जितनी जनसंख्या, संसाधनों पर उतना ही हक?
ठीक है, ये कबीले में होता है। शहरीकरण में जो जितना योग्य है वह उतना संसाधन पा सकता है। अब प्रकृति का सिद्धांत है 'योग्यतम की उत्तरजीविता।' प्रकृति के खिलाफ कैसे जाया जाए?
कबीला एक परिवार होता है। इसलिये जो मिलता है सब आपस में बांटा जाता है। सबकी सोच एक जैसी, एक जैसे विचार होते हैं। परंतु एक संगठित समाज में हर तरह के लोग होते हैं। अलग धर्म और अलग सोच विचार के। उनमें एकता नहीं होती।
जहाँ एकता नहीं, एक सोच विचार नहीं, वहाँ कैसे कोई परिवार बन सकता है? शत्रु ही बनेंगे। कबीलों में भी कौन सी एकता है? अपने कबीले के अतिरिक्त क्या कभी दूसरे कबीले को अपने संसाधनों को बांटा है? नहीं न? उनके तो जानी दुश्मन होते हैं कबीले वाले।
जब हर कबीला अपना अपना वर्गीकरण करके बैठा है और एक दूसरे से नफरत करता है तो फिर वही तो आगे चला आया। बल्कि शिक्षा और शहरीकरण ने तो वैमनस्य कम किया है। आज आप सनातनी होकर भी एक मुसलमान के साथ कार्य कर सकते हो। उसके साथ सौदे कर सकते हो।
अब तो विवाह भी हो जाते हैं अंतरजातीय और अंतर्धार्मिक। इतनी सुविधा और प्रेम पहले कभी नहीं था। संविधान ने देशों को जोड़ा है। कबीले वाले तो अवैध सम्बंध की सज़ा के तौर पर योनि (चूत) में पत्थर भर देते हैं, गुदा (गांड) में भाला डाल के मुहं से निकाल देते और तड़पते इंसानो को मैदान में टांग देते हैं।
तब भी हम समझते हैं कि बहुत से लोग योग्य नहीं होते। उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है इस आधार पर। मानवता यहां आकर अयोग्य की भी मदद करती है। अयोग्य को समाज में निर्धन कहा जा सकता है। निर्धन को सरकार मदद देने के लिये समाज कल्याण विभाग बनाये बैठी है।
उसका कार्य ही सहारा देने का है। शिक्षा मुफ्त देने, चिकित्सा मुफ्त देने, आवास मुफ्त देने, और अब तो अनाज भी मुफ्त देने की व्यवस्था हो गयी। इस बार तो गजब ही हुआ। ट्रेनें ही मुफ्त कर दी गईं।
संसाधन बंट तो रहे हैं। अमीरों से टैक्स लेकर गरीबों को संसाधन उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। अगर आपको लेना नहीं आ रहा तो उसके लिये ग्राम पंचायतों ने आंगनवाड़ी, नुक्कड़ नाटक करवा कर जानकारी भी दी है ताकि जागरूक हो अशिक्षित नागरिक।
प्रकृति के खिलाफ इससे अधिक गए तो अमीर टैक्स देना ही बन्द कर देंगे और तब क्या करोगे? अमीरों से इतनी भी नफ़रत कैसी? सोनू सूद भी अमीर है। बाकी और भी अमीरों ने अभी अरबों रुपये दान किये। क्या सरकार को वो इतना टैक्स देते थे? नहीं। उन्होंने अपना टैक्स कटने के बाद बचा अपने हक का, अपनी योग्यता से कमाया हुआ धन आपकी सेवा में दे दिया। बुरे होते तो क्या ऐसा करते?
अपनी सोच बदलिये। कबीले मत बनाइये, इस आधुनिक दुनिया में। अमानवीय मत बनिये अगर मानवता को अहिंसक समझते हो। संविधान को समझने के लिये साक्षर हो जाओ। फिर देखो दुनिया कुछ अलग ही दिखेगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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