Zahar Bujha Satya

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बुधवार, अक्टूबर 17, 2018

खुद को बदलो, दुनिया बदलेगी

प्रश्न: क्या हमें दूसरों को जगाना, समझाना, सिखाना नहीं चाहिये?

उत्तर: प्रायः नहीं। प्रकृति प्रदत्त हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती। हमारा घमण्ड ही हमें दूसरों को बदलने के लिए प्रेरित करता है। मैं लोगों को प्रायः सिखाने के लिये नहीं लिखता। मैं जो कर रहा हूँ, जो महसूस करता हूँ, वह लिखता हूँ। वह कोई जबरन सिखाया गया सबक नहीं है। लोगों के लिए मेरी जीवनचर्या है, डायरी है जिसे लोग अपनी इच्छा से पढ़ते, अनदेखा करते, अंगीकृत करते, स्वीकार करते या दुत्कारा करते हैं।

यह लोग हैं। यह अन्य इंसान हैं। मेरे जैसे। कोई आज़ाद है मेरे जैसा तो कोई परतंत्र है जैसा मैं कभी था। बस समय का फेर है। सभी लोगों में बस हिम्मत और ज़िद आनी बाकी है फिर वे खुद सीखेंगे। अभी उनके सामने ज्ञान-विज्ञान का खज़ाना उड़ेल रखा है लेकिन वे उसे अनदेखा करते हैं। डर है उनके भीतर कि यह सब बता कौन रहा है? वह व्यक्ति उदाहरण है तो कोई प्रसिद्ध व्यक्ति क्यों नहीं? लोग प्रायः विवेक से नहीं बल्कि बहुमत से फैसले लेते हैं। प्रजातंत्र से बेहतर उदाहरण क्या होगा?

एक जंगल में मौजूद प्राणियों को देखो। कोई किसी से मतलब नहीं रखता। जो हो रहा है होने देता है और सभी अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। जबकि मानव हमेशा अपने बुद्धि और ज्ञान के घमण्ड के चलते खुद कुछ खोज कर दूसरो को देने, अपना नाम कमाने चल पड़ता है ताकि कोई उसे धन्यवाद दे, उसे ऊंचा समझे। उसकी आवभगत करे।

इसलिये बेहतर है कि शान्ति से खुद का ख्याल रखो। दूसरे की मदद, बिना करे भी की जा सकती है और वही सार्थक है; प्रभावी है और निःस्वार्थ है।

कैसे? यह जानना आवश्यक तो नहीं है लेकिन एक युक्तिवादी होने के नाते मैं यह भी जानता हूँ।

यह कैसे होता है? हमारे मन में ईर्ष्या नाम का एक भाव होता है। सहानुभूति नाम का भी। प्रेरणा नाम का भी। यह तीनों मिल कर सुधार करते हैं। कोई इसे जबरन करवा कर हमें उसके परिणाम से प्रभावित करके, आश्चर्य चकित करके, ज़ल्दी ज़रूर कर सकता है, जैसे एक शिक्षक/गुरु लेकिन अगर आपका मन उस जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करता, आपकी इच्छाशक्ति और ज़िद बड़ी है तो आप कुछ नहीं कर सकते।

और यही सत्य है कि स्वतन्त्र मानव इन्हीं शक्तियों से लैस है। अतः आज गुरु/शिक्षक की कोई खास भूमिका शेष नहीं रह गई है।

आज भी केवल वही गुरु/शिक्षक प्रभावी हैं जो खुद को बदल सके।

दरअसल यह खुद को बदलना, खुश रहना ही प्रेरणा है। इसे ईर्ष्या उकसाती है। दूसरे के चेहरे पर मुझसे ज्यादा मुस्कुराहट कैसे? दूसरा मुझ से सुखी कैसे? ये प्रश्न उसे आपकी बदली हुई छवि की ओर आकर्षित करते हैं।

एक और भाव नएपन का होता है। लोग नई वस्तु/व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं। एक ढर्रे पर चलना बोर करता है।

खुद की देखभाल, खुद को ऊंचा बनाना एक उदाहरण बन कर स्पष्टीकरण प्रदान करता है कि हाँ, यह कार्य सही है। आप दरअसल उसके प्रयोग का हिस्सा हैं जिसे अगला आज़मा रहा है। आप ही परिणाम बनिये और देखिये कैसे आपके आस-पास, आप से, आपके राज़ जानने के लिए भीड़ एकत्र होने लगती है।

तब आप उनको अपने राज़ बताइए। तब वे सुनेंगे। तब वे उनको अपना लेंगे। सबको अपने साथ बदल डालने का सपना मत देखिये। याद रखिये, आप प्रयोग हैं, लोग वैज्ञानिक और यह जीवन एक प्रयोगशाला है। प्रयोग जब सफल होगा तभी वैज्ञानिक उससे अपने सिद्धांत बनाएंगे और तभी आप बनोगे एक सिद्द इंसान। नमस्ते। ~ Shubhanshu SC 2018© एक प्रयोग जीवन का जीवन में।  2018/10/17 07:29

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