Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, अगस्त 14, 2019

समझ गए तो life बदल जाएगी ~ Shubhanshu


मैं, जितना लिख सकता हूँ उससे ज्यादा बोल सकता हूँ, मैं जितना बोल सकता हूँ उससे ज्यादा पढ़ सकता हूँ, मैं जितना ज्यादा पढ़ सकता हूँ उससे क़हीं ज्यादा सोच सकता हूँ। इसलिये मैं न तो आपको यहां सब-कुछ बता सकता हूँ और न ही आप इतने छोटे माध्यम से मेरे सभी आविष्कारी उपायों (ideas) को जान सकते हैं। आप उतना ही जानते हैं जितना मैं लिख कर बताता हूँ। आप में से जो मेरे विचार नियमित पढ़ते हैं उनको पता है कि मैं आम इंसान भले ही हूँ लेकिन मेरी सोच आम नहीं है। ये सोच बहुत शक्तिशाली है। नई है और अदभुत है। रोमांचकारी है।

आप जो अपने आसपास देखते हैं वो सब पुराना है। एकदम बोरिंग उबाऊ। इस तरह का जीवन किस काम का? अव्वल तो आप सब में से अधिकतर परेशान रहते हैं क्योकि सुविधा नहीं है लेकिन जिन पर सुविधा है वे भी इसलिये परेशान हैं क्योंकि अब क्या करें? वही खाना, सोना, हगना, मूतना और जो सेक्स पार्टनर के साथ हैं उसके साथ बात करके कुछ समय निकाल देते हैं। कुछ चेतन भगत की तरह उपन्यास लिखते हैं और कुछ हैरी पॉटर की तरह। बाकी बस अपने मालिक के यहां गुलामी करके ही 75% दिन खर्च कर देते हैं।

सुविधा के लालच में कर्जा लेकर उसे चुका न पाने की जद्दोजहद में लगे हैं। जीवन सुख में न रह कर दुख में डूब गया। इनमें से 90% पारिवारिक व्यवस्था विवाह करके अपनी निजता का मजाक उड़ता देखते हैं। लोगों के कहने पर चलते हैं। उनको सन्तुष्ट करने में अपनी ज़िंदगी और खुशियाँ बर्बाद कर रहे हैं। बच्चों को जो कभी थे ही नहीं, पैदा करके उनको पीट रहे, सही परवरिश खुद को न मिली थी तो बच्चों को क्या देते?

स्कूल, कॉलेज और गली के गुंडे में से हर कोई उसे अपने हिसाब से चलाना चाहता है। परिणामस्वरूप बच्चा दोहरी ज़िन्दगी जीने लगता है। जैसे मैने भी जी। जो मैं था वह मेरे माता-पिता कभी नहीं जान पाए और न मेरे शिक्षक। इसी तरह सबका बच्चा अपने से बड़ों से अपनी असलियत छुपाता है। किसलिये? क्योकि उसे पता है कि जो उसे अच्छा लगता है, वह घर वाले और शिक्षकों को पसन्द नहीं। कभी-कभी जो शिक्षक को पसन्द है वो माता-पिता को नहीं और जो माता-पिता को पसंद है, वह शिक्षक को पसंद नहीं आता।

कुचल जाता है आपका बच्चा, इस तरह के चक्की के 2 पाटों में। हर कोई तो उसे रोक-टोक रहा है। बस इनके बीच में जो लोग हैं, वही उसे आज़ादी देते हैं। दोनो से। इसलिये आप कैसे भी माता-पिता हों, कैसे भी शिक्षक हों, वो सीखेगा किसी तीसरे से। वो तीसरा जो उसे बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। बनना या बिगड़ना भी निर्भर करता है आपकी सोच पर। हो सकता है कि जो बच्चा कुछ बन रहा है वो आपके लिए बिगड़ने के लक्षण हों और जो वो बिगड़ रहा है वो आपको राजा बच्चा लगे। सोच-सोच का फेर है।

भले ही सोच का फर्क लगे लेकिन हकीकत में सही और गलत, आपके लक्ष्य की सफलता पर निर्भर करता है। इसलिये परंपरागत सोच गई तेल लेने। परंपरागत सोच आपको एक बोरिंग लेकिन सुरक्षित जीवन देती है। इस तरह आपकी संतति यानि वंश बेल चलती रहती है। ये वंशबेल ही दरअसल परंपरा की जड़ है। अगर इसे खत्म कर दें तो क्या होगा?

वंशबेल खत्म तो परंपरा गई तेल लेने। परंपरा खत्म तो नई सोच शुरू। नई सोच शुरू तो खतरा शुरू। खतरा शुरू तो रोमांच शुरू। रोमांच शुरू तो जीवन महसूस होना शुरू। जीवन महसूस होना शुरू तो इसे खुले दिमाग से जीना शुरू। दुनिया बड़ी होना शुरू। रहस्य पता चलने शुरू। नए-नए कारनामे, खोज आपके नाम दर्ज होना शुरू। जो परंपरागत लोग आस-पास हैं, आप उनका दृष्टि केन्द्र बनना शुरू। आपको सम्मान मिलना शुरू। आपको अच्छा लगना शुरू। जीवन में अपने नाम कई आश्चर्य दर्ज करवाना शुरू। प्रसिद्ध होना शुरू और आपका मनोरंजक जीवन सुख से भरना शुरू। मृत्यु से बचने के लिए स्वस्थ रहने वाला जीवन जीना शुरू।

ये सब कैसे? सिर्फ परंपरा को खत्म करके। खतरा उठा कर। कौन सा खतरा? जो बस परंपरा मना करती है। ये कौन उठाएगा? जो बहादुर होगा। जिसकी फटती नहीं होगी। जिसको स्वाद से ज्यादा स्वास्थ्य की परवाह होगी। स्वास्थ्य कैसा जो खुद की जांच और कॉमन सेंस पर आधारित हो। इसके लिए जानवरो से प्रकृति के नियम सीखने होते हैं। खुद को खास प्रजाति नहीं समझना। सिर्फ खास व्यक्ति समझना।

इसमें क्या खास है? खास है क्योकि आप अब परंपरागत व्यक्ति नहीं रहे। आप अब खास हो। आपके जैसा या तो कोई नहीं या बहुत कम जो आपके साथी होंगे। मित्र होंगे। आपके साथ झगड़ेंगे नहीं। आपको प्रेम करेंगे क्योंकि न तो उनको अपने माता-पिता का डर होगा, न ही अपने बच्चे के रूप में कोई और तनाव, जो उनके प्यार, धन, समय और खुशियों पर ग्रहण लगा सके।

सोच की शक्ति तभी कार्य करती है, जब वो आज़ाद हो या उसे कोई सही रास्ता अपने जीवन से खोज कर बता सके। सोच की शक्ति तब और भी ज्यादा कार्य करती है जब आपकी इच्छाशक्ति आपकी अपनी होती है। आप सोचने लगते हैं, उस पर अमल करने लगते हैं। और ये रास्ता आपको ले जाता है बुलंदियों पर। जहाँ सिर्फ कुछ ही लोग होते हैं जो मेरे इस रहस्यमय लेख को समझ सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, अगस्त 12, 2019

दिमाग का प्रयोग क्यों? जब घुटना ज़िंदाबाद! ~ Shubhanshu


सोचने के लिए मस्तिष्क का इस्तेमाल नहीं करते लोग। घुटना ज़िंदाबाद।

ज़रा देखिये, ज्यादा गहराई में न जाएं तो जानवर और इंसान में अधिक समानता है या किसी मानव और गाजर/आम में?

इन विद्वानों को गाजर के कटने पर दर्द होता है या दर्द से बिल बिलाते खून की धार छोड़ते घायल पशु को देख कर?

अगर वनस्पति और इन विद्वानों की तुलना करेंगे तो पाएंगे कि दोनो में ही दिमाग नहीं है।

वनस्पति और जंतु समान हैं तो उनको अलग-अलग ब्रांच में क्यों रखा गया है? बॉटनी और जूलॉजी!

सारी दया मानवों पर दिखाने वाले विद्वान, पशुओं (उपभोक्ता) को नफरत से बेजान वस्तु की तरह देखते हैं जबकि हम अगर भोजन (फ्लोरा/वनस्पति/उत्पादक) को भोजन की तरह देखते हैं तो इन विद्वानों को आलू-प्याज को देख कर दया आने लगती है।

हम पशुओं को दुखी नहीं देख सकते क्योकि वे अपना भोजन खाते हैं जो उनके लिए बना है। मानव की तरह किसी से छीन कर, बंधक बना कर नहीं खाते।

हम मानव कब से उनसे अलग हो गए? जूलॉजी में मानव भी पशुओं के साथ रखा गया है। जबकि वनस्पतियों को भोजन के रूप में अलग वनस्पति विज्ञान में रखा गया है।

हम vegan लोग, मानव और पशुओं पर दया करते हैं लेकिन भोजन (वनस्पति/Flora) पर नहीं। क्यों?

इसका जवाब इसी बात में छुपा है कि हे सर्वाहारियो ये बताओ कि आप मानव पर दया करते हो लेकिन उसी वर्ग (fauna) के पशुओं पर नहीं? आखिर क्यों? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 09, 2019

चलो पूर्णता की ओर ~ Shubhanshu


दुनिया के सबसे अच्छे और कठिन कार्य:

1. विवाहमुक्त होना
2. बच्चामुक्त/वंशवाद मुक्त होना
3. नास्तिक/धर्ममुक्त होना
4. राजनीतिमुक्त होना
5. Vegan होना
6. जातिमुक्त होना
7. विनम्रतापूर्वक व्यवहारवादी होना
8. लिंगभेद मुक्त/समानता वादी होना
9. Vegan/Atheist Heterosexual होना
10. सिद्धान्त वादी होना
11. ईमानदार होना
12. ज़हरबुझा सत्यवादी होना
13. Polyamorus होना
14. नौकरी मुक्त होना
15. अच्छा लेखक होना
16. अच्छा कवि होना
17. अच्छा गीतकार होना
18. अच्छा संगीतकार होना
19. अच्छा आविष्कारक होना
20. अच्छा खोजी होना
21. अच्छा इंसान होना
22. अंतर्मुखी होना (स्वभाव)
23. वैज्ञानिक रूप से भविष्य का अनुमान लगाना
24. सकारात्मक (positive) होना
25. स्पष्टवादी होना
26. कानून के अतिरिक्त कोई व्यर्थ सामाजिक नियम न मानना
27. परंपरा और संस्कृति मुक्त रहना
28. विज्ञानवादी होना
29. तर्कवादी/युक्तिवादी/rationalist होना
30. मुक्तविचारक होना
31. गहरा सोच विचार करना/दूर की सोचना
32. उम्र की सीमा से परे विचार को महत्व देना
33. सिर्फ मित्रता को ही एकमात्र रिश्ता मानना
34. पशुओं और मनुष्य में फर्क न करना
35. समस्त जगत के लिए दया, करुणा, सहानुभूति व सम्मान से युक्त व्यक्ति होना

ये सब करने में मैंने अपनी सारी ताकत लगा दी और 95% सफल रहा। बाकी का परफेक्शन के लिए हमेशा अधूरा रहेगा। हमेशा और सुधार की गुंजाइश रखी जायेगी।

आप भी बताइये कि आप इनमें से क्या-क्या करने में सफल रहे और क्या करने की तैयारी में हैं? जो बन चुके उसका क्रमांक लिखिये। कुछ याद आया तो संख्या बढ़ेगी। आप याद दिलाइये जो मैं लिखने से चूक गया। ~ Vegan Shubhanshu SC Dharmamukt 2019©

धर्म का आविष्कार, विवाह संस्था/व्यवस्था है जातिवाद की जड़ ~ Shubhanshu



सोच के देखिये। कैसे नहीं होगा ये बताइये। विवाह के समय ही जाति देखी जाती है। इससे पहले जाति केवल विवाह न कर ले कोई हमारी लड़की से इसी डर से देखी जाती है।

विवाह जैसा टोटका न हो तो सब live in में रहेंगे घरवालों से अलग और कोई जाति नहीं देखेगा। जिससे प्रेम हो जाये उसी के साथ रहिये।

घर वाले जब जातिमुक्त सोच रखने लगें तो घर में भी सबको बता कर रह सकते हैं। तब तक उनको इस रिश्ते से अनजान ही रखें। अलग रहिये तब तक जब तक घर वाले भी आपके लिए न तरसें। वैसे ऐसा होता नहीं कि वे अपना जातिवाद छोड़ दें। अतः जातिवादी परिवार को यही कहिये कि विवाहमुक्त हैं आप।

ऐसा 3 पीढ़ियों तक होने दीजिये फिर कोई जातिवादी ही नहीं बचेगा। मैं तो कम से कम अपनी पीढ़ी तो जातिमुक्त कर ही जा रहा हूँ आप भी कीजिये। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, अगस्त 04, 2019

सोचिये आखिर क्यों? ~ Shubhanshu


रिहायशी ज़मीन में कोई पेड़ नहीं लगाने देता। ज़मीन खाली रखी जाती है। 1 इंसान विवाह करके अपनी पीढ़ी पैदा करता है और कई किलोमीटर ज़मीन को पेड़ों से रहित कर देता है। उसे घास की खेती करनी है, जानवर चराने हैं, बड़ा घर चाहिए ताकि पोते-पोती भी रह लें उधर ही। ऑफिस/फैक्टरी/शो रूम के लिए बड़ा ज़मीन का टुकड़ा चाहिए। उस पर भी पेड़ सिर्फ सजावटी लगायेगा क्योंकि फलों को तोड़ने के लिए लोग और जानवर चले आते हैं।

1 लड़का जो विवाह करता है, और एक लडकी जो बच्चा पैदा करती है, जानवरों और पेड़ों की कई पीढ़ियों को खत्म कर देती है। वे तो हमें ऑक्सीजन और पेड़ों को खाद व बीजों का प्रकीर्णन दे रहे हैं। हम इस प्रकृति को क्या दे रहे हैं? सिर्फ नफरत और विध्वंस।

फिर न कहना कि सर्दी ज्यादा क्यों? गर्मी ज्यादा क्यों? बरसात कम क्यों? सूखा क्यों? चक्रवात क्यों? भूकम्प क्यों? बाढ़ क्यों? गरीबी क्यों? अशिक्षा क्यों? बेरोजगारी क्यों? भूखे लोग क्यों? अपराध क्यों? लिंगानुपात में असंतुलन क्यों? भ्रूण हत्या क्यों? विवाह से नफरत क्यों? बच्चों के पैदा होने से नफ़रत क्यों? Veganism क्यों? और ये ज़हरबुझा सत्य क्यों? सोचो, आखिर क्यों? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 02, 2019

आइये आपको घास-फूस से मिलाएं ~ Shubhanshu


सर्वहारी (मांस प्रेमी): अबे, तू vegan है तो खाता क्या है? घास-फूस? मुझे तो बटर-चिकन, मटन, अंडा और मटर-पनीर पसन्द है।

Vegan शुभ: कढ़ाई में पके बिना आलू के vegan छोले, बिना दही वाले vegan भटूरे, बिना आलू के कढ़ाई में पके राजमा, कढ़ाई वाली तोरई, भिंडी, समूचे आलू की कुकर में पकी vegan सब्जी, आलू-मटर-टमाटर, टमाटर-आलू, सूखे आलू (आलू भुजिया), बैंगन का भरता, आलू-प्याज की कढ़ाई में बनी सब्जी, गाजर व मटर की सब्जी, कच्ची गाजर व मूली, मेथी, पालक, मूली का साग, भरवा टिंडे, फूलगोभी (कढ़ाई या कुकर), बंदगोभी, सेम, मशरूम-मटर, मूंग की दाल, अरहर की दाल, मसूर की दाल, चावल (भात), vegan बिरयानी, सोयाबीन की बड़ी, सौंफ-उड़द की कचौड़ी, आलू (खटाई के साथ) की कचौड़ी, आलू (खटाई के साथ) का पराठा, फूल गोभी का पराठा, मूली का पराठा, मूंगफली की चिक्की, बेसन का लड्डू, vegan समोसा, इमरती, गोलगप्पे (खट्टा पानी-कम मिर्च), बाजरे, बेसन, सोयाबीन मिश्रित आटे की रोटी, मैदे की रोटी, आटे की रोटी खाता हूँ बस मिर्च से परहेज है। सीधे खाने वाले फलों में आम, अंगूर, टमाटर, संतरा, किन्नू, सेब, अनार, केला, कीवी, स्ट्राबेरी, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, अमरूद, जामुन, फालसे, नींबू, अन्नानास, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती आदि। सूखे मेवों में काजू, किशमिश, बादाम, पिस्ता, चिरौंजी, खजूर, अखरोट, मखाने, भुनी मूंगफली आदि पसंद हैं।

सर्वहारी (मांस प्रेमी): अबे इतना कुछ खाते हैं vegan लोग? मुझे तो पता ही न था। हम तो बस 2-3 चीजों पर ही अटके रह गए।

Vegan शुभ: अरे ये तो जो याद है और पसंद है वो बताया है। खाने के लिए तो बहुत कुछ है जो बताते-बताते सुबह से शाम हो जाएगी। हमारे लिए भोजन की इतनी वैरायटी और फ्लेवर हैं कि एक बार में एक भी खाओ तो पूरी ज़िंदगी लग जायेगी और फिर भी कुछ न कुछ खाने से छूट जाएगा। जहाँ भी जानवर होते हैं वहाँ वनस्पति ज़रूर होती है। हम उस स्थिर वनस्पति को आराम से खा लेते हैं जबकि आपको अपनी जान खतरे में डाल कर अपनी जान बचा कर भागते जानवर को कमज़ोरी की हालत में पकड़ कर मारना पड़ेगा जो कि न सिर्फ थकाने वाला कार्य है बल्कि यदि जानवर ने आपको अपने सींगों पर रख लिया तो लेने के देने पड़ सकते हैं। बाकी सब ठीक है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, जुलाई 29, 2019

महिलाओं की धर्मांधता का राज़ ~ Shubhanshu

प्रश्न: महिलाओं को ही ज्यादातर धार्मिक आयोजनों में संलग्न देखा जाता है। यही सबसे ज्यादा पाखण्ड और धर्म की पूरक बन कर सामने आती हैं। ऐसा क्यों है?

उत्तर: आश्रित होने की सोच ने डराया हुआ है। समाज ये सोच थोपता है। बचपन से ही महिलाओं को ये सिखाया जाता है कि तुम कमज़ोर हो, ईश्वर सर्वशक्तिमान है। तुम मर्द से भी बहुत कमजोर हो। तुमको उसी के साथ जीवन गुजारना है। उसी की सेवा करनी है। वही तुम्हारी रक्षा करेगा, बाकी अन्य मर्दों से।

यह डर, परिवार और पति पर निर्भरता, और यदि ये न भी हों तो अपनी नौकरी/व्यवसाय में असफल हो जाने का डर क्योंकि उन्होंने अपारंपरिक कार्य करने का खतरा उठाया है जिसका विरोध समाज ही नहीं उनके व्यवसाय से जुड़ा हर मर्द करता है। साथी महिलाएं भी यही कहती हैं कि कोई आदमी ढूंढो, तुमसे ये काम न हो पायेगा। इस दशा में डरी हुई महिला अकेली पड़ जाती है। उसे कोई मार्शल आर्ट सीखने की सलाह नहीं देता, सेल्फडिफेंस के उपाय नहीं सुझाता। किसी तरह से वापस वह आम ग्रहणी बन जाये यही सिखाता है समाज। 

और जब वह ग्रहणी होती है तो वह बाहर रहने वाले पुरुष के प्रति सदा आतंकित रहती है कि कहीं वो मर न जाये। मर गया तो मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा? आज भी हम अदालत और फिल्मों में किसी को सज़ा देते समय यह रहम करते हैं कि बीवी बच्चों वाला आदमी है, इस पर रहम करो।

इस तरह हम साबित करते हैं कि आदमी ही महिला और बच्चों का संरक्षक और दाता है। इस दशा में महिला केवल ऊपरी शक्ति के भरोसे ही बैठ जाती है क्योंकि उसने अपने पंख तो विवाह करके कतर दिए होते हैं। जिनका विवाह नहीं हुआ वे करने के सपने देखती हैं। कम बदमाश पति मिले, इसकी ही कामना करना, उनका प्रमुख कार्य होता है ईश्वर से। शरीफ पति (मूर्ख) उनको वैसे भी पसंद नहीं आएगा और अधिक बदमाश भी क्योंकि वो जेल जा सकता है या मौत के मुहँ में।

दूसरी एक जड़ है समाज के साथ सामंजस्य बैठाना। जैसे जो कुछ भी और साथी कर रही हैं और उनके बीच यदि बैठना है तो उनका कहना मानना ही उन सभी पाखण्डों को बलपूर्वक करवाने जैसा है।

साथ ही एक दूसरे से सुनी हुई चमत्कारी कहानियों से भी पाखण्ड पर विश्वास जाग्रत हो जाता है। जैसे यदि ये सत्य नहीं है तो इतने लोग क्यों कर रहे? खुद को मूर्ख और झुंड को सही मानना ही दरअसल इस तरह की घटनाओं की पोषक बन जाता है। जबकि होना यह चाहिए कि आपको, "मैं भी सही सोच सकती हूँ", "मैं भी सही हो सकती हूँ", "बहुत से लोग गलत भी हो सकते हैं", ऐसा सोच विचार रखना चाहिए।

अधिकतर पुरुष ऐसी सोच के कारण ही अधिक तेजी से बदलाव ले आते हैं क्योंकि उन पर समाज ज्यादा बंदिशें नहीं लगाता और वे खुद को शक्तिशाली समझते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 3019©

गुरुवार, जुलाई 25, 2019

समाज का स्याह चेहरा ~ Shubhanshu


किसी महिला/लड़की का सेक्स टेप/क्लिप वायरल करना दरअसल एक सामाजिक (कु)रीति है। यह मासूम लोगों का कार्य नहीं है। इसके पीछे समाजिक कारण है। समाज के अनुसार लड़कियों की उत्तम ज़िंदगी विवाह करना ही है। इसके विपरीत मनमर्जी से अपना जीवन जीने वाली लड़की या वैश्या एक बर्बाद महिला को कहा जाता है। एक ऐसी महिला जो बेशर्म है और फिर भी अपना जीवन जी रही है। जबकि शरीफ महिला आत्महत्या कर लेगी, समाज ये मानता है।

उसकी नज़र में एक वैश्या, विवाह के बिना या विवाह के साथ (यदि पति सहमत न हो) पोर्न, सेक्स से जुड़ी होती है। यह पोर्न/सेक्स 'विवाह के इतर होना' दरअसल उससे उतपन्न बच्चों का धर्म, सम्पत्ति, वंश, नागरिकता, रंग, समुदाय, जाति से कट जाना है। समाज इन सबका समर्थक है और कमाल है कि इन्हीं रंगभेद, लिंगभेदी नफरतों के कारण ही खुला प्रेम और सेक्स बदनाम है। ये समाज सेक्स/सम्भोग का अर्थ बच्चे होना ही मानता है। भले ही अगला नसबन्दी कराए हुए ही क्यों न हो, कंडोम, पिल्स, डायफ्रॉम, पुल आउट आदि को तो छोड़ ही दीजिये।

समाज ने विवाह आपके लिए कभी नहीं बनाया, वो उसने अपने लिए बनाया और देखिये समाज को ही आपके विवाह की सबसे ज्यादा चिंता होगी। भले ही विवाह के बाद आप मरें या जियें, उनको आपके बच्चों की चिंता रहेगी कि वे पैदा हुए या नहीं। वे भी पैदा हो गए तो समाज का रंग एक दम बदल जायेगा। अब आप और आपका परिवार जाए भाड़ में, उनको अब कोई मतलब नहीं।

बच्चों के जवान होते ही समाज को पुनः आपके बच्चों की फिक्र होने लगेगी। अब वे आपको इनकी जल्दी से शादी करवाने को ज़ोर डालेंगे। आप इनकी बातों से डर कर अपने बच्चों पर विवाह का दबाव डालेंगे और फिर से वही होगा जो आपके साथ हुआ था।

दरअसल उनको अपने बच्चों के लिए लड़का और लड़की चाहिए, अपना वंश चलाने के लिए व सम्पत्ति के हस्तांतरण के लिए। इसलिये दूसरों का विवाह आवश्यक है। इसीलिये वे दूसरों के बच्चे देख कर खुश होते हैं और कोई कारण सीधे-सीधे नहीं है। यकीन न हो तो कभी इनके पालनपोषण की ज़िम्मेदारी उनको उठाने को कह कर देखिये। 😂

समाज को जाति/धर्म/रंग/स्थान/इतिहास/आपका स्टेटस देखना है तो विवाह के बिना कैसे दिखेगा ये? इसीलिये उसे 'विवाह के बिना सेक्स' को गलत साबित करना ही है। यदि साबित नहीं कर पाएगा तो वह मरे हुए (विभिन्न कारणों से) लावारिस बच्चों की फ़ोटो/विडियो दिखा कर आपको भड़कायेगा कि देखो प्रेम करने वालों की करतूत। पैदा करके फेंक देते हैं।

यही विवाह समर्थक (धार्मिक/वामपंथी दोनो इस स्थान पर समान हैं), यह नहीं बताते कि 9 माह तक वह कुँवारी (अविवाहित) लड़की अपना पेट और अपनी प्रसव पीड़ा कहाँ और कैसे छुपाती रही? (असम्भव परिस्थिति)

महिला को क्यों इतना दमित किया गया सेक्स पर? क्योंकि महिला बच्चा पैदा करती/कर सकती है। कुदरत के द्वारा बने कुदरती स्वभाव के कारण पुरुष इस ज़िम्मेदारी को उसी महिला पर छोड़ देता है। सदियों तक ऐसा ही चला और सभी जंतु ऐसे ही रहते हैं (एक पक्षी को छोड़ कर)।

लेकिन समाज ने विवाह संस्था को बनाये रखने के लिए महिला को इतना सताया कि वह बिना विवाह के जीवन की कल्पना भी नहीं कर पा रही। इसलिये वह सोचने लगी है कि सिंगल पेरेंट होना उसके लिए असम्भव है। (जबकि वर्तमान में विवाह के बाद भी करोड़ो लोग सिंगल पैरेंट हैं)।

इस दशा में जो भी कोई किसी महिला को open सेक्स करता पाता है तो उसे बर्बाद करके बाकियो के लिए वह उदाहरण सेट करता है। ताकि उसके घर की महिला कहीं 'विवाह से इतर सेक्स' करती न पकड़ी जाए।

इन सब गलत कार्यों जड़ ये विवाह संस्था ही है। ज़रा इसे हटा कर देखिये। छेड़छाड़, वीडियो वायरल करना, शर्म से आत्महत्या, ऑनर किलिंग, वैश्या और सेक्स जैसे taboo गायब हो जाते हैं। एक भव्य, सुंदर समाज दिखने लगता है जहाँ लोग स्वयं अपनी ज़िंदगी को आज़ादी और ज़िम्मेदारी से जीते नज़र आते हैं। शायद मेरी तरह! 😊 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शनिवार, जुलाई 06, 2019

चलो भीड़ बढ़ाएं सनम! ~ Shubhanshu

Natalist (breeder): अपने आप को जारी रखने की नैसर्गिक इच्छा से संतान पैदा करते हैं!

दरअसल, यह प्रकृति ही है, जो #एकोsहं_बहुस्याम: के महत् उद्देश्य से जीवों का विस्तार करती रहती है! 

हम तो प्रकृति की #सृजन_फैक्टरी के #जॉब_वर्कर हैं, जो सैक्स-आनंद और वात्सल्य-सुख जैसे #इन्सेंटिव (प्रोत्साहन)  लेकर प्रकृति का #जॉब_वर्क करते हैं! 

हम तो दिन अस्त,  मजूर मस्त वाली भूमिका में है! 
सृजन-फैक्टरी, माल और फिनिश्ड गुड्स की मालकिन प्रकृति ही है! 

यह प्रकृति ही है, जिसने खुशबूदार परागयुक्त फूल (मादाएं) पैदा की हैं, और उसी ने  पराग वाले फूलों पर मंडराने वाले #भ्रमर पैदा किये है!

प्रकृति ने ही मादा में सारा वसंत उडेल दिया है और उसी ने भ्रमर में फूल-फूल पर मंडराने की #भूख भरी है!

Shubh: अहा! क्या सुंदर बगीचा खिला है हवाई पुलाव का! अतिसुन्दर! अहो भाग्य! जय बच्चा पार्टी। 😂😂😂

ये कोई नई बात नहीं है। आपको जबरन वो कार्य करने को क्यों कहा जा रहा है जो आप खुद करने को मरे जा रहे हैं? सेक्स किया नहीं कि बच्चा अंदर से हैलो डैड/माँ बोलने लगता है। फिर भी सामाजिक दबाव क्यों? दरअसल कोई बच्चा पैदा करना ही नहीं चाहता। जाकर देखिये कितना बिकता है गर्भनिरोधक। इतना कि आप सोच भी नहीं सकते। बाकी मैथुन भंग करके बच्चा होने से रोकते हैं।

इसीलिये समाज (प्रायः धार्मिक) आपसे जबरन बच्चे पैदा करवाना चाहता है। दरअसल विवाह संस्था को बचाना है। सरकार भी यही कह रही कि चाहें पति कितना भी बलात्कार करे, न तलाक हो और न ही उसे कोई सज़ा। यकीन न हो तो चेक कर लें। खुद जांचना है? बिना विवाह के मिठाई बांटो, बच्चा होने की। पता चल जाएगा कि समाज कितना प्रसन्न होता है। और यही 'विवाह कर लिया है' कह कर देखना साथ में। तब देखना, कितना फूले नहीं समाते लोग। दरअसल उनको आपके बच्चे से मतलब नहीं है। होता, तो उनको क्या मतलब कि यह विवाह का परिणाम है या सेक्स का? साथ ही वे उसके पालनपोषण का खर्च भी उठाते मिल कर। लेकिन नहीं। सब चाल है। समाजिक मनोरोग है ये।

Natalist मनोरोग से पीड़ित लोगों को लगता है कि वे पृथ्वी पर आखिरी मानव बचे हैं। इसी मनोरोग को natalism कहा जाता है। इसे भुनाने हेतु वह रंगीन कल्पनाएं गढ़ लेते हैं। इनको न तो दुनिया का कोई ज्ञान होता है और न ही इतनी समझ कि उनके पैदा हुए बच्चों का असल भविष्य क्या होगा और इस पृथ्वी के पर्यावरण, सीमित संसाधन (जल, जंगल, भोजन और ज़मीन) का वह क्या हाल करेगा? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

मूर्ख समझा है क्या? ~ Shubhanshu



मेरे पैदा होने बाद मुझे जो सबसे पहले बनने का विचार आया था, वह था आविष्कारक, वैज्ञानिक और लेखक बनने का।

बड़ा हुआ तो पता चला कि इनकी कोई वैल्यू ही नहीं है इस समाज में। डॉक्टर, इंजीनियर, बैंक PO, IAS, PCS बस यही सबकुछ है।

लेखन, आविष्कार, विज्ञान, इसमें फेमस भी वही होता है जो खुद ही अपने पर्चे बांटे। जो खुद का ही प्रचार करे। इधर खाने को लाल पड़े थे और हम लड्डू बांटे?

हटा सावन की घटा। बन तो मैं दोनो गया, कब का, लेकिन भाड़ में जाएं दुनिया वाले। जब बन रहा था, तब तो जूते मारे, गालियां दीं, अपमान किया और परेशान किया।

मुझे आपका असली चेहरा दिखा और मैं आप की दुनिया से दूर होता गया। अब अकेला करने के बाद, मेरा दिल, हिम्मत और उम्मीदें तोड़ने के बाद भी, साथ दूँ? आपका? चूतिया समझा है क्या?

ये तो वही बात हुई कि तुम सबसे विद्रोह करके तुम्हारे लिए खाना बनाऊं और तुमसे ही पिट कर, मार ख़ाकर तुमको अपने हाथों से खिलाऊं? मेरे को मूर्खता के कीड़े ने अभी न काटा है...

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा जा बे, फूट बे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©