पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ में बार-बार अल्लाह से डरने का और उसके आदेश को मानने का ज़िक्र है। क्या अल्लाह के हुक्म के बीच में कोई और भी है? ये किताब लाने वाले कौन हैं? इनका इस पुस्तक में ज़िक्र क्यों? कहीं यह पुस्तक सिर्फ अपनी बातें मनवाने के लिये पुरुष समाज द्वारा इस्तेमाल की गई चाल तो नहीं?
प्रस्तुत कुरान के पृष्ठों में आप देख सकते हैं कि कैसे एक पुरुष महिला को
- विभिन्न परिस्थितियों में त्याग सकता है।
- किसी और की पत्नी से बदल सकता है।
- तलाक हो जाने के बाद किसी और से हलाला करवा कर (यानी पराए पुरुष से सम्भोग) पुनः विवाह कर सकता है।
- दो बार तक तलाक देकर, हलाला करवा कर अपना सकता है।
- तीसरी बार हमेशा के लिये छोड़ सकता है।
- तलाक दिए बिना 3 और विवाह कर सकता है।
लेकिन इसमें फायदा किसका है? कोर्ट ने जो तलाक गलत तरह से दिया जाता था, उसे खत्म कर दिया लेकिन 3 माह की चेतावनी वाला कुरानी तरीका जस का तस है। मतलब या तो समझौता कर ही लो या अलविदा।
मेरी महिला मित्रों। क्या आपको यह सब स्वीकार है? क्या आप आत्मनिर्भर हैं जो मर्द के छोड़ देने पर खुद अपना जीवन निर्वाह कर सकती हैं?
समाज नहीं बदलेगा। बदलना आपको ही होगा। अभी आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान दें। फिर निकाह की तरफ ध्यान दें। केवल आप तब तक आज़ाद हैं जब तक निकाह नहीं कर लेतीं। फिर वही जुआ। लगे तो लगे नहीं तो दे पटकी, दे पटकी। बेहतर होगा कि ज़ुल्म सहने के स्थान पर "खुला" कर लें।
फैसला आपका। धर्म की गुलामी या नास्तिकता (सम्विधान) का आज़ाद और आत्मनिर्भर सम्मानित जीवन? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan®© 2018/03/20 19:19
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