शुभ: लालची दुनिया में ये सम्भव नहीं। जो कोई भी अभी सम्पन्न है वह अपनी मेहनत की कमाई देकर उससे कम नहीं लेना चाहता। इसीलिये वे बच्चे पैदा करते हैं और इसीलिए वे रिश्वत, दलाली, गलत काम भी करते हैं क्योकि लालच की कोई सीमा नहीं होती। केवल जो आज सड़क या झोपड़े में हैं जिन पर देने को कुछ नहीं, सिर्फ लेने के लिए है केवल वे गरीब/भिखारी लोग ही इस व्यवस्था को अपना सकते हैं। जिस पर सरकार के दिये ऑफर से ज्यादा है वो कभी अपनी कमाई लुटने नहीं देगा। मानवाधिकार भी अपनी कमाई पूंजी को इस्तेमाल करने का हक देता है और कोई भी ताकत इस हक को किसी के जीते-जी नहीं छीन सकती।
अतः सभी गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों की मृत्यु के बाद ही उनकी सम्पति को सरकार कब्जा सकती है। यही नियम है। लावारिस सम्पत्ति को सरकार जब्त कर लेती है।
प्रश्न: यदि कोई संपन्न व्यक्ति अपनी अतिरिक्त सम्पत्ति देकर बराबरी पर आना चाहे तो?
शुभ: किसी को भी अपनी इच्छा से अपना हक छोड़ने का हक है। जैसे गैस सब्सिडी छोड़ने का हक सरकार देती है।
प्रश्न: बराबर कमाई वाली व्यवस्था हो जाये तो कैसा रहेगा?
शुभ: इस दुनिया में कहीं भी बराबरी सम्भव नहीं है। हर कोई दूसरे पर हुक्म चलाना चाहता है। जिस पर ज्यादा iq होगा वह बाकी सबसे ज्यादा समझदार या ब्रिलियंट होगा वो अपने आप ऊपर उठा दिया जाएगा और पुनः बराबरी समाप्त हो जायेगी। साथ ही सीमित मात्रा में जो कुछ उपलब्ध है उसका बंटवारा सम्भव ही नहीं। इसलिये उसके मालिक कुछ लोग ही होंगे और फिर से बराबरी समाप्त।
इसके अतिरिक्त इस तरह की व्यवस्था छोटे स्तर पर सिर्फ तानाशाही में हो सकती है जिसमें लोगो को गुलामो की तरह रखा जाए। ऐसा नैनीताल के घोड़ाखाल स्कूल में किया जाता है।
गुलाम से मतलब है जिसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है। जो सिर्फ एक रोबोट की तरह है जो भी उससे कहा जाता है वही करता है। एक मजदूर ऐसा ही होता है। क्या सब ऐसा मजदूर बनना चाहेंगें?
जब इंसान ही बराबर नहीं हैं तो बराबरी कैसे की जा सकेगी? 7 अरब लोगों में से सिर्फ एक आविष्कार करता है और बाकी सब उसके नाम पर फूलते हैं। कोई एक ही दुनिया में बदलाव लाता है, नया आईडिया लाता है जैसे मार्क्स और एंगेल्स लाये और शोषितों के ईश्वर बन गए। वो बड़े हो गए। बराबरी किधर है? बराबरी में किसी का सम्मान अलग से नहीं हो सकता किसी के नाम पेटेंट नहीं हो सकता, नाम की जगह नम्बर होगा। बराबरी यानी साम्यवाद सिर्फ बिना प्रतिभा के लोगों के लिये ही लुभावना है जिनको बस ज़िंदा रहना है। उसके बाद क्या होगा ये कोई नहीं सोचता। यही कारण है कि साम्यवाद सिर्फ किताब में है और समाजवाद थोड़ी मात्रा में अमल में।
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