चीन बहुत पहले से एक प्रतिभाशील देश रहा है। कागज, कागजी मुद्रा, बारूद, चाय और न जाने कितनी खोज और आविष्कार आदिकाल से उधर हो रहे हैं, बिल्कुल अमेरिका की तरह। आविष्कार और खोज के दम पर ही अमेरिका महाशक्ति बना है। उसकी ही राह पर चीन चल रहा है। जब से माओवादी विचारधारा ने चीन में घर किया तब से चीन का सपना पूरे विश्व पर कब्जा करने का रहा है।
भारत पर हुआ चीनी हमला कोई आम हमला नहीं था। सबसे पहले पड़ोसी देश ही शिकार बनाये जाते हैं। लेकिन जिस तरह से रूस और अमेरिका ने भारत की मदद की है, चीन कमज़ोर पड़ गया था। अब उसकी नज़र अमेरिका और उसके सहयोगी देशों पर आ टिकी।
रूस ने खुद ही एक चाल चली थी और ताशकन्द समझौते के समय ही शास्त्री जी की रहस्यमय हत्याकांड रूपी मृत्यु ने चीन को समझा दिया कि रूस मित्रघाती है और उससे डरने की ज़रूरत नहीं। इसकी जगह पाकिस्तान से हाथ मिलाने में फायदा है। दोनो देश बारी-बारी से हमला करके नाकाम रह चुके थे। साथ मिल कर वे ज्यादा ताकतवर बन सकते हैं।
मुद्रा/निजी सम्पत्ति के खिलाफ बने सिद्धान्तों के बावजूद उस देश ने अपनी मुद्रा चीनी डॉलर बनाई। सबसे पहले कागजी करेंसी भी इसी देश के किसी नागरिक ने बनाई थी क्योंकि कागज ही इधर ही बना था। फिर तेजी से उसने जनता से जबरन कार्य करवा कर साम्यवादी सिद्धान्तों के अनुसार, उसकी वास्तविक मेहनत का मूल्य उनको देने की जगह उनके योगदानों, आविष्कारों को छीन कर चीन, खुद एक बड़ा पूंजीपति तानाशाह बन कर उभरा। हालाँकि अलीबाबा ग्रुप का मालिक संघर्ष करके चीन का सबसे बड़ा अमीर व्यक्ति बन चुका है। जो चीन की साम्यवादी विचारधारा की धज्जियाँ उड़ाता दिखता है।
चीन, आविष्कार करने वाले को कुछ न देने के कारण, आविष्कार को लागत मूल्यों पर बना कर व मनमाने दाम पर बेच कर शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। इसलिये उसने 'जनता कमज़ोर, सरकार/देश मजबूत' की अवधारणा पर कार्य किया। इसी के चलते वह साम्यवादी विचारधारा के लिये विश्व की ही पूंजीवादी व्यवस्था से विश्व को काटेगा। वह आज दुनिया में अमीर देशों में दूसरे नम्बर पर है।
प्रजातंत्र में आविष्कार/खोज/रचनात्मक कार्य करने वाले इंसान को जीवन भर सम्मान राशि के साथ उसकी खोज को उसकी निजी सम्पत्ति मान कर, उसके मर्जी के मूल्य पर, उस वस्तु के खरीदने, बेचने और बनाने के अधिकार खरीदे जाते हैं। जिसके कारण प्रतिभाशील लोग शीघ्रता से अमीर हो जाते हैं।
जबकि अनुमानित रूप से एक साम्यवादी तानाशाह, लोगों के आविष्कार छीन कर, लोगों से जबरन ऐसे एफिडेविट पर हस्ताक्षर करवाता है जिसमें लिखा होता है कि आविष्कारकर्ता/खोजी/कलाकार ने स्वेच्छा से देश के लिये अपना खोज/आविष्कार/रचनारूपी योगदान निष्काम भाव से कर दिया है। अन्यथा की स्थिति में मृत्यु दंड या जेल की सज़ा होगी।
UN के गठन के बाद हुए युद्धों की नाकामी से आग्नेयास्त्र वाले युद्ध की बात अब पुरानी हो चुकी है। सेना, बस अब एक शो पीस की तरह रह गई है। बहुत से देश कभी पहले युद्ध न करने की संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इस दशा में कोई भी एक युद्ध विश्वयुद्ध बन जायेगा। सन्धि के अनुसार यदि किसी भी देश ने, किसी भी देश पर अगर हमला किया तो UN से जुड़े समस्त देश, उस देश पर हमला करके, उसे कब्जे में ले लेंगे। अमेरिका सबसे ज्यादा संपन्न होने के नाते, इनमें सबसे अधिक सहयोगी देश दिखाई देता है। लोग इस अग्रणी मददगार को स्वतः सामने आने के कारण, अमेरिका को घमण्डी मानते हैं और इसे दादा कह कर उसके ऊपर ताना मारते हैं।
अमेरिका की राजनीति भी 2 दलीय है। प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति समस्त कार्य देखता है और वे ज्यादा सफल भी हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी है जबकि संविधान में कुछ गड़बड़ी पैदा करके भारत को उल्टा लोकतांत्रिक देश बनाया गया। जनसंख्या और संस्कृति की दलील देकर, यहाँ बहुदलीय चुनाव व्यवस्था है। कोई भी मुहँ उठा के चुनाव दल बना लेता है और राजनीति के बहाने धन लूटने की फिराक में लग जाता है।
जनता वैसे भी भोली है और उन्हीं में से निकला एक बहुजन व्यक्ति यहाँ राष्ट्रपति के रूप में हस्ताक्षर करने और पुरुस्कार देने के आलावा कुछ नहीं करता। सब काम प्रधानमंत्री पर डाल दिया जाता है।
कुछ सार्वजनिक कार्य न करने के चलते राष्ट्रपति का भी मजाक बनाया जाता है। जबकि यही राष्ट्रपति जब atrocity act में तुरंत गिरफ्तारी से पहले जांच के नियम को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर नामंजूर कर देता है, तब भी जनता में उसकी ताकत अपना असर नही दिखाती। कोई धन्यवाद रैली या समारोह नहीं होता। जबकि प्रधानमंत्री का तो मजाक उनकी व्यक्तिगत हरकतों से उड़ता रहता है। कभी वो थाली बजवाते हैं, तो कभी दिए जलवाते हैं। जनता तुरन्त प्रतिक्रिया देकर अपना प्रेम उनके प्रति दर्शा देती है। बिना जाने कि इससे क्या लाभ होगा? अंधविश्वास में डूबा, अक्लविहीन देश। क्षमा कीजिये, सबके लिए नहीं कहा।
वर्तमान में, पूरी दुनिया चीन के द्वारा फेंके गए bio bomb से जूझ रही है। यही उपाय था इस समय विश्व युद्ध के लिये। तमाम फिल्में और किताबें इस तरह के खतरे से आगाह कर रही थीं लेकिन लोग तो फ़िल्म को फ़िल्म समझ कर अय्याशी में लगे रहे।
चीन के वुहान व एक अन्य शहर में वायरस फैलता है और बाकी पूरा देश सुरक्षित रहता है। जबकि पूरा विश्व इसकी चपेट में आ जाता है। हर देश में 1 या 2 केस मिल ही गए। ऐसा कैसे संभव है?
अचानक खबर आती है कि चीन से संक्रमण का data आना बंद हो गया है। संक्रमण हुए मरीज, स्वस्थ हुए मरीज, और मरने वाले मरीज, सभी का डेटा एकदम गायब?
जबकि इटली और अमेरिका में एकदम से इस वायरस ने हजारों हत्याएं कर डाली हैं। अभी अन्य कई देश भी बर्बादी की ओर बढ़ रहे हैं। lockdown से जहाँ संक्रमण कम किया जा रहा है, दूसरी तरफ़ कार्य और उत्पादन न होने से सभी देश अपना खजाना मुफ्त में वेतन देने के लिये खोल रहे हैं। गरीब जनता को अमीर लोगों से लिया गया दान और सरकारी खजाना, मुफ्त में भोजन व राशन दे रहा है। इलाज और टेस्ट के लिये महंगी दवा व परीक्षण किट विदेशों से खरीदी जा रही है।
आपातकाल सेवाओं के कर्मचारियों को दोगुना वेतन दिया जा रहा है। अमीरों के खजाने गरीबों के पास जा रहे हैं। चीन ने रोबिन हुड की तरह अमीरों के खजाने गरीबों के लिए खुलवा दिए। साम्यवाद दिखने लगा है। lockdown तानाशाही से कम नहीं है और 112 नंबर वाली पुलिस अब राशन के साथ लोगों की अजीबोगरीब मांगें भी पूरी कर रही है। साम्यवादी आहट दिखने लगी है। धन और भोजन देने का ही नियम होता है साम्यवादी सोच में और जाने अनजाने हम उसी पर चल रहे हैं। बस एक कमी है। कार्य कोई नहीं कर रहा। पुराना धन बंट रहा, नया आ ही नहीं रहा। यह वैश्विक आर्थिक मंदी का समय है।
पहले भी सबसे पहले अमेरिका बर्बाद हुआ था मंदी से और इस बार तो सब चपेट में हैं। सारे देश इस समय अजीब परिस्थिति में पड़े हैं और अचानक खबर आती है कि चीन में lockdown खत्म होने की खुशी में ख़रगोश मार के दावत दी जा रही है। सरकार फेस्टिवल की तरह खुशी मना रही है। चीन से वायरस पूरी तरह समाप्त हो गया? ये क्या बकवास है?
अगर चीन ने कोई तरीका खोज लिया है, इससे बचने का, तो WHO हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन जैसी प्रोटोजोआ नाशक मूर्खता पूर्ण दवा का वायरस पर परीक्षण क्यों कर रहा है? एक बच्चा भी जानता है कि वायरस को उसकी वैक्सीन ही मार सकती है। फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से मलेरिया की दवा FDA से कोरोना वायरस के लिए स्वीकृत बता कर जबरन मांगते हैं। भारत मान भी जाता है। फिर पता चलता है कि ये मांग ट्रम्प अपने निजि फायदे के लिए मांग रहे थे। FDA मुकर गया।
एक शिक्षक ने छात्र से कहा, सामने श्यामपट्ट पर 2 रेखाएं बनी हैं। अगर एक रेखा को छोटी करना हो तो तुम चाक या डस्टर की मदद से क्या करोगे?
राम ने एक रेखा डस्टर से मिटा कर छोटी कर दी और श्याम ने चाक से एक रेखा दूसरे से लम्बी कर दी। श्याम को इनाम मिला और राम को मुर्गा बनाया गया।
चीन अमीरी में दूसरे स्थान पर है और उसे पहले पर आने के लिये केवल एक नीच कार्य करना था, जैसे बाकी देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी जाए। चीन पहले भी वैश्विक मुद्रा में छेड़छाड़ करके विश्व की मुद्रास्फीति दर को बर्बाद करने के प्रयास करने का दोषी पाया गया था और उस पर प्रतिबंध लगे हैं। चीन उपरोक्त कहानी का राम है। इसे मुर्गा कौन बनाएगा?
वायरस बम से हमला करने के बाद क्यों न इससे भी मुनाफा कमाया जाय और वेंटिलेटर, मास्क, दवाई, और जांच किट बेच कर सारे देशों से व्यापार कर लिया जाए? उनका कीमती धन चीन के पास खिचेगा और चीन का घटिया सामान उनके पास। कोरोना की दहशत फैलाई जाए और दादा अमेरिका नहीं, अब वह है, ये चेतावनी सबको बिना शोर मचाये समझा दी जाए।
ये हो क्या रहा है? सच तो यह है कि अमेरिका, भारत, इटली, जापान जैसे तमाम देश अब हथियार डाल चुके हैं। चीन का हमला हुआ है। चीन ने खुद बच कर ये साबित कर दिया है कि ये सब उसकी सोची-समझी रणनीति थी। जल्दी ठीक होकर और खुद को ठीक करने के राज गुप्त रख कर उसने मूक चेतावनी दे दी है कि वह हिंसा की रणनीति से पीछे नहीं हटा है और कोई ताकत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अहं ब्रह्मास्मि ~ चीन।
लेखक: वीगन Shubhanshu सिंह चौहान 2020© (डिस्क्लेमर: लेखक के निजी विचार। लेखक कोई दोषारोपण या दावा नहीं करता। ये उसके अपने विचार हैं जो समय और प्रमाणों के साथ बदल भी सकते हैं।) 2020/04/11 16:56