Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
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गुरुवार, मई 07, 2020

My B.Ed. From Jugal kishor college of Gawan



संविधान अमीर - गरीब के लिये विभाजित नहीं है। सब नागरिक समान अवसर और हक रखते हैं। सबके कर्तव्य भी एक समान हैं। जो शोषित हैं, उनको आरक्षण बराबरी पर लाने हेतु दिया गया है न कि अलग दिखाने के लिए। शोषक सोच वालों के मुहं पर तमाचा है आरक्षण।

आरक्षण प्रतिनिधित्व पर केंद्रित था और 90% है भी। जो 10% जाति पर आधारित है, वह खत्म होने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता बहुजन समाज से ही हैं और सम्पन्न बहुजनों के भी आरक्षण से लाभ उठाने पर आपत्ति जताते हैं। ज़ाहिर है कि जो जन सामान्य की बराबरी पर आ गए, उनको आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिये।

धन आधारित लाभ केवल गरीब को मिलना है। जहाँ भी धन का लाभ आय प्रमाण पत्र देखे बिना मिल रहा है उनका लाभ बन्द होना चाहिए। प्रतिनिधित्व आधारित लाभ की ज़रूरत धन की व्यवस्था के बाद पड़ती है। इसलिये धन उपलब्ध करवा दिया जाता है। परंतु यदि हम बिना आय प्रमाण पत्र के कोई आर्थिक सहायता पा रहे तो नियमों में कुछ गड़बड़ी है।

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि मैं 2012 में बीएड करने के लिये गंवा (बबराला के पास, उत्तर प्रदेश) गया था। मैंने पहली बार अपना जातिआय प्रमाण पत्र इस्तेमाल करने की सोची। फॉर्म में लिखा था कि शोषित वर्ग को 0 फीस देनी है। मैं जाति प्रमाण पत्र और 6 माह से ज्यादा पुराना आय प्रमाण पत्र ले गया। कारण था कि आय प्रमाण पत्र का कोई जिक्र फॉर्म में नहीं था। अन्यथा नया बनवा लेता।

काउंसलिंग के दौरान पता चला कि 6 माह के अंदर बना आय प्रमाण पत्र साथ में लाना है। उन्हीं की फीस माफ होगी। कुछ अन्य लोग भी नहीं लाये थे। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होने के बाद ड्राफ्ट जमा करना था। जिनका आय प्रमाण पत्र 4 लाख तक का था उनको 0 फीस भरने की स्लिप मिली। मेरा पुराना आय प्रमाण पत्र 85000₹/वार्षिक का था फिर भी मुझे 56000 रुपये भरने पड़ गए।

इस तरह यह तो साबित हुआ कि केवल जाति प्रमाण पत्र से रेंक में लाभ मिल सकता है (मेरी रेंक सामान्य वर्ग में आई थी) लेकिन आर्थिक लाभ के लिये जाति प्रमाणपत्र के साथ, निश्चित धनराशि का आय प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। क्या यह सब जगह है? मुझे पता नहीं। मैंने पहली बार इनको प्रयोग किया था।

घर से 200 km दूर रोज़ आना जाना सम्भव नहीं था। कोई साधन नहीं था जो सीधे उधर पहुँचा सके। मैंने किराये पर कमरा देखा तो पता चला हगने के लिये खेत में जाऊं। किसी अनजान के खेत में हगते हुए कोई पीट सकता था। इसलिये लेट्रिन-पानी वाला रूम पूछा। पता चला कि वह कॉलेज से काफी दूर पर 2000 रु महीना वाला है। ये सब देख सुन के मेरी फट चुकी थी, अतः मैं हताश हो गया। पहले ही कॉलेज घुसते हुए ही 500₹ रिश्वत ले चुका, फिर फॉर्म भरने के समय 20000₹ मांगने लगा तो मैंने कहा, "गांव मराओ झोपड़ी वालों।" और वापस घर आ गया।

एक दिन फोन आया, "क्या आपने बीएड छोड़ दिया है?" मैंने कहा, "हाँ, तुम लोगों का पेट कभी भरता नहीं और मुझको तुम्हारे कॉलेज में पैसा भी फ्री में बांटो तो भी नहीं रहना। दिन में भी मक्खी जैसे मच्छर काटते हैं, रहने-खाने और आने जाने की व्यवस्था नहीं और होस्टल बन्द करके रखते हो। रख लो मेरी फीस (जिसमें से मुझे कोई भी सामान, सुविधा नहीं दी गयी)। मैं उधर पूरे 60000₹ बर्बाद करके चला आया था। बरेली कॉलेज से सुदूर स्थित गांव जाना प्रमोशन नहीं, डिमोशन था। दोबारा बीएड न करने की शपथ ली और चला आया। (लग गए लोढ़े 😢) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

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