सकारात्मक शब्द स्वीकार से बना है। यानि किसी भी बात को स्वीकार कर लेना सकारात्मक है और नकार देना नकारात्मक। हम प्रायः नकारात्मक सोच जिसे कहते हैं दरअसल वह हर बात में 'नुकसान ही होगा' ऐसा सोचने की धारणा है। जबकि ऐसा सम्भव ही नहीं कि हर बात में नुकसान ही होगा।
कहीं हम इस धारणा के चलते लाभदायक बातों/मौकों को छोड़ न दें, इसलिए सकारात्मक सोच पर ज़ोर दिया जाता है। इसकी बारीकियों को इसलिये नहीं बताते क्योंकि मानव को औसत बुद्धि का तो मानते ही हैं जो कम से कम सही और गलत को पहचान ही लेगा।
सकारात्मक सोच के चलते यदि आप हर बात को जांचने की भी सोच रहे हैं तो भी आप कम खतरा उठाइये। जैसे किसी ने ईश्वर की अवधारणा दी तो आप कुछ समय तक उसे स्वीकार करके जांच कीजिये। सही या गलत का फैसला ले लेंगे। इस तरह से सकारात्मक सोच फायदा ही करेगी लेकिन यदि आप किसी के द्वारा दिये गए धोखे, धक्के, चप्पल को अपने मुहँ पर स्वीकार कर लेंगे तो आपको तकलीफ और नुकसान हो सकता है। अतः देख समझ कर सकारात्मक बनिये।
मान लीजिये कोई आपको आपकी गेंद मारने का प्रलोभन दे और आप 'ये क्या होता है' जानने के चक्कर में 'खोल के झुक गए' तो वो आपकी फाड़ भी सकता है। अतः ये सकारात्मक सोच भारी पड़ सकती है।
इसी तरह अगर कोई lockdown में आपको सहायता राशि और राशन दे और आप उसे नकार दें तो आपके लोढ़े लग सकते हैं।
सकारात्मक और नकारात्मक सोच आपके विवेक से तय होती है। शक करना नकारात्मकता है लेकिन जांच करना सकारात्मक है। अतः शक कीजिये लेकिन जांच भी कीजिये। तभी सकारात्मक सोच लाभ देगी अन्यथा आप अगला जो देगा स्वीकार लोगे तो या तो आपको गुलाब मिल सकता है या कोई आपके लोढ़े लगा सकता है। लगवाना या नकारना उस समय आपकी सकारात्मक सोच होगी।
अतः जो भी सोच आपको लाभकारी प्रतीत हो वह सकारात्मक है और जो सोच आपको नुकसान पहुँचाये वह सकारात्मक होकर भी नकारात्मक सोच है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©
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