Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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मंगलवार, नवंबर 13, 2018

शादी/विवाह का मूल उद्देश्य

शादी बच्चे पैदा करके वंश बढाने के लिए की जाती है जिसमें अगर पुत्र न हो तो वह विफल मानी जाती है।

यह "कल्चर" निजी संपत्ति के स्वार्थ पूर्ण अपने ही रक्त को हस्तन्तरण करने और खुद को सुपीरियर समझने के घमण्ड के चलते की जाती है।

इसका प्रमाण यह है कि मनुष्य खुद का बच्चा ही पैदा करना चाहता है जबकि करोड़ो बच्चे अनाथालय में किसी माता-पिता की राह देख रहे होते हैं।

कमाल है कि मुझे लोग घमंडी बोलते हैं। जी हाँ। मैं हूँ घमंडी। बस साबित नहीं कर पाता मैं। आप कीजिये। ~ Vegan Shubhanshu SC 2018©

शुक्रवार, नवंबर 09, 2018

गंदी राजनीति छोड़ो भाग 2

राजनीति दरअसल एक प्रचलित व्यवस्था लोकतंत्र है। यानी आप अपने मन की नहीं कर सकते। जो भीड़ कहे वही करना होगा। मैं अपने मन की ही करता हूँ। अतः राजनीति मेरे लिए नहीं है। जिसे अपने मन की करनी है वह राजनीति से दूर रहें। यह भेड़चाल से संचालित होती है।

जो भी राजनीति से बदलाव लाने की सोच रहे हैं, दरअसल वे गन्दी राजनीति, जिसमें सिर्फ धन कमाने के लिए गला काट प्रतियोगिता होती है उसी को अपनाने के लिए ललचाते हैं। उनको बस पैसा चाहिए, बिना कमाए। लाशों के अंबार से, दंगे और धमाकों से।

धारा 144 से उनको सुरक्षा ही मिलती है। जनता तो सिर्फ अपनों की लाशें ही ठिकाने लगाती है। जिनको उन्होंने ही किसी गंदे राजनेता की भावुक बातों में आकर मार डाला। यह बात बहुतों को तकलीफ दे सकती है अगर उनका यह मकसद अच्छे के लिए हो लेकिन उनके लिए यह ज़हरबुझा सत्य है कि जब आप राजनीति में प्रवेश करेंगें तो आप गंदे अपने आप हो जाओगे और फिर जो भी राजनीति आप करोगे वह गन्दी ही होगी।

याद रखिये, हर इंसान की एक कीमत और कमजोरी होती है और आपके विरोधी नेता उनको अच्छी तरह से जानते हैं। फैसला आपके अपने हाथ है। मुझे बस अपने हाथ आपके खून से गंदे नहीं करने और न ही ईमानदारी की राजनीति करके दूसरे विरोधी दल के हाथों मरना है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2018©

शनिवार, नवंबर 03, 2018

गंदी राजनीति छोड़ो भाग 1

कानून सबके लिए बराबर है। ऐसा कोई नियम नहीं जिसमें लिखा है कि व्यक्ति को विशेष अधिकार होने पर ही उसकी समस्या सुनी जाएगी।

अतः निंदा करना, कोसना, हिंसा इत्यादि सिर्फ राजनीतिक हलचलें हैं और यह नफरत दिखाने वाले सभी लोग चाहें खुद को किसी भी श्रेणी/वर्ग में क्यों न रखते हों सभी एक से दोषी हैं।

कानून के होते हुए भी नफ़रतें फैलाना, भारत में अस्थिरता लाने और धारा 144 को लागू करके राष्ट्रपति शासन लगाने की कवायद है ताकि जो नेता जीत नहीं पा रहे कम से कम और भी कोई नेता न बन सके की सोच से ग्रसित हैं। जो कि ईर्ष्या, वोट बैंक की रणनीति के अलावा कुछ न है।

दूसरे की लकीर छोटी करने की जगह अपनी रेखा बड़ी खींचो। यही सिखाया गया था स्कूल में मुझे। शायद ये लोग स्कूल के द्वारा प्रेम करना नहीं बल्कि मूर्तियों के द्वारा नफरत करना ही सीखे हैं। देश में सभी एक दूसरे से प्रेम करें। आंख के बदले आंख लोगे तो सब अंधे हो जाएगें। फिर टटोलते रहना क्योकि तब शायद आप अपने और पराए में भेद न कर सकें। बस फर्क इतना है कि वह समय बहुत ही कठिन होगा। बेहतर होगा आज ही एकदूसरे के काम आया जाए! ~ Shubhanshu SC 2018©

बुधवार, अक्टूबर 31, 2018

सच्चे आस्तिक और नास्तिक की पहचान

सच्चा आस्तिक कौन है? यह जानने से पहले आस्तिक क्या है यह समझना जरूरी है। परिभाषानुसार, "रचनाकार द्वारा रचित संसार में सब रचनाकार नियंत्रित कर रहा है, बना रहा है; इसमें हस्तक्षेप करने वाला नास्तिक है, ऐसा मानने वाला व्यक्ति ही आस्तिक है।"

अब आप एक जानवर का जंगल में व्यतीत होने वाला जीवन देखिये। वह बेजुबान अस्तिकता को माने या न माने लेकिन आस्तिक की परिभाषानुसार वह सही प्रतीत हो रहा है। वह जैसा चल रहा है वैसा चलने दे रहा है। पूर्ण प्राकृतिक जीवन। आस्तिकता यही कहती है कि हस्तक्षेप मत करो प्रकृति के साथ।

लेकिन क्या मुझे कोई भी आस्तिक होमो सेपियंस ऐसा मिला है? नहीं। मानव आस्तिक नहीं है। जानवर आस्तिक जैसा व्यवहार करते हैं लेकिन उनका कोई दर्शन नहीं है। वह मूर्खों की तरह ईश्वर की कल्पना करके उसका पूजन या आराधना नहीं करते। वह उनको चढ़ावा और रिश्वत देकर प्रकृति में अपने लिए बेईमानी करने के लिए नहीं उकसाते। जीवन को जीवन की तरह लेते हैं और मस्त हैं।

अब सच्चा नास्तिक कौन है? अभी के क्षद्मनास्तिक क्या कर रहे हैं? प्रकृति से छेड़छाड़। अच्छे के लिए नहीं, बल्कि बुरे के लिए। गलत प्रोपोगोण्डा को सही मान कर शिक्षा का दुरुपयोग कर रहे हैं। सत्य से कतरा रहे हैं। जो पहले से किताबों में लिख दिया गया उसे बदलने की सोचना भी धार्मिकों की तरह उनको गलत लग रहा है जबकि ज्ञान बदल रहा है। पुराना ज्ञान जल्द ही नवीनतम होता जा रहा है लेकिन उनका क्या जो प्रोपोगोण्डा और पुरानी किताबों में उलझे हैं?

पुनः जानवरों की ओर देखते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। कुछ जंतु जाला, घोंसला, कोकून, लकड़ियों को चिपका कर, पत्तो को चिपका कर, मिट्टी से, अपने शरीर के मोम से, मांद ढूंढ कर, बिल खोद कर अपने रहने योग्य स्थान बना रहे हैं। क्या वह प्रकृति के विरुद्ध न था?

जानवर सबसे बड़े वैज्ञानिक हैं। आज जितनी भी विज्ञान से चीजें बनी हैं उनमें से सबसे महत्वपूर्ण वाली तो जानवरों से ही प्रेरित हैं। जैसे बाज/चील से हवाईजहाज, मछली से नाव, जुगनू से फ्लैशलाइट, चीते से मोटरसाइकिल, साही से धनुष, ऑक्टोपस से रंग की पिचकारी आदि।

अब वे बेजुबान बिना विज्ञान जाने भी मानव से अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान और साधनयुक्त दिख रहे हैं। उनको कमाने के लिए किसी का नौकर नहीं बनना पड़ता। कुछ खरीदना नहीं पड़ता। वे अपने भोजन में नमक, तेल, मिर्च नहीं डालते। उसे आग जला कर पकाते नहीं। जो जैसा उपलब्ध है, वही पर्याप्त है उनके लिए।

वे कपड़े नहीं पहनते, उनके यहाँ कोई वयस्क होने से पहले रोकटोक नहीं होती, मातृसत्ता का बोलबाला होता है, नर केवल प्रजनन क्रिया के लिए ही ज़रूरी होते हैं, पालने के लिए माता पर्याप्त होती है, वे पूजा नहीं करते, रिश्वत नहीं देते, धोखा नहीं देते, बलात्कार नहीं करते, हाँ चोरी ज़रूर करते हैं कभी-कभी लेकिन वह भी जीवन संघर्ष का हिस्सा है। न करो तो मरो।

तो क्या यह लक्षण नास्तिको से भी नहीं मिल रहे? अब यह क्या गोरखधंधा है? नास्तिक भी जानवर और आस्तिक भी। अतः प्रकृति को भोगने के लिए आस्तिक/नास्तिक होना मायने ही नहीं रखता लेकिन तर्कवादी होना रखता है। कैसे?

एक हाथी को खाई में धकेलने की कोशिश कीजिये। चलिये बड़ा ज्यादा हो गया तो किसी चौपाये को गड्ढे या खाई में धकेलने की कोशिश कीजिये। नहीं हो पा रहा? चलो एक छड़ी लेकर एक जानवर के मारिये। अब दोबारा मारिये। देखिये वह प्रतिक्रिया देता है या नहीं? चलो और कुछ try करते हैं।

एक मशाल जलाओ। अब जानवर के मुहँ पर उसकी आंच लगाओ। क्या हुआ? भाग गया वह? होना ही था। देखिये, जानवर भी जानते हैं कि खतरा कहां है। अतः वह तर्क लगाते हैं। वह जीवन जीना सीख लेते हैं क्योंकि वे मरने से बचना जानते हैं। ऐसा तर्कवाद से ही सम्भव है। उनको मालूम है कि आग उनको जला देगी, खाई में गिर के उनको चोट लगेगी, छड़ी से उनको तकलीफ होगी। अतः वे बार बार एक ही गलती नहीं दोहराते। इसी को अर्जित गुण कहा जाता है। यह तर्कशक्ति ही है।

मतलब तर्कवाद प्रकृति में है लेकिन अस्तिकता/नास्तिकता केवल मन का वहम है। जैसा जीवन जीने को मिला उसे वैसे ही जीना प्रकृति है। श्रेष्ठ है और सही है। लेकिन विज्ञान का क्या? सुविधाओं का क्या? हम उनकी आदत डाल चुके। पुरखों ने यह आधुनिक जीवन जिया है, अतः अब इसे नियंत्रित करना ही श्रेयस्कर होगा। बिल्कुल वापस चले जाना अब सम्भव नहीं है।

विज्ञान वह सुनियोजित ज्ञान है जिसका उपयोग समस्या के निदान में किया जाता है लेकिन इससे समस्या को भी पैदा किया जा सकता है। बेहतर होगा कि जितना प्रकृति के करीब रह सको, वह कार्य करो और विज्ञान का प्रयोग, समस्या सुलझाने में कीजिये न कि समस्या पैदा करने में।

याद रखिये, बस यही एक पृथ्वी है अभी, जहाँ जीवन शेष है और हम इसे अपना हक समझ कर विवाह और बच्चे पैदा करके अपने लिए छोटा कर रहे हैं। प्रायः मानव ने बस इसे दीमक की तरह खाया ही है और विज्ञान हो या ज्ञान हो, प्रकृति से अभी तक कोई नहीं जीत पाया है। अति का अंत होता है।

सावधान रहिये, बदलिये खुद को, विवाह और बच्चों को होने से पहले ही त्याग करके और लोगों को भी जनसँख्या और विज्ञान के दुरूपयोग को रोकने के लिए निकल पड़िये।

यह आप किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए ही कर रहे होंगे क्योंकि रहना आपको भी इधर है और उनको भी, जो अभी भेड़चाल में लगे हैं। दोषियों को दंड देने से भी अगर बात बन जाये तो चलेगा। अन्यथा जब प्रकृति अपने संतुलन को करेगी तो बिना ज़मानत के, बिना ट्रायल के और बिना अदालत के तुरन्त दंड भोगने के लिए तैयार रहिये। 2018/10/31 20:01 ~ शुभाँशु सिंह चौहान 2018©

गुरुवार, अक्टूबर 25, 2018

Sex/मैथुन अनिवार्य क्यों?

भोजन, सेक्स, निवास यह तीन मानव की आवश्यकता हैं। यदि तीनो में से कोई भी कम हुआ तो दिमाग बन्द हो जाएगा। आपको सेक्स कार्य की तरह नहीं करना होता बल्कि जब यह करने का दिल करे तब और जब ऐसी परिस्थिति बने तब करना आवश्यक है जैसे भोजन।

लेकिन ध्यान रखिये; pull out, कंडोम आदि गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना भी अत्यंत आवश्यक है। अनचाहे गर्भ और STD से बचने के लिए कंडोम और अनचाहा गर्भ धारण करने से बचने के लिए पुल आउट तभी जब आपका साथी सिर्फ स्वस्थ लोगों से सम्भोग करती/करता हो या सिर्फ आपके साथ ही उसका सम्पर्क हो।

सेक्स सिर्फ प्रजनन के लिए नहीं होता। अगर ऐसा होता तो महिला और पुरुष को चर्मोत्कर्ष और फोरप्ले व मैथुन में आंनद का अनुभव न होता।

यह दिमाग और शरीर की ज़रूरत है। इसको सहमति सहित स्थिति होने पर भी दबाया गया तो यह बलात्कार करने को प्रेरित करने लगेगा एक सीमा के बाद। चर्मोत्कर्ष की प्राप्ति का न हो पाना ही यौन अपराध की जड़ है। ज़रूरी नहीं कि महिला/पुरुष न मिले तो सेक्स न किया जाए। सेक्स टॉय और हस्तमैथुन भी तनाव व कुंठा दूर करने के उपाय हैं।

यदि मैथुन का मन हो और अंगों में पूर्ण तनाव/चिकनाहट न पैदा हो तो स्वस्थ, अपराध मुक्त, वयस्क पोर्न/साहित्य/गेम आदि की मदद ले सकते हैं।

तनाव मुक्त जीवन के लिए सेक्स एक बढ़िया उपाय है लेकिन प्रजनन इसका byproduct है जिसको जनसँख्या वृद्धि रोकने के लिए नहीं करना चाहिए। ~ Vn. Shubhanshu SC 2018©  2018/10/25 18:36

बुधवार, अक्टूबर 24, 2018

मेरी दस प्रतिज्ञाएँ

मैंने कभी नहीं सोचा था कि जीवन भर दूसरों के आर्डर सुन कर धन कमाऊंगा। मैंने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि

1. आजीवन अविवाहित रहूँगा लेकिन अपनी पसन्द की महिलाओं से मित्रता और सेक्स के लिए विकल्प खुला रखूंगा।

2. कभी बच्चे पैदा नहीं करूंगा क्योंकि मैं अमर नहीं हूँ, यदि बीच में मर गया तो उनको लावारिस नहीं छोड़ सकता और व्यस्तता के चलते उनकी परवरिश उचित ढंग से न कर सकूंगा।

3. वही खाऊंगा जो शरीर की कुदरती ज़रूरत है और जो मेरी नाक स्वीकार करेगी। इस तरह मैं लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकूँगा।

4. आधुनिक समाज नियमों में बंधा है अतः यातायात, कानून, कर्तव्य और अधिकारों का पूर्ण पालन करूँगा ताकि मुसीबत में न पड़ जाऊँ।

5. कम से कम कपड़े पहनूंगा ताकि शरीर को विटामिन D मिलने समेत कुदरती अहसास होता रहे कि जानवर कैसे जीवन जीते हैं और मैं मशीन न बन जाऊं। इससे असहाय लोगों की परेशानी समझने में आसानी हुई और मैं और अधिक मानवीय और दयालु बन गया।

6. मैंने तय किया कि उपर्युक्त 5 बिंदुओं से मेरा खर्च कम हो जाएगा और मैं यदि आज ही से धन कमाने और उसे जोड़ने के लिए प्रयास करूँ तो जब तक मुझे कमाने की आवश्यकता पड़ेगी तब तक मैं आर्थिक रूप से पहले से ही मजबूत हो चुका होऊंगा। इसके लिए मैंने बचपन में ही व्यापार किया और गुल्लकों में धन जोड़ा। बाद में बैंक में खाता खोल के उस धन को फिक्स किया और करता गया जब तक मुझे उसे खर्च करने की ज़रूरत न पड़ी। समय आया और मेरा जमा धन मुझे खुद कमा कर देने लगा।

7. आज मैं आत्मनिर्भर हूँ और अपनी शर्तों पर जीवन जीता हूँ। अब मैं धन के पीछे नहीं भागता बल्कि खुद को प्रसन्न रखने के लिए शौक पूरे करता हूँ। यद्यपि चूँकि मैं और अधिक दुनिया देखना चाहता हूँ इसलिये धन की आवश्यकता की पूर्ती हेतु भी अपने शौक प्रयोग करूँगा। लोगों के मन में अपनी छाप छोड़ पाता हूँ या नहीं यह तो प्रयोग का विषय है लेकिन उम्मीद है कि मैं अच्छा कर रहा हूँ।

8. समय आने पर मैं लेखन के क्षेत्र में और विज्ञान के क्षेत्र में अपने खोजे गए राज़ खोलूंगा परन्तु उनका उद्देश्य मानवता की भलाई के साथ-साथ सबके लिए प्रेरणास्रोत बनना भी होगा।

9. मैं अपने सभी उद्देश्यों में सफल होता रहा हूँ क्योंकि बचपन में मुझे भी मूर्ख कह कर स्कूल से निकाला जा रहा था और दया करके जो मुझे आगे बढाया गया तभी से मैं समझ गया था कि यह दुनिया मेरे लायक नहीं। उसके लिए तो मैं नालायक ही रहूँगा। अतः जीवन अब सिर्फ़ मेरे अपने हाथ रहा। इसको कैसे जीना है अब मुझे ही तय करना था। अतः मैंने अपने मन की सुनी, करी और करता रहूँगा।

10. इस भूखी/गरीब दुनिया ने मुझसे सबकुछ छीना है लेकिन मेरी ज़िद है कि इसे सज़ा देने की जगह इतना प्रेम, महत्वपूर्ण विचार, खोजें, आविष्कार, साहित्य, धन कमाने के उपाय और योगदान देकर जाऊंगा कि फिर कोई धन और प्रेम से गरीब इस दुनिया में पैदा तो होगा लेकिन गरीब मरेगा नहीं। ~ शुभाँशु 2018©  2018/10/24 20:14

Note: यहाँ दी गई सभी प्रतिज्ञाएँ सांकेतिक हैं जिनका अन्य लाभों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन भिन्न-भिन्न posts में आप इसी website पर देख सकते हैं।

मंगलवार, अक्टूबर 23, 2018

देशभक्ति क्या होती है?

ज्यादातर लोगों के हिसाब से,

1. देश की जय जय कार लगाना।
2. देशभक्ति से सम्बंधित गीत गाना।
3. धर्म विशेष से सम्बंधित काल्पनिक भारत माता की जय जय कार करना।
4. गाय की जय जय कार करना।
5. बीजेपी/आरएसएस/abvp/शिवसेना/BD की सदस्यता लेना।
6. देश के झंडे से सम्बंधित स्टीकर/टैटू इत्यादि लगा कर, देश का झंडा बनकर फोटो खिंचाना।
7. देश की जासूसी करके दुश्मन देशो को बेचना।
8. काला धन जमा करना।
9. खरीदारी पर रसीद न लेना।
10. सम्विधान के विरुद्ध जाकर खुद कानून हाथ में लेना।
11. दूसरों के मौलिक अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करना परन्तु खुद उसका फायदा उठाना।
12. सरकारी संपत्ति को लूटना, दंगा करवाना और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।
13. देश में जगह जगह पर गन्दगी फैलाना।
14. टूरिस्टों को लूटना, उनका अपमान करना, बलात्कार करना।
15. धर्म विशेष को गालियां देना।
16. पड़ौसी देशो को गालियां देना।
17. देश को युद्ध के लिये उकसाना।
18. महिलाओं की आज़ादी को छीनना। उनको नीचा दिखाना, उनको कमजोर समझना। उनका अपमान/बदनाम करना और विरोध करने पर बलात्कार करना/तेज़ाब डालना या उसकी धमकी देना।
19. देश को धार्मिक देश की संज्ञा देना।
20. देश में क़ानूनी रूप से रह रहे शरणार्थियों और अल्पसंख्यकों को जान से मार देने का प्रयास करना या उनको इतना तंग करना कि वे या तो आत्मदाह कर लें या देश छोड़ दें।
21. सोशल मिडिया में झंडे, धर्म से सम्बंधित तस्वीरें और अफवाहें फॉरवर्ड करना।
22. सबसे काल्पनिक देवी की देश का नाम रख कर जय जय कार करवाना।
23. जानवर को खूंटे से बाँध कर मां कहना और उसके बच्चे को कत्लखाने भिजवा कर उसका दूध रूपी रक्तपान करना। निकालने से मना करने पर डंडे से पीटना।
24. जब दूध देना बन्द कर दे तो उसे सड़कों पर कसाईयो के हाथों उठवाने के लिये छोड़ देना।
25. जब उनको कोई उठा ले तो रक्षक दल बना कर उनसे वसूली करना और वसूली न कर पाने की दशा में उन लोगों को मारना पीटना।
26. रिश्वत लेना और देने का समर्थन करना।
27. लड़कियों को इसलिये नहीं पढ़ाना क्योकि उनकी तो शादी करके उनको दूसरे घर में रोटी ही सेकनी है।
28. बिना हेलमेट/सीट बेल्ट के वाहन चलाना और कहना कि शेर को डर नहीं लगता।
29. कन्या विद्यालयों और कॉलेजों में बाहर खड़े होकर छेड़खानी करना।
30. भिखारियों को समर्थन करना और उनको काम करन की सीख देने के स्थान पर "हम खिलायँगे तुमको" की तर्ज पर भीख देना।
31. सांड, खच्चर और बेकार हो चुके टट्टुओं को सड़क पर मरने के लिये छोड़ देना।
32. बंदरों को खाना खिलाना और फिर उनके उत्पात से तंग आकर पुलिस से उनको मरवाना।
33. देशी कुत्तों को रोटी डालना लेकिन पालना विदेशी कुत्तों को।
34. ऑनलाइन/डिजिटल भुगतान करने की अपेक्षा टैक्स चोरी करने के लिये नकद भुगतान का विकल्प लेना।
35. सैनिकों की घायल तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल कर like बटोरना।
36. धर्म, जाति के नाम पर और राजनीती के नाम पर लोगों को उकसाना।
37. सड़क पर पड़े घायल इंसान का वीडियो बनाना, फोटो खींचना लेकिन उसे बचाने का कोई प्रयास न करना।
38. हर चीज में मिलावट करना और बेईमानी करने का कोई भी मौका न छोड़ना।
39. घटिया चीजें बना कर स्वदेशी के नाम पर बेचना और विदेशी क्वालिटी वाली वस्तुओं का बहिष्कार करना।
40. शादी करने, करवाने की ज़िद करना, और करते ही तुरन्त बच्चा पैदा करने का प्रयत्न करना ताकि देश में कई नए बेरोजगारों को पैदा किया जा सके।
41. 100 रु, मुर्गा और शराब के लालच में अपराधियों को वोट देकर अपने मताधिकार का दुरूपयोग करना।
42. फिर जब नेता नुक्सान करे तो उसे गालिया देते हुये 5 साल तक झेलना और उसे राजसी ठाठ बाट उपलब्ध करवाना और खुद सूखी रोटी खाना।
43. माल में जाकर 100 रु की कोल्ड ड्रिंक बिना मोल भाव के पी लेना लेकिंन ठेले वाले, रिक्शे वाले, सब्जी वाले की मोल भाव कर करके माँ खोद देना।
44. त्योहारों पर मोटरसाइकिल का साइलेंसर निकाल कर, और ट्रक का हॉर्न लगा कर सड़कों पर शोर मचाना और सबका जीना दूभर कर देना।
45. घरों में लाउड स्पीकर चढ़ा कर ज़ोर ज़ोर से बेसुरी आवाज में चिल्लाना और बच्चो की पढ़ाई लिखाई की मां खोद देना।
46. सड़कों पर रैलियां और जुलुस निकाल कर शक्ति प्रदर्शन करना। रास्ते जाम करना।
47...ये लिस्ट खत्म ही नहीं होती।

उपर्युक्त कार्य देशभक्ति होती है।

परन्तु मेरी समझ से देश भक्ति ये नहीं होती।

1. पेड़ लगाना
2. साफ सफाई रखना
3. साक्षर होना
4. टैक्स देना
5. हर खरीदारी का पक्का बिल लेना
6. घरेलू नुस्खों के स्थान पर MBBS डॉक्टर से सलाह लेना।
7. देशभक्ति दिल में रखना और दूसरे देशों के लिये जासूसी न करना।
8. देशभक्त बनना न कि नज़र आना।
9. ऊपर लिखे 46 कार्य न करना।
10. दयालु, विनम्र और प्रतिभाशाली इंसान होना

यही होती है देश भक्ति। बाकि सब टाटा टी। ~Vegan Shubhanshu, 3/3/17 08:24 AM

जियो और जीने दो, वसुधैव कुटुम्बकम, अहिंसा परमो धर्म:

गुरुवार, अक्टूबर 18, 2018

ग्राहक देवता

कई वर्षों पूर्व एक मज़ेदार घटना मेरे साथ घटी थी। मैं उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रोजेक्ट और नए आविष्कार बनाया करता था तो नई-नई चीजें बनाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान से ज़रूरी सामान लेता था।

प्रायः दिन के समय जाता था तो उनसे जानपहचान हो गई। लेकिन स्कूल में एक प्रतियोगिता में प्रतियोगी होने के कारण मुझे एक दिन सुबह ज़रूरी सामान लेने जाना पड़ा।

देखा तो दुकान खुली थी। दिल खुश हो गया। वह अगरबत्तियां सुलगा के मंत्र पढ़े जा रहे थे और मैं "अंकल जी मुझे देर हो रही है स्कूल के लिए" चिल्ला-चिल्ला के थका जा रहा था।

फिर थक-हार कर बाहर आ गया। स्कूल को देर हो रही थी लेकिन फिर भी अब न इधर का रहा, न उधर का रहा था। अतः रुका। कुछ देर बाद वह मेरे से बोले "आपको दिखता नहीं है कि मैं पूजा कर रहा था?"

मैंने तपाक से कहा, "लेकिन देवता को तो आप दुत्कार रहे हैं!"

वह बोले, "क्या मतलब?"

मैंने कहा,
1. आपकी बोहनी (एक प्रकार का प्रचिलत वैश्य पाखण्ड) मैं करने वाला था।
2. ग्राहक देवता (भगवान्) समान होता है।

वह मेरा ही मुहँ देखते रह गए 1 मिनट तक। फिर बात बदल के बोले, बताओ बताओ क्या चाहिए आपको?" 😀😁😂 ~ Shubhanshu SC 2018©

पत्नी का अर्थ क्या है?

पत्नी का शाब्दिक अर्थ है "बंधुआ स्त्री" अर्थात "गुलाम". गुण स्पस्ट हो गए होंगे।

वैसे धर्मानुसार 4 प्रकार की पत्नियां होती हैं जिनका एक साथ एक ही स्त्री में पाया जाना उत्तम माना जाता है।

1. धर्म पत्नी
2. अर्थ पत्नी
3. काम पत्नी
4. मोक्ष पत्नी

जो चारों कार्य पूर्ण करे उसे संपूर्ण पत्नी कहते हैं। इसको अर्धांगिनी भी कहा गया है   कई स्थानों पर। अर्धांगिनी मतलब दायाँ हाथ। यानी जिससे सारा काम करवाया जाता है।

लेकिन यह सब केवल हिन्दू धर्म की भ्रामक व्याख्या है जबकि व्यवहार में महिला का सती होना, पर्दे में रहना, पति से सवाल न करना, उसका कहा मानना, पहली ही रात में सम्भोग, पति द्वारा स्त्री का पिता के घर से हरण, पति का नाम/सिंदूर/बिछुआ रूपी बेड़ी पहनना, पति को स्वामी कहना, उनके नाम को बोलने से परहेज, पति के घर जाकर रहना। दहेज रूपी धन का लाना, इत्यादि बहुत से लक्षण उसको वही साबित करते हैं जो मैंने लिखा हैं।

इसीलिए हम विवाह के खिलाफ हैं। बिना विवाह के जीवन साथी बन के रहिये और मित्रवत जीवन गुजारिये।~ Shubhanshu