Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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गुरुवार, अगस्त 29, 2019

आदिवासी, भूमाफिया और सरकार ~ Shubhanshu


आदिवासियों को भड़काना बेहद आसान है। वे अनपढ़ हैं, अतः उनको केवल पुरानी बातें ही समझ आती हैं। भूमाफिया दरअसल नक्सलियों को हाइजैक कर चुके हैं और उनके ज़रिए आदिवासी समुदाय को खत्म कर रहे हैं। ये कथित नक्सली दरअसल भारतीय सेना की वर्दी पहन कर आदिवासियों को ही मारते हैं व उनकी महिलाओं से बलात्कार करते हैं।

इनसे बचाने के लिए ही सरकार ने सुरक्षा बलों को आदिवासियों के बीच भेजा और उनको वहां से निकाला ताकि वे भूमाफियाओं द्वारा मारे न जाएं। संसाधनों पर अवैध कब्जा न हो इसके लिए सरकार ने आदिवासियों का पुनर्वास करवाया और उनको पहले से बेहतर रहने का स्थान दिया। इससे वे मुख्य धारा में भी आ गए और सरकार को आर्थिक मदद भी मिल गयी जो देश हित में सबके काम आएगी। वैध खनन के लिए सरकार टेंडर प्रकाशित करती है जो कि सक्षम पूंजीपति स्वीकार करते हैं और सरकार से करार करके आर्थिक मदद प्रदान करते हैं। इससे देश का विकास करना सम्भव हो जाता है। जिन वनों को काटा जाता है उनको दरअसल वृक्षारोपण द्वारा स्थान्तरित कर दिया जाता है अन्य स्थान पर, जहां मानव आबादी कम होती है। इस व्यवस्था की ज़िम्मेदारी पर्यावरण मंत्रालय लेता है।

कथित नक्सली हमलों में भारतीय सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध में धोखे से सोते समय मार दिया जाता है। उनकी वर्दियो को ये चुरा लेते हैं और इसी वर्दी से सारा इल्जाम सेना पर लगता है। केवल इस सेना के अपमान से ही त्रस्त आकर एक अफसर ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए थे इसकी जांच अभी न्यायालय में चल रही है। बाकी सब के सुबूत मैंने पोस्ट कर रखे हैं ज़हरबुझा सत्य पेज पर समाचार के लिंक के रूप में।

चारु मजूमदार का शुरू किया गया नक्सली आंदोलन उनकी आत्महत्या के साथ ही खत्म हो गया था। अपने आंदोलन का लुटेरा और भाड़े का हत्यारा वाला रूप देख कर इन्होंने आत्महत्या कर ली थी। संदर्भ: विकिपीडिया

इस समय जो लोग सैनिकों और आदिवासियों, दोनो को मार रहे हैं, वे दरअसल भूमाफिया द्वारा दिये गए हथियारों से लैस हैं। गलतफहमी और भ्रम फैलाने का यह नियम माओवाद के सीक्रेट डॉक्यूमेंट में दिया गया है। इसके अनुसार सरकार के प्रति इतनी गलतफहमी और नफरत पैदा कर दो कि निचले स्तर का हर मजदूर/व्यक्ति हथियार की मांग करे। यथास्थिति उनके बच्चों को मार देना या बच्चों के माता पिता को मार देना। और इल्जाम सरकार पर लगाना ताकि बदला लेने के लिये उनके रिश्तेदार तैयार हो जाएं। उनको हथियार देने का सही समय यही होगा।

उनको अकुशल रहने देना। ताकि सेना के सामने वे ज्यादा देर टिक न सकें। इससे सेना पर बच्चों को मारने का आरोप आ जायेगा। जब हथियार सहित सरकार उनके फ़ोटो प्रकाशित करे तो उस बात को अपने पक्ष में करना। ये कह कर कि आदिवासी बच्चों को मार कर सरकार ने हथियार उनके साथ रख दिये। जबकि सरकार तो तटस्थ होती है फिर भी जिंनके घर वाले मारे गए वे सिर्फ तुम्हे अपना हमदर्द समझेंगे।

इसी रणनीति से हम सभी संपत्तियों (जल, जंगल, ज़मीन) पर कब्जा कर लेंगे। वैसे ही जैसे रूस की क्रांति में किया गया था। बिना कत्ल किये किसी की सम्पत्ति हथियाना सम्भव नहीं है। क्रांति हिंसा से ही आ सकती है ये नारा दरअसल हमारे फायदे के लिये बनाया गया है। ऐसा करके ही हम लोगों की संख्या कम करेंगे और संसाधनों पर कब्जा करके सुखी जीवन जिएंगे। जो सपना उनको दिखाया जाएगा वो सिर्फ मृगमरीचिका ही है। फायदा सिर्फ हम भूमाफिया को है।

उपरोक्त निष्कर्ष इंटरनेट पर मौजूद माओवादी गुप्त डॉक्यूमेंट के आधार पर निकला है। इसमें लेखक का व्यक्तिगत विश्लेषण भी शामिल हैं। अधिक जानकारी हेतु स्वयं इस डॉक्यूमेंट को पढ़ें। (केवल इंग्लिश) ~ Shubhanshu धर्ममुक्त 2019©

डिस्क्लेमर: लेखक के व्यक्तिगत विचार। कृपया अपने विवेक का प्रयोग करें। धन्यवाद।

बुद्धि के तीन रूप ~ Shubhanshu


मनोरंजन को छोड़ कर किसी को जज करने का हक आपको तब तक नहीं है जब तक आप अगले से अधिक योग्य न हों। छोटी मोटी भूल-चूक कोई भी कर सकता है उसके आधार पर जज करना नहीं कह सकते। जैसे यदि कोई स्पेलिंग गलत लिख गया है तो उसे भूल कहा जा सकता है। कोई अगर गलत व्याकरण लिखता है या बोलता है तो यह उसका अज्ञान हो सकता है न कि बुद्धि का आंकलन। बुद्धि दरअसल आपकी कार्यक्षमता, दूरदर्शी सोच, नए उपाय और ज्ञान का सदुपयोग करके किसी समस्या का समाधान कर देना है। बुद्धि कभी किसी पूर्व लिखित ज्ञान को स्थायी नहीं मानती और उसे नए तर्क से बदल भी सकती है। बुद्धि का प्रमुख स्तर वास्तविक और प्रमाणिक तर्को से निर्धारित कर सकते हैं।

जो जितना ज्यादा तर्क कर सकता है या जितना ज्यादा विषयों में नया खोज सकता है वह अधिक बुद्धि (IQ) वाला हो सकता है। एक तार्किक व्यक्ति निश्चित रूप से बुद्धिमान होता है जो कि विषय, ज्ञान, आदि के बदलने पर भी अपना तर्क करने का स्वभाव नहीं छोड़ता। वह अनपढ़ होने पर भी तर्क कर सकता है। शिक्षा, ज्ञान का बुद्धि से उसे ग्रहण करने, समझने तक की योग्यता प्राप्त करने में योगदान अवश्य है लेकिन एक अनपढ़ भी जीनियस हो सकता है।

उत्तम की उत्तरजीविता का मूल अर्थ यही है कि पर्यावरण के अनुकूल और अपना जीवन बचाये रख कर जो भी जंतु अपनी प्रजाति बचाये रखने में सफल होता है उसे बुद्धिमान प्रजाति कह सकते हैं लेकिन इस हिसाब से मच्छर और कॉकरोच भी खरे उतर सकते हैं क्योंकि वे इंसान से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी इंसान के पिछवाड़े पर लट्ठ किये हुए हैं।

दरअसल इनमें अनुकूलन का स्तर अधिक था इसलिये ये अब तक जीवित हैं। इसमें इनकी शारीरिक संरचना का महत्वपूर्ण योगदान है न कि बुद्धि का। अतः बुद्धि को समझने के लिये हमें अप्राकृतिक अनुकूलता को समझना होगा। जैसे मानव शिकार नहीं कर सकता। न तो उसके पास पैने पंजे व दांत हैं और न ही सूंघने, दौड़ने और रात में देखने की शक्ति। अतः कभी भी मांस खाना मानव के लिये न तो शारीरिक रूप से सम्भव था और न ही व्यवहारिक रूप से।

परन्तु हिंसक जानवरों से रक्षा करने की भावना ने मानव जैसे तुच्छ, कमज़ोर जंतु में बड़े दिमाग के कारण उपाय किये और मानव ने पत्थरों से घायल करने/मारने के औजार बनाये। ये शायद एक के मन में ही विचार आया होगा और उसे मुखिया बना दिया गया होगा। वो पहला जीनियस था।

अब बाकी कम बुद्धि के मानवों ने इस उपाय का दुरुपयोग शुरू किया और निर्दोष जानवरों को भी मारने लगे। यहाँ से बुद्धि का दुरुपयोग शुरू हुआ। इसी तरह किसी की बुद्धि ने अच्छा कार्य किया और किसी की बुद्धि ने बुरा। बुद्धि 3 तरह से कार्य कर सकती है। हमले के लिये, रक्षा के लिए और रचनात्मक कार्यों के लिये।

प्रायः यह उचित मात्रा में, सभी में नहीं पाई जाती। इसीलिये बुद्धिमान को मुखिया चुना जाता है। जानवरों में मुखिया बलशाली/ताकतवर होता है जबकि मानवों में मुखिया बुद्धिमान व/या बलशाली दोनो या न्यूनतम अलग-अलग भी समझा जाता है। जैसी भी समूह की आवश्यकता हो। बुद्धि का यह असमान प्राकृतिक वितरण प्रतियोगिता की भावना को जन्म देता है और मानव परिस्थितियों के अनुसार अच्छा, बुरा या रचनात्मक कार्य करने लगता है। जिनसे रक्षा, विनाश और लाभदायक तीनो तरह के कार्य लगातार होते रहते हैं।

विनाशकारी बुद्धि, मानसिक विक्षिप्तता, परिस्थितियों वश पैदा हुई बदले, ईर्ष्या, नफरत और दुष्टता की भावना पर नियंत्रण करने हेतु कानून बनाये गये। रचनात्मक कार्यो का स्वागत किया गया लेकिन रचनात्मक कार्यो पर इन धूर्त व दुष्ट बुद्धि वालों की नज़र रहती है। अतः उनसे मुकाबला करने के लिये रचनात्मक खोज व कार्य करने वाले को अपनी सुरक्षा को उच्च स्तरीय रखना होगा अन्यथा उसकी खोज गलत कार्यो में लग सकती है और जो सभी के लिये कष्टकारी/विनाशकारी होगा।

अतः बुद्धि का उच्च स्तर ही आधुनिक विज्ञान है और इसका उपयोग व दुरुपयोग आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है। मैं तो उपयोग करना चुनूँगा, और आप? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

बुधवार, अगस्त 28, 2019

दुनिया इनके एहसानों से दबी है ~ Shubhanshu


आइंस्टीन ने सामाजिक दबाव में आकर एक साम्यवादी पत्र लिखा जबकि उनकी विचारधारा में विरोधी बातें थीं जैसे मैं सिर्फ अपने कार्य में माहिर हूँ मुझसे कोई और कार्य कराया गया तो मैं एकदम नकारा हूँ। एक मछली पेड़ पर नहीं चढ़ सकती और एक चिड़िया पानी में सांस नहीं ले सकती। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति, हर काम नहीं कर सकता। जो जिस कार्य को करने हेतु बना है सिर्फ वही कर सकता है।

कुछ अपवाद हैं जो कि अच्छे म्यूटेशन से बने लोग हैं। वे कई कार्य कर सकते हैं, जैसे लियोनार्डो नास्तिक, चित्रकार, वैज्ञानिक, आविष्कारक, मानव शरीर विज्ञानी, लेखक आदि तमाम प्रतिभाओं के धनी थे। मैं भी ऐसे कई काम करने में माहिर हूँ।

इस तरह के लोगों को प्रायः जैक ऑफ आल थिंग्स कहा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इसे आल राउंडर होना कहा जाता है। ऐसे लोग वाकई कीमती होते हैं। इनको कहीं भी छोड़ दीजिए। वे सफलतापूर्वक कार्य करके निकल आएंगे।

लेकिन एक बात ध्यान रखने योग्य है कि मल्टीटेलेंटेड लोग यदि मेहनत वाले कार्य जैसे व्यायाम, आउटडोर खेल, नृत्य, मार्शल आर्ट या मेहनत वाला कोई भी कार्य करने से कतराते हैं तो उनको उनसे दूर ही रखना चाहिए, अन्यथा उनकी सारी प्रतिभा नष्ट हो सकती है। यदि वे खुद सीखने की ठान लेते हैं तो, और यदि वे मेहनत करना चाहें, तो ही उनसे कार्य लिया जा सकता है जिसमें उनके कार्यकुशल होने की कोई गारंटी नहीं होगी क्योंकि उसका मस्तिष्क और भी आगे की सोच रहा होता है। तभी वे मेहनत को अपने अविष्कारों से करवाते हैं।

जो इस सत्य को स्वीकार नहीं करेगा। समय आने पर अपने आप मरेगा क्योंकि तीव्र बुद्धि के लोग अन्यायपूर्ण कार्य के बहुत ही बड़े प्रतिरोधक होते हैं। (फ़िल्म सीरीज देखें, Divergent) वे मूर्ख होने का नाटक भी कर सकते हैं और अपने से अधिक बुद्धिमान की नकल भी उतार सकते हैं। वे चाहें तो इस पृथ्वी को फिर से सुखमय बना सकते हैं और अगर उनको तंग किया गया तो चूंकि वे वैसे भी मूर्ख लोगों से तंग होते हैं, गुस्से में पूरी मानव जाति ही नष्ट कर सकते हैं।

वे चाहें तो अपनी प्रतिभा के बल पर बाकी 96% को अपना गुलाम बना लें और उनके ईश्वर बन जाएं लेकिन अभी उनमें अच्छाई बची है। इस दुष्ट, एहसान फरामोश दुनिया में कब तक ये अच्छाई ज़िंदा रहेगी? बुरे के साथ अच्छा कब तक करेंगे ये म्यूटेंट महान लोग? सवाल चिंताजनक है।

हर बात की एक सीमा होती है। ये बात सभी लोगों को याद रखनी चाहिए। अपनी मदद करने वालों का सम्मान करना सीखिये अन्यथा जिस तरह आज दुर्घटना होने पर कोई मदद को नहीं आता वैसे ही ये लोग भी आपकी मदद को कभी नहीं आएंगे। याद रखिये, इनकी हम सबको ज़रूरत है लेकिन इन महान लोगों को आपकी कोई ज़रूरत नहीं है अगर आप उनके साथ मित्रता या सौहार्द पूर्ण व्यवहार नहीं करते। नमस्कार! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 23, 2019

तनावमुक्त रहने का तरीका ~ Shubhanshu


खुद से सवाल करो कि इस बात का वास्तव में कोई लाभ है? क्या वास्तव में वही होगा जैसा लग रहा है? क्या और भी ज़रूरी कार्य नहीं हैं?

वर्तमान में जीना ही डिप्रेशन का इलाज है।

व्यस्त रहो, मस्त रहो, रोज कुछ ऐसा करने का प्रयास करो जिससे खुद पर गर्व हो। अगर जीवन का कोई मूल्य नहीं बचा तो पैदा करो उसका मूल्य। ऐसा जीवन जियो कि लोग इर्ष्या करने लगें आपसे।

जो आपके जैसा नहीं बन पा रहा, चाहते हुए भी, वो तो ईर्ष्या करेगा ही। उनको अनदेखा करो। कुछ खोखले घमण्ड से मुक्त होंगे वे आपका सम्मान करेंगे। प्रयास करेंगे आप से प्रेरणा लेकर।

समय आने पर इन्ही में से कोई प्रबल इच्छाशक्ति वाला आपके साथ खड़ा होगा। क्योंकि सबको, साथ देने वाले और समान विचार वालों के साथ रहना अच्छा लगता है। अकेले हैं आज पर कल भी होंगे ऐसा मुमकिन नहीं। विपरीत ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं लेकिन टकरा कर, एक हो जाने के लिए। ~ अहं ब्रह्मास्मि! Shubhanshu Dharmamukt 2019©

नोट: अहंब्रह्मास्मि = मैं ही सृष्टि का रचयिता और पालक हूँ। मैं ही सबकुछ हूँ। जिनको ये खोखला अहंकार लगे तो बता दूँ कि लगता है कि खोखला है ये। लेकिन बताइये अगर मैं नहीं तो कुछ भी नहीं। जान है तो जहान है। अर्थात मैं जीवित हूँ तो ही दुनिया जीवित है। मैं मर गया तो ये संसार मेरे लिए मर जायेगा। अतः मैं ही इस दुनिया का रचनाकार हूँ। मैं नहीं तो मेरे लिए ये दुनिया नहीं। मैं ही मेरी दुनिया हूँ। अतः इस बात में बल है। ये खोखला अहंकार नहीं है। यह सत्य है। यही है तनाव से बचने का उपाय! 💐

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

साम्यवाद और समाजवाद का सत्य ~ Shubhanshu


प्रश्न: समाजवाद और साम्यवाद के विषय में आपकी क्या राय है?

शुभ: लालची दुनिया में ये सम्भव नहीं। जो कोई भी अभी सम्पन्न है वह अपनी मेहनत की कमाई देकर उससे कम नहीं लेना चाहता। इसीलिये वे बच्चे पैदा करते हैं और इसीलिए वे रिश्वत, दलाली, गलत काम भी करते हैं क्योकि लालच की कोई सीमा नहीं होती। केवल जो आज सड़क या झोपड़े में हैं जिन पर देने को कुछ नहीं, सिर्फ लेने के लिए है केवल वे गरीब/भिखारी लोग ही इस व्यवस्था को अपना सकते हैं। जिस पर सरकार के दिये ऑफर से ज्यादा है वो कभी अपनी कमाई लुटने नहीं देगा। मानवाधिकार भी अपनी कमाई पूंजी को इस्तेमाल करने का हक देता है और कोई भी ताकत इस हक को किसी के जीते-जी नहीं छीन सकती।

अतः सभी गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों की मृत्यु के बाद ही उनकी सम्पति को सरकार कब्जा सकती है। यही नियम है। लावारिस सम्पत्ति को सरकार जब्त कर लेती है।

प्रश्न: यदि कोई संपन्न व्यक्ति अपनी अतिरिक्त सम्पत्ति देकर बराबरी पर आना चाहे तो?

शुभ: किसी को भी अपनी इच्छा से अपना हक छोड़ने का हक है। जैसे गैस सब्सिडी छोड़ने का हक सरकार देती है।

प्रश्न: बराबर कमाई वाली व्यवस्था हो जाये तो कैसा रहेगा?

शुभ: इस दुनिया में कहीं भी बराबरी सम्भव नहीं है। हर कोई दूसरे पर हुक्म चलाना चाहता है। जिस पर ज्यादा iq होगा वह बाकी सबसे ज्यादा समझदार या ब्रिलियंट होगा वो अपने आप ऊपर उठा दिया जाएगा और पुनः बराबरी समाप्त हो जायेगी। साथ ही सीमित मात्रा में जो कुछ उपलब्ध है उसका बंटवारा सम्भव ही नहीं। इसलिये उसके मालिक कुछ लोग ही होंगे और फिर से बराबरी समाप्त।

इसके अतिरिक्त इस तरह की व्यवस्था छोटे स्तर पर सिर्फ तानाशाही में हो सकती है जिसमें लोगो को गुलामो की तरह रखा जाए। ऐसा नैनीताल के घोड़ाखाल स्कूल में किया जाता है।

गुलाम से मतलब है जिसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है। जो सिर्फ एक रोबोट की तरह है जो भी उससे कहा जाता है वही करता है। एक मजदूर ऐसा ही होता है। क्या सब ऐसा मजदूर बनना चाहेंगें?

जब इंसान ही बराबर नहीं हैं तो बराबरी कैसे की जा सकेगी? 7 अरब लोगों में से सिर्फ एक आविष्कार करता है और बाकी सब उसके नाम पर फूलते हैं। कोई एक ही दुनिया में बदलाव लाता है, नया आईडिया लाता है जैसे मार्क्स और एंगेल्स लाये और शोषितों के ईश्वर बन गए। वो बड़े हो गए। बराबरी किधर है? बराबरी में किसी का सम्मान अलग से नहीं हो सकता किसी के नाम पेटेंट नहीं हो सकता, नाम की जगह नम्बर होगा। बराबरी यानी साम्यवाद सिर्फ बिना प्रतिभा के लोगों के लिये ही लुभावना है जिनको बस ज़िंदा रहना है। उसके बाद क्या होगा ये कोई नहीं सोचता। यही कारण है कि साम्यवाद सिर्फ किताब में है और समाजवाद थोड़ी मात्रा में अमल में।

मंगलवार, अगस्त 20, 2019

करेंसी का रहस्य ~ Shubhanshu


अवसरों का समान वितरण होना चाहिए। सभी को प्रतियोगिता में प्रतिभागी बनने का अवसर मिलने की बात होनी चाहिए। लेकिन इनाम तो सिर्फ योग्य ही ले सकेगा। सही तरह से मेहनत करने वाला ही सफलता का स्वाद चखेगा। धन देश की धरोहर है। यह वह सोना है जो रिजर्व बैंक में हमारी पूंजी है। यदि सोने को अंतरराष्ट्रीय करेंसी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस सोने का वजन ही किसी देश की अर्थव्यवस्था को निर्धारित करता है। इसी के आधार पर हमें विदेशों से कर्ज मिलता है। यही किसी देश की GDP निर्धारित करता है।

(मुझे यह जानकारी नहीं है कि सभी देशों के रिजर्व बैंक के पास ये सोना कहाँ से आया। इसकी प्रमाणिक जानकारी अगर किसी को हो तो वह दे सकता है।)

रिज़र्व बैंक को इस सोने के अंतराष्ट्रीय बाजार में वर्तमान कीमत के बराबर करेंसी छापने का अधिकार था जिसे बाद में ढीला किया गया क्योंकि लोग करेंसी जला/दफना/संग्रह कर रहे थे। अतः अब सरकार कुछ प्रतिशत अधिक धन के नोट छापती है। बैंकों में जमा धन ही रिजर्व बैंक और इन्कम टैक्स विभाग मॉनिटर कर सकता है अतः सरकार बैंकों में जमा कुल धन से देश की अर्थव्यवस्था का पता लगाती है कि कितना धन मुख्यधारा में है जो टैक्स पेड white money है। लगभग सभी नकद धन जिनका कोई रसीद या स्टेटमेंट आपके पास नहीं है वह ब्लैक मनी माना जाता है।

2.5 लाख ₹ का काला धन आप वर्ष भर में खर्च कर सकते हैं। सरकार ने इसे व्हाइट बना दिया है। इस पर कोई टैक्स नहीं लगता। यही सीमा महिला और सीनियर सिटीजन के लिए 3 लाख है। (संशोधन सम्भव)

(सबसे पहले धन बाजार में करेन्सी के रूप में लोगों के पास कैसे आया मुझे जानकारी नहीं है। कृपया सुझाये।)

फिलहाल धन बंटवारे की विषयवस्तु नहीं है। दरअसल यह मेहनत का टिकट है। जो जितनी मूल्यवान मेहनत देगा, उसके बदले में उतना ही मूल्यवान धन लेगा या वह जिस मोलभाव पर राजी हो जाये।

यही वर्तमान में धन को पाने की शुरुआत होती है। ये कोई गड़ा हुआ खजाना होता जो किसी समूह को मिला होता तो अवश्य मेहनत करने के कारण उनमें ये बंट जाता। अतः अभी तो मुझे यह कमाने (earn) करने की विषयवस्तु लगती है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

बुधवार, अगस्त 14, 2019

समझ गए तो life बदल जाएगी ~ Shubhanshu


मैं, जितना लिख सकता हूँ उससे ज्यादा बोल सकता हूँ, मैं जितना बोल सकता हूँ उससे ज्यादा पढ़ सकता हूँ, मैं जितना ज्यादा पढ़ सकता हूँ उससे क़हीं ज्यादा सोच सकता हूँ। इसलिये मैं न तो आपको यहां सब-कुछ बता सकता हूँ और न ही आप इतने छोटे माध्यम से मेरे सभी आविष्कारी उपायों (ideas) को जान सकते हैं। आप उतना ही जानते हैं जितना मैं लिख कर बताता हूँ। आप में से जो मेरे विचार नियमित पढ़ते हैं उनको पता है कि मैं आम इंसान भले ही हूँ लेकिन मेरी सोच आम नहीं है। ये सोच बहुत शक्तिशाली है। नई है और अदभुत है। रोमांचकारी है।

आप जो अपने आसपास देखते हैं वो सब पुराना है। एकदम बोरिंग उबाऊ। इस तरह का जीवन किस काम का? अव्वल तो आप सब में से अधिकतर परेशान रहते हैं क्योकि सुविधा नहीं है लेकिन जिन पर सुविधा है वे भी इसलिये परेशान हैं क्योंकि अब क्या करें? वही खाना, सोना, हगना, मूतना और जो सेक्स पार्टनर के साथ हैं उसके साथ बात करके कुछ समय निकाल देते हैं। कुछ चेतन भगत की तरह उपन्यास लिखते हैं और कुछ हैरी पॉटर की तरह। बाकी बस अपने मालिक के यहां गुलामी करके ही 75% दिन खर्च कर देते हैं।

सुविधा के लालच में कर्जा लेकर उसे चुका न पाने की जद्दोजहद में लगे हैं। जीवन सुख में न रह कर दुख में डूब गया। इनमें से 90% पारिवारिक व्यवस्था विवाह करके अपनी निजता का मजाक उड़ता देखते हैं। लोगों के कहने पर चलते हैं। उनको सन्तुष्ट करने में अपनी ज़िंदगी और खुशियाँ बर्बाद कर रहे हैं। बच्चों को जो कभी थे ही नहीं, पैदा करके उनको पीट रहे, सही परवरिश खुद को न मिली थी तो बच्चों को क्या देते?

स्कूल, कॉलेज और गली के गुंडे में से हर कोई उसे अपने हिसाब से चलाना चाहता है। परिणामस्वरूप बच्चा दोहरी ज़िन्दगी जीने लगता है। जैसे मैने भी जी। जो मैं था वह मेरे माता-पिता कभी नहीं जान पाए और न मेरे शिक्षक। इसी तरह सबका बच्चा अपने से बड़ों से अपनी असलियत छुपाता है। किसलिये? क्योकि उसे पता है कि जो उसे अच्छा लगता है, वह घर वाले और शिक्षकों को पसन्द नहीं। कभी-कभी जो शिक्षक को पसन्द है वो माता-पिता को नहीं और जो माता-पिता को पसंद है, वह शिक्षक को पसंद नहीं आता।

कुचल जाता है आपका बच्चा, इस तरह के चक्की के 2 पाटों में। हर कोई तो उसे रोक-टोक रहा है। बस इनके बीच में जो लोग हैं, वही उसे आज़ादी देते हैं। दोनो से। इसलिये आप कैसे भी माता-पिता हों, कैसे भी शिक्षक हों, वो सीखेगा किसी तीसरे से। वो तीसरा जो उसे बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। बनना या बिगड़ना भी निर्भर करता है आपकी सोच पर। हो सकता है कि जो बच्चा कुछ बन रहा है वो आपके लिए बिगड़ने के लक्षण हों और जो वो बिगड़ रहा है वो आपको राजा बच्चा लगे। सोच-सोच का फेर है।

भले ही सोच का फर्क लगे लेकिन हकीकत में सही और गलत, आपके लक्ष्य की सफलता पर निर्भर करता है। इसलिये परंपरागत सोच गई तेल लेने। परंपरागत सोच आपको एक बोरिंग लेकिन सुरक्षित जीवन देती है। इस तरह आपकी संतति यानि वंश बेल चलती रहती है। ये वंशबेल ही दरअसल परंपरा की जड़ है। अगर इसे खत्म कर दें तो क्या होगा?

वंशबेल खत्म तो परंपरा गई तेल लेने। परंपरा खत्म तो नई सोच शुरू। नई सोच शुरू तो खतरा शुरू। खतरा शुरू तो रोमांच शुरू। रोमांच शुरू तो जीवन महसूस होना शुरू। जीवन महसूस होना शुरू तो इसे खुले दिमाग से जीना शुरू। दुनिया बड़ी होना शुरू। रहस्य पता चलने शुरू। नए-नए कारनामे, खोज आपके नाम दर्ज होना शुरू। जो परंपरागत लोग आस-पास हैं, आप उनका दृष्टि केन्द्र बनना शुरू। आपको सम्मान मिलना शुरू। आपको अच्छा लगना शुरू। जीवन में अपने नाम कई आश्चर्य दर्ज करवाना शुरू। प्रसिद्ध होना शुरू और आपका मनोरंजक जीवन सुख से भरना शुरू। मृत्यु से बचने के लिए स्वस्थ रहने वाला जीवन जीना शुरू।

ये सब कैसे? सिर्फ परंपरा को खत्म करके। खतरा उठा कर। कौन सा खतरा? जो बस परंपरा मना करती है। ये कौन उठाएगा? जो बहादुर होगा। जिसकी फटती नहीं होगी। जिसको स्वाद से ज्यादा स्वास्थ्य की परवाह होगी। स्वास्थ्य कैसा जो खुद की जांच और कॉमन सेंस पर आधारित हो। इसके लिए जानवरो से प्रकृति के नियम सीखने होते हैं। खुद को खास प्रजाति नहीं समझना। सिर्फ खास व्यक्ति समझना।

इसमें क्या खास है? खास है क्योकि आप अब परंपरागत व्यक्ति नहीं रहे। आप अब खास हो। आपके जैसा या तो कोई नहीं या बहुत कम जो आपके साथी होंगे। मित्र होंगे। आपके साथ झगड़ेंगे नहीं। आपको प्रेम करेंगे क्योंकि न तो उनको अपने माता-पिता का डर होगा, न ही अपने बच्चे के रूप में कोई और तनाव, जो उनके प्यार, धन, समय और खुशियों पर ग्रहण लगा सके।

सोच की शक्ति तभी कार्य करती है, जब वो आज़ाद हो या उसे कोई सही रास्ता अपने जीवन से खोज कर बता सके। सोच की शक्ति तब और भी ज्यादा कार्य करती है जब आपकी इच्छाशक्ति आपकी अपनी होती है। आप सोचने लगते हैं, उस पर अमल करने लगते हैं। और ये रास्ता आपको ले जाता है बुलंदियों पर। जहाँ सिर्फ कुछ ही लोग होते हैं जो मेरे इस रहस्यमय लेख को समझ सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, अगस्त 12, 2019

दिमाग का प्रयोग क्यों? जब घुटना ज़िंदाबाद! ~ Shubhanshu


सोचने के लिए मस्तिष्क का इस्तेमाल नहीं करते लोग। घुटना ज़िंदाबाद।

ज़रा देखिये, ज्यादा गहराई में न जाएं तो जानवर और इंसान में अधिक समानता है या किसी मानव और गाजर/आम में?

इन विद्वानों को गाजर के कटने पर दर्द होता है या दर्द से बिल बिलाते खून की धार छोड़ते घायल पशु को देख कर?

अगर वनस्पति और इन विद्वानों की तुलना करेंगे तो पाएंगे कि दोनो में ही दिमाग नहीं है।

वनस्पति और जंतु समान हैं तो उनको अलग-अलग ब्रांच में क्यों रखा गया है? बॉटनी और जूलॉजी!

सारी दया मानवों पर दिखाने वाले विद्वान, पशुओं (उपभोक्ता) को नफरत से बेजान वस्तु की तरह देखते हैं जबकि हम अगर भोजन (फ्लोरा/वनस्पति/उत्पादक) को भोजन की तरह देखते हैं तो इन विद्वानों को आलू-प्याज को देख कर दया आने लगती है।

हम पशुओं को दुखी नहीं देख सकते क्योकि वे अपना भोजन खाते हैं जो उनके लिए बना है। मानव की तरह किसी से छीन कर, बंधक बना कर नहीं खाते।

हम मानव कब से उनसे अलग हो गए? जूलॉजी में मानव भी पशुओं के साथ रखा गया है। जबकि वनस्पतियों को भोजन के रूप में अलग वनस्पति विज्ञान में रखा गया है।

हम vegan लोग, मानव और पशुओं पर दया करते हैं लेकिन भोजन (वनस्पति/Flora) पर नहीं। क्यों?

इसका जवाब इसी बात में छुपा है कि हे सर्वाहारियो ये बताओ कि आप मानव पर दया करते हो लेकिन उसी वर्ग (fauna) के पशुओं पर नहीं? आखिर क्यों? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 09, 2019

चलो पूर्णता की ओर ~ Shubhanshu


दुनिया के सबसे अच्छे और कठिन कार्य:

1. विवाहमुक्त होना
2. बच्चामुक्त/वंशवाद मुक्त होना
3. नास्तिक/धर्ममुक्त होना
4. राजनीतिमुक्त होना
5. Vegan होना
6. जातिमुक्त होना
7. विनम्रतापूर्वक व्यवहारवादी होना
8. लिंगभेद मुक्त/समानता वादी होना
9. Vegan/Atheist Heterosexual होना
10. सिद्धान्त वादी होना
11. ईमानदार होना
12. ज़हरबुझा सत्यवादी होना
13. Polyamorus होना
14. नौकरी मुक्त होना
15. अच्छा लेखक होना
16. अच्छा कवि होना
17. अच्छा गीतकार होना
18. अच्छा संगीतकार होना
19. अच्छा आविष्कारक होना
20. अच्छा खोजी होना
21. अच्छा इंसान होना
22. अंतर्मुखी होना (स्वभाव)
23. वैज्ञानिक रूप से भविष्य का अनुमान लगाना
24. सकारात्मक (positive) होना
25. स्पष्टवादी होना
26. कानून के अतिरिक्त कोई व्यर्थ सामाजिक नियम न मानना
27. परंपरा और संस्कृति मुक्त रहना
28. विज्ञानवादी होना
29. तर्कवादी/युक्तिवादी/rationalist होना
30. मुक्तविचारक होना
31. गहरा सोच विचार करना/दूर की सोचना
32. उम्र की सीमा से परे विचार को महत्व देना
33. सिर्फ मित्रता को ही एकमात्र रिश्ता मानना
34. पशुओं और मनुष्य में फर्क न करना
35. समस्त जगत के लिए दया, करुणा, सहानुभूति व सम्मान से युक्त व्यक्ति होना

ये सब करने में मैंने अपनी सारी ताकत लगा दी और 95% सफल रहा। बाकी का परफेक्शन के लिए हमेशा अधूरा रहेगा। हमेशा और सुधार की गुंजाइश रखी जायेगी।

आप भी बताइये कि आप इनमें से क्या-क्या करने में सफल रहे और क्या करने की तैयारी में हैं? जो बन चुके उसका क्रमांक लिखिये। कुछ याद आया तो संख्या बढ़ेगी। आप याद दिलाइये जो मैं लिखने से चूक गया। ~ Vegan Shubhanshu SC Dharmamukt 2019©

धर्म का आविष्कार, विवाह संस्था/व्यवस्था है जातिवाद की जड़ ~ Shubhanshu



सोच के देखिये। कैसे नहीं होगा ये बताइये। विवाह के समय ही जाति देखी जाती है। इससे पहले जाति केवल विवाह न कर ले कोई हमारी लड़की से इसी डर से देखी जाती है।

विवाह जैसा टोटका न हो तो सब live in में रहेंगे घरवालों से अलग और कोई जाति नहीं देखेगा। जिससे प्रेम हो जाये उसी के साथ रहिये।

घर वाले जब जातिमुक्त सोच रखने लगें तो घर में भी सबको बता कर रह सकते हैं। तब तक उनको इस रिश्ते से अनजान ही रखें। अलग रहिये तब तक जब तक घर वाले भी आपके लिए न तरसें। वैसे ऐसा होता नहीं कि वे अपना जातिवाद छोड़ दें। अतः जातिवादी परिवार को यही कहिये कि विवाहमुक्त हैं आप।

ऐसा 3 पीढ़ियों तक होने दीजिये फिर कोई जातिवादी ही नहीं बचेगा। मैं तो कम से कम अपनी पीढ़ी तो जातिमुक्त कर ही जा रहा हूँ आप भी कीजिये। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, अगस्त 04, 2019

सोचिये आखिर क्यों? ~ Shubhanshu


रिहायशी ज़मीन में कोई पेड़ नहीं लगाने देता। ज़मीन खाली रखी जाती है। 1 इंसान विवाह करके अपनी पीढ़ी पैदा करता है और कई किलोमीटर ज़मीन को पेड़ों से रहित कर देता है। उसे घास की खेती करनी है, जानवर चराने हैं, बड़ा घर चाहिए ताकि पोते-पोती भी रह लें उधर ही। ऑफिस/फैक्टरी/शो रूम के लिए बड़ा ज़मीन का टुकड़ा चाहिए। उस पर भी पेड़ सिर्फ सजावटी लगायेगा क्योंकि फलों को तोड़ने के लिए लोग और जानवर चले आते हैं।

1 लड़का जो विवाह करता है, और एक लडकी जो बच्चा पैदा करती है, जानवरों और पेड़ों की कई पीढ़ियों को खत्म कर देती है। वे तो हमें ऑक्सीजन और पेड़ों को खाद व बीजों का प्रकीर्णन दे रहे हैं। हम इस प्रकृति को क्या दे रहे हैं? सिर्फ नफरत और विध्वंस।

फिर न कहना कि सर्दी ज्यादा क्यों? गर्मी ज्यादा क्यों? बरसात कम क्यों? सूखा क्यों? चक्रवात क्यों? भूकम्प क्यों? बाढ़ क्यों? गरीबी क्यों? अशिक्षा क्यों? बेरोजगारी क्यों? भूखे लोग क्यों? अपराध क्यों? लिंगानुपात में असंतुलन क्यों? भ्रूण हत्या क्यों? विवाह से नफरत क्यों? बच्चों के पैदा होने से नफ़रत क्यों? Veganism क्यों? और ये ज़हरबुझा सत्य क्यों? सोचो, आखिर क्यों? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, अगस्त 02, 2019

आइये आपको घास-फूस से मिलाएं ~ Shubhanshu


सर्वहारी (मांस प्रेमी): अबे, तू vegan है तो खाता क्या है? घास-फूस? मुझे तो बटर-चिकन, मटन, अंडा और मटर-पनीर पसन्द है।

Vegan शुभ: कढ़ाई में पके बिना आलू के vegan छोले, बिना दही वाले vegan भटूरे, बिना आलू के कढ़ाई में पके राजमा, कढ़ाई वाली तोरई, भिंडी, समूचे आलू की कुकर में पकी vegan सब्जी, आलू-मटर-टमाटर, टमाटर-आलू, सूखे आलू (आलू भुजिया), बैंगन का भरता, आलू-प्याज की कढ़ाई में बनी सब्जी, गाजर व मटर की सब्जी, कच्ची गाजर व मूली, मेथी, पालक, मूली का साग, भरवा टिंडे, फूलगोभी (कढ़ाई या कुकर), बंदगोभी, सेम, मशरूम-मटर, मूंग की दाल, अरहर की दाल, मसूर की दाल, चावल (भात), vegan बिरयानी, सोयाबीन की बड़ी, सौंफ-उड़द की कचौड़ी, आलू (खटाई के साथ) की कचौड़ी, आलू (खटाई के साथ) का पराठा, फूल गोभी का पराठा, मूली का पराठा, मूंगफली की चिक्की, बेसन का लड्डू, vegan समोसा, इमरती, गोलगप्पे (खट्टा पानी-कम मिर्च), बाजरे, बेसन, सोयाबीन मिश्रित आटे की रोटी, मैदे की रोटी, आटे की रोटी खाता हूँ बस मिर्च से परहेज है। सीधे खाने वाले फलों में आम, अंगूर, टमाटर, संतरा, किन्नू, सेब, अनार, केला, कीवी, स्ट्राबेरी, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, अमरूद, जामुन, फालसे, नींबू, अन्नानास, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती आदि। सूखे मेवों में काजू, किशमिश, बादाम, पिस्ता, चिरौंजी, खजूर, अखरोट, मखाने, भुनी मूंगफली आदि पसंद हैं।

सर्वहारी (मांस प्रेमी): अबे इतना कुछ खाते हैं vegan लोग? मुझे तो पता ही न था। हम तो बस 2-3 चीजों पर ही अटके रह गए।

Vegan शुभ: अरे ये तो जो याद है और पसंद है वो बताया है। खाने के लिए तो बहुत कुछ है जो बताते-बताते सुबह से शाम हो जाएगी। हमारे लिए भोजन की इतनी वैरायटी और फ्लेवर हैं कि एक बार में एक भी खाओ तो पूरी ज़िंदगी लग जायेगी और फिर भी कुछ न कुछ खाने से छूट जाएगा। जहाँ भी जानवर होते हैं वहाँ वनस्पति ज़रूर होती है। हम उस स्थिर वनस्पति को आराम से खा लेते हैं जबकि आपको अपनी जान खतरे में डाल कर अपनी जान बचा कर भागते जानवर को कमज़ोरी की हालत में पकड़ कर मारना पड़ेगा जो कि न सिर्फ थकाने वाला कार्य है बल्कि यदि जानवर ने आपको अपने सींगों पर रख लिया तो लेने के देने पड़ सकते हैं। बाकी सब ठीक है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©