शिक्षित अमीर के यहाँ पति-पत्नी दोनो कमाते हैं। अधिकतम खर्च, स्वास्थ्य पर। ज्यादातर दुर्व्यसन (तंम्बाकू/शराब/नशा) से दूर। नशा करने वाले भी ब्रांडेड, कम खतरे वाले नशे करते हैं। बच्चे 1-2 पैदा करते हैं। निजी खर्च वाले महंगे विद्यालयों में पढ़ाते हैं। गरीबों को अपने से उल्टे काम करते देख कर चिढ़ते हैं।
गरीब के यहाँ कमाने वाला केवल 1, समस्त दुर्व्यसन युक्त नशेड़ी आदमी। अधिकतम ख़र्च घटिया गुणवत्ता के दुर्व्यसन पर। 5-8 बच्चे पैदा करते हैं। 10% सरकारी चुंगी विद्यालय में मुफ्त में पढ़ाते हैं। बाकी के 90% उनको खड़ा होते ही, सीधे बाल मजदूरी पर लगा देते हैं। लड़का बाहर, लड़की भीतर। अमीरों के स्वास्थ्य पर हुए भारी खर्चे पर हंसते हैं। अमीरों को फालतू खर्च करने वाला समझ कर चिढ़ते हैं जबकि खुद पर दुर्व्यसन का खर्च फालतू ही करते हैं।
दोनो को बच्चा पैदा करने से पहले ही अपनी औकात पता होती है। सोचो, गरीबी को बनाया गया है। वह है नहीं। अमीर और गरीब इंसान को उसका नज़रिया बनाता है। मांगने के लिए, दूसरों के पैरों में गिरने वाले, कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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