मैं, जितना लिख सकता हूँ उससे ज्यादा बोल सकता हूँ, मैं जितना बोल सकता हूँ उससे ज्यादा पढ़ सकता हूँ, मैं जितना ज्यादा पढ़ सकता हूँ उससे क़हीं ज्यादा सोच सकता हूँ। इसलिये मैं न तो आपको यहां सब-कुछ बता सकता हूँ और न ही आप इतने छोटे माध्यम से मेरे सभी आविष्कारी उपायों (ideas) को जान सकते हैं। आप उतना ही जानते हैं जितना मैं लिख कर बताता हूँ। आप में से जो मेरे विचार नियमित पढ़ते हैं उनको पता है कि मैं आम इंसान भले ही हूँ लेकिन मेरी सोच आम नहीं है। ये सोच बहुत शक्तिशाली है। नई है और अदभुत है। रोमांचकारी है।
आप जो अपने आसपास देखते हैं वो सब पुराना है। एकदम बोरिंग उबाऊ। इस तरह का जीवन किस काम का? अव्वल तो आप सब में से अधिकतर परेशान रहते हैं क्योकि सुविधा नहीं है लेकिन जिन पर सुविधा है वे भी इसलिये परेशान हैं क्योंकि अब क्या करें? वही खाना, सोना, हगना, मूतना और जो सेक्स पार्टनर के साथ हैं उसके साथ बात करके कुछ समय निकाल देते हैं। कुछ चेतन भगत की तरह उपन्यास लिखते हैं और कुछ हैरी पॉटर की तरह। बाकी बस अपने मालिक के यहां गुलामी करके ही 75% दिन खर्च कर देते हैं।
सुविधा के लालच में कर्जा लेकर उसे चुका न पाने की जद्दोजहद में लगे हैं। जीवन सुख में न रह कर दुख में डूब गया। इनमें से 90% पारिवारिक व्यवस्था विवाह करके अपनी निजता का मजाक उड़ता देखते हैं। लोगों के कहने पर चलते हैं। उनको सन्तुष्ट करने में अपनी ज़िंदगी और खुशियाँ बर्बाद कर रहे हैं। बच्चों को जो कभी थे ही नहीं, पैदा करके उनको पीट रहे, सही परवरिश खुद को न मिली थी तो बच्चों को क्या देते?
स्कूल, कॉलेज और गली के गुंडे में से हर कोई उसे अपने हिसाब से चलाना चाहता है। परिणामस्वरूप बच्चा दोहरी ज़िन्दगी जीने लगता है। जैसे मैने भी जी। जो मैं था वह मेरे माता-पिता कभी नहीं जान पाए और न मेरे शिक्षक। इसी तरह सबका बच्चा अपने से बड़ों से अपनी असलियत छुपाता है। किसलिये? क्योकि उसे पता है कि जो उसे अच्छा लगता है, वह घर वाले और शिक्षकों को पसन्द नहीं। कभी-कभी जो शिक्षक को पसन्द है वो माता-पिता को नहीं और जो माता-पिता को पसंद है, वह शिक्षक को पसंद नहीं आता।
कुचल जाता है आपका बच्चा, इस तरह के चक्की के 2 पाटों में। हर कोई तो उसे रोक-टोक रहा है। बस इनके बीच में जो लोग हैं, वही उसे आज़ादी देते हैं। दोनो से। इसलिये आप कैसे भी माता-पिता हों, कैसे भी शिक्षक हों, वो सीखेगा किसी तीसरे से। वो तीसरा जो उसे बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। बनना या बिगड़ना भी निर्भर करता है आपकी सोच पर। हो सकता है कि जो बच्चा कुछ बन रहा है वो आपके लिए बिगड़ने के लक्षण हों और जो वो बिगड़ रहा है वो आपको राजा बच्चा लगे। सोच-सोच का फेर है।
भले ही सोच का फर्क लगे लेकिन हकीकत में सही और गलत, आपके लक्ष्य की सफलता पर निर्भर करता है। इसलिये परंपरागत सोच गई तेल लेने। परंपरागत सोच आपको एक बोरिंग लेकिन सुरक्षित जीवन देती है। इस तरह आपकी संतति यानि वंश बेल चलती रहती है। ये वंशबेल ही दरअसल परंपरा की जड़ है। अगर इसे खत्म कर दें तो क्या होगा?
वंशबेल खत्म तो परंपरा गई तेल लेने। परंपरा खत्म तो नई सोच शुरू। नई सोच शुरू तो खतरा शुरू। खतरा शुरू तो रोमांच शुरू। रोमांच शुरू तो जीवन महसूस होना शुरू। जीवन महसूस होना शुरू तो इसे खुले दिमाग से जीना शुरू। दुनिया बड़ी होना शुरू। रहस्य पता चलने शुरू। नए-नए कारनामे, खोज आपके नाम दर्ज होना शुरू। जो परंपरागत लोग आस-पास हैं, आप उनका दृष्टि केन्द्र बनना शुरू। आपको सम्मान मिलना शुरू। आपको अच्छा लगना शुरू। जीवन में अपने नाम कई आश्चर्य दर्ज करवाना शुरू। प्रसिद्ध होना शुरू और आपका मनोरंजक जीवन सुख से भरना शुरू। मृत्यु से बचने के लिए स्वस्थ रहने वाला जीवन जीना शुरू।
ये सब कैसे? सिर्फ परंपरा को खत्म करके। खतरा उठा कर। कौन सा खतरा? जो बस परंपरा मना करती है। ये कौन उठाएगा? जो बहादुर होगा। जिसकी फटती नहीं होगी। जिसको स्वाद से ज्यादा स्वास्थ्य की परवाह होगी। स्वास्थ्य कैसा जो खुद की जांच और कॉमन सेंस पर आधारित हो। इसके लिए जानवरो से प्रकृति के नियम सीखने होते हैं। खुद को खास प्रजाति नहीं समझना। सिर्फ खास व्यक्ति समझना।
इसमें क्या खास है? खास है क्योकि आप अब परंपरागत व्यक्ति नहीं रहे। आप अब खास हो। आपके जैसा या तो कोई नहीं या बहुत कम जो आपके साथी होंगे। मित्र होंगे। आपके साथ झगड़ेंगे नहीं। आपको प्रेम करेंगे क्योंकि न तो उनको अपने माता-पिता का डर होगा, न ही अपने बच्चे के रूप में कोई और तनाव, जो उनके प्यार, धन, समय और खुशियों पर ग्रहण लगा सके।
सोच की शक्ति तभी कार्य करती है, जब वो आज़ाद हो या उसे कोई सही रास्ता अपने जीवन से खोज कर बता सके। सोच की शक्ति तब और भी ज्यादा कार्य करती है जब आपकी इच्छाशक्ति आपकी अपनी होती है। आप सोचने लगते हैं, उस पर अमल करने लगते हैं। और ये रास्ता आपको ले जाता है बुलंदियों पर। जहाँ सिर्फ कुछ ही लोग होते हैं जो मेरे इस रहस्यमय लेख को समझ सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©