आपके आसपास जो ज्यादातर लोग नास्तिक/कम्युनिस्ट का लेबल लिये घूमते हैं, वे राजनीतिक प्रचारक हैं। उनका प्रमुख कार्य नफ़रत फैला कर गृह युद्ध (दँगा) करवाना है। वे इंसानियत से दूर हैं। इसलिये धार्मिक लोग उनसे नफरत करते हैं। मुझे भी उनके धोखे में कोसा जाता रहा है। इसीलिए मुझे नास्तिक कहलाने में शर्म आनी लगी थी।
तब मैने खुद के लिये एक शब्द चुना, युक्तिवादी (rationalist). इसी नाम से ग्रुप बनाये और यही अपने प्रोफाइल में भी लिखा था। लोगों को यही समझाने भी लगा कि मैं राजनीतिक नहीं हूँ। मैं कुछ अलग तरह का नास्तिक हूँ। मैं प्रेम करने वाला नास्तिक हूँ। मुझे इंसान और जानवर दिखते हैं। धर्मजातिवर्ग नहीं।
इसी कड़ी में मेरी व्यक्ति पूजापाठ वाले, जयजयकारे वाले राजनीतिक, साम्यवादी, नकली भीमवादी नास्तिकों से मुठभेड़ हुई और सबसे दुश्मनी होती चली गई। कश्मीर जी ने धर्ममुक्त शब्द दिया था। जो युक्तिवादी से ज्यादा सरल था। उनकी भी ऐसे नकली नास्तिको से लड़ाई हो रखी थी।
हम दोनों मिले और बस उनकी मुहिम मेरी मुहिम बन गई। उनके दुश्मन मेरे और मेरे दुश्मन उनके हो गए। जब उनको अंधभक्त ग्रुप ब्लॉक करते तो मुझे भी कर देते। हम दोनों 1 और 1 मिल के 11 हो गए थे। इस दौर में एक विडंबना ये भी रही कि सलीम भाई भी हमारी तरह सोचते थे लेकिन वे हमारे साथ नहीं आये। फेसबुक पर हम 3 लोग ही ऐसे थे जिनका नाम ज्यादा लोग जानते थे।
सलीम भाई भी जानते थे इन अन्धज्ञानी अंधभक्त लोगों के बारे में। उन्होंने भी झेला है उनका विरोध। हमारे कई विचार मिलते थे लेकिन वे मुझ पर ज्यादा भरोसा नहीं करते थे/हैं। हालांकि वे मेरे साथ दोस्तों की तरह ही व्यवहार करते हैं और मैं भी उनको अपना मानता हूँ। वह मदद को हमेशा तैयार भी रहते हैं।
उस समय कश्मीर जी फंडिंग करते थे और हम लोग साथ देते थे। उन्होंने ही मुझे धर्ममुक्त.in डोमेन दिया था। एकदम मुफ्त। जो उनकी असमय मृत्यु से फंड न हो पाने से नष्ट हो गया। उनकी और मेरी मेहनत मिट गई। (अब मेरी वेबसाइट http://poisonoustruthlive.blogspot.com है)
समय के साथ कुछ आस्तिक भी हम दोनों से वादविवाद करने आये और धर्ममुक्त नास्तिक बन गए। महीनों मैसेंजर पर बहस होती रहती थी लेकिन फिर भी मैंने सबको जवाब दिए। आखिर में उन धार्मिक लोगों में इंसानियत जागी और वे कहने लगे कि तुम अलग हो। तुम उन जैसे नहीं हो। तुम आस्तिकों और नास्तिको, दोनो से अलग हो। बेहतर हो। कई बोले कि भाई मैं आस्तिक हूँ लेकिन मुझे आपको पढ़ना है। आप से बहुत कुछ सीखने को मिला है। पहले जैसा आस्तिक भी न रहा/रही। आप खास हो। कुछ तो अपमान करवा कर भी अड़े रहे। कहते कि नास्तिकों को जूतों पर रखता हूँ, तुम पहले हो जो अच्छे लगते हो। अलग हो उनसे। मैं बार बार अमित्र कर देता वो फिर गिड़गिड़ाने चले आते।
लगने लगा कि क्या मैं वाकई अलग हूँ? इसी दौरान संदीप सोम भाई जुड़े। बढ़िया लिखते थे। आम जीवन में कमाल के किस्से लाते थे। वे भी मुझे परखने लगे। उन्होंने बहुत बुराई सुनी थी मेरी उन नकली आस्तिकों और नास्तिकों से। वे मेरी हर पोस्ट की बारीकी से जांच करते। वे बहुत घनिष्ट होते गए। उन्होंने माना कि मेरे विचारों ने उनमें बड़ा परिवर्तन लाया। वो भी मेरी लड़ाई लड़ने लग गए। वे उन लोगों को मेंशन करते जो मुझसे नफरत करते थे। वे लोग फिर से नफरत दिखाते। अंत में उन्होंने माना कि मुझ पर घमण्ड का आरोप लगाने वाले वे लोग ही घमंडी थे।
हमारी घण्टों बातें होतीं। हम लोग एक दूसरे से सामाजिक और वैज्ञानिक मुद्दों पर बात करते थे। वे बहुत ज्यादा घनिष्ठ मित्र बन गए। हमने तय किया कि कभी असल जीवन में भी भेंट होगी। देहरादून आकर उनके विद्यालय में मिल सकता हूँ ऐसी बात हुई थी। लेकिन समय के साथ अचानक उनकी उपस्थिति गायब हो गई। वे लापता हो गए। साल भर होने को आया उनका कोई अता पता नहीं है। उन्होंने अपना फोन नंबर भी नहीं दिया था।
मेरे सम्पर्क में आकर वे vegan बने थे और बाकायदा लोगों को समझाने भी लगे थे। आज उनके बिना अकेला सा महसूस होता है। पहले कश्मीर जी से दस्तावेजी सहायता का अभाव हुआ और फिर संदीप जी की अनुपस्थिति से तार्किकता का। अवश्य ही संदीप जी के साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ है। लेकिन एक उम्मीद भी है कि शायद वे लौट आएं।
अभी फेसबुक पर फिर से अकेला महसूस होता है। अभी बीच में सुनील भाई भी लापता हुए थे तो घबराहट हुई थी कि कहीं ये भी तो नहीं चले गए छोड़ के? परन्तु अभी कल-परसो वो वापस आ गए। ये भी अच्छे मित्र हैं। बहुत भले मानस हैं। ये भी मेरे सम्पर्क में रहकर vegan बन गए थे और एक कदम मुझसे भी आगे चल कर raw vegan बने। काफी तार्किक हैं और मेरी मदद भी करने को तैयार रहते हैं। अच्छा लगा वापस पाकर।
Kaustubhrao मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं लेकिन बहुत ही तीव्र बुद्धि के स्वामी हैं। इन्होंने मुझसे ज्यादा किताबें पढ़ीं और कई भाषाओं को सीखा है। वे दक्षिण भारतीय है और उत्तर भारत में पैदा हुए मेरे जैसे परग्रही के लगभग डुप्लीकेट हैं। समान विचारों के चलते इनसे बहुत प्रभावित हुआ। कम उम्र में इतनी समझदारी वाकई आकर्षक थी। तो ये मिलते ही प्रिय हो गए। ये भी गायब हो जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। इनकी भी ज़रूरत है मुझे।
Sandeep भी उम्र में छोटे हैं और साधारण ग्रामीण परिवार से हैं। एक बार उनकी बड़ी बहन ने मेरे मित्र को एक कागज का फोटो भेजा। उस पर नामों की एक लिस्ट थी। हेडिंग थी, मेरे सबसे पसंदीदा लोग। सबसे पहले मेरा पूरा नाम लिखा हुआ था। देख कर दिल भर आया। उस समय संदीप भी मुसीबत में था उसका फोन उसके पास नहीं रहता था। वह बात नहीं कर पा रहा था। फिर भी हम लोग उसका इंतजार करते हैं।
हम लोग? जी हाँ, हम लोग। हम लोग हैं, संजय वर्मा, कुमार आकाश और मैं। हमारा एक चैट समूह है मैसेंजर पर। शुरू में हमने कई लोगों को आमंत्रित किया था इस समूह में लेकिन सिर्फ ये लोग ही एक्टिव रहते थे। इसलिये आज भी साथ हैं। सजंय जैसा इंसान भी कहीं न मिला। ये भी अनोखे हैं। ईमानदार, समझदार और तार्किक। इनके भी विचार मिलते चले गए। ये हमारे विचारों को प्रक्टिकल करके साबित कर देते हैं। चिकित्सा जगत से जुड़े हैं और मेरे सभी दावों को सत्यापित करते रहते हैं। ये भी बहुत अच्छे इंसान लगे मुझे।
आकाश भाई बहुत प्रेम करते हैं मेरे विचारों से। जब ये मुंबई में रहते थे तो केवल हमसे मिलने के लिये रातदिन का सफर करके बरेली आने को तैयार थे। इनको भी मेरे बहुत से आलोचकों ने संपर्क किया था। वे उनके शकों का भी समाधान करते रहे। फिर भी वे न माने तो उन्होंने उनको भी कड़ा जवाब दिया कि वे ही गलत हैं। मुझे काफी परखने के बाद ही जुड़े हुये हैं।
Shiv Kant जी एक आध्यत्मिक व्यक्ति हैं। मेरे आध्यात्म पर मतभेदों के बावजूद वे मुझसे स्नेह रखते हैं। मुझको सलाह देते हैं और मेरे विचारों को समर्थन देते हैं। उनके अच्छे पोस्ट मैं शेयर करता रहता हूँ।
कुछ और भी लोग हैं जिनके नाम मैं अभी भूल रहा हूँ तो वे कृपया अपने बारे में मेरा मत जानने हेतु मेरे बारे में अपने मत के साथ याद दिलाने की कृपा करें। मैं उनको भी इस लेख में शामिल कर लूंगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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