहीं सिखा सकता। मैं सीख गया था एक गहरा सबक। प्यार एक चिड़िया की तरह होता है। इसे इतना कस के मत पकड़ो कि वह दम तोड़ दे और इतना अनदेखा भी मत करो कि फुर्र हो जाये। ~ शुभाँशु SC 2018© 5:57 pm india

शुक्रवार, अक्टूबर 05, 2018

नास्तिक और तर्कवादी

नास्तिक = कोई भी जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता है या कोई ऐसा व्यक्ति जो विश्वास करता है कि कोई देवता मौजूद नहीं है।

युक्तिवादी = कोई भी जो अवलोकन तथ्यों पर जोर देता है और उत्पत्ति या अंतिम कारणों के बारे में गूढ़ परिकल्पना को शामिल करता है।

उपर्युक्त दोनो परिभाषित शब्दों को देख कर आप समझ सकते हैं कि एक सिर्फ देवता/ईश्वर पर विश्वास नहीं करता जबकि दूसरा ऐसी किसी चीज पर विश्वास नहीं करता जो प्रयोगों और तर्को से साबित न हो सके। मैं युक्तिवादी हूँ जिसमें देवता/ईश्वर, आत्मा, भूत, प्रेत, पिशाच, जादू, टोना, तँत्रमन्त्र, औरा, टेलीपैथी, फेंगशुई, एक्यूप्रेशर/पंचर, फिजियोथेरेपी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी पैथी, व्यक्ति वादी आस्था आदि सभी तर्क और सुबूतों के आधार के कल्पना मात्र हैं।

PS: थोड़ा बहुत सही जो लगता है वह सब जानबूझकर विश्वसनीय बनाने के लिये उनमें सत्य को और विज्ञान को मिलाया जाता है। जैसे आयुर्वेद हर्बल sciance का प्रयोग करके कुछ रोग ठीक कर देता है ऐसे ही होम्योपैथी भी हर्बल निष्कर्ष को कहीं कहीं दवा के रूप में प्रयोग करता है।

तंत्र मंत्र वाले सुपारी किलर होते हैं। औरा, रेकी, फेंगशुई, एक्यूप्रेशर/पंक्चर वाले समेत सभी आपके विश्वास के साथ खेलते हैं और शरीर में मौजूद placebo effect को जाग्रत करके आपको लाभ पहुचाते हैं। जो कि वास्तव में धोखा कहलाता है। यह अच्छा है लेकिन जब इसके बदले धन का धंधा चलता है तब हमें सत्य बताना पड़ता है क्योकि गम्भीर बीमारी में और गम्भीर परिस्थितियों में आपको इन सब से सिर्फ एक ही लाभ होगा और वह होगा इस जीवन से जल्द मुक्ति और आपके घर वालों को बीमाधन मिलेगा।

विस्तार में लिखने में आलस आ रहा है। कोई प्रोत्साहित करना नहीं चाहता तो मैं भी कचरे में डाल रहा हूँ यह जानकारी, ऐसी भावना मन में आती है। पढ़ लो जो अगर कोई हो ज़हरबुझे सत्य का प्रेमी इधर। सही में खोजी होगे तो pseudoscience नाम के शब्द का अर्थ और विस्तृत वर्णन ढूंढ लोगे। ~ ज़हरबुझा सत्य (VS SC) 2018©

बुधवार, अक्टूबर 03, 2018

वर्जित रिश्तों का सत्य

संस्कारी रिश्ते उस समय के हैं जब गर्भनिरोधक का पता नहीं था और बच्चे हो जाते थे। कोई भी उसकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था। यह एक संस्था जिसे विवाह संस्था कहते हैं का सहउत्पाद है। क्योकि अगर ऐसा न करें तो जिनके घर कोई लड़कीं न हो तो उनको सेक्स सुख कैसे उपलब्ध कराया जाता?

साथ ही वंशवादी सोच ने रक्त की शुद्धता को सिर्फ पुरुष के आधार पर नापा। धर्मग्रंथों में साफ लिखा है कि महिला खेत है और पुरुष सम्भोग करके उसमें हल चलाता है और शुक्र (वीर्य) रूपी बीज उसमें बोता है जिसके फलस्वरूप बच्चा रूपी फसल उगती है।

अगर रक्त सम्बन्धी यौन सम्बंध बनते तो इस कल्पना का क्या होता? जो कि इस नियम के विरुद्ध ही है क्योंकि वंश रक्त शुद्ध तब होगा जब भाई/बहन/पिता/पुत्री/माता आदि ही आपस में बच्चा उतपन्न करें। ऐसा इसलिये है क्योंकि विज्ञान से साबित हुआ है कि बच्चे में नर-मादा दोनो के ही 14-14 गुणसूत्र मौजूद होते हैं।

अतः पुरुष और महिला दोनो का बराबर अंश बच्चे में होता है। अब यदि आपको अपने माता पिता के वंश को शुद्ध रूप से बढ़ाना है तो आपको अपनी ही बहन या माता से सम्भोग करके बच्चा पैदा करना होगा। वंशवाद का विचार इस आधार पर आया था कि बुद्धिमानी और पराक्रम आनुवंशिक होते है।

यह सत्य है लेकिन इसमें महिला यदि दूसरे परिवार से है तो बच्चे के गुण में माता-पिता दोनो के गुण-अवगुण आएंगे ही। अतः अब तक जो होता आया वह गलत था। वंशवादी लोगों ने मूर्खता ही की। सही तरीका है, सुजननिकी। ~ Shubhanshu 2018©

स्तनों का रहस्य

महिला के उभरे हुए स्तन दरअसल मैथुन सहायक गद्दियाँ हैं जो सम्भोग के समय पुरुष को उत्तेजित करती रहती हैं मर्दन के साथ। उनकी जरूरत बिना बच्चा किये भी सम्भोग के आनन्द के लिए ज़रूरी है।

आप एक प्रयोग से यह साबित कर सकते हैं। सम्भोग, फोरप्ले के समय महिला के स्तनों के साथ खेलने, चूमने से महिला कामोत्तेजित होती है। अतः वह पहले से ही पूर्ण है आनंद की क्रिया के लिए।

हमेशा ही बच्चा हो या न हो यह गारन्टी नहीं होती किसी भी जंतु में लेकिन वह मैथुन का आनन्द ले सके इसकी गारन्टी अवश्य हो जाती है स्तनों से जो कि मैथुन के समय दोनो पक्षों को आनन्दित और कामोत्तेजित करते रहते हैं। इसीलिए बड़े स्तन की महिला पुरुषों की पहली पसन्द होती है।

पुरुष के स्तन इसलिये हैं क्योंकि सर्वप्रथम भ्रूण महिला ही बनता है बाद में y गुणसूत्र के होने के कारण उसमें कायिक परिवर्तन आ जाता है और स्त्री की भगनासा (clitorise) पुरुष के लिंग में परिवर्तित हो जाती है। हार्मोन की कमी के कारण स्तन अल्पविकसित रह जाते हैं और महिला और पुरुष का भेद उतपन्न हो जाता है। ~ Shubhanshu 2018©

सोमवार, अक्टूबर 01, 2018

व्यवहारवादी (practical) या भ्रष्टाचारी

लोग अपने आप को जब तक अकेडमिक (शैक्षणिक) सिद्धान्तों के अनुसार नहीं ढालते, देश क्या विश्व विष के घूंट पियेगा।

शैक्षिक सिद्धान्त वे हैं जो आपकी पाठ्य पुस्तकों में लिखे हैं। जो भ्रष्टाचार आप करते हैं वह अशिक्षा है। गांव में भृष्ट अधिक हैं। अधिकतर सरकारी कर्मचारी गांव से आते हैं। क्योंकि उनके पास पढ़ाई के अलावा कोई काम नहीं होता और वे वही करते हैं शहर में रह कर।

ऐसे गांव के लोग बस रटन्त विद्या सीखते हैं क्योंकि उनको ज्ञान नहीं होता सब कुछ समझने का। वे पढ़ाई बस पास होने के लिये करते हैं। आप उनकी भाषा और व्यवहार देख के समझ सकते हैं कि इन्होंने खाली पढ़ाई को सीढ़ी बनाया पैसा प्राप्त करने के लिए। वे उस शिक्षा को अपने वास्त्विक जीवन मे कभी नहीं उतार पाएंगे क्योकि उन्होंने सिर्फ पढ़ा था, याद किया था लेकिन समझा कुछ भी नहीं था। इसी को शिक्षा और वास्तविक शिक्षा के बीच का अंतर कहा जाता है।

वास्तविक शिक्षा वह है जो आप शिक्षित होने के लिये लेते हैं। और दूसरी शिक्षा जिसे आप व्यवहारिक शिक्षा कह सकते हैं वह सिर्फ आपकी मार्कशीट में अंक बढ़ाने के लिए ली जाती है। यही बर्बादी की जड़ है। आप धन तो कमा लेंगे लेकिन उसे मैनेज नहीं कर पाएंगे, भ्र्ष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे,आपमें और एक अशिक्षित में व्यवहारिक समानता होगी। इनको पढ़े लिखे अनपढ़ों की श्रेणी में रखा जाता है।

भारत में इस समय 90% स्नातक अयोग्य हैं। वे बस परीक्षा पास करने की ट्रिक जानते हैं। उनकी अधिकांश ज़िन्दगी मंदिर/मस्जिदों में या चिकित्सकों के पास कटने वाली है और यही लोग अस्वस्थ सरकार को चुनेंगे। इस बात का प्रमाण आप सिर्फ इस बात से पा सकते हैं कि विद्यार्थी कितनी भी पढ़ाई क्यों न कर ले, वह दुआ/मन्नत मांगने ज़रूर जाएगा। क्योकि उसे खुद पर भरोसा ही नहीं है। जबकि जो बातें हमें पसन्द आती हैं, उनको हमें याद नहीं करना पड़ता, वह याद रह जाती हैं। जो हमें याद रह जाता है वही हम जीवन मे उतारते हैं और जो रट लेते हैं उसे हम बस दूसरे को पढ़ा/सुना सकते हैं। समझ/समझा नहीं सकते।

इन सब का सार इसी बात से सामने आ जाता है कि हम भारतीय लोग नौकरी तो सरकारी चाहते हैं लेकिन कोई सरकारी जगह हमें पसन्द नहीं आती।

इंसान को शिक्षा का ज्ञान नहीं बल्कि सुविधा का लालच लुभाता है और यही इस विश्व की परिणति है कि अब महान ज्ञानी लोग पैदा नहीं होते। धूप में लाइन में लगा व्यक्ति खिड़की से AC की ठंडक में बैठे बाबू को देख कर यही दुआ मांगता है कि काश वह भी बाहर नहीं बल्कि भीतर होता।

अब हर कोख से एक भृष्ट पैदा होता है। जिसमे सब अवगुण ही होते हैं, कोई गुण नहीं होता और उसको जीत मिलती है क्योंकि लोग यही चाहते हैं। अगर कोई भृष्ट नहीं होगा तो बिना लाइसेंस की बन्दूक और गाड़ी कैसे चलाएंगे? जल्दी काम कैसे करवाएगे? अपराध करके कैसे बचेंगे?

ब्रायन का लिखा लेख इसी बात की ओर इशारा करता है कि हम जन्म से और कर्म से भृष्ट पैदा होते हैं और उसका कारण हमारा भेदभाव और धर्म है। "हम कभी सुधर नहीं सकते" ऐसा लगता है लेकिन याद रखिये हर सुधरे हुए व्यक्ति ने कभी यही शब्द कहे थे। नमस्कार।  2017/09/30 03:12 लेख: Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

गुरुवार, सितंबर 20, 2018

मैथुन और हस्तमैथुन का ज़हरबुझा सत्य

सीमेन सैक में कुछ मिलीलीटर वीर्य होता है। उसको संकुचित करने वाली मांसपेशियों को ताकत लगा कर उस गाढ़े वीर्य को बाहर फेंकना होता है ताकि गर्भाशय मुख से जुड़ कर वीर्य की पिचकारी उसमें भर सके। इस कार्य में वह वाल्व थोड़ा सा घायल हो जाता है इसलिए दोबारा उसे ठीक होने में 1 दिन का समय लगता है। वीर्य को ताज़ा और पुष्ट होने में 3 दिन का समय लगता है।

दिन में 3 बार 4 घण्टे के अंतराल पर व 3 दिन बाद दोबारा करने पर शरीर सहन योग्य स्वस्थ रहता है लेकिन रोज 1 या 2 बार भी कर सकते हैं। यही विपरीत लिंग से सम्भोग करते समय भी लागू होता है। दोनो में कोई अंतर नहीं है। ज्यादा वीर्यत्याग करने पर वाल्व में घाव हो जाता है और दर्द के साथ मन उचटने लगता है। इसी घाव में अगर पस/मवाद पड़ जाए तो फिर वीर्य बिना किसी छेड़खानी के असमय बहने लगता है जिसे लोग धातु निकलना कहते हैं।

एक बात दिमाग में डाल लें। सेक्स का मतलब पुरुष के लिए वीर्यत्याग और महिला के लिए चर्मोत्कर्ष है। अब इसे आप प्राकृतिक रूप से करें, मुहँ से, हाथ से, मशीन या फिर सेक्स खिलौने से। कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु अति सर्वस्य वर्जयेत।

दोबारा मत पूछना। वैसे भी कुछ मूर्खों को यह पोस्ट भी अश्लील लगने वाली है। कमंडल से पैदा होने वालों के लिये यह पोस्ट नहीं है। धन्यवाद! ~ Shubhanshu 2018©