Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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गुरुवार, अप्रैल 30, 2020

Human Rights, Religion, Law and Incest




बाबा आदम की पसली से हव्वा/ईव बनी थी तो वह अपने पिता आदम की पुत्री हुई। दोनो का DNA एक ही हुआ। फिर इनके भी 3 पुत्र हुए। उन्होंने अपनी माँ से ही और पुत्र पैदा किये होंगे, क्योंकि लड़की कोई और थी ही नहीं। अब इस तरह से मानव बने, मानने वाले लोगों को रिश्तों में विवाह, सेक्स गलत लगता है तो वह धार्मिक नहीं हैं।

रही बात ब्रह्मा की तो ये बात उस पर भी इतनी ही सत्य है। उसने भी अपने शरीर से ही सबको पैदा किया तो DNA समान हुआ, यानी सब स्त्री-पुरुष-जंन्तु आपस में खून के रिश्तेदार हुए। अब सनातनी हिन्दू रिश्तों में सेक्स/विवाह का समर्थक नहीं है तो, वह भी धार्मिक नहीं है।

हम जानवरों से सीख सकते हैं कि प्रकृति क्या थी और क्या हम बन गए हैं। प्रकृति भी रिश्ते नहीं मानती थी और पुराने समय में मानव धर्म में भी प्रकृति के नियम मानता था। अब जाकर कुछ सौ वर्षों से पैसा, दहेज, दूसरे घर का अपमान करने के इरादे से विवाह खून के रिश्तों में करना बंद कर दिया गया है। सेक्स का मतलब विवाह ही होता है धार्मिकों की नज़रों में क्योंकि उनको गर्भनिरोधक का पता नहीं था। इसलिये उस पर भी सामाजिक रोक लगा रखी है।

अब आते हैं विज्ञान पर। कुछ शाही परिवारों के वंश का अध्धय्यन करके निष्कर्ष निकाला गया कि खून के रिश्तों में बच्चा पैदा होने पर उसमें कुछ विकृतियों का जन्म होता है। जबकि वास्तविक जीवन में बहुत से ऐसे केस हैं जहाँ खून के रिश्तों से सन्तान पैदा हुई और स्वस्थ है। जबकि दूसरी तरफ ऐसे हजारों केस हैं, जहां रिश्ते से इतर सेक्स से हुए बच्चों में भयानक विकृतियों का प्रभाव था। अतः इस स्टडी को मान्य नहीं माना जा सकता। अगर माना जाता है तो ये सिद्धांत जीवन की शुरुआत में मानवों के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़े कर देता है।

अब बात कानून की। कानून विवाह को धर्म का उत्पाद मानता है और कोर्ट मैरिज में धर्म पूछा जाता है। मनुस्मृति पर आधारित विवाह मॉडल भारतीय हिन्दू मैरिज एक्ट में अपनाया गया है। यही मॉडल स्पेशल मैरिज एक्ट में भी हिन्दू धर्म से जुड़े मानव पर लागू किया जाता है। यानि हिन्दू होकर के आप हिन्दू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट में एक विशेष रिश्तों की लिस्ट के अनुसार आपस में रिश्तेदार नहीं हैं तभी विवाह मान्य होगा। ऐसा अन्य धर्मों में नहीं है। कानून के हिसाब से भारत में जन्में सभी धर्म हिन्दू हैं। केवल बाहर उत्तपन्न हुए धर्मों को ही इस नियम से अलग रखा गया है। अर्थात कोई इसाई, मुस्लिम अपनी सगी-मां-बहन-पिता-पुत्र-पुत्री आदि से विवाह करने के लिये स्वतंत्र है।

अब आते हैं कानूनी अधिकार पर। भारतीय संविधान और वैश्विक मूल अधिकारों के अनुसार कोई भी मानव किसी भी वयस्क विपरीत या समान लिंग (जेंडर) के व्यक्ति के साथ सहमति से रह सकता है, सम्भोग कर सकता है और चाहे तो बच्चे भी पैदा कर सकता है। इनमें इंसानो से रिश्ते जैसा कोई भेदभाव नहीं किया गया है। यदि कोई रोकटोक करता है तो 2 या दो से अधिक सेक्स पार्टनर उसके खिलाफ पुलिस में मानसिक और शारिरिक प्रताड़ना का केस दर्ज करवा का उनको जेल पहुँचा सकते हैं। कानून कोई भेदभाव नहीं करता है अतः इन विरोधियों में शामिल आपके रिश्तेदार भी जेल भेजे जा सकते हैं।

नोट: ये पोस्ट केवल 18 वर्ष से अधिक के लोगों पर ही लागू होती है। सेक्स का मतलब सहमति से मैथुन है। सहमति का मतलब स्वेच्छा से दी गई सहमति है। बलपूर्वक या मजबूर करके ली गई सहमति बलात्कार मानी जायेगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Pedophilia: A strange Crime




पीडोफिलिया एक ऐसा विकृत सेक्सुअल ओरिएंटेंशन है जो कि कानून में आपराधिक रूप से दर्ज है। इसके बारे में विडंबना ये है कि इसमें इससे पीड़ित रोगी की कोई गलती नहीं होती है।

वह अपनी विकृति/प्रकृति के चलते बच्चों से संभोग के प्रयास करते हैं। फिर भी उनको सज़ा दी जाती है, क्योंकि वे इस प्रयास में बच्चों के साथ बलात्कार करते हैं या सहमति से भी सम्भोग करते हैं तो भी वो अव्यस्कता के चलते, बलात्कार में दर्ज किया जाता है।

इस सज़ा का तर्क ये है कि ज्यादातर मामले में ऐसे प्रयास वयस्क द्वारा अवयस्क के साथ ही होते हैं और वयस्क के यौनांग अवयस्क के यौनांग को अपने बेमेल आकार के कारण घायल कर देते हैं जिससे अधिक रक्त बहने/संक्रमण के कारण मृत्यु होने का बहुत अधिक खतरा रहता है। साथ ही मानसिक आघात भी लगता है अगर बलात्कार हुआ हो तो। इस कारण कोई गलती जानबूझकर न करने पर भी वे अपराधी बनते हैं।

ऐसे लोगों को चाइल्ड पोर्न देखने का बहुत शौक होता है। नहीं मिलने पर ये किसी न किसी बच्चे को अपना शिकार बनाते हैं। चाईल्ड पोर्न को न सिर्फ बनाना अपराध है बल्कि इसे देखना, रखना भी अपराध है। कारण वही है, अवयस्क का बलात्कार और उसकी जान को खतरा।

चाइल्ड पोर्न के डर से ही भारत में सभी पोर्न साइट पर रोक लगाई गई। हालांकि कोई वेबसाइट चाइल्ड पोर्न नही परोसती है क्योंकि ऐसा करना अपराध है। फिर भी इंटरनेट कम्पनियों ने किसी प्रकार के लाइसेंस जाने के खतरे से बचने हेतु सभी पर रोक लगा दी है। परन्तु व्यक्ति से व्यक्ति तक कोई भी ऐसा पोर्न बना कर भेज सकता है। अतः व्हाट्सएप और टेलीग्राम आदि मैसेंजर द्वारा पीडोफाइल लोग ऐसे वीडियो भेज सकते हैं। ये वीडियो लोग खुद अपराध करके बनाते हैं और अपने जैसे लोगों को देकर खुद के लिए सपोर्ट पाते हैं या बदले में नए विडियो पाते हैं।

यहाँ ये बता दें कि, बच्चे जब बच्चों से सेक्स करते दिखते हैं तो यह घातक नहीं होता, क्योंकि उनसे कोई नुकसान नहीं प्रतीत होता है और न ही अंग घायल होते है। जबकि कोई वयस्क पुरुष (18 साल से अधिक) या किशोर (15 साल से अधिक) किसी बच्चे (12 साल से कम) के साथ सम्भोग प्राकृतिक या अप्राकृतिक मैथुन करता दिखता है तो यह अपराध होगा।

हांलाकि यदि दोनो को आनन्द आ रहा है तो यह नैतिक रूप से बलात्कार नहीं होगा परन्तु सैद्धांतिक रूप से ये सब चाइल्ड पोर्न और बलात्कार में ही आता है और यही मान्य होगा। ये कुछ कानूनी अन्यायपूर्ण कदम हैं, परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से यही उचित है। अपवादों को बस राहत माना जा सकता है परंतु इनके चलते सबको अपराध करने की छूट नहीं दी जा सकती।

वयस्को का ऐसा पोर्न जो कोई नुकसानदेह कार्य पर आधारित न हो तो वह उचित है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता। विदेश में FBI इसकी अनुमति देती है। भारत में भी पोर्न देखने पर कोई रोक नहीं है। सभी वेबसाइट कानून के अनुसार ही पोर्न परोसती हैं। यदि कभी कोई वीडियो आपको गलत दिखे तो उसकी रिपोर्ट उसी वीडियो में बने लिंक पर कर सकते हैं। इससे विडियो की पुनः जांच होती है और गलत पाए जाने पर हटा दिया जाता है। इससे जुड़ा कोई प्रश्न हो तो पूछ सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

स्रोत: पकड़े गए अपराधियो के बयान, भुक्तभोगी के बयान, कानून, समाचार, मनोविज्ञान, कॉमन सेंस और व्यक्तिगत विचार।

मंगलवार, अप्रैल 21, 2020

Only Journalists are responsible for Journalism




लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है पत्रकारिता। बिके जो उसको पीत पत्रकारिता कहते हैं। असली पत्रकारिता में ज़्यादा कमाई नहीं होती बल्कि ख़तरा और ईमानदारी होती है। ये भोले लोगों और मूर्खों के लिये नहीं है। शुरू में केवल दूरदर्शन और AIR ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया था। अखबारों से ही अधिक खबरें प्रचलित होती थीं।

अब वह दौर गया। केबल TV आया और फिर आने शुरु हुए मीडिया वाले संघर्षकर्ता। इन संघर्षकर्ताओं में कुछ ईमानदारी से आगे बढ़े और कुछ पीत पत्रकारिता की चकाचौंध में उलझ कर मारे गए। पीत पत्रकारिता का अंत हमेशा अच्छा नहीं होता।

पत्रकारिता को आप ज्यादा समय तक बेच नहीं सकते। यह एक प्रतियोगिता का क्षेत्र है। आप जिस खबर को पैसा खाकर बेच रहे हैं वो खबर कोई और पत्रकार वैसे का वैसा ही दिखा देगा। पैसे सबको, सबसे तो नहीं मिल सकते न? कोई न कोई तो रह ही जाएगा। इसीलिए पत्रकारिता कानून बने जो पत्रकारिता को गलत दिशा में जाने से रोकते हैं। आज पीत पत्रकारिता एक भयानक रिस्की कार्य है। जो भी कर रहा है, वह मूर्ख है, लालची है या मजबूर है।

खबर बनाई और बेची जाती है ऐसा हम 'रण' फ़िल्म में देख चुके हैं लेकिन उसका हश्र भी आत्महत्या से ही हुआ। तिहाड़ जेल में बन्द लोग और बाकी जेलों में बन्द लोग, पत्रकार, नेता, कानून के दलाल, आम आदमी सबको देखा जा सकता है।

सत्य सामने आता है। कभी देर से तो कभी जल्दी। देर से आने के पीछे हम लोग ही जिम्मेदार हैं। हम ही व्यवस्था और व्यवहार हैं। हम में से अधिकतर लोग राज़ दबा जाते हैं। अपने ऊपर हुए जुल्मों को छुपा जाते हैं। यही अपराधियों के स्वामिभक्त लोग हैं। जो उनके लिए काम करते हों या नहीं, फर्क नहीं पड़ता है। जुल्म सहना, जुल्म करने वाले की स्वामिभक्ति है, आपको जुल्म पसन्द है, इसकी सहमति है। सहमति से कुछ भी करना, पुण्य (अच्छा कार्य) है, पाप (बुरा कार्य) नहीं है।

परिवार हमको भ्रष्ट बनाता है। परिवार डर पैदा करता है। परिवार ताकत भी बन सकता है लेकिन उसकी परिस्थिति अलग होती हैं। जब परिवार में कमज़ोर और मूर्ख प्रकार के लोग हों तो परिवार ईमानदारी के लिये खतरा है। हमारा समाज विवाह करवा कर लोगों को डरना सिखा देता है।

अकेले लोग ज्यादा आज़ाद ख्याल, बहादुर और ईमानदार होते हैं। जैसे-जैसे हम अपनी जड़ों से ईमानदारी को निकाल कर फेंकते हैं हमारे समाज की जड़ों में भी दीमक लगने लगती है। हम ही सरकार, पत्रकारिता, व्यवस्था, राजनीति और व्यवहार का हिस्सा बनते हैं। हम ही सरकार हैं, ये अटल सत्य है। चाहें वोट दें या न दें। हम सब भारत के नागरिक रहेंगे। चाहें देश का भला न चाहें तो भी और चाहें तो भी।

प्रतियोगिता के युग में एक दूसरे से ज्यादा बेहतर और अच्छी/सच्ची खबर लाना आज पत्रकारिता की मजबूरी बन गया है। बनाई हुई खबरें अब टिकती नहीं हैं। ज़मीनी स्तर पर भी कागजी पत्रकारों का बड़ा समूह है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के परखच्चे उड़ा सकता है। अतः पत्रकारिता को पूरी तरह से बर्बाद नहीं किया जा सकता। थोड़ा सा धैर्य और विवेक चाहिए बस। सत्य आपके सामने जल्द आएगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020© (पूर्व पत्रकार, स्वतंत्र चेतना, लखनऊ, बरेली शाखा)

A good person does not tolerate oppression



मैं मुंहफट हूँ, बिंदास हूँ। बात सिद्धान्तों की हो, तो बेशर्म भी हूँ। इसलिये मुझमें, आरती उतारने टाइप की नम्रता नहीं है। कोई अगर मेरी सच्ची बातों से, आहत होता है तो होने देता हूँ लेकिन अगर मेरी व्यक्तिगत टिप्पणी या किसी फूहड़ शब्द से आहत होता है तो मैं मनन करके, अगले का दुख महसूस करता हूँ और क्षमा मांग कर, खुद में कुछ और बदलाव ले आता हूँ।

जो गलत होकर भी, सम्मान के प्रति घमंडी हो तो उससे भी रिश्ता मधुर करके, दोबारा पंगा न हो, (चूंकि विचार हिंसक हैं, अगले के तो पंगा होना तय है) इसलिये, उससे सम्पर्क खत्म कर देता हूँ। ताकि शान्ति भी बनी रहे और मैं कुछ रचनात्मक कार्य भी कर सकूं।

जो मुझे समझते हैं, उनको मुझे प्रेम से, कोई ऐसी बात, जो वाकई, मेरे लिए हानिकारक है, जिसे सिद्ध किया जा सकता है, तो समझा सकते हैं और अगर मैं उसे बेकार समझता हूँ, (आपकी समझ की कमी से वह गलत है) तो मुझे वैसे ही स्वीकार कीजिये, या लात मार के चले जाइये।

मैं कोई सवाल नहीं करूंगा। 😍 ये पोस्ट, एक मुस्कान के साथ लिखी गई है। मुस्कान के साथ पढ़ी जाएगी, ऐसी मैं आशा करता हूँ, लेकिन आपकी मर्जी है। जैसे चाहे वैसे पढ़िये। आपकी आज़ादी सर्वप्रथम है। (व्यक्तित्व से जुड़ी पोस्ट/विचार) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Meat, Eggs and Dairy Products are Necessary for human?



नीचे दिए गए गद्यांश को मीट इंडस्ट्री के फैलाये गए झूठ और भ्रमित तथ्यों के आधार पर डर कर लिखा गया है।
नीचे दिए हैशटैग में जो लिखा है उससे पता चलता है कि यह पाकिस्तान की किसी वेबसाइट से आया है। जो कि एक मांसाहारी देश है। आइए इसे एक बार पढ़ते हैं और फिर चर्चा करते हैं:

"इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दाल-चावल और सब्जियां जंतु प्रोटीन का विकल्प नहीं हो सकतीं। जानवरों के मांस में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। शरीर के लिए जंतु प्रोटीन भी उतना ही जरूरी है, जितना कि दूसरे पोषक तत्व। निर्धनों के लिए तो प्रोटीन का सबसे सस्ता जरिया ही जानवरों का मांस है। अगर सारी दुनिया शाकाहारी हो जाएगी तो सबसे बड़ा संकट विकासशील देशों के लिए हो जाएगा। थोड़ा-थोड़ा मांस, मछली और दूध यहां की अपेक्षाकृत गरीब आबादी को कुपोषण से बचाए रखता है। मांस छोड़कर दूध अपनाने की बात है तो मांस एवं दूध दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। दोनों ही पशुओं से आते हैं।

जाहिर है, ऐसे में रास्ता संतुलन से ही निकलेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मांसाहार कम करना और ऐसे मांस पर जोर देना जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिहाज से कम नुकसानदेह हों। रुमिनेंट (जुगाली करने वाले पशु) के मांस की तुलना में सुअर, मुर्गे और मछली उसी श्रेणी में आते हैं जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के नजरिए से कम नुकसानदेह माने जा सकते हैं। हालांकि संतुलन शब्द की कोई एक व्याख्या नहीं की जा सकती, लेकिन इससे जुड़ी तमाम जटिलताओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि संतुलन और सादगी को जीवन का मूल मंत्र बनाकर चलें तो हम न केवल इस दुनिया को, इसके तमाम जीव जंतुओं को बेहतर माहौल दे सकते हैं बल्कि अपनी राह को भी बहुत सारे खतरों से बचा सकते हैं।" #pkonnet

हाँ तो आपने पढ़ा,

1. जंतु प्रोटीन के बारे में।
2. गरीबों के लिये माँस ही सहारा।
3. मांस छोड़ो तो दूध ज़रूर पीने की बात।

1. प्रश्न: जंतु प्रोटीन आता कहाँ से है?
उत्तर: वनस्पति प्रोटीन को खाने से बनता है। वनस्पति प्रोटीन के सर्वसुलभ स्रोत क्या हैं? मूंगफली, दालें। अर्थात जंतुजनित प्रोटीन का समर्थन एक झूठ है। हम खुद बना सकते हैं इसे शरीर में।

2. प्रश्न: क्या गरीबों के लिए मांस सस्ता है?
उत्तर: माँस सबसे महंगा भोजन है। क्योंकि इसे पालने, पकड़ने, काटने, संरक्षण करने में सबसे ज्यादा खर्च होता है।

वनस्पतियों को पानी-खाद या तो स्वतः मिल जाती है या एक बार देकर बहुत समय तक बिना देख भाल के रखा जा सकता है।

वनस्पतियों की कटाई सस्ती मशीनों से की जा रही है जिसमें मानव श्रम कम होता जा रहा है लेकिन अभी भी बूचड़खाने बिना कम मानव श्रम के नहीं चल रहे। उनको भी वेतन देना पड़ता है। बाकी व्यवस्था, साफसफाई में खर्च अलग। लाइसेंस, सीमाशुल्क, कोल्डस्टोरेज आदि से बहुत ही ज्यादा महंगा भोजन बन जाता है मांस।

अगर मान लो कि ये गरीब आदिवासी हैं और कुछ भी नहीं करते। केवल जंगल से कुदरती पशु पक्षी मार के खाते हैं, कुदरती पोखर, तालाब से मुफ्त का भोजन मछलियों को मार के प्राप्त करते हैं तो बताइये उनकी जनसंख्या कितनी है? 1% भी तो नहीं। उनको सदियों से कोई समस्या बाकी की 99% को नहीं बता मिली तो फिर हमको उनकी फिक्र ही क्यों है? वो पशुपालन नहीं करते। वे खेती भी नहीं करते, तो सही है। जैसे चल रहे चलने दो।

3. प्रश्न: मांस छोड़ कर दूध पी सकते हैं क्या?
उत्तर: दूध माँस का रिप्लेसमेंट है, ये खुद कह रहे हैं। यानि भारतीय व पाकिस्तानी शाकाहारी खुद को मांस का विकल्प दे रहे हैं। तरल मांस। दूध पशु से छीनते हैं। उसके बच्चे के लिए बना दूध। जब जानवर के दूध देने की क्षमता खत्म हो जाती है तो उसे खाया जाता है। ये उसी माँस को खाने की बात कर रहे हैं जो कि दूध व्यापार का सह उत्पाद है।

हमें पशु दूध की ज़रूरत कैसे पड़ सकती है? जब हम खुद स्तनधारी हैं? क्या हमारी प्रजाति की माएँ दूध नहीं देतीं? देती हैं तो मानव को जानवरों के हिस्से का छीनने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? मतलब साफ है कि दूध हमारी ज़रूरत तो कतई नहीं है। केवल डर है ईश्वर के जैसा। कि सारी जिंदगी दूध नहीं पिया तो मर जायेंगे। खुद की अक्ल न प्रयोग करने से ऐसा होता है। जो ईश्वर/धर्म को बिना जाने मानते हैं उनको कुछ भी ज्यादा लोग कहें सत्य लगेगा ही। आश्चर्य नहीं है। क्या जानवर सारी जिंदगी दूध पीता है? नहीं न? फिर सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव को तुच्छ जानवरों की क्या ज़रूरत पड़ गई? है न मक्कारी?

मैंने 20 साल से दूध और उससे बनी कोई वस्तु न खाई, न लगाई। मुझे कोई आहार सम्बंधित बीमारी नहीं है। इम्युनिटी मजबूत है और बुद्धि भी तेज है। यानि B12 भी हमारे मुहं में अपने आप बनता है बैक्टीरिया से। जानवर पहले बैक्टीरिया खाये फिर हम उसे खाएं या उस के बच्चे के लिए बना दूध निचोड़े उससे बेहतर होगा कि खुद बनाएं अपने ही मुहँ में। तो फिर न तो संतुलन की ज़रूरत है और न ही जानवरों के मामले में दखल देने की।

आज ही vegan बनने की दिशा में अध्धयन कीजिये। vegan लिख कर सर्च कीजिये। हिंदी में लिखिये "वीगन" और "निरवैद्य" भी सर्च कर सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, अप्रैल 20, 2020

Be selfdepand and you will get love money and fame



दोस्तों, अगर आप अभी आत्मनिर्भर नहीं हैं तो कृपया किसी के प्यार में मत पड़िए। जैसे ही लगे मामला बढ़ रहा है रुक जाइये। सेक्स के लालच में मिलेगा ठेंगा, बेइज़्जती और आंसू। मर भी सकते हो।

जबकि आत्मनिर्भर होने के पीछे भागो तो प्यार चल के आएगा आपके पास। हर कोई अपने पैरों पर खड़ा इंसान देखना चाहता है। उसी पर भरोसा करता है और उसी की इज़्ज़त भी करता है। ज़रूरी नहीं है कि आत्मनिर्भर होने के लिये आपको करोड़ो कमाने हैं।

आपको सिर्फ अपने भर का करना है और दूसरे को भी अपने जैसा बनने की प्रेरणा देनी है। बस हो गया 50-50। दोनो मस्त। तब चाहें आपके घरवाले आपको लात मार दें या अगले के, दुनिया रख लो लोढ़े पर। 🤗 (चटनी वाले) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, अप्रैल 19, 2020

Religious people treats girls as a Sex Doll



जो भी दो वयस्क लोगों को अपनी खुशी से सेक्स से रोके, वह व्यक्ति तानाशाही प्रवर्ति का है उसको पुलिस में दे सकते हैं।

रिश्ते नाते धर्म की देन हैं जो उनको मानता है वह धर्ममुक्त इंसान नहीं हो सकता। धार्मिक इंसान अवश्य हो सकता है।

विवाह धर्म की देन है और रिश्ते विवाह के बाद बनने शुरू होते हैं। यानी वह भी धर्म की देन हुए। विवाह निकाल दो तो कोई रिश्ता नहीं बनता। फिर सब आज़ाद हैं प्रेम और सम्भोग करने के लिये।

बाकी किसी को किसी के सहमति पूर्वक सेक्स करने से क्या खुजली है? पता नहीं। कोई भी सेक्स छुप कर ही करता होगा, तो क्या पता कौन किसके साथ कर रहा है? मेरा तो मानना है जो इस तरह के सेक्स का विरोध करता है, वही वास्तव में अपनी माँ-बहन-बेटी-बहू-नाती से बलात्कार करता होगा। तभी उसका राज़ किसी को पता न चल जाये इसलिये विरोध करता है। इसे कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका।

कट्टर धार्मिक भी incest करते हैं। बस वो प्रायः बलात्कारी होते हैं। जबकि जानवर और नास्तिक/धर्ममुक्त सोच के लोग सहमति और प्रेम से incest कर सकते हैं।

बलात्कार दूसरों का करने में लड़की और उसके परिवार का अपमान होता है क्योकि 'विवाह नहीं होगा अब' ऐसा सोच कर जबकि गलती लड़की की नहीं होती बलात्कार में। फिर भी उसे गन्दा और अयोग्य माना जाता है किसी और का वंश चलाने के लिए।

इसलिये ये लोग खुलेआम नहीं स्वीकार करते कि अपनी मां, बहन, बेटी और बहू का बलात्कार किया है इन्होंने।

जो लोग अनजान नर-मादा का विवाह करके कमरे में लड़की को बिना सेक्स का ज्ञान (खुद ही नहीं होता) दिए बन्द कर देते हैं। उसका बलात्कार लगभग खुले आम (लड़के के परिवार के समीप) होता है।

लड़की की चीखों से पता चल जाता है और सारा परिवार चुपचाप सुनता है। उसका समर्थन करने वाले लोग सहमति शब्द का मतलब ही नहीं जानते। इसलिये वे बलात्कार को ही सेक्स समझते हैं, जो बाहर वाली मादा के साथ हो तो अगले का अपमान होगा और अपने घर की मादा हो तो अपना।

लेकिन खुद की आदिम instinct पर कंट्रोल न होने के कारण वे सहमति पूर्वक सेक्स की जगह धर्म में मना होने के कारण मादा द्वारा सहमति न मिलने पर बलात्कार करते हैं और किसी को पता नहीं चलने देते क्योंकि तब उनके धर्म का और परिवार का उनकी बिरादरी में अपमान होगा। उसका भी कारण उनकी लड़कियों का विवाह है जिसे करके हर धार्मिक उन्हें ठिकाने लगा देना चाहता है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Trust is the product of Verification



सर्वप्रथम वस्तु या बात पर अंधविश्वास होता है। वेरिफिकेशन के बाद विश्वास होता है। जिस वस्तु या बात का वेरिफिकेशन या पुष्टि हो जाती है वह वस्तु या बात सत्य साबित हो जाती है। कुल मिला कर सत्य पर ही विश्वास होता है। इस पुष्ट विश्वास के आधार पर हम अब सत्य वस्तु या बात को और लोगों को दे सकते हैं बिना किसी गलती के।

पुष्टि/verification अंधविश्वास को अंततः आंखें दे देता है। जिससे देख कर अब सत्य/असत्य का पता लगाया जा सकता है। यह घटना विश्वास कहलाती है जो कि पुष्ट है। अब हम पुष्टि करी हुई बात पर बिना दोबारा पुष्टि किये विश्वास कर सकते हैं जबतक पहले वाले विषयवस्तु में कोई अन्य बदलाव नहीं आते। ~ Shubhanshu Dharmamukt

किसी प्रतिष्ठित संस्था/पत्रकारिता/व्यक्ति पर विश्वास करने का कारण-

हम जो व्यक्ति अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ कहता है तो उस को ज़िम्मेदार व्यक्ति मानते हैं। उस पर विश्वास इस आधार पर किया जाता है कि इसका वेरिफिकेशन होने पर और गलत निकलने पर अगले को जेल भेजा जा सकता है। इसीलिए फेक न्यूज देना अपराध घोषित है। एक बात इसके लिये प्रचलित है वह है, "मरते समय इंसान कभी झूठ नहीं बोलता।" ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, अप्रैल 18, 2020

Ungratefulness is destroying Good People




यदि कोई आपकी बिना कुछ मांगे मदद कर दे तो आपको बिना उस मदद का मूल्य चुकाए अगली मदद नहीं मांगनी चाहिए। अगला आपका गुलाम नहीं है जिसे बेगारी पर आपने नौकर रखा है। उसका भी जीवन है। उसका भी समय कीमती है। उसको भी अपनो को समय देना है। उसे भी अपना भोजन और राशन जुटाना है। सिर्फ आपके लिए ही नहीं बैठा है अगला। कुछ खोकर, कुछ पाना सीखिये। अन्यथा आप अपने मददगार को ही खो दोगे। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Types of Oppositions on Social Media



विरोधियों के प्रकार

1. केवल पार्टी विशेष के विरोधी। हतोत्साहित टर्राने वाले मेढ़क; अपनी पसन्द की पार्टी सत्ता में आने पर मेढ़क की तरह शीत निद्रा में चले जाने वाले।

2. A. अमीर-गरीब का रोना रोने वाले जनसंख्या वृद्धि के समर्थक।

B. जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करने वाले।

C. लोकतंत्र को ही नष्ट करके तानाशाही लाने और लूटपाट के समर्थक।

D. अपनी हर समस्या को सरकार की गलती बताने वाले। जैसे वे एकदम परफेक्ट हैं।

E. जिनको सरकार की 100 अच्छी बातें नहीं दिखतीं, एक गलती बड़ी समस्या लगती है।

F. सरकार पर भरोसा नहीं है ऐसा सोचना लेकिन बिना प्रमाण के। यानी शंकालु स्वभाव का होना। फायदा भी हो रहा है तो क्यों हो रहा है? सोच कर अपने बाल नोच लेना न कि खुश होना।

3. सही और गलत का निष्पक्ष अवलोकन करके, केवल गलत का विरोध करने, सही की सराहना और वर्तमान समस्या के त्वरित हल बताने वाले। लोकतंत्र का सम्मान करने वाले जिसमें प्रत्येक इंसान अपने हक के लिये लड़ सकता है। जिसमें इंसान को मानवाधिकार व कर्तव्य दिए उस संविधान के समर्थक।

4. मिलेजुले। जो भी आसपास हो रहा है उसकी नकल करने वाले। कोई अगर कह रहा है कि पृथ्वी चपटी है और नासा कभी चाँद पर गया ही नहीं तो उन पर भरोसा कर लेने वाले मासूम मुन्ने।

और भी प्रकार हो सकते हैं। अभी इतने ही। आप भी सुझाव दे सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

What is behind Forecast? Astrology or Astrologer?



एक ज्योतिषि सिर्फ एक अभ्यस्त व्यक्ति होता है जिसने ज्योतिष की विधियों को अच्छी तरह से याद कर लिया है। वह बस एक माध्यम होना चाहिए। ज्योतिष के साधन और विधि पढ़ कर कोई भी ज्योतिषी बन सकता है। सब पहले से लिखा हुआ है।

कोई ज्योतिषी अगर अपने मन से फलादेश में छेड़छाड़ करे तो इस बात का प्रमाण दे रहा है कि उसकी प्रयुक्त सारी विधि बेकार है या उसमें कमी है।

इस प्रकार से हर विधि का एक ही उत्तर आना चाहिए जिसे हम जांच सकें। इससे फर्क नहीं पड़ता कि ज्योतिषी कौन है। विधि को पढ़ना उसे आता हो, बस यही काफी है। यदि मेरी बात से कोई आपत्ति हो तो कह सकते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Ungrateful Criticizing is Harmful for you



दो तरह के लोग आलोचक होते हैं। एक असली वाले जो मित्रवत प्रेमवश आपकी कमी और खूबी दोनो बता कर आपको परफेक्ट बनाते हैं और दूसरे जो सिर्फ कमी निकालते हैं और आपकी खूबी का कृतघ्नता से फायदा उठाते हैं।

ये कृतघ्न लोग आपको हतोत्साहित करने आते हैं। ये आपके ऊपर ताना भी मारेंगे जबकि वे एक नम्बर के घटिया इंसान होंगे। खुद पर घमण्ड इनको किसी एक क्षेत्र में सफल होने के कारण होता है तो जो भी कई अन्य क्षेत्रों में सफल होता है, ये उससे नफरत करते हैं। उसको हतोत्साहित करके गिरा देना इनकी रणनीति होती है।

वह भला इंसान हो, इनकी मदद करता हो, तो ये उसे मूर्ख समझते हैं। उसकी अच्छाई को कमज़ोरी समझते हैं। ये घटिया इंसान होने का प्रमाण है।

ऐसे लोग कभी भी अपने से बेहतर को दोस्त नहीं बनाते। वो उससे सिर्फ फायदा उठाते हैं। ऐसे दोस्तों की पहचान कीजिये। इनको जितनी जल्दी लात मार सको, मार दीजिये। ये इंसान ही नहीं हैं। इनसे दूर रहिये। हालांकि जो भी गलती वे बताएं उसको सुधार अवश्य लें। उसका धन्यवाद भी अवश्य देकर अपनी अच्छाई बनाये रखिये। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Nudity is much better than Clothings



वस्त्रों से अधिक कामुक क्यों लगते हैं इंसान? जबकि नग्नता इतनी कामुक नहीं लगती? ऐसा सिर्फ उनके साथ होता है जिनका तन मेन्टेन नहीं होता। जो पोर्नस्टार्स बॉडी मेन्टेन रखती हैं उनको नँगा देखना आनंद देता है लेकिन जो बेडौल हो उसे आधा अधूरा ही देखकर मन को धोखा दे सकते हैं। 😁

मेरा तो यही मानना है। कपड़े को छोड़ दें तो सब की सच्चाई सामने आ जाएगी। सब व्यायाम करने लगेंगे और स्वस्थ/सुगढ़ शरीर के मालिक बनेंगे। बाकी polygamous स्वभाव है, एक ही इंसान से ज्यादा दिन तक कामोतेजना नहीं होती और शरीर की सही नापतोल भी ज़िम्मेदार है लम्बे समय तक आकर्षण के लिये।

स्तनों, चेहरे, कमर व कूल्हे के आकार प्रकार से बहुत फर्क पड़ता है कामोतेजना के लिए। ये सब भी तबतक जबतक अगले के विचार समान हों या पता ही न हों। विचार उल्टे हों और बहस में गलती न मानी जाए तो कामुकता मर सकती है। 😁

परन्तु ऐसा सिर्फ शुरू में होता है। यदि लगातार नग्न लोगों के साथ रहें तो बिना अगले की कुदरती कामेच्छा के छुए कामोत्तेजना होनी बन्द हो जाएगी। इसीलिए न्यूडिस्ट लोगों में बलात्कार होने की संभावना न के बराबर रहती है जबकि कपड़ो में ये हमेशा 100% बनी रहती है। जो मन को दबा लेते हैं वही रुके हुए हैं अन्यथा वस्त्रों व श्रंगार से धोखा तो हर कोई दे रहा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Nonviolence first then self-defense




एक बार स्कूल में गुस्सा हो गया था। एक लड़के को 4 टांके आये। फिर उसने माफी मांगी तो माफ कर दिया।

फिर कॉलेज में गुस्सा हो गया था तो 10 लड़कों ने मुझे पकड़ कर उस लड़के को मुझसे बचाया। कह रहे थे, "भाई, वो कमज़ोर है, मर जायेगा।" तब उसने माफी मांगी तो माफ कर दिया।

एक लड़के ने मुझे दोस्ती का धोखा देकर एक लड़की के मन में मेरे बारे में झूठ भरा। उसे जाने दिया। फिर दूसरे कॉलेज गया उधर भी एक लड़के ने मेरे बारे में गलत बातें फैलाई, उसे सिर्फ डरा के छोड़ दिया क्योंकि वो भी दोस्ती का नाटक करके धोखा दे चुका था।

फिर डिप्लोमा की क्लास में सब लड़के दुश्मन बन गए, क्योंकि लड़कियों को मैं पसन्द था। उधर भी लड़ाई टाली।

अब फेसबुक है, सोच रहा कि इधर शब्दों से क्या लड़ना? कभी-कभी कुछ बोल देता हूँ, गुस्सा आने पर, लेकिन लिमिट में।

शायद इसीलिए लोगों से रैंडम नहीं मिलता। केवल अच्छे भले लोगों से ही मिलना सम्भव होगा भविष्य में। अनजान लोगों से मिलना खतरनाक है।

क्या पता कोई कुछ गलत कर दे? या तो मैं मारा जाउँ या फिर अगले का सारा वजूद मिट जाए या मुझसे कुछ न हो सके और मैं ही पिट कर वापस आ जाऊं। कुछ कह नहीं सकते। अब तो यही सीखा है कि अगर लड़ना आवश्यक न हो तो झगड़े से दूर रहो। एक भी रास्ता अगर हिंसा के बिना निकलता है तो निकाल लो। गुस्सा आये तो अगले से दूर हो जाओ। वो जगह छोड़ दो।

कोई तुम्हारी जगह पर ऐसा करे तो उसे बाहर कर दो या बाहर जाने को कहो। सम्पर्क काट दो, सारे उससे। बस ज़िन्दगी सुकून से जी लो। बस यही मेरी इच्छा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2020

A Communist Filed RTI




सरकार: RTI act के तहत आप ज़रूरी जानकारी ले सकते हैं जो जनता को जानने का हक संविधान देता है।

लोकतंत्र विरोधी शंकालु द्वारा RTI में पूछे गए प्रश्न:

1. कोरोना के इलाज में कितनी लड़कियाँ डॉक्टर या नर्स हैं?
2. उनके स्तनों व योनि के फ़ोटो दिखाइए।
3. उनका फोन नंबर, नाम पता, और बॉयफ्रेंड (अगर है) का बॉयोडाटा भी दीजिये।
4. उनको क्या पसन्द है? खाने, घूमने-फिरने व कौन से सेक्स पोजीशन और सेक्स ड्यूरेशन पसन्द है?

सरकार का जवाब: क्षमा कीजिये इस तरह के प्रश्नों के उत्तर नही दिए जा सकते और कृपया ऐसा दोबारा न करें अन्यथा आपके खिलाफ आम लोगों की निजी जानकारी में दखल देने के जुर्म में कार्यवाही होगी।

(कहने का अर्थ शंकालु ने समझा, 'चल हट झोपड़ी के, दोबारा दिखा तो फाड़ देंगे')

अगले दिन सोशल मीडिया पर शंकालु: 😭 सरकार से कोरोना मरीजों पर RTI करी थी, मुझे गाली लिख कर भेजी सरकार ने। सरकार तानाशाही हैं। RTI काम नहीं करता। साम्यवाद लाओ, देश बचाओ। ✊

शुभ: ज़रा RTI की रसीद, जवाब और प्रश्न दिखाना।

शंकालु: आ गया सरकार का दल्ला। नहीं दिखाता जा।

शुभ: जब आप खुद सुबूत के बिना अफवाह फैला सकते हैं तो सरकार जो भी कर रही है हम उसके साथ हैं। आप कोई प्रमाण न देकर खुद ही खुद को गलत साबित कर रहे हैं।

शंकालु का मित्र: शुभ, इनबॉक्स में आओ। इसकी पोल खोलता हूँ। 🤣 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, अप्रैल 14, 2020

Vegetarians are more bad than Omnivores ~ Vegans




दुनिया के लिए, शाकाहारी (vegetarian), सर्वाहारी (omnivores) से ज़्यादा ख़तरनाक हैं। सर्वाहारी को आप समझा सकते हो कि वह गलत है लेकिन शाकाहारी डेयरी/शहद का सेवन करके भी, खुद को निरवैद्य (Vegan) समझता फिरता है। जिसे समझाना बहुत कठिन है।

डेयरी में मानवीय बलात्कार (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) द्वारा पैदा हुआ, नर बछड़ा/कटड़ा, कसाई के पास भेजा जाता है और दूध देने से फ़ारिग होकर गाय/भैंस/बकरी भी कसाई के पास ही भेजी जाती है।

तो सर्वाहारियों को मांस की खेप कौन दे रहा है? डेयरी का सेवन करने वाले शाकाहारी ही न? तो निर्दोष गुलाम बना कर तड़पाये, इस्तेमाल किये गए जानवर की हत्या के असली ज़िम्मेदार कौन लोग हैं? सर्वाहारी या शाकाहारी?

बुद्धि का प्रयोग कीजिये। जानवरों की खेती करने से 12% ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। निर्दोष जानवरों को कष्ट होता है और उनके अधिकारों का हनन भी। जो हम स्वयं के लिए नहीं चाहते, वह हम दूसरे के साथ कैसे कर सकते हैं? अगर करते हैं, तो हमको भी खुद के साथ ऐसा होते हुए देखने की आदत डाल लेनी चाहिए। पुलिस और कानून का लाभ नहीं लेना चाहिये।

अभी भी समय है, निरवैद्यवाद (Veganism) अपनाइये और खुद को निर्दोष, दयालु, सकारात्मक, पर्यावरण प्रेमी, पशुप्रेमी, ज्ञानी, बुद्धिमान और स्वास्थ बनाइये। (सलाह है कोई आदेश नहीं) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Harmful positive thinking is also negativity.


सकारात्मक शब्द स्वीकार से बना है। यानि किसी भी बात को स्वीकार कर लेना सकारात्मक है और नकार देना नकारात्मक। हम प्रायः नकारात्मक सोच जिसे कहते हैं दरअसल वह हर बात में 'नुकसान ही होगा' ऐसा सोचने की धारणा है। जबकि ऐसा सम्भव ही नहीं कि हर बात में नुकसान ही होगा।

कहीं हम इस धारणा के चलते लाभदायक बातों/मौकों को छोड़ न दें, इसलिए सकारात्मक सोच पर ज़ोर दिया जाता है। इसकी बारीकियों को इसलिये नहीं बताते क्योंकि मानव को औसत बुद्धि का तो मानते ही हैं जो कम से कम सही और गलत को पहचान ही लेगा।

सकारात्मक सोच के चलते यदि आप हर बात को जांचने की भी सोच रहे हैं तो भी आप कम खतरा उठाइये। जैसे किसी ने ईश्वर की अवधारणा दी तो आप कुछ समय तक उसे स्वीकार करके जांच कीजिये। सही या गलत का फैसला ले लेंगे। इस तरह से सकारात्मक सोच फायदा ही करेगी लेकिन यदि आप किसी के द्वारा दिये गए धोखे, धक्के, चप्पल को अपने मुहँ पर स्वीकार कर लेंगे तो आपको तकलीफ और नुकसान हो सकता है। अतः देख समझ कर सकारात्मक बनिये।

मान लीजिये कोई आपको आपकी गेंद मारने का प्रलोभन दे और आप 'ये क्या होता है' जानने के चक्कर में 'खोल के झुक गए' तो वो आपकी फाड़ भी सकता है। अतः ये सकारात्मक सोच भारी पड़ सकती है।

इसी तरह अगर कोई lockdown में आपको सहायता राशि और राशन दे और आप उसे नकार दें तो आपके लोढ़े लग सकते हैं।

सकारात्मक और नकारात्मक सोच आपके विवेक से तय होती है। शक करना नकारात्मकता है लेकिन जांच करना सकारात्मक है। अतः शक कीजिये लेकिन जांच भी कीजिये। तभी सकारात्मक सोच लाभ देगी अन्यथा आप अगला जो देगा स्वीकार लोगे तो या तो आपको गुलाब मिल सकता है या कोई आपके लोढ़े लगा सकता है। लगवाना या नकारना उस समय आपकी सकारात्मक सोच होगी।

अतः जो भी सोच आपको लाभकारी प्रतीत हो वह सकारात्मक है और जो सोच आपको नुकसान पहुँचाये वह सकारात्मक होकर भी नकारात्मक सोच है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, अप्रैल 13, 2020

Why Motherhood is Nothing Without Marriage?



लड़की: मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ।
शुभ: तुम माँ क्यों बनना चाहती हो?
लड़की: मैं मातृत्व अनुभव करना चाहती हूँ। मैं अपने बच्चे को प्यार से पालना चाहती हूँ। उसे अपने सीने का दूध पिलाना चाहती हूँ। प्रसव पीड़ा को महसूस करना चाहती हूँ।
शुभ: अपने बच्चे? अभी तो कह रही थीं कि 'मेरे बच्चे' की माँ बनना है, और अब तुम्हारा हो गया?
लड़की: मेरा मतलब हमारे बच्चे को पालना चाहती हूँ।
शुभ: लेकिन तुमने मुझसे तो पूछा ही नहीं कि मुझे बच्चे चाहिए या नहीं?
लड़की: सबको बच्चे चाहिए, तुमको क्यों नहीं चाहिए?
शुभ: किसी समझदार को बच्चे नहीं चाहिए।
लड़की: मुझे तो चाहिए।
शुभ: तुमको भी नहीं चाहिए। तुम झूठ बोल रही हो या समझदार नहीं हो। 😜
लड़की: पागल हो क्या? मुझे क्या पड़ी है झूठ बोलने की? मैं तो शुरू से कह रही हूँ कि मुझे माँ बनना है और बच्चा चाहिए मुझे।
शुभ: मतलब मैं तुमको प्रेग्नेंट करके, तुम्हारे हाल पर छोड़ के चला जाऊं? 🙄
लड़की: ऐसे कैसे? पहले शादी करो।
शुभ: पहले तय करो, तुमको बच्चा चाहिए या फ्री का घर, sex, सुरक्षा और गुजारा भत्ता चाहिए?
लड़की: मर भो*ड़ी के, तू तो कुछ ज्यादा ही चालू है साला! Sex तो साला हर कोई, आंख मारते ही करने को कूद पड़ता है, लेकिन होता उनसे कुछ भी नहीं। इधर गर्मी चढ़नी शुरू होती है उधर साले आग पर अपना पानी फेर के पूछते हैं, "मजा आया न बेबी?" भो*ड़ी के, तू कौन सा मुझे चाँद-तारे दिखाने वाला है? तू भी सबके जैसा ही निकलेगा। अकेले तेरे बच्चे का क्या अचार डालूंगी? उसी को तो गोद में लेकर तुझे ब्लैकमेल करना था। तेरे वंश के चलने के लालच में तू मेरे आगे पीछे डोलता। तुझे तो वंश ही न चलाना है। क्या करेगा इतने पैसे का? दान करेगा या सब उड़ा देगा मरने से पहले? सारे प्लान की वाट लगा दी। बच्चा किसे चाहिए भो*ड़ी के? बच्चा मेरी जूती पे। सोचा था, फ्री में मजे करने का इंतजाम हो जाएगा। छोड़ भी देगा तो अपनी कमाई का 30% मुझे पेंशन के रूप में देता रहेगा। अब साला फिर से नौकरी ढूढो अब।
शुभ: देखा, बच्चा किसी को नहीं चाहिए। सबको पैसा चाहिए। जिसे दूसरों को देकर मजे कर सको। मैं अपने तरीके से ईमानदारी से कमा रहा हूँ और आप को एक आलसी कम्युनिस्ट की तरह सब कुछ free में चाहिए। वो भी धोखाधड़ी से। जी हाँ विवाह धोखाधड़ी है लेकिन कुछ *तियों को दान करने की जगह अपना 'शाही' राजवंश चलाना है। उनको इसी धोखे की ज़रूरत है। उनको विवाह करना है। वे उसी 'भाबी जी घर पे हैं?' के सक्सेना के जैसे हैं जो बिजली का नँगा तार पकड़ के बोलता है, "I like it!" और हाँ, मुझे सबके जैसा मत समझना, एक बार परफॉर्मेंस देख लेगी न? तो पागल हो जाएगी! 😌 ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt 2020© 2020/04/13 18:07

शनिवार, अप्रैल 11, 2020

I am the master of the world ~ China



चीन बहुत पहले से एक प्रतिभाशील देश रहा है। कागज, कागजी मुद्रा, बारूद, चाय और न जाने कितनी खोज और आविष्कार आदिकाल से उधर हो रहे हैं, बिल्कुल अमेरिका की तरह। आविष्कार और खोज के दम पर ही अमेरिका महाशक्ति बना है। उसकी ही राह पर चीन चल रहा है। जब से माओवादी विचारधारा ने चीन में घर किया तब से चीन का सपना पूरे विश्व पर कब्जा करने का रहा है।

भारत पर हुआ चीनी हमला कोई आम हमला नहीं था। सबसे पहले पड़ोसी देश ही शिकार बनाये जाते हैं। लेकिन जिस तरह से रूस और अमेरिका ने भारत की मदद की है, चीन कमज़ोर पड़ गया था। अब उसकी नज़र अमेरिका और उसके सहयोगी देशों पर आ टिकी।

रूस ने खुद ही एक चाल चली थी और ताशकन्द समझौते के समय ही शास्त्री जी की रहस्यमय हत्याकांड रूपी मृत्यु ने चीन को समझा दिया कि रूस मित्रघाती है और उससे डरने की ज़रूरत नहीं। इसकी जगह पाकिस्तान से हाथ मिलाने में फायदा है। दोनो देश बारी-बारी से हमला करके नाकाम रह चुके थे। साथ मिल कर वे ज्यादा ताकतवर बन सकते हैं।

मुद्रा/निजी सम्पत्ति के खिलाफ बने सिद्धान्तों के बावजूद उस देश ने अपनी मुद्रा चीनी डॉलर बनाई। सबसे पहले कागजी करेंसी भी इसी देश के किसी नागरिक ने बनाई थी क्योंकि कागज ही इधर ही बना था। फिर तेजी से उसने जनता से जबरन कार्य करवा कर साम्यवादी सिद्धान्तों के अनुसार, उसकी वास्तविक मेहनत का मूल्य उनको देने की जगह उनके योगदानों, आविष्कारों को छीन कर चीन, खुद एक बड़ा पूंजीपति तानाशाह बन कर उभरा। हालाँकि अलीबाबा ग्रुप का मालिक संघर्ष करके चीन का सबसे बड़ा अमीर व्यक्ति बन चुका है। जो चीन की साम्यवादी विचारधारा की धज्जियाँ उड़ाता दिखता है।

चीन, आविष्कार करने वाले को कुछ न देने के कारण, आविष्कार को लागत मूल्यों पर बना कर व मनमाने दाम पर बेच कर शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। इसलिये उसने 'जनता कमज़ोर, सरकार/देश मजबूत' की अवधारणा पर कार्य किया। इसी के चलते वह साम्यवादी विचारधारा के लिये विश्व की ही पूंजीवादी व्यवस्था से विश्व को काटेगा। वह आज दुनिया में अमीर देशों में दूसरे नम्बर पर है।

प्रजातंत्र में आविष्कार/खोज/रचनात्मक कार्य करने वाले इंसान को जीवन भर सम्मान राशि के साथ उसकी खोज को उसकी निजी सम्पत्ति मान कर, उसके मर्जी के मूल्य पर, उस वस्तु के खरीदने, बेचने और बनाने के अधिकार खरीदे जाते हैं। जिसके कारण प्रतिभाशील लोग शीघ्रता से अमीर हो जाते हैं।

जबकि अनुमानित रूप से एक साम्यवादी तानाशाह, लोगों के आविष्कार छीन कर, लोगों से जबरन ऐसे एफिडेविट पर हस्ताक्षर करवाता है जिसमें लिखा होता है कि आविष्कारकर्ता/खोजी/कलाकार ने स्वेच्छा से देश के लिये अपना खोज/आविष्कार/रचनारूपी योगदान निष्काम भाव से कर दिया है। अन्यथा की स्थिति में मृत्यु दंड या जेल की सज़ा होगी।

UN के गठन के बाद हुए युद्धों की नाकामी से आग्नेयास्त्र वाले युद्ध की बात अब पुरानी हो चुकी है। सेना, बस अब एक शो पीस की तरह रह गई है। बहुत से देश कभी पहले युद्ध न करने की संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इस दशा में कोई भी एक युद्ध विश्वयुद्ध बन जायेगा। सन्धि के अनुसार यदि किसी भी देश ने, किसी भी देश पर अगर हमला किया तो UN से जुड़े समस्त देश, उस देश पर हमला करके, उसे कब्जे में ले लेंगे। अमेरिका सबसे ज्यादा संपन्न होने के नाते, इनमें सबसे अधिक सहयोगी देश दिखाई देता है। लोग इस अग्रणी मददगार को स्वतः सामने आने के कारण, अमेरिका को घमण्डी मानते हैं और इसे दादा कह कर उसके ऊपर ताना मारते हैं।

अमेरिका की राजनीति भी 2 दलीय है। प्रधानमंत्री की जगह राष्ट्रपति समस्त कार्य देखता है और वे ज्यादा सफल भी हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी है जबकि संविधान में कुछ गड़बड़ी पैदा करके भारत को उल्टा लोकतांत्रिक देश बनाया गया। जनसंख्या और संस्कृति की दलील देकर, यहाँ बहुदलीय चुनाव व्यवस्था है। कोई भी मुहँ उठा के चुनाव दल बना लेता है और राजनीति के बहाने धन लूटने की फिराक में लग जाता है।

जनता वैसे भी भोली है और उन्हीं में से निकला एक बहुजन व्यक्ति यहाँ राष्ट्रपति के रूप में हस्ताक्षर करने और पुरुस्कार देने के आलावा कुछ नहीं करता। सब काम प्रधानमंत्री पर डाल दिया जाता है।

कुछ सार्वजनिक कार्य न करने के चलते राष्ट्रपति का भी मजाक बनाया जाता है। जबकि यही राष्ट्रपति जब atrocity act में तुरंत गिरफ्तारी से पहले जांच के नियम को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर नामंजूर कर देता है, तब भी जनता में उसकी ताकत अपना असर नही दिखाती। कोई धन्यवाद रैली या समारोह नहीं होता। जबकि प्रधानमंत्री का तो मजाक उनकी व्यक्तिगत हरकतों से उड़ता रहता है। कभी वो थाली बजवाते हैं, तो कभी दिए जलवाते हैं। जनता तुरन्त प्रतिक्रिया देकर अपना प्रेम उनके प्रति दर्शा देती है। बिना जाने कि इससे क्या लाभ होगा? अंधविश्वास में डूबा, अक्लविहीन देश। क्षमा कीजिये, सबके लिए नहीं कहा।

वर्तमान में, पूरी दुनिया चीन के द्वारा फेंके गए bio bomb से जूझ रही है। यही उपाय था इस समय विश्व युद्ध के लिये। तमाम फिल्में और किताबें इस तरह के खतरे से आगाह कर रही थीं लेकिन लोग तो फ़िल्म को फ़िल्म समझ कर अय्याशी में लगे रहे।

चीन के वुहान व एक अन्य शहर में वायरस फैलता है और बाकी पूरा देश सुरक्षित रहता है। जबकि पूरा विश्व इसकी चपेट में आ जाता है। हर देश में 1 या 2 केस मिल ही गए। ऐसा कैसे संभव है?

अचानक खबर आती है कि चीन से संक्रमण का data आना बंद हो गया है। संक्रमण हुए मरीज, स्वस्थ हुए मरीज, और मरने वाले मरीज, सभी का डेटा एकदम गायब?

जबकि इटली और अमेरिका में एकदम से इस वायरस ने हजारों हत्याएं कर डाली हैं। अभी अन्य कई देश भी बर्बादी की ओर बढ़ रहे हैं। lockdown से जहाँ संक्रमण कम किया जा रहा है, दूसरी तरफ़ कार्य और उत्पादन न होने से सभी देश अपना खजाना मुफ्त में वेतन देने के लिये खोल रहे हैं। गरीब जनता को अमीर लोगों से लिया गया दान और सरकारी खजाना, मुफ्त में भोजन व राशन दे रहा है। इलाज और टेस्ट के लिये महंगी दवा व परीक्षण किट विदेशों से खरीदी जा रही है।

आपातकाल सेवाओं के कर्मचारियों को दोगुना वेतन दिया जा रहा है। अमीरों के खजाने गरीबों के पास जा रहे हैं। चीन ने रोबिन हुड की तरह अमीरों के खजाने गरीबों के लिए खुलवा दिए। साम्यवाद दिखने लगा है। lockdown तानाशाही से कम नहीं है और 112 नंबर वाली पुलिस अब राशन के साथ लोगों की अजीबोगरीब मांगें भी पूरी कर रही है। साम्यवादी आहट दिखने लगी है। धन और भोजन देने का ही नियम होता है साम्यवादी सोच में और जाने अनजाने हम उसी पर चल रहे हैं। बस एक कमी है। कार्य कोई नहीं कर रहा। पुराना धन बंट रहा, नया आ ही नहीं रहा। यह वैश्विक आर्थिक मंदी का समय है।

पहले भी सबसे पहले अमेरिका बर्बाद हुआ था मंदी से और इस बार तो सब चपेट में हैं। सारे देश इस समय अजीब परिस्थिति में पड़े हैं और अचानक खबर आती है कि चीन में lockdown खत्म होने की खुशी में ख़रगोश मार के दावत दी जा रही है। सरकार फेस्टिवल की तरह खुशी मना रही है। चीन से वायरस पूरी तरह समाप्त हो गया? ये क्या बकवास है?

अगर चीन ने कोई तरीका खोज लिया है, इससे बचने का, तो WHO हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन जैसी प्रोटोजोआ नाशक मूर्खता पूर्ण दवा का वायरस पर परीक्षण क्यों कर रहा है? एक बच्चा भी जानता है कि वायरस को उसकी वैक्सीन ही मार सकती है। फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से मलेरिया की दवा FDA से कोरोना वायरस के लिए स्वीकृत बता कर जबरन मांगते हैं। भारत मान भी जाता है। फिर पता चलता है कि ये मांग ट्रम्प अपने निजि फायदे के लिए मांग रहे थे। FDA मुकर गया।

एक शिक्षक ने छात्र से कहा, सामने श्यामपट्ट पर 2 रेखाएं बनी हैं। अगर एक रेखा को छोटी करना हो तो तुम चाक या डस्टर की मदद से क्या करोगे?

राम ने एक रेखा डस्टर से मिटा कर छोटी कर दी और श्याम ने चाक से एक रेखा दूसरे से लम्बी कर दी। श्याम को इनाम मिला और राम को मुर्गा बनाया गया।

चीन अमीरी में दूसरे स्थान पर है और उसे पहले पर आने के लिये केवल एक नीच कार्य करना था, जैसे बाकी देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी जाए। चीन पहले भी वैश्विक मुद्रा में छेड़छाड़ करके विश्व की मुद्रास्फीति दर को बर्बाद करने के प्रयास करने का दोषी पाया गया था और उस पर प्रतिबंध लगे हैं। चीन उपरोक्त कहानी का राम है। इसे मुर्गा कौन बनाएगा?

वायरस बम से हमला करने के बाद क्यों न इससे भी मुनाफा कमाया जाय और वेंटिलेटर, मास्क, दवाई, और जांच किट बेच कर सारे देशों से व्यापार कर लिया जाए? उनका कीमती धन चीन के पास खिचेगा और चीन का घटिया सामान उनके पास। कोरोना की दहशत फैलाई जाए और दादा अमेरिका नहीं, अब वह है, ये चेतावनी सबको बिना शोर मचाये समझा दी जाए।

ये हो क्या रहा है? सच तो यह है कि अमेरिका, भारत, इटली, जापान जैसे तमाम देश अब हथियार डाल चुके हैं। चीन का हमला हुआ है। चीन ने खुद बच कर ये साबित कर दिया है कि ये सब उसकी सोची-समझी रणनीति थी। जल्दी ठीक होकर और खुद को ठीक करने के राज गुप्त रख कर उसने मूक चेतावनी दे दी है कि वह हिंसा की रणनीति से पीछे नहीं हटा है और कोई ताकत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अहं ब्रह्मास्मि ~ चीन।
लेखक: वीगन Shubhanshu सिंह चौहान 2020© (डिस्क्लेमर: लेखक के निजी विचार। लेखक कोई दोषारोपण या दावा नहीं करता। ये उसके अपने विचार हैं जो समय और प्रमाणों के साथ बदल भी सकते हैं।) 2020/04/11 16:56

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2020

विरोध कैसा हो? ~ ज़हरबुझा सत्य




विरोध कैसा होना चाहिए?

1. सुबूतों और तर्कों के आधार पर।

2. अनुमान केवल सावधानी हेतु लगे हों, न कि जबर्दस्ती नफ़रत पैदा करवाने वाले।

3. बकलोली न हो कतई। उतना ही बोलिये जिसका जवाब सुबूत और तर्क से दे सको।

4. निष्पक्ष हो, अंधविरोध न हो। ऐसी धारणाएं जो कहें कि अगला जो भी करेगा, गलत ही करेगा, मूर्खतापूर्ण है। दरअसल ऐसा केवल घटिया राजनीतिक लोग करते हैं जिनको हमेशा विरोधी पार्टी के लोग अपनी राह के कांटे ही दिखते हैं।

वास्तव में वे हैं भी। क्योंकि जब तक अगला अच्छा कार्य करेगा तब तक वह सत्ता में रहेगा और तब तक क्या विपक्षी पार्टी अंडे देगी? इसलिये वह गंदी राजनीति पर उतर आते हैं।

लेकिन हम जैसे निष्पक्ष लोग इनको पल भर में पहचान कर इनको इनकी सही जगह पर पहुँचा देते हैं। इंसान ही रहिये। धन का लालची बन कर इंसानियत मत भूलिये। सही को सही और गलत को गलत कहना ही धर्मजातिमुक्त और वास्तविक बुद्धिमान इंसान होना है। जो आज कोई बनना ही नहीं चाहता। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गुरुवार, अप्रैल 09, 2020

आप ही एक्सपर्ट हैं। ~ ज़हरबुझा सत्य

धर्म/धम्म/पंथ की दुकानें सजी हैं। मेरा माल best है, यही सबको लगता है। दरअसल हर कोई अपनी सोच को दूसरों पर थोपने के लिये किसी बड़ी हस्ती का सहारा लेता है, जैसे अमिताभ, शाहरुख, सलमान, कैटरीना, करीना आदि वैसे ही अल्लाह, शिव, विष्णु, बुद्ध, महावीर, यीशु, योहोवा, आदि धर्म के विज्ञापनों में अपनी मुहर लगा कर उनके उत्पादों को महत्वपूर्ण बताते हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं कि ये उदाहरण एक बात साफ बता रहे हैं कि 96 प्रतिशत 'धन कमाने' वाले लोग अपनी बुद्धि से चलने की जगह किसी एक्सपर्ट की बुद्धि पर भरोसा करके अपना जीवन जीते हैं। और ये बात भी भूल जाते हैं कि एक्सपर्ट बिकाऊ और मूर्ख भी हो सकता है।

अतः खुद की बुद्धि भी इस्तेमाल कर लें, क्या पता आप ही असली एक्सपर्ट हों? आखिर आपके लिए ही तो उत्पाद बनाये जाते हैं। घड़ी डिटर्जेंट की एक लाइन वाकई प्रेरणास्रोत है, पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गणित आपको निजी जीवन में बुद्धिमान नहीं बनाती ~ ज़हरबुझा सत्य




मैं कभी समझ नहीं पाया कि जो लोग प्रायः गणित में अच्छे होते हैं वे अपने बाकी जीवन में प्रायः मूर्ख क्यों दिखते हैं? क्या गणित जीवन जीने के लिये पर्याप्त नहीं है? शायद नहीं। गणित सीखी जाती है। बुद्धि जन्म से होती है। 10 वर्ष की आयु तक विकसित होती है।

प्रश्न: मुझे कैसे पता चला?

उत्तर: लोगों के विचार, बातें और समस्याओं ने बताया। उन्होंने ही बताया कि वे गणित में बहुत अच्छे हैं लेकिन अन्य विषयों और जीवन में इतने बुद्धिमान नहीं हैं कि समस्या का खुद हल ढूढ़ सकें। इसलिये उन्होंने मुझसे आकर हल मांगे।

प्रश्न 2: बहुत से विद्वान लोगों को गणित के कारण ही बड़ी सफलता मिली और वे प्रसिद्ध हुए। क्यों?

उत्तर: बिल्कुल, तभी ये पोस्ट बनाई गई है। गणित हम क्यों पढ़ते हैं? इसी के उत्तर में सारा रहस्य छुपा है। गणित की पढ़ाई, हम प्रायः नौकरी पाने के लिये करते हैं। नौकरी यानि बहुत से ऐसे कार्य जिनका इस्तेमाल आधुनिक सुविधाओं के लिये होता है। उनमें आपका इस्तेमाल कैलकुलेटर की तरह करने का कार्य। ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने, तर्क करने के गणितीय तरीकों से बहुत से रहस्य समझने में सफलता मिली है।

गणित इस दुनिया के विज्ञान का आधार है, लेकिन इसे विद्यालय में समझने भर से आप किसी उद्योगपति के लिये उपयोगी बनते हैं न कि खुद के लिए। खुद के लिये उपयोगी बनने के लिए आपको कुछ नया खोजना होगा। वो करना ही बुद्धिमान होने की ओर एक कदम है।

इससे पहले तो आप केवल एक मेमोरी (स्मृति) मशीन हैं जो नियतांक, log, त्रिकोणमिति के मान, आदि रट कर उनकी मदद से गणना कर लेते हैं। इससे कुछ नया नहीं बनता। असली जीवन में इसका कोई कार्य ही नहीं है। 

आप कोई अनुसंधान में नहीं हैं। आप साधारण इंसान हैं और तब ये आपके जीवन में हिसाब-किताब रखने से ज्यादा कुछ काम का नहीं रह जाता। अतः आप ग़लतियों का ढेर लगा सकते हैं। गणित का कार्य अगर सबकुछ सिखाना होता तो आपको 5 या 7 विषय एक साथ न पढ़ाये जाते।

जिन लोगों ने गणित से प्रसिद्धि पाई, अधिकांशतः वे ईश्वर को मानते रहे। क्या ये उनकी बुद्धि की सीमा को नहीं दर्शाता? क्या गणित से वे ईश्वर को साबित कर सके? नहीं, फिर भी उसे मानना मूर्खता नहीं तो क्या है? 😊

जबकि IQ में गणित की बड़ी भूमिका होती है। 🤣

😊 अब मुझे तो गणित ठीक से नहीं आती। न किसी ने सिखाई और न ही रुचि थी। फिर भी जीवन में अपनी समस्याओं को हल कर लेता हूँ। मेरे अनुमान से गणित का बुद्धिमान होने से कोई लेनदेन नहीं है।

बुद्धिमान इंसान भी गणित सीख सकता है और एक औसत बुद्धि का मानव भी।

जिनके मस्तिष्क का आधा हिस्सा (तर्कवादी और गणनात्मक) दूसरे (कलात्मक) से अधिक विकसित हो वे गणित के क्षेत्र में नई खोज करके पारंगत भी हो सकते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं कि अंधविश्वास जैसे मूर्खता से दूर ही हों। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©