Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, अक्टूबर 31, 2018

सच्चे आस्तिक और नास्तिक की पहचान

सच्चा आस्तिक कौन है? यह जानने से पहले आस्तिक क्या है यह समझना जरूरी है। परिभाषानुसार, "रचनाकार द्वारा रचित संसार में सब रचनाकार नियंत्रित कर रहा है, बना रहा है; इसमें हस्तक्षेप करने वाला नास्तिक है, ऐसा मानने वाला व्यक्ति ही आस्तिक है।"

अब आप एक जानवर का जंगल में व्यतीत होने वाला जीवन देखिये। वह बेजुबान अस्तिकता को माने या न माने लेकिन आस्तिक की परिभाषानुसार वह सही प्रतीत हो रहा है। वह जैसा चल रहा है वैसा चलने दे रहा है। पूर्ण प्राकृतिक जीवन। आस्तिकता यही कहती है कि हस्तक्षेप मत करो प्रकृति के साथ।

लेकिन क्या मुझे कोई भी आस्तिक होमो सेपियंस ऐसा मिला है? नहीं। मानव आस्तिक नहीं है। जानवर आस्तिक जैसा व्यवहार करते हैं लेकिन उनका कोई दर्शन नहीं है। वह मूर्खों की तरह ईश्वर की कल्पना करके उसका पूजन या आराधना नहीं करते। वह उनको चढ़ावा और रिश्वत देकर प्रकृति में अपने लिए बेईमानी करने के लिए नहीं उकसाते। जीवन को जीवन की तरह लेते हैं और मस्त हैं।

अब सच्चा नास्तिक कौन है? अभी के क्षद्मनास्तिक क्या कर रहे हैं? प्रकृति से छेड़छाड़। अच्छे के लिए नहीं, बल्कि बुरे के लिए। गलत प्रोपोगोण्डा को सही मान कर शिक्षा का दुरुपयोग कर रहे हैं। सत्य से कतरा रहे हैं। जो पहले से किताबों में लिख दिया गया उसे बदलने की सोचना भी धार्मिकों की तरह उनको गलत लग रहा है जबकि ज्ञान बदल रहा है। पुराना ज्ञान जल्द ही नवीनतम होता जा रहा है लेकिन उनका क्या जो प्रोपोगोण्डा और पुरानी किताबों में उलझे हैं?

पुनः जानवरों की ओर देखते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। कुछ जंतु जाला, घोंसला, कोकून, लकड़ियों को चिपका कर, पत्तो को चिपका कर, मिट्टी से, अपने शरीर के मोम से, मांद ढूंढ कर, बिल खोद कर अपने रहने योग्य स्थान बना रहे हैं। क्या वह प्रकृति के विरुद्ध न था?

जानवर सबसे बड़े वैज्ञानिक हैं। आज जितनी भी विज्ञान से चीजें बनी हैं उनमें से सबसे महत्वपूर्ण वाली तो जानवरों से ही प्रेरित हैं। जैसे बाज/चील से हवाईजहाज, मछली से नाव, जुगनू से फ्लैशलाइट, चीते से मोटरसाइकिल, साही से धनुष, ऑक्टोपस से रंग की पिचकारी आदि।

अब वे बेजुबान बिना विज्ञान जाने भी मानव से अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान और साधनयुक्त दिख रहे हैं। उनको कमाने के लिए किसी का नौकर नहीं बनना पड़ता। कुछ खरीदना नहीं पड़ता। वे अपने भोजन में नमक, तेल, मिर्च नहीं डालते। उसे आग जला कर पकाते नहीं। जो जैसा उपलब्ध है, वही पर्याप्त है उनके लिए।

वे कपड़े नहीं पहनते, उनके यहाँ कोई वयस्क होने से पहले रोकटोक नहीं होती, मातृसत्ता का बोलबाला होता है, नर केवल प्रजनन क्रिया के लिए ही ज़रूरी होते हैं, पालने के लिए माता पर्याप्त होती है, वे पूजा नहीं करते, रिश्वत नहीं देते, धोखा नहीं देते, बलात्कार नहीं करते, हाँ चोरी ज़रूर करते हैं कभी-कभी लेकिन वह भी जीवन संघर्ष का हिस्सा है। न करो तो मरो।

तो क्या यह लक्षण नास्तिको से भी नहीं मिल रहे? अब यह क्या गोरखधंधा है? नास्तिक भी जानवर और आस्तिक भी। अतः प्रकृति को भोगने के लिए आस्तिक/नास्तिक होना मायने ही नहीं रखता लेकिन तर्कवादी होना रखता है। कैसे?

एक हाथी को खाई में धकेलने की कोशिश कीजिये। चलिये बड़ा ज्यादा हो गया तो किसी चौपाये को गड्ढे या खाई में धकेलने की कोशिश कीजिये। नहीं हो पा रहा? चलो एक छड़ी लेकर एक जानवर के मारिये। अब दोबारा मारिये। देखिये वह प्रतिक्रिया देता है या नहीं? चलो और कुछ try करते हैं।

एक मशाल जलाओ। अब जानवर के मुहँ पर उसकी आंच लगाओ। क्या हुआ? भाग गया वह? होना ही था। देखिये, जानवर भी जानते हैं कि खतरा कहां है। अतः वह तर्क लगाते हैं। वह जीवन जीना सीख लेते हैं क्योंकि वे मरने से बचना जानते हैं। ऐसा तर्कवाद से ही सम्भव है। उनको मालूम है कि आग उनको जला देगी, खाई में गिर के उनको चोट लगेगी, छड़ी से उनको तकलीफ होगी। अतः वे बार बार एक ही गलती नहीं दोहराते। इसी को अर्जित गुण कहा जाता है। यह तर्कशक्ति ही है।

मतलब तर्कवाद प्रकृति में है लेकिन अस्तिकता/नास्तिकता केवल मन का वहम है। जैसा जीवन जीने को मिला उसे वैसे ही जीना प्रकृति है। श्रेष्ठ है और सही है। लेकिन विज्ञान का क्या? सुविधाओं का क्या? हम उनकी आदत डाल चुके। पुरखों ने यह आधुनिक जीवन जिया है, अतः अब इसे नियंत्रित करना ही श्रेयस्कर होगा। बिल्कुल वापस चले जाना अब सम्भव नहीं है।

विज्ञान वह सुनियोजित ज्ञान है जिसका उपयोग समस्या के निदान में किया जाता है लेकिन इससे समस्या को भी पैदा किया जा सकता है। बेहतर होगा कि जितना प्रकृति के करीब रह सको, वह कार्य करो और विज्ञान का प्रयोग, समस्या सुलझाने में कीजिये न कि समस्या पैदा करने में।

याद रखिये, बस यही एक पृथ्वी है अभी, जहाँ जीवन शेष है और हम इसे अपना हक समझ कर विवाह और बच्चे पैदा करके अपने लिए छोटा कर रहे हैं। प्रायः मानव ने बस इसे दीमक की तरह खाया ही है और विज्ञान हो या ज्ञान हो, प्रकृति से अभी तक कोई नहीं जीत पाया है। अति का अंत होता है।

सावधान रहिये, बदलिये खुद को, विवाह और बच्चों को होने से पहले ही त्याग करके और लोगों को भी जनसँख्या और विज्ञान के दुरूपयोग को रोकने के लिए निकल पड़िये।

यह आप किसी और के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए ही कर रहे होंगे क्योंकि रहना आपको भी इधर है और उनको भी, जो अभी भेड़चाल में लगे हैं। दोषियों को दंड देने से भी अगर बात बन जाये तो चलेगा। अन्यथा जब प्रकृति अपने संतुलन को करेगी तो बिना ज़मानत के, बिना ट्रायल के और बिना अदालत के तुरन्त दंड भोगने के लिए तैयार रहिये। 2018/10/31 20:01 ~ शुभाँशु सिंह चौहान 2018©

गुरुवार, अक्टूबर 25, 2018

Sex/मैथुन अनिवार्य क्यों?

भोजन, सेक्स, निवास यह तीन मानव की आवश्यकता हैं। यदि तीनो में से कोई भी कम हुआ तो दिमाग बन्द हो जाएगा। आपको सेक्स कार्य की तरह नहीं करना होता बल्कि जब यह करने का दिल करे तब और जब ऐसी परिस्थिति बने तब करना आवश्यक है जैसे भोजन।

लेकिन ध्यान रखिये; pull out, कंडोम आदि गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना भी अत्यंत आवश्यक है। अनचाहे गर्भ और STD से बचने के लिए कंडोम और अनचाहा गर्भ धारण करने से बचने के लिए पुल आउट तभी जब आपका साथी सिर्फ स्वस्थ लोगों से सम्भोग करती/करता हो या सिर्फ आपके साथ ही उसका सम्पर्क हो।

सेक्स सिर्फ प्रजनन के लिए नहीं होता। अगर ऐसा होता तो महिला और पुरुष को चर्मोत्कर्ष और फोरप्ले व मैथुन में आंनद का अनुभव न होता।

यह दिमाग और शरीर की ज़रूरत है। इसको सहमति सहित स्थिति होने पर भी दबाया गया तो यह बलात्कार करने को प्रेरित करने लगेगा एक सीमा के बाद। चर्मोत्कर्ष की प्राप्ति का न हो पाना ही यौन अपराध की जड़ है। ज़रूरी नहीं कि महिला/पुरुष न मिले तो सेक्स न किया जाए। सेक्स टॉय और हस्तमैथुन भी तनाव व कुंठा दूर करने के उपाय हैं।

यदि मैथुन का मन हो और अंगों में पूर्ण तनाव/चिकनाहट न पैदा हो तो स्वस्थ, अपराध मुक्त, वयस्क पोर्न/साहित्य/गेम आदि की मदद ले सकते हैं।

तनाव मुक्त जीवन के लिए सेक्स एक बढ़िया उपाय है लेकिन प्रजनन इसका byproduct है जिसको जनसँख्या वृद्धि रोकने के लिए नहीं करना चाहिए। ~ Vn. Shubhanshu SC 2018©  2018/10/25 18:36

बुधवार, अक्टूबर 24, 2018

मेरी दस प्रतिज्ञाएँ

मैंने कभी नहीं सोचा था कि जीवन भर दूसरों के आर्डर सुन कर धन कमाऊंगा। मैंने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि

1. आजीवन अविवाहित रहूँगा लेकिन अपनी पसन्द की महिलाओं से मित्रता और सेक्स के लिए विकल्प खुला रखूंगा।

2. कभी बच्चे पैदा नहीं करूंगा क्योंकि मैं अमर नहीं हूँ, यदि बीच में मर गया तो उनको लावारिस नहीं छोड़ सकता और व्यस्तता के चलते उनकी परवरिश उचित ढंग से न कर सकूंगा।

3. वही खाऊंगा जो शरीर की कुदरती ज़रूरत है और जो मेरी नाक स्वीकार करेगी। इस तरह मैं लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकूँगा।

4. आधुनिक समाज नियमों में बंधा है अतः यातायात, कानून, कर्तव्य और अधिकारों का पूर्ण पालन करूँगा ताकि मुसीबत में न पड़ जाऊँ।

5. कम से कम कपड़े पहनूंगा ताकि शरीर को विटामिन D मिलने समेत कुदरती अहसास होता रहे कि जानवर कैसे जीवन जीते हैं और मैं मशीन न बन जाऊं। इससे असहाय लोगों की परेशानी समझने में आसानी हुई और मैं और अधिक मानवीय और दयालु बन गया।

6. मैंने तय किया कि उपर्युक्त 5 बिंदुओं से मेरा खर्च कम हो जाएगा और मैं यदि आज ही से धन कमाने और उसे जोड़ने के लिए प्रयास करूँ तो जब तक मुझे कमाने की आवश्यकता पड़ेगी तब तक मैं आर्थिक रूप से पहले से ही मजबूत हो चुका होऊंगा। इसके लिए मैंने बचपन में ही व्यापार किया और गुल्लकों में धन जोड़ा। बाद में बैंक में खाता खोल के उस धन को फिक्स किया और करता गया जब तक मुझे उसे खर्च करने की ज़रूरत न पड़ी। समय आया और मेरा जमा धन मुझे खुद कमा कर देने लगा।

7. आज मैं आत्मनिर्भर हूँ और अपनी शर्तों पर जीवन जीता हूँ। अब मैं धन के पीछे नहीं भागता बल्कि खुद को प्रसन्न रखने के लिए शौक पूरे करता हूँ। यद्यपि चूँकि मैं और अधिक दुनिया देखना चाहता हूँ इसलिये धन की आवश्यकता की पूर्ती हेतु भी अपने शौक प्रयोग करूँगा। लोगों के मन में अपनी छाप छोड़ पाता हूँ या नहीं यह तो प्रयोग का विषय है लेकिन उम्मीद है कि मैं अच्छा कर रहा हूँ।

8. समय आने पर मैं लेखन के क्षेत्र में और विज्ञान के क्षेत्र में अपने खोजे गए राज़ खोलूंगा परन्तु उनका उद्देश्य मानवता की भलाई के साथ-साथ सबके लिए प्रेरणास्रोत बनना भी होगा।

9. मैं अपने सभी उद्देश्यों में सफल होता रहा हूँ क्योंकि बचपन में मुझे भी मूर्ख कह कर स्कूल से निकाला जा रहा था और दया करके जो मुझे आगे बढाया गया तभी से मैं समझ गया था कि यह दुनिया मेरे लायक नहीं। उसके लिए तो मैं नालायक ही रहूँगा। अतः जीवन अब सिर्फ़ मेरे अपने हाथ रहा। इसको कैसे जीना है अब मुझे ही तय करना था। अतः मैंने अपने मन की सुनी, करी और करता रहूँगा।

10. इस भूखी/गरीब दुनिया ने मुझसे सबकुछ छीना है लेकिन मेरी ज़िद है कि इसे सज़ा देने की जगह इतना प्रेम, महत्वपूर्ण विचार, खोजें, आविष्कार, साहित्य, धन कमाने के उपाय और योगदान देकर जाऊंगा कि फिर कोई धन और प्रेम से गरीब इस दुनिया में पैदा तो होगा लेकिन गरीब मरेगा नहीं। ~ शुभाँशु 2018©  2018/10/24 20:14

Note: यहाँ दी गई सभी प्रतिज्ञाएँ सांकेतिक हैं जिनका अन्य लाभों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन भिन्न-भिन्न posts में आप इसी website पर देख सकते हैं।

मंगलवार, अक्टूबर 23, 2018

देशभक्ति क्या होती है?

ज्यादातर लोगों के हिसाब से,

1. देश की जय जय कार लगाना।
2. देशभक्ति से सम्बंधित गीत गाना।
3. धर्म विशेष से सम्बंधित काल्पनिक भारत माता की जय जय कार करना।
4. गाय की जय जय कार करना।
5. बीजेपी/आरएसएस/abvp/शिवसेना/BD की सदस्यता लेना।
6. देश के झंडे से सम्बंधित स्टीकर/टैटू इत्यादि लगा कर, देश का झंडा बनकर फोटो खिंचाना।
7. देश की जासूसी करके दुश्मन देशो को बेचना।
8. काला धन जमा करना।
9. खरीदारी पर रसीद न लेना।
10. सम्विधान के विरुद्ध जाकर खुद कानून हाथ में लेना।
11. दूसरों के मौलिक अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करना परन्तु खुद उसका फायदा उठाना।
12. सरकारी संपत्ति को लूटना, दंगा करवाना और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।
13. देश में जगह जगह पर गन्दगी फैलाना।
14. टूरिस्टों को लूटना, उनका अपमान करना, बलात्कार करना।
15. धर्म विशेष को गालियां देना।
16. पड़ौसी देशो को गालियां देना।
17. देश को युद्ध के लिये उकसाना।
18. महिलाओं की आज़ादी को छीनना। उनको नीचा दिखाना, उनको कमजोर समझना। उनका अपमान/बदनाम करना और विरोध करने पर बलात्कार करना/तेज़ाब डालना या उसकी धमकी देना।
19. देश को धार्मिक देश की संज्ञा देना।
20. देश में क़ानूनी रूप से रह रहे शरणार्थियों और अल्पसंख्यकों को जान से मार देने का प्रयास करना या उनको इतना तंग करना कि वे या तो आत्मदाह कर लें या देश छोड़ दें।
21. सोशल मिडिया में झंडे, धर्म से सम्बंधित तस्वीरें और अफवाहें फॉरवर्ड करना।
22. सबसे काल्पनिक देवी की देश का नाम रख कर जय जय कार करवाना।
23. जानवर को खूंटे से बाँध कर मां कहना और उसके बच्चे को कत्लखाने भिजवा कर उसका दूध रूपी रक्तपान करना। निकालने से मना करने पर डंडे से पीटना।
24. जब दूध देना बन्द कर दे तो उसे सड़कों पर कसाईयो के हाथों उठवाने के लिये छोड़ देना।
25. जब उनको कोई उठा ले तो रक्षक दल बना कर उनसे वसूली करना और वसूली न कर पाने की दशा में उन लोगों को मारना पीटना।
26. रिश्वत लेना और देने का समर्थन करना।
27. लड़कियों को इसलिये नहीं पढ़ाना क्योकि उनकी तो शादी करके उनको दूसरे घर में रोटी ही सेकनी है।
28. बिना हेलमेट/सीट बेल्ट के वाहन चलाना और कहना कि शेर को डर नहीं लगता।
29. कन्या विद्यालयों और कॉलेजों में बाहर खड़े होकर छेड़खानी करना।
30. भिखारियों को समर्थन करना और उनको काम करन की सीख देने के स्थान पर "हम खिलायँगे तुमको" की तर्ज पर भीख देना।
31. सांड, खच्चर और बेकार हो चुके टट्टुओं को सड़क पर मरने के लिये छोड़ देना।
32. बंदरों को खाना खिलाना और फिर उनके उत्पात से तंग आकर पुलिस से उनको मरवाना।
33. देशी कुत्तों को रोटी डालना लेकिन पालना विदेशी कुत्तों को।
34. ऑनलाइन/डिजिटल भुगतान करने की अपेक्षा टैक्स चोरी करने के लिये नकद भुगतान का विकल्प लेना।
35. सैनिकों की घायल तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल कर like बटोरना।
36. धर्म, जाति के नाम पर और राजनीती के नाम पर लोगों को उकसाना।
37. सड़क पर पड़े घायल इंसान का वीडियो बनाना, फोटो खींचना लेकिन उसे बचाने का कोई प्रयास न करना।
38. हर चीज में मिलावट करना और बेईमानी करने का कोई भी मौका न छोड़ना।
39. घटिया चीजें बना कर स्वदेशी के नाम पर बेचना और विदेशी क्वालिटी वाली वस्तुओं का बहिष्कार करना।
40. शादी करने, करवाने की ज़िद करना, और करते ही तुरन्त बच्चा पैदा करने का प्रयत्न करना ताकि देश में कई नए बेरोजगारों को पैदा किया जा सके।
41. 100 रु, मुर्गा और शराब के लालच में अपराधियों को वोट देकर अपने मताधिकार का दुरूपयोग करना।
42. फिर जब नेता नुक्सान करे तो उसे गालिया देते हुये 5 साल तक झेलना और उसे राजसी ठाठ बाट उपलब्ध करवाना और खुद सूखी रोटी खाना।
43. माल में जाकर 100 रु की कोल्ड ड्रिंक बिना मोल भाव के पी लेना लेकिंन ठेले वाले, रिक्शे वाले, सब्जी वाले की मोल भाव कर करके माँ खोद देना।
44. त्योहारों पर मोटरसाइकिल का साइलेंसर निकाल कर, और ट्रक का हॉर्न लगा कर सड़कों पर शोर मचाना और सबका जीना दूभर कर देना।
45. घरों में लाउड स्पीकर चढ़ा कर ज़ोर ज़ोर से बेसुरी आवाज में चिल्लाना और बच्चो की पढ़ाई लिखाई की मां खोद देना।
46. सड़कों पर रैलियां और जुलुस निकाल कर शक्ति प्रदर्शन करना। रास्ते जाम करना।
47...ये लिस्ट खत्म ही नहीं होती।

उपर्युक्त कार्य देशभक्ति होती है।

परन्तु मेरी समझ से देश भक्ति ये नहीं होती।

1. पेड़ लगाना
2. साफ सफाई रखना
3. साक्षर होना
4. टैक्स देना
5. हर खरीदारी का पक्का बिल लेना
6. घरेलू नुस्खों के स्थान पर MBBS डॉक्टर से सलाह लेना।
7. देशभक्ति दिल में रखना और दूसरे देशों के लिये जासूसी न करना।
8. देशभक्त बनना न कि नज़र आना।
9. ऊपर लिखे 46 कार्य न करना।
10. दयालु, विनम्र और प्रतिभाशाली इंसान होना

यही होती है देश भक्ति। बाकि सब टाटा टी। ~Vegan Shubhanshu, 3/3/17 08:24 AM

जियो और जीने दो, वसुधैव कुटुम्बकम, अहिंसा परमो धर्म:

गुरुवार, अक्टूबर 18, 2018

ग्राहक देवता

कई वर्षों पूर्व एक मज़ेदार घटना मेरे साथ घटी थी। मैं उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रोजेक्ट और नए आविष्कार बनाया करता था तो नई-नई चीजें बनाने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान से ज़रूरी सामान लेता था।

प्रायः दिन के समय जाता था तो उनसे जानपहचान हो गई। लेकिन स्कूल में एक प्रतियोगिता में प्रतियोगी होने के कारण मुझे एक दिन सुबह ज़रूरी सामान लेने जाना पड़ा।

देखा तो दुकान खुली थी। दिल खुश हो गया। वह अगरबत्तियां सुलगा के मंत्र पढ़े जा रहे थे और मैं "अंकल जी मुझे देर हो रही है स्कूल के लिए" चिल्ला-चिल्ला के थका जा रहा था।

फिर थक-हार कर बाहर आ गया। स्कूल को देर हो रही थी लेकिन फिर भी अब न इधर का रहा, न उधर का रहा था। अतः रुका। कुछ देर बाद वह मेरे से बोले "आपको दिखता नहीं है कि मैं पूजा कर रहा था?"

मैंने तपाक से कहा, "लेकिन देवता को तो आप दुत्कार रहे हैं!"

वह बोले, "क्या मतलब?"

मैंने कहा,
1. आपकी बोहनी (एक प्रकार का प्रचिलत वैश्य पाखण्ड) मैं करने वाला था।
2. ग्राहक देवता (भगवान्) समान होता है।

वह मेरा ही मुहँ देखते रह गए 1 मिनट तक। फिर बात बदल के बोले, बताओ बताओ क्या चाहिए आपको?" 😀😁😂 ~ Shubhanshu SC 2018©

पत्नी का अर्थ क्या है?

पत्नी का शाब्दिक अर्थ है "बंधुआ स्त्री" अर्थात "गुलाम". गुण स्पस्ट हो गए होंगे।

वैसे धर्मानुसार 4 प्रकार की पत्नियां होती हैं जिनका एक साथ एक ही स्त्री में पाया जाना उत्तम माना जाता है।

1. धर्म पत्नी
2. अर्थ पत्नी
3. काम पत्नी
4. मोक्ष पत्नी

जो चारों कार्य पूर्ण करे उसे संपूर्ण पत्नी कहते हैं। इसको अर्धांगिनी भी कहा गया है   कई स्थानों पर। अर्धांगिनी मतलब दायाँ हाथ। यानी जिससे सारा काम करवाया जाता है।

लेकिन यह सब केवल हिन्दू धर्म की भ्रामक व्याख्या है जबकि व्यवहार में महिला का सती होना, पर्दे में रहना, पति से सवाल न करना, उसका कहा मानना, पहली ही रात में सम्भोग, पति द्वारा स्त्री का पिता के घर से हरण, पति का नाम/सिंदूर/बिछुआ रूपी बेड़ी पहनना, पति को स्वामी कहना, उनके नाम को बोलने से परहेज, पति के घर जाकर रहना। दहेज रूपी धन का लाना, इत्यादि बहुत से लक्षण उसको वही साबित करते हैं जो मैंने लिखा हैं।

इसीलिए हम विवाह के खिलाफ हैं। बिना विवाह के जीवन साथी बन के रहिये और मित्रवत जीवन गुजारिये।~ Shubhanshu

बुधवार, अक्टूबर 17, 2018

ज्योतिष का ज़हरबुझा सत्य

ज्योतिष में कुंडली की कम्प्यूटेशन की जा सकती है क्योंकि वह और कुछ नहीं आज की घड़ी का पौराणिक विस्तार ही है।

पहले ग्रहदशा अर्थात ग्रह किस दिशा में हैं को देख कर समय का पता लगाया जाता था। आज आप आधुनिक घड़ी से समय देखते हो तो सॉफ्टवेयर पुराने जमाने के समय मापने के तरीके में बदल कर आपको समय लिख देता है।

रही बात वर्षफल/भविष्य/गुण/ग्रहविचार इत्यादि की तो वह प्राचीन काल से एक समय/एक स्थान पर पैदा होने वाले लोगों के बारे में उनके जीवन वृत्त की जानकारी का सर्वेक्षण है। जो पुराने पंडितों ने घर घर जाकर डेटा एकत्र करके बनाया।

अतः इसका सार यह है "जो लोग एक समय/एक स्थान पर पैदा होते हैं वे एक सा जीवन जीते हैं"

इसी के आधार पर आपका भविष्य बताया जाता है। इसी तरह हस्तरेखाओं पर भी सर्वेक्षण किये गए और पाया गया "एक सी रेखाओं वाले लोगों का जीवन भी एक समान होता है।"

फिर पूर्व की तरह लोगों के जीवन वृत्त का अध्धयन करके भविष्य का तानाबाना बना लिया गया जो कि जीन और जलवायु के आधार पर काफी सही बैठ जाता है। बाकी आज लोग अपनी प्रकृति के विरुद्ध जाकर बहुत कुछ कर रहे हैं तो बताया गया भविष्य कुछ हद तक गलत भी आ जाता है।

सार यह है कि आप इसका केवल सकारात्मक हिस्सा देख सकते हैं परंतु नकारात्मक हिस्से को बदलना असम्भव न समझें। आप अपनी प्रकृति को आज पढ़े लिखे होने के कारण बदल सकते हो।

और हाँ जो उपाय इसमे बताए गए हैं न, वह सिर्फ आपका मन रखने के लिये और आपका गुस्सा शांत करने के लिये दिए गए हैं। उनसे होता कुछ नहीं है।  2017/10/17 00:07 Vegan Shubhanshu S.C.

खुद को बदलो, दुनिया बदलेगी

प्रश्न: क्या हमें दूसरों को जगाना, समझाना, सिखाना नहीं चाहिये?

उत्तर: प्रायः नहीं। प्रकृति प्रदत्त हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती। हमारा घमण्ड ही हमें दूसरों को बदलने के लिए प्रेरित करता है। मैं लोगों को प्रायः सिखाने के लिये नहीं लिखता। मैं जो कर रहा हूँ, जो महसूस करता हूँ, वह लिखता हूँ। वह कोई जबरन सिखाया गया सबक नहीं है। लोगों के लिए मेरी जीवनचर्या है, डायरी है जिसे लोग अपनी इच्छा से पढ़ते, अनदेखा करते, अंगीकृत करते, स्वीकार करते या दुत्कारा करते हैं।

यह लोग हैं। यह अन्य इंसान हैं। मेरे जैसे। कोई आज़ाद है मेरे जैसा तो कोई परतंत्र है जैसा मैं कभी था। बस समय का फेर है। सभी लोगों में बस हिम्मत और ज़िद आनी बाकी है फिर वे खुद सीखेंगे। अभी उनके सामने ज्ञान-विज्ञान का खज़ाना उड़ेल रखा है लेकिन वे उसे अनदेखा करते हैं। डर है उनके भीतर कि यह सब बता कौन रहा है? वह व्यक्ति उदाहरण है तो कोई प्रसिद्ध व्यक्ति क्यों नहीं? लोग प्रायः विवेक से नहीं बल्कि बहुमत से फैसले लेते हैं। प्रजातंत्र से बेहतर उदाहरण क्या होगा?

एक जंगल में मौजूद प्राणियों को देखो। कोई किसी से मतलब नहीं रखता। जो हो रहा है होने देता है और सभी अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। जबकि मानव हमेशा अपने बुद्धि और ज्ञान के घमण्ड के चलते खुद कुछ खोज कर दूसरो को देने, अपना नाम कमाने चल पड़ता है ताकि कोई उसे धन्यवाद दे, उसे ऊंचा समझे। उसकी आवभगत करे।

इसलिये बेहतर है कि शान्ति से खुद का ख्याल रखो। दूसरे की मदद, बिना करे भी की जा सकती है और वही सार्थक है; प्रभावी है और निःस्वार्थ है।

कैसे? यह जानना आवश्यक तो नहीं है लेकिन एक युक्तिवादी होने के नाते मैं यह भी जानता हूँ।

यह कैसे होता है? हमारे मन में ईर्ष्या नाम का एक भाव होता है। सहानुभूति नाम का भी। प्रेरणा नाम का भी। यह तीनों मिल कर सुधार करते हैं। कोई इसे जबरन करवा कर हमें उसके परिणाम से प्रभावित करके, आश्चर्य चकित करके, ज़ल्दी ज़रूर कर सकता है, जैसे एक शिक्षक/गुरु लेकिन अगर आपका मन उस जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करता, आपकी इच्छाशक्ति और ज़िद बड़ी है तो आप कुछ नहीं कर सकते।

और यही सत्य है कि स्वतन्त्र मानव इन्हीं शक्तियों से लैस है। अतः आज गुरु/शिक्षक की कोई खास भूमिका शेष नहीं रह गई है।

आज भी केवल वही गुरु/शिक्षक प्रभावी हैं जो खुद को बदल सके।

दरअसल यह खुद को बदलना, खुश रहना ही प्रेरणा है। इसे ईर्ष्या उकसाती है। दूसरे के चेहरे पर मुझसे ज्यादा मुस्कुराहट कैसे? दूसरा मुझ से सुखी कैसे? ये प्रश्न उसे आपकी बदली हुई छवि की ओर आकर्षित करते हैं।

एक और भाव नएपन का होता है। लोग नई वस्तु/व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं। एक ढर्रे पर चलना बोर करता है।

खुद की देखभाल, खुद को ऊंचा बनाना एक उदाहरण बन कर स्पष्टीकरण प्रदान करता है कि हाँ, यह कार्य सही है। आप दरअसल उसके प्रयोग का हिस्सा हैं जिसे अगला आज़मा रहा है। आप ही परिणाम बनिये और देखिये कैसे आपके आस-पास, आप से, आपके राज़ जानने के लिए भीड़ एकत्र होने लगती है।

तब आप उनको अपने राज़ बताइए। तब वे सुनेंगे। तब वे उनको अपना लेंगे। सबको अपने साथ बदल डालने का सपना मत देखिये। याद रखिये, आप प्रयोग हैं, लोग वैज्ञानिक और यह जीवन एक प्रयोगशाला है। प्रयोग जब सफल होगा तभी वैज्ञानिक उससे अपने सिद्धांत बनाएंगे और तभी आप बनोगे एक सिद्द इंसान। नमस्ते। ~ Shubhanshu SC 2018© एक प्रयोग जीवन का जीवन में।  2018/10/17 07:29

सोमवार, अक्टूबर 15, 2018

युक्तिवादी होने के लाभ ~ Shubhanshu

व्यक्तिगत रूप से मैं कोई ज्यादा धनी नहीं हूँ लेकिन युक्तिवाद ने मुझे समस्त बुराईयों से लड़ना और प्रेम करना सिखाया है।

युक्तिवादी होने के बाद मैं vegan, atheist, marriage/religion/child free, open minded, positive, scientific और बेहद प्रसन्न हो गया।

Zoology के जीवन की उत्पत्ति और उद्विकास को गहराई से पढ़ने पर मैंने जीवन के रहस्य को समझा और ईश्वर की अवधारणा का उसमें खंडन पाया।

वैज्ञानिक विधि पढ़ने के बाद मैं युक्तिवादी हो गया। कुछ मूर्ख क्षद्मनास्तिकों से मिलने के बाद मुझे पता चला कि मैं उनसे भिन्न हूँ।

मैंने पाया कि सामान्य नास्तिकों का कट्टर आस्तिक शिकार करते हैं, इसलिये वह उनसे जुड़ते, बात करते हैं। नास्तिक उनके लिये ग्राहक जैसा होता है।

मैंने कई कट्टर और विज्ञान से लैस आस्तिकों से हफ़्तों तक चर्चा की। उन्होंने बहुत तर्क दिए जिनको काटना कठिन था। लेकिन मैं डटा रहा।

अंततः उन्होंने हार कर कहा, "तुम कौन हो? हमने जिसे पकड़ा उसे आस्तिक/धार्मिक बना कर अपने धर्म/समुदाय में शामिल कर लिया। तुम आम नास्तिक नहीं हो सकते।"

तब मैं उनसे कहता, "सही पकड़े, मैं आम नास्तिक नहीं हूँ। मैं हूँ युक्तिवादी! आप मुझसे नहीं जीत सकते, आस्तिक धर्म मिशनरी जी।"

युक्तिवादी होने के कारण मैं आत्मविश्वास से भर गया कि मैं अब सत्य तक पहुँचने की विधि जान गया हूँ। यही कारण है कि मैं बिना किसी प्रमाणिक प्रमाण के किसी की बात नहीं मानता। जबकि ज्यादातर लोग सिर्फ भीड़ की सुनते हैं।

भीड़ की न सुनने के कारण मुझे घमंडी कहा गया। क्षद्मनास्तिको ने भी मुझे अपमानित किया जब वे मुझे न समझा सके। इसी दौरान मुझे पता चला कि 90% नास्तिक वास्तविक युक्तिवादी नहीं थे। वे बस उदारवादी होने के नाते नास्तिकों में शामिल हो गए थे।

उदारवादी मतलब आम भाषा में सेक्यूलर या धर्मनिरपेक्ष होना। ये धर्मनिरपेक्ष कथित नास्तिक सभी धर्मों के पाखण्ड में शामिल होकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते थे। जिसे अपने धर्म में मांस खाने को न मिला वह दूसरे के धर्म में मांस ख़ाकर तृप्त हो रहा था।

जिसे अपने धर्म में लड़कियों से मिलना मुश्किल लगता था, वे दूसरे के धर्म में नई लड़कियों को अपना target बनाने लगता था क्योकि दूसरे धर्मस्थलों में लड़कियों की कोई कमी न थी।

कुछ धर्मों के त्योहारों में छेड़छाड़ करने को बुरा नहीं माना जाता था तो वे उनके भी साथी होकर एक दूसरे को छूने लगे। कुछ धर्मों में मुफ़्त के भंडारे/लंगर होते हैं तो वे उधर जाकर दावत भी उड़ाने लगते।

कुल मिला कर धर्मनिरपेक्ष होना, एक आम इंसान के लिए फायदे का सौदा था। उनके अनुसार स्थिर विचारधाराओं का होना बेकार और नुकसान देने वाला होता है। जबकि वे क्यों शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे इसका उनको कभी ज्ञान नहीं होने वाला था।

जंतुजगत में केसीन, पशुउत्पाद, पशुवसा आदि मौजूद होते हैं जो कि प्रत्येक धर्म का व्यक्ति अपने भोजन में शामिल करता है। नास्तिक भोजन में कोई परिवर्तन नहीं करते क्योंकि चिकित्सा जगत का एक बड़ा वर्ग इन उत्पादों श्रेष्ठ बताता है। यहाँ तक कि आर्थिक प्राणिविज्ञान भी। ऐसा तो हर व्यापार में होता ही है।

आप जब कोई व्यापार करते हैं तो आपका टारगेट ग्राहक लाना और अपना उत्पाद बेचना ही होता है। इसके लिए आप हर वह तरीका अपनाते हैं जिसने औसत बुद्धि का ग्राहक खरीदारी करते समय अवश्य आपका मुरीद हो जाये। यही सबसे बड़ी नीति होती है कि अपने ग्राहकों को कम लागत पर बनी वस्तुओं को अधिक मूल्य पर बेचा जाए।

ऐसा कब होगा? ऐसा तभी सम्भव है जब ग्राहक प्रसन्न हो। हम जानते हैं कि हानिकारक वस्तुएं हमको क्षणिक प्रसन्नता देती हैं और बाद में गहरा नुकसान। लेकिन यह व्यापारी को बहुत धनी भी बनाती हैं। अच्छी वस्तुओं की कभी ज्यादा मांग नहीं होती।

अगर आपको लगता है कि किसी अच्छी वस्तु की मांग ज्यादा है तो आपको भी बहकाया गया है। उदाहरण के लिये शराब, तम्बाकू, गांजा, चरस और अफीम को किसी विज्ञापन की ज़रूरत नहीं पड़ती। अत्यंत हानिकारक होने पर भी लोग धर्मस्थल से ज्यादा इनकी दुकानों पर दिखते हैं। अरे हाँ मैं बताना भूल ही गया। धर्म स्थल भी नशे की दुकान ही हैं।

आपको गाहे-बगाहे शराब और खैनी की तारीफ़ करते गीत, चुटकुले और कविताओं का पुलिंदा दिखता रहता होगा। टीवी पर भी आपको शराब बनाने वाली कम्पनी के खाली सोडा वाटर पीते दिखाते अभिनेता शराब का क्षद्मविज्ञापन करते नज़र आ जाएंगे।

ऐसे ही गुटखा बनाने वाली कम्पनी पानमसाला और सुपारी का क्षद्म विज्ञापन करती दिख जाएगी।

अब यह तो हुआ दृश्यमान नशा। अब ज़रा अदृश्य नशे को देखते हैं। अरे, यह क्या? यह डेयरी में सुबह-सुबह शराब के खरीदारों की तरह लम्बी लाइन कैसी? इतनी भीड़ तो सब्जी मंडी में भी नहीं दिखती। कमाल है! हर मानव माँ के स्तन में दूध है फिर भी उसका बच्चा जानवर के बच्चे के हिस्से का दूध पीने आया है?

क्या कहा? मां के दूध नहीं उतर रहा? अरे इधर डेयरी वाला भी कुछ ऐसा ही कह रहा था फिर उसने एक इंजेक्शन लगाया और सब ठीक। अरे ये नई माताएं माँ बनना नहीं चाहतीं लेकिन समाज को दिखाने के लिए बांझ नहीं हैं साबित करना है। इसलिये डॉक्टर से स्तनों का दूध सुखाने की दवा ले लेती हैं चुपचाप।

जिनको सच में दिक्कत होती है उनको दूध उतारने की दवा दी जाती है न कि जानवरों का दूध पिलाया जाता है। जानवर का दूध जानवर के बच्चे के हिसाब से बनता है न कि मानव के बच्चे के हिसाब से। मानव दूध पतला और विशेष अमीनो एसिड से मिल कर बना होता है जबकि जानवर के दूध में इनका अलग और भिन्न संघटन होता है जो कि मानव शिशु के लिए हानिकारक होता है।

कुछ लोग एक भिन्न दुधारू जानवर के दूध को मानव समतुल्य बता कर अपने धार्मिक ज्ञान का हवाला देते हैं और उस भिन्न जानवर को अपनी माँ ही घोषित कर देते हैं। जैसे उनकी असली माँ उनके पैदा होते ही मर जाती हो हमेशा।

सत्य तो यह है कि वह भिन्न पशु दूध आम पशु दूध से कुछ हल्का अवश्य होता है और मानव शिशु उसे स्वीकार कर लेता है। लेकिन यह वैसा ही है जैसे आप पेट्रोल की जगह गाड़ी डीजल से चला तो लेते हैं लेकिन कुछ समय बाद पूरा इंजन ही कबाड़ी को देना पड़ता है।

ऐसे बच्चों का पोषण की कमी से मानसिक विकास नहीं हो पाता और यह बड़े होकर मूर्ख कहलाने लगते हैं: http://bbbgeorgia.org/physicalBreastfeeding.php

पशु दूध के खतरे: https://hindi.firstpost.com/culture/drinking-milk-and-consuming-milk-products-is-hazardous-to-human-health-36204.html

भारत में सबसे ख़तरनाक हत्यारा कौन है? https://timesofindia.indiatimes.com/india/Whats-killing-Indians/articleshow/54930853.cms

क्या आपको हत्यारे का नाम मिला? जी हाँ, धमनियों में फंसा वह बाहरी वसा (bad cholesterol) जो कि मानव शरीर में खुद नहीं बनता। इसे हम लोग अपने शरीर में खुद डालते हैं आत्महत्या करने के लिए। आपको आश्चर्य होगा कि इसका एकमात्र स्रोत पशुउत्पाद हैं। यानि दुग्ध, अंडे और माँस। यहाँ देखिये किसमें और कितनी मात्रा होती है bad cholesterol की:  www.ucsfhealth.org/education/cholesterol_content_of_foods 

मुझे जल्दी नहीं मरना है और किसी को तकलीफ भी नहीं पहुँचानी। मानवता की बात करते हो तो वह दया, करुणा और सहानुभूति ही है। पशुजगत भी हमारी ही तरह है उसे भी जीने का उतना ही हक है जितना कि हमको। उत्तराखंड ने पहल करते हुए सभी पशुजगत को मानवाधिकार प्रदान कर दिए हैं। https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttarakhand/dehradun/uttarakhand-high-court-declares-entire-animal-kingdom-as-legal-entity/articleshow/64858994.cms अब उनको इंसान के समान अधिकार मिल गए हैं।

चिकित्सा जगत किस तरह बिका हुआ है इसका पता कभी न चलता अगर कुछ कर्मठ लोगों ने जासूसी करके दवा कम्पनियों और चिकित्सा संस्थाओं की पोल न खोली होती। देखिये यह खतरनाक डॉक्यूमेंट्री 
http://www.whatthehealthfilm.com (english).

ये तो था मेरे vegan होने का रहस्य अब आते हैं विवाह, शिशु और ओपन रिलेशनशिप की ओर। इसको समझने के लिए बड़ा लेख लिखा जा चुका है उसी की यह अगली कड़ी है। यह लेख पढिये यहाँ http://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/04/blog-post_53.html

नग्नतावादी या nudist होने के पीछे के राज जानने के लिए जाइये यहाँ https://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/05/nudism.html?m=1 साथ ही शरीर को सूर्य का प्रकाश विटामिन D देता है जो पानी में मौजूद कैल्शियम को हमारे शरीर में सोखने लायक बनाता है। अतः हड्डियां मजबूत करने के लिये नँगा रहना बहुत ज़रूरी है।

आकर्षण का सिद्धांत: किसी भी वस्तु या व्यक्ति को जी जान से चाहो उसे ही सोचो तो वह आपकी ओर आकर्षित होने लगती है। आप चुम्बकीय शक्ति उतपन्न करने लगते हैं। यह एक सिद्धान्त है इसका कोई तोड़ नही। यही कालांतर में ईश्वरिकरण के रूप में बदनाम किया गया। लेकिन आप इसे तार्किक रूप से भी अपना सकते हैं बस धन्यवाद देने के लिए समय को या सत्य जैसी भाववाचक संज्ञा को चुनिए। यह आपको वह सब दिला सकती है जो आपने सोचा भी नहीं कि वह हो सकता है कभी। ईश्वर जैसा खुद को महसूस करिये। कुछ भी अब असम्भव नहीं।

युक्तिवादी होने का सफर अभी यहीं तक रखते हैं। कुछ समय लगा कर सभी लिंक पढ़िये। एक साथ न पढ़ें तो टुकड़ों में पढ़िये। आपको अजर-अमर बनना है तो वह भी बना दूँगा। इसके लिए इस लिंक पर जाइये https://zaharbujhasatya.dharmamukt.in/2018/10/blog-post_8.html?m=1

अब अगर मुझे सब कुछ हासिल कर लेने का सच्चा आत्मविश्वास प्राप्त है और आप मुझे अपने झूठ से झुका नहीं पाते तो कमी आप में होगी। मैं तो पहले ही आपकी सेवा मे हाजिर हूँ। करोड़ों रुपये की कीमत की जानकारी वर्षों की मेहनत से हासिल करके आपको मुफ्त में दे रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ आप इसका दुरुपयोग नहीं करेंगे। धन्यवाद! आपका V.S.S. Chauhan 2018©  2018/10/15 19:10