नीचे दिए गए गद्यांश को मीट इंडस्ट्री के फैलाये गए झूठ और भ्रमित तथ्यों के आधार पर डर कर लिखा गया है।
नीचे दिए हैशटैग में जो लिखा है उससे पता चलता है कि यह पाकिस्तान की किसी वेबसाइट से आया है। जो कि एक मांसाहारी देश है। आइए इसे एक बार पढ़ते हैं और फिर चर्चा करते हैं:
"इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दाल-चावल और सब्जियां जंतु प्रोटीन का विकल्प नहीं हो सकतीं। जानवरों के मांस में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। शरीर के लिए जंतु प्रोटीन भी उतना ही जरूरी है, जितना कि दूसरे पोषक तत्व। निर्धनों के लिए तो प्रोटीन का सबसे सस्ता जरिया ही जानवरों का मांस है। अगर सारी दुनिया शाकाहारी हो जाएगी तो सबसे बड़ा संकट विकासशील देशों के लिए हो जाएगा। थोड़ा-थोड़ा मांस, मछली और दूध यहां की अपेक्षाकृत गरीब आबादी को कुपोषण से बचाए रखता है। मांस छोड़कर दूध अपनाने की बात है तो मांस एवं दूध दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। दोनों ही पशुओं से आते हैं।
जाहिर है, ऐसे में रास्ता संतुलन से ही निकलेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मांसाहार कम करना और ऐसे मांस पर जोर देना जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिहाज से कम नुकसानदेह हों। रुमिनेंट (जुगाली करने वाले पशु) के मांस की तुलना में सुअर, मुर्गे और मछली उसी श्रेणी में आते हैं जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के नजरिए से कम नुकसानदेह माने जा सकते हैं। हालांकि संतुलन शब्द की कोई एक व्याख्या नहीं की जा सकती, लेकिन इससे जुड़ी तमाम जटिलताओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि संतुलन और सादगी को जीवन का मूल मंत्र बनाकर चलें तो हम न केवल इस दुनिया को, इसके तमाम जीव जंतुओं को बेहतर माहौल दे सकते हैं बल्कि अपनी राह को भी बहुत सारे खतरों से बचा सकते हैं।" #pkonnet
हाँ तो आपने पढ़ा,
1. जंतु प्रोटीन के बारे में।
2. गरीबों के लिये माँस ही सहारा।
3. मांस छोड़ो तो दूध ज़रूर पीने की बात।
1. प्रश्न: जंतु प्रोटीन आता कहाँ से है?
उत्तर: वनस्पति प्रोटीन को खाने से बनता है। वनस्पति प्रोटीन के सर्वसुलभ स्रोत क्या हैं? मूंगफली, दालें। अर्थात जंतुजनित प्रोटीन का समर्थन एक झूठ है। हम खुद बना सकते हैं इसे शरीर में।
2. प्रश्न: क्या गरीबों के लिए मांस सस्ता है?
उत्तर: माँस सबसे महंगा भोजन है। क्योंकि इसे पालने, पकड़ने, काटने, संरक्षण करने में सबसे ज्यादा खर्च होता है।
वनस्पतियों को पानी-खाद या तो स्वतः मिल जाती है या एक बार देकर बहुत समय तक बिना देख भाल के रखा जा सकता है।
वनस्पतियों की कटाई सस्ती मशीनों से की जा रही है जिसमें मानव श्रम कम होता जा रहा है लेकिन अभी भी बूचड़खाने बिना कम मानव श्रम के नहीं चल रहे। उनको भी वेतन देना पड़ता है। बाकी व्यवस्था, साफसफाई में खर्च अलग। लाइसेंस, सीमाशुल्क, कोल्डस्टोरेज आदि से बहुत ही ज्यादा महंगा भोजन बन जाता है मांस।
अगर मान लो कि ये गरीब आदिवासी हैं और कुछ भी नहीं करते। केवल जंगल से कुदरती पशु पक्षी मार के खाते हैं, कुदरती पोखर, तालाब से मुफ्त का भोजन मछलियों को मार के प्राप्त करते हैं तो बताइये उनकी जनसंख्या कितनी है? 1% भी तो नहीं। उनको सदियों से कोई समस्या बाकी की 99% को नहीं बता मिली तो फिर हमको उनकी फिक्र ही क्यों है? वो पशुपालन नहीं करते। वे खेती भी नहीं करते, तो सही है। जैसे चल रहे चलने दो।
3. प्रश्न: मांस छोड़ कर दूध पी सकते हैं क्या?
उत्तर: दूध माँस का रिप्लेसमेंट है, ये खुद कह रहे हैं। यानि भारतीय व पाकिस्तानी शाकाहारी खुद को मांस का विकल्प दे रहे हैं। तरल मांस। दूध पशु से छीनते हैं। उसके बच्चे के लिए बना दूध। जब जानवर के दूध देने की क्षमता खत्म हो जाती है तो उसे खाया जाता है। ये उसी माँस को खाने की बात कर रहे हैं जो कि दूध व्यापार का सह उत्पाद है।
हमें पशु दूध की ज़रूरत कैसे पड़ सकती है? जब हम खुद स्तनधारी हैं? क्या हमारी प्रजाति की माएँ दूध नहीं देतीं? देती हैं तो मानव को जानवरों के हिस्से का छीनने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? मतलब साफ है कि दूध हमारी ज़रूरत तो कतई नहीं है। केवल डर है ईश्वर के जैसा। कि सारी जिंदगी दूध नहीं पिया तो मर जायेंगे। खुद की अक्ल न प्रयोग करने से ऐसा होता है। जो ईश्वर/धर्म को बिना जाने मानते हैं उनको कुछ भी ज्यादा लोग कहें सत्य लगेगा ही। आश्चर्य नहीं है। क्या जानवर सारी जिंदगी दूध पीता है? नहीं न? फिर सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव को तुच्छ जानवरों की क्या ज़रूरत पड़ गई? है न मक्कारी?
मैंने 20 साल से दूध और उससे बनी कोई वस्तु न खाई, न लगाई। मुझे कोई आहार सम्बंधित बीमारी नहीं है। इम्युनिटी मजबूत है और बुद्धि भी तेज है। यानि B12 भी हमारे मुहं में अपने आप बनता है बैक्टीरिया से। जानवर पहले बैक्टीरिया खाये फिर हम उसे खाएं या उस के बच्चे के लिए बना दूध निचोड़े उससे बेहतर होगा कि खुद बनाएं अपने ही मुहँ में। तो फिर न तो संतुलन की ज़रूरत है और न ही जानवरों के मामले में दखल देने की।
आज ही vegan बनने की दिशा में अध्धयन कीजिये। vegan लिख कर सर्च कीजिये। हिंदी में लिखिये "वीगन" और "निरवैद्य" भी सर्च कर सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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