अनैतिक चुनिंदा दया (Immoral or unethical Selective Empathy) उन लोगों पर लागू होती है जो गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज करें। जैसे सर्वाहारी। पेड़-पौधे और जानवर को समान मानते हैं लेकिन खुद को अलग। उनके लिये एक कुत्ता और आम एक जैसे हैं लेकिन मानव दूसरे ग्रह आया कोई तीसरी प्रजाति है। उनकी नज़र में वनस्पति विज्ञान और जंतुविज्ञान समान है लेकिन जंतुविज्ञान में मौजूद मानव कोई तीसरी ही चीज है। मानव को कोई गाली भी दे दे तो उसके लिये सज़ा है लेकिन अपनी ही किंगडम में मौजूद करोड़ो जंतु प्रजातियां उनके लिये भोजन हैं।
कानून भी सिर्फ पशुक्रूरता अधिनियम बनाता है वनस्पति क्रूरता अधिनियम नहीं क्योंकि वो वनस्पति की जगह जन्तुओ को मानव समान समझता है, और केवल उनको बिना कष्ट दिए मारने (Humane Killing, Pain less killing) की अस्थायी छूट देता है ताकि धर्मनिरपेक्ष कहला सके। जिसका फायदा उठा कर हलाल मांस एक धार्मिक समुदाय बेच रहा है। नए अध्ययन साबित कर देंगे कि हलाल करने का तरीका दर्दरहित नहीं है।
लेकिन unethical सलेक्टिव करुणा वाले लोग मानव को ही दया का पात्र मानते हैं। जैसे ही पशुओं को भी मानव समान बता कर उनके अधिकारों की रक्षा का कानून बना है, बताओ तो ये गायब हो जाते हैं या इसका कोई जवाब ही नहीँ देते।
उनको मानव पर तो दया आती है लेकिन पशुजगत पर नहीं। लेकिन जैसे ही उनको पशुजगत पर दया करने वाले मिलते हैं उनको तुरन्त पेड़ पौधों पर दया आने लगती है और वे उपवास शुरू करके बिना भोजन के रहने लगते हैं। 😂
क्या वाकई मानव पर दूसरा मानव दया करता है? फिर कानून में हत्या, बलात्कार, चोरी, गुलामी करवाने पर सज़ा क्यों है? क्या यह मानवता, धर्म या डर से उतपन्न दिखावे की भावना तो नहीं? या इंसान पशुओं पर क्रूरता करते-करते अपनी मानवता ही खो चुका? आस्तिकों (आस्तिक स्वर्ग-नर्क के लालच में दया दिखाते हैं) के अलावा जो नास्तिक चुनावी पार्टी, संगठन से जुड़े हैं वे अपने सदस्यों की संख्या व वोट बैंक के लालच में मानवता का ढोंग तो नहीं कर रहे?
दरअसल इस तरह के लोगों के पास अधिक बुद्धि नहीं है। जगदीश चंद्र बसु के प्रयोग ने वनस्पति के अधूरे तंत्र को दर्शाया था जो कि बिना मस्तिष्क के था। उन्होंने क्रिस्कोग्राफ को मस्तिष्क की तरह प्रयोग किया और प्रोसेस डाटा को विश्लेषित करके उनके संवेदों को परिभाषित कर दिया। उनका प्रयोग पौधों के अवशेषी अंग को खोजने का था यानि बिना मस्तिष्क का विद्युत सांकेतिक सिस्टम। जो बिना मस्तिष्क के कुछ महसूस करने के लिए बेकार था और केवल प्रतिरक्षा तंत्र की तरह ही कार्यकारी है।
बाकी बुद्धिहीन लोगों ने बिना इस बिंदु को पकड़े इस प्रयोग को गलत तरीके से सत्य मान लिया कि पेड़ों में भी जन्तुओ जैसी भावना और दर्द होता है। अधिकतर विश्व उस समय तक मांसाहारी था तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया और इसका इस्तेमाल vegan लोगों को चिढ़ाने में किया जाने लगा। लेकिन मैं उन मूर्खों में से नहीं हूँ जो बिना तर्क के कोई बात मान जाऊं।
बिना मस्तिष्क के जो क्रिया शरीर करता है उसे रिफ्लेक्स कहते हैं। जिस तरह मांसपेशियों की एक मेमोरी होती है उसी तरह वनस्पतियों में भी एक अधूरा सिस्टम होता है जो उनको खुद को रिपेयर करने में मदद करता है। ये सिस्टम संकेत भेजता है सीधा कोशिकाओं को और वे रोबोट की तरह पहले से ही कोशिका मेमोरी के तहत पेड़ को रिपेयर कर लेती हैं। जबकि दर्द व भावना का विद्युत संकेत बिना मस्तिष्क के प्रोसेस नहीं हो पाता और बेकार हो जाता है। इसलिये पौधे कुछ महसूस नहीं करते।
छुईमुई की पत्तियों में एक जल प्रस्फुटन सिस्टम होता है जिसके कारण वह एक सेंस पैदा करता है और छूने पर जल पत्तियों से निकल कर वापस तने में चला जाता है, इसलिए पत्तियां मुरझा जाती हैं।
अब ये सम्वेदना के संकेत वाला सिस्टम है क्यों जब काम का नहीं? दरअसल, जब जैवविकास हो रहा था तब तुक्के (उतपरिवर्तन) से इस तरह के बिना मस्तिष्क वाले जीव उतपन्न हुए। मस्तिष्क के न होने के कारण एक नया प्रतिरक्षा तंत्र वाला जीव पैदा हुआ। वनस्पतियों की प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति के कारण ही समस्त (99%) औषधियों का निर्माण वनस्पतियों से ही किया जाता है।
ये नए जीव भागते नहीं थे, देखते नहीं थे, इनकी कोई भी इंद्री नहीं होती है। (इंद्री बिना मस्तिष्क के हो ही नहीं सकती)। इनमें कई प्रजातियों का विकास हुआ। जिनमें स्वपोषी, परपोषी, मृतोपजीवी तथा सूक्ष्मजैविकी (microbiology) नाम की प्रमुख शाखाएँ हैं।
● स्वपोषी : हरित लवक (chlorophyll) वाले पौधे प्रकाश संश्लेषण करके सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करके ज़मीन में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते और संग्रह करते हैं। सबसे ज्यादा मात्रा मे यही पृथ्वी पर मौजूद हैं। पानी में भी ये शैवाल (algee) के रूप में होते हैं। यही हवा और पानी में ऑक्सिजन के निर्माता हैं जबकि समस्त जंतुजगत कार्बन डाई ऑक्साइड ही छोड़ सकता है। रात में यह श्वसन करके कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़ों से समस्त जन्तुओ को भोजन मिलता है और सांसें भी। जन्तुओ के बिना पेड़ पौधे भी नष्ट हो जायेंगे। दोनो एकदूसरे के पूरक हैं।
● परपोषी: अपना भोजन दूसरों से लेते हैं। जैसे मांसाहारी पौधे, अमर बेल आदि
● मृतोपजीवी: कवक, फफूंद, मशरूम आदि!
● सूक्ष्मजीव: इनमें सभी प्रकार के बैक्टीरिया आते हैं।
ये सभी पादप (फ्लोरा) के अंतर्गत आते हैं क्योंकि इन सभी में वनस्पति कोशिका पाई जाती है। वनस्पति कोशिका में सेलुलोस की बनी बाहरी दीवार होती है।
वनस्पतियों की खास बात यह है जो उनको जंतुओं से अलग करती है वह है मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का न होना। जो उनको एक जैविक निकाय (बायो सिस्टम) से अधिक कोई व्यक्ति नहीं साबित करती। साथ ही प्रकृति में मौजूद 99% जंतु वनस्पति को ही भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं जो कि प्रमाण है कि प्रकृति ने भोजन के रूप में केवल वनस्पतियों को ही बनाया है। जंतुओं को नहीं।
1% मांसाहारी (जैसे शेर व बिल्ली परिवार के अन्य सदस्य) और सर्वाहारियो (भालू, कुत्ता आदि) में शिकार करने के लिये ज़रूरी हथियार उनके शरीर में ही उगे होते हैं और उनकी लार में कीटाणु नाशक तत्व होते हैं। उनका पाचन तंत्र छोटा और मांस पचाने के अनुकूल होता है। जबकि herbivores (vegan) जंतु के शरीर में विपरीत लक्षण होते हैं।
अतः जो जिस भोजन के लिए बना है उसे वही करना चाहिए। यह मजबूरी है न कि चुनाव। चुनाव होता है एक समान वस्तुओं में से जो एक दूसरे के compatible हों। न कि किसी के हक को मारना। आप गोल छेद में चौकोर छड़ नहीं घुसा सकते।
जो लोग अब भी अपनी अनैतिक (unethical) चुनिंदा करुणा पर अड़े हैं, उनसे चलते-चलते एक सवाल:
प्रश्न: यदि आपके सामने आपके अधेड़ उम्र के माता/पिता, पड़ोसी, दोस्त, पालतू कुत्ता, सेब, रखा हो और आपको भूख लगी हो तो क्या करोगे?
PS: कुछ चुनोगे तो सलेक्टिव एमपेथी के शिकार हो जाओगे और अगर नहीं तो भूखे मरोगे। भोजन में ethically सलेक्टिव होना ही पड़ता है, ये याद रखिये। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
Note: Selective Empathy का तातपर्य है कि हर जंतु/वनस्पति अपने करीबी के प्रति अधिक दयावान व सहज होता है। उदाहरण के तौर पर इंसान अपने करीबी इंसान के प्रति पहले मानवता दिखाता है और पशु के प्रति बाद में। उसके बाद उसे छोटे जंतुओं के प्रति दया दिखती है और सबसे अंत में वनस्पतियों के प्रति। अर्थात सबसे कम दया इंसान पेड़-पौधों के प्रति दिखाता है। इसीलिये अगर वनस्पति जंतु भी होती और हम मांसाहारी भी होते तो भी हम पेड़-पौधे ही खाते न कि पशु।
1 टिप्पणी:
वाह! मजा आ गया पढ़ने में। तर्क और प्रमाणों से लैस आर्टिकल।����❣
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