धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म, कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना।
व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है।
उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए।
अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है।
परन्तु आज शब्दों के अर्थ बदले जा रहे हैं। लोग पढ़े लिखे की जगह लिखे पढ़े हुए जा रहे हैं तो सम्प्रदाय शब्द बस अखबार की हेडलाइन तक सिमट गया है। सभी जगह हर सम्प्रदाय खुद को धर्म-धर्म चिल्ला कर बता रहा है। English के religion का मूल अर्थ हिंदी में धर्म ही आता है। जब हम english में कुछ लिख कर अनुवाद करते हैं तो वह रिलीजन को धर्म में ही परिवर्तित कर देता है। अतः हम इस शब्द से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं।
हमारा मिशन सम्प्रदाय मुक्त कहा जा सकता है हिंदी में लेकिन क्या लोग इसका अर्थ समझ सकेंगे? अगर हाँ तो मैं अपने स्तर से इस शब्द का भी उपयोग कर दिया करूँगा। आपका ~ Vegan Shubhanshu SC धर्म/सम्प्रदाय मुक्त, सकारात्मक 2018©
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