Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, सितंबर 06, 2019

कोई भी perfect हो सकता है, लेकिन... ~ Shubhanshu


"कोई भी परफेक्ट नहीं होता।" एक नकारात्मक वाक्य है लेकिन दरअसल इसे जल्दबाजी में नकारात्मक लोगों ने इस तरह से कहा है। यह एक पॉजिटिव बात है लेकिन लोग इसे पॉजिटिव way में नहीं कहते क्योंकि उनको "नहीं" सुनने की पुरानी आदत है। क्या आपने बचपन से अपनी 99% फरमाइशों को अगले का "नहीं" सुन कर दफन नहीं किया?

सही वाक्य होता है, "कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये।" अब इस वाक्य ने पिछले वाक्य के सामान्तर बात कही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है लेकिन इस बार, सकारात्मक तरीके से। इस सब को समझने के लिये पॉजिटिव दिमाग का होना अत्यंत आवश्यक है।

देखिये, कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये। जैसे, यदि कोई अपने आप को कहे कि वह परफेक्ट है (परफेक्ट में कोई और परिवर्तन नहीं किया जा सकता) तो हम उससे कहेंगे कि कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन अस्थायी समय के लिये।

अब वह सोचेगा कि मतलब, "यह पूर्णता (perfection) अस्थायी है।" अगर कोई केवल अस्थायी समय के लिए परफेक्ट हो सकता है तो मेरा लगातार परफेक्ट बने रहना असम्भव है। अतः मुझे और सुधार करते रहने होंगे।

इस सोच में लोगों ने "और सुधार सम्भव है।" कहने के स्थान पर कह दिया कि "Perfection संभव नहीं है।" नकारात्मक कहने-सुनने की पुरानी आदत के कारण। 

इस बात को इस तरह समझ सकते हैं कि अगर वास्तव में कोई थोड़े समय के लिये भी परफेक्ट "नहीं" होता तो यह शब्द अस्तित्व में ही "नहीं" होता और हम किसी कार, मोटरसाइकिल, लडकी, लड़का, मकान, तस्वीर, फ़िल्म को देख कर खुशी से "परफेक्ट" नहीं कह पाते।

परफेक्शन हमारे किसी चीज या कार्य को, अधिकतम जानकारी के हिसाब से, बेहतरी के अभ्यास से, कुछ समय के लिये, आ सकता है लेकिन जल्द ही कोई, उससे ज्यादा अभ्यास करके, उससे बेहतर, नया व अस्थाई, परफेक्ट उदाहरण ला सकता है। अतः यह समय पर और काबिलियत पर आधारित एक अस्थायी स्थिति है।

किसी के लिये वह उदाहरण अत्यधिक उपयोगी होने के कारण, उस समय परफेक्ट लग सकता है लेकिन जो उससे ज्यादा की आशा रखता है, उसके लिए वह सदा imperfect ही रहेगा।

ये बात आपको मेरे अलावा कोई व्यक्ति बताया हो, तो बताना। मेरा यह विश्लेषण कितना परफेक्ट है? ये आप के हिसाब से तय होगा। अतः आप में से कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिये! 😊 ~ Dharmamukt Shubhanshu

गुरुवार, सितंबर 05, 2019

Demonetization क्यों? ~ Shubhanshu


प्रश्न: 2000 का नोट क्यों आया?

शुभ: कॉमन सेंस है कि पेपर और छपाई का 50% खर्च बचाने के लिये। बैंक में जगह कम घिरे इसलिये भी। साथ ही लाने ले जाने का भाड़ा कम हो। हमको भी अब बटुए में 50% कम करेंसी रखनी पड़ेगी।

प्रश्न: 1000 और 500 के नोट ही पहले बन्द क्यों किये गए?

शुभ: इन्हीं नोटों में ज्यादा सुरक्षा खामियां थीं और उनकी कॉपी पाकिस्तान और चीन बना कर भारत भेज रहा था। उस समय तक यही सबसे बड़े नोट थे इसलिये इनकी ही ज्यादा स्मगलिंग होती थी।

प्रश्न: Demonetization का कारण क्या था?

शुभ: वही, नकली नोटों और अवैध कमाई वालों के कब्जे से धन बाहर निकलवाना जो कि बैंक में न जाकर कहीं भण्डारित कर लिए गए या नष्ट कर दिए गए। हर एक निश्चित अंतराल पर नोटों की डिजाइन और कलर बदलना एक सुरक्षा नीति है ताकि पुराने नोटों को नष्ट करने पर देश की अर्थव्यवस्था पर आंच न आये। हर note रिज़र्व बैंक की सम्पत्ति है। उसे नष्ट करना सीधे अपराध तथा अधिक समय तक चलन में न रखना यानि खर्च न करना एक नैतिक अपराध है। उसे बैंक में जमा करने से वह मॉनिटर होता है और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। बदले में आपको ब्याज भी मिलता है और घर के पास ही शॉपिंग व ATM से कैश निकालने हेतु एक डेबिट कार्ड भी मिलता है।

कम धन रखने वालों के लिए बेसिक सेविंग अकाउंट होता है। जो कि बिना किसी फीस के चला सकते हैं। Atm कार्ड भी फ्री मिलेगा।

एक दम से बन्द करने और 250000 प्रति 3 माह की लिमिट लगाने पर जिनके पास  काला धन था वे सब भी पकड़ में आ गए। 1 वर्ष तक का समय दिया गया था नोट बदलने के लिए। फिर भी इस छूट का फायदा उठा कर धोखाधड़ी करके जनता ने धन को सफेद करवा लिया।

इसी कारण अचानक गरीब जनधन खाते 250000 रुपए से भर गए थे। दरअसल इन बेइमान लोगों ने इन गरीबों से साठगांठ करके रुपये इनके नाम से जमा करवा के निकाल लिए। इस तरह अधिकतर काला धन पकड़ में न आ सका। फिर भी 10700 करोड़ रुपया वापस नहीं लौटा इसका मतलब था कि इतना धन जला दिया गया था या गायब हो चुका था चलन से।

इस तरह रिज़र्व बैंक ने 10700 करोड़ रुपए की कमाई करी इस प्रक्रिया से। यह अतिरिक्त धन देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचा करने में काम आया।

प्रश्न: आप मोदी भक्त हो क्या?
शुभ: सही पकड़े, अंधभक्त! 💐 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

मंगलवार, सितंबर 03, 2019

साम्यवादी क्रांति योजना ~ Shubhanshu


कम्युनिस्ट्स की क्रांति:

1. मजदूरों को लाभ में हिस्से का लालच दीजिये।

2. उनको असंतुष्ट होने का आभास दिलाओ और हड़ताल करवाओ।

3. मांग पूरी न होने पर सभी मजदूरों को अमीरों के प्रति "मालिक मजदूरों पर निर्भर हैं" कह कर भड़काओ। (जबकि यदि मजदूर रोज कमाते खाते है तो वे हड़ताल के दौरान धन कहां से लाते हैं? यह सवाल उनके गरीब होने पर प्रश्न खड़े करता है।)

4. सारे देश में मजदूरों को अमीरों के प्रति नफरत से भर दीजिये।

5. सारे मजदूरों को इकट्ठा करके उनको हथियार देकर अमीरों की हत्या करने के लिए छोड़ दीजिये।

6. कानून सबको गोलियों से भून देगा और उन लाशों के ढेर पर खड़े होकर बचे हुए मजदूरों को भड़काओ कि ये सब कानून वाले अमीरों के चाटुकार हैं। इन्होंने बेगुनाहों को मारा है जो बुरे परजीवियों को मार आये थे। इनको गोरिल्ला युद्ध में मारो और हथियार लूटो। (इस समय यही किया जा रहा है नक्सलियों द्वारा)।

7. आखिरकार सब मजदूर मर जाएंगे और फिर ये साम्यवाद का तरीका ठीक नहीं है कह कर आंदोलन खत्म करो। और दोबारा से नए मजदूरों को भड़काओ।

लाभ: इनके सरगना जितना भी लूट सकेंगे वो तो मिल ही जाएगा। लूट का माल जमा करने वाला मजे लेगा उससे और मजदूरों को घरों में घुस कर बलात्कार करने का मौका दिया जाएगा लोगों की महिलाओं से। मजदूर इसी बात से खुश हो जाएंगे। इस तरह ये एक प्रकार का बस हत्याकांड और लूटपाट और बालत्कार का प्लान है और कुछ नहीं। इसका जितना आप अभी विरोध करेंगे उतना ही आपके घर, सम्पत्ति, महिलाएं, बच्चे , बुजुर्ग और परिवार सुरक्षित रहेंगे।

सोमवार, सितंबर 02, 2019

महापुरुषों के प्रति मेरे विचार ~ Shubhanshu


0. थॉमस एडिसन का बार-बार प्रयास करने और असफलता से भी सीखने का साकारात्मक पक्ष (अहंकारी पक्ष नहीं)।

1. भीम राव राम जी अंबेडकर का लोकतांत्रिक व अंधविश्वास विरोधी पक्ष (राजनैतिक व धार्मिक नहीं)।

2. तथागत गौतम बुद्ध का नास्तिक, अहिंसा व स्वयंगुरु पक्ष (आध्यात्मिक, बोधिसत्व, पुनर्जन्म व निर्वाण पक्ष नहीं)।

3. कार्ल मार्क्स, लेलिन व भगत सिंह का नास्तिक पक्ष (साम्यवादी व हिंसात्मक पक्ष नहीं)।

4. मोहन दास करमचंद गांधी का अहिंसा पक्ष (आस्तिक व राजनैतिक पक्ष नहीं)।

5. रजनीश ओशो का अधार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तर्कवादी पक्ष (आध्यात्मिक पक्ष नहीं)

ये मेरे महापुरुषों के प्रति विचार हैं, जो कि मुझे किसी को भी सर्वेसर्वा घोषित करके पूजा करने व भक्त बनने से रोकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, अगस्त 29, 2019

आदिवासी, भूमाफिया और सरकार ~ Shubhanshu


आदिवासियों को भड़काना बेहद आसान है। वे अनपढ़ हैं, अतः उनको केवल पुरानी बातें ही समझ आती हैं। भूमाफिया दरअसल नक्सलियों को हाइजैक कर चुके हैं और उनके ज़रिए आदिवासी समुदाय को खत्म कर रहे हैं। ये कथित नक्सली दरअसल भारतीय सेना की वर्दी पहन कर आदिवासियों को ही मारते हैं व उनकी महिलाओं से बलात्कार करते हैं।

इनसे बचाने के लिए ही सरकार ने सुरक्षा बलों को आदिवासियों के बीच भेजा और उनको वहां से निकाला ताकि वे भूमाफियाओं द्वारा मारे न जाएं। संसाधनों पर अवैध कब्जा न हो इसके लिए सरकार ने आदिवासियों का पुनर्वास करवाया और उनको पहले से बेहतर रहने का स्थान दिया। इससे वे मुख्य धारा में भी आ गए और सरकार को आर्थिक मदद भी मिल गयी जो देश हित में सबके काम आएगी। वैध खनन के लिए सरकार टेंडर प्रकाशित करती है जो कि सक्षम पूंजीपति स्वीकार करते हैं और सरकार से करार करके आर्थिक मदद प्रदान करते हैं। इससे देश का विकास करना सम्भव हो जाता है। जिन वनों को काटा जाता है उनको दरअसल वृक्षारोपण द्वारा स्थान्तरित कर दिया जाता है अन्य स्थान पर, जहां मानव आबादी कम होती है। इस व्यवस्था की ज़िम्मेदारी पर्यावरण मंत्रालय लेता है।

कथित नक्सली हमलों में भारतीय सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध में धोखे से सोते समय मार दिया जाता है। उनकी वर्दियो को ये चुरा लेते हैं और इसी वर्दी से सारा इल्जाम सेना पर लगता है। केवल इस सेना के अपमान से ही त्रस्त आकर एक अफसर ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए थे इसकी जांच अभी न्यायालय में चल रही है। बाकी सब के सुबूत मैंने पोस्ट कर रखे हैं ज़हरबुझा सत्य पेज पर समाचार के लिंक के रूप में।

चारु मजूमदार का शुरू किया गया नक्सली आंदोलन उनकी आत्महत्या के साथ ही खत्म हो गया था। अपने आंदोलन का लुटेरा और भाड़े का हत्यारा वाला रूप देख कर इन्होंने आत्महत्या कर ली थी। संदर्भ: विकिपीडिया

इस समय जो लोग सैनिकों और आदिवासियों, दोनो को मार रहे हैं, वे दरअसल भूमाफिया द्वारा दिये गए हथियारों से लैस हैं। गलतफहमी और भ्रम फैलाने का यह नियम माओवाद के सीक्रेट डॉक्यूमेंट में दिया गया है। इसके अनुसार सरकार के प्रति इतनी गलतफहमी और नफरत पैदा कर दो कि निचले स्तर का हर मजदूर/व्यक्ति हथियार की मांग करे। यथास्थिति उनके बच्चों को मार देना या बच्चों के माता पिता को मार देना। और इल्जाम सरकार पर लगाना ताकि बदला लेने के लिये उनके रिश्तेदार तैयार हो जाएं। उनको हथियार देने का सही समय यही होगा।

उनको अकुशल रहने देना। ताकि सेना के सामने वे ज्यादा देर टिक न सकें। इससे सेना पर बच्चों को मारने का आरोप आ जायेगा। जब हथियार सहित सरकार उनके फ़ोटो प्रकाशित करे तो उस बात को अपने पक्ष में करना। ये कह कर कि आदिवासी बच्चों को मार कर सरकार ने हथियार उनके साथ रख दिये। जबकि सरकार तो तटस्थ होती है फिर भी जिंनके घर वाले मारे गए वे सिर्फ तुम्हे अपना हमदर्द समझेंगे।

इसी रणनीति से हम सभी संपत्तियों (जल, जंगल, ज़मीन) पर कब्जा कर लेंगे। वैसे ही जैसे रूस की क्रांति में किया गया था। बिना कत्ल किये किसी की सम्पत्ति हथियाना सम्भव नहीं है। क्रांति हिंसा से ही आ सकती है ये नारा दरअसल हमारे फायदे के लिये बनाया गया है। ऐसा करके ही हम लोगों की संख्या कम करेंगे और संसाधनों पर कब्जा करके सुखी जीवन जिएंगे। जो सपना उनको दिखाया जाएगा वो सिर्फ मृगमरीचिका ही है। फायदा सिर्फ हम भूमाफिया को है।

उपरोक्त निष्कर्ष इंटरनेट पर मौजूद माओवादी गुप्त डॉक्यूमेंट के आधार पर निकला है। इसमें लेखक का व्यक्तिगत विश्लेषण भी शामिल हैं। अधिक जानकारी हेतु स्वयं इस डॉक्यूमेंट को पढ़ें। (केवल इंग्लिश) ~ Shubhanshu धर्ममुक्त 2019©

डिस्क्लेमर: लेखक के व्यक्तिगत विचार। कृपया अपने विवेक का प्रयोग करें। धन्यवाद।

बुद्धि के तीन रूप ~ Shubhanshu


मनोरंजन को छोड़ कर किसी को जज करने का हक आपको तब तक नहीं है जब तक आप अगले से अधिक योग्य न हों। छोटी मोटी भूल-चूक कोई भी कर सकता है उसके आधार पर जज करना नहीं कह सकते। जैसे यदि कोई स्पेलिंग गलत लिख गया है तो उसे भूल कहा जा सकता है। कोई अगर गलत व्याकरण लिखता है या बोलता है तो यह उसका अज्ञान हो सकता है न कि बुद्धि का आंकलन। बुद्धि दरअसल आपकी कार्यक्षमता, दूरदर्शी सोच, नए उपाय और ज्ञान का सदुपयोग करके किसी समस्या का समाधान कर देना है। बुद्धि कभी किसी पूर्व लिखित ज्ञान को स्थायी नहीं मानती और उसे नए तर्क से बदल भी सकती है। बुद्धि का प्रमुख स्तर वास्तविक और प्रमाणिक तर्को से निर्धारित कर सकते हैं।

जो जितना ज्यादा तर्क कर सकता है या जितना ज्यादा विषयों में नया खोज सकता है वह अधिक बुद्धि (IQ) वाला हो सकता है। एक तार्किक व्यक्ति निश्चित रूप से बुद्धिमान होता है जो कि विषय, ज्ञान, आदि के बदलने पर भी अपना तर्क करने का स्वभाव नहीं छोड़ता। वह अनपढ़ होने पर भी तर्क कर सकता है। शिक्षा, ज्ञान का बुद्धि से उसे ग्रहण करने, समझने तक की योग्यता प्राप्त करने में योगदान अवश्य है लेकिन एक अनपढ़ भी जीनियस हो सकता है।

उत्तम की उत्तरजीविता का मूल अर्थ यही है कि पर्यावरण के अनुकूल और अपना जीवन बचाये रख कर जो भी जंतु अपनी प्रजाति बचाये रखने में सफल होता है उसे बुद्धिमान प्रजाति कह सकते हैं लेकिन इस हिसाब से मच्छर और कॉकरोच भी खरे उतर सकते हैं क्योंकि वे इंसान से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी इंसान के पिछवाड़े पर लट्ठ किये हुए हैं।

दरअसल इनमें अनुकूलन का स्तर अधिक था इसलिये ये अब तक जीवित हैं। इसमें इनकी शारीरिक संरचना का महत्वपूर्ण योगदान है न कि बुद्धि का। अतः बुद्धि को समझने के लिये हमें अप्राकृतिक अनुकूलता को समझना होगा। जैसे मानव शिकार नहीं कर सकता। न तो उसके पास पैने पंजे व दांत हैं और न ही सूंघने, दौड़ने और रात में देखने की शक्ति। अतः कभी भी मांस खाना मानव के लिये न तो शारीरिक रूप से सम्भव था और न ही व्यवहारिक रूप से।

परन्तु हिंसक जानवरों से रक्षा करने की भावना ने मानव जैसे तुच्छ, कमज़ोर जंतु में बड़े दिमाग के कारण उपाय किये और मानव ने पत्थरों से घायल करने/मारने के औजार बनाये। ये शायद एक के मन में ही विचार आया होगा और उसे मुखिया बना दिया गया होगा। वो पहला जीनियस था।

अब बाकी कम बुद्धि के मानवों ने इस उपाय का दुरुपयोग शुरू किया और निर्दोष जानवरों को भी मारने लगे। यहाँ से बुद्धि का दुरुपयोग शुरू हुआ। इसी तरह किसी की बुद्धि ने अच्छा कार्य किया और किसी की बुद्धि ने बुरा। बुद्धि 3 तरह से कार्य कर सकती है। हमले के लिये, रक्षा के लिए और रचनात्मक कार्यों के लिये।

प्रायः यह उचित मात्रा में, सभी में नहीं पाई जाती। इसीलिये बुद्धिमान को मुखिया चुना जाता है। जानवरों में मुखिया बलशाली/ताकतवर होता है जबकि मानवों में मुखिया बुद्धिमान व/या बलशाली दोनो या न्यूनतम अलग-अलग भी समझा जाता है। जैसी भी समूह की आवश्यकता हो। बुद्धि का यह असमान प्राकृतिक वितरण प्रतियोगिता की भावना को जन्म देता है और मानव परिस्थितियों के अनुसार अच्छा, बुरा या रचनात्मक कार्य करने लगता है। जिनसे रक्षा, विनाश और लाभदायक तीनो तरह के कार्य लगातार होते रहते हैं।

विनाशकारी बुद्धि, मानसिक विक्षिप्तता, परिस्थितियों वश पैदा हुई बदले, ईर्ष्या, नफरत और दुष्टता की भावना पर नियंत्रण करने हेतु कानून बनाये गये। रचनात्मक कार्यो का स्वागत किया गया लेकिन रचनात्मक कार्यो पर इन धूर्त व दुष्ट बुद्धि वालों की नज़र रहती है। अतः उनसे मुकाबला करने के लिये रचनात्मक खोज व कार्य करने वाले को अपनी सुरक्षा को उच्च स्तरीय रखना होगा अन्यथा उसकी खोज गलत कार्यो में लग सकती है और जो सभी के लिये कष्टकारी/विनाशकारी होगा।

अतः बुद्धि का उच्च स्तर ही आधुनिक विज्ञान है और इसका उपयोग व दुरुपयोग आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है। मैं तो उपयोग करना चुनूँगा, और आप? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

बुधवार, अगस्त 28, 2019

दुनिया इनके एहसानों से दबी है ~ Shubhanshu


आइंस्टीन ने सामाजिक दबाव में आकर एक साम्यवादी पत्र लिखा जबकि उनकी विचारधारा में विरोधी बातें थीं जैसे मैं सिर्फ अपने कार्य में माहिर हूँ मुझसे कोई और कार्य कराया गया तो मैं एकदम नकारा हूँ। एक मछली पेड़ पर नहीं चढ़ सकती और एक चिड़िया पानी में सांस नहीं ले सकती। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति, हर काम नहीं कर सकता। जो जिस कार्य को करने हेतु बना है सिर्फ वही कर सकता है।

कुछ अपवाद हैं जो कि अच्छे म्यूटेशन से बने लोग हैं। वे कई कार्य कर सकते हैं, जैसे लियोनार्डो नास्तिक, चित्रकार, वैज्ञानिक, आविष्कारक, मानव शरीर विज्ञानी, लेखक आदि तमाम प्रतिभाओं के धनी थे। मैं भी ऐसे कई काम करने में माहिर हूँ।

इस तरह के लोगों को प्रायः जैक ऑफ आल थिंग्स कहा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इसे आल राउंडर होना कहा जाता है। ऐसे लोग वाकई कीमती होते हैं। इनको कहीं भी छोड़ दीजिए। वे सफलतापूर्वक कार्य करके निकल आएंगे।

लेकिन एक बात ध्यान रखने योग्य है कि मल्टीटेलेंटेड लोग यदि मेहनत वाले कार्य जैसे व्यायाम, आउटडोर खेल, नृत्य, मार्शल आर्ट या मेहनत वाला कोई भी कार्य करने से कतराते हैं तो उनको उनसे दूर ही रखना चाहिए, अन्यथा उनकी सारी प्रतिभा नष्ट हो सकती है। यदि वे खुद सीखने की ठान लेते हैं तो, और यदि वे मेहनत करना चाहें, तो ही उनसे कार्य लिया जा सकता है जिसमें उनके कार्यकुशल होने की कोई गारंटी नहीं होगी क्योंकि उसका मस्तिष्क और भी आगे की सोच रहा होता है। तभी वे मेहनत को अपने अविष्कारों से करवाते हैं।

जो इस सत्य को स्वीकार नहीं करेगा। समय आने पर अपने आप मरेगा क्योंकि तीव्र बुद्धि के लोग अन्यायपूर्ण कार्य के बहुत ही बड़े प्रतिरोधक होते हैं। (फ़िल्म सीरीज देखें, Divergent) वे मूर्ख होने का नाटक भी कर सकते हैं और अपने से अधिक बुद्धिमान की नकल भी उतार सकते हैं। वे चाहें तो इस पृथ्वी को फिर से सुखमय बना सकते हैं और अगर उनको तंग किया गया तो चूंकि वे वैसे भी मूर्ख लोगों से तंग होते हैं, गुस्से में पूरी मानव जाति ही नष्ट कर सकते हैं।

वे चाहें तो अपनी प्रतिभा के बल पर बाकी 96% को अपना गुलाम बना लें और उनके ईश्वर बन जाएं लेकिन अभी उनमें अच्छाई बची है। इस दुष्ट, एहसान फरामोश दुनिया में कब तक ये अच्छाई ज़िंदा रहेगी? बुरे के साथ अच्छा कब तक करेंगे ये म्यूटेंट महान लोग? सवाल चिंताजनक है।

हर बात की एक सीमा होती है। ये बात सभी लोगों को याद रखनी चाहिए। अपनी मदद करने वालों का सम्मान करना सीखिये अन्यथा जिस तरह आज दुर्घटना होने पर कोई मदद को नहीं आता वैसे ही ये लोग भी आपकी मदद को कभी नहीं आएंगे। याद रखिये, इनकी हम सबको ज़रूरत है लेकिन इन महान लोगों को आपकी कोई ज़रूरत नहीं है अगर आप उनके साथ मित्रता या सौहार्द पूर्ण व्यवहार नहीं करते। नमस्कार! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 23, 2019

तनावमुक्त रहने का तरीका ~ Shubhanshu


खुद से सवाल करो कि इस बात का वास्तव में कोई लाभ है? क्या वास्तव में वही होगा जैसा लग रहा है? क्या और भी ज़रूरी कार्य नहीं हैं?

वर्तमान में जीना ही डिप्रेशन का इलाज है।

व्यस्त रहो, मस्त रहो, रोज कुछ ऐसा करने का प्रयास करो जिससे खुद पर गर्व हो। अगर जीवन का कोई मूल्य नहीं बचा तो पैदा करो उसका मूल्य। ऐसा जीवन जियो कि लोग इर्ष्या करने लगें आपसे।

जो आपके जैसा नहीं बन पा रहा, चाहते हुए भी, वो तो ईर्ष्या करेगा ही। उनको अनदेखा करो। कुछ खोखले घमण्ड से मुक्त होंगे वे आपका सम्मान करेंगे। प्रयास करेंगे आप से प्रेरणा लेकर।

समय आने पर इन्ही में से कोई प्रबल इच्छाशक्ति वाला आपके साथ खड़ा होगा। क्योंकि सबको, साथ देने वाले और समान विचार वालों के साथ रहना अच्छा लगता है। अकेले हैं आज पर कल भी होंगे ऐसा मुमकिन नहीं। विपरीत ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं लेकिन टकरा कर, एक हो जाने के लिए। ~ अहं ब्रह्मास्मि! Shubhanshu Dharmamukt 2019©

नोट: अहंब्रह्मास्मि = मैं ही सृष्टि का रचयिता और पालक हूँ। मैं ही सबकुछ हूँ। जिनको ये खोखला अहंकार लगे तो बता दूँ कि लगता है कि खोखला है ये। लेकिन बताइये अगर मैं नहीं तो कुछ भी नहीं। जान है तो जहान है। अर्थात मैं जीवित हूँ तो ही दुनिया जीवित है। मैं मर गया तो ये संसार मेरे लिए मर जायेगा। अतः मैं ही इस दुनिया का रचनाकार हूँ। मैं नहीं तो मेरे लिए ये दुनिया नहीं। मैं ही मेरी दुनिया हूँ। अतः इस बात में बल है। ये खोखला अहंकार नहीं है। यह सत्य है। यही है तनाव से बचने का उपाय! 💐

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

साम्यवाद और समाजवाद का सत्य ~ Shubhanshu


प्रश्न: समाजवाद और साम्यवाद के विषय में आपकी क्या राय है?

शुभ: लालची दुनिया में ये सम्भव नहीं। जो कोई भी अभी सम्पन्न है वह अपनी मेहनत की कमाई देकर उससे कम नहीं लेना चाहता। इसीलिये वे बच्चे पैदा करते हैं और इसीलिए वे रिश्वत, दलाली, गलत काम भी करते हैं क्योकि लालच की कोई सीमा नहीं होती। केवल जो आज सड़क या झोपड़े में हैं जिन पर देने को कुछ नहीं, सिर्फ लेने के लिए है केवल वे गरीब/भिखारी लोग ही इस व्यवस्था को अपना सकते हैं। जिस पर सरकार के दिये ऑफर से ज्यादा है वो कभी अपनी कमाई लुटने नहीं देगा। मानवाधिकार भी अपनी कमाई पूंजी को इस्तेमाल करने का हक देता है और कोई भी ताकत इस हक को किसी के जीते-जी नहीं छीन सकती।

अतः सभी गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों की मृत्यु के बाद ही उनकी सम्पति को सरकार कब्जा सकती है। यही नियम है। लावारिस सम्पत्ति को सरकार जब्त कर लेती है।

प्रश्न: यदि कोई संपन्न व्यक्ति अपनी अतिरिक्त सम्पत्ति देकर बराबरी पर आना चाहे तो?

शुभ: किसी को भी अपनी इच्छा से अपना हक छोड़ने का हक है। जैसे गैस सब्सिडी छोड़ने का हक सरकार देती है।

प्रश्न: बराबर कमाई वाली व्यवस्था हो जाये तो कैसा रहेगा?

शुभ: इस दुनिया में कहीं भी बराबरी सम्भव नहीं है। हर कोई दूसरे पर हुक्म चलाना चाहता है। जिस पर ज्यादा iq होगा वह बाकी सबसे ज्यादा समझदार या ब्रिलियंट होगा वो अपने आप ऊपर उठा दिया जाएगा और पुनः बराबरी समाप्त हो जायेगी। साथ ही सीमित मात्रा में जो कुछ उपलब्ध है उसका बंटवारा सम्भव ही नहीं। इसलिये उसके मालिक कुछ लोग ही होंगे और फिर से बराबरी समाप्त।

इसके अतिरिक्त इस तरह की व्यवस्था छोटे स्तर पर सिर्फ तानाशाही में हो सकती है जिसमें लोगो को गुलामो की तरह रखा जाए। ऐसा नैनीताल के घोड़ाखाल स्कूल में किया जाता है।

गुलाम से मतलब है जिसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है। जो सिर्फ एक रोबोट की तरह है जो भी उससे कहा जाता है वही करता है। एक मजदूर ऐसा ही होता है। क्या सब ऐसा मजदूर बनना चाहेंगें?

जब इंसान ही बराबर नहीं हैं तो बराबरी कैसे की जा सकेगी? 7 अरब लोगों में से सिर्फ एक आविष्कार करता है और बाकी सब उसके नाम पर फूलते हैं। कोई एक ही दुनिया में बदलाव लाता है, नया आईडिया लाता है जैसे मार्क्स और एंगेल्स लाये और शोषितों के ईश्वर बन गए। वो बड़े हो गए। बराबरी किधर है? बराबरी में किसी का सम्मान अलग से नहीं हो सकता किसी के नाम पेटेंट नहीं हो सकता, नाम की जगह नम्बर होगा। बराबरी यानी साम्यवाद सिर्फ बिना प्रतिभा के लोगों के लिये ही लुभावना है जिनको बस ज़िंदा रहना है। उसके बाद क्या होगा ये कोई नहीं सोचता। यही कारण है कि साम्यवाद सिर्फ किताब में है और समाजवाद थोड़ी मात्रा में अमल में।

मंगलवार, अगस्त 20, 2019

करेंसी का रहस्य ~ Shubhanshu


अवसरों का समान वितरण होना चाहिए। सभी को प्रतियोगिता में प्रतिभागी बनने का अवसर मिलने की बात होनी चाहिए। लेकिन इनाम तो सिर्फ योग्य ही ले सकेगा। सही तरह से मेहनत करने वाला ही सफलता का स्वाद चखेगा। धन देश की धरोहर है। यह वह सोना है जो रिजर्व बैंक में हमारी पूंजी है। यदि सोने को अंतरराष्ट्रीय करेंसी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस सोने का वजन ही किसी देश की अर्थव्यवस्था को निर्धारित करता है। इसी के आधार पर हमें विदेशों से कर्ज मिलता है। यही किसी देश की GDP निर्धारित करता है।

(मुझे यह जानकारी नहीं है कि सभी देशों के रिजर्व बैंक के पास ये सोना कहाँ से आया। इसकी प्रमाणिक जानकारी अगर किसी को हो तो वह दे सकता है।)

रिज़र्व बैंक को इस सोने के अंतराष्ट्रीय बाजार में वर्तमान कीमत के बराबर करेंसी छापने का अधिकार था जिसे बाद में ढीला किया गया क्योंकि लोग करेंसी जला/दफना/संग्रह कर रहे थे। अतः अब सरकार कुछ प्रतिशत अधिक धन के नोट छापती है। बैंकों में जमा धन ही रिजर्व बैंक और इन्कम टैक्स विभाग मॉनिटर कर सकता है अतः सरकार बैंकों में जमा कुल धन से देश की अर्थव्यवस्था का पता लगाती है कि कितना धन मुख्यधारा में है जो टैक्स पेड white money है। लगभग सभी नकद धन जिनका कोई रसीद या स्टेटमेंट आपके पास नहीं है वह ब्लैक मनी माना जाता है।

2.5 लाख ₹ का काला धन आप वर्ष भर में खर्च कर सकते हैं। सरकार ने इसे व्हाइट बना दिया है। इस पर कोई टैक्स नहीं लगता। यही सीमा महिला और सीनियर सिटीजन के लिए 3 लाख है। (संशोधन सम्भव)

(सबसे पहले धन बाजार में करेन्सी के रूप में लोगों के पास कैसे आया मुझे जानकारी नहीं है। कृपया सुझाये।)

फिलहाल धन बंटवारे की विषयवस्तु नहीं है। दरअसल यह मेहनत का टिकट है। जो जितनी मूल्यवान मेहनत देगा, उसके बदले में उतना ही मूल्यवान धन लेगा या वह जिस मोलभाव पर राजी हो जाये।

यही वर्तमान में धन को पाने की शुरुआत होती है। ये कोई गड़ा हुआ खजाना होता जो किसी समूह को मिला होता तो अवश्य मेहनत करने के कारण उनमें ये बंट जाता। अतः अभी तो मुझे यह कमाने (earn) करने की विषयवस्तु लगती है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©