Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शनिवार, मई 16, 2020

Farmership and Labourship are not reserved for Illiterates

मजदूरों और किसानों के कार्य महत्वपूर्ण होते हुए भी उनको सम्मान से नहीं देखा जाता। उसका कारण उनका कम या बिल्कुल शिक्षित न होना है। अनपढ़ व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता है, जब तक उसे नेता या धनवान बनते न देखा जाए। 

किसानों और मजदूरों की दुर्दशा अशिक्षा के कारण ही है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति को शिक्षित व्यक्ति तब तक अपमान से देखता है, जब तक वह शिक्षित या धनवान न हो जाये। निर्धनता तो पढ़े लिखों का भी सम्मान छीन लेती है। सब उनको नकलची या फेक डिग्री वाला समझने लगते हैं।

शिक्षा ही आपकी आज़ादी की और सम्मान की चाभी है। इसे पाकर ही आप समाज में उच्च स्थान पा सकते हैं। शिक्षा पाकर आप किसानी कीजिये या मजदूरी भी कर सकते हैं तो वही कीजिये। कोई भी काम छोटा नहीं होता, अगर उसे कुशल और शिक्षित व्यक्ति करे।

नौकरी वही करे जिसे नौकर बनना हो। किसान और मजदूर तो अपने मालिक खुद बन सकते हैं। गर्व से लोगों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर श्रम कीजिये और गर्व से सबके लिये अपने खेतों में फसलों का सोना उगाइये।

जय शिक्षित मजदूर, जय शिक्षित किसान! तभी होगा मेरा भारत महान! ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

The Luck Builder

इंसान जो भी भुगत रहा अच्छा या बुरा, यह उसका खुद का चुनाव है। कर्म करो फल की इच्छा न करो का अर्थ है कि घबराओ मत। डरो मत। अच्छा कार्य करो। परिणाम अच्छा ही आएगा! पिछला जन्म होता नहीं तो पिछले जन्म के कर्म किधर से आ गए?

मान भी लो कि पिछला जन्म होता है, तो भी जब आपको अपने पिछले जन्म का घण्टा कुछ याद नहीं है तो सज़ा पाकर क्या पश्चाताप करोगे? घण्टा!

अतः ये बकवास बात है, केवल तसल्ली देने के लिये, ताकि कोई गुस्से में गलत कदम न उठा ले।

किस्मत कुछ नहीं है। बस अवसरों की एक कड़ी है जो आपकी सोच से चलती है। जी हाँ आपकी सोच से।

बहुत लोग कहते हैं कि शुभ तुम जो कहते हो, वही कर दिखाते हो। कैसे? असम्भव कार्य भी कैसे कर देते हो? इतना कॉन्फिडेंट कैसे रह लेते हो। जो हमको ओवर कॉन्फिडेंस लगने लगता है। क्या तुम कोई जादू जानते हो? इतना लकी कैसे?

हकीकत यह है कि हम लोग अपने मस्तिष्क को कभी ठीक से समझ नहीं पाते। हमारा दिमाग ही हमारा जादूगर है। हाँ मैं वैज्ञानिक हूँ, और मैं किस्मत को अपनी जेब में रखता हूँ। वैज्ञानिक तरीके से।

आपकी बदकिस्मती आपकी बनाई हुई है और आपकी खुशकिस्मती भी। और इसको आप बदल सकते हैं।

मेरी ये बात अपराधी भी सुन रहे होंगे और वो भी जो अपराध करना चाहते हैं। वो भी जो गलत करके बच जाना चाहते हैं। इसलिए ये राज़ सबको नहीं बताना चाहिए। एक संकेत ही दे रहा हूँ कि सब आपकी ही करनी है जो आज आप भर रहे हो और आगे भी भरोगे। अच्छा या बुरा सब आपका अपना चुनाव है। ~ Shubhanshu The Luck Builder 2020©

मंगलवार, मई 12, 2020

I am not Covid19 ~ PM




PM: lockdown में सबकी गांड फट गई होगी। बोलो, फण्ड में से कितना राशन भेज दूँ?
जनता: दारू-दारू-दारू!
PM: गलत बात! 70% टैक्स लगा दूँगा। मत पीना।
जनता: दारू-दारू-दारू, देता है या गांड फाड़ दूँ?
PM: तुमने रामायण मांगी, दे दी, महाभारत मांगी, दे दी, श्री कृष्णा मांगा, दे दिया। अब ले लो दारू भी ले लो। हमें लगा अनाज चाहिए, इसलिये फंड में दान मांगा।

चलो तुम टैक्स देने पर आमादा हो, तो टैक्स ही दे दो! मैं तो उसी दिन समझ गया था कि तुम सब मूर्ख हो, जिस दिन मैंने ताली-थाली-दीवाली की बात कही और तुम फट से मान गए। जितना कहा, उससे ज्यादा किया।

भारत माता की कसम, जब से PM बना हूँ, तब से देख रहा हूँ। मैं तो चाय बेचता था। कम पढा-लिखा था। इसलिये मूर्खतापन्ति करता हूँ। लेकिन तुम तो एक से बढ़कर एक धुरंधर हो। फिर काहे मूर्खतापन्ति करते हो?

इस साल की शुरुआत से ही, पूरी दुनिया में बर्बादी के दिन शुरू हो गए। जो इस देश में हजार साल में नहीं हुआ वो इस साल हो गया। बहुत बुरा समय है। अर्थव्यवस्था का नाश हो गया। पहली बार इतने समय तक देश घरों में बन्द रहा। अघोषित इमरजेंसी लगानी पड़ गई।

कामगार मजदूरों पर असर पड़ा। उद्द्योग धंधे चौपट हो गए। सरकार पर बिना काम के वेतन देने का अतिरिक्त दबाव पड़ा। देश 10 साल पीछे चला गया। पूरी दुनिया 10 साल पीछे चली गई। फिर भी मैं इस छोटे से दिमाग से जो भी बन पड़ रहा है, अपने एक्सपर्ट सलाहकारों से जाँच करवा कर कर रहा हूँ।

उधर कांग्रेस गांड मार रही है, तो दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी हथोड़ा और हंसिया दिखा रही है। लगी पड़ी है। अरे इस कठोर समय में तो राजनिति न करो। ऐसा तुम्हारी सरकार के साथ भी हो सकता था। अफवाहें उड़ा कर मरे को क्यों मांर रहे हो।

अनपढ़ नागरिक परेशान है, उसे पता भी नहीं कि हो क्या रहा है? उसे समझाने की जगह, भड़काया जा रहा है। उकसाया जा रहा है। ये तक कह दिया कि कोरोना मैंने फैला दिया है। अरे निर्लज्जों, चीन में कोरोना मैंने फैला दिया? अमेरिका में मैंने फैला दिया? अरे मैं तो अभी भला चंगा हूँ, मुझे ही कोरोना है, बता दिया कमीनो। अभी ज़िंदा हूँ मैं।

राज्यों में फिर से मजदूर काम पर लौट सकें इसलिये मजदूर एक्ट में अस्थायी संशोधन की ज़रूरत पड़ी। हमने कहा कि मजदूर काम पर लौट आये। उनकी और उनके ऊपर निर्भर व्यापारों की हालत सुधरे। राज्य सरकारों ने उसे सुना। उनको अपनाया। अब मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर भी काम कर सेकेंगे।

ज्यादा काम करना चाहें तो ओवर टाइम ले सकते हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं है। अपनी सहूलियत से कार्य करें। कोई आपको तंग करे तो शिकायत कीजिये। सुरक्षा के सारे नियम पूर्ववत हैं। किसी का हक नहीं मारा जाएगा। हंगामे से दूर रहें। आपके भले के लिये ही होगा। सब काम आपके लिए ही कर रहा हूँ। आपका ही सेवक हूँ।

बस धैर्य रखिये। भड़काऊ नेताओं से दूर रहिये। वो आपके खून पर अपना गुजारा करते हैं। आपके घर जला कर रोटी सेकेंगे। मैंने भी सेंकी थीं। गुजरात दंगे याद हैं? करवाने पड़े। क्या करता, सीट बचानी थी। हो गयी गलती। बहक गए कदम। बहका दिया राजनीती ने मुझे। लेकिन अब नहीं। अब बस। बहुत खून बह गया। बहुत लाशें बिछ गईं। मैं बूढ़ा हो गया। अब राजनीति नहीं होती। दलदल है ये। फंस जाते हैं अच्छे-अच्छे। कितना भी अच्छा कर लो। फेकू ही कहलाता हूँ। नहीं होता अब। पहले भी कहा था कि कह दो एक बार, कह दो एक बार कि नहीं चाहिए मोदी। मेरा क्या है? झोला लेकर चला जाऊँगा। इस पर भी राजनीति हो गई।

कहा गया कि झोले में क्या ले जाओगे? अरे झोले में मैं लोढ़ा ले जाऊँगा भोसड़ी वालों। अरे झोले में एक फकीर क्या ले जाता है? वही एक जोड़ी कपड़े, तेल, साबुन, आटा, दाल, नमक, और हो सका तो 2-3 आलू प्याज टमाटर भी। अब इसको भी नहीं ले जाने दोगे तो डाल लो अपनी गांड में। मैं फिर कहीं से पैदा कर लूंगा। अभी दम है हाथों में। कहीं मजदूरी कर लूंगा। चाय बेच लूंगा। लेकिन जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जय हिंद देशवासियों! 👍 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Disclaimer: व्यंग्य। केवल मनोरंजन हेतु। इसका किसी असली जीवित व्यक्ति से सम्बंध नहीं है।

शनिवार, मई 09, 2020

सरकार व्यापारियों का ऋण माफ कर रही है मगर किसानों का नहीं, आखिर क्यों?




कुछ विद्वानों को लगता है कि करोड़ो रूपये माफ कर दिए विलफुल डिफॉल्टर के और किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रहे। इन विद्वानो को न तो कानून पता हैं और न ही नियम। ये कम्युनिस्ट संविधान को नहीं मानते इसलिये ऐसी सोच रखते हैं।

NPN कानून के तहत जब व्यक्ति के पास कुछ सम्पत्ति नहीं शेष रह जाती है तो उसे दिवालिया कहा जाता है। यानि हम उससे कुछ वसूल नहीं कर सकते। नँगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?

इसको ऐसे समझो। स्थिति 1: माना आपने नियमो का पालन करके सम्पत्ति गिरवी रख कर लोन लिया और एक मंदिर बनाया। खूब कमाई हुई। फिर अचानक एक दिन lockdown लग गया। गांड फट गई। एक एक पैसे के मोहताज हो गए। लोन की किस्त गांड से बाहर आने लगी। तब आपने कहा कि ले लो मंदिर, ले लो घर। मेरी पूरी तरह से फट गई है। अब सिलने को धागा तक न बचा। तब बैंक आपकी जांच करेगी और आपकी सम्पत्ति के वर्तमान मूल्य का आंकलन करके उसे नीलाम कर देगी।

अब मान लो मंदिर नीलाम हुआ कम कीमत पर। जैसे 1 करोड़ का मंदिर अब 1 लाख का रह गया, आपने लोन लिया 50 लाख का। क़िस्त चुकाना बन्द कर दिया क्योंकि आमदनी कम हुई। ब्याज बढ़ता गया। 1 करोड़ हो गया। अब बैंक को 100 लाख की जगह केवल 1 लाख मिला। आप खड़े नँगे, बेघर, सड़कछाप, तब बैंक आपका 99 लाख NPN के नियम से माफ कर देगी और रिजर्व बैंक से मदद लेगी।

स्थिति 2: अगर आप ने पैसा होते हुए भी क़िस्त नहीं दी और भाग गए देश छोड़ कर, तो आप विलफुल डिफाल्टर हुए। ऐसी दशा में आपको इंटरपोल पुलिस पकड़ेगी और पकड़ने के बाद जो भी सम्पत्ति मिलेगी, उससे लोन चुकायेगी और बचा हुआ लोन, चूंकि कुछ बचा ही नहीं है अगले पर, उसे माफ कर देगी। लेकिन जेल भेजा जाएगा।

स्थिति 3: आप किसान हैं। आपने 20 लाख लोन लेकर अपना खेत गिरवी रखा। इस पैसे से बेटी की शादी में दावत करी। उत्सव मनाया। खूब कर्जा लेकर दारू पिया। सब 20 लाख उड़ा दिया। अब कमाई हुई कम। तो गांड फ़टी कि लोन कैसे चुकाएँ? ब्याज बढ़ता जा रहा है। तब आप सरकार को कोसते हैं कि कारपोरेट के करोड़ो माफ कर दिए, हमारे लाखों माफ नहीं कर रहे। अरे भाई, आप भी खेत-मकान बेचकर सड़क पर आ जाओ। दिवालिया हो जाओ। भीख मांगो। आपका भी लोन माफ हो जाएगा। या पैसा हो तो विदेश भाग जाओ। पुलिस जब पकड़ेगी तो जीवन भर जेल में रहना। तब तक ऐश करना। हाँ लोन उसमें भी माफ हो जाएगा, इधर की सम्पत्ति नीलाम करने के बाद बचा हुआ।

तो आपने समझा कि भिखारी बन गए व्यक्ति को धन दिया जाता है, न कि लिया जाता है। इतना तो खुद जानते होंगे। वैसे भी विलफुल डिफाल्टर को अपराधी माना जाता है। तो कानून तो अपना काम करेगा ही। भगोड़े को पकड़ने के प्रयास चल ही रहे हैं। उसकी संपत्ति लोन चुकाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो उसका लोन माफ होना तय है। उसकी गांड से नहीं पैसा बन जायेगा। अगले पर नहीं है तो पैसा कहाँ से ले लोगे? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गुरुवार, मई 07, 2020

My B.Ed. From Jugal kishor college of Gawan



संविधान अमीर - गरीब के लिये विभाजित नहीं है। सब नागरिक समान अवसर और हक रखते हैं। सबके कर्तव्य भी एक समान हैं। जो शोषित हैं, उनको आरक्षण बराबरी पर लाने हेतु दिया गया है न कि अलग दिखाने के लिए। शोषक सोच वालों के मुहं पर तमाचा है आरक्षण।

आरक्षण प्रतिनिधित्व पर केंद्रित था और 90% है भी। जो 10% जाति पर आधारित है, वह खत्म होने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता बहुजन समाज से ही हैं और सम्पन्न बहुजनों के भी आरक्षण से लाभ उठाने पर आपत्ति जताते हैं। ज़ाहिर है कि जो जन सामान्य की बराबरी पर आ गए, उनको आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिये।

धन आधारित लाभ केवल गरीब को मिलना है। जहाँ भी धन का लाभ आय प्रमाण पत्र देखे बिना मिल रहा है उनका लाभ बन्द होना चाहिए। प्रतिनिधित्व आधारित लाभ की ज़रूरत धन की व्यवस्था के बाद पड़ती है। इसलिये धन उपलब्ध करवा दिया जाता है। परंतु यदि हम बिना आय प्रमाण पत्र के कोई आर्थिक सहायता पा रहे तो नियमों में कुछ गड़बड़ी है।

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि मैं 2012 में बीएड करने के लिये गंवा (बबराला के पास, उत्तर प्रदेश) गया था। मैंने पहली बार अपना जातिआय प्रमाण पत्र इस्तेमाल करने की सोची। फॉर्म में लिखा था कि शोषित वर्ग को 0 फीस देनी है। मैं जाति प्रमाण पत्र और 6 माह से ज्यादा पुराना आय प्रमाण पत्र ले गया। कारण था कि आय प्रमाण पत्र का कोई जिक्र फॉर्म में नहीं था। अन्यथा नया बनवा लेता।

काउंसलिंग के दौरान पता चला कि 6 माह के अंदर बना आय प्रमाण पत्र साथ में लाना है। उन्हीं की फीस माफ होगी। कुछ अन्य लोग भी नहीं लाये थे। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होने के बाद ड्राफ्ट जमा करना था। जिनका आय प्रमाण पत्र 4 लाख तक का था उनको 0 फीस भरने की स्लिप मिली। मेरा पुराना आय प्रमाण पत्र 85000₹/वार्षिक का था फिर भी मुझे 56000 रुपये भरने पड़ गए।

इस तरह यह तो साबित हुआ कि केवल जाति प्रमाण पत्र से रेंक में लाभ मिल सकता है (मेरी रेंक सामान्य वर्ग में आई थी) लेकिन आर्थिक लाभ के लिये जाति प्रमाणपत्र के साथ, निश्चित धनराशि का आय प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। क्या यह सब जगह है? मुझे पता नहीं। मैंने पहली बार इनको प्रयोग किया था।

घर से 200 km दूर रोज़ आना जाना सम्भव नहीं था। कोई साधन नहीं था जो सीधे उधर पहुँचा सके। मैंने किराये पर कमरा देखा तो पता चला हगने के लिये खेत में जाऊं। किसी अनजान के खेत में हगते हुए कोई पीट सकता था। इसलिये लेट्रिन-पानी वाला रूम पूछा। पता चला कि वह कॉलेज से काफी दूर पर 2000 रु महीना वाला है। ये सब देख सुन के मेरी फट चुकी थी, अतः मैं हताश हो गया। पहले ही कॉलेज घुसते हुए ही 500₹ रिश्वत ले चुका, फिर फॉर्म भरने के समय 20000₹ मांगने लगा तो मैंने कहा, "गांव मराओ झोपड़ी वालों।" और वापस घर आ गया।

एक दिन फोन आया, "क्या आपने बीएड छोड़ दिया है?" मैंने कहा, "हाँ, तुम लोगों का पेट कभी भरता नहीं और मुझको तुम्हारे कॉलेज में पैसा भी फ्री में बांटो तो भी नहीं रहना। दिन में भी मक्खी जैसे मच्छर काटते हैं, रहने-खाने और आने जाने की व्यवस्था नहीं और होस्टल बन्द करके रखते हो। रख लो मेरी फीस (जिसमें से मुझे कोई भी सामान, सुविधा नहीं दी गयी)। मैं उधर पूरे 60000₹ बर्बाद करके चला आया था। बरेली कॉलेज से सुदूर स्थित गांव जाना प्रमोशन नहीं, डिमोशन था। दोबारा बीएड न करने की शपथ ली और चला आया। (लग गए लोढ़े 😢) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, मई 04, 2020

Poverty is projected on us, by us!




शिक्षित अमीर के यहाँ पति-पत्नी दोनो कमाते हैं। अधिकतम खर्च, स्वास्थ्य पर। ज्यादातर दुर्व्यसन (तंम्बाकू/शराब/नशा) से दूर। नशा करने वाले भी ब्रांडेड, कम खतरे वाले नशे करते हैं। बच्चे 1-2 पैदा करते हैं। निजी खर्च वाले महंगे विद्यालयों में पढ़ाते हैं। गरीबों को अपने से उल्टे काम करते देख कर चिढ़ते हैं।

गरीब के यहाँ कमाने वाला केवल 1, समस्त दुर्व्यसन युक्त नशेड़ी आदमी। अधिकतम ख़र्च घटिया गुणवत्ता के दुर्व्यसन पर। 5-8 बच्चे पैदा करते हैं। 10% सरकारी चुंगी विद्यालय में मुफ्त में पढ़ाते हैं। बाकी के 90% उनको खड़ा होते ही, सीधे बाल मजदूरी पर लगा देते हैं। लड़का बाहर, लड़की भीतर। अमीरों के स्वास्थ्य पर हुए भारी खर्चे पर हंसते हैं। अमीरों को फालतू खर्च करने वाला समझ कर चिढ़ते हैं जबकि खुद पर दुर्व्यसन का खर्च फालतू ही करते हैं।

दोनो को बच्चा पैदा करने से पहले ही अपनी औकात पता होती है। सोचो, गरीबी को बनाया गया है। वह है नहीं। अमीर और गरीब इंसान को उसका नज़रिया बनाता है। मांगने के लिए, दूसरों के पैरों में गिरने वाले, कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Communism and its opposite Communists




साम्यवाद कहता है कि सबको केवल बेसिक सुविधाएँ दी जाएं। यानि सादा संतुलित भोजन, मौसम से बचाने हेतु सस्ते वस्त्र और काम चलाऊ आवास।

जिनके पास ये सब है, वो खुद को नितांत गरीब बोलते हैं। साम्यवाद का अर्थ है सब पर बराबर संसाधन हों। इसलिये सब जनसंख्या के हिसाब से बंटेगा और उसकी कीमत तानाशाह की फैक्टरियों में जी तोड़ श्रम करके चुकानी पड़ेगी। तभी भोजन और भत्ता मिलेगा। तानाशाह अमीर होता जाएगा। जनता गरीब रहेगी।

अब तानाशाह शाही जीवन जिये और जनता मजदूरी करके आधारभूत सुविधाओं के साथ बस ज़िंदा रहे। जनसंख्या पर रोक लगा दी जाएगी एक दिन बिना बताये, अचानक। तब पकड़ के नसबंदी करी जाएगी क्योंकि संसाधन सीमित हैं। अभी हेलमेट/सीटबेल्ट के बिना सिर्फ जुर्माना देते हो, तब सीधे गोली मार दी जाएगी। अभी सरकार सख्ती करती है तो तानाशाह कहते हो। जब सच में तानाशाही होगी तो कहने लायक ही न छोड़ा जाएगा।

जियोगे, लेकिन जैसे देश ही एक जेल हो। अंग्रेजी गुलामी याद है न? बस वही है साम्यवाद। इसे दंगों से ही लाया जाता है। लूटपाट और हत्याकांड से संसद भवन पर कब्जा कर लिया जाता है। सेना को गोरिल्ला युद्ध में धोखे से मार डाला जाता है। जो डरपोक होते हैं उनको अपना गुलाम बना लिया जाता है। इस तरह अपने ही देश की सरकार, पुलिस और कानून से नफरत पैदा करवा कर दंगे करके मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं और देश को खुद ही बर्बाद करके उस पर तानाशाही लागू कर दी जाती है।

जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने ही देश पर चढ़ाई करके सरकार हथिया ली थी और पाकिस्तान का तानशाह बना था। उसे फांसी हुई। सद्दाम हुसैन, गद्दाफी भी यही करके मारे गए। भविष्य में और नाम जुड़े तो कोई हैरानी नहीं होगी।

परन्तु हर भोला साम्यवादी चाहता है कि अमीरों की तरह 7 स्टार होटलों में रहूँ, हवाई यात्रा से विदेश घूमूं। बेचारे का सपना कभी पूरा नहीं होगा। अगर हुआ तो वह साम्यवादी नहीं रहेगा। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

Without Education/Knowledge, we will always be Poor




मित्र: तुम भी बहुजन हो, तुम पर भी बाबा साहब के एहसान हैं। तुम क्यों नहीं धूप अगरबत्ती-मोमबत्ती-फूल से बाबा साहब का सम्मान करते हो? जयंती भी नहीं मनाते हो? सवर्ण बन गए क्या?

शुभ: 1. मैं आत्मा में भरोसा नहीं करता। जो मर गया वो क्या जानेगा कि हम अपमान कर रहे या सम्मान?

2. जो व्यक्ति पूजा-पाखण्ड को लात मारते-मारते मर गया उसकी तस्वीर-मूर्ति लगा कर वही सब तुम लोग कर रहे। इससे बड़ा अपमान उस महापुरुष का क्या होगा टूटिये?

3. मेरे पास फालतू समय भी नहीं है कि मैं जो व्यक्ति जयंती लोकतंत्र के खिलाफ है, उसे पसन्द नहीं, ये लिख कर मर गया उसकी जयंती को उत्सव की तरह मनाऊं और उनकी शिक्षाओं को कभी पढूं ही न। नाचूँ-गाउँ, लोकतंत्र का अपमान करके जिसके सम्मान के लिये वो महामानव अपनी ऐसी-तैसी करवाता रहा।

4. जिस लोकतंत्र ने हम को बराबरी का हक दिया। जो सब नागरिकों को एक समान मानता है। उसी लोकतंत्र के नियम का उल्लंघन करके 1 आदमी को तानशाह की तरह ईश्वर तुल्य मान कर हमने लोकतंत्र को ही खत्म कर दिया है। तानशाह के अनुयायियों की तरह हम लोग बाबा साहब के खिलाफ बोलने वाले पर FIR करते फिरते हैं और लड़ने-मारने जुट जाते हैं। तानाशाह के अनुयायियों की तरह उनके गुंडे बने फिरते हैं।

5. कम्युनिस्ट के साथ मिल कर लाल सलाम-जय भीम बोलते फिरते हैं। जबकि बाबा साहब कह कर गए कि लोकतंत्र में साम्यवाद/समाजवाद ज़हर की तरह है और ये संविधान को नष्ट कर देगा। साम्यवाद में संविधान नहीं होता है। एक तरफ हम संविधान की जय जय करते हैं और दूसरी तरफ संविधान को नष्ट करने वालों का साथ दे रहे हैं। ऐसे कैसे चलेगा?

6. इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि इमरजेंसी के दौरान सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार न रखकर समाजवाद को संविधान में शामिल कर दिया गया? लोकतंत्र की हत्या हो गयी। सरकारों को लोगों से सम्पत्ति छीनने का हक मिल गया। लोगों की मेहनत की कमाई सम्पत्ति पर उनका ही हक न रहा।

7. आज समाजवादी लोगों के चक्कर में हम शिक्षा की बात नहीं करते। गरीबों को शिक्षित करने की बात नहीं करते। जनसंख्या कम करने की संवैधानिक बात नहीं करते बल्कि अशिक्षितों को मुफ्त में सुविधाओं की मांग करते हैं। उनको शिक्षा देने की जगह गरीब और अज्ञानी बने रहने को कहते हैं जबकि बाबा साहब ने कहा था, शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो। ये क्रम से है और पहला कार्य है शिक्षित होना। मेरे पिता ने पढ़ाई करी और दादा किसान-मजदूर थे। अगर पिता न पढ़ते, संघर्ष न करते, तो आज मैं भी कहीं गरीबी में जी रहा होता।

8. इसलिये दोस्त, ये बकवास बन्द करो। पाखण्ड हर वह कार्य है जिससे कोई लाभ न हो। बल्कि हानि हो सकती है। जैसे धन की हानि, समय की हानि, विचारों की हानि, सिद्धान्तों की हानि। धूपबत्ती, मोमबत्ती, तसवीर, फूल आदि पर धन खर्च होता है। इस सब का कोई वास्तविक लाभ आज तक ज्ञात नहीं हुआ है। इसलिए ये तो इनको बनाने वालों का सामान बिकवाने का जाल मात्र है। जैसे ब्राह्मण बिना किसी की मदद किये उससे पैसा ले लेते हैं उसी तरह ये बेकार का सामान बेचने वाले हमसे पैसा ले लेते हैं। जिस तरह हमको ब्राह्मण ठगते रहे, उसी तरह ये भी हमको ठग रहे हैं। किसी मूर्ख को ही ठगा जा सकता है। और अब मैं मूर्ख नहीं रहा। पहले मैं भी था। गलती सबसे होती है। लेकिन दोबारा करने वाला ही महामूर्ख होता है। अभी समय है, सम्भल जाओ।

मित्र: चुप भो*ड़ी के। साला बाबा साहब का अपमान करता है? तुझसे सवाल क्या किया, भाषण दे डाला। सुनते-सुनते कान पक गए। भक। तुझे नहीं करना तो मत कर। हमको रोक के दिखा साले। दोबारा नहीं पूछुंगा। बोल चलेगा?

मैं समझ गया कि ये महामूर्ख है। उधर से चला आया। समझ गया था कि इस मूर्ख से बात करना अपना समय बर्बाद करना है इसलिये ये वार्तालाप बुद्धिमानो के सामने लाना ही उचित समझा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, मई 03, 2020

Food and Help: Universal tools to spread religions



खालिस्तान बनाने के लिये ज्यादा से ज्यादा सिख बनाने का अभियान चलता है। लंगर उसी का एजेंडा है। फंडिंग विदेशी करते हैं। अभी जनसंख्या कम है तो शांत रहते हैं। पंजाब में जो किया वो आप पता कर के देखो। इंदिरा गांधी को इन्होंने ही मार दिया था।

सिख इस समय 4थे स्थान पर हैं इसलिये इनकी नफ़रत उसी के अनुपात में जिसके साथ खड़े होते हैं, उसके पक्ष में पैदा हो जाती है। जैसे मुझे सिख जब मिलते हैं तो मुझे हिन्दू समझ कर मिलते हैं। मिलते ही मुस्लिम की बुराई शुरू कर देते हैं। जबकि सिख और इस्लाम करीब-करीब रहने वाले धर्म रहे हैं। पाकिस्तान की लगभग 60% आबादी पंजाबी बोलती है। भारत में सिख और मुस्लिम साथ-साथ पले-बढ़े हैं।

परन्तु आज इस्लाम 2सरे स्थान पर सिख 4थे स्थान पर क्यों हैं? इस धार्मिक रेस में पीछे होने पर अब पहले स्थान वाले को पटाना आवश्यक हो जाता है कि उसके साथ मिल कर दूसरे स्थान वाले को खत्म कर दिया जाए। ऐसा करके प्रथम तो हिंदू सिख को पसन्द करने लगेगा फिर दोनों मिल कर इस्लाम को मिटाने पर जुट जाएंगे।

अब पहले यारी करके फिर उसी को काटा भी जाना है तो क्या करेंगे? इसके लिये गरीबों को चुना जाता है। गरीबों का धर्म है रोटी। उनके धर्म को उनको दो और वो किसी की भी तूती बजाने लगेंगे। लंगर खिलाना धर्म को फैलाने का सबसे आसान तरीका है। कुत्ते को वफादार बनाना है तो उसे रोटी डालो। यह सब जानते है और यही बात इंसान पर भी लागू होती है।

जिस तरह शिरडी में साई धर्म को फैलाने के लिये 10₹ में शाही भोजन उपलब्ध है वैसे ही स्वर्णमंदिर में भी सबसे बड़ी रसोई लगती है। सबसे ज्यादा भीड़ जिनकी होती है उनमें गरीब हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है। लंगर स्थल पर जाते ही आपको धार्मिक बनाया जाने लगता है। देखा जाता है कि आप उनकी गुलामी करते हो या नहीं? आपको सिर ढकने की तानाशाही बात माननी ही होगी, अन्यथा आपके लिये रास्ते बंद हैं।

जिसका नमक खाओगे उसी के होकर रह जाओगे। देर-सवेर सिख बन ही जाओगे। शूरुआत सिखों की तारीफ करके होगी। जगह जगह पगड़ी पहने सिख लंगर लगाते, शरबत पिलाते दिखते हैं। उनकी फोटो/वीडियो सोशल मीडिया पर डालोगे। उनकी तारीफ करोगे। सेना में उनकी बहादुरी के किस्से सुनाओगे जबकि सैनिक का सिर्फ एक ही धर्म होता है, देश की रक्षा। कोई धर्म उनको दूसरे सैनिक से अलग नहीं बनाता।

सिख बहुत पैसा कमाते हैं ऐसा दिखता है। अमेरिका में भारत से सबसे ज्यादा सिख ही गए हैं जबकि कहानी का पेच खुलता है इनके दहेज की मांग से। हर दूसरे सिख का बेटा NRI निकलता है। जबकि उसका बाप मामूली किसान है। ऐसा कैसे? दरअसल सिख दहेज में लाखों करोड़ों रूपये मांगते हैं। उस रकम से अपने लड़कों को विदेश भेजते हैं। सिख, अपने ही धर्म में अपनी लड़की का विवाह करते हैं जबकि दूसरे धर्म से लड़की लानी हो तो बिना दहेज के भी ले आएंगे।

विदेश में खालसा पंथ की स्थापना के लिये दुआ की जाती है। झंडा फहराया जाता है। विदेश में भारत को खालिस्तान बनाने के लिये कई संस्थाओं ने बीड़ा उठाया है। उनका सारा ध्यान हिन्दू आबादी को जल्द से जल्द सिख बनाने पर टिका है। भारी फंडिंग उधर से होती है जिससे गुरुद्वारे कभी खाली नहीं होते। सुबूत के लिये आप गूगल कर सकते हैं कि कैसे विदेशों से भारत में खालिस्तान बनाने की मुहिम चल रही है।

ऐसे ही जब मैं मुस्लिमों के साथ खड़ा होता हूँ तो मुस्लिम किसी की साफ शब्दों में बुराई न करके, अपने धर्मस्थलों पर घुमाने ले जाने की बात करने लगते हैं जैसे किसी दरगाह आदि पर। कारण है इस्लाम में दूसरे धर्म की बुराई करना मना है। सीधे उड़ा दो सालों को। ऐसा समझा जाता है। अपने धर्म में आ जाये तो स्वागत है। खूब आवभगत होगी।

ईसाई से मिलता हूँ तो बेचारे ज्यादा नहीं बोलते लेकिन जल्द से जल्द चर्च में बुलाएंगे। घर जाओगे तो खूब खातिरदारी होगी।

जब भी कोई अल्पसंख्यक धर्म का व्यक्ति दूसरे बहुसंख्यक धर्म के व्यक्ति से अच्छा व्यवहार करता है तो उसका मकसद होता है अगले को अपने धर्म में खींचना। इसाई मिशनरी खुल कर सामने आते थे तो वे बदनाम हो गए। तब से बाकी धर्मों के मिशनरी गुप्त एजेंडे के तहत कार्य करते हैं।

यदि दूसरे धर्म की एक महिला अपने धर्म में खींच ली जाए तो उस धर्म की एक पूरी पीढ़ी सिख/ईसाई/मुसलमान/हिन्दू आदि बनेगी और दूसरे धर्म में उतनी आबादी कम होकर सिखों/ईसाईयों/मुसलमानों/हिंदुओं आदि में जुड़ जाएंगी। इस तरह बहुसंख्यक धर्म बनते ही अलग देश की मांग करने के हक मिल जायेंगें।

अगर आप इतने सीधे हैं कि किसी धर्म को पसन्द करने लगे हैं तो यह आपकी गलती नहीं है। ये प्लान ही पढ़े लिखे धार्मिकों के हैं जो मनोविज्ञान पर आधारित हैं। औसत बुद्धि के लोग इसको समझ नहीं सकते और जाल में फंस जाते हैं। लेकिन धर्मजातिमुक्त बुद्धिवादी सब समझ जाते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, मई 02, 2020

A small journey of my life on facebook




आपके आसपास जो ज्यादातर लोग नास्तिक/कम्युनिस्ट का लेबल लिये घूमते हैं, वे राजनीतिक प्रचारक हैं। उनका प्रमुख कार्य नफ़रत फैला कर गृह युद्ध (दँगा) करवाना है। वे इंसानियत से दूर हैं। इसलिये धार्मिक लोग उनसे नफरत करते हैं। मुझे भी उनके धोखे में कोसा जाता रहा है। इसीलिए मुझे नास्तिक कहलाने में शर्म आनी लगी थी।

तब मैने खुद के लिये एक शब्द चुना, युक्तिवादी (rationalist). इसी नाम से ग्रुप बनाये और यही अपने प्रोफाइल में भी लिखा था। लोगों को यही समझाने भी लगा कि मैं राजनीतिक नहीं हूँ। मैं कुछ अलग तरह का नास्तिक हूँ। मैं प्रेम करने वाला नास्तिक हूँ। मुझे इंसान और जानवर दिखते हैं। धर्मजातिवर्ग नहीं।

इसी कड़ी में मेरी व्यक्ति पूजापाठ वाले, जयजयकारे वाले राजनीतिक, साम्यवादी, नकली भीमवादी नास्तिकों से मुठभेड़ हुई और सबसे दुश्मनी होती चली गई। कश्मीर जी ने धर्ममुक्त शब्द दिया था। जो युक्तिवादी से ज्यादा सरल था। उनकी भी ऐसे नकली नास्तिको से लड़ाई हो रखी थी।

हम दोनों मिले और बस उनकी मुहिम मेरी मुहिम बन गई। उनके दुश्मन मेरे और मेरे दुश्मन उनके हो गए। जब उनको अंधभक्त ग्रुप ब्लॉक करते तो मुझे भी कर देते। हम दोनों 1 और 1 मिल के 11 हो गए थे। इस दौर में एक विडंबना ये भी रही कि सलीम भाई भी हमारी तरह सोचते थे लेकिन वे हमारे साथ नहीं आये। फेसबुक पर हम 3 लोग ही ऐसे थे जिनका नाम ज्यादा लोग जानते थे।

सलीम भाई भी जानते थे इन अन्धज्ञानी अंधभक्त लोगों के बारे में। उन्होंने भी झेला है उनका विरोध। हमारे कई विचार मिलते थे लेकिन वे मुझ पर ज्यादा भरोसा नहीं करते थे/हैं। हालांकि वे मेरे साथ दोस्तों की तरह ही व्यवहार करते हैं और मैं भी उनको अपना मानता हूँ। वह मदद को हमेशा तैयार भी रहते हैं।

उस समय कश्मीर जी फंडिंग करते थे और हम लोग साथ देते थे। उन्होंने ही मुझे धर्ममुक्त.in डोमेन दिया था। एकदम मुफ्त। जो उनकी असमय मृत्यु से फंड न हो पाने से नष्ट हो गया। उनकी और मेरी मेहनत मिट गई। (अब मेरी वेबसाइट http://poisonoustruthlive.blogspot.com है)

समय के साथ कुछ आस्तिक भी हम दोनों से वादविवाद करने आये और धर्ममुक्त नास्तिक बन गए। महीनों मैसेंजर पर बहस होती रहती थी लेकिन फिर भी मैंने सबको जवाब दिए। आखिर में उन धार्मिक लोगों में इंसानियत जागी और वे कहने लगे कि तुम अलग हो। तुम उन जैसे नहीं हो। तुम आस्तिकों और नास्तिको, दोनो से अलग हो। बेहतर हो। कई बोले कि भाई मैं आस्तिक हूँ लेकिन मुझे आपको पढ़ना है। आप से बहुत कुछ सीखने को मिला है। पहले जैसा आस्तिक भी न रहा/रही। आप खास हो। कुछ तो अपमान करवा कर भी अड़े रहे। कहते कि नास्तिकों को जूतों पर रखता हूँ, तुम पहले हो जो अच्छे लगते हो। अलग हो उनसे। मैं बार बार अमित्र कर देता वो फिर गिड़गिड़ाने चले आते।

लगने लगा कि क्या मैं वाकई अलग हूँ? इसी दौरान संदीप सोम भाई जुड़े। बढ़िया लिखते थे। आम जीवन में कमाल के किस्से लाते थे। वे भी मुझे परखने लगे। उन्होंने बहुत बुराई सुनी थी मेरी उन नकली आस्तिकों और नास्तिकों से। वे मेरी हर पोस्ट की बारीकी से जांच करते। वे बहुत घनिष्ट होते गए। उन्होंने माना कि मेरे विचारों ने उनमें बड़ा परिवर्तन लाया। वो भी मेरी लड़ाई लड़ने लग गए। वे उन लोगों को मेंशन करते जो मुझसे नफरत करते थे। वे लोग फिर से नफरत दिखाते। अंत में उन्होंने माना कि मुझ पर घमण्ड का आरोप लगाने वाले वे लोग ही घमंडी थे।

हमारी घण्टों बातें होतीं। हम लोग एक दूसरे से सामाजिक और वैज्ञानिक मुद्दों पर बात करते थे। वे बहुत ज्यादा घनिष्ठ मित्र बन गए। हमने तय किया कि कभी असल जीवन में भी भेंट होगी। देहरादून आकर उनके विद्यालय में मिल सकता हूँ ऐसी बात हुई थी। लेकिन समय के साथ अचानक उनकी उपस्थिति गायब हो गई। वे लापता हो गए। साल भर होने को आया उनका कोई अता पता नहीं है। उन्होंने अपना फोन नंबर भी नहीं दिया था।

मेरे सम्पर्क में आकर वे vegan बने थे और बाकायदा लोगों को समझाने भी लगे थे। आज उनके बिना अकेला सा महसूस होता है। पहले कश्मीर जी से दस्तावेजी सहायता का अभाव हुआ और फिर संदीप जी की अनुपस्थिति से तार्किकता का। अवश्य ही संदीप जी के साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ है। लेकिन एक उम्मीद भी है कि शायद वे लौट आएं।

अभी फेसबुक पर फिर से अकेला महसूस होता है। अभी बीच में सुनील भाई भी लापता हुए थे तो घबराहट हुई थी कि कहीं ये भी तो नहीं चले गए छोड़ के? परन्तु अभी कल-परसो वो वापस आ गए। ये भी अच्छे मित्र हैं। बहुत भले मानस हैं। ये भी मेरे सम्पर्क में रहकर vegan बन गए थे और एक कदम मुझसे भी आगे चल कर raw vegan बने। काफी तार्किक हैं और मेरी मदद भी करने को तैयार रहते हैं। अच्छा लगा वापस पाकर।

Kaustubhrao मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं लेकिन बहुत ही तीव्र बुद्धि के स्वामी हैं। इन्होंने मुझसे ज्यादा किताबें पढ़ीं और कई भाषाओं को सीखा है। वे दक्षिण भारतीय है और उत्तर भारत में पैदा हुए मेरे जैसे परग्रही के लगभग डुप्लीकेट हैं। समान विचारों के चलते इनसे बहुत प्रभावित हुआ। कम उम्र में इतनी समझदारी वाकई आकर्षक थी। तो ये मिलते ही प्रिय हो गए। ये भी गायब हो जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। इनकी भी ज़रूरत है मुझे।

Sandeep भी उम्र में छोटे हैं और साधारण ग्रामीण परिवार से हैं। एक बार उनकी बड़ी बहन ने मेरे मित्र को एक कागज का फोटो भेजा। उस पर नामों की एक लिस्ट थी। हेडिंग थी, मेरे सबसे पसंदीदा लोग। सबसे पहले मेरा पूरा नाम लिखा हुआ था। देख कर दिल भर आया। उस समय संदीप भी मुसीबत में था उसका फोन उसके पास नहीं रहता था। वह बात नहीं कर पा रहा था। फिर भी हम लोग उसका इंतजार करते हैं।

हम लोग? जी हाँ, हम लोग। हम लोग हैं, संजय वर्मा, कुमार आकाश और मैं। हमारा एक चैट समूह है मैसेंजर पर। शुरू में हमने कई लोगों को आमंत्रित किया था इस समूह में लेकिन सिर्फ ये लोग ही एक्टिव रहते थे। इसलिये आज भी साथ हैं। सजंय जैसा इंसान भी कहीं न मिला। ये भी अनोखे हैं। ईमानदार, समझदार और तार्किक। इनके भी विचार मिलते चले गए। ये हमारे विचारों को प्रक्टिकल करके साबित कर देते हैं। चिकित्सा जगत से जुड़े हैं और मेरे सभी दावों को सत्यापित करते रहते हैं। ये भी बहुत अच्छे इंसान लगे मुझे।

आकाश भाई बहुत प्रेम करते हैं मेरे विचारों से। जब ये मुंबई में रहते थे तो केवल हमसे मिलने के लिये रातदिन का सफर करके बरेली आने को तैयार थे। इनको भी मेरे बहुत से आलोचकों ने संपर्क किया था। वे उनके शकों का भी समाधान करते रहे। फिर भी वे न माने तो उन्होंने उनको भी कड़ा जवाब दिया कि वे ही गलत हैं। मुझे काफी परखने के बाद ही जुड़े हुये हैं।

Shiv Kant जी एक आध्यत्मिक व्यक्ति हैं। मेरे आध्यात्म पर मतभेदों के बावजूद वे मुझसे स्नेह रखते हैं। मुझको सलाह देते हैं और मेरे विचारों को समर्थन देते हैं। उनके अच्छे पोस्ट मैं शेयर करता रहता हूँ।

कुछ और भी लोग हैं जिनके नाम मैं अभी भूल रहा हूँ तो वे कृपया अपने बारे में मेरा मत जानने हेतु मेरे बारे में अपने मत के साथ याद दिलाने की कृपा करें। मैं उनको भी इस लेख में शामिल कर लूंगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©