मित्र: तुम भी बहुजन हो, तुम पर भी बाबा साहब के एहसान हैं। तुम क्यों नहीं धूप अगरबत्ती-मोमबत्ती-फूल से बाबा साहब का सम्मान करते हो? जयंती भी नहीं मनाते हो? सवर्ण बन गए क्या?
शुभ: 1. मैं आत्मा में भरोसा नहीं करता। जो मर गया वो क्या जानेगा कि हम अपमान कर रहे या सम्मान?
2. जो व्यक्ति पूजा-पाखण्ड को लात मारते-मारते मर गया उसकी तस्वीर-मूर्ति लगा कर वही सब तुम लोग कर रहे। इससे बड़ा अपमान उस महापुरुष का क्या होगा टूटिये?
3. मेरे पास फालतू समय भी नहीं है कि मैं जो व्यक्ति जयंती लोकतंत्र के खिलाफ है, उसे पसन्द नहीं, ये लिख कर मर गया उसकी जयंती को उत्सव की तरह मनाऊं और उनकी शिक्षाओं को कभी पढूं ही न। नाचूँ-गाउँ, लोकतंत्र का अपमान करके जिसके सम्मान के लिये वो महामानव अपनी ऐसी-तैसी करवाता रहा।
4. जिस लोकतंत्र ने हम को बराबरी का हक दिया। जो सब नागरिकों को एक समान मानता है। उसी लोकतंत्र के नियम का उल्लंघन करके 1 आदमी को तानशाह की तरह ईश्वर तुल्य मान कर हमने लोकतंत्र को ही खत्म कर दिया है। तानशाह के अनुयायियों की तरह हम लोग बाबा साहब के खिलाफ बोलने वाले पर FIR करते फिरते हैं और लड़ने-मारने जुट जाते हैं। तानाशाह के अनुयायियों की तरह उनके गुंडे बने फिरते हैं।
5. कम्युनिस्ट के साथ मिल कर लाल सलाम-जय भीम बोलते फिरते हैं। जबकि बाबा साहब कह कर गए कि लोकतंत्र में साम्यवाद/समाजवाद ज़हर की तरह है और ये संविधान को नष्ट कर देगा। साम्यवाद में संविधान नहीं होता है। एक तरफ हम संविधान की जय जय करते हैं और दूसरी तरफ संविधान को नष्ट करने वालों का साथ दे रहे हैं। ऐसे कैसे चलेगा?
6. इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि इमरजेंसी के दौरान सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार न रखकर समाजवाद को संविधान में शामिल कर दिया गया? लोकतंत्र की हत्या हो गयी। सरकारों को लोगों से सम्पत्ति छीनने का हक मिल गया। लोगों की मेहनत की कमाई सम्पत्ति पर उनका ही हक न रहा।
7. आज समाजवादी लोगों के चक्कर में हम शिक्षा की बात नहीं करते। गरीबों को शिक्षित करने की बात नहीं करते। जनसंख्या कम करने की संवैधानिक बात नहीं करते बल्कि अशिक्षितों को मुफ्त में सुविधाओं की मांग करते हैं। उनको शिक्षा देने की जगह गरीब और अज्ञानी बने रहने को कहते हैं जबकि बाबा साहब ने कहा था, शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो। ये क्रम से है और पहला कार्य है शिक्षित होना। मेरे पिता ने पढ़ाई करी और दादा किसान-मजदूर थे। अगर पिता न पढ़ते, संघर्ष न करते, तो आज मैं भी कहीं गरीबी में जी रहा होता।
8. इसलिये दोस्त, ये बकवास बन्द करो। पाखण्ड हर वह कार्य है जिससे कोई लाभ न हो। बल्कि हानि हो सकती है। जैसे धन की हानि, समय की हानि, विचारों की हानि, सिद्धान्तों की हानि। धूपबत्ती, मोमबत्ती, तसवीर, फूल आदि पर धन खर्च होता है। इस सब का कोई वास्तविक लाभ आज तक ज्ञात नहीं हुआ है। इसलिए ये तो इनको बनाने वालों का सामान बिकवाने का जाल मात्र है। जैसे ब्राह्मण बिना किसी की मदद किये उससे पैसा ले लेते हैं उसी तरह ये बेकार का सामान बेचने वाले हमसे पैसा ले लेते हैं। जिस तरह हमको ब्राह्मण ठगते रहे, उसी तरह ये भी हमको ठग रहे हैं। किसी मूर्ख को ही ठगा जा सकता है। और अब मैं मूर्ख नहीं रहा। पहले मैं भी था। गलती सबसे होती है। लेकिन दोबारा करने वाला ही महामूर्ख होता है। अभी समय है, सम्भल जाओ।
मित्र: चुप भो*ड़ी के। साला बाबा साहब का अपमान करता है? तुझसे सवाल क्या किया, भाषण दे डाला। सुनते-सुनते कान पक गए। भक। तुझे नहीं करना तो मत कर। हमको रोक के दिखा साले। दोबारा नहीं पूछुंगा। बोल चलेगा?
मैं समझ गया कि ये महामूर्ख है। उधर से चला आया। समझ गया था कि इस मूर्ख से बात करना अपना समय बर्बाद करना है इसलिये ये वार्तालाप बुद्धिमानो के सामने लाना ही उचित समझा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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