Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, मार्च 23, 2019

संघ में भर्ती होने गया शुभ ~ Shubhanshu

संघ: परीक्षा देनी होगी। ये बताओ जो मूर्ति हमने लगवाई है, सब थूक रहे। आपका क्या कहना है?

शुभ: 3000 करोड़ की चीन से डील करके बहुत बढ़िया कार्य किया गया है। चीन को इस मेहनत के लिए शत शत नमन। हमारी क्या औकात जो make in india कर सकें। हम कोई चीन से आगे थोड़े ही न हैं। 2 बार आक्रमण करके इस देश ने जो भी किया उसे 1 डील से भुलाने का बहुत शानदार कार्य किया गया है इसके लिए आपको भी शतशत नमन क्योकि आपकी ही एक शाखा राजनीति में इस समय सक्रिय है जिसके कर कमलों से महान वैज्ञानिक रिसर्च और प्रोजेक्ट्स को वित्तीय सुविधा देने के कार्य को रोक कर इस महान मूर्ति को प्राथमिकता दी गई। उसका बजट इसमें लगवा दिया इससे देश में विज्ञान की बातें करनी कम होंगी और धर्म से लोग ज्यादा जुड़ेंगे। साथ ही अगले सत्र के लिए सीट भी पक्की करनी है। क्रांतिकारी को सामने रखने से जनता इमोशनल flower बनके fool को वोट देगी और हम लोगो को वेतन मिलेगा। तो sir कैसा रहा मेरा विश्लेषण?

संघ: अरे, इसे कौन लाया था, उसे भेजो इधर? तुम जाओ बेटा। अभी जगह कम है यहाँ। फिर कभी try करना।

संघ में भर्ती हमारा दोस्त: जी सर, क्या हुआ? कोई समस्या?

संघ: देखो, अपना बोरिया बिस्तर लेकर निकल लो।

दोस्त: लेकिन sir ये तो भक्त है। इसने क्या गलत कह दिया भला?

संघ: देख बे, भक्त है मानते हैं। इसीलिए ज़िंदा भेज रहें हैं लेकिन हमें अंधभक्त चाहिए। समझा? ये तो साला सत्यवादी हरीशचंद्र का बाप लग रहा है। 2 मिनट पहले तो मैं अपना इस्तीफा तक देने की सोचने लगा था। फिर साला होश आया कि नहीं, ये साला कोई जादू कर रहा है हम पर। बस फिर क्या था हम फिर से संभल गए लेकिन बाकी लोगों की मुझे कल एक्स्ट्रा क्लास लेनी पड़ेगी क्योंकि साला आज हमारी कोई बात ही नहीं मान रहा है। कोई बोला कि बात तो सही कह रहा है लौंडा। गलती हुई है। हद हो गई यार। अब निकल बे। कोई और शाखा जॉइन कर ले। इधर मत आना तुम दोनों। खाल उतार के भूसा भरवा दूँगा। जय श्री आम। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Vegan

रविवार, मार्च 17, 2019

धर्ममुक्त का अर्थ है Religion Free ~ Shubhanshu

मुझे लगता है नास्तिक शब्द अब पुराना हो चुका है। धर्ममुक्त से ही सब स्प्ष्ट हो जाता है कि कोई नाटक शेष नहीं है। हमने दरअसल युक्तिवाद का नाम ही बदल कर धर्ममुक्त रखा था क्योंकि कुछ आस्तिक इसका दुरूपयोग कर रहे थे और दूसरी तरफ नास्तिकता के नाम पर बौद्ध, जैन, tao, कन्फ्यूशियस जैसे धर्मों का प्रचार हो रहा था जोकि पाखण्ड (मूर्खता) से भरे पड़े हैं।

अभी भी धर्ममुक्त को लोग आस्तिक होने के साथ भी अपनाना समझते हैं जबकि ये युक्तिवाद ही है जिसमें इंसान स्वतन्त्र हो जाता है। धर्म का मतलब कोई गुण, रंग, या धारण करना कतई नहीं है। ये बहस करना शातिर मूर्खो द्वारा उलझाने की घटिया मानसिकता मात्र है। सभी जानते हैं कि धर्म का अनुवाद religion ही आता है और जिसे मजहब, सम्प्रदाय, पंथ आदि नामों से भी बुलाया जाता है। हम उसी पंजीकृत धर्मों की सूची की बात करते हैं। जिसमें 4200 औपचारिक धर्म शामिल हैं।

जब भी आपको कोई धर्म की तमाम परिभाषा बताने की कोशिश करे तो समझ लीजिये वह आपके खिलाफ है और आपको नीचा दिखाना चाहता है। उस से बहस न करें। वह जानबूझकर ही ये नाटक कर रहा है। एक बच्चे से भी पूछो कि उसका धर्म क्या है तो वह तुरंत बता देता है और ये कमबख्त झोपड़ी के हमें मूर्ख समझते हैं जो हमें धर्म समझाने चले आते हैं। 😬 गुर्रर! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Cofounder of Dharmamukt Mission with late Sir Kashmir Singh Sagar.

शनिवार, मार्च 16, 2019

अपरिचित? ~ Shubhanshu

आदिमानव ने मानव के उद्भव के किंतने समय बाद मांस खाना सीखा? इस विषय में कोई जानकारी है? चूंकि मानव बिना सीखे शिकार नही कर सकता तो शुरू में उसने क्या खाया होगा?

भोजन वही होगा जो एक बच्चा प्राप्त कर सके। सोचिये एक मानव का बच्चा जिसने मां का दूध पीना छोड़ दिया हो, अगर जंगल में छोड़ दिया जाए तो वह क्या खायेगा? इसी में जवाब छुपा है कि मानव का भोजन क्या था।

मानव हथियार और झुंड के बल पर शिकार कर सका। इसका अर्थ है कि वह संगठित रहकर मांसाहारी जानवरों को मारता था (अपनी जान बचाने के लिये) इसी दौरान कुछ लोगों ने गलती से निरीह प्राणी भी मार डाले होंगे और उनको आपातकाल में उसको पका कर खाना पड़ा होगा जो कि मजबूरी दर्शाता है। कृमिरुप परिशेषिका इस बात का प्रमाण है कि मानव पहले सेलुलोस पचा लेता था और आज सेलुलोस कब्ज रोकने के काम आता है।

हम सब जानते हैं कि उतपरिवर्तन से रैंडम विकास हुआ। जो कि पूरी तरह से कॉस्मिक किरणों पर आधारित था। हम में से कोई विकसित नहीं हो रहा है। न कभी हुआ। बस जो सफल रहा प्रजनन करने में वही अपनी प्रजाति बना गया। इसे अगर क्रमानुसार सजाए तो इसे विकास की तरह मान सकते हैं।

उतपरिवर्तन सीधा हमारे गुणसूत्र पर होता है जो कि अगली पीढ़ी में जाता है। इससे विभिन्नता (diversity) आती है और जब यह अधिकतम होती है तब नई प्रजाति का निर्माण हुआ मानते हैं। जैसे गधा, घोड़ा, जेब्रा के पूर्वज कभी एक ही थे।

काफी समय से मानव घरों में और कपड़ों में छुप कर समय गुजार रहा है जिसके कारण उस के शरीर में ब्रहांड किरणों का लगभग प्रवेश बन्द हो गया है। इसलिये नई प्रजाति में रूपांतरण होना लगभग रुक सा गया है। अगर हम फिर से नग्न और खुले आकाश के नीचे रहना शुरू कर दें तो आकाश में होते परमाणु विस्फोटों से निकलने वाली गामा किरणे आपका आनुवंशिक डीएनए बदल देंगी और विकास या ह्वास तेजी से होने लगेगा। जो परिवर्तन फायदेमंद होंगे वे जीवित रहेंगे और जो नहीं उनके लिए प्रजनन के अवसर नहीं बचेंगे। फलतः खराब परिवर्तन वाले मानव समाप्त होंगे और बढ़िया परिवर्तन वाले मानव बचेंगे।

लेकिन ये अभी इसलिये भी रुका है क्योंकि आज मानव को सम्भोग के लिए साथी प्राकृतिक चुनाव से नहीं मिल रहे। जैसे एक जन्मजात विकलांग पुरुष एक स्वस्थ सामान्य महिला की पसन्द कभी नहीं बनेगा, परन्तु विवाह जबरदस्ती, धन के लालच में, उसका वंश बढ़ाएगा। इसी तरह मूर्ख लोग भी विवाह के ज़रिए साथी पा जाते हैं और अपनी खराब पीढ़ी को भी मानव जनसंख्या में शामिल कर देते हैं।

चेहरे की सुंदरता, शरीर का सुघड़ होना, रंग, बुद्धिमान होना, सेंस ऑफ ह्यूमर वाला होना, प्रतिभावान होना, लंबे समय तक सफलता से जीवित रहना, शक्तिशाली होना आदि तमाम कारक ही आपको प्रजनन का हक देते हैं। इससे इसी प्रकार के गुणों वाली पीढ़ी पैदा होती है। लेकिन आज विवाह जैसे स्वार्थी रिवाज ने इसे तोड़ दिया है। अब सिर्फ धनी होना ही आपके वंश को बढाने के लिये काफी है। आपको वंशवृद्धि का हक दिया गया है। जबकि मूर्ख और खराब शरीर के लोगों को अपना वंश नहीं बढाना चाहिये।

इस बात को जंतुविज्ञान में सुजननकी नाम से एक शाखा बना कर रखा गया है। इसका लक्ष्य केवल विद्वान, सुंदर और स्वस्थ शरीर के लोगों को बेहतरीन साथी उपलब्ध करवा कर वंशवृद्धि करना है। एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण जो बिना विवाह के केवल प्रतियोगिता से ही अपनी गुणी जनसंख्या बनाएगी। बेकार, खराब गुणवत्ता के लोगों को जीने का हक तो है लेकिन उनको बच्चा पैदा नहीं करने देना चाहिए। अन्यथा आज जो हो रहा है वह हमेशा होता रहेगा।

मूल में सिर्फ इतना है कि बिना प्रेम का विवाह ही दरअसल आपकी दुनिया की बर्बादी का कारण है। हर अपराधी के मूल में यही एकमात्र कारण होता है। बाकी परिस्थितियाँ भी इसी अवगुण के कारण ही पैदा होती हैं।

अपराधियों के शरीर में X gene पाया जाता है जो कि अपराध करने की प्रेरणा देता है। इसका पता तब चला जब अमीर लोगों को दुर्व्यवहार, चोरी, हत्या और बलात्कार करते पाया गया। इस X जीन ने यह साबित किया कि सज़ा अपराध को खत्म नहीं कर सकती। सज़ा देने वाली व्यवस्था केवल मजबूर व्यक्ति द्वारा किये गए गलत कार्य को ही पकड़ती है, जो मजबूरी में गलत कदम उठाते हैं। जैसे गरीब और असहाय लोग।

इसका प्रमाण है कि अधिकतर जेल गए अपराधी सुधरते नहीं बल्कि वे हिस्ट्रीशीटर बन जाते हैं। आज भी जब नए अपराधी पकड़े जाते हैं तो उनकी पिछली हिस्ट्री ज़रूर जांची जाती है। कानून भी मान गया है कि सज़ा सुधरने के लिये होती ही नहीं है बल्कि व्यक्ति को समाज से दूर रखने के लिए होती है। ये सभी मामले X जीन के उदाहरण हैं।

जो लोग सुधर जाते हैं दरअसल उन्होंने मजबूरी या क्रोध में अंधे होकर अपराध किया होता है। जबकि दूसरी तरफ कभी न सुधरने वाले विश्वास के साथ कानून कुछ दुर्दांत अपराधियों को उम्रकैद या मृत्युदंड देता है। ये भी X जीन का उदाहरण या उसका मिमिक है।

इसके अतिरिक्त 2 तरह के जीन मानवों में मुख्यतः पाए जाते हैं। 1. योद्धा (worriar) जीन 2. संत जीन। योद्धा जीन वाले लोग हर समय लड़ने को उतारू रहते हैं जबकि संत जीन वाले लोग डरपोक होते हैं।

लेकिन जब इनका परीक्षण किया गया तो परिणाम उल्टे निकले। पुजारियों, पादरियों, शांति दूतों के भीतर वॉरियर जीन निकला और गुंडों के भीतर शान्ति वाला डरपोक जीन निकला। इस पहेली को मनोवैज्ञानिक सुलझाने में कामयाब हुए।

दरअसल योद्धा जीन वाले लोगों ने शुरू में हिंसक कार्य किये थे और उनको कानून और लोगों द्वारा डराया और अपमानित किया गया था। इसलिये उन्होंने शांत रहने वाला जीवन चुन लिया जबकि जो बचपन से डरपोक थे उन्होंने सीख लिया था कि अब जीना है तो डरने से बात नहीं बनेगी। उनको डराना सीखना होगा। और वे खतरनाक होने का ढोंग करने लगे। इससे यह तो साफ हो गया कि गुंडे और सीधे दोनो ही लोग अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार करते हैं।

मैं भी सीधे होने का दिखावा करता हूँ। शांत रहता हूँ क्योंकि जब भी मेरा नियंत्रण खोया है जलजले आये हैं। कई बार लोग हैरान हुए क्योंकि उन्होंने मुझे डरपोक समझा था। लेकिन सच तो ये हैं कि मैंने बचपन में इतनी हिंसा कर ली थी कि अब अहिंसक होकर जीना ही श्रेष्ठ था। नहीं तो जेल में जीवन कटता। जब अपरिचित फ़िल्म पहली बार मुझे दिखाई गई तो मैं हैरान रह गया। सबका एक ही कहना था कि ये तो अपना Shubhanshu Singh Chauhan है। बस उसका खुद पर नियंत्रण पूरा है। पर्सनालिटी डिसऑर्डर नहीं है। तीनो पर्सनालिटी एक साथ रखता है। ~ Vegan Shubhanshu SC 2019©

Note: Crime Gene के बारे में यहाँ पढ़ें: 

https://thebiologist.rsb.org.uk/biologist/158-biologist/features/903-crime-genes

बुधवार, मार्च 13, 2019

जाइये किसी के Fan बन जाइये ~ Shubhanshu

मैं कश्मीर सिंह सागर जी से जीते जी मिल नहीं पाया। एक दम मल्टी टैलेंटेड आदमी थे वे। हमारी कई बातें आपस में मिलती थीं; जैसे धर्ममुक्त होना, कवि होना, धर्मग्रंथों का जानकार होना और सबसे प्यारी बात, खुली सोच वाला होना। उनको मेरी ही तरह विवाह, नौकरी, मैकाले की मुनीम वाली शिक्षा पद्धति, नकली राजनीति, कायरों की दिखावेबाज देशभक्ति, ठगी, हमला वाली हिंसा आदि से छुटकारा दिलाने वाला समाज चाहिए था। हम लोगों की मीटिंग होने वाली थी शीघ्र ही, लेकिन टलता रहा समय।

उनको खोने के बाद जैसे हम पंगु हो गए थे। उस समय तक जब भी किसी अंधभक्त की आंखें खोलनी होती थीं तो हम उनको मेंशन करते थे। व्यवस्थित रूप से उनके विंडोज फोन में रखे संदर्भ युक्त प्रमाणों से अच्छे-अच्छे प्रकांड पंडितों ने मुहँ की खाई थी।

उम्र में मुझसे कहीं ज्यादा बड़े होने पर भी मुझे वे सदा हमउम्र ही लगे थे। उन्होंने मुझे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। धर्ममुक्त भारत बनाने की। मेरे कार्य से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे अपनी वेबसाइट dharmamukt.in (अब .com) पर लिखने के लिये आमंत्रित किया। 

मैने जो लेख लिखे, वे समाज के विकास के लिये थे और कश्मीर जी के लेख धर्मग्रंथों पर ही आधारित थे तो वेबसाइट पर तारतम्यता नहीं रही और उन्होंने मुझसे मेरी वेबसाइट के बारे में पूछा। मेरी वेबसाइट उस समय zhaharbujhasatya.blogger.com नाम से चला करती थी। उन्होंने कहा कि उनके साथ रहते हुए ही अपनी वेबसाइट पर ही लिखो और जुड़े दिखने के लिये उन्होंने मुझे .dharmamukt.in डोमेन भेंट किया। अतः मेरी वेबसाइट अब zaharbujhasatya.dharmamukt.in हो गयी। धर्मग्रंथों के ज्ञान के लिये dharmamukt.com पर जाइये और जीवन को खुशहाल कैसे बनाएं? ये जानने के लिये मेरी web दुनिया में आइये।

उस कष्टकारी क्षति (असमय मृत्यु) से मैंने एक सीख ली कि इससे पहले कि कोई महान इंसान हमारे बीच न रहे, उसे खूब प्यार कीजिये। तारीफों के पुल बांध दीजिये। कोई घमण्डी हो जाये तो उसका हक है। होने दीजिये। कम के कम आप कंजूसी करके अपना घमण्ड और ईगो तो न दिखाइए। आपको किस बात का घमंड है भला? घमण्ड वो करे जो कुछ बन गया हो। हम और आप क्या हैं? उनका लाभ उठाने वाले उनके कृतज्ञ मात्र।

हम भक्ति करने को भी नहीं कह रहे। भक्ति में आंखें बंद हो जाती हैं। खामियों पर हम अंधे हो जाते हैं। उनकी खामियों को भी अपना लेते हैं। गलत है। लेकिन जिसकी जितनी तारीफ बनती है, उतनी तो कीजिये। कृतज्ञ हीन होना चरित्र हीन होने से कहीं ज्यादा बदतर है। चरित्र तो सिर्फ एक नाम है लेकिन कृतज्ञ होना, एक ईनाम है। ये ऊर्जा है, उनकी, जिनके आप एहसानों तले दबे हैं।

जो गुजर गए उनके फैन तो नहीं कहला सकते लेकिन हम उनके कृतज्ञ हैं और उनको प्रेरणास्रोत मानते हैं। लेकिन जो जीवित हैं, कहीं वे भी अपनी सेवाओं के बदले प्यार न पाकर, कहीं हमसे दूर हो गए तो आप खुद को कभी माफ नहीं कर सकेंगे। आपकी एक घमण्ड भरी कृतज्ञहीन चुप्पी उनको खो सकती है।

इसलिये मेरी सलाह है कि जो भी आपको अच्छा लगता है, जो आपकी मदद करता है, जो आपको जीना सिखाता है उसे इग्नोर मत करिए।

जाइये, अपने आस-पास के लोगों को देखिये। सबको धन्यवाद दीजिये, जो भी आपको ज़रा सा भी लाभ पहुचाते हैं। लड़का हो क्या लड़की, महिला हो या पुरुष, बड़ा हो या छोटा, जवान हो या बूढ़ा, उसके वास्तविक गुण गाइये, उनकी कृतज्ञता को महसूस करके मदहोश हो जाइए। उनके, फैन बन जाइये। यही श्रेष्ठ है क्योंकि सच्ची तारीफ करने के पैसे नहीं लगते लेकिन इससे बड़े से बड़े लोग खरीदे जा सकते हैं।

आपका दोस्त और शुभचिंतक ~ Shubhanshu 2019©  2019/03/13 01:54 

सोमवार, फ़रवरी 25, 2019

ईश्वर से न मिलवाओगे? ~ Shubhanshu

विद्वान: ईश्वर है। मानता है कि नहीं? अभी बताऊं तुझे?

शुभ: आपको कैसे पता?

विद्वान: तूने मकान बनाया या अपने आप बन गया?

शुभ: मतलब ईश्वर मैं हूँ?

विद्वान: अबे साले, तू कैसे हो सकता है bsdk? ईश्वर दिखता नहीं है। ऊर्जा है।

शुभ: bsdk, फिर तू मेरा उदाहरण कैसे दिया बे? मैं दिखता हूँ और ऊर्जा ग्रहण करता हूँ तो क्या तेरा ईश्वर एक बेजान तत्व है? जो मशीन में, बैटरी में रहता है? मेरे  बनाने से दुनिया बनी बहुत से हिस्सों के रूप में। मतलब और जो पहले से बनी है वह तेरे ईश्वर ने बनाई तू यही मानता है न? मजा आ रहा है न तू-तू-तू, तू-तू तारा करके?

विद्वान: अ... हँ हाँ।

शुभ: क्या? मज़ा या जो मैं ईश्वर के बारे में पूछा वो?

विद्वान: वो ईश्वर ने दुनिया इंसान की तरह बनाई वाली बात।

शुभ: तो तय हुआ कि वह कोई हाड़मांस का इंसान की तरह है जो उपकरणों, मजदूरों, सामान मंगा के और कागजी कार्यवाही करके, मजदूरी देकर कार्य करके दुनिया में उल्टे सीधे पहाड़, नदिया, ज़हर, बीमारी, खतरनाक तत्व, वायरस, कीड़े और आदमी के निप्पल सहित, निषेमक पटल, कानों की पेशियों, कृमिरुप परिशेषिका आदि 100 से ज्यादा मानव अवशेष अंग बनाया है?

विद्वान: मुझे देर हो रही है मैं चलता हूँ।

शुभ: अबे रुक भूतनी के वैज्ञानिक, विद्वान जा किधर रहा है? ईश्वर से न मिलवायेगा क्या? ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

ऊर्जा स्वतन्त्र नहीं रह सकती ~ Shubhanshu

मित्र:

शब्द भाव व्यक्त करने का माध्यम है। विज्ञान जिसे सिद्ध न कर सके वह अवैज्ञानिक नहीं।यदि कोई ये सिद्ध कर दे आत्मा नहीं तो जो सजा दो मंजूर है।लेकिन विषय तर्क से समझें।

१-मैंने इस विषय पर स्वयं कड़ा मंथन किया है ।

२-संभवतः अमेरिका के छात्र मृत्यपरांत आजीवन आत्मा को इंटरनेट सुविधा देने पर ऑफर दे रहे हैं बुकिंग भी प्रारंभ है लेकिन मैं इस संबंध में स्पष्ट नहीं हूँ।

३-नील बोहर की परमाणु परिकल्पना पढ़ो पता चलेगा।

४-गीता में दो श्लोक हैं एक में मोक्ष का विवरण है तो दूसरे में आत्मा अजर-अमर है।

५-मोक्ष का अर्थ मुक्ति अर्थात आत्मा की मृत्यु तो जहाँ दूसरा है वहाँ आत्मा अमर है।

६-ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती अर्थात एक ऊर्जा दूसरी ऊर्जा में परिवर्तित होती है मतलब अजर-अमर।दूसरा संदर्भ लकड़ी जलकर नष्ट होकर कोयला बनीं मतलब एक की मृत्यु दूसरे का जन्म अर्थात मोक्ष।

७-जब शारीरिक ऊर्जा शून्य में विलीन होती है तब आत्मा मोक्ष की ओर प्रस्थान करती है।विपरीत जब शारीरिक ऊर्जा अपने चरम पर हो और शरीर पर प्राणघातक हमला हो तब वह उससे निपटने के लिए इतनी ऊर्जा का प्रयोग करती है कि एक सैकेंड के करोड़वें हिस्से में हमारे दिमाग(मशीन)को इतनी बाह्य ऊर्जा मिल जाती है कि वह आत्मा अर्थात दिमाग के उत्पाद सोच,मन,आत्मा इत्यादि को प्रकाश के रूप में बाहर फैंक देता है।

शेष आपकी जिज्ञासा पर---

शुभ:

ऊर्जा का कोई न कोई स्रोत होता है और उस ऊर्जा से कोई न कोई रूपांतरण होता है तभी कार्य होता है। जैसे श्वसन से ग्लूकोस का दहन होने से CO2 और ऊर्जा निकलती है जो तुरन्त शरीर में कार्य में खर्च हो जाती है। फिर हम अगली सांस लेकर इस क्रिया को चलाते रहते हैं। हम दरअसल एक मोटरसाइकिल के इंजन की तरह दहन करके ही ऊर्जा प्राप्त करते और इस्तेमाल करते हैं। अगर सांस रोक दी जाए तो ऊर्जा का उत्पादन रुक जाएगा और मृत्यु हो जाएगी।

ऊर्जा मानव में नहीं होती। ऊर्जा के लिये वह भोजन करता है। श्वशन करता है। उससे ऊर्जा उतपन्न होती है और हम उसे कार्य करने में लेते हैं। ऊर्जा के रूप में आप पहले से ही आत्मा की ही बात कर रहे हैं न कि वास्तविक ऊर्जा की। ऊर्जा स्वतन्त्र नहीं रह सकती। उससे कार्य होता है या वह बैटरी की तरह नहीं है। बैटरी परिपथ पूंर्ण होने पर अभिक्रिया करके इलेक्ट्रॉनिक धारा पैदा करती है।

ऊर्जा के प्रकार मुख्यतः 2 हैं गतिज और स्थतिज।

रासायनिक ऊर्जा एक कल्पित स्थिति है जो परिपथ के पूर्ण होने पर ही धारा प्रवाहित करती है।

एक और छोटी सी बात। आपातकाल में adrenaline हार्मोन तीव्र मात्रा में निकलता है और इंसान को महामानव बना देता है। इसका उदाहरण आप क्रेंक फ़िल्म में देख सकते हैं। इस हार्मोन का प्रयोग dope टेस्ट में पोसिटिव है। यानी इसका कृत्रिम रूप epinephrine एक ड्रग के रूप में दर्ज है।

आपातकाल में शरीर हमें यह अपने आप देता है और शरीर भयानक ऊर्जा उतपन्न करके इन्सान की हड्डियों की सामर्थ्य तक बल प्रयोग करवा देता है।

बात ख़त्म। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

सोच बदलिये, अच्छे इंसान बनिये ~ Shubhanshu

लोगों को व्यवहार को सही दिशा में करना होगा। अन्यथा बदनामी रूपी परिणाम मिलेंगे। ये सब रिजेक्शन का परिणाम है। सोच बदलनी होगी कि सही व्यक्ति कौन है जिससे अगला डिमांड कर रहा है।
जैसे, रिक्वेस्ट लेना मतलब सेक्स चैट का कॉन्सेन्ट समझना।
कम कपड़े मतलब सेक्स करने के लिये इनविटेशन।
ब्रा न पहनना मतलब भी सेक्स इनविटेशन।
इस तरह की सोच खत्म करनी होगी।

1. महिला की तरफ से पहल का इंतज़ार करें।
2. उससे दोस्ती रखें। उससे साधारण बात करें।
3. अगले को खुद के बारे में समझने का मौका दें।
4. अब अगर अगले को आप पसन्द आये तो वह खुद ही शुरुआत करेंगी।
5. याद रखिये प्यासा कुएं के पास आता है न कि कुआं।
6. आप प्यासे हैं और कुंआ सूखा तो आपकी प्यास नहीं बुझेगी।
7. कुएं में पानी लबालब हो तो वह बह कर आपके पास भी आ सकता है। लेकिन ऐसा कम होता है क्योकि लड़के पहल करेंगे, ये धारणा बनाई गई है। लेकिन धैर्य रखिये जल्दबाजी में जूते ही पड़ेंगे।
8. जब कप खुद पर काबू रखेंगे तभी नई सोच विकसित होगी कि आग दोनो तरफ होती है न कि सिर्फ एक तरफा। एक तरफा सिर्फ बलात्कार होता है।

होश् में रहना ही समझदारी है। क्यों मूड खराब करना? जब चलाना हाथ ही है? नमस्कार! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

शुक्रवार, फ़रवरी 15, 2019

मैं हूँ ग्रह Ross 128 B से एक परग्रही

अपनी इमेज एक भले इंसान की बनाये रखें। गुस्सा आपको आता नहीं, यह कहते हैं बहुत लोग लेकिन आप सभी गुस्सा होते हैं। अपशब्द कहकर अच्छा लग सकता है लेकिन यह आपकी अच्छी ईमेज को भी तार-तार कर देते हैं।

ऐसा नहीं हैं कि आपको गाली देना आता न हो या आप उनका ज्ञान न रखें। उसका भी समय आएगा। गाली हमेशा अकेले में दें। पब्लिक प्लेस पर गाली देना मानहानि के अंतर्गत अपराध है।

गाली देने से बहुत लाभ हैं लेकिन क्या इसके लिये हम पहले उन हानियों को पैदा करें जिनको गालियां मिटाती हैं? और इनके साइड इफ़ेक्ट का क्या? जो कि आपको एक बुरा इंसान घोषित कर देती हैं? हमको कोई अपमान जनक शब्दों से सम्बोधित करता है तो गुस्सा और अपशब्द दोनो उगलते हैं हम लेकिन हमको खुद पर कंट्रोल होना चाहिये। खुद की परीक्षा लीजिये कि आप किस तरह बिना गाली दिए भी अगले को आहत करके उसकी ego को चोट पहुँचा सकते हैं या हो सकता है कि वह आपकी परीक्षा ले रहा हो और आप उसमें पास हो जाएं तो वह आपको समझने लगे?

बेहतर बनने की कोशिश कीजिये। दुनिया में लोग अजूबे ढूढ़ रहे हैं। एलियन को कौन नहीं देखना चाहता? कौन नही चाहता उसका एक ऑटोग्राफ? अजूबा बनिये। हैरान कर दीजिए लोगों को अपने अच्छे व्यवहार से।

ऐसा नहीं है कि अपशब्द गलत हैं या उनको देने से आप अच्छे या बुरे बन जाते हैं लेकिन आपकी दुर्भावना अगर उसमें जुड़ी है तो वह बुरे हैं। आप प्यार से किसी को गाली दीजिये अगले को उसमें प्यार दिखेगा गाली नहीं।

अगला प्यार ही सुनेगा। गाली म्यूट हो जायेगी लेकिन अगर आप दुर्भावना से किसी को महान, विद्वान, ज्ञानी, सर्वज्ञ, ईश्वर, परमात्मा भी बोलोगे तो वह उसके दिल में जाकर लगेगा और सिर्फ लगेगा ही नहीं बल्कि गहरी चोट करेगा। इतनी गहरी कि अगला 10 बार सोचेगा आपसे पंगा लेने की या बदल जायेगा तर्क के साथ।

लोगों को शांति से समझाया जा सकता है अन्यथा वे बहुत जल्दी आपको ब्लॉक कर देंगे। जिसे समझना नहीं है वह आपको कभी भी ब्लाक कर सकता है। बेहतर होगा कि आप देखें कि अगला आपकी लेखनी पूरी पढ़ रहा है या नहीं? आपके दिए लिंक पर जाता है या नहीं? आपकी बातों को अनदेखा करता है या नहीं?

अगर वह सिर्फ एक तरफा बोल रहा है तो वह बोल नहीं रहा। वह डिक्टेट कर रहा है। यानी तानाशाही उसका स्वभाव है। वह आपको अपने गुप्तांग पर रखता है। फिर बस मुस्कुराइए और उधर से निकल आइये। उधर आपकी अब कोई आवश्यकता नहीं रही।

मुझे कोई उम्मीद नहीं है कि आप मेरी इस अमूल्य सलाह पर अमल करेंगे। मुझे फर्क भी नहीं पड़ता कि अगला क्या कर रहा है। लेकिन हाँ इस पोस्ट के माध्यम से मैं यह ज़रूर कहना चाहता हूँ कि अगर आप मेरे जैसे नहीं हैं तो मैं ही अकेला बन जाऊंगा अजूबा और आप देखते रहियेगा और पूछते रहियेगा, "आखिर किस दुनिया से हो आप, कौन हो आप?"

और मैं हमेशा कि तरह एक ही शब्द में अपना परिचय देता रहूँगा। मैं हूँ ग्रह Ross128B से इधर आया हुआ एक एलियन। ~ Shubhanshu SC 2019©

सोमवार, फ़रवरी 04, 2019

सीधी दुनिया, कितनी नाजुक

कुछ आदतें यदि बाल्यकाल से ही अभ्यासित न की जाएं तो वे ज़िद्दी हो जाती हैं। जैसे:

1.कपड़े पहनना जबकि अभ्यास से बहुत लोग बर्फ और तपती गर्मी में भी नग्न रहने में सफल हुए हैं। प्रारंभ में तो सब नग्न ही थे। गुप्तांग सबके होते हैं उनको खरोंच से बचाने का तर्क बेकार है क्योंकि तब आप झाड़ियों में घुसोगे ही नहीं।

2.चप्पल पहनना जबकि आदिवासी बिना चप्पल के ही पैरों को कठोर हो जाने देते हैं।

3.कमर-जांघ की मांसपेशियां का कठोर होना। अभ्यास से इनको तोड़ा और लचीला बनाया जा सकता है।

4.पका भोजन खाना और कच्चा खाने पर पेट दर्द होना। अभ्यास करके हम पेट को वापस मजबूत बना सकते हैं। किटाणु रहित करने के लिये पोटेशियम परमेगनेट से धुलें।

5.संस्कृति यानी जो बड़ों ने कहा उसे आंखें मीच के मान लेना। यह भी न सोचना कि क्या वह आपके समय और व्यक्तिव पर लागू होता है या नहीं।

6.धर्म यानि संस्कृति का मूल तत्व। इसी से प्रेरित होकर मानव खुद को दूसरे धर्म/संस्कृति से अलग दिखाने और खुद को श्रेष्ठ महसूस करने का एक आकर्षक प्रपंच रचता है। यह दूसरे धर्म के लिये नफरत की जड़ बनता है और अपने ही धर्म के लोगों का इसके ठेकेदार शोषण करते हैं। इसकी अच्छाइयों से धोखा न खाइए। इंसानों/पशुओं मे अच्छाई और बुराई के लिये सहानुभूति और सबक नाम का गुण होता है जो उसे भलाई/बुराई की समझ देता है। उदाहरण, सभी जंतु (गर्म खून) आग, गहरे पानी (जलचरों को छोड़ कर) और ऊंचाई (पक्षियों को छोड़ कर) से डरते हैं। यह उनको कोई सिखाता नहीं है।

7.संगत, यानी आपके आसपास के मित्र/सहयोगी/साथी/पड़ोसी रूपी परोक्ष/अपरोक्ष शिक्षक। जब भी हम 1 से अधिक लोगों को एक सा व्यवहार करते देखते हैं तो वह हमारे मन पर गहरा प्रभाव डालता है। हम उसे बिना परखे अपना लेते हैं क्योंकि हमें वह आज़माया हुआ नुस्खा लगता है। यही सही हो तो अच्छा इंसान और अगर गलत हो तो बुरे इंसांनो को जन्म देता है।

जिनकी इच्छाशक्ति प्रबल होती है और जो दूसरों को सर्वोच्च नहीं मानते बल्कि खुद ही फैसले लेने के लिये खतरे उठाते हैं वही दुनिया में नई बातों, सिद्धान्तों, आविष्कारों, कलाकृतियों, कलाओं और अन्य ऐसी ही नई विधाओं, सुविधाओं का सृजन करते हैं। यह लोग सही को अपनाते और गलत का सदुपयोग करते हैं।

ये किसी से नफ़रत नहीं करते बल्कि उनका कहां इस्तेमाल हो सकता है, यह देखते हैं। यही श्रेष्ठता है। यही मानव और जंतुजगत के अजूबे हैं। यही भावी एलियन हैं जो अभी से इसी पृथ्वी पर उपेक्षित जीवन जी रहे हैं, उनके द्वारा जो उनकी धूल बराबर भी नहीं हैं। फिर भी वे उनको प्रेम करते हैं। यही तो है उनकी true beauty!

Love them! They are all your true wellwishers! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Irriligious Free thinker 2019© 12:13 PM

शनिवार, जनवरी 26, 2019

सकारात्मक और नकारात्मक विचार

आप positive और निगेटिव को मुख्यधारा के विज्ञान से समझिये। इंटरनेट पर जो इस संदर्भ में ऊर्जा होने का उदाहरण देते हैं, कम्पन होने की कल्पना करते हैं; इस तरह के लिंक pseudoscience से प्रेरित कहलाते हैं। यानी सही बात को गलत तरह से जादू बना कर पेश करना। सच्चाई छिपाना।

Postive मतलब affermative वाक्य। अर्थात हर वह वाक्य जिसमें न, मत, मना, नहीं आदि शब्द अनुपस्थित होते हैं।

निगेटिव में यही शब्द होते हैं। बस यही होता है सोच का फर्क।

साथ ही लापरवाही भी पोसिटिव वाक्य में हो सकती है। इसलिये positive को हम प्रीवेंटिव शब्द से सपोर्ट करके शुद्ध करते हैं। यानी वह सकारात्मक सोच जो लापरवाही और असुरक्षा से ग्रस्त न हो वही सकारात्मक (positive) सोच है। इसमें कोई वाइब्रेशन या ऊर्जा नही होती है बस समझने के लिये और जादुई महसूस करने हेतु ऐसा बोला जाता है ताकि लोग इसकी ओर आकर्षित हो सकें।

बिल्कुल एक विज्ञापन की तरह जैसे निरमा साबुन में लड़कीं दिखाई जाती है लेकिन लेने जाओ तो सिर्फ साबुन मिलेगा। लड़की

 नही देंगे दुष्ट। समझ गए या और समझाएं? ~ Shubhanshu SC Vegan 2019©