Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, सितंबर 28, 2019

Narcissism (आत्ममुग्धता) ~ Sbubhanshu


एक मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति खुद से प्रेम करता है। खुद की सफलता पर प्रसन्न होता है। और बेहतर होता जाता है। और तरक्की करता है। खुद का ध्यान रखता है। अच्छा खाता, पहनता है, अच्छी संगत में जाता है। जीवन में और लोगों से वैसे ही व्यवहार करता है जिससे उसे बदले में भी वही व्यवहार मिले। ऐसे लोग ही तो जीवन में सफल होते हैं।

आत्मविश्वास से लबरेज लोगों ने ही प्रेरणा बनकर दुनिया बदली है। नकारात्मक लोग दूसरो को दोष देते हैं जबकि सकारात्मक खुद को। तो जो सकारात्मक होते हैं वे आत्ममुग्ध हो ही जाते हैं क्योंकि उनको खुद को ही बदलने का काम शेष रह जाता है। दुनिया तो हमसे ही बनी है और अगर हम खुद से प्रेम करें तो पूरी दुनिया से कर सकते हैं।

अतः अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर गर्व कीजिये। क्या पता कब आपकी अंतिम रात हो और खुद पर गर्व करने लायक कुछ कर ही न पाओ। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, सितंबर 26, 2019

सपनो का सौदागर ~ Shubhanshu


दरअसल जो महिला, जैसे माँ, लड़कियों पर पिता की तरह बंधन लगाती हैं, उससे ऐसा आभास होता है कि वे भी पिता जैसा सोचती हैं। लेकिन दरअसल ये एक डर है कि जिस तरह माँ ने पति के घर में एडजस्ट कर रखा है वैसे ही बेटी भी अगर न कर पाई तो उसको भी ससुराल में रखना मुश्किल होगा।

ये गुलामी की सोच, महिला को सदा बच्चा ढोने की मशीन बनाने के कारण पैदा हुई और महिला आज भी उसी परमपरा को धर्म से प्रेरणा पाकर निभा रही है। उस पर गर्व भी कर रही क्योकि महिमामण्डित कर दिया जा जाता है बलि के बकरे की कुर्बानी को बलिदान कह कर।

अतः आत्मनिर्भर न होना, पति के घर में रह कर उसकी गुलामी करना ही मजबूरी बन गया है। इसी मजबूरी में वो दूसरो को भी अच्छा गुलाम बनने को प्रेरित करती हैं ताकि अपने मालिको (सास-ससुर-ननद-पति) को खुश रख सकें। जब भी कोई लड़की अपनी आज़ादी की बात करती है या विवाह के इतर कुछ करने की सोचती, रिस्क उठाती है तो घर समेत सारा समाज कहता है कि आपकी लड़की हाथ से निकल गई। मतलब लड़की कंट्रोल (गुलामी) से निकल गई।

आज़ादी, महिला के लिये अभिशाप समझी जाती है, इस वंशवादी समाज में। इस से निकलने के लिये, 'करो या मरो' की नीति लागू करनी होगी। ये आज़ादी भी कीमत मांगती है। यलगार मांगती है। क्रांति मांगती है।

परिवार को अपनी समाज में इज़्ज़त के अलावा कोई मोह अपने बच्चे से नहीं होता। आप उनके जाल से निकलना चाहते हैं तो मोह अपने सपनो से करो, दुनिया आप पर मोहित हो जाएगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© "सपनो का सौदागर"

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

क्या मूर्ति/चिन्ह/तस्वीरों का प्रदर्शन उचित है? ~ Shubhanshu



किसी के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले फ़ोटो/मूर्ति/चिन्ह का सीधा सम्बन्ध, गुटबंदी करके नफरत करने से होता है चाहे वो कोई भी धर्म या समुदाय का व्यक्ति हो।

इस बात को मुहम्मद ने समझा था और इसको एक प्रयोग से साबित किया था कि मूर्ति/तस्वीर/चिन्ह नफरत की जड़ होती हैं। ये सब राजनीतिक दल केवल दंगा करवाने के उद्देश्यों से बनवाते हैं।

महापुरुषों की जगह पुस्तकों में है।

उनकी अच्छी शिक्षा की जगह हमारे दिमाग में और बुरी बातों की कोई जगह कहीं नहीं होनी चाहिए। तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकेंगे। गांधी/अंबेडकर/पटेल/काशीराम/माया/बुद्ध जैसा महापुरुष/राजनीतिज्ञ या कोई भी देवी-देवता हो, सभी की तस्वीर/मूर्तियों का प्रदर्शन करना, सीधा लड़ाई और नफरत को पैदा करने की जड़ है।

राजनीतिज्ञ जब चाहें किसी से इनको अपमानित करके आप सबका आपस में दंगा करवा कर और दंगा पीड़ितों की मदद करके अपना वोट पक्का कर लेंगे। मरेंगे आपके बच्चे/दोस्त/भाई-बहन, परिजन आदि। घर जलेंगे आपके और आप ही हत्यारों/लुटेरों को वोट देकर सोने से लाद दोगे।

मुझ पर भरोसा न हो तो देखना, कभी दंगों में कोई नेता कभी हताहत हुआ हो तो। दंगों के बाद जो भी आपके पास कंबल/रसद लेकर आये वही है आपका असली दोषी। उसी ने आपका परिवार/घर मकान खा लिया। सोचो, सोचेंगे तभी समझ आएगा कि हम सब कितने बड़े मूर्ख हैं जो इन नेताओं के चक्कर में पड़ जाते हैं। 99% सब एक से हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2019©

रविवार, सितंबर 22, 2019

सर्वोत्तम ही प्रकृति को प्यारा है ~ Shubhanshu



सर्वाहारियो और vegansim की बहस में मामला दरअसल वनस्पति आधारित भोजन या क्रूरतामुक्त जीवनशैली का नहीं होता। दरअसल मामला ego का है। ये सर्वाहारी अच्छी तरह से जानते हैं कि vegan डाइट का फायदा क्या है? बस ये स्वाद और संगत बदलने में कमज़ोर हैं। इसलिये इनको बस भीड़ का साथ अच्छा लग रहा है। हम भी कभी इनकी तरह थे तो कोई बात नहीं। हम भी बस अपनी ईगो ही पेल रहे कि हम ही सही हैं।

और ये तो iq पैमाना है बुद्धि शक्ति का जो सबको खुद को अपने-अपने स्तरों पर सही ही बताता है।

कुछ लोग टट्टी खाते हैं, कुछ खून पीते, कुछ इंसान को खाते, इंसांनो/जानवरों का बलात्कार करते, सीरीयल किलर बनते हैं, तो वो भी खुद को जीवन भर सही ही मानते हैं और गर्व तक करते हैं।

Adolf हिटलर और नाथू राम गोडसे को अपनी करनी पर सदा गर्व रहा था और कोई आश्चर्य नहीं कि हमें भी खुद पर गर्व है। तो इस समस्या का कोई इलाज नहीं और सभी का सर्वाइवल भी सम्भव नहीं। कुछ लोग सच्चाई को पूरा प्रतिरोध देते ही हैं तभी तो इस दुनिया में अच्छाई के साथ बुराई भी डटी रहती है।

कुछ लोग दुनिया को बर्बाद करने के लिए बच्चे पैदा करके गर्व करते हैं और कुछ लोग दुनिया को बचाने के लिए ही कभी भी बच्चा न पैदा करके गर्व करते हैं।

कुछ लोग धर्मयुक्त होकर कत्लेआम, जातिवाद, नफरत और राजनीति करके गर्व करते है तो कुछ लोग धर्ममुक्त होकर इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं और गर्व करते हैं धर्ममुक्त जयते कह कर।

कुछ लोग नग्न होने को शर्म का कारण बताते हैं और जबरदस्ती शो औफ करके धन बर्बाद करते हैं और उसमें गर्व करते हैं तो कुछ लोग नग्न होने पर गर्व करते हैं क्योकि शरीर ढकने के लिए नहीं बना, उसे हड्डियों को बनाने के लिए धूप की ज़रूरत होती है और पसीना सुखाने के लिए हवा की भी। साथ ही वस्त्र थोपे नहीं जा सकते, ये सदा ही वैकल्पिक रहेंगे। कोई इसे रोकेगा तो ये मानवाधिकार की हानि होगी।

कुछ लोगों को विवाह करना धार्मिक और कर्तव्यों का निर्वाह लगता है क्योकि वे वंशवादी हैं और इसके आधार पर अपने खून पर गर्व करते हैं जबकि दूसरी तरफ विवाहमुक्त लोग हैं जो इसे समस्त मुसीबतों की जड़ मानते हैं और इससे दूर रह कर ही स्वतन्त्र और गौरवशाली महसूस करते हैं क्योकि ये प्रकृति के बहुविवाह नियम के खिलाफ जाता है और इंसान कभी भी एक ही इंसान से बंधा नहीं रह सकता। इसीलिये रोज तलाक और क्लेश होता है जिसमें हजारों जाने चली जाती हैं और गर्भवती महिलाओं की हर 5 मिनट में मौत हो जाती है।

प्रकृति का नियम है "सर्वोत्तम की उत्तरजीविता" और ये परिणाम केवल समय ही दिखाता है। नमस्ते सभी लोगों। बहुत अच्छा लगा आप सबसे बात करके। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शनिवार, सितंबर 21, 2019

हिंदुत्व बनाम वीगन ~ Shubhanshu



हिन्दू: बीफ ले जा रहे?

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: नहीं, मटन है।

हिन्दू: जाओ।

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: बन गए चूतिया साले ढोंगी।

(थोड़ा आगे जाने पर)

वीगन: मांस ले जा रहे?

ट्रांसपोर्टर: हाँ। लेकिन मटन है। बीफ नहीं।

वीगन: किसका लेकर जा रहे उससे मतलब नहीं। फ़ेसबुक/व्हाट्सएप है? मेरी पोस्ट पढो। ये सब छोड़ दोगे।

ट्रांसपोर्टर: आप वाकई मारोगे नहीं?

वीगन: नहीं, पहले हम आपको प्यार से हर बात समझाएंगें। अगर फिर भी नहीं समझे तो आपको हिंदुओ के पास, बीफ ले के जा रहे, कह कर छोड़ देंगे। 😂😂

ट्रक का नंबर नोट कर लिया और फ़ोटो ले लिए हैं। वैसे भी गोवंशीय पशु वध कानून की गौहत्या निवारण अधिनियम 1955, धारा 3, 5, 8 में अपराध है। 7 साल जेल जाओगे। कुछ नहीं तो हम पुलिस को ही फोन कर देंगे। हम हिंसा नहीं करते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 😂😂😂

शुक्रवार, सितंबर 20, 2019

आर्थिक मंदी का जिम्मेदार कौन? ~ Shubhanshu



जनता के संतृप्त हो जाने के कारण नए उत्पादों की बिक्री न होने से जैसे ऑटोमोबाइल आप एक बार लेते हो या सायकिल तो वह वर्षों तक दोबारा खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इनका सेकेंड हैंड बाज़ार भी होने के कारण लोग इन से संतुष्ट हो जाते हैं। सड़कों पर भी एक सीमा से ज्यादा वाहन ट्रैफिक जाम करते हैं इसलिए लोग वापस पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर आ जाते हैं और इससे प्रदूषण भी कम हो जाता है।

कभी न कभी इस तरह के हालात आने ही हैं। ये चक्र चलता ही रहता है। इस तरह की घटना से मुक़ाबले के लिये सरकार की बड़ी घोषणाएँ जो व्यापार जगत को आर्थिक मदद देकर उनको बाज़ार में बनाये रखने में मदद करेगी।

1. कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती ; कंपनियों पर कर की दर 25.17% ; दूसरी कोई छूट न लेने पर 22% ; कोई मैट नहीं ।

2.मैनुफैक्चरिंग में निवेश करने वाली नई कंपनी पर कॉरपोरेट टैक्स सिर्फ 17.01%

3. MAT की दर 15%

4. जो कंपनियाँ बाजार से अपने शेयरों को वापस ख़रीदने में निवेश करना चाहती है, उनकी इस ख़रीद से होने वाले मुनाफ़े पर कोई कर नहीं ।

5. कृषि क्षेत्र के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र भी निवेश योग्य धन के मानदंड पर अब इस क्षेत्र के लिये तक़रीबन सालाना 1.45 लाख करोड़ की राजस्व की छूट दी गई है । 

यदि सरकार न हो तो इस लाइन में लगा व्यापार जगत बर्बाद हो सकता है। आपकी मदद करने के लिये ही सरकार का निर्माण आपने ही किया है। आप सब अपनी ही मदद कर रहे हो टैक्स अदा करके। नकारात्मक सोच वाले इसमें भी कुछ न कुछ गंदगी खोज ही लेंगे क्योंकि उनको वही पसंद है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, सितंबर 16, 2019

असफल राजनीति ~ Shubhanshu


दलाल: मैंने बसपा को वोट दिया था इसलिये मैं भाजपा को कोसने का हक रखता हूँ।

शुभ: मतलब बसपा आपके वोट देने से भी हार गई?

दलाल: जी हाँ।

शुभ: क्यों?

दलाल: क्योंकि भाजपा को पूरे देश में सबसे अधिक वोट मिले हैं। बसपा को कम वोट मिले।

शुभ: इसका मतलब है कि बसपा की कोई इज़्ज़त नहीं करता, भाजपा की सब करते हैं तभी सबने उसे वोट दिया होगा?

दलाल: भाजपा को किसी ने वोट नहीं दिया। ये सब EVM में गड़बड़ी करके जीती है।

शुभ: मतलब आपने जो वोट दिया वो भाजपा को चला गया?

दलाल: हाँ।

शुभ: मतलब आपने ही भाजपा को वोट देकर जिताया है?

दलाल: No Comments!

शुभ: कांग्रेस का राज जब था तब अन्नाहजारे का आंदोलन हुआ। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये ही न? फिर उस भ्रष्टाचार वाली सरकार को हटाने के लिए जनता ने क्या चुना?

वही जो उस समय हजारे के आंदोलन में वादे करने आया। वो bjp का ही कोई नेता था जो उस समय live गाड़ी से आया था आंदोलन स्थल पर। जिसे उल्टे पांव वापस किया गया था।

जब जनता कांग्रेस पर थूक रही थी तब विकल्प bjp ही थी क्योकि वो  टक्कर की थी और वही अन्ना के आंदोलन को सपोर्ट करी थी। इसमें EVM दोषी कैसे हुई? तर्क है कोई?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब कई सालों से रो रहे हो कि EVM से चुनाव नहीं करना है, बैलेट से करना है तो वोट देने क्यों गए? जब वोट भाजपा को ही जाता है तो वोट देकर भाजपा को जिताने आखिर क्यों गए आप?

दलाल: No Comments!

शुभ: बसपा, कांग्रेस और बाकी सारे विपक्षी दल मिल कर भी EVM में गड़बड़ी क्यों नहीं कर पा रहे? आप लोग भी ऐसा करके जीत जाते? पिछले बहुत सालों से EVM पर शक किया जा रहा है फिर भी हर बार भाजपा ही क्यों सेटिंग कर लेती है? 11 दल मिल कर भी सेटिंग नहीं कर पा रहे और जो पार्टी जीत गई, उसने ही सेटिंग कर रखी है, ये कैसे साबित करोगे?

दलाल: चुनाव आयोग मिला हुआ है भाजपा से।

शुभ: जी बिल्कुल, तभी तो EVM में सेटिंग होगी। आप लोग क्यों नहीं मिल जाते चुनाव आयोग से?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब चुनाव आयोग ने कहा कि 1 करोड़ रुपये देगा, EVM हैक करके दिखाओ। तब क्या हुआ था? कोई आगे क्यों नहीं आया?

दलाल: वो कह रहा था कि EVM की सील तोड़े बिना उसे हैक करो। बिना खोले EVM हैक कैसे हो सकती है?

शुभ: बिल्कुल, अगर EVM खोली जा सकती है तो उसमें गड़बड़ी करना सम्भव है। लेकिन EVM खोलना तो अपराध है। जिस कम्पनी ने इसे बनाया है उसने इस पर सुरक्षा सील लगाई है जिसे तोड़ना अपराध घोषित है। चुनाव आयोग भी उसे नहीं खोल सकता और न ही कम्पनी अपना पेटेंट रिवर्स इंजीनियरिंग से सुरक्षा के लिए बर्बाद कर सकती है।

बोत्सवाना सरकार इसी कड़ी सुरक्षा के कारण भारत की प्रसिद्ध EVM खरीदने भारत आई। उसने सुरक्षा की पुष्टि हेतु इसे खोलने का आवेदन अदालत में किया और अदालत ने सारी जानकारी लेने के बाद सुरक्षा नियमों के कारण EVM को खोलना अपराध है इसलिये आज्ञा नहीं दी। अब मुझे बताइये EVM को कैसे खोला जा सकता है बिना अपराध किये?

दलाल: अगर कोई अपराध करके इसे खोले, छेडख़ानी करके वापस बन्द कर दे और सुपरवाइजर को खरीद ले तो धांधली हो सकती है।

शुभ: मतलब आपको धांधली करके के सब तरीके पता हैं। फिर भी असफल? कमाल है। चलिये ये बताइये VVPAT क्यों लगाया जाता है?

दलाल: कोई भी गड़बड़ी की गुंजाइश न रह गई हो इसलिये एक पर्ची प्रिंट होकर पक्का करती है कि वोट आपके चुने हुए प्रत्याशी को ही गया है।

शुभ: कमाल है, आप तो वाकई समझदार हैं। जब कोई गड़बड़ी हो ही नहीं सकती है तो भी आप EVM ban करो चिल्ला रहे हैं?

दलाल: VVPAT की सारी मशीनों की पर्चियों को क्यों नहीं गिनता EC?

शुभ: आप लोग अदालत गए थे। उधर से क्या जवाब मिला?

दलाल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हर मशीन की पर्ची गिनी जाएगी तो फिर चुनाव EVM से कराने का क्या फायदा? रैंडम कोई भी 5-5 मशीनें गिनती के लिए उठा लीजिये और उनसे EVM का मिलान कर लें। कोई भी मशीन गड़बड़ी करी हुई होगी तो वो उनमें से पकड़ में आ जायेगी।

शुभ: फिर क्या हुआ? पकड़ी गई गड़बड़ी?

दलाल: नहीं। सुप्रीम कोर्ट भी EC और भाजपा से मिली हुई है। 😂

शुभ: गजब स्टेटमेंट। भाजपा ने पूरा देश खरीद लिया और आप हाथ में लंदन पकड़े खड़े रह गए? अब आप आखिर में ये भी कहोगे की भाजपा ने मुझे भी खरीद लिया है।

दलाल: वो तो है ही। तुझे कभी जय भीम कहते नहीं देखा, सवर्णों जैसा नाम है, सरकार की दलाली कर रहा है, कानून, सुप्रीम कोर्ट और सिस्टम को ठीक बताता है। तू है ही उससे मिला हुआ।

शुभ: सही पकड़े। आप वाकई विद्वान हैं। कमाल है, सब भाजपा से मिले हुए हैं और आप अकेले कैसे छूट गए भाई साहब? आपके अंदर टेलेंट है। नाम में जाति खोजने का। हारने का। खिसियाने का। हर आदमी जो आप से सवाल करे उसे भाजपा का भक्त बताने का। बेशर्मी का। झंड करवाने का। सिर्फ जाति के नाम पर वोट लेने का। विकास को अपने उस पर रखने का। नाम से ही सवर्णों से इतनी नफरत करने का कि देखते भी नहीं कि सामने बहुजन है या सवर्ण। कीचड़ से कीचड़ धोने का टैलेंट है आपमें। जय भीम।

दलाल: अब तू क्यों बोला जय भीम?

शुभ: क्योंकि आपको दिखतां नहीं कि आपके सामने एक बहुजन ही खड़ा सवाल कर रहा है। विचार तो आप देखते नहीं। नाम से जाति पता करके इज़्ज़त उछालने की ब्राह्मणवाद नीति अपना ली है। जब तक कोई जय भीम न कहे वो बहुजन हो ही नहीं सकता आपके हिसाब से तो साबित करने के लिए बोल दिया। प्रमाणपत्र आप मांगते ही कहाँ हो किसी से जो आपको दिखाऊँ?

दलाल: अरे, फिर ऐसा नाम क्यों रखा?

शुभ: जाति जातिप्रमाण पत्र से पता चलती है। नाम से नहीं। इसीलिये मैंने ये नाम रखा ताकि कोई नाम में जाति खोज कर अपनी जातवादी सोच सामने दिखाए और मैं उसको अपनी ज़िंदगी से हटा दूँ। जो जातिवादि सवर्ण हैं वे मुझसे नफरत न करें और जो बहुजन है उनके अंदर कितना जातिवाद भरा है वो भी दिख जाए।

दलाल: No Comments!

शुभ: आशा है आज आपको थोड़ी शर्म आयी होगी। मुझे तो आपको शर्मिंदा करके बड़ा अच्छा लगा क्योंकि मैंने देख लिया कि क्यों बसपा हारती है। आप जैसे घटिया लोगों के कारण। जो बस अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। सत्य बोलना नहीं। जब तक बसपा सत्ता में नहीं है, बसपा ने कितने लोगों की मदद करी पार्टी फंड से? कितने लोग बसपा को बहुजन प्रेमी मानते हैं? क्या सिर्फ जयभीम बोलने भर से? मैं राजनीति में विश्वास नहीं करता। कभी वोट नहीं देता। आखिर क्यों? सोचना कभी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

हमारी 10 विशेषताएं ~ Shubhanshu


1. हमारे यहाँ बिना जाँच पड़ताल के कोई खबर नहीं फैलाई जाती है क्योंकि किसी भी प्रकार की Fake News फैलाना अपराध है। कभी गलती हो तो टोक दें।

2. हमारे यहाँ किसी व्यक्ति की जय नहीं बोली जाती है क्योंकि किसी व्यक्ति की जय बोलना दरअसल उसे परफेक्ट बताना है जबकि परफेक्शन अस्थाई होता है।

3. हमारे यहाँ नेताओं को कोसा नहीं जाता है क्योंकि जनता ही राजनैतिक पार्टियों को चुनती है। बेहतर होगा कि खुद को कोसें। सुधार होगा।

4. हमारे यहाँ कम्युनिज़्म की महिमा नहीं गाई जाती है क्योंकि इसकी सच्चाई 'Black book of Communism', 'पूंजी', 'कार्लमार्क्स और बुद्ध', 'Secret document of maoism' में दर्ज है।

5. हमारे यहाँ किसी धर्म/धम्म का प्रचार नहीं किया जाता है क्योंकि इंसान को इंसान बने रहने के लिए किसी धर्म की आवश्यकता नहीं है।

6. हमारे यहाँ महिलाओं के लिये उच्च स्तरीय सलाहकार मौजूद हैं और हम महिलाओं को पुरुषों के समान दिए गए अधिकारों की वकालत करते हैं।

7. हमारे यहाँ पशुओं का विशेष सम्मान किया जाता है क्योंकि वे असहाय और मानव द्वारा पीड़ित हैं। वे अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर पा रहे।

8. हमारे यहाँ पशुक्रूरता मुक्त (Vegan/वीगन) जीवन शैली को बढ़ावा दिया जाता है क्योंकि मानव को किसी की लिखित सहमति के बिना किसी पशु से किसी लेनदेन का हक नहीं है।

9. हमारे यहाँ विज्ञान, समानता, न्याय, कानून, स्वास्थ्य, नवीन खोजों, उपायों और वैज्ञानिक सिद्ध अव्यक्तिवादों का खुल कर ज्ञान और अनुभव बाँटा जाता है क्योंकि यही भविष्य हैं।

10. हमारे यहाँ धर्मों, रीतिरिवाजों, सामाजिकता, अंधविश्वास, अन्धविरोध और राजनैतिक पार्टियों/संगठनों और उनके दलालों की पोल खोली जाती है क्योंकि ये देश की दीमक हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt (10 commandments) 2019©

गुरुवार, सितंबर 12, 2019

एक विद्वान से भेंट ~ Shubhanshu


विद्वान: तू धर्ममुक्त नास्तिकों और Scientific Antinatlist Vegans को बुद्धिमान बता रहा है, साबित कर।
शुभ: 😂 ईश्वर, अल्लाह, god, भूत, प्रेत, पुनर्जन्म, प्रार्थना आदि वास्तविक हैं?
विद्वान: हाँ, और क्या?
शुभ: कभी देखा इनको? क्या भौतिक, रसायन, जीवविज्ञान में इसका समर्थन देखा आपने?
विद्वान: देखा तो नहीं, लेकिन ये वैज्ञानिक मूर्ख होते हैं। क्या वो बच्चा एक अकेली मादा से बना के दिखा सकते हैं?
शुभ: 😂 जी हाँ, क्लोनिंग इसी विधि का नाम है। केवल मादा के ही शरीर में बिना नर के बच्चा पैदा करना अब सम्भव है।
विद्वान: ओ तेरी! अबे इतनी knowledge लाता किधर से है?
शुभ: 😂 दूध और अंडा, आपके अनुसार जूस/फल/सब्जी हैं?
विद्वान: हाँ, और क्या? दोनो पेड़ पर लगते हैं।
शुभ: 😂 अच्छा था, क्या जंतुविज्ञान और वनस्पतिविज्ञान में कोई अंतर नहीं है?
विद्वान: नहीं, botanists और zoologist एक ही काम तो करते हैं। दोनो मानव के लिए भोजन बनाते हैं।
शुभ: 😂 अच्छा था, फिर बावर्ची क्या करता है? छोड़िये, मानव भी तो zoology में दर्ज एक जंतु ही तो है। वह भी सर्वाहारियो जैसे भालू, कुत्ते आदि का भोजन है। आप भी सर्वाहारी होने का दावा करते हैं, क्या समानता है आपमें और उनमें?
विद्वान: मेरे मुंह में केनाइन दांत है, जो इसका प्रमाण है।
शुभ: 😂 अच्छा था, कहाँ? मुझे तो नहीं दिख रहा।
विद्वान: अरे ठीक से देखो, बहुत छोटा सा है, हल्का सा नुकीला।
शुभ: 😂 हाँ, दिख गया कितने बड़े वाले हैं आप। सर्वाहारी। 😂 तो मानव को कब से खाना शुरू कर रहे हैं?
विद्वान: मानव अपनी ही प्रजाति को क्यों खाने लगा? भालू, भालू को, और कुत्ते, कुत्ते को नहीं खाते।
शुभ: सही पकड़े, अब ये बताओ, आदमख़ोर को मृत्युदंड की सज़ा क्यों दी जाती है यदि मानव, मानव को नहीं खाता? 😂 कहीं मृत्युदंड के डर से तो नहीं खा रहा इंसान सबके सामने? बहुत से रेस्टोरेंट इंसान का मांस बेचते और बहुत से लोग इंसान को खाते पकड़े गए हैं विश्व भर में। कल को आपको कोई खा जाए तो उसका पेट भरेगा। रोकना मत।
विद्वान: अबे, ये तो मैने सोचा ही नहीं।
शुभ: सोचने के लिये बुद्धि चाहिए होती है महोदय।
विद्वान: लेकिन फिर भी इंसान सबसे बुद्धिमान प्राणी है। आप बहुमत का विरोध कैसे कर सकते हो?
शुभ: इंसान की प्रजाति ही बुद्धिमान होती तो मानव अपनी ही पृथ्वी की जान का दुश्मन न बना होता। सज़ा और कानून न होते। झूठ, फरेब, बालत्कार, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, धर्म के नाम पर कत्लेआम न होते मानवों में। मानव खतरनाक है, अपनी खुद की प्रजाति, जन्तुओ और वनस्पति समेत पृथ्वी के लिए भी। ग्लोबल वार्मिंग बुद्धिमान मानव की मेहनत का ही परिणाम है।
विद्वान: फिर हम सब मूर्ख हैं क्या?
शुभ: सब नहीं, 96% इंसान। इसी को जांचने के लिये IQ test लिया जाता है। औसत IQ इसी के आसपास आंकड़े देता है विश्व भर में। केवल 4% लोग ही सफल होते हैं जीवन को ecofriendly, healthy और wealthy रूप से जीने में क्योंकि इनमें ही सर्वोच्च बुद्धि होती है। कुछ और साबित करना हो तो कहिये!
विद्वान: न, मैंने आपसे साबित करने को कह कर अपनी ही झंड करवा ली। आप 4% वाले लग रहे हो। माफ कर दे यार!
शुभ: कोई बात नहीं, इसी बहाने आपको कुछ जानने को मिला और मेरा अनुभव बढ़ा। आपको धन्यवाद! 

बुधवार, सितंबर 11, 2019

Unethical Selective Empathy ~ Shubhanshu


अनैतिक चुनिंदा दया (Immoral or unethical Selective Empathy) उन लोगों पर लागू होती है जो गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज करें। जैसे सर्वाहारी। पेड़-पौधे और जानवर को समान मानते हैं लेकिन खुद को अलग। उनके लिये एक कुत्ता और आम एक जैसे हैं लेकिन मानव दूसरे ग्रह आया कोई तीसरी प्रजाति है। उनकी नज़र में वनस्पति विज्ञान और जंतुविज्ञान समान है लेकिन जंतुविज्ञान में मौजूद मानव कोई तीसरी ही चीज है। मानव को कोई गाली भी दे दे तो उसके लिये सज़ा है लेकिन अपनी ही किंगडम में मौजूद करोड़ो जंतु प्रजातियां उनके लिये भोजन हैं।

कानून भी सिर्फ पशुक्रूरता अधिनियम बनाता है वनस्पति क्रूरता अधिनियम नहीं क्योंकि वो वनस्पति की जगह जन्तुओ को मानव समान समझता है, और केवल उनको बिना कष्ट दिए मारने (Humane Killing, Pain less killing) की अस्थायी छूट देता है ताकि धर्मनिरपेक्ष कहला सके। जिसका फायदा उठा कर हलाल मांस एक धार्मिक समुदाय बेच रहा है। नए अध्ययन साबित कर देंगे कि हलाल करने का तरीका दर्दरहित नहीं है।

लेकिन unethical सलेक्टिव करुणा वाले लोग मानव को ही दया का पात्र मानते हैं। जैसे ही पशुओं को भी मानव समान बता कर उनके अधिकारों की रक्षा का कानून बना है, बताओ तो ये गायब हो जाते हैं या इसका कोई जवाब ही नहीँ देते।

उनको मानव पर तो दया आती है लेकिन पशुजगत पर नहीं। लेकिन जैसे ही उनको पशुजगत पर दया करने वाले मिलते हैं उनको तुरन्त पेड़ पौधों पर दया आने लगती है और वे उपवास शुरू करके बिना भोजन के रहने लगते हैं। 😂

क्या वाकई मानव पर दूसरा मानव दया करता है? फिर कानून में हत्या, बलात्कार, चोरी, गुलामी करवाने पर सज़ा क्यों है? क्या यह मानवता, धर्म या डर से उतपन्न दिखावे की भावना तो नहीं? या इंसान पशुओं पर क्रूरता करते-करते अपनी मानवता ही खो चुका? आस्तिकों (आस्तिक स्वर्ग-नर्क के लालच में दया दिखाते हैं) के अलावा जो नास्तिक चुनावी पार्टी, संगठन से जुड़े हैं वे अपने सदस्यों की संख्या व वोट बैंक के लालच में मानवता का ढोंग तो नहीं कर रहे?

दरअसल इस तरह के लोगों के पास अधिक बुद्धि नहीं है। जगदीश चंद्र बसु के प्रयोग ने वनस्पति के अधूरे तंत्र को दर्शाया था जो कि बिना मस्तिष्क के था। उन्होंने क्रिस्कोग्राफ को मस्तिष्क की तरह प्रयोग किया और प्रोसेस डाटा को विश्लेषित करके उनके संवेदों को परिभाषित कर दिया। उनका प्रयोग पौधों के अवशेषी अंग को खोजने का था यानि बिना मस्तिष्क का विद्युत सांकेतिक सिस्टम। जो बिना मस्तिष्क के कुछ महसूस करने के लिए बेकार था और केवल प्रतिरक्षा तंत्र की तरह ही कार्यकारी है।

बाकी बुद्धिहीन लोगों ने बिना इस बिंदु को पकड़े इस प्रयोग को गलत तरीके से सत्य मान लिया कि पेड़ों में भी जन्तुओ जैसी भावना और दर्द होता है। अधिकतर विश्व उस समय तक मांसाहारी था तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया और इसका इस्तेमाल vegan लोगों को चिढ़ाने में किया जाने लगा। लेकिन मैं उन मूर्खों में से नहीं हूँ जो बिना तर्क के कोई बात मान जाऊं।

बिना मस्तिष्क के जो क्रिया शरीर करता है उसे रिफ्लेक्स कहते हैं। जिस तरह मांसपेशियों की एक मेमोरी होती है उसी तरह वनस्पतियों में भी एक अधूरा सिस्टम होता है जो उनको खुद को रिपेयर करने में मदद करता है। ये सिस्टम संकेत भेजता है सीधा कोशिकाओं को और वे रोबोट की तरह पहले से ही कोशिका मेमोरी के तहत पेड़ को रिपेयर कर लेती हैं। जबकि दर्द व भावना का विद्युत संकेत बिना मस्तिष्क के प्रोसेस नहीं हो पाता और बेकार हो जाता है। इसलिये पौधे कुछ महसूस नहीं करते।

छुईमुई की पत्तियों में एक जल प्रस्फुटन सिस्टम होता है जिसके कारण वह एक सेंस पैदा करता है और छूने पर जल पत्तियों से निकल कर वापस तने में चला जाता है, इसलिए पत्तियां मुरझा जाती हैं।

अब ये सम्वेदना के  संकेत वाला सिस्टम है क्यों जब काम का नहीं? दरअसल, जब जैवविकास हो रहा था तब तुक्के (उतपरिवर्तन) से इस तरह के बिना मस्तिष्क वाले जीव उतपन्न हुए। मस्तिष्क के न होने के कारण एक नया प्रतिरक्षा तंत्र वाला जीव पैदा हुआ। वनस्पतियों की प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति के कारण ही समस्त (99%) औषधियों का निर्माण वनस्पतियों से ही किया जाता है।

ये नए जीव भागते नहीं थे, देखते नहीं थे, इनकी कोई भी इंद्री नहीं होती है। (इंद्री बिना मस्तिष्क के हो ही नहीं सकती)। इनमें कई प्रजातियों का विकास हुआ। जिनमें स्वपोषी, परपोषी, मृतोपजीवी तथा सूक्ष्मजैविकी (microbiology) नाम की प्रमुख शाखाएँ हैं।

● स्वपोषी : हरित लवक (chlorophyll) वाले पौधे प्रकाश संश्लेषण करके सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करके ज़मीन में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते और संग्रह करते हैं। सबसे ज्यादा मात्रा मे यही पृथ्वी पर मौजूद हैं। पानी में भी ये शैवाल (algee) के रूप में होते हैं। यही हवा और पानी में ऑक्सिजन के निर्माता हैं जबकि समस्त जंतुजगत कार्बन डाई ऑक्साइड ही छोड़ सकता है। रात में यह श्वसन करके कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़ों से समस्त जन्तुओ को भोजन मिलता है और सांसें भी। जन्तुओ के बिना पेड़ पौधे भी नष्ट हो जायेंगे। दोनो एकदूसरे के पूरक हैं।

● परपोषी: अपना भोजन दूसरों से लेते हैं। जैसे मांसाहारी पौधे, अमर बेल आदि

● मृतोपजीवी: कवक, फफूंद, मशरूम आदि!

● सूक्ष्मजीव: इनमें सभी प्रकार के बैक्टीरिया आते हैं।

ये सभी पादप (फ्लोरा) के अंतर्गत आते हैं क्योंकि इन सभी में वनस्पति कोशिका पाई जाती है। वनस्पति कोशिका में सेलुलोस की बनी बाहरी दीवार होती है।

वनस्पतियों की खास बात यह है जो उनको जंतुओं से अलग करती है वह है मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का न होना। जो उनको एक जैविक निकाय (बायो सिस्टम) से अधिक कोई व्यक्ति नहीं साबित करती। साथ ही प्रकृति में मौजूद 99% जंतु वनस्पति को ही भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं जो कि प्रमाण है कि प्रकृति ने भोजन के रूप में केवल वनस्पतियों को ही बनाया है। जंतुओं को नहीं।

1% मांसाहारी (जैसे शेर व बिल्ली परिवार के अन्य सदस्य) और सर्वाहारियो (भालू, कुत्ता आदि) में शिकार करने के लिये ज़रूरी हथियार उनके शरीर में ही उगे होते हैं और उनकी लार में कीटाणु नाशक तत्व होते हैं। उनका पाचन तंत्र छोटा और मांस पचाने के अनुकूल होता है। जबकि herbivores (vegan) जंतु के शरीर में विपरीत लक्षण होते हैं।

अतः जो जिस भोजन के लिए बना है उसे वही करना चाहिए। यह मजबूरी है न कि चुनाव। चुनाव होता है एक समान वस्तुओं में से जो एक दूसरे के compatible हों। न कि किसी के हक को मारना। आप गोल छेद में चौकोर छड़ नहीं घुसा सकते।

जो लोग अब भी अपनी अनैतिक (unethical) चुनिंदा करुणा पर अड़े हैं, उनसे चलते-चलते एक सवाल:

प्रश्न: यदि आपके सामने आपके अधेड़ उम्र के माता/पिता, पड़ोसी, दोस्त, पालतू कुत्ता, सेब, रखा हो और आपको भूख लगी हो तो क्या करोगे?

PS: कुछ चुनोगे तो सलेक्टिव एमपेथी के शिकार हो जाओगे और अगर नहीं तो भूखे मरोगे। भोजन में ethically सलेक्टिव होना ही पड़ता है, ये याद रखिये। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

Note: Selective Empathy का तातपर्य है कि हर जंतु/वनस्पति अपने करीबी के प्रति अधिक दयावान व सहज होता है। उदाहरण के तौर पर इंसान अपने करीबी इंसान के प्रति पहले मानवता दिखाता है और पशु के प्रति बाद में। उसके बाद उसे छोटे जंतुओं के प्रति दया दिखती है और सबसे अंत में वनस्पतियों के प्रति। अर्थात सबसे कम दया इंसान पेड़-पौधों के प्रति दिखाता है। इसीलिये अगर वनस्पति जंतु भी होती और हम मांसाहारी भी होते तो भी हम पेड़-पौधे ही खाते न कि पशु।