"मत पूछ कुछ भी बारे में मेरे, सच कहता हूं बताना तुझें भी पड़ेगा।
जानेगी जितना तू बारे में मेरे, सच कहता हूं दिल तेरा ही जलेगा।" ~ शुभ्
"बुराई से डरो लेकिन अच्छाई से क्यों डरते हो?" ~ Vegan Shubhanshu Rationalist
"कुछ लोग इतिहास और धर्म का हवाला देकर गलत करने की परम्परा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वह आज भी अपने मुर्दा पूर्वजों से डरते हैं जिन्होंने इनके दिलों में भूतों का डर बैठा दिया है।"
~Vegan Shubhanshu Rationalist
लेकिन इन्हें नहीं पता कि इन्होंने अनजाने में ही सही, लेकिन बदलावों को अपना लिया है। मंदिरो, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिदों में विज्ञान के आविष्कारों जैसे लाऊड स्पीकर, माइक, हारमोनियम, विद्युत चालित यंत्रों, प्रकाश व्यवस्था, पंखा इत्यादि तमाम atheist (नास्तिक) निर्मित वस्तुओं की भरमार है।
साथ ही, धन यानि सरकारी करेंसी जो विज्ञान का ही आविष्कार है अर्थात यह धन नहीं बल्कि धन का bearer चेक ही है को भी मुख्य रूप से अपनाया गया है जबकि पहले ये अनाज या फल के रूप में होता था। कीमती धातुओं और पत्थरों का इस्तेमाल भी काफी बाद में शुरू हुआ था।
मैं किसी भी जाति या धर्म का विरोधी नहीं हूँ लेकिन कुछ गलत होता देख भी तो नहीं सकता। इसलिए मंदिरों के बारे में एक सवाल पूछता हूँ। मंदिरों में चमड़े की बेल्ट और चमड़े के जूते पहन कर आना मना है लेकिन जिस ढोलक और तबले को धार्मिक लोग खूब हाथ मसल मसल कर बजाते हैं वह किन घटकों से बने होते हैं?
धर्म एक कर्तव्य है जो आपको दया, करुणा, विश्वास, और शिक्षाएं देता है। इसीलिए तो इनकी पुस्तकें होती हैं। हम सबको पता है कि हर किसी में कोई न कोई दोष होता ही है तो क्यों नहीं हम नए और पुराने के हिसाब से इन पुस्तकों में से सिर्फ अच्छा ही चुनें?
"सभी धार्मिक पुस्तकें इंसानो ने लिखी हैं।" -थॉमस अल्वा एडिसन।
और यदि एक पुस्तक हजारों हाथों से गुजरी है तो क्या उसमे परिवर्तन (संशोधन) नहीं हुए? हुए हैं और स्वार्थी हाथों ने गन्दी राजनीति के तहत इसे अपने फायदे के हिसाब से बदला। आज भी आप सभी को धर्म के नाम पर लड़वाया जाता है। मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिख हूँ, मैं ईसाई हूँ...क्या कोई भी भारतीय है? यहाँ लोग भूख से और निराशा से मर रहे हैं। कूड़ेदान में कुत्तों के साथ बीन बीन कर खा रहे हैं और हम शादी समारोह में कुन्तलों के भाव खाना बर्बाद कर दे रहे हैं।
अधिक जनसंख्या और लिंग भेद की वजह से गरीबी, बेरोजगारी, गुस्सा, प्रतिस्पर्धा, अपराध, अशिक्षा, यौन अपराध, भरष्टाचार और बेइज़्ज़ती बढ़ रही है। क्या फिर भी विवाह पर इतना धूम धड़ाका करना उचित है? राजाओं ने जनता के धन पर ऐसे विवाह करके ऐश की लेकिन आप तो जनता हैं, राजा बनने का ढोंग क्यों करते हैं? कल फिर आप कहेंगे कि हमें भी श्री कृष्ण की तरह सोलह हज़ार पत्नियां चाहियें।
चीन में 1 से ज्यादा बच्चों वाले परिवारो को सरकारी सुविधाओं से महरूम कर दिया जाता है ताकि देश का विकास हो। यहाँ सुदर्शन जैसे नेता कहते हैं कि हिन्दू भी मुसलमान की तरह 10-10 बच्चे पैदा करें। अरे सुदर्शन जी उनकी देखभाल आप करेंगे क्या?
आप सब जानते हो कि क्या करना है, बस शुरुआत करने से डरते हैं। पहला कदम बढ़ ही नहीं रहा। क्या सबके पाँव भारी हो गए हैं?
मुझे विश्वास है, आप अकेले नहीं हैं। मैं हूँ आपके साथ। और आप मुझे और खुद को निराश नहीं करेंगे।
"बदलाव से मत घबराओ, आज नहीं तो कल इसे आना ही है।"
~ Vegan Shubhanshu Rationalist
आप इसे share करके भी अपना फर्ज अदा कर सकते हैं। याद रखें, बड़ी बड़ी बातें करने से अच्छा है कि उनके अनुसरण की ओर एक छोटा सा कदम बढ़ाएं।