Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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सोमवार, सितंबर 30, 2019

सुंदरता और रंग का रहस्य ~ Shubhanshu


सवाल: बहुत से लोग खुद काले/बदसूरत हैं लेकिन उनको पसन्द सुंदर और गोरे लोग ही आते हैं। ऐसा क्यों?

शुभ: दरअसल वे खुद को नहीं, दूसरों को देख कर बड़े हुए होते हैं। सुंदरता, गौर वर्ण, सुरीली आवाज, स्टेमिना (नृत्य) आदि आनंद प्रदान करते हैं। जबकि प्रेम पक्की दोस्ती मात्र है। तो प्रेम में तो कोई बंधन नहीं लेकिन सेक्स में है थोड़ा। बाकी दिमाग है, जैसा शरीर वो पसंद करता है, उसको आप और हम बदल नहीं सकते।

देखिये, प्रकृति का नियम है सर्वश्रेष्ठ का चुनाव। सर्वश्रेष्ठ कौन? जिसका तन-बदन मजबूत और एक समान ज्यामिति में हो। यही सुंदरता निर्धारित करता है। रंग गोरा हो तो वह कम मेहनत करने वाले अमीर घर का लगता है अर्थात उसके साथ रहना आराम दायक होगा। मीठी आवाज से आंनद आता है, और झगड़े नहीं होते इसलिये मीठी आवाज वाले लोग भी पसंद आते हैं। इसका पता गाना गवा कर लोग करते हैं। नृत्य का मतलब होता है कि लड़की या लड़का सेक्स के समय थकेगा या नहीं? सबकुछ जो आपको दुनिया में दिखता है उसकी असली जड़ सेक्स ही है।

अब दिमाग इस को डिफाइन नहीं करता। वह इसको बिना आपको चुनाव का कारण दिए आपका sexmate चुन देता है। हर जंतु अपने से बेहतर के साथ सम्भोग करना चाहता है। ताकि बेहतर पीढ़ी विकसित हो। उसी के लक्षण हैं सुंदरता और रंग को देखना और प्रेम करना। इसमें गलत कुछ भी नहीं। बस समझने के लिए विज्ञान का सहारा लेना पड़ सकता है। बहुत कुछ और भी बातें हैं जिन पर पहले भी लिखा जा चुका है अतः अभी यहीं पर विदा लेता हूँ धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

रविवार, सितंबर 29, 2019

प्रकृति प्रेमी होने की सीमा ~ Shubhanshu


बचपन मे मैं भी प्रकृति के पीछे पागल था। लेकिन इतना नहीं कि सीधे शिकारी आदिवासी ही बन जाऊं। आदिवासी भी जानवर नहीं होते। उनकी अपनी सभ्यता होती है। वे भी अपनी परमपरा और अंधविश्वास में लिप्त होते हैं। सबसे ज्यादा अंधविश्वास वहीं से आये हैं।

बनो तो वास्तविक जानवर बनो, आदिवासी नहीं; लेकिन फिर सरकार, सुविधा, विज्ञान, चिकित्सा का उपयोग भी कतई त्यागना होगा। दूरगामी सम्पर्क और सभी आधुनिक कार्य भी त्यागने होंगे। खुले में सोना होगा। शेर, तेंदुए, भेडिये, लकड़बग्घा, सांप आदि से सीधा सामना करना होगा। न हथियार न कोई उपाय करना होगा। भयँकर बीमारियों से मर जाना होगा, बिना कोई दवा खाए।

प्रकृति में मृत्यु दर 100% है। जो इस के विरुद्ध नहीं हो सका वो मर जायेगा। अगर मैं भला मानस हूँ तो मैं वाकई लम्बा जीना चाहूंगा। मानव मृत्यु दर कम करने, अधिक आनन्द लेने के लिये ही प्रकृति से थोड़ा दूर हुआ है। अतः अगर स्वस्थ और प्रकृति प्रेमी रहना है तो आधुनिकता और प्रकृति दोनो में सामंजस्य बैठाना होगा। सिर्फ बातें करके आधुनिकता को कोसने से कोई लाभ नहीं, कहने से पहले करके दिखलाना होगा। ~ Shubhanshu SC 2019©

शनिवार, सितंबर 28, 2019

Narcissism (आत्ममुग्धता) ~ Sbubhanshu


एक मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति खुद से प्रेम करता है। खुद की सफलता पर प्रसन्न होता है। और बेहतर होता जाता है। और तरक्की करता है। खुद का ध्यान रखता है। अच्छा खाता, पहनता है, अच्छी संगत में जाता है। जीवन में और लोगों से वैसे ही व्यवहार करता है जिससे उसे बदले में भी वही व्यवहार मिले। ऐसे लोग ही तो जीवन में सफल होते हैं।

आत्मविश्वास से लबरेज लोगों ने ही प्रेरणा बनकर दुनिया बदली है। नकारात्मक लोग दूसरो को दोष देते हैं जबकि सकारात्मक खुद को। तो जो सकारात्मक होते हैं वे आत्ममुग्ध हो ही जाते हैं क्योंकि उनको खुद को ही बदलने का काम शेष रह जाता है। दुनिया तो हमसे ही बनी है और अगर हम खुद से प्रेम करें तो पूरी दुनिया से कर सकते हैं।

अतः अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर गर्व कीजिये। क्या पता कब आपकी अंतिम रात हो और खुद पर गर्व करने लायक कुछ कर ही न पाओ। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

गुरुवार, सितंबर 26, 2019

सपनो का सौदागर ~ Shubhanshu


दरअसल जो महिला, जैसे माँ, लड़कियों पर पिता की तरह बंधन लगाती हैं, उससे ऐसा आभास होता है कि वे भी पिता जैसा सोचती हैं। लेकिन दरअसल ये एक डर है कि जिस तरह माँ ने पति के घर में एडजस्ट कर रखा है वैसे ही बेटी भी अगर न कर पाई तो उसको भी ससुराल में रखना मुश्किल होगा।

ये गुलामी की सोच, महिला को सदा बच्चा ढोने की मशीन बनाने के कारण पैदा हुई और महिला आज भी उसी परमपरा को धर्म से प्रेरणा पाकर निभा रही है। उस पर गर्व भी कर रही क्योकि महिमामण्डित कर दिया जा जाता है बलि के बकरे की कुर्बानी को बलिदान कह कर।

अतः आत्मनिर्भर न होना, पति के घर में रह कर उसकी गुलामी करना ही मजबूरी बन गया है। इसी मजबूरी में वो दूसरो को भी अच्छा गुलाम बनने को प्रेरित करती हैं ताकि अपने मालिको (सास-ससुर-ननद-पति) को खुश रख सकें। जब भी कोई लड़की अपनी आज़ादी की बात करती है या विवाह के इतर कुछ करने की सोचती, रिस्क उठाती है तो घर समेत सारा समाज कहता है कि आपकी लड़की हाथ से निकल गई। मतलब लड़की कंट्रोल (गुलामी) से निकल गई।

आज़ादी, महिला के लिये अभिशाप समझी जाती है, इस वंशवादी समाज में। इस से निकलने के लिये, 'करो या मरो' की नीति लागू करनी होगी। ये आज़ादी भी कीमत मांगती है। यलगार मांगती है। क्रांति मांगती है।

परिवार को अपनी समाज में इज़्ज़त के अलावा कोई मोह अपने बच्चे से नहीं होता। आप उनके जाल से निकलना चाहते हैं तो मोह अपने सपनो से करो, दुनिया आप पर मोहित हो जाएगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© "सपनो का सौदागर"

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

क्या मूर्ति/चिन्ह/तस्वीरों का प्रदर्शन उचित है? ~ Shubhanshu



किसी के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले फ़ोटो/मूर्ति/चिन्ह का सीधा सम्बन्ध, गुटबंदी करके नफरत करने से होता है चाहे वो कोई भी धर्म या समुदाय का व्यक्ति हो।

इस बात को मुहम्मद ने समझा था और इसको एक प्रयोग से साबित किया था कि मूर्ति/तस्वीर/चिन्ह नफरत की जड़ होती हैं। ये सब राजनीतिक दल केवल दंगा करवाने के उद्देश्यों से बनवाते हैं।

महापुरुषों की जगह पुस्तकों में है।

उनकी अच्छी शिक्षा की जगह हमारे दिमाग में और बुरी बातों की कोई जगह कहीं नहीं होनी चाहिए। तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकेंगे। गांधी/अंबेडकर/पटेल/काशीराम/माया/बुद्ध जैसा महापुरुष/राजनीतिज्ञ या कोई भी देवी-देवता हो, सभी की तस्वीर/मूर्तियों का प्रदर्शन करना, सीधा लड़ाई और नफरत को पैदा करने की जड़ है।

राजनीतिज्ञ जब चाहें किसी से इनको अपमानित करके आप सबका आपस में दंगा करवा कर और दंगा पीड़ितों की मदद करके अपना वोट पक्का कर लेंगे। मरेंगे आपके बच्चे/दोस्त/भाई-बहन, परिजन आदि। घर जलेंगे आपके और आप ही हत्यारों/लुटेरों को वोट देकर सोने से लाद दोगे।

मुझ पर भरोसा न हो तो देखना, कभी दंगों में कोई नेता कभी हताहत हुआ हो तो। दंगों के बाद जो भी आपके पास कंबल/रसद लेकर आये वही है आपका असली दोषी। उसी ने आपका परिवार/घर मकान खा लिया। सोचो, सोचेंगे तभी समझ आएगा कि हम सब कितने बड़े मूर्ख हैं जो इन नेताओं के चक्कर में पड़ जाते हैं। 99% सब एक से हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2019©

रविवार, सितंबर 22, 2019

सर्वोत्तम ही प्रकृति को प्यारा है ~ Shubhanshu



सर्वाहारियो और vegansim की बहस में मामला दरअसल वनस्पति आधारित भोजन या क्रूरतामुक्त जीवनशैली का नहीं होता। दरअसल मामला ego का है। ये सर्वाहारी अच्छी तरह से जानते हैं कि vegan डाइट का फायदा क्या है? बस ये स्वाद और संगत बदलने में कमज़ोर हैं। इसलिये इनको बस भीड़ का साथ अच्छा लग रहा है। हम भी कभी इनकी तरह थे तो कोई बात नहीं। हम भी बस अपनी ईगो ही पेल रहे कि हम ही सही हैं।

और ये तो iq पैमाना है बुद्धि शक्ति का जो सबको खुद को अपने-अपने स्तरों पर सही ही बताता है।

कुछ लोग टट्टी खाते हैं, कुछ खून पीते, कुछ इंसान को खाते, इंसांनो/जानवरों का बलात्कार करते, सीरीयल किलर बनते हैं, तो वो भी खुद को जीवन भर सही ही मानते हैं और गर्व तक करते हैं।

Adolf हिटलर और नाथू राम गोडसे को अपनी करनी पर सदा गर्व रहा था और कोई आश्चर्य नहीं कि हमें भी खुद पर गर्व है। तो इस समस्या का कोई इलाज नहीं और सभी का सर्वाइवल भी सम्भव नहीं। कुछ लोग सच्चाई को पूरा प्रतिरोध देते ही हैं तभी तो इस दुनिया में अच्छाई के साथ बुराई भी डटी रहती है।

कुछ लोग दुनिया को बर्बाद करने के लिए बच्चे पैदा करके गर्व करते हैं और कुछ लोग दुनिया को बचाने के लिए ही कभी भी बच्चा न पैदा करके गर्व करते हैं।

कुछ लोग धर्मयुक्त होकर कत्लेआम, जातिवाद, नफरत और राजनीति करके गर्व करते है तो कुछ लोग धर्ममुक्त होकर इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं और गर्व करते हैं धर्ममुक्त जयते कह कर।

कुछ लोग नग्न होने को शर्म का कारण बताते हैं और जबरदस्ती शो औफ करके धन बर्बाद करते हैं और उसमें गर्व करते हैं तो कुछ लोग नग्न होने पर गर्व करते हैं क्योकि शरीर ढकने के लिए नहीं बना, उसे हड्डियों को बनाने के लिए धूप की ज़रूरत होती है और पसीना सुखाने के लिए हवा की भी। साथ ही वस्त्र थोपे नहीं जा सकते, ये सदा ही वैकल्पिक रहेंगे। कोई इसे रोकेगा तो ये मानवाधिकार की हानि होगी।

कुछ लोगों को विवाह करना धार्मिक और कर्तव्यों का निर्वाह लगता है क्योकि वे वंशवादी हैं और इसके आधार पर अपने खून पर गर्व करते हैं जबकि दूसरी तरफ विवाहमुक्त लोग हैं जो इसे समस्त मुसीबतों की जड़ मानते हैं और इससे दूर रह कर ही स्वतन्त्र और गौरवशाली महसूस करते हैं क्योकि ये प्रकृति के बहुविवाह नियम के खिलाफ जाता है और इंसान कभी भी एक ही इंसान से बंधा नहीं रह सकता। इसीलिये रोज तलाक और क्लेश होता है जिसमें हजारों जाने चली जाती हैं और गर्भवती महिलाओं की हर 5 मिनट में मौत हो जाती है।

प्रकृति का नियम है "सर्वोत्तम की उत्तरजीविता" और ये परिणाम केवल समय ही दिखाता है। नमस्ते सभी लोगों। बहुत अच्छा लगा आप सबसे बात करके। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शनिवार, सितंबर 21, 2019

हिंदुत्व बनाम वीगन ~ Shubhanshu



हिन्दू: बीफ ले जा रहे?

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: नहीं, मटन है।

हिन्दू: जाओ।

मुस्लिम ट्रांसपोर्टर: बन गए चूतिया साले ढोंगी।

(थोड़ा आगे जाने पर)

वीगन: मांस ले जा रहे?

ट्रांसपोर्टर: हाँ। लेकिन मटन है। बीफ नहीं।

वीगन: किसका लेकर जा रहे उससे मतलब नहीं। फ़ेसबुक/व्हाट्सएप है? मेरी पोस्ट पढो। ये सब छोड़ दोगे।

ट्रांसपोर्टर: आप वाकई मारोगे नहीं?

वीगन: नहीं, पहले हम आपको प्यार से हर बात समझाएंगें। अगर फिर भी नहीं समझे तो आपको हिंदुओ के पास, बीफ ले के जा रहे, कह कर छोड़ देंगे। 😂😂

ट्रक का नंबर नोट कर लिया और फ़ोटो ले लिए हैं। वैसे भी गोवंशीय पशु वध कानून की गौहत्या निवारण अधिनियम 1955, धारा 3, 5, 8 में अपराध है। 7 साल जेल जाओगे। कुछ नहीं तो हम पुलिस को ही फोन कर देंगे। हम हिंसा नहीं करते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© 😂😂😂

शुक्रवार, सितंबर 20, 2019

आर्थिक मंदी का जिम्मेदार कौन? ~ Shubhanshu



जनता के संतृप्त हो जाने के कारण नए उत्पादों की बिक्री न होने से जैसे ऑटोमोबाइल आप एक बार लेते हो या सायकिल तो वह वर्षों तक दोबारा खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इनका सेकेंड हैंड बाज़ार भी होने के कारण लोग इन से संतुष्ट हो जाते हैं। सड़कों पर भी एक सीमा से ज्यादा वाहन ट्रैफिक जाम करते हैं इसलिए लोग वापस पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर आ जाते हैं और इससे प्रदूषण भी कम हो जाता है।

कभी न कभी इस तरह के हालात आने ही हैं। ये चक्र चलता ही रहता है। इस तरह की घटना से मुक़ाबले के लिये सरकार की बड़ी घोषणाएँ जो व्यापार जगत को आर्थिक मदद देकर उनको बाज़ार में बनाये रखने में मदद करेगी।

1. कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती ; कंपनियों पर कर की दर 25.17% ; दूसरी कोई छूट न लेने पर 22% ; कोई मैट नहीं ।

2.मैनुफैक्चरिंग में निवेश करने वाली नई कंपनी पर कॉरपोरेट टैक्स सिर्फ 17.01%

3. MAT की दर 15%

4. जो कंपनियाँ बाजार से अपने शेयरों को वापस ख़रीदने में निवेश करना चाहती है, उनकी इस ख़रीद से होने वाले मुनाफ़े पर कोई कर नहीं ।

5. कृषि क्षेत्र के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र भी निवेश योग्य धन के मानदंड पर अब इस क्षेत्र के लिये तक़रीबन सालाना 1.45 लाख करोड़ की राजस्व की छूट दी गई है । 

यदि सरकार न हो तो इस लाइन में लगा व्यापार जगत बर्बाद हो सकता है। आपकी मदद करने के लिये ही सरकार का निर्माण आपने ही किया है। आप सब अपनी ही मदद कर रहे हो टैक्स अदा करके। नकारात्मक सोच वाले इसमें भी कुछ न कुछ गंदगी खोज ही लेंगे क्योंकि उनको वही पसंद है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

सोमवार, सितंबर 16, 2019

असफल राजनीति ~ Shubhanshu


दलाल: मैंने बसपा को वोट दिया था इसलिये मैं भाजपा को कोसने का हक रखता हूँ।

शुभ: मतलब बसपा आपके वोट देने से भी हार गई?

दलाल: जी हाँ।

शुभ: क्यों?

दलाल: क्योंकि भाजपा को पूरे देश में सबसे अधिक वोट मिले हैं। बसपा को कम वोट मिले।

शुभ: इसका मतलब है कि बसपा की कोई इज़्ज़त नहीं करता, भाजपा की सब करते हैं तभी सबने उसे वोट दिया होगा?

दलाल: भाजपा को किसी ने वोट नहीं दिया। ये सब EVM में गड़बड़ी करके जीती है।

शुभ: मतलब आपने जो वोट दिया वो भाजपा को चला गया?

दलाल: हाँ।

शुभ: मतलब आपने ही भाजपा को वोट देकर जिताया है?

दलाल: No Comments!

शुभ: कांग्रेस का राज जब था तब अन्नाहजारे का आंदोलन हुआ। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये ही न? फिर उस भ्रष्टाचार वाली सरकार को हटाने के लिए जनता ने क्या चुना?

वही जो उस समय हजारे के आंदोलन में वादे करने आया। वो bjp का ही कोई नेता था जो उस समय live गाड़ी से आया था आंदोलन स्थल पर। जिसे उल्टे पांव वापस किया गया था।

जब जनता कांग्रेस पर थूक रही थी तब विकल्प bjp ही थी क्योकि वो  टक्कर की थी और वही अन्ना के आंदोलन को सपोर्ट करी थी। इसमें EVM दोषी कैसे हुई? तर्क है कोई?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब कई सालों से रो रहे हो कि EVM से चुनाव नहीं करना है, बैलेट से करना है तो वोट देने क्यों गए? जब वोट भाजपा को ही जाता है तो वोट देकर भाजपा को जिताने आखिर क्यों गए आप?

दलाल: No Comments!

शुभ: बसपा, कांग्रेस और बाकी सारे विपक्षी दल मिल कर भी EVM में गड़बड़ी क्यों नहीं कर पा रहे? आप लोग भी ऐसा करके जीत जाते? पिछले बहुत सालों से EVM पर शक किया जा रहा है फिर भी हर बार भाजपा ही क्यों सेटिंग कर लेती है? 11 दल मिल कर भी सेटिंग नहीं कर पा रहे और जो पार्टी जीत गई, उसने ही सेटिंग कर रखी है, ये कैसे साबित करोगे?

दलाल: चुनाव आयोग मिला हुआ है भाजपा से।

शुभ: जी बिल्कुल, तभी तो EVM में सेटिंग होगी। आप लोग क्यों नहीं मिल जाते चुनाव आयोग से?

दलाल: No Comments!

शुभ: कोई बात नहीं, होता है। ये बताओ जब चुनाव आयोग ने कहा कि 1 करोड़ रुपये देगा, EVM हैक करके दिखाओ। तब क्या हुआ था? कोई आगे क्यों नहीं आया?

दलाल: वो कह रहा था कि EVM की सील तोड़े बिना उसे हैक करो। बिना खोले EVM हैक कैसे हो सकती है?

शुभ: बिल्कुल, अगर EVM खोली जा सकती है तो उसमें गड़बड़ी करना सम्भव है। लेकिन EVM खोलना तो अपराध है। जिस कम्पनी ने इसे बनाया है उसने इस पर सुरक्षा सील लगाई है जिसे तोड़ना अपराध घोषित है। चुनाव आयोग भी उसे नहीं खोल सकता और न ही कम्पनी अपना पेटेंट रिवर्स इंजीनियरिंग से सुरक्षा के लिए बर्बाद कर सकती है।

बोत्सवाना सरकार इसी कड़ी सुरक्षा के कारण भारत की प्रसिद्ध EVM खरीदने भारत आई। उसने सुरक्षा की पुष्टि हेतु इसे खोलने का आवेदन अदालत में किया और अदालत ने सारी जानकारी लेने के बाद सुरक्षा नियमों के कारण EVM को खोलना अपराध है इसलिये आज्ञा नहीं दी। अब मुझे बताइये EVM को कैसे खोला जा सकता है बिना अपराध किये?

दलाल: अगर कोई अपराध करके इसे खोले, छेडख़ानी करके वापस बन्द कर दे और सुपरवाइजर को खरीद ले तो धांधली हो सकती है।

शुभ: मतलब आपको धांधली करके के सब तरीके पता हैं। फिर भी असफल? कमाल है। चलिये ये बताइये VVPAT क्यों लगाया जाता है?

दलाल: कोई भी गड़बड़ी की गुंजाइश न रह गई हो इसलिये एक पर्ची प्रिंट होकर पक्का करती है कि वोट आपके चुने हुए प्रत्याशी को ही गया है।

शुभ: कमाल है, आप तो वाकई समझदार हैं। जब कोई गड़बड़ी हो ही नहीं सकती है तो भी आप EVM ban करो चिल्ला रहे हैं?

दलाल: VVPAT की सारी मशीनों की पर्चियों को क्यों नहीं गिनता EC?

शुभ: आप लोग अदालत गए थे। उधर से क्या जवाब मिला?

दलाल: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हर मशीन की पर्ची गिनी जाएगी तो फिर चुनाव EVM से कराने का क्या फायदा? रैंडम कोई भी 5-5 मशीनें गिनती के लिए उठा लीजिये और उनसे EVM का मिलान कर लें। कोई भी मशीन गड़बड़ी करी हुई होगी तो वो उनमें से पकड़ में आ जायेगी।

शुभ: फिर क्या हुआ? पकड़ी गई गड़बड़ी?

दलाल: नहीं। सुप्रीम कोर्ट भी EC और भाजपा से मिली हुई है। 😂

शुभ: गजब स्टेटमेंट। भाजपा ने पूरा देश खरीद लिया और आप हाथ में लंदन पकड़े खड़े रह गए? अब आप आखिर में ये भी कहोगे की भाजपा ने मुझे भी खरीद लिया है।

दलाल: वो तो है ही। तुझे कभी जय भीम कहते नहीं देखा, सवर्णों जैसा नाम है, सरकार की दलाली कर रहा है, कानून, सुप्रीम कोर्ट और सिस्टम को ठीक बताता है। तू है ही उससे मिला हुआ।

शुभ: सही पकड़े। आप वाकई विद्वान हैं। कमाल है, सब भाजपा से मिले हुए हैं और आप अकेले कैसे छूट गए भाई साहब? आपके अंदर टेलेंट है। नाम में जाति खोजने का। हारने का। खिसियाने का। हर आदमी जो आप से सवाल करे उसे भाजपा का भक्त बताने का। बेशर्मी का। झंड करवाने का। सिर्फ जाति के नाम पर वोट लेने का। विकास को अपने उस पर रखने का। नाम से ही सवर्णों से इतनी नफरत करने का कि देखते भी नहीं कि सामने बहुजन है या सवर्ण। कीचड़ से कीचड़ धोने का टैलेंट है आपमें। जय भीम।

दलाल: अब तू क्यों बोला जय भीम?

शुभ: क्योंकि आपको दिखतां नहीं कि आपके सामने एक बहुजन ही खड़ा सवाल कर रहा है। विचार तो आप देखते नहीं। नाम से जाति पता करके इज़्ज़त उछालने की ब्राह्मणवाद नीति अपना ली है। जब तक कोई जय भीम न कहे वो बहुजन हो ही नहीं सकता आपके हिसाब से तो साबित करने के लिए बोल दिया। प्रमाणपत्र आप मांगते ही कहाँ हो किसी से जो आपको दिखाऊँ?

दलाल: अरे, फिर ऐसा नाम क्यों रखा?

शुभ: जाति जातिप्रमाण पत्र से पता चलती है। नाम से नहीं। इसीलिये मैंने ये नाम रखा ताकि कोई नाम में जाति खोज कर अपनी जातवादी सोच सामने दिखाए और मैं उसको अपनी ज़िंदगी से हटा दूँ। जो जातिवादि सवर्ण हैं वे मुझसे नफरत न करें और जो बहुजन है उनके अंदर कितना जातिवाद भरा है वो भी दिख जाए।

दलाल: No Comments!

शुभ: आशा है आज आपको थोड़ी शर्म आयी होगी। मुझे तो आपको शर्मिंदा करके बड़ा अच्छा लगा क्योंकि मैंने देख लिया कि क्यों बसपा हारती है। आप जैसे घटिया लोगों के कारण। जो बस अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं। सत्य बोलना नहीं। जब तक बसपा सत्ता में नहीं है, बसपा ने कितने लोगों की मदद करी पार्टी फंड से? कितने लोग बसपा को बहुजन प्रेमी मानते हैं? क्या सिर्फ जयभीम बोलने भर से? मैं राजनीति में विश्वास नहीं करता। कभी वोट नहीं देता। आखिर क्यों? सोचना कभी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

हमारी 10 विशेषताएं ~ Shubhanshu


1. हमारे यहाँ बिना जाँच पड़ताल के कोई खबर नहीं फैलाई जाती है क्योंकि किसी भी प्रकार की Fake News फैलाना अपराध है। कभी गलती हो तो टोक दें।

2. हमारे यहाँ किसी व्यक्ति की जय नहीं बोली जाती है क्योंकि किसी व्यक्ति की जय बोलना दरअसल उसे परफेक्ट बताना है जबकि परफेक्शन अस्थाई होता है।

3. हमारे यहाँ नेताओं को कोसा नहीं जाता है क्योंकि जनता ही राजनैतिक पार्टियों को चुनती है। बेहतर होगा कि खुद को कोसें। सुधार होगा।

4. हमारे यहाँ कम्युनिज़्म की महिमा नहीं गाई जाती है क्योंकि इसकी सच्चाई 'Black book of Communism', 'पूंजी', 'कार्लमार्क्स और बुद्ध', 'Secret document of maoism' में दर्ज है।

5. हमारे यहाँ किसी धर्म/धम्म का प्रचार नहीं किया जाता है क्योंकि इंसान को इंसान बने रहने के लिए किसी धर्म की आवश्यकता नहीं है।

6. हमारे यहाँ महिलाओं के लिये उच्च स्तरीय सलाहकार मौजूद हैं और हम महिलाओं को पुरुषों के समान दिए गए अधिकारों की वकालत करते हैं।

7. हमारे यहाँ पशुओं का विशेष सम्मान किया जाता है क्योंकि वे असहाय और मानव द्वारा पीड़ित हैं। वे अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर पा रहे।

8. हमारे यहाँ पशुक्रूरता मुक्त (Vegan/वीगन) जीवन शैली को बढ़ावा दिया जाता है क्योंकि मानव को किसी की लिखित सहमति के बिना किसी पशु से किसी लेनदेन का हक नहीं है।

9. हमारे यहाँ विज्ञान, समानता, न्याय, कानून, स्वास्थ्य, नवीन खोजों, उपायों और वैज्ञानिक सिद्ध अव्यक्तिवादों का खुल कर ज्ञान और अनुभव बाँटा जाता है क्योंकि यही भविष्य हैं।

10. हमारे यहाँ धर्मों, रीतिरिवाजों, सामाजिकता, अंधविश्वास, अन्धविरोध और राजनैतिक पार्टियों/संगठनों और उनके दलालों की पोल खोली जाती है क्योंकि ये देश की दीमक हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt (10 commandments) 2019©

गुरुवार, सितंबर 12, 2019

एक विद्वान से भेंट ~ Shubhanshu


विद्वान: तू धर्ममुक्त नास्तिकों और Scientific Antinatlist Vegans को बुद्धिमान बता रहा है, साबित कर।
शुभ: 😂 ईश्वर, अल्लाह, god, भूत, प्रेत, पुनर्जन्म, प्रार्थना आदि वास्तविक हैं?
विद्वान: हाँ, और क्या?
शुभ: कभी देखा इनको? क्या भौतिक, रसायन, जीवविज्ञान में इसका समर्थन देखा आपने?
विद्वान: देखा तो नहीं, लेकिन ये वैज्ञानिक मूर्ख होते हैं। क्या वो बच्चा एक अकेली मादा से बना के दिखा सकते हैं?
शुभ: 😂 जी हाँ, क्लोनिंग इसी विधि का नाम है। केवल मादा के ही शरीर में बिना नर के बच्चा पैदा करना अब सम्भव है।
विद्वान: ओ तेरी! अबे इतनी knowledge लाता किधर से है?
शुभ: 😂 दूध और अंडा, आपके अनुसार जूस/फल/सब्जी हैं?
विद्वान: हाँ, और क्या? दोनो पेड़ पर लगते हैं।
शुभ: 😂 अच्छा था, क्या जंतुविज्ञान और वनस्पतिविज्ञान में कोई अंतर नहीं है?
विद्वान: नहीं, botanists और zoologist एक ही काम तो करते हैं। दोनो मानव के लिए भोजन बनाते हैं।
शुभ: 😂 अच्छा था, फिर बावर्ची क्या करता है? छोड़िये, मानव भी तो zoology में दर्ज एक जंतु ही तो है। वह भी सर्वाहारियो जैसे भालू, कुत्ते आदि का भोजन है। आप भी सर्वाहारी होने का दावा करते हैं, क्या समानता है आपमें और उनमें?
विद्वान: मेरे मुंह में केनाइन दांत है, जो इसका प्रमाण है।
शुभ: 😂 अच्छा था, कहाँ? मुझे तो नहीं दिख रहा।
विद्वान: अरे ठीक से देखो, बहुत छोटा सा है, हल्का सा नुकीला।
शुभ: 😂 हाँ, दिख गया कितने बड़े वाले हैं आप। सर्वाहारी। 😂 तो मानव को कब से खाना शुरू कर रहे हैं?
विद्वान: मानव अपनी ही प्रजाति को क्यों खाने लगा? भालू, भालू को, और कुत्ते, कुत्ते को नहीं खाते।
शुभ: सही पकड़े, अब ये बताओ, आदमख़ोर को मृत्युदंड की सज़ा क्यों दी जाती है यदि मानव, मानव को नहीं खाता? 😂 कहीं मृत्युदंड के डर से तो नहीं खा रहा इंसान सबके सामने? बहुत से रेस्टोरेंट इंसान का मांस बेचते और बहुत से लोग इंसान को खाते पकड़े गए हैं विश्व भर में। कल को आपको कोई खा जाए तो उसका पेट भरेगा। रोकना मत।
विद्वान: अबे, ये तो मैने सोचा ही नहीं।
शुभ: सोचने के लिये बुद्धि चाहिए होती है महोदय।
विद्वान: लेकिन फिर भी इंसान सबसे बुद्धिमान प्राणी है। आप बहुमत का विरोध कैसे कर सकते हो?
शुभ: इंसान की प्रजाति ही बुद्धिमान होती तो मानव अपनी ही पृथ्वी की जान का दुश्मन न बना होता। सज़ा और कानून न होते। झूठ, फरेब, बालत्कार, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, धर्म के नाम पर कत्लेआम न होते मानवों में। मानव खतरनाक है, अपनी खुद की प्रजाति, जन्तुओ और वनस्पति समेत पृथ्वी के लिए भी। ग्लोबल वार्मिंग बुद्धिमान मानव की मेहनत का ही परिणाम है।
विद्वान: फिर हम सब मूर्ख हैं क्या?
शुभ: सब नहीं, 96% इंसान। इसी को जांचने के लिये IQ test लिया जाता है। औसत IQ इसी के आसपास आंकड़े देता है विश्व भर में। केवल 4% लोग ही सफल होते हैं जीवन को ecofriendly, healthy और wealthy रूप से जीने में क्योंकि इनमें ही सर्वोच्च बुद्धि होती है। कुछ और साबित करना हो तो कहिये!
विद्वान: न, मैंने आपसे साबित करने को कह कर अपनी ही झंड करवा ली। आप 4% वाले लग रहे हो। माफ कर दे यार!
शुभ: कोई बात नहीं, इसी बहाने आपको कुछ जानने को मिला और मेरा अनुभव बढ़ा। आपको धन्यवाद! 

बुधवार, सितंबर 11, 2019

Unethical Selective Empathy ~ Shubhanshu


अनैतिक चुनिंदा दया (Immoral or unethical Selective Empathy) उन लोगों पर लागू होती है जो गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज करें। जैसे सर्वाहारी। पेड़-पौधे और जानवर को समान मानते हैं लेकिन खुद को अलग। उनके लिये एक कुत्ता और आम एक जैसे हैं लेकिन मानव दूसरे ग्रह आया कोई तीसरी प्रजाति है। उनकी नज़र में वनस्पति विज्ञान और जंतुविज्ञान समान है लेकिन जंतुविज्ञान में मौजूद मानव कोई तीसरी ही चीज है। मानव को कोई गाली भी दे दे तो उसके लिये सज़ा है लेकिन अपनी ही किंगडम में मौजूद करोड़ो जंतु प्रजातियां उनके लिये भोजन हैं।

कानून भी सिर्फ पशुक्रूरता अधिनियम बनाता है वनस्पति क्रूरता अधिनियम नहीं क्योंकि वो वनस्पति की जगह जन्तुओ को मानव समान समझता है, और केवल उनको बिना कष्ट दिए मारने (Humane Killing, Pain less killing) की अस्थायी छूट देता है ताकि धर्मनिरपेक्ष कहला सके। जिसका फायदा उठा कर हलाल मांस एक धार्मिक समुदाय बेच रहा है। नए अध्ययन साबित कर देंगे कि हलाल करने का तरीका दर्दरहित नहीं है।

लेकिन unethical सलेक्टिव करुणा वाले लोग मानव को ही दया का पात्र मानते हैं। जैसे ही पशुओं को भी मानव समान बता कर उनके अधिकारों की रक्षा का कानून बना है, बताओ तो ये गायब हो जाते हैं या इसका कोई जवाब ही नहीँ देते।

उनको मानव पर तो दया आती है लेकिन पशुजगत पर नहीं। लेकिन जैसे ही उनको पशुजगत पर दया करने वाले मिलते हैं उनको तुरन्त पेड़ पौधों पर दया आने लगती है और वे उपवास शुरू करके बिना भोजन के रहने लगते हैं। 😂

क्या वाकई मानव पर दूसरा मानव दया करता है? फिर कानून में हत्या, बलात्कार, चोरी, गुलामी करवाने पर सज़ा क्यों है? क्या यह मानवता, धर्म या डर से उतपन्न दिखावे की भावना तो नहीं? या इंसान पशुओं पर क्रूरता करते-करते अपनी मानवता ही खो चुका? आस्तिकों (आस्तिक स्वर्ग-नर्क के लालच में दया दिखाते हैं) के अलावा जो नास्तिक चुनावी पार्टी, संगठन से जुड़े हैं वे अपने सदस्यों की संख्या व वोट बैंक के लालच में मानवता का ढोंग तो नहीं कर रहे?

दरअसल इस तरह के लोगों के पास अधिक बुद्धि नहीं है। जगदीश चंद्र बसु के प्रयोग ने वनस्पति के अधूरे तंत्र को दर्शाया था जो कि बिना मस्तिष्क के था। उन्होंने क्रिस्कोग्राफ को मस्तिष्क की तरह प्रयोग किया और प्रोसेस डाटा को विश्लेषित करके उनके संवेदों को परिभाषित कर दिया। उनका प्रयोग पौधों के अवशेषी अंग को खोजने का था यानि बिना मस्तिष्क का विद्युत सांकेतिक सिस्टम। जो बिना मस्तिष्क के कुछ महसूस करने के लिए बेकार था और केवल प्रतिरक्षा तंत्र की तरह ही कार्यकारी है।

बाकी बुद्धिहीन लोगों ने बिना इस बिंदु को पकड़े इस प्रयोग को गलत तरीके से सत्य मान लिया कि पेड़ों में भी जन्तुओ जैसी भावना और दर्द होता है। अधिकतर विश्व उस समय तक मांसाहारी था तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया और इसका इस्तेमाल vegan लोगों को चिढ़ाने में किया जाने लगा। लेकिन मैं उन मूर्खों में से नहीं हूँ जो बिना तर्क के कोई बात मान जाऊं।

बिना मस्तिष्क के जो क्रिया शरीर करता है उसे रिफ्लेक्स कहते हैं। जिस तरह मांसपेशियों की एक मेमोरी होती है उसी तरह वनस्पतियों में भी एक अधूरा सिस्टम होता है जो उनको खुद को रिपेयर करने में मदद करता है। ये सिस्टम संकेत भेजता है सीधा कोशिकाओं को और वे रोबोट की तरह पहले से ही कोशिका मेमोरी के तहत पेड़ को रिपेयर कर लेती हैं। जबकि दर्द व भावना का विद्युत संकेत बिना मस्तिष्क के प्रोसेस नहीं हो पाता और बेकार हो जाता है। इसलिये पौधे कुछ महसूस नहीं करते।

छुईमुई की पत्तियों में एक जल प्रस्फुटन सिस्टम होता है जिसके कारण वह एक सेंस पैदा करता है और छूने पर जल पत्तियों से निकल कर वापस तने में चला जाता है, इसलिए पत्तियां मुरझा जाती हैं।

अब ये सम्वेदना के  संकेत वाला सिस्टम है क्यों जब काम का नहीं? दरअसल, जब जैवविकास हो रहा था तब तुक्के (उतपरिवर्तन) से इस तरह के बिना मस्तिष्क वाले जीव उतपन्न हुए। मस्तिष्क के न होने के कारण एक नया प्रतिरक्षा तंत्र वाला जीव पैदा हुआ। वनस्पतियों की प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति के कारण ही समस्त (99%) औषधियों का निर्माण वनस्पतियों से ही किया जाता है।

ये नए जीव भागते नहीं थे, देखते नहीं थे, इनकी कोई भी इंद्री नहीं होती है। (इंद्री बिना मस्तिष्क के हो ही नहीं सकती)। इनमें कई प्रजातियों का विकास हुआ। जिनमें स्वपोषी, परपोषी, मृतोपजीवी तथा सूक्ष्मजैविकी (microbiology) नाम की प्रमुख शाखाएँ हैं।

● स्वपोषी : हरित लवक (chlorophyll) वाले पौधे प्रकाश संश्लेषण करके सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करके ज़मीन में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते और संग्रह करते हैं। सबसे ज्यादा मात्रा मे यही पृथ्वी पर मौजूद हैं। पानी में भी ये शैवाल (algee) के रूप में होते हैं। यही हवा और पानी में ऑक्सिजन के निर्माता हैं जबकि समस्त जंतुजगत कार्बन डाई ऑक्साइड ही छोड़ सकता है। रात में यह श्वसन करके कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़ों से समस्त जन्तुओ को भोजन मिलता है और सांसें भी। जन्तुओ के बिना पेड़ पौधे भी नष्ट हो जायेंगे। दोनो एकदूसरे के पूरक हैं।

● परपोषी: अपना भोजन दूसरों से लेते हैं। जैसे मांसाहारी पौधे, अमर बेल आदि

● मृतोपजीवी: कवक, फफूंद, मशरूम आदि!

● सूक्ष्मजीव: इनमें सभी प्रकार के बैक्टीरिया आते हैं।

ये सभी पादप (फ्लोरा) के अंतर्गत आते हैं क्योंकि इन सभी में वनस्पति कोशिका पाई जाती है। वनस्पति कोशिका में सेलुलोस की बनी बाहरी दीवार होती है।

वनस्पतियों की खास बात यह है जो उनको जंतुओं से अलग करती है वह है मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का न होना। जो उनको एक जैविक निकाय (बायो सिस्टम) से अधिक कोई व्यक्ति नहीं साबित करती। साथ ही प्रकृति में मौजूद 99% जंतु वनस्पति को ही भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं जो कि प्रमाण है कि प्रकृति ने भोजन के रूप में केवल वनस्पतियों को ही बनाया है। जंतुओं को नहीं।

1% मांसाहारी (जैसे शेर व बिल्ली परिवार के अन्य सदस्य) और सर्वाहारियो (भालू, कुत्ता आदि) में शिकार करने के लिये ज़रूरी हथियार उनके शरीर में ही उगे होते हैं और उनकी लार में कीटाणु नाशक तत्व होते हैं। उनका पाचन तंत्र छोटा और मांस पचाने के अनुकूल होता है। जबकि herbivores (vegan) जंतु के शरीर में विपरीत लक्षण होते हैं।

अतः जो जिस भोजन के लिए बना है उसे वही करना चाहिए। यह मजबूरी है न कि चुनाव। चुनाव होता है एक समान वस्तुओं में से जो एक दूसरे के compatible हों। न कि किसी के हक को मारना। आप गोल छेद में चौकोर छड़ नहीं घुसा सकते।

जो लोग अब भी अपनी अनैतिक (unethical) चुनिंदा करुणा पर अड़े हैं, उनसे चलते-चलते एक सवाल:

प्रश्न: यदि आपके सामने आपके अधेड़ उम्र के माता/पिता, पड़ोसी, दोस्त, पालतू कुत्ता, सेब, रखा हो और आपको भूख लगी हो तो क्या करोगे?

PS: कुछ चुनोगे तो सलेक्टिव एमपेथी के शिकार हो जाओगे और अगर नहीं तो भूखे मरोगे। भोजन में ethically सलेक्टिव होना ही पड़ता है, ये याद रखिये। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

Note: Selective Empathy का तातपर्य है कि हर जंतु/वनस्पति अपने करीबी के प्रति अधिक दयावान व सहज होता है। उदाहरण के तौर पर इंसान अपने करीबी इंसान के प्रति पहले मानवता दिखाता है और पशु के प्रति बाद में। उसके बाद उसे छोटे जंतुओं के प्रति दया दिखती है और सबसे अंत में वनस्पतियों के प्रति। अर्थात सबसे कम दया इंसान पेड़-पौधों के प्रति दिखाता है। इसीलिये अगर वनस्पति जंतु भी होती और हम मांसाहारी भी होते तो भी हम पेड़-पौधे ही खाते न कि पशु।

पृथ्वी गोल है या गुम्बदाकार? ~ Shubhanshu


सरफेस टेंशन के कारण हर पिंड गोल हो जाएगा अगर कोई और गुरुत्वाकर्षण उसे अपनी ओर न खींचे। उदाहरण, सभी तारे और ग्रह। अब पृथ्वी भी भीतर से लावा भरी है तो ये कुछ अलग तो है नहीं। इसलिये पृथ्वी भी spherical ही हुई। अब कोई सवाल ही नहीं उठता। जो अन्य बातें समझ न आ रही हों तो स्पेस science की पढ़ाई करें। हर देश की अंतरिक्ष संस्था ने नासा के दिये सुबूतों को खुद अपने यान भेज कर जांचा है। अतः फ्लैट अर्थ सोसाइटी के संस्थापक ने भी अपने चपटी धरती वाले दस्तावेज जला कर आत्महत्या कर ली थी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

मंगलवार, सितंबर 10, 2019

क्या रक्तदान करना Vegan है? ~ Shubhanshu


सौम्यध्रुव प्रेम: क्या रक्तदान vegan है?

शुभ: रक्तदान चूंकि स्वयं किसी को दिया जा रहा है तो यह क्रूर नहीं है। vegan का मतलब है पशुक्रूरता मुक्त जीवन। दूध जानवर का है। उससे बिना अनुमति के लेना, उसका अपमान, अपराध और उसके बच्चे के साथ क्रूरता है। किसी के भी जीवन में दखल देना, बांधना, कैद करना, उससे कुछ लेना, काम लेना आदि सबकुछ क्रूरता है। जानवर की जगह इंसान रख कर देखिये समझना आसान होगा।

सोम्यध्रुव प्रेम: मुझे तो लगा कि शाकाहारी होना vegan होता है।

शुभ: न न 2 हिस्से हैं इसके। एक है भोजन और दूसरा है जीवनशैली। भोजन के रूप में पशुओं से बिना लिखित अनुमति के कुछ लेकर हम पशुक्रूरता करते ही हैं तो वो भी nonvegan फ़ूड कहलाता है। दरअसल vegan भोजन को प्लांट based डाइट कहा जाता है। केवल भोजन से vegan बने लोगों को Dietary Vegan कहा जाता है जो कि चमड़े, रेशम, लाख आदि अखाद्य पशुउत्पाद का प्रयोग करके भी vegan कहे जाते हैं लेकिन पथ्य vegan केवल।

इसी सिद्धान्त पर किसी का वीर्य उसकी अनुमति से निगलना, किसी लड़की का दूध उसकी अनुमति से पीना vegan है। इसे एथिकल vegan होना कहते हैं। यही अगर पशु का है तो vegan नहीं है। क्योंकि वह आपकी भाषा में कभी भी अपनी सहमति नहीं दे सकता। अतः ये सब पशुक्रूरता से ही जुड़ा है।

अगर ऐसा न हो तो हम अपनी लार भी न निगल पाते और न ही अपनी माँ का दूध ही पी पाते। अपना खून, दूध और आंसू, वीर्य, नाक आदि का सेवन vegan है और किसी दूसरे मानव का भी अगर वह आपको खुशी से दे।

जब हम एथिकल Vegan होकर मानव के बॉडी fluid निगलते हैं तो वह प्लांट बेस्ड डाइट में नहीं आता लेकिन नैतिक (एथिकल) रूप से vegan ही रहता है। चूंकि रक्त, मानव दूध, वीर्य, आँसू, पसीना आदि एक व्यस्क व्यक्ति के लिये कोई भोजन का रूप नहीं हैं, इसलिये इनको भोजन नहीं माना जा सकता। लेकिन चूंकि आनन्द के लिये या अनजाने में इनका सेवन हो जाता है तो आप इथिकल vegan रहेंगे ही।

इसी कड़ी में मच्छर, मक्खी, कीड़े जो आपको काटते हैं, जानवर जो आपको नुकसान पहुँचा रहा है को मारना आत्मरक्षा में आएगा और नैतिक रूप से वह जंतु अपनी मौत व पीड़ा का स्वयं जिम्मेदार होगा और आप vegan ही बने रहेंगे।

यदि इसके एक्सट्रीम स्तर पर जाएं तो अगर कोई मानव अपना मांस आपको लिखित रूप में आफर करे तो वह भी एथिकली vegan ही होगा लेकिन मांस के अपने स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हैं अतः हम इस स्तर पर कोई भी हरकत का समर्थन नहीं करते। साथ ही यह अपराध भी हो सकता है कुछ देशों में जहां इसे cannibalism (आदमखोरी) के तहत अपराध माना जा सकता है।

Aanand B: इतनी बडी बडी बातें। रहम करो जरा। वैसे आपके हिसाब से शहद किस प्रकार के भोजन में आता है? उसके लिए मधुमखियों को मारा नही जाता है बल्कि उसके लिए मधुमक्खियां पाली जाती है और यह प्लांट से आता है।

शुभ: अनुमति ली आपने मधुमक्खी से लिखित में?

Aanand B: 😂 नहीं, लेकिन मधुमक्खियां कई बार अपने छत्ते छोड़ देती है और उसमें से बहुत सा शहद मिलता है। अब अनुमति के लिए भी वो नही होती है। तब तो वह शहद लेना vegan होगा न?

शुभ: तब आप दूसरों को ऐसा दुष्प्रचार करने के दोषी होगे जो इस बात को बहाना बना कर क्रूरता करके इस बात का लेबल लगा कर वही शहद मार्किट में बेचने लगेंगे। साथ ही आप ये नहीं कह सकते कि वे अपना शहद लेने वापस नहीं आएंगी। मधु सदियों तक खराब नहीं होता है। मिस्र के पिरामिड में रखा शहद आज तक ताज़ा है। इसलिए अगर वे कभी वापस आई, जो कि वे आती हैं ऐसा पाया गया है तो आप पशुक्रूरता के दोषी होंगे। साथ ही उस में मधुमक्खी की लार और पेट के अम्ल होते हैं जो पराग रस को पचा कर मधु में बदलते हैं। शहद दरअसल मधुमक्खी के पेट की उल्टी है। तो वह पथ्य रूप से भी vegan नहीं है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

खुद को स्वीकार करना ही सुकून है ~ Shubhanshu


मैंने आज सामान्य इंसान की तरह सोच कर देखा कि पोस्ट बनानी हो तो क्या लिखें? बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ समझ न आया तो ये लिखा अपनी तरह सोच के।

शायद इसीलिए हमारे आसपास कॉपी-पेस्ट और कूड़ा पोस्ट ही ज्यादा मिलती हैं। जो शर्मिंदा हैं वे दूसरों के विचार ही चेप कर काम चला रहे। खुद का या तो कोई विचार ही न है या वो इतना बचकाना है कि हंसी उड़ जाए।

ये लोग कमेंट करते समय तो अपनी संगत और लोगों की सोच के अनुसार दूसरे की सोच पर तानाशाही करेंगे लेकिन इनकी खुद की वाल पर कोई विचार खुद का न होगा। आसान नहीं है ज़हरबुझा सत्य अपने बारे में लिखना।

सब दूसरों को दोष देकर खुद को पाक साफ बता देते हैं। मतलब कोई दोषी है ही नहीं। इसीलिये ये मानव आज बर्बाद और दुखी हैं। मैं 35 वर्ष का हूँ, बहुजन हूँ और बेरोजगार हूँ, जमापूंजी से मिले ब्याज से कम से कम में खर्च में जीवन यापन कर रहा हूँ। ये सब कहने में मुझे भी काफी समय लगा क्योकि ये सब बातें शादी करने वालो को ही पूछनी और बतानी चाहिए।

शादी तार्किक रूप से गलत है और इस पर बहस का कोई लाभ नहीं क्योकि आप तो सिर्फ अपनी मर्दानगी साबित करने के लिये करते हैं। सेक्स तो विवाह से पहले और बाद में भी आप कर ही लेते हो। अतः विवाह और बच्चों से मैं कोसों दूर हूँ।

मेरा खानपान एक दम साधारण। दाल, चावल, रोटी, साग, छोले-भटूरे, समोसे, गोलगप्पे, यिप्पी नूडल, मैगी आदि यही सब खाता हूं। रोज नहीं इनमें से बदल-बदल कर कभी कभी। घर में पड़ा रहता हूँ। सोचता रहता हूँ। फ़िल्म-सीरीज-गेम्स यही सब pc पर देखता रहता हूँ। किसी से न मिलता हूँ और न ही किसी का फोन उठाता हूँ।

एक तरह से दुनिया से कटा हुआ और एकांतवास में। कुछ खास लोगों से मिल लेता हूँ कभीकभार। कभी कभी सरकारी काम भी कर आता हूँ जैसे टैक्स जमा करना। दाढ़ी 1 फुट की हो जाती है तो ट्रिमर से काट देता हूँ। बाल भी बढ़ कर आंखों में घुस रहे हैं। उनको भी संभालना दिक्कत का काम है। कुछ करना है उनका भी। नाई के पास सालों से न गया।

कम नहाता हूँ, मंजन भी रोज नहीं करता। कपड़े भी जब दुर्गंध आती है, तभी धोता हूँ या दाग लगे हों। अपने बिस्तर पर सारा दिन नँगा पड़ा रहता हूँ। झाड़ू नहीं लगाता जब तक फर्श दिखना बन्द न हो जाये या मैं फिसल कर गिरने न लगूं धूल पर। जागने सोने का कोई टाइम फिक्स नहीं है।

काफी हद तक जंगली जीवन जी लेता हूँ। मच्छरों के बच कर। पार्टनर आती है तो बातें होती हैं। हंसी-ठिठोली और नोक-झोंक करके साथ में समोसे या छोले-भटूरे व सॉफ्ट ड्रिंक लेते हैं।

सेक्स पार्टनर के साथ आखिरी ओर्गास्म स्कोर:

पार्टनर- 6, शुभ- 1, राउंड- 3

स्वीकार कर लेने में क्या बुराई है? मुश्किल है क्योंकि दूसरे आपके जैसे नहीं। लेकिन आप भी दूसरों के जैसे नहीं यह भी तो अच्छी बात है। खास तौर पर जब कि मैं खुश और अपनी मर्जी का मालिक हूँ। जो अच्छा लग रहा, वही कर रहा हूँ। दुनिया, लड़कियां लोग सब अपना जीवन जैसे चाहें जियें लेकिन मैं भी अपनी मर्जी से जीकर खुद को महसूस कर रहा।

कल ख़बरों में पढ़ा कि बरेली का एक रिक्शे वाला IPS अफसर बन कर फेसबुक पर 3000 लड़कियों से रोमांस कर रहा था। इधर फेसबुक पर सिर्फ लड़कियों को मुझे तंग करने, मेरी डिटेल निकालने और मना करने पर इन्सल्ट करने के सिवाय और कुछ नहीं आता। कुछ तो फ्री का भैया समझ कर बस टोलफ्री हेल्पलाइन बना कर बैठ जाती हैं। अतः मुझे फेसबुक पर लड़कियों से दोस्ती में कोई खास रुचि नहीं रह गई है। लड़कों में भी सिर्फ वही मित्र हैं जो मुझे समझते हैं और मेरे विचारों से प्रभावित हैं।

झूठ बोल कर ही लड़कियों को आकर्षित किया जा सकता है क्योंकि अधिकतर लड़कियों को सिर्फ पैसा और फ्री का घर चाहिए होता है। लड़का तो एक टिकट मात्र है उस आजीवन नौकरी का। जिस पर वे गर्व कर सकें कि पावरफुल आदमी है। इसकी धाक होगी शहर में। दरअसल उसे अपने कोतवाल सइयां से तानाशाही की उम्मीद होती है। पुलिस से जनता भयभीत रहती है जबकि मुझमें कुछ ऐसा है कि पुलिस भयभीत रहती है मुझसे। 10 मिनट किसी पुलिसवाले से बात कर लूं तो वो ड्यूटी पर जा रहा हूँ बोल के उल्टी दिशा में निकल लेता है, जबकि पहले मुजरा देखने जा रहा होता है।

मुझे इस तरह की लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं होता। इस तरह के लोग बस एक दीमक हैं। सुंदरता से कुछ नहीं होता अगर विचार अच्छे न हों। अगर कुछ करना है तो अपने बल पर करो। पढ़ी-लिखी हो, लड़कों से बेहतर स्कोर है तो करो न स्ट्रगल? क्या समस्या है? बाहर लालच दे रहे लड़कों को मत देखो। कल को पलट जाए तो क्या करोगी? सेल्फकॉन्फिडेन्स, सेल्फडिफेंस, सेल्फडीपेंड रहना सीखो तभी पूरी लाइफ अपने हाथों में होगी।

मेरे पास मेरे लायक सब कुछ है। अगर आप को सिर्फ प्रेम चाहिए तो वो मेरे पास है। घर भी है अगर आप उसका मूल्य किश्तों में चुकाना चाहो। लेकिन झूठ, धोखा और अकर्मण्यता में मेरी अपने भर की कमाई से मैं शेयर कैसे दे सकता हूँ? ऐसा नहीं है कि मैं गरीब हूँ। लेकिन मुझे कम से कम में काम चलाना अच्छा लगता है। साथ ही अगले को सेल्फडीपेंड बनाना भी। कल को मैं न रहा तो उसका क्या होगा? इसीलिये।

Polyamory जीवन शैली के चलते प्रेमिकाओं के लिए स्थान खुला है लेकिन यह कहना एक विज्ञापन होगा इसलिये अभी सिर्फ दोस्तों के लिये जगह है। फिर भी फेसबुक से कोई उम्मीद नहीं है। अभी कुछ दिन बाद मैं हीरो बन के जाऊंगा घूमने, तब लड़कियों को कुछ नई बातें बताऊंगा। वहीं से मिलेगी मुझे नई दोस्त, शिष्य और प्रेमिका भी। आप भी दोस्तों, ये झूठ का चोला उतार कर, मेरी तरह नँगे हो जाओ। कमाल का सुकून मिलेगा। नमस्कार। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019© "Daring किया मैंने भी आज माँ!"

शनिवार, सितंबर 07, 2019

Polyamory ~ Shubhanshu


प्रेम बिना बंधन के। 1 से कई लोग प्रेम कर सकते हैं तो सब साथ में बात क्यों नहीं करते? जिस तरह मुस्लिम 4 पत्नियों के साथ एक साथ रहता है, वैसे ही बाकी लोग भी अपने सभी प्रेमियों/प्रेमिकाओं के साथ रह सकते हैं

प्रेम में अगर विवाह न हो तो ये ईर्ष्या में नहीं बदलेगा। दूसरे को हटाने की जगह उससे दोस्ती ही असली प्रेम है। जैसे अपने प्रेमी की पसंद की वस्तु या व्यक्ति का ख्याल रखना प्रेम है। न कि उसकी पसंद की वस्तु को तोड़ देना।

इसको अपनाने के लिये आपको करना क्या है?

कुछ नहीं, आज सभी के एक से अधिक प्रेमी और प्रेमिका होते हैं। बस उनको आपस में मिलकर एक दूसरे से दोस्ती करनी है और उनके सामने भी वैसे ही रहना है जैसे अकेले में सहज रहते हैं। असहज नहीं महसूस करना है।

जो लोग विवाह के चक्कर में हैं, वे अपने साथियों को धोखा देते हैं। यह विश्वास दिला कर कि वे मोनोगेमस हैं। जबकि आप और हम सब पोलिगेमस हैं। इसीलिये ज़रा-ज़रा सी बात पर ब्रेकअप होते हैं और नया साथी मिल जाता है।

इसलिये यह झूठ बीच में से निकाल देना है। सभी को पता होना चाहिए कि वे किस रिश्ते में हैं। इसीलिए विवाह की जगह लिव इन चुनें और किसी नए प्रेमी और प्रेमिका को मना करके उसको आत्महत्या करने पर मजबूर न करें। जैसे राजकपूर की फ़िल्म संगम, बॉलीवुड फिल्म गर्ल फ्रेंड व ऐसी ही अनेक सच्ची घटनाएं जहां प्रेम त्रिकोण या चौकोर, पँचभुज, षटकोण आदि रहा हो। इन सभी घटनाओं में मोनोगेमस विवाह ने हत्या और आत्महत्या को बढ़ावा दिया।

इंसान बनिये। धोखा मत दीजिये। प्रेम का सम्मान कीजिये। किसी को धोखा मत दीजिये। सबको सत्य बता दीजिये कि आपके अलावा भी कोई मेरी ज़िंदगी में आ सकता है। सब साथ रहेंगे परिवार की तरह। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

शुक्रवार, सितंबर 06, 2019

कोई भी perfect हो सकता है, लेकिन... ~ Shubhanshu


"कोई भी परफेक्ट नहीं होता।" एक नकारात्मक वाक्य है लेकिन दरअसल इसे जल्दबाजी में नकारात्मक लोगों ने इस तरह से कहा है। यह एक पॉजिटिव बात है लेकिन लोग इसे पॉजिटिव way में नहीं कहते क्योंकि उनको "नहीं" सुनने की पुरानी आदत है। क्या आपने बचपन से अपनी 99% फरमाइशों को अगले का "नहीं" सुन कर दफन नहीं किया?

सही वाक्य होता है, "कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये।" अब इस वाक्य ने पिछले वाक्य के सामान्तर बात कही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है लेकिन इस बार, सकारात्मक तरीके से। इस सब को समझने के लिये पॉजिटिव दिमाग का होना अत्यंत आवश्यक है।

देखिये, कोई भी परफेक्ट हो सकता है लेकिन अस्थायी समय के लिये। जैसे, यदि कोई अपने आप को कहे कि वह परफेक्ट है (परफेक्ट में कोई और परिवर्तन नहीं किया जा सकता) तो हम उससे कहेंगे कि कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन अस्थायी समय के लिये।

अब वह सोचेगा कि मतलब, "यह पूर्णता (perfection) अस्थायी है।" अगर कोई केवल अस्थायी समय के लिए परफेक्ट हो सकता है तो मेरा लगातार परफेक्ट बने रहना असम्भव है। अतः मुझे और सुधार करते रहने होंगे।

इस सोच में लोगों ने "और सुधार सम्भव है।" कहने के स्थान पर कह दिया कि "Perfection संभव नहीं है।" नकारात्मक कहने-सुनने की पुरानी आदत के कारण। 

इस बात को इस तरह समझ सकते हैं कि अगर वास्तव में कोई थोड़े समय के लिये भी परफेक्ट "नहीं" होता तो यह शब्द अस्तित्व में ही "नहीं" होता और हम किसी कार, मोटरसाइकिल, लडकी, लड़का, मकान, तस्वीर, फ़िल्म को देख कर खुशी से "परफेक्ट" नहीं कह पाते।

परफेक्शन हमारे किसी चीज या कार्य को, अधिकतम जानकारी के हिसाब से, बेहतरी के अभ्यास से, कुछ समय के लिये, आ सकता है लेकिन जल्द ही कोई, उससे ज्यादा अभ्यास करके, उससे बेहतर, नया व अस्थाई, परफेक्ट उदाहरण ला सकता है। अतः यह समय पर और काबिलियत पर आधारित एक अस्थायी स्थिति है।

किसी के लिये वह उदाहरण अत्यधिक उपयोगी होने के कारण, उस समय परफेक्ट लग सकता है लेकिन जो उससे ज्यादा की आशा रखता है, उसके लिए वह सदा imperfect ही रहेगा।

ये बात आपको मेरे अलावा कोई व्यक्ति बताया हो, तो बताना। मेरा यह विश्लेषण कितना परफेक्ट है? ये आप के हिसाब से तय होगा। अतः आप में से कोई भी परफेक्ट हो सकता है, लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिये! 😊 ~ Dharmamukt Shubhanshu

गुरुवार, सितंबर 05, 2019

Demonetization क्यों? ~ Shubhanshu


प्रश्न: 2000 का नोट क्यों आया?

शुभ: कॉमन सेंस है कि पेपर और छपाई का 50% खर्च बचाने के लिये। बैंक में जगह कम घिरे इसलिये भी। साथ ही लाने ले जाने का भाड़ा कम हो। हमको भी अब बटुए में 50% कम करेंसी रखनी पड़ेगी।

प्रश्न: 1000 और 500 के नोट ही पहले बन्द क्यों किये गए?

शुभ: इन्हीं नोटों में ज्यादा सुरक्षा खामियां थीं और उनकी कॉपी पाकिस्तान और चीन बना कर भारत भेज रहा था। उस समय तक यही सबसे बड़े नोट थे इसलिये इनकी ही ज्यादा स्मगलिंग होती थी।

प्रश्न: Demonetization का कारण क्या था?

शुभ: वही, नकली नोटों और अवैध कमाई वालों के कब्जे से धन बाहर निकलवाना जो कि बैंक में न जाकर कहीं भण्डारित कर लिए गए या नष्ट कर दिए गए। हर एक निश्चित अंतराल पर नोटों की डिजाइन और कलर बदलना एक सुरक्षा नीति है ताकि पुराने नोटों को नष्ट करने पर देश की अर्थव्यवस्था पर आंच न आये। हर note रिज़र्व बैंक की सम्पत्ति है। उसे नष्ट करना सीधे अपराध तथा अधिक समय तक चलन में न रखना यानि खर्च न करना एक नैतिक अपराध है। उसे बैंक में जमा करने से वह मॉनिटर होता है और देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। बदले में आपको ब्याज भी मिलता है और घर के पास ही शॉपिंग व ATM से कैश निकालने हेतु एक डेबिट कार्ड भी मिलता है।

कम धन रखने वालों के लिए बेसिक सेविंग अकाउंट होता है। जो कि बिना किसी फीस के चला सकते हैं। Atm कार्ड भी फ्री मिलेगा।

एक दम से बन्द करने और 250000 प्रति 3 माह की लिमिट लगाने पर जिनके पास  काला धन था वे सब भी पकड़ में आ गए। 1 वर्ष तक का समय दिया गया था नोट बदलने के लिए। फिर भी इस छूट का फायदा उठा कर धोखाधड़ी करके जनता ने धन को सफेद करवा लिया।

इसी कारण अचानक गरीब जनधन खाते 250000 रुपए से भर गए थे। दरअसल इन बेइमान लोगों ने इन गरीबों से साठगांठ करके रुपये इनके नाम से जमा करवा के निकाल लिए। इस तरह अधिकतर काला धन पकड़ में न आ सका। फिर भी 10700 करोड़ रुपया वापस नहीं लौटा इसका मतलब था कि इतना धन जला दिया गया था या गायब हो चुका था चलन से।

इस तरह रिज़र्व बैंक ने 10700 करोड़ रुपए की कमाई करी इस प्रक्रिया से। यह अतिरिक्त धन देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचा करने में काम आया।

प्रश्न: आप मोदी भक्त हो क्या?
शुभ: सही पकड़े, अंधभक्त! 💐 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©

मंगलवार, सितंबर 03, 2019

साम्यवादी क्रांति योजना ~ Shubhanshu


कम्युनिस्ट्स की क्रांति:

1. मजदूरों को लाभ में हिस्से का लालच दीजिये।

2. उनको असंतुष्ट होने का आभास दिलाओ और हड़ताल करवाओ।

3. मांग पूरी न होने पर सभी मजदूरों को अमीरों के प्रति "मालिक मजदूरों पर निर्भर हैं" कह कर भड़काओ। (जबकि यदि मजदूर रोज कमाते खाते है तो वे हड़ताल के दौरान धन कहां से लाते हैं? यह सवाल उनके गरीब होने पर प्रश्न खड़े करता है।)

4. सारे देश में मजदूरों को अमीरों के प्रति नफरत से भर दीजिये।

5. सारे मजदूरों को इकट्ठा करके उनको हथियार देकर अमीरों की हत्या करने के लिए छोड़ दीजिये।

6. कानून सबको गोलियों से भून देगा और उन लाशों के ढेर पर खड़े होकर बचे हुए मजदूरों को भड़काओ कि ये सब कानून वाले अमीरों के चाटुकार हैं। इन्होंने बेगुनाहों को मारा है जो बुरे परजीवियों को मार आये थे। इनको गोरिल्ला युद्ध में मारो और हथियार लूटो। (इस समय यही किया जा रहा है नक्सलियों द्वारा)।

7. आखिरकार सब मजदूर मर जाएंगे और फिर ये साम्यवाद का तरीका ठीक नहीं है कह कर आंदोलन खत्म करो। और दोबारा से नए मजदूरों को भड़काओ।

लाभ: इनके सरगना जितना भी लूट सकेंगे वो तो मिल ही जाएगा। लूट का माल जमा करने वाला मजे लेगा उससे और मजदूरों को घरों में घुस कर बलात्कार करने का मौका दिया जाएगा लोगों की महिलाओं से। मजदूर इसी बात से खुश हो जाएंगे। इस तरह ये एक प्रकार का बस हत्याकांड और लूटपाट और बालत्कार का प्लान है और कुछ नहीं। इसका जितना आप अभी विरोध करेंगे उतना ही आपके घर, सम्पत्ति, महिलाएं, बच्चे , बुजुर्ग और परिवार सुरक्षित रहेंगे।

सोमवार, सितंबर 02, 2019

महापुरुषों के प्रति मेरे विचार ~ Shubhanshu


0. थॉमस एडिसन का बार-बार प्रयास करने और असफलता से भी सीखने का साकारात्मक पक्ष (अहंकारी पक्ष नहीं)।

1. भीम राव राम जी अंबेडकर का लोकतांत्रिक व अंधविश्वास विरोधी पक्ष (राजनैतिक व धार्मिक नहीं)।

2. तथागत गौतम बुद्ध का नास्तिक, अहिंसा व स्वयंगुरु पक्ष (आध्यात्मिक, बोधिसत्व, पुनर्जन्म व निर्वाण पक्ष नहीं)।

3. कार्ल मार्क्स, लेलिन व भगत सिंह का नास्तिक पक्ष (साम्यवादी व हिंसात्मक पक्ष नहीं)।

4. मोहन दास करमचंद गांधी का अहिंसा पक्ष (आस्तिक व राजनैतिक पक्ष नहीं)।

5. रजनीश ओशो का अधार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तर्कवादी पक्ष (आध्यात्मिक पक्ष नहीं)

ये मेरे महापुरुषों के प्रति विचार हैं, जो कि मुझे किसी को भी सर्वेसर्वा घोषित करके पूजा करने व भक्त बनने से रोकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2019©