अव्वल तो कहानी में ही साफ है कि कल्पना है सबकुछ। फिर भी उस पर इतनी चर्चा करते हैं लोग। लक्ष्मण ने सीता को आश्रम में नहीं सौंपा था वाल्मीकि को।
नारद ने वाल्मीकि को पूरी राम कथा सुनाई थी। उसे विस्तार से कल्पना करके वाल्मीकि ने लिखा था पोलस्य वध नाम से और लवकुश को दिया। जो कि नहीं जानते थे कि वे कौन हैं। यही ये पुस्तक लेकर वीणा के साथ गाते थे सड़को पर। फिर एक दिन राम का रथ उनको अपने महल ले गया और वहाँ पर वाल्मीकि के सामने लवकुश ने राम को वो रचना सुनाई। जो कि सुन कर राम आश्चर्य चकित हुए।
अब बताओ, कथा में जो पोल्सय वध नामक राम कथा राम को सुनाई गई वो कहाँ है? यही है तो इसमें इसका जिक्र कैसे?
कथा के अंत में राम मृत्यु पाकर सरयू नदी से पृथ्वी छोड़ देते हैं। साथ ही पूरी अयोध्या के सभी जीव भी। 11000 वर्ष शासन करने के बाद भी सभी लोग उनके साथ होते हैं। किसी की उम्र नहीं बढ़ती। दशरथ भी 6000 साल के थे। राम को उनके नदी में समाने, लक्ष्मण को आदेश की अवहेलना करने पर देश निकाला, आदि को पहले से ही लिख कर राम को सुनाया गया? क्या कमाल है। वाह। जिस वार्तालाप को राम और महाकाल ने उनके पृथ्वी छोड़ने के विषय में छिपाने को कहा था, वाल्मीकि ने दुनिया के सामने ला दिया।
कमाल ये कि नारद ने उसे कैसे सुना? लक्ष्मण को तो झंड होकर आत्महत्या करनी पड़ी क्योंकि उसे फंसाया गया था। राम ने कहा कि मुझे डिस्टर्ब मत करना महाकाल की मीटिंग में, उधर दुर्वासा ऋषि ने कहा कि मैं भूखा हूँ जबरन मुझे राम के हाथों से ही भोजन चाहिए अन्यथा राम समेत सबको भस्म कर देंगे। ऐसा ऋषि? बेचारे लक्ष्मण को खुद की मृत्यु का भय न लगा और सबको बचाने की खातिर मरने चला आया राम के पास।
रामचरित मानस में अहिल्या पत्थर की है जबकि असली वाली में महिला मात्र है, कोई लक्ष्मण रेखा असली में नहीं है जबकि तुलसी वाली में है।
जो तीर और लक्ष्मण रेखा बना कर दिखाया जाता है वह सब बाद में बनाया गया बिना रामायण पढ़े। क्योंकि जो तीर 7 पेड़ों में धंसा दिखाया जाता है वह तीर वापस तरकश में आ गया था।
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