Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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गुरुवार, अप्रैल 30, 2020

Human Rights, Religion, Law and Incest




बाबा आदम की पसली से हव्वा/ईव बनी थी तो वह अपने पिता आदम की पुत्री हुई। दोनो का DNA एक ही हुआ। फिर इनके भी 3 पुत्र हुए। उन्होंने अपनी माँ से ही और पुत्र पैदा किये होंगे, क्योंकि लड़की कोई और थी ही नहीं। अब इस तरह से मानव बने, मानने वाले लोगों को रिश्तों में विवाह, सेक्स गलत लगता है तो वह धार्मिक नहीं हैं।

रही बात ब्रह्मा की तो ये बात उस पर भी इतनी ही सत्य है। उसने भी अपने शरीर से ही सबको पैदा किया तो DNA समान हुआ, यानी सब स्त्री-पुरुष-जंन्तु आपस में खून के रिश्तेदार हुए। अब सनातनी हिन्दू रिश्तों में सेक्स/विवाह का समर्थक नहीं है तो, वह भी धार्मिक नहीं है।

हम जानवरों से सीख सकते हैं कि प्रकृति क्या थी और क्या हम बन गए हैं। प्रकृति भी रिश्ते नहीं मानती थी और पुराने समय में मानव धर्म में भी प्रकृति के नियम मानता था। अब जाकर कुछ सौ वर्षों से पैसा, दहेज, दूसरे घर का अपमान करने के इरादे से विवाह खून के रिश्तों में करना बंद कर दिया गया है। सेक्स का मतलब विवाह ही होता है धार्मिकों की नज़रों में क्योंकि उनको गर्भनिरोधक का पता नहीं था। इसलिये उस पर भी सामाजिक रोक लगा रखी है।

अब आते हैं विज्ञान पर। कुछ शाही परिवारों के वंश का अध्धय्यन करके निष्कर्ष निकाला गया कि खून के रिश्तों में बच्चा पैदा होने पर उसमें कुछ विकृतियों का जन्म होता है। जबकि वास्तविक जीवन में बहुत से ऐसे केस हैं जहाँ खून के रिश्तों से सन्तान पैदा हुई और स्वस्थ है। जबकि दूसरी तरफ ऐसे हजारों केस हैं, जहां रिश्ते से इतर सेक्स से हुए बच्चों में भयानक विकृतियों का प्रभाव था। अतः इस स्टडी को मान्य नहीं माना जा सकता। अगर माना जाता है तो ये सिद्धांत जीवन की शुरुआत में मानवों के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़े कर देता है।

अब बात कानून की। कानून विवाह को धर्म का उत्पाद मानता है और कोर्ट मैरिज में धर्म पूछा जाता है। मनुस्मृति पर आधारित विवाह मॉडल भारतीय हिन्दू मैरिज एक्ट में अपनाया गया है। यही मॉडल स्पेशल मैरिज एक्ट में भी हिन्दू धर्म से जुड़े मानव पर लागू किया जाता है। यानि हिन्दू होकर के आप हिन्दू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट में एक विशेष रिश्तों की लिस्ट के अनुसार आपस में रिश्तेदार नहीं हैं तभी विवाह मान्य होगा। ऐसा अन्य धर्मों में नहीं है। कानून के हिसाब से भारत में जन्में सभी धर्म हिन्दू हैं। केवल बाहर उत्तपन्न हुए धर्मों को ही इस नियम से अलग रखा गया है। अर्थात कोई इसाई, मुस्लिम अपनी सगी-मां-बहन-पिता-पुत्र-पुत्री आदि से विवाह करने के लिये स्वतंत्र है।

अब आते हैं कानूनी अधिकार पर। भारतीय संविधान और वैश्विक मूल अधिकारों के अनुसार कोई भी मानव किसी भी वयस्क विपरीत या समान लिंग (जेंडर) के व्यक्ति के साथ सहमति से रह सकता है, सम्भोग कर सकता है और चाहे तो बच्चे भी पैदा कर सकता है। इनमें इंसानो से रिश्ते जैसा कोई भेदभाव नहीं किया गया है। यदि कोई रोकटोक करता है तो 2 या दो से अधिक सेक्स पार्टनर उसके खिलाफ पुलिस में मानसिक और शारिरिक प्रताड़ना का केस दर्ज करवा का उनको जेल पहुँचा सकते हैं। कानून कोई भेदभाव नहीं करता है अतः इन विरोधियों में शामिल आपके रिश्तेदार भी जेल भेजे जा सकते हैं।

नोट: ये पोस्ट केवल 18 वर्ष से अधिक के लोगों पर ही लागू होती है। सेक्स का मतलब सहमति से मैथुन है। सहमति का मतलब स्वेच्छा से दी गई सहमति है। बलपूर्वक या मजबूर करके ली गई सहमति बलात्कार मानी जायेगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Pedophilia: A strange Crime




पीडोफिलिया एक ऐसा विकृत सेक्सुअल ओरिएंटेंशन है जो कि कानून में आपराधिक रूप से दर्ज है। इसके बारे में विडंबना ये है कि इसमें इससे पीड़ित रोगी की कोई गलती नहीं होती है।

वह अपनी विकृति/प्रकृति के चलते बच्चों से संभोग के प्रयास करते हैं। फिर भी उनको सज़ा दी जाती है, क्योंकि वे इस प्रयास में बच्चों के साथ बलात्कार करते हैं या सहमति से भी सम्भोग करते हैं तो भी वो अव्यस्कता के चलते, बलात्कार में दर्ज किया जाता है।

इस सज़ा का तर्क ये है कि ज्यादातर मामले में ऐसे प्रयास वयस्क द्वारा अवयस्क के साथ ही होते हैं और वयस्क के यौनांग अवयस्क के यौनांग को अपने बेमेल आकार के कारण घायल कर देते हैं जिससे अधिक रक्त बहने/संक्रमण के कारण मृत्यु होने का बहुत अधिक खतरा रहता है। साथ ही मानसिक आघात भी लगता है अगर बलात्कार हुआ हो तो। इस कारण कोई गलती जानबूझकर न करने पर भी वे अपराधी बनते हैं।

ऐसे लोगों को चाइल्ड पोर्न देखने का बहुत शौक होता है। नहीं मिलने पर ये किसी न किसी बच्चे को अपना शिकार बनाते हैं। चाईल्ड पोर्न को न सिर्फ बनाना अपराध है बल्कि इसे देखना, रखना भी अपराध है। कारण वही है, अवयस्क का बलात्कार और उसकी जान को खतरा।

चाइल्ड पोर्न के डर से ही भारत में सभी पोर्न साइट पर रोक लगाई गई। हालांकि कोई वेबसाइट चाइल्ड पोर्न नही परोसती है क्योंकि ऐसा करना अपराध है। फिर भी इंटरनेट कम्पनियों ने किसी प्रकार के लाइसेंस जाने के खतरे से बचने हेतु सभी पर रोक लगा दी है। परन्तु व्यक्ति से व्यक्ति तक कोई भी ऐसा पोर्न बना कर भेज सकता है। अतः व्हाट्सएप और टेलीग्राम आदि मैसेंजर द्वारा पीडोफाइल लोग ऐसे वीडियो भेज सकते हैं। ये वीडियो लोग खुद अपराध करके बनाते हैं और अपने जैसे लोगों को देकर खुद के लिए सपोर्ट पाते हैं या बदले में नए विडियो पाते हैं।

यहाँ ये बता दें कि, बच्चे जब बच्चों से सेक्स करते दिखते हैं तो यह घातक नहीं होता, क्योंकि उनसे कोई नुकसान नहीं प्रतीत होता है और न ही अंग घायल होते है। जबकि कोई वयस्क पुरुष (18 साल से अधिक) या किशोर (15 साल से अधिक) किसी बच्चे (12 साल से कम) के साथ सम्भोग प्राकृतिक या अप्राकृतिक मैथुन करता दिखता है तो यह अपराध होगा।

हांलाकि यदि दोनो को आनन्द आ रहा है तो यह नैतिक रूप से बलात्कार नहीं होगा परन्तु सैद्धांतिक रूप से ये सब चाइल्ड पोर्न और बलात्कार में ही आता है और यही मान्य होगा। ये कुछ कानूनी अन्यायपूर्ण कदम हैं, परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से यही उचित है। अपवादों को बस राहत माना जा सकता है परंतु इनके चलते सबको अपराध करने की छूट नहीं दी जा सकती।

वयस्को का ऐसा पोर्न जो कोई नुकसानदेह कार्य पर आधारित न हो तो वह उचित है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता। विदेश में FBI इसकी अनुमति देती है। भारत में भी पोर्न देखने पर कोई रोक नहीं है। सभी वेबसाइट कानून के अनुसार ही पोर्न परोसती हैं। यदि कभी कोई वीडियो आपको गलत दिखे तो उसकी रिपोर्ट उसी वीडियो में बने लिंक पर कर सकते हैं। इससे विडियो की पुनः जांच होती है और गलत पाए जाने पर हटा दिया जाता है। इससे जुड़ा कोई प्रश्न हो तो पूछ सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

स्रोत: पकड़े गए अपराधियो के बयान, भुक्तभोगी के बयान, कानून, समाचार, मनोविज्ञान, कॉमन सेंस और व्यक्तिगत विचार।

मंगलवार, अप्रैल 21, 2020

Only Journalists are responsible for Journalism




लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है पत्रकारिता। बिके जो उसको पीत पत्रकारिता कहते हैं। असली पत्रकारिता में ज़्यादा कमाई नहीं होती बल्कि ख़तरा और ईमानदारी होती है। ये भोले लोगों और मूर्खों के लिये नहीं है। शुरू में केवल दूरदर्शन और AIR ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया था। अखबारों से ही अधिक खबरें प्रचलित होती थीं।

अब वह दौर गया। केबल TV आया और फिर आने शुरु हुए मीडिया वाले संघर्षकर्ता। इन संघर्षकर्ताओं में कुछ ईमानदारी से आगे बढ़े और कुछ पीत पत्रकारिता की चकाचौंध में उलझ कर मारे गए। पीत पत्रकारिता का अंत हमेशा अच्छा नहीं होता।

पत्रकारिता को आप ज्यादा समय तक बेच नहीं सकते। यह एक प्रतियोगिता का क्षेत्र है। आप जिस खबर को पैसा खाकर बेच रहे हैं वो खबर कोई और पत्रकार वैसे का वैसा ही दिखा देगा। पैसे सबको, सबसे तो नहीं मिल सकते न? कोई न कोई तो रह ही जाएगा। इसीलिए पत्रकारिता कानून बने जो पत्रकारिता को गलत दिशा में जाने से रोकते हैं। आज पीत पत्रकारिता एक भयानक रिस्की कार्य है। जो भी कर रहा है, वह मूर्ख है, लालची है या मजबूर है।

खबर बनाई और बेची जाती है ऐसा हम 'रण' फ़िल्म में देख चुके हैं लेकिन उसका हश्र भी आत्महत्या से ही हुआ। तिहाड़ जेल में बन्द लोग और बाकी जेलों में बन्द लोग, पत्रकार, नेता, कानून के दलाल, आम आदमी सबको देखा जा सकता है।

सत्य सामने आता है। कभी देर से तो कभी जल्दी। देर से आने के पीछे हम लोग ही जिम्मेदार हैं। हम ही व्यवस्था और व्यवहार हैं। हम में से अधिकतर लोग राज़ दबा जाते हैं। अपने ऊपर हुए जुल्मों को छुपा जाते हैं। यही अपराधियों के स्वामिभक्त लोग हैं। जो उनके लिए काम करते हों या नहीं, फर्क नहीं पड़ता है। जुल्म सहना, जुल्म करने वाले की स्वामिभक्ति है, आपको जुल्म पसन्द है, इसकी सहमति है। सहमति से कुछ भी करना, पुण्य (अच्छा कार्य) है, पाप (बुरा कार्य) नहीं है।

परिवार हमको भ्रष्ट बनाता है। परिवार डर पैदा करता है। परिवार ताकत भी बन सकता है लेकिन उसकी परिस्थिति अलग होती हैं। जब परिवार में कमज़ोर और मूर्ख प्रकार के लोग हों तो परिवार ईमानदारी के लिये खतरा है। हमारा समाज विवाह करवा कर लोगों को डरना सिखा देता है।

अकेले लोग ज्यादा आज़ाद ख्याल, बहादुर और ईमानदार होते हैं। जैसे-जैसे हम अपनी जड़ों से ईमानदारी को निकाल कर फेंकते हैं हमारे समाज की जड़ों में भी दीमक लगने लगती है। हम ही सरकार, पत्रकारिता, व्यवस्था, राजनीति और व्यवहार का हिस्सा बनते हैं। हम ही सरकार हैं, ये अटल सत्य है। चाहें वोट दें या न दें। हम सब भारत के नागरिक रहेंगे। चाहें देश का भला न चाहें तो भी और चाहें तो भी।

प्रतियोगिता के युग में एक दूसरे से ज्यादा बेहतर और अच्छी/सच्ची खबर लाना आज पत्रकारिता की मजबूरी बन गया है। बनाई हुई खबरें अब टिकती नहीं हैं। ज़मीनी स्तर पर भी कागजी पत्रकारों का बड़ा समूह है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के परखच्चे उड़ा सकता है। अतः पत्रकारिता को पूरी तरह से बर्बाद नहीं किया जा सकता। थोड़ा सा धैर्य और विवेक चाहिए बस। सत्य आपके सामने जल्द आएगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020© (पूर्व पत्रकार, स्वतंत्र चेतना, लखनऊ, बरेली शाखा)

A good person does not tolerate oppression



मैं मुंहफट हूँ, बिंदास हूँ। बात सिद्धान्तों की हो, तो बेशर्म भी हूँ। इसलिये मुझमें, आरती उतारने टाइप की नम्रता नहीं है। कोई अगर मेरी सच्ची बातों से, आहत होता है तो होने देता हूँ लेकिन अगर मेरी व्यक्तिगत टिप्पणी या किसी फूहड़ शब्द से आहत होता है तो मैं मनन करके, अगले का दुख महसूस करता हूँ और क्षमा मांग कर, खुद में कुछ और बदलाव ले आता हूँ।

जो गलत होकर भी, सम्मान के प्रति घमंडी हो तो उससे भी रिश्ता मधुर करके, दोबारा पंगा न हो, (चूंकि विचार हिंसक हैं, अगले के तो पंगा होना तय है) इसलिये, उससे सम्पर्क खत्म कर देता हूँ। ताकि शान्ति भी बनी रहे और मैं कुछ रचनात्मक कार्य भी कर सकूं।

जो मुझे समझते हैं, उनको मुझे प्रेम से, कोई ऐसी बात, जो वाकई, मेरे लिए हानिकारक है, जिसे सिद्ध किया जा सकता है, तो समझा सकते हैं और अगर मैं उसे बेकार समझता हूँ, (आपकी समझ की कमी से वह गलत है) तो मुझे वैसे ही स्वीकार कीजिये, या लात मार के चले जाइये।

मैं कोई सवाल नहीं करूंगा। 😍 ये पोस्ट, एक मुस्कान के साथ लिखी गई है। मुस्कान के साथ पढ़ी जाएगी, ऐसी मैं आशा करता हूँ, लेकिन आपकी मर्जी है। जैसे चाहे वैसे पढ़िये। आपकी आज़ादी सर्वप्रथम है। (व्यक्तित्व से जुड़ी पोस्ट/विचार) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Meat, Eggs and Dairy Products are Necessary for human?



नीचे दिए गए गद्यांश को मीट इंडस्ट्री के फैलाये गए झूठ और भ्रमित तथ्यों के आधार पर डर कर लिखा गया है।
नीचे दिए हैशटैग में जो लिखा है उससे पता चलता है कि यह पाकिस्तान की किसी वेबसाइट से आया है। जो कि एक मांसाहारी देश है। आइए इसे एक बार पढ़ते हैं और फिर चर्चा करते हैं:

"इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दाल-चावल और सब्जियां जंतु प्रोटीन का विकल्प नहीं हो सकतीं। जानवरों के मांस में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। शरीर के लिए जंतु प्रोटीन भी उतना ही जरूरी है, जितना कि दूसरे पोषक तत्व। निर्धनों के लिए तो प्रोटीन का सबसे सस्ता जरिया ही जानवरों का मांस है। अगर सारी दुनिया शाकाहारी हो जाएगी तो सबसे बड़ा संकट विकासशील देशों के लिए हो जाएगा। थोड़ा-थोड़ा मांस, मछली और दूध यहां की अपेक्षाकृत गरीब आबादी को कुपोषण से बचाए रखता है। मांस छोड़कर दूध अपनाने की बात है तो मांस एवं दूध दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। दोनों ही पशुओं से आते हैं।

जाहिर है, ऐसे में रास्ता संतुलन से ही निकलेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मांसाहार कम करना और ऐसे मांस पर जोर देना जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिहाज से कम नुकसानदेह हों। रुमिनेंट (जुगाली करने वाले पशु) के मांस की तुलना में सुअर, मुर्गे और मछली उसी श्रेणी में आते हैं जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के नजरिए से कम नुकसानदेह माने जा सकते हैं। हालांकि संतुलन शब्द की कोई एक व्याख्या नहीं की जा सकती, लेकिन इससे जुड़ी तमाम जटिलताओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि संतुलन और सादगी को जीवन का मूल मंत्र बनाकर चलें तो हम न केवल इस दुनिया को, इसके तमाम जीव जंतुओं को बेहतर माहौल दे सकते हैं बल्कि अपनी राह को भी बहुत सारे खतरों से बचा सकते हैं।" #pkonnet

हाँ तो आपने पढ़ा,

1. जंतु प्रोटीन के बारे में।
2. गरीबों के लिये माँस ही सहारा।
3. मांस छोड़ो तो दूध ज़रूर पीने की बात।

1. प्रश्न: जंतु प्रोटीन आता कहाँ से है?
उत्तर: वनस्पति प्रोटीन को खाने से बनता है। वनस्पति प्रोटीन के सर्वसुलभ स्रोत क्या हैं? मूंगफली, दालें। अर्थात जंतुजनित प्रोटीन का समर्थन एक झूठ है। हम खुद बना सकते हैं इसे शरीर में।

2. प्रश्न: क्या गरीबों के लिए मांस सस्ता है?
उत्तर: माँस सबसे महंगा भोजन है। क्योंकि इसे पालने, पकड़ने, काटने, संरक्षण करने में सबसे ज्यादा खर्च होता है।

वनस्पतियों को पानी-खाद या तो स्वतः मिल जाती है या एक बार देकर बहुत समय तक बिना देख भाल के रखा जा सकता है।

वनस्पतियों की कटाई सस्ती मशीनों से की जा रही है जिसमें मानव श्रम कम होता जा रहा है लेकिन अभी भी बूचड़खाने बिना कम मानव श्रम के नहीं चल रहे। उनको भी वेतन देना पड़ता है। बाकी व्यवस्था, साफसफाई में खर्च अलग। लाइसेंस, सीमाशुल्क, कोल्डस्टोरेज आदि से बहुत ही ज्यादा महंगा भोजन बन जाता है मांस।

अगर मान लो कि ये गरीब आदिवासी हैं और कुछ भी नहीं करते। केवल जंगल से कुदरती पशु पक्षी मार के खाते हैं, कुदरती पोखर, तालाब से मुफ्त का भोजन मछलियों को मार के प्राप्त करते हैं तो बताइये उनकी जनसंख्या कितनी है? 1% भी तो नहीं। उनको सदियों से कोई समस्या बाकी की 99% को नहीं बता मिली तो फिर हमको उनकी फिक्र ही क्यों है? वो पशुपालन नहीं करते। वे खेती भी नहीं करते, तो सही है। जैसे चल रहे चलने दो।

3. प्रश्न: मांस छोड़ कर दूध पी सकते हैं क्या?
उत्तर: दूध माँस का रिप्लेसमेंट है, ये खुद कह रहे हैं। यानि भारतीय व पाकिस्तानी शाकाहारी खुद को मांस का विकल्प दे रहे हैं। तरल मांस। दूध पशु से छीनते हैं। उसके बच्चे के लिए बना दूध। जब जानवर के दूध देने की क्षमता खत्म हो जाती है तो उसे खाया जाता है। ये उसी माँस को खाने की बात कर रहे हैं जो कि दूध व्यापार का सह उत्पाद है।

हमें पशु दूध की ज़रूरत कैसे पड़ सकती है? जब हम खुद स्तनधारी हैं? क्या हमारी प्रजाति की माएँ दूध नहीं देतीं? देती हैं तो मानव को जानवरों के हिस्से का छीनने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? मतलब साफ है कि दूध हमारी ज़रूरत तो कतई नहीं है। केवल डर है ईश्वर के जैसा। कि सारी जिंदगी दूध नहीं पिया तो मर जायेंगे। खुद की अक्ल न प्रयोग करने से ऐसा होता है। जो ईश्वर/धर्म को बिना जाने मानते हैं उनको कुछ भी ज्यादा लोग कहें सत्य लगेगा ही। आश्चर्य नहीं है। क्या जानवर सारी जिंदगी दूध पीता है? नहीं न? फिर सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव को तुच्छ जानवरों की क्या ज़रूरत पड़ गई? है न मक्कारी?

मैंने 20 साल से दूध और उससे बनी कोई वस्तु न खाई, न लगाई। मुझे कोई आहार सम्बंधित बीमारी नहीं है। इम्युनिटी मजबूत है और बुद्धि भी तेज है। यानि B12 भी हमारे मुहं में अपने आप बनता है बैक्टीरिया से। जानवर पहले बैक्टीरिया खाये फिर हम उसे खाएं या उस के बच्चे के लिए बना दूध निचोड़े उससे बेहतर होगा कि खुद बनाएं अपने ही मुहँ में। तो फिर न तो संतुलन की ज़रूरत है और न ही जानवरों के मामले में दखल देने की।

आज ही vegan बनने की दिशा में अध्धयन कीजिये। vegan लिख कर सर्च कीजिये। हिंदी में लिखिये "वीगन" और "निरवैद्य" भी सर्च कर सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, अप्रैल 20, 2020

Be selfdepand and you will get love money and fame



दोस्तों, अगर आप अभी आत्मनिर्भर नहीं हैं तो कृपया किसी के प्यार में मत पड़िए। जैसे ही लगे मामला बढ़ रहा है रुक जाइये। सेक्स के लालच में मिलेगा ठेंगा, बेइज़्जती और आंसू। मर भी सकते हो।

जबकि आत्मनिर्भर होने के पीछे भागो तो प्यार चल के आएगा आपके पास। हर कोई अपने पैरों पर खड़ा इंसान देखना चाहता है। उसी पर भरोसा करता है और उसी की इज़्ज़त भी करता है। ज़रूरी नहीं है कि आत्मनिर्भर होने के लिये आपको करोड़ो कमाने हैं।

आपको सिर्फ अपने भर का करना है और दूसरे को भी अपने जैसा बनने की प्रेरणा देनी है। बस हो गया 50-50। दोनो मस्त। तब चाहें आपके घरवाले आपको लात मार दें या अगले के, दुनिया रख लो लोढ़े पर। 🤗 (चटनी वाले) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, अप्रैल 19, 2020

Religious people treats girls as a Sex Doll



जो भी दो वयस्क लोगों को अपनी खुशी से सेक्स से रोके, वह व्यक्ति तानाशाही प्रवर्ति का है उसको पुलिस में दे सकते हैं।

रिश्ते नाते धर्म की देन हैं जो उनको मानता है वह धर्ममुक्त इंसान नहीं हो सकता। धार्मिक इंसान अवश्य हो सकता है।

विवाह धर्म की देन है और रिश्ते विवाह के बाद बनने शुरू होते हैं। यानी वह भी धर्म की देन हुए। विवाह निकाल दो तो कोई रिश्ता नहीं बनता। फिर सब आज़ाद हैं प्रेम और सम्भोग करने के लिये।

बाकी किसी को किसी के सहमति पूर्वक सेक्स करने से क्या खुजली है? पता नहीं। कोई भी सेक्स छुप कर ही करता होगा, तो क्या पता कौन किसके साथ कर रहा है? मेरा तो मानना है जो इस तरह के सेक्स का विरोध करता है, वही वास्तव में अपनी माँ-बहन-बेटी-बहू-नाती से बलात्कार करता होगा। तभी उसका राज़ किसी को पता न चल जाये इसलिये विरोध करता है। इसे कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका।

कट्टर धार्मिक भी incest करते हैं। बस वो प्रायः बलात्कारी होते हैं। जबकि जानवर और नास्तिक/धर्ममुक्त सोच के लोग सहमति और प्रेम से incest कर सकते हैं।

बलात्कार दूसरों का करने में लड़की और उसके परिवार का अपमान होता है क्योकि 'विवाह नहीं होगा अब' ऐसा सोच कर जबकि गलती लड़की की नहीं होती बलात्कार में। फिर भी उसे गन्दा और अयोग्य माना जाता है किसी और का वंश चलाने के लिए।

इसलिये ये लोग खुलेआम नहीं स्वीकार करते कि अपनी मां, बहन, बेटी और बहू का बलात्कार किया है इन्होंने।

जो लोग अनजान नर-मादा का विवाह करके कमरे में लड़की को बिना सेक्स का ज्ञान (खुद ही नहीं होता) दिए बन्द कर देते हैं। उसका बलात्कार लगभग खुले आम (लड़के के परिवार के समीप) होता है।

लड़की की चीखों से पता चल जाता है और सारा परिवार चुपचाप सुनता है। उसका समर्थन करने वाले लोग सहमति शब्द का मतलब ही नहीं जानते। इसलिये वे बलात्कार को ही सेक्स समझते हैं, जो बाहर वाली मादा के साथ हो तो अगले का अपमान होगा और अपने घर की मादा हो तो अपना।

लेकिन खुद की आदिम instinct पर कंट्रोल न होने के कारण वे सहमति पूर्वक सेक्स की जगह धर्म में मना होने के कारण मादा द्वारा सहमति न मिलने पर बलात्कार करते हैं और किसी को पता नहीं चलने देते क्योंकि तब उनके धर्म का और परिवार का उनकी बिरादरी में अपमान होगा। उसका भी कारण उनकी लड़कियों का विवाह है जिसे करके हर धार्मिक उन्हें ठिकाने लगा देना चाहता है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Trust is the product of Verification



सर्वप्रथम वस्तु या बात पर अंधविश्वास होता है। वेरिफिकेशन के बाद विश्वास होता है। जिस वस्तु या बात का वेरिफिकेशन या पुष्टि हो जाती है वह वस्तु या बात सत्य साबित हो जाती है। कुल मिला कर सत्य पर ही विश्वास होता है। इस पुष्ट विश्वास के आधार पर हम अब सत्य वस्तु या बात को और लोगों को दे सकते हैं बिना किसी गलती के।

पुष्टि/verification अंधविश्वास को अंततः आंखें दे देता है। जिससे देख कर अब सत्य/असत्य का पता लगाया जा सकता है। यह घटना विश्वास कहलाती है जो कि पुष्ट है। अब हम पुष्टि करी हुई बात पर बिना दोबारा पुष्टि किये विश्वास कर सकते हैं जबतक पहले वाले विषयवस्तु में कोई अन्य बदलाव नहीं आते। ~ Shubhanshu Dharmamukt

किसी प्रतिष्ठित संस्था/पत्रकारिता/व्यक्ति पर विश्वास करने का कारण-

हम जो व्यक्ति अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ कहता है तो उस को ज़िम्मेदार व्यक्ति मानते हैं। उस पर विश्वास इस आधार पर किया जाता है कि इसका वेरिफिकेशन होने पर और गलत निकलने पर अगले को जेल भेजा जा सकता है। इसीलिए फेक न्यूज देना अपराध घोषित है। एक बात इसके लिये प्रचलित है वह है, "मरते समय इंसान कभी झूठ नहीं बोलता।" ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, अप्रैल 18, 2020

Ungratefulness is destroying Good People




यदि कोई आपकी बिना कुछ मांगे मदद कर दे तो आपको बिना उस मदद का मूल्य चुकाए अगली मदद नहीं मांगनी चाहिए। अगला आपका गुलाम नहीं है जिसे बेगारी पर आपने नौकर रखा है। उसका भी जीवन है। उसका भी समय कीमती है। उसको भी अपनो को समय देना है। उसे भी अपना भोजन और राशन जुटाना है। सिर्फ आपके लिए ही नहीं बैठा है अगला। कुछ खोकर, कुछ पाना सीखिये। अन्यथा आप अपने मददगार को ही खो दोगे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Types of Oppositions on Social Media



विरोधियों के प्रकार

1. केवल पार्टी विशेष के विरोधी। हतोत्साहित टर्राने वाले मेढ़क; अपनी पसन्द की पार्टी सत्ता में आने पर मेढ़क की तरह शीत निद्रा में चले जाने वाले।

2. A. अमीर-गरीब का रोना रोने वाले जनसंख्या वृद्धि के समर्थक।

B. जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करने वाले।

C. लोकतंत्र को ही नष्ट करके तानाशाही लाने और लूटपाट के समर्थक।

D. अपनी हर समस्या को सरकार की गलती बताने वाले। जैसे वे एकदम परफेक्ट हैं।

E. जिनको सरकार की 100 अच्छी बातें नहीं दिखतीं, एक गलती बड़ी समस्या लगती है।

F. सरकार पर भरोसा नहीं है ऐसा सोचना लेकिन बिना प्रमाण के। यानी शंकालु स्वभाव का होना। फायदा भी हो रहा है तो क्यों हो रहा है? सोच कर अपने बाल नोच लेना न कि खुश होना।

3. सही और गलत का निष्पक्ष अवलोकन करके, केवल गलत का विरोध करने, सही की सराहना और वर्तमान समस्या के त्वरित हल बताने वाले। लोकतंत्र का सम्मान करने वाले जिसमें प्रत्येक इंसान अपने हक के लिये लड़ सकता है। जिसमें इंसान को मानवाधिकार व कर्तव्य दिए उस संविधान के समर्थक।

4. मिलेजुले। जो भी आसपास हो रहा है उसकी नकल करने वाले। कोई अगर कह रहा है कि पृथ्वी चपटी है और नासा कभी चाँद पर गया ही नहीं तो उन पर भरोसा कर लेने वाले मासूम मुन्ने।

और भी प्रकार हो सकते हैं। अभी इतने ही। आप भी सुझाव दे सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©