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बुधवार, फ़रवरी 12, 2020
शनिवार, फ़रवरी 01, 2020
ये हुई अक्ल की बात ~ Shubhanshu
संविधान में सैकड़ों परिवर्तन हुए हैं और होते रहेंगे। तो ये संविधान बचाने कौन लोग निकले हैं? क्या इनको संविधान में संशोधन या संशोधन निरस्त करने की क्षमता प्राप्त है? क्या ये संविधान के विशेषज्ञ हैं? कानून जनता से पूछ कर नहीं बनते। वो मानवाधिकार के आधार पर बनते हैं।
जो भी कानून इन अधिकारों का पालन नहीं करता, वह कानून ही नहीं है। और देर सवेर वह बदलेगा ही। अतः कानून अगर गलत लगता है तो उसको अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। उसके लिए भीड़, तमाशा और आंदोलन नहीं चाहिए। चाहिए तो केवल एक अदद तर्क। केवल एक सही तर्क काले और सफेद को अलग-अलग कर देता है। इसके लिए 1000 या लाख लोगों का दबाव नहीं चाहिए।
फिर ये लोग कौन हैं जो शोर मचाने में विश्वास रखते हैं बजाय तर्क करने के? ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा/सुना कि हनुमान सूरज निगल गया और अपनी पूछ से सोना जला दिया। जिन्होंने कहा कि चंद्रमा के दो टुकड़े हुए और वो वापस जोड़ दिया गया। ऐसे ही तमाम कुतर्क सत्य और चमत्कार समझ कर, गीत गाये, प्रचार किया।
दरअसल जो भी ऐसा करता है उसका एक खास कूटनीतिक मकसद होता है। उसका मकसद है सत्ता पर काबिज होना। लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने का। तानाशाह बनने का। उसका मकसद है धोखे से जनता को ठगना। भोले-भाले लोगों को भड़का कर उनके खून-पसीने की कमाई लूटकर उस से अपने लिए महंगे इत्र खरीदना।
हमेशा ही इस देश को लूटने के लिए लोग आते जाते रहे हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने लूटा और अब आज़ादी के बाद काले अंग्रेज इस देश को राजनीति का तमंचा लगा कर लूट रहे हैं। याद रखिये, काम यदि खामोशी से किया जाए तो ही सफलता शोर मचाती है। जबकि इस तरह के शोर शराबे वाले देश के राजनीतिक, बस अपना बुरा हश्र ही देखेंगे और भुगतेंगे हम और आप जैसे अंतिम नागरिक। जो बस फेसबुक पर ही अपने मन की 2-4 बात बोल लेते हैं। हम पर हराम का, कॉलेज में पढ़ने आये लोगों से अवैध वसूली करके और कानून का उल्लंघन करने वालों से लिये हुए रिश्वत के अरबों रुपये जो नहीं हैं गुंडों पर लुटाने, सड़कों पर आन्दोलन करने की तनख्वाह देने के लिये।
हम यहीं मर जाएंगे बस यूँ ही बकबकाते हुए। बस कोई-कोई ही होता है जो समझेगा कि कौन था शुभ और क्या था उसका मकसद। और मैं हजार बार यही कहूंगा कि चैन से सोना है तो जाग जाइए। जहाँ राजनीति दिखे, उधर से भाग जाइये। अपना घर बचाइए जिसे ये नेता लूटने और जलाने आ रहे हैं। नमस्कार। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©
जो भी कानून इन अधिकारों का पालन नहीं करता, वह कानून ही नहीं है। और देर सवेर वह बदलेगा ही। अतः कानून अगर गलत लगता है तो उसको अदालत में चुनौती दी जा सकती है और कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। उसके लिए भीड़, तमाशा और आंदोलन नहीं चाहिए। चाहिए तो केवल एक अदद तर्क। केवल एक सही तर्क काले और सफेद को अलग-अलग कर देता है। इसके लिए 1000 या लाख लोगों का दबाव नहीं चाहिए।
फिर ये लोग कौन हैं जो शोर मचाने में विश्वास रखते हैं बजाय तर्क करने के? ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा/सुना कि हनुमान सूरज निगल गया और अपनी पूछ से सोना जला दिया। जिन्होंने कहा कि चंद्रमा के दो टुकड़े हुए और वो वापस जोड़ दिया गया। ऐसे ही तमाम कुतर्क सत्य और चमत्कार समझ कर, गीत गाये, प्रचार किया।
दरअसल जो भी ऐसा करता है उसका एक खास कूटनीतिक मकसद होता है। उसका मकसद है सत्ता पर काबिज होना। लोगों को अपनी उंगलियों पर नचाने का। तानाशाह बनने का। उसका मकसद है धोखे से जनता को ठगना। भोले-भाले लोगों को भड़का कर उनके खून-पसीने की कमाई लूटकर उस से अपने लिए महंगे इत्र खरीदना।
हमेशा ही इस देश को लूटने के लिए लोग आते जाते रहे हैं। आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने लूटा और अब आज़ादी के बाद काले अंग्रेज इस देश को राजनीति का तमंचा लगा कर लूट रहे हैं। याद रखिये, काम यदि खामोशी से किया जाए तो ही सफलता शोर मचाती है। जबकि इस तरह के शोर शराबे वाले देश के राजनीतिक, बस अपना बुरा हश्र ही देखेंगे और भुगतेंगे हम और आप जैसे अंतिम नागरिक। जो बस फेसबुक पर ही अपने मन की 2-4 बात बोल लेते हैं। हम पर हराम का, कॉलेज में पढ़ने आये लोगों से अवैध वसूली करके और कानून का उल्लंघन करने वालों से लिये हुए रिश्वत के अरबों रुपये जो नहीं हैं गुंडों पर लुटाने, सड़कों पर आन्दोलन करने की तनख्वाह देने के लिये।
हम यहीं मर जाएंगे बस यूँ ही बकबकाते हुए। बस कोई-कोई ही होता है जो समझेगा कि कौन था शुभ और क्या था उसका मकसद। और मैं हजार बार यही कहूंगा कि चैन से सोना है तो जाग जाइए। जहाँ राजनीति दिखे, उधर से भाग जाइये। अपना घर बचाइए जिसे ये नेता लूटने और जलाने आ रहे हैं। नमस्कार। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©
शनिवार, जनवरी 11, 2020
स्त्रीसूचक अपशब्दों की जड़ और काट ~ Shubhanshu
समाज में लड़की के पैदा होने से पहले ही महिला को समस्या समझा जाता है क्योंकि विवाह नाम की संस्था खर्चे मांगती है। लड़का होगा तो उसकी पत्नी पैसा देगी और लड़की हुई तो उनको देना पड़ेगा। लड़की परिवार के लिए एक आर्थिक और सामाजिक दंड की तरह होती है। और इसकी एकमात्र वजह है विवाह की अवधारणा।
इसमें ऐसा इसलिये है क्योकि महिला को खाना कम देकर पुरुष से कमज़ोर बनाया जाता है। बड़े काम के लिए उसे कमज़ोर बोल के मांसपेशियों को कमज़ोर रखा जाता है। कारण सिर्फ यही है कि जब उसका पति उसे पीटे तो वो उसका मुकाबला न कर सके।
बच्चा होता है तो लड़के का होता है। उसका वंश चलेगा, वो मर्द साबित होगा। महिला 9 माह जीवन नरक बनाये और फिर गोद में लादे, अपना बाकी का जीवन भी नरक बनाये सिर्फ इसलिये क्योंकि उसे लड़के के पिता के बनाये घर में रहना है। क्योंकि उसका खुद का कोई घर ही नहीं है।
फिर इस तरह से मजबूर स्त्री जब बार बार लड़की पैदा होने पर या बांझ हो जाने पर अकेली छोड़ दी जाती है तो इस तरह की कंडीशनिंग से कमज़ोर पड़ी महिला बलात्कार और वैश्यावृत्ति के जाल में डाल कर मजे के लिये इस्तेमाल होने लगती है। और इस धंधे को वो अपनी इच्छा से भी करे तो उसे ही खराब बताया जाता है क्योकि उसका कोई पति नहीं है। है तो इस लायक नहीं है कि कमा कर खिला सके।
मर्द द्वारा महिला को पालना है ये नियम समाज में बना है। जो मर्द न पाले वो गलत और जो महिला मर्द को छोड़ आये या मर्द छोड़ दे तो महिला दोषी क्योंकि उसने किसी भी तरह झुक कर क्यों नहीं मना लिया पति को?
अब इस दुनिया का तो नियम ही है कि कमज़ोर को कोई नहीं छोड़ता तो महिला को कमज़ोर बना कर उसे नीचा दिखाया जाता है और फिर जो नीच है उसे गन्दा बोलना पड़ेगा। कोई तो इसे नरक का द्वार बोलेगा तो कोई माहवारी को लेकर ही उसे गन्दा बता देगा।
सब कुछ ये समाज है जिसने मिल कर नारी का गला घोंटा है और फिर उसके जननांगों को फूहड़ भाषा में केंद्र में लेकर उसके पालने वाले (पति,पुत्र,पिता) को अपमानित किया जाता है तो यही दर्शाया जाता है कि मर्द में ताकत नहीं जो अपनी महिला की रक्षा कर सके। इस बात में 'अपनी' महिला एक सम्पत्ति की तरह है और उसके अंग कीमती सामान की तरह जिसे इज़्ज़त बोलते हैं समाज के लोग जो लूटी जा सकती है और इससे महिला मरे या जिये उसके पालक का ही अपमान होगा ऐसा सोचा जाता है।
तो मूल क्या है? मूल है महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होना। विवाह करके मर्द के धन पर आश्रित हो जाना। जिम न जाकर, पेट भर आयरन/प्रोटीन युक्त भोजन न करके, मार्शल आर्ट न सीख कर साधारण पुरूष से कमज़ोर बने रहना और ऐसा पुरुषों की बलपूर्वक आज्ञा पालन से ही सम्भव हुआ है।
इन कारणों को खत्म कर दीजिए। स्त्री सूचक गाली बन्द हो जाएंगी। और न सिर्फ ये बन्द होंगी बल्कि हर समाज की बुराई खत्म हो जाएगी जो कहीं न कहीं महिलाओं से जुड़ी होती हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020 ©
शुक्रवार, जनवरी 10, 2020
सब होना लेकिन व्यक्तिवादी मत होना ~ Shubhanshu
स्वतन्त्र इंसान सबकुछ हो सकता है लेकिन व्यक्तिवादी नहीं। जैसे बहुत से लोग मेरी शिक्षाओं से बहुत सी विचारधारा वाले हुए लेकिन वे कभी खुद को शुभांशुवादी नहीं बोलते। वैसे भी विचारधारा जो अपना ले वह उसी की हो जाती है। भले ही व्यक्तिवाद किसी व्यक्ति को बहुत लोकप्रिय बना देता है लेकिन लोग उसके गुलाम भी बन जाते हैं।
मूर्ति/तस्वीर/चिन्ह आदि लगाने और फिर उसको पूजने लगते हैं। अतः लोकप्रिय बनिये मगर मन से न कि दुनिया भर में उसका डंका पीटिये। थॉमस एडिसन ने सफल बल्ब बनाया, लगभग 1100 अविष्कारों से दुनिया पाट दी, दुनिया को रौशन किया, फिल्में, रिकॉर्डर, बैटरी, कैमरा, टेलीग्राफ, आदि दिए लेकिन कोई उनको नहीं पूजता। मन ही मन उनका एहसान मानता है।
निकोला टेस्ला ने AC डायनेमो बनाई, टेस्ला quail बनाई, आज हम मैडम क्यूरी के बलिदान से जिन्होंने 2 भिन्न विज्ञानों में नोबल पुरस्कार प्राप्त किया, दबे हैं। मैडम क्यूरी की मृत्यु रेडियम के रेडिएशन से हो गयी थी और इसी की खोज के लिए उनको नोबल पुरस्कार दिया गया था।
मैं जब कहता हूँ मेरी विचारधारा, तो उसका मतलब ये होता है कि मेरे द्वारा चुनी गई विचारधारा का समूह। जो कि मेरे अनुमान से सर्वश्रेष्ठ हैं। किसी के हिसाब से उससे भी श्रेष्ठ विचारधाराएं होंगी लेकिन वो उनका पैमाना है। अभी मैं उनको नही जानता अन्यथा मैं उनमें कोई कमी ढूंढ कर अस्वीकार कर देता या प्रभावित होकर उनको भी अपना लेता। हमेशा दिमाग खुला रखता हूँ। नए के लिये स्थान छोड़ता हूँ ताकि और बेहतर बन सकूं। आप सबको भी यही सलाह दूँगा कि भले ही सबकुछ मेरा अपना लो, कुछ अपना भी अपना लो, कुछ दूसरे का भी लेकिन कभी व्यक्तिवादी मत होना। स्वयंवादी होना लेकिन कभी शुभाँशुवादी मत होना।
~ शुभाँशु सिंह चौहान अंतर्मुखी, विषमलिंगी, धर्ममुक्त, vegan, शिशुमुक्त, विवाहमुक्त, समाज/संस्कृति/नौकरी मुक्त, मुक्तविचारक, सोफोफिलिक, polyamorous, लेखक, कवि, कथाकार, व्यंग्यकार, डायरीकार, Quoter, 18+ रचनाकार, शौकिया मनोवैज्ञानिक, शौकिया उपाय खोजी, शौकिया आविष्कारक, शौकिया वैज्ञानिक, चित्रकार, Future Calculator, Dream learner, 2-3 stage dreamer, शाम्भवी मुद्रा धारक, कुंडलिनी जाग्रत, जनसंचार, पत्रकारिता व मीडिया तकनीकी डिप्लोमाधारी, फैशन डिजाइनर डिप्लोमाधारी, कंप्यूटर एप्लिकेशन डिप्लोमाधारी, जूलॉजी में परास्नातक...more coming soon! 2020©
बुधवार, जनवरी 08, 2020
सही राजनीतिक दल का चुनाव कैसे करें? ~ Shubhanshu
प्रश्न: सही राजनीतिक दल की आधारभूत पहचान क्या है?
उत्तर: सही राजनीतिक दल संविधान की प्रस्तावना, मानवाधिकार, कर्तव्यों का पालन करने वाला होना चाहिए। यानि उसकी कार्यप्रणाली, सोच-विचार, आदर्श और विचारधारा में निम्नलिखित बिंदु होने आवश्यक हैं:-
रंग विशेष, धर्म विशेष, जाति/वर्ण विशेष, वर्ग विशेष, आर्थिक आधार विशेष, स्थान विशेष, वंश विशेष, लिंग विशेष आदि का समर्थन नहीं करता हो।
समानता वादी हो (समता का अधिकार) अतः जनता को नागरिकों की परिभाषा के अनुसार व्यवहार करता हो।
मानवाधिकार का सम्मान करता हो और किसी भी प्रकार से नागरिकों के निजी जीवन में दखल न देता हो। अर्थात उसकी विचारधारा में 'निजी' शब्द का सम्मान होना चाहिए (निजता का अधिकार)।
कोई भी नागरिक उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का शिकार न होता हो (समता का अधिकार) और वो सत्ताधारी राजनीतिक दल की सेवा से वंचित नहीं रहना चाहिए।
विरोध को स्वीकार करता हो, उसकी विवेचना करता हो और आपत्तिजनक बिंदुओं पर अपना मत स्पष्ट करता हो। गलती मिलने पर सुधार करता हो।
अब आते हैं सुझाव की ओर। हम पूरे देश के लिये राष्ट्रीय पार्टी का ही सुझाव दे सकते हैं। स्थानीय पार्टियों को जब तक वे राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त नहीं करतीं अभी शैशवावस्था में माना जायेगा। अतः उनको सुझाना सम्भव नहीं है। जैसे अगर कोई पार्टी केवल दिल्ली या पंजाब में ही चुनाव लड़ती है तो हम बाकी देश वासियों को उसका नाम नहीं सुझा सकते क्योंकि उधर वो पार्टी होगी ही नहीं।
क्या आपने उक्त बिंदुओं के आधार पर खरी उतरने वाली कोई पार्टी देखी? मुझे तो नहीं मिली। आपको मिले तो कृपया मुझे सुझाइये। 😀 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
मैं चुनाव में vote क्यों नहीं देता? ~ Shubhanshu
रविवार, जनवरी 05, 2020
आओ, चलो, तन-मन से सुंदर हो जाएं ~ Shubhanshu
हम खुद को अच्छे लगने चाहिए, दुनिया में तो सबकी पसंद अलग-अलग होती ही है। महत्वपूर्ण तो ये है कि क्या मन में सच्चाई है आपके और साहस भी? हम लोग अपनी शक्ल के साथ ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। साफ कर लीजिये, वैनिशिंग क्रीम लगा लीजिये, लैक्टो कैलामाइन लगा लीजिये, चेहरा शरीर के मुकाबले ज्यादा सांवला हो रहा है तो सनस्क्रीन लोशन लगा लीजिये।
श्रंगार/मेकअप मत कीजिये। झूठ का आकर्षण छणिक होता है। सुंदरता तो लोगों के जीन तय करते हैं। देखने वाले के भी और दिखाने वाले के भी। फिर भी दोस्ती हो जाये तो सुंदरता महत्वपूर्ण नहीं रहती क्योंकि उससे कहीं ज्यादा आकर्षक और बातें आपके अंदर महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
हमारा मस्तिष्क सिमिट्री में बने चेहरे पसन्द करता है। गोरापन साफसफाई का परिचायक हो सकता है या धूप से बच कर रहने वाले समृद्धि शाली परिवार के सदस्य होने का। हम खुद का चेहरा नहीं देख सकते। चाहें वह सुंदर हो या नहीं, हमारा मन उसकी परवाह नहीं करता लेकिन दूसरों के साथ आपकी जोड़ी बनने में ये बहुत बड़ा योगदान देता है।
प्राचीन काल में बाल सुंदरता के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं होते थे लेकिन ये यौवन के संकेत अवश्य होते हैं। अज्ञात कारणों से आजकल जवान लोगों के बाल भी तेजी से झड़ रहे हैं तो वो यौवन का संकेत लोगों को सुंदरता से जुड़ा लगने लग गया है। लड़कियों को बाल बढाना सेक्सी होने की निशानी लगता है जबकि प्राचीन काल में ये लड़की कभी घर के बाहर नही निकली और कुंवारी है इसका प्रमाण होता था। वही सोच विचार आज मानक बना दिये गए हैं। गंजा लड़का किसी को हैंडसम नहीं लगता और गंजी लड़की भी।
सिनेमा भी प्रायः प्राचीन संस्कृति को समर्थन देता रहा है क्योंकि लोगों को यही पसंद था। कुछ निर्माता प्रयोगवादी होते हैं तो अब इन मानकों को मास स्टैंडर्ड में बदलना सम्भव हो गया है। इसी कड़ी में अब दाढ़ी और गंजेपन मास फैशन बन गए हैं। जो भी अच्छा चरित्र होता है उसका हर स्टाइल मास फैशन बन जाता है। फिर हम क्यों दुःखी हों? जब आपका चरित्र महान होता है तो आपकी हर बात महान हो जाती है।
मैंने बहुत बार आईना देखा है। मैं कोई खास सुंदर नहीं, गोरा भी नहीं। थोड़े दाग धब्बे भी हैं। बाल तो बचपन से ही कम थे, ऊपर से मोटा होकर अपना फिगर भी खराब कर लिया। ज्यादातर लड़कियों को पसंद नहीं आता। लेकिन ऐसा सिर्फ तबतक है जबतक वो मुझे जानती नहीं। अब जो मुझे देखना नहीं चाहती वो मुझे जानेगी कैसे? इसलिये परवाह नहीं करता। मस्त रहता हूँ, खुश रहता हूँ। ऐसे ही, बिना बात के और लोग देखने, पूछने चले आते हैं कि आखिर क्यों खुश हूँ मैं? फिर बातें निकलती हैं और मेरे विचार उन तक पहुँचने लगते हैं फिर कोई मेरे पास से जाना नहीं चाहता।
सुंदरता, रंग, अपंगता, जाति, वंश आदि को बदला नहीं जा सकता (सुंदरता, रंग, बाल आदि में इम्प्लांट, प्लास्टिक सर्जरी को छोड़ दें तो) तो इनका आप को मजाक कभी नहीं उड़ाना चाहिए। कोई इनको बदल नहीं सकता तो उसका अपमान क्यों? यदि कोई बदसूरत है और आप को देखना बर्दाश्त न होता हो तो उसे आप कह सकते हैं कि आपको पसंद नहीं है चेहरा अगले का बजाय उसे बदसूरत कहने के।
झूठ नहीं बोलना है। झूठ बहुत दुखी करता है। आप किसी बदसूरत को खूबसूरत बोल कर मत निकलिए। ये घातक हो सकता है। अगला आईना देखता है। उसे पता है कि वो कैसा है और अगर आप झूठ बोलते हैं तो हो सकता है कि वो समझे कि आप उसको पसंद करते हैं (मेरे साथ ऐसा हो चुका है) और फिर वो आपसे दिल लगा ले तो? तब क्या उसका दिल तोड़ोगे? मुझे तोड़ना पड़ा, इसलिये यदि मुझे कोई चेहरा पसन्द नहीं तो उसे खूबसूरत तो नहीं बोलता लेकिन बदसूरत भी नहीं बोलता। बेहतर होगा कि अनदेखा कीजिये इन बातों को और दूसरी खूबियों को देखिये। खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है। आपकी सूरत कैसी भी हो। अतः बिना इसकी परवाह किये खूब सेल्फी डालो, DP पेलो। आपका दिन शुभ रहे। ~ Shubhanshu 2020©
शनिवार, जनवरी 04, 2020
कौन बनेगा करोड़पति? ~ Shubhanshu
अमीर बनने में आपकी मनोस्थिति ज़िम्मेदार होती है। एक बार आप 1 लाख₹ की रकम जोड़ लें तो करोड़पति बनने की राह पर आप आगे बढ़ने लगते हैं। लेकिन 50 लाख पर रुक जाना क्योंकि इससे ऊपर आपको मजबूत इच्छाशक्ति और संयम की ज़रूरत पड़ेगी अन्यथा आप एक पत्थरदिल इंसान बन जाओगे।
1 लाख ₹ की रकम हिम्मत देती है कि अब और कमा सकते हैं। लखपति बनना आपका पहला पड़ाव है जो कि आपको 1-1 रुपये जोड़ कर पाना है।
यानी 1 लाख रुपया आपका एक नौकर बन गया जो 7000₹ वार्षिक कमा कर देता है। ऐसे ही आपको और रुपया जोड़ने की हवस सवार होने लगेगी और आप कमाई के नए-नए जुगाड़ निकालोगे। फिर साल दर साल 1 लाख से 2 लाख और 2 लाख से 4 लाख बनते जाते हैं। कुछ समय बाद आपके पास 12 लाख हो जाएंगे।
इसी हिसाब से 12 लाख रुपये आपको हर माह 7000₹ की आमदनी देंगे।
कुछ लोगों को 12 लाख₹ जोड़ना बड़ा कठिन लग रहा होगा लेकिन आप ठीक से नहीं सोच रहे। देखिये, पहला 1 लाख₹ आपने या तो अपने पिता या अपने कार्य से कमा कर फिक्स डिपॉजिट में लगा दिया। अगले साल आपके पास 1 लाख 7 हजार रुपये होंगे। यानि 7000₹ की बचत हुई बिना कुछ किये।
नोट: जिनके पास 1 लाख रुपये से अधिक रुपये हैं वे और जल्दी अमीर बन सकते हैं।
अब अगर आप इस साल कोई भी रकम नहीं जोड़ते (जो कि सम्भव नहीं है) तो भी अगली बार ब्याज आपको 107000₹ का 7% मिलेगा जो कि 7490₹ होगा। देखिये उन 7000 ने भी इस बार आपको 450₹ कमा कर दिए। इस साल आपके पास बिना एक उंगली भी हिलाए 100000+7000+7000+450 = 114450₹ जुड़ गए। अब या तो आप इससे एक स्मार्टफोन ले लो या ऐसे ही जुड़ने दीजिये। ये 14450₹ आपके लिये उपहार जैसे होंगे। इस तरह आपके पास न सिर्फ पैसा जुड़ेगा बल्कि बढ़ेगा भी।
इसी तरह आप पैसा जोड़ कर, बचत करके और ब्याज से कमाते हुए तेजी से बड़ी रकम जोड़ लोगे और जब ये आदत में आ जाता है तो आपकी फिजूलखर्ची एकदम बन्द हो जाएगी। आप फकीर की तरह जीवन जीने में खुशी महसूस करने लगोगे क्योंकि पैसा जोड़ना है। बाद में वो जब बढ़िया कमाई देगा, तब जाकर आप ऐश करना।
एक समय बाद आपको 30000₹ महीना मासिक आय मिलने लगेगी। और उसके कुछ समय बाद जब आपके पास 1 करोड़ रुपया हो जाएगा, तब यही रकम बढ़ कर 58,333.34₹ प्रति माह हो जाएगी और ये समय होगा आर्थिक संपन्नता का। तो दोस्तों, आपने देखा कि पैसा कमाना बहुत आसान काम है अगर आप 1 बार थोड़ा जोड़ना सीख जाते हैं। 0% risk, 100% benefits! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
बुधवार, जनवरी 01, 2020
मेरे जैसा क्यों बनना चाहते हो जी? ~ Shubhanshu
कोई मेरे जैसा भी बनना चाहता है जान कर अजीब सा लगा। मैं हूँ क्या? केवल एक इंसान ही तो न? वो तो सब हैं? हैं न? या नहीं हैं? लोगों की नज़र में मैं कोई नहीं। लोगों को बड़े-बड़े वादे करने और लच्छेदार भाषण देने वाले पसन्द हैं। मेरी मजबूरी है कि मैं झूठ नहीं बोल सकता। और सुना है कि झूठ ही तो बिकता है। सत्य कहीं डूब मरता है शर्म के मारे। तो मैं भी शर्म से डूब मरने के लिये ही बना हूँ।
इसीलिए लोगों के बीच नहीं जाता। छुप कर रहता हूँ। उनसे घबराहट सी होती है अब तो। अलग होना ही गलत होना हो गया है। जबकि मैं तो बस वही कर रहा हूँ जो मुझे सही लग रहा है। वो भी सिर्फ अपने साथ। किसी की स्वतंत्रता में दखल कैसे दे दूं अगर मैं खुद स्वतंत्रता का प्रेमी हूँ?
फिर भी लोगों को मैं पसन्द नहीं आता। सच कहूँ तो मुझे भी वो पसन्द नहीं आते। उनकी सौ बुराइयों को मैं जानता हूँ। मेरी वो एक भी नहीं साबित कर पाते। फिर भी मैं बुरा हूँ क्योंकि भीड़ से अलग हूँ। सब के जैसा दिखने वाला रोबोट नहीं हूँ न?
मैं असफल रहा लोगों के बीच रहने में। मैं असफल रहा प्रसिद्ध होने में। मैं असफल रहा भीड़ को खुश करने में। मैं बस खुश कर सका तो केवल खुद को। बस यही मेरी कामयाबी है।
और यकीन मानिये मैं बस इतना ही सफल होना चाहता हूँ। फिर भी आश्चर्य है, मेरे जैसा कोई क्यों होना चाहेगा? शायद उसे पता नहीं वो क्या सोच रहा है। मैं कुछ नहीं हूँ और वो भी कुछ नहीं हो जाएगा। तब पछताएगा। ~ Shubhanshu 2019©
शनिवार, दिसंबर 28, 2019
ईश्वर और उनके दूतों का आमरण अनशन ~ Shubhanshu
एक बार सभी धर्मो के ईश्वर और उनके मृत संस्थापक घर आकर
बोले: हमको क्यों नहीं मानता है बे?
शुभ: नहीं मानूँगा। क्या कर लोगे?
त्रिशूलधारी: क्या बोला बे?
गजमानव: अरे काहे गुस्सा हो रहे हैं पिता जी?
शूलीधारी: आओ साथियों, यहाँ गुस्से से काम नहीं चलेगा।
पगड़ी-दाढ़ी धारी: ये आदमी खतरनाक है। कुछ करना पड़ेगा।
छुरी धारी: जो बोले...सो निहाल...निकालेगा कोई हल।
नग्न पुरुष: अहिंसा परमो धर्म:।
घुंघराले बाल धारी: आइए शांति से बात करते हैं।
(सब मिल कर मंत्रणा करते हैं)
सभी एक साथ: तय हुआ है कि भूख हड़ताल करेंगे।
शुभ: आप सब तो अमर हो। लगे रहो। हाथ कंगन को RC क्या? पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या? शुरू हो जाओ।
तब से ये सब दिल्ली के रामलीला मैदान में आमरण अनशन पर हैं। 10 साल हो गए। इसलिये आपकी मदद नहीं कर रहे। परेशान न हों। दिल्ली चलो। इनके साथ अनशन पर लग जाओ। शायद कोई मदद कर दे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©
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