Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, अगस्त 31, 2018

आओ बनाएं बेहतर आज़

"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझें भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्

"बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो?" ~ Vegan Shubhanshu Rationalist

"कुछ लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"
~Vegan Shubhanshu Rationalist

लेकिन इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार है।

साथ ही, धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी काफी बाद में शुरू हुआ था।

मैं किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?

धर्म एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से सिर्फ अच्छा ही चुनें?

"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।

और यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन) नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है। मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना बर्बाद कर दे रहे हैं।

अधिक जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा, अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।

चीन में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप करेंगे क्या?

आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?

मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।

"बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।"
~ Vegan Shubhanshu Rationalist

आप इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।

बुधवार, अगस्त 29, 2018

रक्तसम्बंधों में प्रजनन

जंतुओं में 90% बच्चे incest से होते हैं। विज्ञान का एक प्रभाग अनुमान लगाता है कि incest से पैदा हुए बच्चे गड़बड़ होते हैं क्योंकि एक ही DNA कई बार टूटता है। बेहतर सन्तति के लिये DNA नवीनीकरण आवश्यक है। परन्तु जंतुओं में हम ऐसा नहीं होते देखते। साथ ही मिस्र के राजवंश जो कि बेहद ज्ञान विज्ञान के रहस्य समेटे हैं वे सभी incest से ही राजवंश चलाते थे।

वंश चलाने की वास्तविक शर्त यह है कि वंश की संतति में किसी और DNA की मिलावट न हो। यह बात मिस्र का राजघराना और ब्रिटेन का राजघराना जानता है। बाकी इस बात से अंजान रहे और एक मिश्रित वंश को अपना वंश कहते रहे। हम सब आज भी इसी गलतफहमी में रहते हैं कि अगर हम किसी अन्य परिवार की लड़की से विवाह/बच्चे करते हैं तो हम अपना वंश आगे बढ़ा रहे हैं। जबकि आने वाला बच्चा आपके और आपकी पत्नी/साथी दोनो का 50-50 प्रतिशत DNA लेकर आता है, अर्थात दो भिन्न लोगों का वंश। एक दूषित वंश।

यही आगे चलकर जब नाती-पोतों तक पहुँचता है तो आपके वंश का बेहद सूक्ष्म अंश मात्र ही भावी सन्तति में शेष रह जाता है। बाकि उसमें दूसरों का DNA ही ज्यादा होता है। इस प्रकार आपकी खूबियाँ या कमियां, जो भी हैं, वह आने वाली सन्तानों में नहीं रहतीं। दूसरों की आ जाती हैं।

पशुओं/जंतुओं में 90% से अधिक incest sex होने के कारण ज्यादा शुद्ध वंश होता है तथा उनके पुरखों के अनुवांशिक लक्षण जस के तस बने रहते हैं। जबकि मानव भिन्न DNA से संयोग (प्रजनन) करके अजीब-अजीब नए प्रयोग कर रहा है। परिणामतः अजीब-अजीब लोग (अच्छे या बुरे) पैदा हो रहे हैं।

यथा-

अच्छा पुरुष + बुरी स्त्री = अच्छा-बुरा बच्चा/बच्ची
अच्छा पुरुष + अच्छी स्त्री = अच्छा बच्चा/बच्ची
मूर्ख पुरुष + बुद्धिमान स्त्री = 50-50% गुण यानी सामान्य बच्चा/बच्ची
बुद्धिमान पुरुष + मूर्ख स्त्री = 50-50% गुण यानी सामान्य बच्चा/बच्ची
सामान्य पुरूष + सामान्य स्त्री = सामान्य बच्चा/बच्ची
सामान्य व्यक्ति + X व्यक्ति = 50-50% सामान्य तथा X गुण।
मूर्ख पुरूष + मूर्ख स्त्री= मूर्ख या महामूर्ख बच्चा/बच्ची
बुद्धिमान पुरुष + बुद्धिमान स्त्री = बुद्धिमान या महाबुद्धिमान बच्चा/बच्ची

जहाँ, X = अच्छा, बुरा, बुद्धिमान, मूर्ख, महामूर्ख, महाबुद्धिमान संयोग आदि।

नोट: अच्छा/बुरा/मूर्ख/बुद्धिमान के पैमाने = एकल व्यक्ति के समस्त गुणों का निष्कर्ष

जबकि incest में -

व्यक्ति के विशेष गुण/अवगुण (अनोखापन) बरकरार रहता है। जैसे:

एक ही माता पिता की सन्तति का बच्चा/बच्ची अपने खानदान की प्रतिकृति होगा। अब या तो मूल पुरखा मूर्ख हो या बुद्धिमान। उसका वंश उसी के गुणों/अवगुणों को आगे बढ़ायेगा और योग्यतम की उत्तरजीविता के नियम से बचेगा या समाप्त हो जाएगा।

अब वह विज्ञान की चेतावनी किसलिये और किस आधार पर है? वह दरअसल इन्हीं कुछ राजवंशों के वंश बेल का अध्ययन ही है जिसमें कुछ मूर्ख लोग भी थे।

विशेष note: संशोधन का विकल्प खुला है। पूर्णतया स्मृति ज्ञान पर आधारित जानकारी। कोई गलती होने पर सुधारें। ~ शुभाँशु जी 2018©

मंगलवार, अगस्त 28, 2018

इंतज़ार रहेगा

जो दिखावा आप ईश्वर/अल्लाह के नाम पर कर रहे हो न, एक दिन यही दिखावा तुमको ले डूबेगा।

आपकी काल्पनिक् दुनिया के पीछे असल जीवन को जो तकलीफ हो रही है न, आपको जल्द ही परिणाम नज़र आने लगेंगे।

अभी जो भलाई का दिखावा करते हो न, यही भलाई एक दिन कहर बन के टूटेगी। भलाई करने की पहचान आपको नहीं है।

भिखारियों को पैदा करके उनको पालने का जो धंधा बनाया है न यही आपकी मानसिक कमज़ोरी का आईना बनेगा।

यह जो बात बात पर आपकी भावनाएं आहत हो जाती हैं न, यही भावनाएं एक दिन आपका परिवार ले डूबेंगी।

जो पैसा आप लोग मंदिर मस्जिद, अमरनाथ और हज पर उड़ा रहे हो न, इसी पैसे के लिए एक दिन तरसोगे।

जिस कल्पना के लिए असली इंसानों से नफरत पालते हो न, देखना एक दिन यही तुम्हारे काम आएंगे।

जिन नास्तिको से आप नफरत करते हो न, एक दिन यही आपके लिए ईश्वर/अल्लाह/गुरु जैसा बन कर आपके मसीहा बनेंगे।

अभी जो पेट भर खाने के बाद, हर किसी को अपने जैसा बनाने के चक्कर में लगे रहते हो न, एक दिन वही तुमको अपने जैसा बना देंगे।

तब आना मेरे पास! मैं तुम्हारे जख्मों को साफ करके उन पर दवा लगा दूँगा। मुझे आपके बुरे कामों से तकलीफ है लेकिन आपकी तकलीफ मुझे भी महसूस होती है। यहाँ कोई मजहबी/धार्मिक नहीं बैठा है। यहाँ बस एक इंसान बैठा है जिसमें मानवता कूट कूट के भरी है।

मैं उनमे से नहीं जो आपको कूट कूट के मानवता आप में भर दूँ। बस इन्तज़ार रहेगा कि कब आप मुझे अपना समझो और तुनकना बन्द करके खुले दिमाग से सोचो कि मैं क्या कहना चाहता हूं। उम्मीद कभी न छोडूंगा।

आप आओ या न आओ। आपके इंतज़ार में आपका मित्र:- Shubhanshu SC Vegan Irreligious 2018©

सोमवार, अगस्त 27, 2018

धर्म या सम्प्रदाय

धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म, कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना।

व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है।

उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए।

अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है।

परन्तु आज शब्दों के अर्थ बदले जा रहे हैं। लोग पढ़े लिखे की जगह लिखे पढ़े हुए जा रहे हैं तो सम्प्रदाय शब्द बस अखबार की हेडलाइन तक सिमट गया है। सभी जगह हर सम्प्रदाय खुद को धर्म-धर्म चिल्ला कर बता रहा है। English के religion का मूल अर्थ हिंदी में धर्म ही आता है। जब हम english में कुछ लिख कर अनुवाद करते हैं तो वह रिलीजन को धर्म में ही परिवर्तित कर देता है। अतः हम इस शब्द से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं।

हमारा मिशन सम्प्रदाय मुक्त कहा जा सकता है हिंदी में लेकिन क्या लोग इसका अर्थ समझ सकेंगे? अगर हाँ तो मैं अपने स्तर से इस शब्द का भी उपयोग कर दिया करूँगा। आपका ~ Vegan Shubhanshu SC धर्म/सम्प्रदाय मुक्त, सकारात्मक 2018©

गुरुवार, अगस्त 23, 2018

आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है

एक अंडे को खुद पर विश्वास था कि वह नहीं टूटेगा।

वह एक मंजिल की छत से कूद गया, नहीं टूटा।

उसे आत्मविश्वास हो गया और वह 2 मंजिल से कूद गया।

वह फिर भी नहीं टूटा।

अब वह 5 मंजिल से नीचे कूद गया और टूट कर बिखर गया। जानते हैं क्यों?

क्योकि वह अतिआत्मविश्वास से ग्रस्त हो गया था। Overconfidence एक ऐसा कलंक है जो आपको बर्बाद कर सकता है। इससे बुरा कुछ भी नहीं। आज तक जितने भी महान लोग बर्बाद हुए हैं उनके खात्मे की एक मात्र वजह यह Overconfidace ही था। जैसे हिटलर, ओसामा बिन लादेन, गद्दाफी, सद्दाम, गांधी, बेनज़ीर, राजीव, इंदिरा, J F कैनेडी आदि।

यह सभी समझते थे कि इनको कोई नहीं मार सकता। जो भी मारने आएगा कोई न कोई इनको बचा ही लेगा। जबकि आत्मविश्वास होता तो वह कोई गलती नहीं करते। गलती जिसे आप लापरवाही कह सकते हैं। अपने जीवन में इससे बड़ा कोई सबक मैने नहीं लिया। इसलिये जो भी कहता हूँ उसको आजमा ज़रूर लेता हूँ। ~ Shubhanshu 2018©

बुधवार, अगस्त 22, 2018

आइये देश बदलें

मित्र: अगर आप किसी ऊंचे पद पर होें जैसे cm/pm, तो आप कौन से दस बदलाव करना चाहोगे जो आपके कानून दायरे मे हों और सामान्य मानव रहते हुए मनुवादी जड़ों को काटने के लिये क्या कदम उठाएंगे? कोई दस बाते बताएं।

शुभ्: देश को बदलने के लिए 10 से ज्यादा बातें भी हो सकती हैं जो अमल में लाई जाएं तो देश की सूरत बदल सकती है।

1. हर जगह पर CCTV और ड्रोन से निगरानी।
2. हर सरकारी दफ्तर/पुलिस थानों में CCTV।
3. सभी निजी शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों और अन्य आवश्यक जनउपयोगी निजी संस्थानों का Nationalization.
4. सारा शैक्षिक और सरकारी काम ऑनलाइन होगा। धोखाधड़ी से बचने के लिये eye स्कैनर।
5. पुलिस रिपोर्ट ऑनलाइन दर्ज की जायेगी।
6. मानवाधिकार आयोग का खुल कर प्रचार किया जाएगा।
7. हर विद्यालय में सम्विधान पढ़ाना अनिवार्य।
8. स्कूलों में प्रार्थना के स्थान पर सिर्फ राष्ट्र गान।
9. हर सरकारी Superviser को videography करवा कर रिपोर्ट जमा करनी होगी।
10. देश के सभी प्रशिक्षित मजदूरों के लिए समान वेतन और वेतन का आंकलन सर्वेक्षण द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
11. मजदूरों के लिये मुफ्त हेल्पलाइन सेवा।
12. सभी देशों से विनम्र रिश्ते।
13. देश के विकास पर फोकस।
14. सभी सार्वजनिक धर्मस्थलों पर भारी टैक्स लगाया जाएगा। जनता को घर पर ही अपना आराध्य की पूजा करने को मुनादी करवाई जाएगी। धर्म का धंधा बन्द करवाने पर ज़ोर।
15. सभी का बैंक खाता और सभी को उसमें कुछ न कुछ नियमित जमा करने के लाभों को बताते नुक्कड़ नाटक करवय जाएंगे।
16. आधार कार्ड बनवाने की व्यवस्था हर सरकारी गल्ले वाले के पास उपस्थित होगी जिसको वह बनवाने में सहयोग करेगा तथा वोटर राशन कार्ड होने पर गल्ला तुरन्त देगा।
17. 10 लाख/वर्ष से ज्यादा कमाने वालों पर मोटा टैक्स।
18. Non कॉमर्शियल प्रॉपर्टी टैक्स समाप्त होगा।
19. विकलांगों और बुजुर्गों के लिये सभी सरकारी सहायता घर पर दी जाएगी। साथ ही फीड बैक की वीडियो जमा करनी होगी सभी कर्मचारियो को ताकि उन्होंने कोई रिश्वत नहीं ली साबित हो।
20. महिलाओं के लिये हर स्कूल में ताइक्वांडो सिखाने की अनिवार्यता। असमर्थ छात्राओं के लिए विशेष शिविर।
21. 50% महिलाओं का आरक्षण देश भर में क्योंकि महिलाओं को भी आगे बढ़ने से रोका जाता है।
22. स्त्री-पुरूष दोनों की विवाह की आयु 25 वर्ष।
23. पूरे देश के लिए एक कानून व्यवस्था। सभी पर्सनल कानूनी बोर्ड अवैध घोषित किये जाएंगे।
24. चक्का जाम करने वालों पर सख्ती। देश में अव्यवस्था फैलाने पर तुरन्त धारा 144 लगा कर सख्ती से निबटने के आदेश होंगे।
25. न्यायालय और न्यायधीश की संख्या बढ़ाई जाएगी। सरकारी वकीलों को सर्व सुलभ बनाया जाएगा। न्याय और कोर्ट मैरिज एक दम निःशुल्क होगा।
26. 1000₹ से ऊपर के सभी मुद्रा अंतरण ऑनलाइन होंगें। सभी को इंडिया वैल्यू कार्ड दिया जाएगा। कैश transection बेहद सीमित कर दिये जायेंगे। सभी तरह के फ्रॉड से बचाने के लिये विश्वस्तरीय सुविधाओं का प्रयोग होगा।
27. आप सुझाइए।
~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Irreligious 3:40 pm IST Wed Aug 22, 2018 2018/08/22 15:48

जीवन साथी सम्बंधी ज्ञान

एक या एक से अधिक sex mate के संग रहना लिव इन रिलेशनशिप है। इसके कई प्रकार होते हैं:

0. Dating: विपरीत लिंग के साथी के साथ या समलैंगिक साथी को ढूंढने, मिलने और साथ समय गुजारने और तय करने के लिये कि क्या हम इस सम्बंध को आगे बढ़ाएं या नहीं? की क्रिया dating कहलाती है। यह विवाह परिचय सम्मेलन का पर्याय समझा जा सकता है।

1. Monogamous Live in Relationship: इसमें केवल एक साथी के साथ ही परस्पर यौन सम्बन्ध रखे जाते हैं।

2. Polymarus Live in Relationship: इसमें एक से अधिक sex mate एक साथ रहते हैं और आपस में स्वेच्छा से यौन सम्बन्ध बनाते हैं। इसमें भी कई प्रकार होते हैं जैसे

a. Male-female-female (MFF),
b. Female-male-male (FMM) आदि।

3. Open Relationship: इसमें 2 या दो से अधिक विपरीत लिंग के sex mate मित्र की तरह रिलेशनशिप में रहते हैं लेकिन सेक्सुअल आज़ादी से रह सकते हैं। यौन सम्बन्ध किसी से भी बना कर उसकी मर्जी से उसे भूल सकते हैं। लेकिन जिससे दोस्ती भी रखते हैं उसे दोस्त बनाये रखते हैं। स्वेच्छा से सहमति अनिवार्य है। मुझे यह सबसे बेहतर लगता है। ~ Shubhanshu SC 2018©

विशेष: 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद कोई भी नागरिक स्वेच्छा से यौन सम्बन्ध किसी भी अविवाहित विपरीत लिंग से बना सकता है। विवाहित स्त्री से सेक्स सम्बन्ध बनाना adulty कानून के तहत अपराध है।

मंगलवार, अगस्त 21, 2018

आरती विनम्र् देव

जय विनम्र

नास्तिकता तेरे विविध रूप

कई तरह के लोग खुद को नास्तिक कह कर प्रसन्न हो लेते हैं जबकि वे जानते ही नहीं कि नास्तिक है किस चिड़िया का नाम?

1. जाति पर गर्व करना (जातिवाद को बढ़ाना), ब्राह्मणवाद का विरोध, आरक्षण का रोना, बुद्ध और भीम की जय-जयकार बसपा का मूल चुनाव प्रचार का मुद्दा है। नास्तिकता का नहीं। जो लोग मूर्ति और तस्वीर प्रेमी हैं वे भी धार्मिकता के अंतर्गत आ जाते हैं। क्योकि उनकी पसन्दीदा मूर्ति/तस्वीर का कोई अपमान करेगा और फिर आप उसकी ले लोगे तलवार और माचिस से। बसपा को आप नास्तिक न समझें, ये लोग भीम और बुद्ध को ईश्वर ही बनाए बैठे हैं और विष्णु का अवतार ही मानते हैं, पाखण्ड, आत्मा, प्रेत इत्यादि सब हैं इनके बौद्ध धर्म में।

बाबा साहब ने कहा था कि मेरी जय जय कार से बेहतर होगा कि आप मेरे बताये गए रास्ते पर चलें।

गौतम बुद्ध ने कहा था कि मेरी कभी पूजा/उपासना/वंदना मत करना।

इनमे से भी कुछ अपवाद हैं जो खुद को बुद्ध वादी कहते हैं लेकिन पाखंड और अंधविश्वास से मुक्त हैं। (अविश्वसनीय लगता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति अकेले रह रहा हो या अपने जैसे लोगों के साथ रहता होगा जो बहुत विरले ही होता है।)

2. कुछ विद्वान😂 हिन्दू/सनातन सम्प्रदाय को अदालत में जाकर  संस्थापक न होने का हवाला देकर इसे जीवनशैली साबित करवा लेते है और भाजपा इसे धर्मनिरपेक्ष चुनाव में इस्तेमाल करती है। अब जब सम्प्रदाय नहीं तो आप धार्मिक नहीं और धार्मिक नहीं हैं तो खुद को नास्तिक कहने लगते हैं। (जबकि नास्तिक होना ईश्वर को बिना प्रमाण के न मानना होता है।) इस प्रकार के विद्वान😂 लोगों को सनातनी प्रथम पुस्तक लिखने वाले मनु को इस धर्म का संस्थापक मान लेना चाहिए था, मेरी निजी राय में और तब ये पार्टी औंधे मुहँ जा गिरती। (व्यंग्य शैली में कटाक्ष)

3. नव नास्तिक हर ईश्वर जैसी चीज को इसी सिद्धान्त पर जांचते हैं। जो कि सही है और इसका नाम तर्कवाद हो गया है। तर्कवादी (नव नास्तिक) सकारात्मक, अधार्मिक और विज्ञान कि विधि के अनुसार चलने वाला व्यक्ति होता है। यही सही व्यक्ति है आज के समय में। परन्तु वही जो अच्छे इंसान पहले से हों।

4. कुछ बीच मे लटके खुद को सेक्युलर कह कर बचाने वाले लोग हैं जो दरअसल अग्नोस्टिक हैं यानी मजधार में लटके हुये ये सर्वधर्म समभाव को अपना प्रमुख मुद्दा बनाते हैं और एक-दूसरे के धर्म का मजाक गम्भीरता से उड़ाते हैं। उदाहरण; इफ़्तार की दावत हिन्दू खाने जा रहा है, और भंडारे में मुस्लिम और सिख, ऐसा ही लंगर में भी।

इनका भाई चारा एक दूसरे का त्योहार मनाने, एक दूसरे की कमी/बुराई को बढ़ावा देना, खाना भकोसने, और अन्य धर्म का लड़की-लड़का पटाने और कांग्रेस, सपा का चुनाव प्रचार करने तक सीमित है।

5. सम्प्रदाय और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर एक खत्म हुआ तो दूसरा भी खत्म हो जाएगा।

फिलहाल, ऐसे लोगों से जो नास्तिकता का चोला ओढ़ कर आपको अपने धर्म मे या पार्टी में खींचने में लगे हैं, उनको पहचानें और सावधान रहें। ~ Shubhanshu  2017/08/21 13:16

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं और इनको अंतिम न समझें।

रविवार, अगस्त 19, 2018

जय घमंड आरती

जय घमंड जय घमंड जय घमंड देवा।
माता जाकी प्रतिभा, पिता देशसेवा॥

एकदम घमासान, ज़हरबुझा प्राणी।
पढ़के विरोधी रोएं, FB की सवारी॥

सिर चढ़े, नक चढ़े और जानलेवा।
प्रेम का भोग लगे, मित्र करें सेवा॥

जय घमंड जय घमंड जय घमंड देवा।
माता जाकी प्रतिभा, पिता देशसेवा॥

बंदे को काम देत, बहीनन को भाया।
माँगन पर पुत्र देत, नारी हो या कन्या॥

दूर भरम करन आये, सफल कीजे सेवा।
जय घमंड जय घमंड जय घमंड देवा।
माता जाकी प्रतिभा, पिता देशसेवा॥
~ Vegan Shubhanshu SC "घमंड पुजारी"
2018/08/19 08:27 2018©

गुरुवार, अगस्त 16, 2018

अच्छा इंसान

कुछ नास्तिक अच्छे नहीं होते। वही हमारी छवि धूमिल कर रहे हैं। उनको सिर्फ इतना पता है कि रचनाकार में विश्वास न करो लेकिन बाकी सब करते रहो जो गलत है लेकिन अच्छा लगता हो।

जैसे भ्र्ष्टाचार करना, धोखा देना, चोरी, दूसरों को तुच्छ समझना, गाली देना, लड़कियों को खिलौना समझना आदि।

आस्तिकों और विपरीत सोच के लोगों से नफरत करना और उनको व्यक्तिगत रूप से अपमानित करना भी।

जबकि अच्छा इंसान होना सबसे बड़ा और बेहतर है। मैं ऐसा ही हूँ या बनना चाहता हूँ। आओ देश जोड़ें। तोड़ने के लिये तो दुनिया खड़ी है! 💐 ~ शुभाँशु सिंह चौहान धर्ममुक्त वीगन 2018©

एक मूर्ख की पोस्ट

बुद्धिमान व्यक्ति भीड़ से दूर रहता है। भीड़ स्वतः ही मूर्ख बन जाती है। चाहें उसमें कुछ विद्वान भी हों। जहाँ जनसँख्या कम होती है, वह brain उस जगह या देश को प्रस्थान कर जाता है। जो अभागे नहीं कर पाते, वह अकेले रह कर इस एहसास को पैदा कर लेते हैं।

इन्हीं कारणों से बुद्धिमान व्यक्ति देश से चिपक कर नहीं बैठता। वह अपने जीवन को महत्व देता है और उनको नहीं समझाता जो समझना नहीं चाहते।

यही प्रक्रिया ब्रेन ड्रेन कहलाती है। अर्थात देश से बुद्धिमान व्यक्तियों का पलायन। उस मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण जो उनके साथ उनके पैतृक देश में रोज होता है।

इस प्रकार देश में केवल खुद को देशभक्त या राष्ट्रवादी कहने वाले मूर्ख लोग बढ़ जाते हैं क्योंकि वे अपने देश से चिपक जाते हैं और विदेशों से नफरत करते हैं।

यह लोग बस हंगामा करने, दंगा करने, देशभक्ति के गीत गाने, सँस्कृति की रक्षा के नाम पर आधुनिक और विद्वान लोगो के साथ हिंसा करने, महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझने और धर्म को राष्ट्र से जोड़ने को ही राष्टवाद कहते हैं।

यह नक्शे पर खिंची लाइन को देश कह कर बाकी दुनिया को नीचा दिखाने, समझने पर ज़ोर देते हैं और उसके लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। इनके लिए धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं और इससे वे अपनी गलतियों को भी सही मान कर हमेशा पिछड़े बने रहते हैं।

मुझे हैरानी है कि RSS के राजनैतिक उपभाग BJP ने कैसे अपनी नीतियों के विरुद्ध जाकर ऑनलाइन सरकार और स्मार्टसिटी जैसी आधुनिक परियोजनाओं को बल दिया। आधारकार्ड, डायरेक्ट खाते में सब्सिडी, 100% FDI, कैशलेस इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, शौचालयों का निर्माण, प्रीपेड बिजली, जनसुनवाई app, आवास योजनाएं, आदि जनउपयोगी कार्य कर दिखाए।

लेकिन यह अच्छे संकेत हैं कि हिंदुत्ववादी rss अब अपने मूल्यों से पीछे हट रही है और यह हमारे लिए अच्छे संकेत हैं।

लेकिन सरकार मूर्खता करना भी नहीं छोड़ रही। पहले विमौद्रीकरण में अव्यवस्था, फिर रोडशो, यज्ञ, व ऐशोआराम, सरकार के प्रचार में जनता का धन बर्बाद करना आदि जन विरोधी गतिविधियों ने आरएसएस और BJP के मध्य एक खाई खोदने का काम शुरू कर दिया है जिसका अब मिलाजुला प्रभाव देखने को मिल रहा है।

धार्मिक जड़ता और आरएसएस के 1925 के बने उद्देश्य आज छछून्दर बन कर bjp रूपी सांप के गले में फँस गए हैं। जिसे वह न तो उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है। फिलहाल यह जनता, सब जानती है और यह अपने लिए जो भी चुनती है यह उसकी अपनी इच्छा है जिस पर हम कोई सवाल उठाना उचित नहीं समझते।

कम से कम तब तक जब तक सिविल परीक्षाओं में IAS की तरह देश के नेता नहीं चुने जाते। धन्यवाद! ~ शुभाँशु SC धर्ममुक्त Vegan 2018©