Zahar Bujha Satya

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शनिवार, जनवरी 04, 2020

कौन बनेगा करोड़पति? ~ Shubhanshu



अमीर बनने में आपकी मनोस्थिति ज़िम्मेदार होती है। एक बार आप 1 लाख₹ की रकम जोड़ लें तो करोड़पति बनने की राह पर आप आगे बढ़ने लगते हैं। लेकिन 50 लाख पर रुक जाना क्योंकि इससे ऊपर आपको मजबूत इच्छाशक्ति और संयम की ज़रूरत पड़ेगी अन्यथा आप एक पत्थरदिल इंसान बन जाओगे।

1 लाख ₹ की रकम हिम्मत देती है कि अब और कमा सकते हैं। लखपति बनना आपका पहला पड़ाव है जो कि आपको 1-1 रुपये जोड़ कर पाना है।

यानी 1 लाख रुपया आपका एक नौकर बन गया जो 7000₹ वार्षिक कमा कर देता है। ऐसे ही आपको और रुपया जोड़ने की हवस सवार होने लगेगी और आप कमाई के नए-नए जुगाड़ निकालोगे। फिर साल दर साल 1 लाख से 2 लाख और 2 लाख से 4 लाख बनते जाते हैं। कुछ समय बाद आपके पास 12 लाख हो जाएंगे।

इसी हिसाब से 12 लाख रुपये आपको हर माह 7000₹ की आमदनी देंगे।

कुछ लोगों को 12 लाख₹ जोड़ना बड़ा कठिन लग रहा होगा लेकिन आप ठीक से नहीं सोच रहे। देखिये, पहला 1 लाख₹ आपने या तो अपने पिता या अपने कार्य से कमा कर फिक्स डिपॉजिट में लगा दिया। अगले साल आपके पास 1 लाख 7 हजार रुपये होंगे। यानि 7000₹ की बचत हुई बिना कुछ किये।

नोट: जिनके पास 1 लाख रुपये से अधिक रुपये हैं वे और जल्दी अमीर बन सकते हैं।

अब अगर आप इस साल कोई भी रकम नहीं जोड़ते (जो कि सम्भव नहीं है) तो भी अगली बार ब्याज आपको 107000₹ का 7% मिलेगा जो कि 7490₹ होगा। देखिये उन 7000 ने भी इस बार आपको 450₹ कमा कर दिए। इस साल आपके पास बिना एक उंगली भी हिलाए 100000+7000+7000+450 = 114450₹ जुड़ गए। अब या तो आप इससे एक स्मार्टफोन ले लो या ऐसे ही जुड़ने दीजिये। ये 14450₹ आपके लिये उपहार जैसे होंगे। इस तरह आपके पास न सिर्फ पैसा जुड़ेगा बल्कि बढ़ेगा भी।

इसी तरह आप पैसा जोड़ कर, बचत करके और ब्याज से कमाते हुए तेजी से बड़ी रकम जोड़ लोगे और जब ये आदत में आ जाता है तो आपकी फिजूलखर्ची एकदम बन्द हो जाएगी। आप फकीर की तरह जीवन जीने में खुशी महसूस करने लगोगे क्योंकि पैसा जोड़ना है। बाद में वो जब बढ़िया कमाई देगा, तब जाकर आप ऐश करना।

एक समय बाद आपको 30000₹ महीना मासिक आय मिलने लगेगी। और उसके कुछ समय बाद जब आपके पास 1 करोड़ रुपया हो जाएगा, तब यही रकम बढ़ कर 58,333.34₹ प्रति माह हो जाएगी और ये समय होगा आर्थिक संपन्नता का। तो दोस्तों, आपने देखा कि पैसा कमाना बहुत आसान काम है अगर आप 1 बार थोड़ा जोड़ना सीख जाते हैं। 0% risk, 100% benefits! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

बुधवार, जनवरी 01, 2020

मेरे जैसा क्यों बनना चाहते हो जी? ~ Shubhanshu


कोई मेरे जैसा भी बनना चाहता है जान कर अजीब सा लगा। मैं हूँ क्या? केवल एक इंसान ही तो न? वो तो सब हैं? हैं न? या नहीं हैं? लोगों की नज़र में मैं कोई नहीं। लोगों को बड़े-बड़े वादे करने और लच्छेदार भाषण देने वाले पसन्द हैं। मेरी मजबूरी है कि मैं झूठ नहीं बोल सकता। और सुना है कि झूठ ही तो बिकता है। सत्य कहीं डूब मरता है शर्म के मारे। तो मैं भी शर्म से डूब मरने के लिये ही बना हूँ।

इसीलिए लोगों के बीच नहीं जाता। छुप कर रहता हूँ। उनसे घबराहट सी होती है अब तो। अलग होना ही गलत होना हो गया है। जबकि मैं तो बस वही कर रहा हूँ जो मुझे सही लग रहा है। वो भी सिर्फ अपने साथ। किसी की स्वतंत्रता में दखल कैसे दे दूं अगर मैं खुद स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ?

फिर भी लोगों को मैं पसन्द नहीं आता। सच कहूँ तो मुझे भी वो पसन्द नहीं आते। उनकी सौ बुराइयों को मैं जानता हूँ। मेरी वो एक भी नहीं साबित कर पाते। फिर भी मैं बुरा हूँ क्योंकि भीड़ से अलग हूँ। सब के जैसा दिखने वाला रोबोट नहीं हूँ न?

मैं असफल रहा लोगों के बीच रहने में। मैं असफल रहा प्रसिद्ध होने में। मैं असफल रहा भीड़ को खुश करने में। मैं बस खुश कर सका तो केवल खुद को। बस यही मेरी कामयाबी है।

और यकीन मानिये मैं बस इतना ही सफल होना चाहता हूँ। फिर भी आश्चर्य है, मेरे जैसा कोई क्यों होना चाहेगा? शायद उसे पता नहीं वो क्या सोच रहा है। मैं कुछ नहीं हूँ और वो भी कुछ नहीं हो जाएगा। तब पछताएगा। ~ Shubhanshu 2019©

शनिवार, दिसंबर 28, 2019

ईश्वर और उनके दूतों का आमरण अनशन ~ Shubhanshu


एक बार सभी धर्मो के ईश्वर और उनके मृत संस्थापक घर आकर
बोले: हमको क्यों नहीं मानता है बे?
शुभ: नहीं मानूँगा। क्या कर लोगे?
त्रिशूलधारी: क्या बोला बे?
गजमानव: अरे काहे गुस्सा हो रहे हैं पिता जी?
शूलीधारी: आओ साथियों, यहाँ गुस्से से काम नहीं चलेगा।
पगड़ी-दाढ़ी धारी: ये आदमी खतरनाक है। कुछ करना पड़ेगा।
छुरी धारी: जो बोले...सो निहाल...निकालेगा कोई हल।
नग्न पुरुष: अहिंसा परमो धर्म:।
घुंघराले बाल धारी: आइए शांति से बात करते हैं।
(सब मिल कर मंत्रणा करते हैं)
सभी एक साथ: तय हुआ है कि भूख हड़ताल करेंगे।
शुभ: आप सब तो अमर हो। लगे रहो। हाथ कंगन को RC क्या? पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या? शुरू हो जाओ।
तब से ये सब दिल्ली के रामलीला मैदान में आमरण अनशन पर हैं। 10 साल हो गए। इसलिये आपकी मदद नहीं कर रहे। परेशान न हों। दिल्ली चलो। इनके साथ अनशन पर लग जाओ। शायद कोई मदद कर दे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, दिसंबर 26, 2019

वोट न देने वाले निर्दोष हैं ~ Shubhanshu


बहुमत का ही मूल्य होता है। जो लोग नेता नहीं चुने उनकी कोई वैल्यू ही लोकतंत्र में नेता चुनने में नहीं होती। दरअसल जिस तरह से पुराने नेता ही बार-बार सत्ता में आकर गाली खाते हैं उससे जो विपक्षी है वे भी एक से दोषी हैं। वोट न देने वाले ही किसी भी प्रकार से दोषी नहीं हैं। 

इसीलिए पढ़ालिखा धनी वर्ग कभी वोट देने के लिये ट्रॉली में भर के और धक्के खाकर लाइन में लग कर वोट देने नहीं जाता।

सिर्फ पैसे के लालच में गरीब और मध्यम वर्ग का वह तबका जाता है जो किसी न किसी धार्मिक, जातीय, या नफ़रत की भावना से या फिर वोट देना ज़रूरी है ऐसा समझ कर देने जाता है। छात्र तो अपने छुटभैया नेता के साथ मिल कर गुंडागर्दी कर सकें इसलिये अपने जानने वाले को वोट देकर लुभाते हैं।

और ये नेता कौन बनने आता है? गली का गुंडा, पुजारी, नेता का लड़का, उसकी पत्नी, बेटी, कोई व्यापारी, अभिनेता-अभिनेत्री, कोई संत, साधु, प्रसिद्ध हस्ती, अंडरवर्ल्ड के लोग आदि आसानी से नेता बन जाते हैं। अच्छे लोगों को नेता बनाने के लिये अन्ना हजारे जैसा आंदोलन ही कभी-कभी काम कर सकता है और वैसा आंदोलन बार बार नहीं होता।

कुछ लोग कहते हैं कि जो वोट नहीं देते उनके कारण गलत नेता चुने जाते हैं तो वे मूर्ख हैं क्योंकि जो वोट देना नहीं चाहता वो नोटा का बटन दबाएगा और उससे क्या बदल जायेगा? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, दिसंबर 23, 2019

कंडोम प्रयोग करने की आदत डालिये ~ Shubhanshu


यदि मोनोगेमस सेक्स चल रहा है तो मैथुन भंग विधि का प्रयोग कर सकते हैं। न कंडोम की ज़रूरत है और न ही पिल की। pill केवल आपातकाल में प्रयोग किया जा सकता है।

मैथुन भंग में सभी लोग अभ्यस्त नहीं होते इसलिये ये केवल उन्हीं के लिये उचित है जो biology जानते हैं और खुद पर बहुत नियंत्रण है। साथ ही इसमें कुछ प्रतिशत गर्भधारण का डर बना रहता है लेकिन मेरे मामले में वर्षों से ये सफल रहा है।

कंडोम सबसे बेस्ट है सभी महिला-पुरूष हमेशा जेब/पर्स में डीलक्स निरोध का 5 in 1 pack (5₹ में 5 पीस) रखें। 😍

Pills के बारे में डॉक्टर की राय से ही चलें। ~ Shubhanshu 2019©

बिन फोटू सब सून ~ Shubhanshu


फेसबुक पर लड़की अपनी सेल्फी न डाले तो उस id के पीछे क्या-क्या हो सकता है? कुछ अनुमान प्रस्तुत हैं:

1. साधारण लड़का (लड़की बन कर, लड़कियों की पसन्द जानकर, बाद में असली id से सेटिंग करने की चाह में)
2. गैंडा (खुद समझिये)
3. Engaged Girl (लड़की जिसकी मंगनी हो चुकी या किसी लड़के के साथ relationship में है)
4. Married Girl doing Inappropriate acts without knowledge of her husband. (शादीशुदा महिला गैर मर्दों की तलाश में)
5. असली लड़की सेक्स चैट करने के चक्कर में। (दूसरी असली id पर भजन गाने वाली)
6. बुजुर्ग लेकिन ठरकी महिला।
7. बेहद बदसूरत शक्ल की असली लड़की/महिला जिसे पता है कि उसे असलियत में देख कर कोई भी भाग जाएगा।

ऐसे ही अगर लड़के की id में जानकारी नकली और फ़ोटो गायब है तो कुछ अनुमान प्रस्तुत हैं:

1. गैंडा
2. बदनाम अपराधी
3. Giggalo (पुरुष वैश्या, महिला हेतु)
4. आपराधिक पोस्ट करने वाला (अफवाह विशेषज्ञ)
5. गाली बाज़/बदतमीज
6. एक से अधिक आपातकाल ID बनाने और कोई same id की रिपोर्ट न करे।
7. महिला से सेक्स चैट करने की तलाश में
8. कोई मिशन/संस्था/आंदोलन चलाने वाले अपने logo को DP में लगाये हुए।

बाकी आप सुझाइए।

Note: समझ आये तो ठीक, न आये तो कोई पोस्ट पर हंसेगा नहीं। OK? ~ Shubhanshu 2019©

हम सब महान हैं लेकिन... ~ Shubhanshu

एक राज़ की बात बताता हूँ।

हम अक्सर महापुरुषों को इतना महान क्यों पाते हैं?

क्योंकि उनकी सभी बातों को उनके चाहने वालों ने बढ़ा चढ़ा कर बताया होता है और केवल अच्छा पक्ष ही।

बाकी वे सब भी उसी साधारण माँ से जन्में हैं जिससे हम-तुम।

हर इंसान महान है।

बस हम सब जानबूझकर खुद को बुरा दिखा रहे हैं।

वरना क्या हम अपनी कमियों को जानते नहीं हैं क्या?

बस दूर नहीं करते। जानबूझकर।

गुस्सा है, नफरत है, अपमान है, चाहत बड़ी और उम्मीद छोटी है। दूसरों से जलते हैं। कोई हमसे बेहतर हार भी गया तो खुद की भी हिम्मत तोड़ देते हैं। नहीं सोचते कि क्या पता अगला कोई गलती कर बैठा या जानबूझकर हार गया। आपकी हिम्मत तोड़ने के लिये। ☺

सच तो ये है कि हम बस महान लोगों से काम निकालने में ही आसानी समझते हैं। हम उन जैसे नहीं हो सकते, कह कर, दरअसल खुद मेहनत करने से बचना चाहते हैं।

आजकल पेट भर गए हैं और सुविधाओं से हम लैस हैं। कल जो ऐसी ज़िंदगी पाने के लिए महान बन गए, वो ज़िंदगी आपने पैदा होते ही पा ली। फिर क्या ज़रूरत है महान बनने की? ऐसे ही ठीक हैं। हैं न? 😊

धर्ममुक्त जयते! ~ Shubhanshu 2019©

रविवार, दिसंबर 22, 2019

All is well is much better than any religion ~ Shubhanshu


शुभ: पंडित जी नास्तिक कौन होता है?
पंडित जी: मैं हूँ।
शुभ: अरे नहीं। ऐसा कैसे?
पण्डित जी: देखिये मैं सब जानता हूँ कि ये मेरा रोजगार है और मैंने आजतक इस मूर्ति के सिवाय कोई देवता न तो देखा है और न ही देखूंगा। ये सब धर्म धंधे हैं। सोचो अगर कोई ईश्वर होता भी तो क्या हम इन मूर्तियों/हवा में अपनी प्रार्थना करके उसको नियंत्रित कर सकते हैं?

यदि हाँ तो फिर वो सर्वशक्तिमान कैसे हुआ? जबकि हम उसको अपने अनुसार चला रहे? पूजा/इबादत/प्रार्थना आदि सब के सब बस आपको तसल्ली देने के धंधे हैं। जिनसे होता कुछ नहीं बस आप को तसल्ली हो जाती है कि सब ठीक होगा। ये तो all is well बोलने से भी मिल जाती है न? बस इस दुनिया में दरअसल कोई आस्तिक है ही नहीं। केवल मूर्ख हैं जो खुद को आस्तिक बोलते हैं।

धंधा कर रहे या तसल्ली को ज्यादा ही गम्भीरता से लेकर मूर्खतापूर्ण हरकते कर रहे। तसल्ली होने पर काम बिना समस्या के हो जाते हैं। अक्सर हम लोग कार्य पूरा होने से पहले ही उसके बारे में गलत सोचने लगते हैं और उसी गलत के आने का इंतजार करते रहते हैं। फिर अधिकतर वो आता है क्योंकि आपने कोई गलती की होती है।

कभी-कभी आप गलती नहीं भी करते तो भी आपको पिछली गलती के कारण आत्मविश्वास नहीं रहता और आप घबराहट में काम खराब कर देते हैं। इसी घबराहट को खत्म करने का कार्य सभी धर्म तसल्ली देकर करते हैं जिससे लाभ होता है। अब तुम ही बताओ, इसमें ईश्वर का क्या लेनदेन?

सीधी बात है कि कोई ईश्वर अगर होता तो दुनिया में कोई समस्या ही नहीं होती। जिस दिन निचले स्तर का व्यक्ति/जन्तु/वनस्पति भी सुखी हो जाएगी उस दिन मैं ईश्वर को मान लूंगा कि वह सभी कुछ ठीक से चला रहा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

अपनी तो जैसे-तैसे कट जाएगी! आपका क्या होगा? जनाबे आली? ~ Shubhanshu



जो भी विद्वान इस तरह की पोस्ट (चित्र देखें) पेल रहे, आप एक बात बताओ।

नास्तिक हो या धर्ममुक्त? नास्तिक हो तो कैसे नास्तिक हो जो एक से नफरत और बाकी धर्म से प्रेम है?

धर्ममुक्त हो तो आपको क्या डर या परवाह है कि कोई किसी धर्म को बाहर कर देगा?

जाति मुक्त हो या नौटँकीबाज?

जातिमुक्त हो तो SC/ST का लेबल हटाओ। फिर किस बात का डर? न पूछो न बताओ जातिमुक्त देश बनाओ।

नाम से जाति खोजने वालों को मारो 10-10 थप्पड़। यही कमीने जातिवादी हैं। बाबा साहब भीम राव राम जी अम्बेडकर, रामा स्वामी अययर पेरियार, भगत सिंह आदि लोगों ने तो अपना नाम नहीं बदला या अपना परिवार नाम नहीं हटाया!

फिर ये कौन से जातिमुक्त लोग हैं जो नाम में जाति खोज रहे? नाम के आगे पीछे कुछ और ही तूतियापा लगा ले रहे? आपकी मर्जी है कि आप अपने नाम में क्या लगाते हैं लेकिन जातिवादी नहीं है दिखाने के लिये नाम की ऐसी तैसी न कीजिये। अजीब सरनेम से आप वैसे ही विशेष जाति समुदाय के दिखने लगते हो। जो अपना उपनाम छुपाता है अपने आप आरक्षित वर्ग का समझा जाता है। फिर कैसे हो गया जातिमुक्त कोई सरनेम हटा कर? जातिमुक्त मन से होता है इंसान। नाम से नहीं।

मारो इनको थप्पड़ और नहीं मार सकते तो सब अपने नाम सवर्ण जैसे रख लो। क्या समस्या है?

नौटंकी बाज ही हो तो ये बताओ कि SC/ST से तो सारा काम चलता है देश का तो उनको कोई निकाल कर अपना ही जीवन बर्बाद क्यों करेगा? 85% लोगों को कोई कैसे निकाल सकता है? बुद्धि है या नहीं?

सभी लोग मिल कर नास्तिक हों इसकी बात करनी चाहिए आपको न कि धर्मों का संरक्षण कर रहे। सभी नास्तिक धर्ममुक्त बनिये। फिर देखिए कौन आपको परेशान करता है। धर्ममुक्त जयते। ~ Shubhanshu 2019©

शनिवार, दिसंबर 07, 2019

मैं बोलूंगा तो बोलोगे, बोलता है ~ Shubhanshu


महिला (मादा) को डरा कर रखा जाता है। वो अपने मन की बात कह नहीं पाती। पुरुष को ज्यादा आज़ाद रखा जाता है इसीलिए पुरुष प्रधान दुनिया हो गई। बात सिर्फ बच्चा पालने की थी जिसके कारण महिला के हाथ बांधे गए। बाकी सभी जानवरो में मादा ही सबसे ज्यादा मजबूत और खतरनाक होती है। इंसांनो में भी यही सत्य है लेकिन परवरिश और सामाजिकता ने शेर को गीदड़ बना कर रखा है और इसका प्रमुख ज़िम्मेदार धर्म और संस्कृति हैं।

अपराध सदा से होते रहे हैं। आज मीडिया बिजनेस बन गया है तो खबर फैलाने का काम करने लगी है। पहले बात दबा दी जाती थीं आज सनसनी बना कर note कमाए जाते हैं। खुद देखिये कोई दुर्घटना हो जाये तो लोग उसकी वीडीओ बनाते हैं न कि मदद करते हैं। आज सनसनी मनोरंजन की तरह फैल रही है।

बाकी जो नृशंसता बढ़ी है उसके पीछे कानून का डर है। अपराधी को लगता है कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। इसलिये वो हत्या करना बेहतर समझते हैं बजाय कैद होने के।

समस्या तो ये कुंठा है जो सामाजिक बंधनो के कारण उपजती है। जानवर आज़ाद हैं विवाह और कपड़ो से और वे प्रकृति के अनुसार जीते हैं। जबकि इंसान को बंधनो और कानून के जाल में फंसा दिया गया है वो अब मर जाना चाहता है अपराध करके ही सही। जैसे आप सब देख रहे कि लोग मरने के लिये ही बलात्कारी बनते हैं। सेक्स इतना ज़रूरी हो गया है और मिल नहीं पा रहा। समस्या ज़रूरत अधिक और उसकी आपूर्ति की कमी है। इसीलिये छीनाझपटी मची हुई है।

आप भी कानून तोड़ दोगे अगर भोजन करने पर 7-10 साल की कैद की सज़ा रख दी जाए। आप भी छीनोगे रोटी किसी रोटी वाले से और मार डालोगे उसे जला कर क्योंकि ज़िंदा छोड़ेंगे तो जेल जाना पड़ेगा और कौन जेल जाना चाहता है?

99% प्लान बना कर हत्या करने वाले हत्यारोपी कभी पकड़े नहीं जाते। इसी कारण सुपारी लेकर हत्या करने का व्यवसाय तक बना लिया गया है। कानून हत्या रोकने में विफल है। वही पकड़ा जाता है जो खुद ही पकड़ा जाना चाहता है। दरअसल लोग दूसरे को तभी मारते हैं जब खुद की जान की कोई चाहत नहीं बचती या फिर वे आत्मरक्षा में मार डालते हैं। 1% संस्कृति और इज़्ज़त की ख़ातिर कत्ल करके अपनी मौत/आजीवन कारावास को चुन लेते हैं।

Note: दिल्ली की बस में ज्योति की नृशंस बलात्कार के बाद हत्या करने के केस में मिली फांसी की सज़ा के 6 साल बाद भी कानून अभियुक्तों की तरफ से सजा कम करने की अपील, राष्ट्रपति से फांसी को उम्रकैद में बदलने की याचिका का इंतज़ार कर रहा है। अभी हाल ही में 7 दिन का उनको नोटिस दिया है कि अपनी जान बचाने की कोशिश कर लो नहीं तो 7 दिन बाद कभी भी फांसी हो जाएगी। ज़ाहिर है कि उनको मरना ही पसंद है। ~ ज़हरबुझा सत्यवादी शुभाँशु 2019©