कई तरह के लोग खुद को नास्तिक कह कर प्रसन्न हो लेते हैं जबकि वे जानते ही नहीं कि नास्तिक है किस चिड़िया का नाम?
1. जाति पर गर्व करना (जातिवाद को बढ़ाना), ब्राह्मणवाद का विरोध, आरक्षण का रोना, बुद्ध और भीम की जय-जयकार बसपा का मूल चुनाव प्रचार का मुद्दा है। नास्तिकता का नहीं। जो लोग मूर्ति और तस्वीर प्रेमी हैं वे भी धार्मिकता के अंतर्गत आ जाते हैं। क्योकि उनकी पसन्दीदा मूर्ति/तस्वीर का कोई अपमान करेगा और फिर आप उसकी ले लोगे तलवार और माचिस से। बसपा को आप नास्तिक न समझें, ये लोग भीम और बुद्ध को ईश्वर ही बनाए बैठे हैं और विष्णु का अवतार ही मानते हैं, पाखण्ड, आत्मा, प्रेत इत्यादि सब हैं इनके बौद्ध धर्म में।
बाबा साहब ने कहा था कि मेरी जय जय कार से बेहतर होगा कि आप मेरे बताये गए रास्ते पर चलें।
गौतम बुद्ध ने कहा था कि मेरी कभी पूजा/उपासना/वंदना मत करना।
इनमे से भी कुछ अपवाद हैं जो खुद को बुद्ध वादी कहते हैं लेकिन पाखंड और अंधविश्वास से मुक्त हैं। (अविश्वसनीय लगता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति अकेले रह रहा हो या अपने जैसे लोगों के साथ रहता होगा जो बहुत विरले ही होता है।)
2. कुछ विद्वान😂 हिन्दू/सनातन सम्प्रदाय को अदालत में जाकर संस्थापक न होने का हवाला देकर इसे जीवनशैली साबित करवा लेते है और भाजपा इसे धर्मनिरपेक्ष चुनाव में इस्तेमाल करती है। अब जब सम्प्रदाय नहीं तो आप धार्मिक नहीं और धार्मिक नहीं हैं तो खुद को नास्तिक कहने लगते हैं। (जबकि नास्तिक होना ईश्वर को बिना प्रमाण के न मानना होता है।) इस प्रकार के विद्वान😂 लोगों को सनातनी प्रथम पुस्तक लिखने वाले मनु को इस धर्म का संस्थापक मान लेना चाहिए था, मेरी निजी राय में और तब ये पार्टी औंधे मुहँ जा गिरती। (व्यंग्य शैली में कटाक्ष)
3. नव नास्तिक हर ईश्वर जैसी चीज को इसी सिद्धान्त पर जांचते हैं। जो कि सही है और इसका नाम तर्कवाद हो गया है। तर्कवादी (नव नास्तिक) सकारात्मक, अधार्मिक और विज्ञान कि विधि के अनुसार चलने वाला व्यक्ति होता है। यही सही व्यक्ति है आज के समय में। परन्तु वही जो अच्छे इंसान पहले से हों।
4. कुछ बीच मे लटके खुद को सेक्युलर कह कर बचाने वाले लोग हैं जो दरअसल अग्नोस्टिक हैं यानी मजधार में लटके हुये ये सर्वधर्म समभाव को अपना प्रमुख मुद्दा बनाते हैं और एक-दूसरे के धर्म का मजाक गम्भीरता से उड़ाते हैं। उदाहरण; इफ़्तार की दावत हिन्दू खाने जा रहा है, और भंडारे में मुस्लिम और सिख, ऐसा ही लंगर में भी।
इनका भाई चारा एक दूसरे का त्योहार मनाने, एक दूसरे की कमी/बुराई को बढ़ावा देना, खाना भकोसने, और अन्य धर्म का लड़की-लड़का पटाने और कांग्रेस, सपा का चुनाव प्रचार करने तक सीमित है।
5. सम्प्रदाय और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर एक खत्म हुआ तो दूसरा भी खत्म हो जाएगा।
फिलहाल, ऐसे लोगों से जो नास्तिकता का चोला ओढ़ कर आपको अपने धर्म मे या पार्टी में खींचने में लगे हैं, उनको पहचानें और सावधान रहें। ~ Shubhanshu 2017/08/21 13:16
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं और इनको अंतिम न समझें।
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