शुभ: ब्राह्मणवाद जैसे शब्दों के प्रयोग से बचें। ये जातीय नफरत दिखाता है। इसकी जगह अस्पृश्यता जैसे संवैधानिक शब्द प्रयोग करें।
मित्र: ब्राह्मण से नफरत करना और ब्राह्मणवाद से नफरत करना, दोनों अलग हैं|,,, और ब्राह्मणवाद क्या हैं ?!?
शुभ: कुछ नहीं है सिर्फ नाक को पीछे से पकड़ना है। जब तक जाति का नाम आपके पास रहेगा उससे सिर्फ नफरत ही होगी। जबकि बहुत से ब्राह्मण लोग नास्तिक हैं और हमारे साथ हैं। ब्राह्मणवाद ब्राह्मण जाति से जुड़ा है और इसे इसके साथ ही खत्म किया जा सकता है, यही आप सभी की पोस्ट में देखेंगे। जबकि खत्म करनी है छुआछूत जिस के आधार पर बना है scst एक्ट।
ये ब्राह्मणवाद नफरत से निकला है। संविधान में इसका जिक्र नहीं है कहीं। एक क्षत्रिय और वैश्य से भी लोगों को नफरत है लेकिन उनके साथ यह वाद नहीं जोड़ा जा रहा।
असल नफ़रत एक ही जाति से की जा रही है जो कटोरा पकड़े है, बाकियों से उनको डर लगता है। बामसेफ की कार्यविधि और भाषण सुनिए। जिस बात को अलग से समझाना पड़े वह बात भ्रामक है और भ्रामक बातें षडयंत्र में इस्तेमाल होती है।
मित्र: जो चीज़ मानवी बुध्दि के समक्ष आती हैं, मनुष्य उसे एक नाम से संबोधित करता हैं| ब्राह्मण कहलाने वाले लोग,, दूसरों के मौलिक प्राकृतिक अधिकारों को नकार उनका दमन कर उनपर अपना वर्चस्व स्थापिक कर उनको अपना गुलाम बनाना चाहते हैं| इसी को ब्राह्मणवाद कहा गया हैं|और इस विचार के समर्थक ब्राह्मण आज भी ज्यादा तादाद में मौजूद हैं|
एक क्षत्रिय और एक वैश्य से भी लोगों को नफ़रत हैं औऱ यही तो ब्राह्मणवाद है; क्योंकि उनके ही शास्त्रों में कहा गया कि समाज न सिर्फ अनेक जातियों में बंटना चाहिए, बल्कि उनमें वर्गवार/वर्णवार विषमता होना अनिवार्य है| लोग एक दूसरे को नीच समझ एक दूसरे का द्वेष करते रहे|
शुभ्: तो वह ब्राह्मणवाद नहीं, वैदिक अनुशासन है जिसका पालन वे कर रहे। आपको वेदों और मनुस्मृति का विरोध करना है न कि किसी जाति का। उस किताब का विरोध करना जिसने उनको ये सिखाया। हैं तो सब मनुष्य ही। किसी जाति का नाम लगा कर हम मानव के नाम पर कलंक बन रहे हैं। जिसने भी ये ब्राह्मणवाद शब्द दिया उसने सिर्फ नफरत पेश की है।
हम कितना भी बहाना बना लें कि ब्राह्मणवाद कोई जाति से जुड़ा नहीं है लेकिन यह झूठ है। ब्राह्मण वाद से ब्राह्मण निकाला जाए तो केवल वाद रह जाता है। अतः यह सिर्फ जातीय नफरत के उद्देश्य से बनाया गया शब्द है जिसे किसी भी तरीके से जाति से अलग नहीं किया जा सकता।
अंबेडकर ने भी सिर्फ मनुस्मृति जलाई, किसी ब्राह्मण को नहीं जला दिया लेकिन आज हर कोई बाह्मण को मार डालने की बात कर रहा है। कहता है कि न रहेगा ब्राह्मण, न रहेगा बाह्मणवाद। और एक तरह से वह सही ही कह रहा है।
लेकिन मैं भी कह सकता हूँ फिर कि न रहेगा गरीब, न रहेगी गरीबी। न रहेंगे लोग, न रहेगी समस्या। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। सब को मार डालो, सबको खत्म कर दो, सब समस्या खत्म। लेकिन क्या यह उचित है?
मित्र: धूर्त लोग हैं भाई इस दुनिया में,,, मैं उनका विरोध करता हूं; मतलब उनकी गंदी सोच का विरोध करता हूं| बामण को मार डालकर समस्या मिटेगी नहीं,,,बढेगी
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