Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, जून 29, 2018

क्या है अवयस्कता और अश्लीलता

भारतीय कानून में महिला के चूचुक (nipple), योनि, पुरुष के लिंग को obseen (18+) माना जाता है। इसी कारण इनको दिखाने की अनुमति बच्चों के सामने (सार्वजनिक स्थानों में जहाँ अवयस्क आ सकते हैं) नहीं दी जाती।

जैसे कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंन्त्रता, देशद्रोह, समानता का अधिकार, स्त्रियों के लिये एक पक्षीय कानून, स्वएच्छिक समलैंगिकता, पुरुष बलात्कार को अनदेखा करने इत्यादि में मतभेद और विसंगति है वैसे ही यह भी है। बिना किसी कारण के इसे कानून में रखा गया है। इसलिए जब लोग इसका विरोध करेंगे तो यह हट जाएगा।

बच्चे क्यों नहीं देख सकते वह जो उनके पास भी है, यह समझ से परे है। लेकिन वह हैं न कि वर्चस्व उन्हीं का होता है जो संख्या में ज्यादा होते हैं न कि बुद्धि में। 96% मूर्ख दुनिया चला रहे हैं और 4 प्रतिशत मेरे जैसी पोस्ट बना रहे हैं। नमस्कार। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

मैं हूँ पृथ्वीवासी

मुझे लगता है भारत के लोग एक दूसरे से ही इतनी नफरत करते हैं कि उन्होंने अपने-अपने प्रान्त/क्षेत्र में पैदा होने के जैसे तुच्छ कार्य को ही गौरव का विषय बना लिया है। यही बात आपने फ़िल्म चक दे इंडिया में भी देखी थी। उसका कोई असर भारतीयों पर नहीं पड़ा। बल्कि अब तो वह अपनी DP भी अपनी जाति, धर्म व स्थान पर गर्व करने को लेकर समर्पित करे दे रहे हैं।

क्या हम कभी भारतीय नहीं बनेंगे? क्या पाकिस्तान, तेलंगाना, नेपाल, भूटान, उत्तराखंड, पश्चिम-पूर्व उत्तरप्रदेश आदि जैसे तमाम टुकड़े होते रहेंगे? खालिस्तान, हरिजनिस्तान आदि कितने टुकड़े करने पर लोग आमादा हो रहे हैं?

मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि पृथ्वी पर कोई सरहद भी होती। मैं खुद को भारतीय कह सकता हूँ जब मैं दूसरे देश में हूँ तो लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा हूँ उस दिन का जब इंसान अपनी गलतियों को सुधार लेगा। जनसँख्या कम करके धर्ममुक्त, विवाहमुक्त, सन्तानमुक्त (जब तक जनसंख्या नाजुक स्तर पर न पहुंचे), Vegan और तर्कवादी बन जाएगा, तब मैं गर्व से कह सकूँगा कि हाँ मैं पृथ्वीवासी हूँ। ~ Vegan, Religion free, Rationalist, Antinatalist (child free), marriage free Shubhanshu Singh Chauhan

बुधवार, जून 27, 2018

सही कहा न?

हम किसी को नही बदल सकते। जिनको बदलना है वे हमारे विचार पढ़ कर बदल जाएंगे। कुआ प्यासे के पास नहीं जाता। हम तो मस्त हैं। दुनिया पस्त है। ज़रूरत है तो वह हमारे पास आएगी।

मुझे लोगों के लिये नहीं बदलना। लोगों को बदलना है तो मुझे देख के बदल जायें या तेल लेने जाएं। हम किसी को चम्मच से नहीं खिला सकते। सही कहा न? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free 😀

कश्मीर जी और शुभाँशु जी

आप सभी को बड़ी मेहनत से मुफ्त में जानकारी दी जा रही है तो जो आपको अपने काम की लगे, लीजिये और बांटिए। कश्मीर जी व्यक्तिगत तौर पर कुछ भी हों लेकिन वे केवल पुस्तकों में लिखे सत्य को सामने लाते हैं जिसको कोई प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं। सहमत हैं तो बस छोटा सा प्रोत्साहित करता हुआ रिप्लाई कर दें। काफी रहेगा। प्रमाणित बात को बहस का मुद्दा न बनने दें। संशय होने पर उनसे सन्दर्भ मांग लें।

मैं काश्मीर जी से मेरे एक पुराने fb मित्र Shailendra Kumar जी के द्वारा तब परिचित हुआ जब मेरा एक नास्तिक समूह के एडमिन के गाली देने पर उसकी रिपोर्ट दूसरे एडमिन से करने पर मुझे बहुत ज्यादा गाली गलौच करके जान से मारने की धमकी देने और ग्रुप से निकालने की धमकी देने पर मुझे ग्रुप छोड़ना पड़ा था। उस दौरान मुझे शैलेंद्र ने इनसे मिलने की सलाह दी कि इनसे मिलिए यह उन एडमिन की तरह पक्षपाती नहीं हैं। तब उनके द्वारा दिये गए लिंक से मेरी इनसे भेंट हुई।

कुछ दिनों बाद पता चला कि इनको भी वही झेलना पड़ा जो मेरे साथ हुआ था उस समूह में। तब हम दोनों ने स्क्रीनशॉट एक दूसरे को दिखाए एडमिनिस्ट्रेशन के और तब हम लोगों को एक दूसरे से सहानुभूति भी हो गई। 

Kashmir जी ने अपनी एक वेबसाइट मेरी जानपहचान के बाद बनाई dharmamukt.in.

मुझे उन्होंने इसमें लिखने के लिये आमंत्रित किया। हम दोनों के लेखन में ज़मीन आसमान का अंतर था इसलिये एक ही वेबसाइट पर दोनो का लेखन उलझन पैदा करने लगा। इसलिये मैंने अपनी एक अलग वेबसाइट बनाई और कश्मीर जी ने मुझे अपना डोमेन देकर दोस्ती बनाये रखी।

इसलिए मैंने जो वेबसाइट बनाई उसका नाम zaharbujhasatya.dharmamukt.in पड़ा। ज़हरबुझा सत्य मेरा चुनाव था और धर्ममुक्त.इन मुझे कश्मीर जी ने दिया। मैं सामाजिक/वैज्ञानिक/व्यंग्य/लेख/निबंध/कथा आदि समस्त विषयों पर लिखता हूँ इसलिये मेरी अलग वेबसाइट होना बहुत ज़रूरी था और यह हो भी गया। धन्यवाद कश्मीर जी।

मेरा और कश्मीर जी का बस दोस्त जैसा रिश्ता है जैसा आपसे है। हम दोनों धर्ममुक्त के सिद्धांत पर एक समान हैं इसलिए दोस्त बने। न वे मेरे गुरु है और न मैं उनका। हम सहयोगी हैं बस। हम दोनों बाकी बहुत जगह पर अलग और भिन्न सोच वाले हैं लेकिन एक दूसरे को बदलने की कोशिश नहीं करते। एक दूसरे को चेताते/सावधान ज़रूर करते हैं लेकिन अंत में वही करते हैं जो मन करता है। कोई बाध्यता न मैं लगाता हूँ और न वे।

मेरे और उनके व्यक्तित्व/व्यवहार बिल्कुल अलग हैं जिनके लिये हम खुद ज़िम्मेदार हैं। कृपया हम लोगों को एक सा समझ कर अपनी मूर्खता का परिचय न दें। हर इंसान अपनी खूबियों और कमियों के साथ पैदा होता है जिससे सभी लोग समर्थन नहीं भी रखते हैं। यह मौलिकता ही हमें किसी को याद रखने में मदद करती है।

अतः सभी से निवेदन है कि सभी लोग खुद को समझदार समझें और एक दूसरे को व्यक्तिगत तौर पर हमारे बारे में फालतू बोलने और सोचने पर रोकें, समाज सुधार पर ध्यान दें। न कि अपनी बहन/बेटी के लिये हमसे रिश्ता जोड़ने के लिये व्यक्तिगत चरित्र प्रमाणपत्र देने लगें। वैसे भी वे शादीशुदा बीवी/बच्चेधारी हैं और मैं विवाहमुक्त डेटिंग/लिवइन समर्थक। धन्यवाद।

आशा करता हूँ कश्मीर जी भी मेरी इस बात से सहमत होंगे। आपका प्रिय Mr. Shubhanshu Singh Chauhan, Vegan, Non Religious (धर्ममुक्त)। M.Sc. Zoology, DFD, PGDM, PDCA

Veganism एक धर्ममुक्त/तटस्थ जीवनशैली है ~ Shubhanshu

वीगनिस्म को लोग हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख धर्म से जोड़ कर देख लेते हैं, जबकि कोई भी हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख vegan नहीं होता। वो lacto-ovo-honay-vegetarian होते हैं। अर्थात dairy, honey और eggs को वनस्पति अधारित भोजन के साथ खाने वाले।

जबकि धर्म के नज़रिए से देखा जाए तो मांसभक्षियो में सिख, मुस्लिम, ईसाई, पारसी इत्यादि आते हैं। शाकाहार एक सर्वाहारी प्रकार की diet है जबकि वीग्निसम एक जीवनशैली है जिसमे herbivores diet सिर्फ एक भाग है जो ये भी साबित करती है कि मनुष्य का सर्वाहारी होना एक मिथक है।

मनुष्य पूरी तरह स्वस्थ√ और लम्बा यौवन भरा* जीवन जी सकता है अगर वह इसे जल्दी ही अपनाता है अर्थात, 30 साल की उम्र से पहले। मैंने 10 वर्ष की उम्र में अपनाया।

उसके बाद अपनाने में जो carsinogens, bad cholesterol, hormones etc मजबूती और गहराई से जमा हो चुके होते हैं उनको हटाने में बहुत देर हो सकती है। तब तक शायद वे अपना काम कर जाएं।

साथ ही

1. क्रूरता मुक्त जीवन शैली।
2. खुद को जानवरों के साथ जोड़ने का आनंद, जैसे आप अपने कुत्ते को प्यार करते हैं।
4. जियो और जीने दो के सिद्धांत के पालन का सुख।
5. जानवरों को वस्तु न समझ कर मित्र समझने का सुख।
6. उनका शोषण रोकने में, जैसे तांगा, बैल गाड़ी इत्यादि।
7. उनका फर, चमड़े, और भोजन (जैसे शहद, दूध इत्यादि) को न लेना।
8. Dairy उद्योग नर बछड़े के हिस्से का दूध छीन कर उसे मार देने का और जानवर के साथ बलात्कार तथा अत्याचार का प्रमुख ज़िम्मेदार है।

√क्योकिं arteries में cholesterol ही अवरोध पैदा करता है और ह्रदयघात का मुख्य कारण है। सभी के मांस, अंडे और दूध में carsinogens और cholesterol पाए जाते हैं, जो कैंसर, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, गठिया और अन्य लाइलाज बीमारियों का जनक बनता है। जबकि वनस्पति जगत इन सब से मुक्त है।

*क्योकि फ्री रेडिकल जो बूढ़ा बनाता है, उसे नष्ट करने वाला एंटीऑक्सीडेंट केवल वनस्पतियों में ही पाया जाता है।

- एक खास post उनके लिये जिनको वीगनिस्म धार्मिक लगता है। vegan नास्तिकों से जुड़ने के लिये vegan atheist ग्रुप join करें। Shubhanshu

विज्ञानवादियों के लिये चेतावनी ~ Shubhanshu

मेरे Scientific Method Friends♀ आपको एक गहरी सलाह। आप किसी से अनर्गल बहस न करें। आपकी सोच को चोट लगी तो उलझ जायँगे और फिर भटक सकते हैं।

अग्नोस्टिक लोग आपको Atheist or Theist or Rational बन कर मिल सकते हैं और वे आपका समय खराब कर सकते हैं, उल्टे सीधे ट्रिक प्रश्नो से जिनको इनके आकाओं (तथाकथित आध्यत्मिक गुरु) ने बहुत मेहनत से तैयार करके दिया है। उनमें आप उलझ जाओगे। वह कुछ साबित नहीं करेंगे। बस कह देंगे कि कोई है और आप सारा घर छान मारोगे और वे कहते रहेंगे कि है कोई, ढूँढो।

वे बैठे रहेंगे लेकिन आप की घुइयां बिक जाएंगी, उसे ढूंढते-ढूंढते। यही है सन्देह पैदा करो की नीति। चक्रव्यूह वाली नीति। जिससे आज तक आस्तिकता जीतती आई है और परोपकारी नास्तिक उनकी मदद करने के बहाने बर्बाद होते रहे हैं।

वे पूछेंगे कि ब्रह्मांड कैसे बना?

आप कहोगे कि बिग-बैंग या स्ट्रिंग सिद्धान्त से लेकिन वे कहेंगे कि यह तो सिद्धान्त है। क्या सुबूत है कि ऐसा ही हुआ था?

आप फिर उलझ जाओगे और आपके मन में भी यह लोग सन्देह पैदा कर देंगे, क्योकि हम लोग भूतकाल में जाकर कुछ नहीं देख सकते।

ये फिर कहेंगे कि यह दुनिया अपने आप कैसे चल रही है? जीवन-मृत्यु क्यों हो रही है? नए जीव जंतु, पृथ्वी का घूमना, सुबह, शाम का होना कैसे है?

आप इनको गुरुत्व का सिद्धांत बताओगे तो वे कहेंगे कि यह भी क्या सत्य है? क्या पता यह घनत्व हो? सूर्य चन्द्र वैसे न हों जैसा विज्ञान बताता है। क्या पता यह सब झूठ हो? आपने थोड़े ही जाकर देखा है उपर अंतरिक्ष में। फिर आपको सन्देह उतपन्न हो जाएगा क्योकि आप ऐसे ही नासा के यान में नहीं जा सकते।

गए भी तो वह कहेंगे कि आप झूठे हो। उन्होंने (नासा) आपको खरीद लिया है और आप उनकी बोली बोल रहे हो। सब सुबूत नकली हैं। आप फिर से हताश हो जाओगे।

फिर वह कहेंगे कि शरीर से ऐसा क्या निकल जाता है (जबकि शरीर स्वस्थ हो) जिससे मृत्यु हो जाती है?

यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रश्न है। आप ऐसे ही इसका उत्तर नहीं दे सकते। यह प्रश्न ही गलत है क्योकि पूछने वाले को पता ही नहीं है कि मस्तिष्क की मृत्यु ही असली मृत्यु है। मस्तिष्क में कोई समस्या होने पर मृत्यु हो सकती है या बूढ़ा शरीर दिमाग को रक्त भेजने में असमर्थ हो जाये तब भी।

पूछने वाला पहले से आत्मा की अवधारणा से ग्रस्त है। वह बस आपके मुहँ से यह निकलवाना चाहता है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हैं। आत्मा जैसा कुछ होता तो हमारा शरीर कभी मरता ही नहीं। जैसे आत्मा मृत शरीर में घुस कर उसको जीवित कर देने का कथित गुण रखती है उस प्रकार तो आत्मा को स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए। जबकि खून बहने, ज़हर से शरीर क्षतिग्रस्त होने भर से मृत्यु हो जाती है।

कुछ लोग कोमा में लकवाग्रस्त होकर वर्षों तक जीवित रहते हैं लेकिन उनकी कथित आत्मा उनका साथ नहीं छोड़ती। 4 हाथ-पैर से लाचार लोग भी पूरा जीवन जीते हैं। इस हिसाब से आत्मा बेकार के शरीर को छोड़ देती है जैसी अवधारणा भी समाप्त हो गई।

अतः शरीर के कमजोर होने से या क्षतिग्रस्त होने से ही मानसिक मृत्यु हो सकती है। हेड ट्रांसप्लांट के ज़रिये यह बात भी साबित हो रही है कि हम सिर्फ दिमाग ही है और हम शरीर बदल सकते हैं यदि अनुकूल उपकरण और तकनीक उपलब्ध हो।

लेकिन इतना ज्ञान इन अनपढों के पास नहीं होता इसलिये आप इनको कितना भी समझा लो वे कहते रहेंगे, "क्या? कुछ समझ में नहीं आ रहा।" कोई लिंक देंगे तो भी इनका वही जवाब होगा कि कुछ समझ में नहीं आया। दरअसल यह वह सब पढ़ते ही नहीं। उनको थोड़े ही बदलना है खुद को। वे तो आपको तोड़ने आये हैं।

दीवार पर सिर मारने से दीवार को चोट नहीं लगती। शायद आप समझ गए हों। बाकी आपकी मर्जी। सत्यमेव जयते!

♀ Scientific Method (वैज्ञानिक विधि): देखें विकिपीडिया। जिसने इसे जान लिया समझो दुनिया को जान लिया। गहरा राज़ है जो आपको बता रहा हूँ क्योंकि आपसे कुछ उम्मीदें हैं। मानवता को बचाने की। मैं तो मस्त हूँ। नमस्ते। ~ Mr. Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Dharmamukt (Religion Free)  2018/06/27 03:24

सफेद कपड़े का रहस्य ~ Shubhanshu

नेता जनता को पति समझ कर उसकी सेवा करने का संकल्प लेता है। लेकिन ज्यादातर मामले में जनता मर जाती है।

उसपे मारने का आरोप न लगे इसलिये पहले से विधवा बना घूमता है।

अब कोई मुझे, सच्चाई, पवित्रता, सादगी, ईमानदारी, शांति का रंग सफेद मत बताने लगना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। नेता ऐसे नहीं होते। हाँ ये और बात है कि कायरता यानी संधि का रंग भी सफेद होता है यह हम मानते हैं। ~ Mr. Shubhanshu 2018©

मंगलवार, जून 26, 2018

आह्वान ~ Shubhanshu

पूर्व में हुए महान लोगों की उपलब्धियों को देखते हुये लगता है कि इनके जितना कर पाना सम्भव नहीं है। लेकिन ये तो मुझे भी स्कूल देख के लगा था कि इसे पास कर पाना सम्भव नहीं है। पहाड़ देख कर कभी नहीं लगता कि हम कभी इस पर चढ़ भी पाएंगे लेकिन पता भी नहीं चलता कब पार कर गए हम उसको।

अतः मान लीजिये कि पहले वाले लोगों ने कुछ ज्यादा नहीं कर पाया तभी तो हम आज भी दुःखी हैं। आप और हम मिल कर उनसे भी बड़े महापुरुष/महास्त्री बन कर दिखलायेंगे। आ जाओ इस अघोषित प्रतियोगिता में। छोड़ दो घर-बार घर-गृहस्थी। हो जाओ आज़ाद और निकल पड़ो, कलम और कागज लेकर अपना जीवन बदलने। विचार बनाये मानव, मानव बनाये दुनिया। विचार बनाये दुनिया।

कहीं ठोकर खाना तो मुझे खूब गालियां देना लेकिन कुछ बन जाओ तो मेरा नाम न लेना। अपनी ही शक्ति से तुम कुछ पा लोगे। मेरे नाम से सब खो जाएगा। सब तुम्हारा होकर भी मेरा हो जाएगा। तुम सब पाकर भी खो दोगे। मुझ को मील का पत्थर समझो और भूल जाओ।

तुम अपना जीवन लाये थे उसे जी जाओ। इस असली ज्ञान को पी जाओ। छोड़ो आलस, और अपने चाहने वालों को, जियो अपने सपने अपने ही दम पर। आओ, निकलो घर से, निकलो समाज से, अकेले हो जाओ। दुनिया तुमको ढूंढेगी, तुमसे मिलना चाहेगी। अभी कुछ नहीं हो तुम तब बहुत कुछ होंगे। अभी बुद्धू हो तुम, तब बुद्ध होंगे। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free, आह्वान एक नए युग का, आह्वान एक नए जीवन का, आह्वान एक नई सदी का। 🙆

शनिवार, जून 23, 2018

मैं हूँ अंक 1 ~ Shubhanshu

जानिए कि क्यों हूँ मैं सँख्या क्रमांक 1:-

1. यह डिजिटल दुनिया है।

2. यह कंप्यूटर की बाइनरी भाषा में लिखी गयी है।

3. इस भाषा में 0 और 1 का ही प्रयोग सब कुछ बनाने में किया जाता है। बाइनरी मतलब 2 अंक।

4. 1 का अर्थ होता है on यानी yes और 0 का अर्थ होता है off यानी no.

5. वास्तविक दुनिया में yes मतलब सकारात्मक (positive) और no मतलब नकारात्मक (negative).

6. सकारात्मक विचार नकारात्मक से 1000 गुना शक्तिशाली पाया गया है। इसी को आशा कहते हैं और यह ही हमको जीवित रखती है। सुना होगा कि उम्मीद पर दुनिया कायम है।

7. मैं positivist हूँ अतः सकारात्मकता वादी (तर्कवादी), परफेक्शनिस्ट भी इसलिये मेरे लिये इस बाइनरी भाषा वाली दुनिया के लिये 1 अंक उचित है।

8. शून्य (0) बर्बादी का प्रतीक है। विनाश का प्रतीक है। 1 का मतलब सृजन है। मैं बनाता हूँ इसलिये मेरे लिए यह 1 उचित लगा खुद को दर्शाने के लिये।

~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion free 2018©

माफ़ करना! जीरो नहीं हूँ मैं।

एक हाल ही का अनुभव बताता हूँ। मुझे fb ने कुछ लोगों के नाम सुझाये जिनके प्रोफाइल में लिखा था "शून्य हूँ मैं या जीरो हूँ मैं" आदि। मुझे लगा कि बेचारे सीधे हैं सच में। मैंने इनको लिस्ट में जोड़ लिया।

अब इनकी post देखीं। सभी में यह खुद को सर्वे सर्वा बता रहे थे। इनकी सोच अंतिम सोच होती है। इसके आगे कोई सोच ही नहीं सकता ऐसा महसूस हुआ।

इनकी व्यवहार शैली भी एक समान मिली। मेरे fb app में जब कोई दूसरा कमेंट करता है जब मैं लिख रहा होता हूँ तो सारा लिखा हुआ गायब हो जाता है। इसलिये मैं एक दो वाक्य लिखते ही या जैसे ही कोई कमेंट लिख रहा है का संकेत आता है तो मैं लिखा हुआ ही पोस्ट कर देता हूँ। इसको ये लोग कहते हैं कि मैं उत्तेजित हो गया हूँ या दूसरे को मौका ही नहीं देता हूँ। धैर्य नहीं है मुझमें आदि तमाम व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं।

खुद मेरे एक भी विचार को like  नहीं करेंगे, टिप्पणी तभी करेंगे जब अपमान करना हो और भाषा में आप ज़रूर होगा लेकिन लहज़ा बार बार आप के ऊपर हंसने वाला, मजाक उड़ाने वाला होगा। फिर सोचता हूँ कि वह जीरो कैसे आया इनके दिमाग में।

दरअसल इनको इनके घमण्ड के चलते सब लोगों ने डांटा है कि आप अपने को समझते क्या हैं? आप कुछ नहीं हैं! आप जीरो हैं।

बस इन्होंने यह ताना इतनी बार सुना कि सुधरने के स्थान पर खुद को ही जीरो का टैग लगा दिया। अब लोग इनको बोलेंगे जीरो, तो ये कहेंगे कि हां वे तो पहले से ही लिखे हुए हैं। यह घमण्ड और खुद को सर्वेसर्वा समझने की निशानी है कि कोई खुद को शून्य लिखे।

खुद को अहं बृहमास्मि कहने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं इसलिये विनोदी व्यवहार के लिये ऐसे शब्द प्रयोग करते हैं जिनसे खुद के लिए आदर का भान होता है। लेकिन वे दिल के साफ होते हैं। उनसे आप कहेंगे कि आप कुछ नहीं हैं तो वे कहेंगे कि आप सिखा दीजिये।

आगे से खुद की तारीफ करने वाले अकेले पड़ गए लोगों को गलत मत समझियेगा क्योकि वे अपनी तारीफ इसलिये करते हैं क्योकि कोई और नहीं करता।

लेकिन जो खुद को कमतर और नीचा दिखाते हैं वे दरअसल बेशर्म होते हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या कहा जायेगा इसलिये वे खुद को ढीठ बनाने के लिये पहले ही वह लेबल लगा लेते हैं।

मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा लेकिन देखना उनकी ईगो उनको यहाँ खींच लाएगी। वह सुना है न, चोर की दाढ़ी में तिनका। 😀 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Dharmamukt 2018©