Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, अप्रैल 12, 2019

मूर्खता के बदले मूर्खता यानि बुद्धिमानी? ~ Shubhanshu

जातिवाद के बदले जातिवाद? 

The great brahman vs the great chamar?

मतलब चुहियापन्ति के बदले चुहियापन्ति?

क्या चुहियापा है! वाह! कलेजा मुहँ को आ गया।

अरे कोई हग मारे तो आप उसके पास से हटने की जगह खुद भी हग मारोगे क्या?

एक अपनी जाति पर गर्व कर रहा है तो दूसरा उसे अनदेखा करने की जगह खुद भी वही करने लगे? फिर गलत कौन है कैसे पता चलेगा?

हम सब भारतवासी एक परिवार हैं। सभी भारतीय हैं। ये जातियां तो मन में हैं या संविधान में आपको दी गई बैसाखी है। लेकिन क्या आप खुद को लंगड़ा अपाहिज मानते हो? मानते हो कि आप हमेशा गरीब, लाचार, मंदबुद्धि और कमज़ोर ही रहोगे? राष्ट्रपति कोविंद जी को क्या अब आप दींन हीन मानोगे या कलाम साहब जिनको मुस्लिम आरक्षण प्राप्त था? ~ Vn. Shubhanshu SC 2019©

मंगलवार, अप्रैल 09, 2019

गरुणपुराण को जानने वालों से सवाल ~ Shubhanshu

आत्मा को मानने वाला व्यक्ति: भूत/पिशाच वे बुरी आत्मा हैं जिनकी अधूरी इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो यहीं रह गए।

शुभांशु धर्ममुक्त: 1. दुनिया में कौन है जिसकी समस्त इच्छाएं मरने तक पूर्ण हो गई हों?

2. ये किस नियम के आधार पर तय हुआ कि अधूरी इच्छा वाली आत्मा को स्वर्ग या नर्क नहीं भेजा जाएगा?

3. अधूरी इच्छा वाले भूत/पिशाच बुरे ही क्यों होते हैं? अच्छे क्यों नहीं?

4. अगर वे बुरे हैं तो ईश्वर/चित्रगुप्त/यमराज उनको ऐसे ही खुला क्यों छोड़े दे रहे हैं? इनको सज़ा क्यों नहीं देते?

5. क्या भूत बनने के लिये किसी को अपनी नई इच्छा पैदा कर लेना काफी नहीं होगा, मरते समय?

6. एक बार तय कर लो कि सिस्टम क्या है आप लोगों का? मरने के बाद आपकी आत्मा का क्या होता है? एक बार ढंग से कल्पना कर लो। ये बार बार बदलने वाली नोटंकी विज्ञान की होती है लेकिन आपका धर्म तो परफेक्ट है न? या ये भी जुमलागिरी है?

और चलते-चलते, आत्मा अच्छी बुरी हो ही नहीं सकती क्योकि अच्छा बुरा तो जीन होता है दिमाग का या वो आदतें जो इंसान सीखता है। वो सब यादें दिमाग नाम के उपकरण में जमा होता है जो कि आपकी कथित आत्मा में जा ही नहीं सकते। समझे या समझाऊँ? ~ Shubhanshu 2019© 1:35pm

गुरुवार, अप्रैल 04, 2019

राजनीति हटाओ लोकतंत्र लाओ ~ Shubhanshu

समय है बदलाव का
खुद को बर्बाद करना बंद करें

केवल प्रति नागरिक न्यूनतम आय नियम ही संभव है जो कि प्रति माह ₹10000.00 हो सकती है। इसका मतलब है ₹120000.00 प्रति वर्ष। यह नियम पहले से ही कई देशों में लागू है और भारतीय विद्वान इसे भारत में भी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं!

₹72000.00 या ₹1500000.00 का प्रलोभन सिर्फ आपकी भावनाओं के साथ मजाक है।

लेकिन डर्टी पॉलिटिशियन वोट हासिल करने के लिए अपने अनुसार अपने सही समय के लिए, अपने लाभों के लिए, इसका उपयोग करके इस परियोजना को देर से लागू करने की योजना बना रहे हैं।

क्यों राजनेता स्वेच्छा से नौकर बनने के लिये और खुद के प्रचार के लिए भारी धन खर्च करने को तैयार हैं? क्या वास्तव में हमें एक राजनेता की जरूरत है जो देश को बेहतर बनाने के लिए करों का प्रबंधन करे? वह करे जो लोग चाहते हैं या उन्हें हम पर शासन करने की आवश्यकता है? क्या यह उनकी चरम श्रद्धा और समर्पण है या खुद के लिए जीवन भर का आराम, सम्मान, कानून को अपनी जेब में रखने और व्यवस्था को अपने हिसाब से नियंत्रित करने और एक शासक के रूप में अपने स्वयं के विचारों को लागू करने के द्वारा लोकतंत्र को नष्ट कर देने का लालच है?

हर राजनेता द्वारा पहले वालों के समान वादे, जबकि वही समस्याएं उनकी सेवा अवधि खत्म होने के बाद भी बनी रहती हैं। क्या आप मूर्ख हो? या खुद को मूर्ख दिखाने की कोशिश कर रहे हैं?

इसके बारे में सोचो। वोट देना बंद करो, अपनी मेहनत की कमाई इन फालतू लोगों को देना बंद करो। अपने स्वयं के विभाग बनाइये, अपनी स्वयं की प्रणाली बनाइये, लोगों को उनकी पात्रता के आधार पर नियुक्त कीजिये और अपने देश का प्रबंधन स्वयं टीम बना कर कीजिये। देश बनाइये वैसा, जैसा आप चाहते हैं। यही सच्चा लोकतंत्र होगा। "राज़ करना या शासन करना" जैसे शब्द लोकतंत्र में अनुपस्थित हैं। यह केवल राजशाही से संबंधित शब्द और कार्य हैं। जहाँ केवल राज़ा की ही चलती है।

धन, धर्म, हवस, नशे आदि के लालच से मूर्ख मत बनो। मानवता के बारे में सोचो। राष्ट्र के बारे में सोचो और अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचो। आपका दिन मंगलमय हो! ~ शुभांशु सिंह चौहान 2019 ©

किसी के धर्म से नफरत न करें ~ Shubhanshu

सभी ऐसे व्यक्ति जो खुद को नास्तिक कहते हैं वे किसी भी धर्म मे खोट निकालना तुरन्त बन्द करें। हर दूसरा धर्म पहले की पोल खोल कर ही खुद को बड़ा बताता है। आपको किसी धर्म की आलोचना करने पर नास्तिक नही बल्कि दूसरे धर्म का एजेंट समझ लिया जाएगा जो कि स्वाभाविक और सही है।

आपका प्रमुख target god है न कि धर्म। कुछ धर्म मे तो god का कॉन्सेप्ट ही नही है। फिर?

यदि आप अब तक गलती से दूसरे धर्म का या अपने धर्म का मजाक उड़ा रहे थे तो सम्हल जाएं और अगर आप किसी धर्म को मानते हुए किसी अन्य की आलोचना कर रहे हैं तो कहने की आवश्यकता नही है कि आप उस धर्म के एजेंट हैं और अगले का अपने धर्म मे विश्वास जगाना चाहते हैं। ऐसे लोग खुद को नस्त्तिक के चोले से निकाल फेकें। असली नास्तिकों को बदनाम न करें।

सच्चा नस्त्तिक सिर्फ ईश्वर/गॉड/अल्लाह/रब आदि नामो से जाने जाने वाले 1 ही पात्र की आलोचना करता है और पोल पट्टी खोलता है। धर्म तो मान्यताएं हैं। गलत होंगी ही। धर्म की आलोचना करने से ईश्वर/god को कोई फर्क नही पड़ता। लोग आपके घण्टों समझाने के बाद बदले भी तो कोई दूसरा धर्म अपना लेंगे। ईश्वर का अन्धविश्वस वहीं का वहीं। परिणाम कुछ भी नही।

PS: कमाल तो ये है कि ईश्वर/गॉड/अल्लाह खत्म सब धर्म खत्म। पाखण्ड खत्म। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 4 अप्रैल 2017 9:18pm

बुधवार, अप्रैल 03, 2019

So do you still like politics? ~ Shubhanshu

Only Minimum income per citizen rule is possible which is 10000₹ per month. It means 120000₹ per year. This rule is already implemented on many countries and indian scholars are trying to insist it in india too! 

But Dirty Politicians are planning to make late this project by using it as for their benefits for their desirable right time to gain votes.

Why politicians are volunteering to be a servant with spending huge money to promote them? Are we need a politician to manage the taxes to improve the country by doing what people want or they need to rule upon us? Is it their extreme faith and dedication to help us or greed of lifetime leisure, respect, to control law and order for their sake and destroy the democracy by implementation of their own ideas as a ruler not a servant?

Same promises by every politician, same problems persists after their service period. Are you an idiot? Or trying to show yourself an idiot?

Think about it. Stop voting, stop giving your hard earned money to these fuckers. Make your own departments, your own system, hire people by their eligibility and manage your country as you want. That will be true democracy. The word "to rule" is absured in democracy. It is related only with Monarchy.

Don't be fooled by your own greed. Think about humanity. Think about nation and think about your future generations. Have a nice thoughtful day! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

रविवार, मार्च 31, 2019

प्यार बांटते चलो ~ Shubhanshu

शुभ: एक बार में सिर्फ एक के साथ ही सम्बन्ध क्यों रखूँ?

धार्मिक स्त्री: एक बार में एक को ही तो प्यार कर सकते हैं। 1 से ज्यादा में प्यार बंट जाएगा।

शुभ: क्या हम प्यार को बांटे बिना रह सकते हैं? यह बताओ, तुम्हें प्यार करूँ या अपने माता-पिता-भाई-बहन को भी?

धार्मिक स्त्री: अब वो तो...

शुभ: बच्चा तो नहीं पैदा करना है? क्योंकि फिर हमारा प्यार उसमें भी बंट जाएगा। 1 से ज्यादा बच्चे पैदा हुए तो प्यार के और भी टुकड़े होंगे। क्या प्यार बिना बंटे रह सकता है?

धार्मिक स्त्री: अब वो मैं...

शुभ: तुमको कुत्ता भी पालना है। उसकी भी बहुत परवाह है तुम्हें। उसने भी तुम्हारा और मेरा प्यार बाँट लिया। फिर तुम तो धार्मिक हो, ईश्वर को सबसे ज्यादा प्यार करती हो जैसे मीरा का श्याम। फिर मैं भी शिव और राम की भक्ति करूँ, फिर देश से भी प्रेम करूँ तो प्यार के कितने टुकड़े करूँ? और जब इतने टुकड़े करने ही हैं तो फिर ये सौत कह कर अपनी ही साथी और मेरी प्रेमिका का अपमान क्यों? क्या यह सिर्फ तुम्हारी सम्पत्ति पर एकछत्र कब्जे की गन्दी नियत नहीं है?

धार्मिक स्त्री: ओह! ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही न था। सॉरी शुभ। मुझे लोगों ने बुरा बना दिया था। अब मैं भी किसी को पसन्द करुँगी तो तुमको बता कर उसके साथ समय बिताउंगी। कोई समस्या तो नहीं?

शुभ: बिल्कुल! बात बराबरी की है तो रहेगी। बस कोई यौन गुप्त रोग मत ले आना। जैसे मैं प्रोटेक्शन रखना चाहता हूँ तुम भी रखना।

धार्मिक स्त्री: कौन हो आप गुरुदेव? मुझे जीत लिया आपने।

बातें बड़ी करते हैं लोग कि प्यार बांटते चलो लेकिन जब बांटने की बारी आती है तो नफरत से भर उठते हैं। ये कमिटमेंट करने की प्रथा खत्म करो। आप खुद को धोखा नहीं दे सकते। आपकी बायोलॉजी और कैमिस्ट्री ही ऐसी है कि एक ही व्यक्ति से जुड़ा नहीं रख सकती आपको। प्यार बांटने की चीज़ है। इसे बांटो। किसी को मना मत करो। सभी को अपना लो। सबको आत्मनिर्भर रखो। किसी का भार मत उठाओ। life एक है और इसे जीने का हक है सिर्फ आपका। 2019/03/31 15:17 ~ Shubhanshu 2019©

काहे का चुनाव? ~ Shubhanshu

मतदाता सिर्फ लालची है। उसे देश और देश के खजाने को संभालने वाले से कोई मतलब नहीं। अपने ही खजाने को दूसरे को देकर उससे कुछ सिक्के लेने की आशा ही चुनाव है। जो कि कभी पूरी होती ही नहीं। देश को अपने हाथों में लीजिये। किसी नेता को देश चलाने का हक मत दीजिये। सिस्टम बनाइये, विभाग बनाइये लेकिन नेता मत बनाइये। इनका कोई काम नहीं है, ये सिर्फ माल उड़ाने के लिए ही बीच में पड़े हुए हैं। सारी समस्या यही पैदा करते हैं। ये न हों तो देश विश्व पर राज करे। ~ Shubhanshu 2019©

रविवार, मार्च 24, 2019

धर्ममुक्त समाज यानि वर्जना मुक्त समाज ~ Shubhanshu

(धार्मिक दुनिया में)

स्थिति 1

पुरूष: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगी?

स्त्री: बचाओ! बचाओ! ये मेरा रेप कर रहा है।

पुरुष: अरे एक तो तमीज़ से पूछ रहा हूँ उस पर ऐसा आरोप?

लोग: मारो साले को। मार डालो साले को।


स्थिति 2

स्त्री: क्या आप मेरे साथ सेक्स करोगे?

पुरुष: कितने लोगी?

स्त्री: अरे पागल हो क्या? पैसे के लिये थोड़े ही पूछ रही हूँ।

पुरुष: फिर रहने दे। साला ज़रूर कोई लंगड़ है। एड्स है क्या? फ्री में कोई न आती ऐसे। अरे देखो कैसी हरामी लड़की है। साली चुड़ैल है ये तो। मुझे मारने आयी है। किसने भेजा तुझे?

लोग: साली रंडी, चुड़ैल। अरे जला दो इसे सब मिल कर।

सोचिये इस तरह के समाज में सेक्स सुलभ नहीं है तो बलात्कार करने के अवसर बढ़ेंगे ही क्योंकि सिर्फ व्यवस्था विवाह ही अगर सेक्स की सुलभता है तो क्या वह पूछने जैसा आसान है? क्या आप जिससे चाहें उससे खाली हाथ विवाह कर सकते हैं? क्या वह विवाह आपके चाहने भर से हो जाएगा? सोचिये ज़रा।

सज़ा देने से क्या लाभ उनको जो खुद ही सज़ा भोग रहे हैं अकेलेपन की और जिसे चाहते है उसे खोकर। जो बलात्कार करता है वह मर ही जाना चाहता है। उसे मार कर भी क्या बदलेगा? सोचिये ज़रा इस तरह भी। शायद कुछ बदलाव आये।

धर्ममुक्त समाज में कोई किसी के लिए नहीं तड़पेगा और न ही कभी बलात्कारी पैदा होंगे। सेक्स सबके लिए सुलभ होगा और उसे इतना ही जरूरी और सामान्य समझा जाएगा जैसे प्यासे के लिए जल का उपलब्ध होना। लिंगानुपात समान और टैबू खत्म होगा तो कुंठा जैसी भारी समस्या समाप्त हो जायेगी। ~Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2019©

शनिवार, मार्च 23, 2019

संघ में भर्ती होने गया शुभ ~ Shubhanshu

संघ: परीक्षा देनी होगी। ये बताओ जो मूर्ति हमने लगवाई है, सब थूक रहे। आपका क्या कहना है?

शुभ: 3000 करोड़ की चीन से डील करके बहुत बढ़िया कार्य किया गया है। चीन को इस मेहनत के लिए शत शत नमन। हमारी क्या औकात जो make in india कर सकें। हम कोई चीन से आगे थोड़े ही न हैं। 2 बार आक्रमण करके इस देश ने जो भी किया उसे 1 डील से भुलाने का बहुत शानदार कार्य किया गया है इसके लिए आपको भी शतशत नमन क्योकि आपकी ही एक शाखा राजनीति में इस समय सक्रिय है जिसके कर कमलों से महान वैज्ञानिक रिसर्च और प्रोजेक्ट्स को वित्तीय सुविधा देने के कार्य को रोक कर इस महान मूर्ति को प्राथमिकता दी गई। उसका बजट इसमें लगवा दिया इससे देश में विज्ञान की बातें करनी कम होंगी और धर्म से लोग ज्यादा जुड़ेंगे। साथ ही अगले सत्र के लिए सीट भी पक्की करनी है। क्रांतिकारी को सामने रखने से जनता इमोशनल flower बनके fool को वोट देगी और हम लोगो को वेतन मिलेगा। तो sir कैसा रहा मेरा विश्लेषण?

संघ: अरे, इसे कौन लाया था, उसे भेजो इधर? तुम जाओ बेटा। अभी जगह कम है यहाँ। फिर कभी try करना।

संघ में भर्ती हमारा दोस्त: जी सर, क्या हुआ? कोई समस्या?

संघ: देखो, अपना बोरिया बिस्तर लेकर निकल लो।

दोस्त: लेकिन sir ये तो भक्त है। इसने क्या गलत कह दिया भला?

संघ: देख बे, भक्त है मानते हैं। इसीलिए ज़िंदा भेज रहें हैं लेकिन हमें अंधभक्त चाहिए। समझा? ये तो साला सत्यवादी हरीशचंद्र का बाप लग रहा है। 2 मिनट पहले तो मैं अपना इस्तीफा तक देने की सोचने लगा था। फिर साला होश आया कि नहीं, ये साला कोई जादू कर रहा है हम पर। बस फिर क्या था हम फिर से संभल गए लेकिन बाकी लोगों की मुझे कल एक्स्ट्रा क्लास लेनी पड़ेगी क्योंकि साला आज हमारी कोई बात ही नहीं मान रहा है। कोई बोला कि बात तो सही कह रहा है लौंडा। गलती हुई है। हद हो गई यार। अब निकल बे। कोई और शाखा जॉइन कर ले। इधर मत आना तुम दोनों। खाल उतार के भूसा भरवा दूँगा। जय श्री आम। ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Vegan

रविवार, मार्च 17, 2019

धर्ममुक्त का अर्थ है Religion Free ~ Shubhanshu

मुझे लगता है नास्तिक शब्द अब पुराना हो चुका है। धर्ममुक्त से ही सब स्प्ष्ट हो जाता है कि कोई नाटक शेष नहीं है। हमने दरअसल युक्तिवाद का नाम ही बदल कर धर्ममुक्त रखा था क्योंकि कुछ आस्तिक इसका दुरूपयोग कर रहे थे और दूसरी तरफ नास्तिकता के नाम पर बौद्ध, जैन, tao, कन्फ्यूशियस जैसे धर्मों का प्रचार हो रहा था जोकि पाखण्ड (मूर्खता) से भरे पड़े हैं।

अभी भी धर्ममुक्त को लोग आस्तिक होने के साथ भी अपनाना समझते हैं जबकि ये युक्तिवाद ही है जिसमें इंसान स्वतन्त्र हो जाता है। धर्म का मतलब कोई गुण, रंग, या धारण करना कतई नहीं है। ये बहस करना शातिर मूर्खो द्वारा उलझाने की घटिया मानसिकता मात्र है। सभी जानते हैं कि धर्म का अनुवाद religion ही आता है और जिसे मजहब, सम्प्रदाय, पंथ आदि नामों से भी बुलाया जाता है। हम उसी पंजीकृत धर्मों की सूची की बात करते हैं। जिसमें 4200 औपचारिक धर्म शामिल हैं।

जब भी आपको कोई धर्म की तमाम परिभाषा बताने की कोशिश करे तो समझ लीजिये वह आपके खिलाफ है और आपको नीचा दिखाना चाहता है। उस से बहस न करें। वह जानबूझकर ही ये नाटक कर रहा है। एक बच्चे से भी पूछो कि उसका धर्म क्या है तो वह तुरंत बता देता है और ये कमबख्त झोपड़ी के हमें मूर्ख समझते हैं जो हमें धर्म समझाने चले आते हैं। 😬 गुर्रर! ~ Shubhanshu Singh Chauhan 2019© Cofounder of Dharmamukt Mission with late Sir Kashmir Singh Sagar.