Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

Translate

शुक्रवार, मई 29, 2020

Modern Indian Suger is now Vegan too!




Modern Indian Sugar is Vegan. No any factory using bone char as a refining agent.

Well, bone char is a charcoal made by burning of animal's bones in the form of tablets which is never dissolves in water. So your old sugar was still plant based. We just don't want to use any animal product in anyway because their demand will cause death of more animals.

USDA already banned it in USA. Also Indian companies claimed that they stopped using bone char in filtration of sugar, years ago. Now a days no any sugar company using this shit anymore. Links are in comment. Don't be fooled by rumours and the old unhygienic sugar making by bone char Videos on the internet and youtube.

Be happy, but please use it low as possible because you have already enough sugar in your other foods. Have a nice day! ~ Shubhanshu 2020©

For Information/Evidence Click here

बुधवार, मई 27, 2020

Right and Wrong are not depends on our point of view.




आपत्ति: जो आपकी सोच के विपरीत या खिलाफ़ है आप उसे खुद से दूर कर देते हैं। इस तरह आप भी वर्णवाद कर रहे हैं।

शुभ: कोई मेरी सोच के खिलाफ नहीं है। दरअसल वे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ हैं। मेरी सोच कोई धार्मिक या अवैज्ञानिक मान्यता नहीं है जो साबित न की जा सके। इसलिये यह स्पष्ट है कि गलत और सही को अलग करना सम्भव है।

घटिया इंसानो की संगत करने से घटिया ही बनते हैं। जब कोई अपराध करता है तो उसी समय निर्दोष और अपराधी के गुट बन जाते हैं।

इसलिये गलत और सही, चोर और पुलिस में यदि वे वाकई में अपने प्रति ईमानदार हैं तो दोस्ती नहीं हो सकती। गलत और सही विज्ञान और नैतिकता तय करती है। नैतिकता हम जो खुद के लिए व्यवहार चाहते हैं वही दूसरो से करें यह तय करता है। अपराध कानून तय करता है।

ऐसा लगता है कि गलत और सही आपका नज़रिया होता है। परंतु फिर कानून किसी को गलत कैसे ठहराता है? दरअसल गलत और सही, दूसरे निर्दोष का नुकसान करने वाला या उसके अधिकारों का हनन करने वाला ही होता है और इसे कोई नज़रिया नहीं बदल सकता। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, मई 26, 2020

No any vegan food is harmful, if you eat them as a food!




प्रायः कोई भी प्राकृतिक vegan उत्पाद स्वास्थ्य को नुकसान नहीं करता। नशे जैसे तम्बाकू, गांजा, अफीम, दारू और ड्रग आदि के दुरूपयोग के अलावा।

वनस्पति घी: भी अप्राकृतिक तरीके से बनता है (रिफाइंड तेल पर धातु के उत्प्रेरण से) और अगर इसमें saturated fat और ट्रांस फैट स्वीकृत मात्रा से अधिक है तो दिल के लिये नुकसानदेह होगा। 0% कोलेस्ट्रॉल

रिफाइंड तेल (unsaturated fat, दिल के लिये best): ये मांस, अंडे, दूध, मक्खन, देशी घी (पशुवसा) से जमा कोलेस्ट्रॉल को साफ करता है और आपकी उम्र लम्बी करता है। 0% कोलेस्ट्रॉल

मैदा: बारीक पिसा गेंहू। 0% कोलेस्ट्रॉल। मैदा को शोधन करने में कोई भी हानिकारक पदार्थ, उसमें नहीं छोड़ा जाता है। शोधन की प्रक्रिया केवल उसे साफ करने के लिये होती है, न कि गन्दा करने के लिये।

लेकिन कुछ अपवाद हैं। जैसे RO Water। RO water शोधन प्रक्रिया में उसकी अकुशलता के चलते पानी में कुछ हानिकारक पदार्थ जल में मिल जाते हैं जो उसे कड़वा बनाते हैं। इस पर आपको पूरी प्रमाणित रिपोर्ट गूगल पर मिल जाएगी। WHO ने क्लोरीन और कार्बन फिल्टर वाले पानी को 100% सुरक्षित बताया है।

कोई भी सब्जी, फल या अनाज हो, सब के सब सुरक्षित और पौष्टिक है। कोई वनस्पतियों में अपवाद होगा तो वह जनमानस के लिये उपलब्ध ही नहीं होगा।

और कोई हानिकारक पदार्थ आपको वनस्पति जगत से बताया गया हो तो मुझे बताइये। मैं उसका भी वैज्ञानिक विश्लेषण करके बताऊंगा उसका सत्य। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, मई 24, 2020

Nature drived instincts are our real religion




प्रचलित धार्मिक (रिलिजियस) दिखने के लिये डरपोक होना ज़रूरी है और प्रचलित धार्मिक होने के लिये मूर्ख होना ज़रूरी है।

प्रचलित धर्म: मानव निर्मित एक ऐसी नौटंकी जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

प्राकृतिक धर्म: प्रकृति ही सबका पहले से स्थापित धर्म है। हम सब जीव-जन्तु एक समान हैं। सबको यहाँ अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार जीवन जीने का हक है। अतः हम सबका धर्म हमारा अपना स्वभाव है जैसे हर जानवर का अपना स्वभाव होता है।

संविधान: जो स्वभाव से परे जाते हैं उनके लिये संविधान है। अर्थात व्यवस्थित समाज में अव्यवस्था फैलाने वाले लोगों और जन्तुओ को रोकने, कैद करने व सज़ा देने का विधान! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, मई 23, 2020

Feelings are your source of all miseries




जब भावना ही नहीं होगी, तो सब वही करेंगे जो विज्ञान और प्रकृति से, स्वभाव से उचित होगा। न कोई नफरत करेगा, न प्रेम के दिखावे की ज़रूरत पड़ेगी। हर इंसान ईमानदार होगा क्योंकि लालच की भावना नहीं होगी। कोई झगड़ा ही नहीं होगा क्योंकि बात सही या गलत बिंदु पर खत्म होगी।

न सम्मान की भावना न गुस्से और अपमान की भावना जागेगी। तब न तो कोई धर्म होगा और न ही कोई वफादारी के न मिलने पर कत्ल करेगा। क्योंकि लोग सिर्फ सत्य का साथ देंगे। वफ़ा तो पक्षपाती होती है। विवाद शांतिपूर्ण तरीके से निबट जाएंगे क्योंकि तब कोई अपनी मनवाने के लिये ज़िद नहीं करेगा। जो सही होगा वही मान लिया जाएगा।

अच्छी भावनाओं से ही बुरी भावना जुड़ी होती है। आप किसी से प्रेम करते हैं तो बाकियो से नफरत हो जाएगी। आप किसी पर दया करते हैं तो उसे दयनीय बनाने वाले पर आप नफरत और गुस्से से टूट पड़ोगे।

जब आप अच्छे और ईमानदार बनोगे तो जो आप जैसे नहीं हैं, उनको आप मार डालने की सोचोगे। गर्व की भावना आपको बाकियो से श्रेष्ठ दर्शा कर दूसरों को तुच्छ बना देगी और आप उनको नफरत से देखोगे।

जानवरों में भी भावनाओं का ज्वार होता है लेकिन वह इंसान जितना घमंडी नहीं होता। उसे खुद पर घमण्ड नहीं होता। इसलिये वह इतना भावुक नहीं दिखते जितने कि घमण्डी मानव। इंसान घमंडी था नहीं। इसे धर्म और कुछ धर्म द्वारा संचालित वैज्ञानिकों ने ऐसा बनाया। उन्होंने कहा कि इंसान श्रेष्ठ है, क्योंकि उस पे ज्यादा आयतन का मस्तिष्क है या इंसान कल्पित ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। परन्तु इस अतिरिक्त मस्तिष्क की आवश्यकता क्या है? ये वे कभी नहीं बता पाए। चलिये मैं बता देता हूँ।

इंसान इतना तुच्छ जंतु है कि ये प्रकृति में ज्यादा देर टिक नहीं पाता। उसका सारा मस्तिष्क प्रकृति को कैसे बर्बाद और नष्ट करके आलस्य बढाने वाले कार्य करें, इस पर केन्द्रित रहता है। इसमें इतनी भी क्षमता नहीं कि मौसम और एक दूसरे की हवस भरी नज़रों की मार से बच सके। उसने इसके लिये अपने ऊपर जानवरो की खाल ही कपड़े बना कर ओढ़ ली।

इससे गिरी हुई हालत और क्या होगी कि इंसान को अपनी त्वचा तक बेकार लगती है। उसको ढकने के लिये उसने बलात्कार संस्कृति और फैशन बाजार की व्यवस्था की। अब वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता, क्योंकि उसे चप्पल या जूते चाहिए।

उसे हाथ खुले रखने में भी समस्या है। दस्ताने पहनता है। वह अपने चेहरे व शरीर से भी संतुष्ट नहीं है। उसे उस पर भी लाखों रुपये लगाकर मेकअप और सर्जरी करवानी हैं या छेद करवा कर उसमें कील कांटा पहनना है। कुछ नहीं तो स्थाई टैटू बनवा कर ही दूसरे से अलग दिखना है। चाहें भद्दे ही क्यो न दिखें!

वह इतनी जल्दी बीमार पड़ता है कि मर ही जाता, अगर उसने चिकित्सा जगत की खोज न की होती। इंसान की ज़िंदगी छुई मुई सी है, जो इसने अपने मस्तिष्क की मदद से बचा रखी है। इसका मस्तिष्क केवल अपनी कायर और विकलांग ज़िन्दगी को बचाने के लिये काम आया।

इस कायर और विकलांग ज़िन्दगी को जीकर इसे खुद पर गुमान हो आया कि अरे वाह, देखो मैं भी जानवरों के जैसे अनुकूल जीवन जी सकता हूँ। प्रकृति ने तो मुझे अनुकूल बनाया ही नहीं।

लेकिन उसने जानवरो से भी ईर्ष्या रखी क्योंकि जानवरों पर पहले से सबकुछ था, जिससे वे मस्त होकर जीवन जीते थे। इससे चिढ़ कर उसने उनको ही खत्म कर देने की ठानी। इसलिए उसने Zoo बनाये, उनका व्यापार किया, उनका इस्तेमाल किया, उनका दोहन किया, उनका दूध चूसा, उनका कत्ल किया, उन पर प्रयोग करके उनको काटा, नोचा, खाया। उसने मेडिकल साइंस में बिना किसी प्रमाण के खुद को सर्वाहारी दर्शाया। जबकि सर्वाहारियो का एक भी लक्षण वह नहीं रखता था।

इतना कमज़ोर है इंसान और खुद को ही श्रेष्ठ कहता है? फिर जब कोई इसको खुद को श्रेष्ठ कहता दिखता है, तो ये उसे भी टोकने पहुँच जाता है और कहता है, "वाह! जी वाह! अपने मुहं और मिया मिट्ठू? घमंडी कहीं का।" क्योंकि, कोई और उस जैसा सोचे, तो उस घमण्डी को बर्दाश्त कहाँ होगा? एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, मई 22, 2020

Breasts are important, don't neglect them




स्तनों की बनावट में 2 महत्वपूर्ण घटक होते हैं। वसा (fat) और प्रोटीन। प्रोटीन की वास्तविक बढ़त व सीमा, ऑक्सीटोसिन हार्मोन (प्रेम हार्मोन) की मात्रा, माता-पिता के जीन्स और पोषण की सही मात्रा निर्धारित करती है। अतः स्तन एक बार जिस सीमा तक विकसित हो जाते हैं उससे ज्यादा बड़े, सख्त और तनाव युक्त नहीं हो सकते।

इसी लिये स्तनों को उभारने, पुष्ट और तनाव युक्त करने के लिये इम्प्लांट सर्जरी ही विकल्प रह जाता है।

आपने जितने भी, सर्जरी के अलावा उपायों से फायदा देखा है उसके पीछे कुछ सामान्य कारण होते हैं। जैसे

1. फैट की मात्रा अधिक होने से स्तन अस्थाई रूप से बड़े दिख सकते हैं लेकिन लटके रहेंगे।
2. प्रोटीन की कमी से भी बड़े और कठोर स्तन ढल जाते हैं।
3. प्रोटीन और फैट, दोनो ही सही मात्रा में न हों तो पोषण, मसाज और व्यायाम स्तनों को कामुक और ठोस बना सकते हैं।
4. प्रोटीन स्तन का आभासी कंकाल बनाता है जो दबाने पर कठोर जालिका के रूप में महसूस किया जा सकता है। वसा लिपिड्स के रूप में इन प्रोटीन रेशों को चिकनाहट और सहारा प्रदान करता है। दोनो के संयोग से स्तनों का सही विकास होता है।
5. स्तन दबाने और मालिश करने से और मजबूत व सख्त होते हैं। ऐसा उनमें मौजूद प्रोटीन की मांसपेशियों के टूटने और दोबारा और मोटे जोड़ बना कर जुड़ने से होता है। ऐसा हर बॉडीबिल्डिंग करने वाले के शरीर के साथ वजन उठाने पर भी होता है। स्तनों को इतना ही दबाएं जितना बर्दाश्त कर सकें। परंतु हल्का दर्द भी हो, तो ही स्तन मजबूत और सख्त होंगे। दर्द मासंपेशियों के टूटने से होता है। निप्पलों पर हल्का पानी दिखना पर्याप्त मर्दन के लिये काफी है, परन्तु इतना भी न दबाया जाय कि रक्त निकल आये।
6. स्तन दबाने से ढीले नहीं होते। ढीले होने की अफवाह संकीर्ण विचारों वालों ने फैलाई है। दरअसल स्तन दबने के बाद लड़कियों को आनंद आता है (प्रायः संभोग के दौरान) और वे ज्यादा रिलेक्स हो जाती हैं। इस कारण से उनके स्तन भी रिलेक्स हो जाते हैं जो केवल कुछ समय के लिये ही ढीले होते हैं।
7. स्तन कोई लड्डू नहीं हैं जो दबाने पर फूट जाएंगे। इनका निर्माण ही स्पंजी कोशिकाओं से हुआ है जो दबाने के लिए ही बने हैं। ये मैथुन गद्दी कहलाते हैं जो मेढ़क में दूसरे तरीके की पाई जाती है। स्तन मसलने से वे मैथुन के समय योनि में तरलता लाते हैं और ओर्गास्म जल्दी होता है। जो महिला मैथुन के समय अपने स्तनों को मर्दन करवाती हैं उनको ओर्गास्म खूब बढ़िया और जल्दी होता है।
8. सभी तरह की ब्रा स्तनों को ढीला, बेडौल और दर्दभरा बनाती हैं। अगर बहुत ज़रूरी हो जैसे दौड़ते समय उछलने से रोकना, तो ही मुलायम स्पोर्टस ब्रा पहनिए। निप्पल दिख रहा है, ऐसा सोच कर कभी ब्रा न पहनिए। निप्पल है तो दिखेगा ही। बिना निप्पल के भला कौन आपको पसन्द करेगा?
~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Feelings can make or destroy you!



मैं हर सबक अति करके ही सीखा हूँ। मैं बहुत ज्यादा भावुक हूँ ये सब जानते हैं। इसीलिए vegan भी बना, प्रेमी भी और अच्छा इंसान भी लेकिन इसी कारण मुझमें गुस्सा, लालच और नफरत भी भर गई। समय रहते इन पर नियंत्रण करने के लिये लोगों से दूर हो गया। खुद पर कार्य किया।

खुद में बदलाव लाये। फेसबुक को अखाड़ा बनाया और जो काम बाहर होता वह इधर करके जांच करी कि खुद पर कितना नियंत्रण हैं। 2017 से lockdown तक कोई भी स्पष्ट भद्दा शब्द नहीं बोला था। फिर पाया कि जो जितने भद्दे शब्द प्रयोग करता है उसके उतने ही ज्यादा चाहने वाले होते हैं तो खुद पर ढील दी ताकि फ्रस्ट्रेशन निकले।

मैं फेसबुक से समझ गया कि मेरा लोगों से मिलना जुलना खतरनाक है। इधर लोग मेरे ज़रा से सत्य बोलने पर भड़क कर जान से मारने की धमकी दे देते हैं, बदतमीजी करते हैं तो सोचो सामने होते तो मार ही डालते। इसलिये अनजान लोगों से दूरी ही भली।

जो भी मेरे जैसे या मेरे विचारों को पसन्द करने वाले मिलते हैं उनको ही असल जीवन मे भी मित्र बना सकता हूँ। मेरे जितना ज़हरबुझा प्राणी आम लोगों के जैसा घटिया नहीं है। इसलिये बढ़िया लोगों में ही मेरी पटती है। और बढ़िया लोग होते ही कितने हैं? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, मई 19, 2020

The so called luck now you can create in reality



किस्मत क्या है? किसी के साथ लगातार अच्छा होना या लगातार बुरा होना। अच्छा होना good luck और बुरा होना bad luck.

किस्मत को बदला नहीं जा सकता, ये माना जाता है। इसीलिये इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। किस्मत/भाग्य/luck शब्द दरअसल विधि के विधान की ओर इशारा करता है। लोगों की मान्यता है कि भाग्य पहले से लिखी कोई योजना है जो आपकी मर्जी के बिना ही आपको ऊंचा या नीचा गिरा सकती है। नीचे गिरने को बुरा भाग्य और ऊपर उठने को अच्छा भाग्य कहा जाता है। इसे केवल देखा और महसूस किया जाता है परंतु नियंत्रित नहीं किया जा सकता, ऐसी मान्यता धार्मिक दे गए हैं।

परन्तु इतिहास गवाह है कि बहुत अधिक सफल लोगों के पास कोई न कोई लकी वस्तु होती है। कुछ मामलों में तो किसी का दोस्त, कोई पोशाक, कोई जानवर भी लकी पाया गया है। हैरी पॉटर की कहानी में भी लकी पोशन यानि भाग्यशाली काढ़ा सारी कहानी पलट देता है। इसे सबसे ताकतवर काढ़ा माना जाता है। कभी लकी सिक्का, कभी लकी जर्सी, कभी लकी ब्रेसलेट, कभी ताबीज आदि तमाम वस्तुओं को लोगों ने अपने लिए लकी बताया है।

ये सब बातें किसी न किसी वास्तविक सच्चाई की ओर इशारा कर रही हैं। कैसे कोई इतना मेहनती व्यक्ति अपनी जीत को एक वस्तु को समर्पित कर देता है? जब कभी भी ये लकी वस्तु उनके पास नहीं होती है तो वे वाकई हार जाते हैं।

कई मेधावी छात्र इसी प्रकार के टोटके को मानते देखे गये हैं। वे इनको कई बार आजमाते हैं, हर बार उनका अनुमान सही निकलता है। वे उसे धोते नहीं। उसे वैसा ही रखते हैं जैसा उनकी पहली जीत के समय वह था।

इस प्रकार यह तो तय है कि बहुत से अमीर मानते हैं कि उनकी मेहनत तो थी ही परंतु उनके साथ उनका भाग्य भी था। तभी वे बाकी अपने प्रतिद्वंद्वीयों से आगे निकल सके। इन बातों ने इतना प्रभाव डाला कि इन लकी वस्तुओं की चोरियां तक हुईं। उनको वापस पाने के लिये मुंहमाँगे इनाम रखे गए।

कहने का तातपर्य है कि बहुत लोग भाग्यवादी होते हैं और उपर्युक्त उदाहरणों से धार्मिक मान्यताओं जिनमें 'भाग्य बदला नहीं जा सकता', जैसा बताया गया है की धज्जियाँ उड़ जाती हैं।

मतलब ये तो पक्का हो गया है कि ये कथित भाग्य अटल तो कतई नहीं है। इसे बदला जा सकता है। उपर्युक्त उदाहरण कहते हैं कि भाग्य वस्तुओं से भी बदल सकता है। जबकि वैज्ञानिक जांच से हर लकी वस्तु दूसरी किसी वस्तु की तरह ही साधारण पाई गई। फिर इनमें ऐसा क्या था कि इनके धारक इनमें कोई शक्ति महसूस करते हैं?

इन सब सवालों के वैज्ञानिक सिद्ध जवाब मेरे पास हैं। कथित भाग्य होता तो कुछ नहीं है, परंतु आप इसे बना सकते हैं। कुछ भी पहले से लिखा नहीं है। सब आप अपने मन से लिख सकते हैं। आप अपना भविष्य अभी तय कर सकते हैं। ये पहले से निर्धारित भविष्य ही आपका असली भाग्य है। मैं इसी नये बने भाग्य को ही सरलता से समझाने के लिए पुराना भाग्य नाम दे रहा हूँ क्योंकि ये नया वाला उसी काल्पनिक जैसा कार्य करता है। दरअसल विज्ञान ने उपर्युक्त घटनाओं में छिपा रहस्य खोज लिया है।

हाँ आप अपना भाग्य बना सकते हैं। ये एकदम जादू की तरह महसूस होगा क्योकि आपको उसकी विधि पता नहीं होगी। बस उसका परिणाम पता होगा। बिल्कुल जैसे कहा जाता है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। फल मीठा ही मिलेगा।

निराशा हमारी खुद की बनाई बदकिस्मती है। जब हम निराश होते हैं तो हम बर्बादी की ओर बढ़ जाते हैं। अब हम जो भी करेंगे, परिणाम बुरा ही होगा। इसलिए नकारत्मकता से दूर रहने को कहा जाता है। इसीलिए अच्छा सोचने और बोलने को कहा जाता है।

आपने मनहूसियत और काली जुबान वाले लोगों के बारे में भी सुना होगा। इसके पीछे भी यही रहस्य कार्य करता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मेंटलिस्ट डैरिन ब्राऊन ने इस पर कई प्रयोग किये और कई लोगों की बदकिस्मती को खुशकिस्मती से बदल दिया। इसका प्रसारण टेलीविजन पर हो चुका है। यूट्यूब पर आपको इसके बहुत से वीडियो मिल जाएंगे।

यानि कुल मिला कर किस्मत होती है और इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यह एक मानसिक उपकरण की तरह है। जो वाकई कार्य करती है। अच्छा या बुरा? ये आप तय करेंगे।

हैरिपोटर की कहानी में हैरी भाग्यशाली काढ़े को रौन वीसली के पेय में डालने का ढोंग करता है और रौन वाकई बेहतर प्रदर्शन कर देता है। यानि बात काढ़े की, लकी वस्तु की नहीं है। ये है आपके मन की। ये मन मैं काबू करना सिखाता हूँ। मैं हूँ the luck builder! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Poverty is a highest selling emotional product for communists and politicians



मजदूरों और किसानों की हालत खुद उन्होंने ही ज्यादा देखी है। भड़कने पर गृहयुद्ध भी उनको ही करना है। फ़िर सोशलमीडिया पर गरीबी पोस्ट करके किसे भड़काया जा रहा है? किसी को नहीं। ये बस like पाने की हवस, उनके नाम पर दान मांग कर ऐश करना और फेमस होने की हवस मात्र है।

मोबाइल-इंटरनेट वाला बस रिएक्शन कमेंट देकर, समोसे खाने चला जाता है। उसने पोस्ट फॉरवर्ड करके गरीबों का भला कर तो दिया है। उधर मजदूर और किसान अशिक्षा के मारे भटक रहे हैं गली-गली। उनके पुरखों ने यही किया था, वो भी कर रहे हैं। पहले उनको पढ़ने नहीं दिया जातिवाद ने और अब उनको कम्युनिस्ट पढ़ने नहीं दे रहे। उनकी रोटी तो गरीबों के खून को बहाकर उसकी फोटो वायरल करने से ही तो चलती है। सलाम तो सभी करते हैं लेकिन उसका रंग लाल तो खून से ही होगा।

कम्युनिस्टों की हाँ में हाँ तो मिलाते रहना है, अन्यथा आप निर्दयी, कठोर और गरीबों से नफरत करने वाले जो बन जाओगे। 🤣 गरीबों का क्या है? कट रही है ज़िन्दगी। 3-4 बच्चे उन्होंने बालमजदूरी के लिये पैदा कर लिए हैं। (भाड़ में गया कानून 😊) सरकार बच्चा पैदा करने पर इनाम जो देती है। 🤣

उनको राजनीति, सरकार से कुछ चाहिये होता तो मेहनत नहीं करते। आमरण अनशन पर बैठ जाते, अन्ना हजारे की तरह, गांधी की तरह! जिसे हम मोटे पेट वाले लोग देख कर आंसू बहाते हैं न, उनको इसकी अब आदत पड़ चुकी है। उनको अपनी हालत से कोई समस्या नहीं है और न ही आप उनका कोई भला कर सकते हैं, क्योंकि मदद उसी की कर सकते हैं जो मदद मांग रहा हो। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

You can be lucky, it's a psychological effect




सन 2000 से मेरे बुरे दिन शुरू हुए। आने वाले वर्षों में मुझे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई शैक्षिक परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण हो गया। सन 2005 में मुझे मेरी wapsite (माइक्रोब्लॉग) tagtag.com/shubhanshu पर मेरे आतंकवाद के खिलाफ आह्वान को पढ़ लेने पर ओसामा बिन लादेन की धमकी मिली। दिल्ली में बम विस्फोटों की चेतावनी और मुझे जान से मारने की धमकी भी।

मैंने अमरउजाला अखबार से सम्पर्क किया। पत्रकार पवन चन्द्र जी ने आकर मेरा बयान लिया और मेरे मोबाइल से एक इंटरनेट कैफ़े जाकर उस सन्देश का प्रिंट भी लिया। अगले दिन हेडलाइन में मेरी खबर छपी।

मेरा नाम मेरे कहने पर बदल कर सुभाष रखा गया। अगले 3 दिन तक इस खबर पर कार्यवाही होती रही। मुझे छुप कर, दाढ़ी बढा कर रहने को कहा गया। मुझे कुछ दिन तक पवन जी के फोन आते रहे। उन्होंने कहा कि पुलिस तुमको ढूढ़ रही है। मैंने तुम्हारी पहचान छुपा रखी है। लेकिन फिर भी सावधान रहो। वेबसाइट डिलीट कर दो और अपने फोटो भी इंटरनेट से हटा लो। पुलिस में लादेन के लोग हो सकते हैं।

इस खबर के खुलने पर ओसामा का गैंग सावधान हो गया और 3 माह तक कुछ नहीं हुआ। फिर अचानक दिल्ली में 11 में से 10 बम धमाके हुए। एक फुस्सी निकल गया। न्यूज़ में आया कि 3 माह पहले ही बरेली एक लड़के ने बम धमाकों की सूचना पुलिस को दी थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।

मेरी हालत पतली थी। मेरे चक्कर में मेरे परिवार को खतरा हो सकता था। मैं मरने की सोचने लगा था और तब तरस खाकर मुझे किसी ने एक राज़ बताया। वो राज़ जानकर मैं चौंक पड़ा। मेरा सारा डर और निराशा दूर हो गई।

उस दिन से मैंने यह मनोविज्ञान आजमाना शुरू कर दिया। अगले ही वर्ष 2006 में मैंने इस मनोविज्ञान का प्रयोग किया। मुझे आयशा टाकिया नामक हीरोइन पसन्द थी। मैंने उससे सम्पर्क करने की इच्छा की। इस मनोवैज्ञानिक विधि में मेरी हर जायज इच्छा पूरी करने का दावा था। इच्छा की पूर्ति के लिये कुछ जायज प्रयास भी करने थे। तभी luck अपना काम करेगा।

ये वैसा ही है जैसे बिना लॉटरी टिकट लिये लॉटरी जीत जाने की इच्छा करना। मतलब पहले लॉटरी खरीदनी पड़ेगी तभी वह लगेगी।

मैंने कुछ प्रयास किये और एक दिन चमत्कार हुआ। मुझे आयशा ने ईमेल किया। मैंने सोचा ऐसा सम्भव नहीं। कोई फ्रॉड है। मैंने ईमेल ट्रेस किया। मुम्बई का निकला। थोड़ा विश्वास बढा। फिर मैंने क्रॉस सवाल किए और छोटी से छोटी बात पर भी सन्देह किया। आयशा ने सभी सन्देह दूर कर दिए।

फिर हमने करीब 2 साल तक ईमेल पर बात की। इसी दौरान मुझे उस इंसान का ध्यान आया जिसने मुझे यह राज़ बताया था। मैंने उससे पूछा, कि ये राज़ मुझे क्यों बताया?

उसने कहा, "तुम्हारा दुर्भाग्य बड़ा था, तभी साधारण सा बालक होकर भी ओसामा बिन लादेन को प्रभावित करके दुश्मन बना लिया। तुम्हारी लिखाई गजब की है। ऐसे इंसान को मैं खो नहीं सकता। तुम ही सही पात्र हो इस राज़ के। ये राज़ बहुतों पर है लेकिन वे पात्र नहीं हैं।

खुद देखो, तुमने कुछ ऐसा लिखा कि पहले ओसामा बिन लादेन, डर गया और दूसरी बार तुमने कुछ ऐसा लिखा कि फ़िल्म अभिनेत्री ने तुमको सम्पर्क किया। तुम बस अपने luck का इस्तेमाल ठीक नहीं कर रहे थे। मैंने बस दिशा दी है। तुम जो चाहो हासिल कर सकते हो। बस इसका गलत इस्तेमाल मत करना कभी।"

उसकी बातों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया। मैंने फिर से इसे आजमाने की सोची। और ओसामा बिन लादेन मारा गया।

अचानक मैं डर भी गया। मेरे सपने छोटे हो गए। मैं घबराने लगा अमीर हो जाने से, फेमस हो जाने से। मैं इसके लिये तैयार नहीं था। मांगते ही मिल जाने का डर सताने लगा। क्या हो कि जो मांगू उसे सम्भाल न पाऊं? तब तो खतरा हो सकता है।

तब से मैं वैरागी सा हो गया। जब किस्मत आपके कब्जे में हो तो एक डर भी सताने लगता है कि जब लोग पूछेंगे कि 2 कौड़ी का इंसान अचानक राजा कैसे बन गया? तब क्या जवाब दूँगा? इसलिये मेहनत से ही आगे जाने में इज़्ज़त है। अतः मैंने इस विधि का सीमित प्रयोग तय किया।

अब बस मैंने संतोष का रास्ता चुना और उतना ही मांगा जितना पर्याप्त हो। बाकी लोगों के संसाधनों पर मैं अकेले कब्जा करना नहीं चाहता था। मेरी महत्वाकांक्षा मर गई थी। इसलिए मैंने केवल इन्वेस्टमेंट के लिए धन एकत्र करने पर फोकस किया। आज मैं लाखों रुपयों का मालिक हूँ। लेकिन रहता फकीरों की तरह नँगा हूँ। इसी में आराम है। कपड़ों में घुटन है। आज इस लायक हूँ कि मकान भी है और बिना कोई हाथ-पैर चलाये साल के 374000₹ कमा लेता हूँ।

मेरे ऊपर न तो मंहगाई असर करती है और न ही lock डाउन। अपने सभी शौक पूरे करता हूँ। माता पिता भी मुझे लकी मानते हैं। पिता को मैंने अपने मनोविज्ञान से जिंदा रखा हुआ है। डॉक्टर कहते हैं कि ये ज़िंदा कैसे हैं? इनको तो 20 साल पहले ही मर जाना चाहिए था। बहुत ही लकी आदमी हैं। और दूसरी तरफ पापा मुझे अपनी ज़िंदगी का जीवन दूत मानते हैं।

मैंने 2008 में एक महिला दोस्त बनाई। उसने खुद ही आकर मुझे प्रपोज किया। दरअसल मेरी इच्छा थी कि वह ऐसा करे और उसने कर दिया। मुझे लोगों ने कहा था कि तुम इतने ज्यादा अच्छे हो कि अच्छे से अच्छे लड़के तुम्हारे आगे दोषी हैं। तुमको कोई अपने जैसी महान नहीं मिलेगी। मैंने कहा अच्छा, चलो अपना luck आजमाते हैं। मुझे प्यार करने वाली दोस्त मिली। उसने अपने घरवालों से विरोध करके मेरा साथ दिया। मैंने कभी कोई पंगा नहीं लिया। उसको जैसा समझाता, वह वैसा ही करती और उसके घरवाले भी उसे टोकना बन्द कर गए।

आज हम दोनों वैसे ही आज़ाद हैं जैसे कोई बिना माँ बाप का इंसान आज़ाद होता है। सब कहते हैं कि तू लकी है। उधर मेरी दोस्त को सब कहते हैं कि वो लकी है कि उसे मैं मिला। तन और मन दोनो से खुश रखने वाला।

मैंने आगे के तमाम कामों में ऐसी सफलता पाई कि लोग मेरी इज़्ज़त करने लगे। बड़े बड़े घमण्डी पैर पड़ गए। माफी मांगी। सबने एक ही डायलॉग मारा, "Shubhanshu हम तुमको जैसा समझते थे, तुम वैसे नहीं हो।"

और मेरे होठों पर बस एक मुस्कान बिखर जाती है। ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, मई 16, 2020

Farmership and Labourship are not reserved for Illiterates

मजदूरों और किसानों के कार्य महत्वपूर्ण होते हुए भी उनको सम्मान से नहीं देखा जाता। उसका कारण उनका कम या बिल्कुल शिक्षित न होना है। अनपढ़ व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता है, जब तक उसे नेता या धनवान बनते न देखा जाए। 

किसानों और मजदूरों की दुर्दशा अशिक्षा के कारण ही है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति को शिक्षित व्यक्ति तब तक अपमान से देखता है, जब तक वह शिक्षित या धनवान न हो जाये। निर्धनता तो पढ़े लिखों का भी सम्मान छीन लेती है। सब उनको नकलची या फेक डिग्री वाला समझने लगते हैं।

शिक्षा ही आपकी आज़ादी की और सम्मान की चाभी है। इसे पाकर ही आप समाज में उच्च स्थान पा सकते हैं। शिक्षा पाकर आप किसानी कीजिये या मजदूरी भी कर सकते हैं तो वही कीजिये। कोई भी काम छोटा नहीं होता, अगर उसे कुशल और शिक्षित व्यक्ति करे।

नौकरी वही करे जिसे नौकर बनना हो। किसान और मजदूर तो अपने मालिक खुद बन सकते हैं। गर्व से लोगों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर श्रम कीजिये और गर्व से सबके लिये अपने खेतों में फसलों का सोना उगाइये।

जय शिक्षित मजदूर, जय शिक्षित किसान! तभी होगा मेरा भारत महान! ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

The Luck Builder

इंसान जो भी भुगत रहा अच्छा या बुरा, यह उसका खुद का चुनाव है। कर्म करो फल की इच्छा न करो का अर्थ है कि घबराओ मत। डरो मत। अच्छा कार्य करो। परिणाम अच्छा ही आएगा! पिछला जन्म होता नहीं तो पिछले जन्म के कर्म किधर से आ गए?

मान भी लो कि पिछला जन्म होता है, तो भी जब आपको अपने पिछले जन्म का घण्टा कुछ याद नहीं है तो सज़ा पाकर क्या पश्चाताप करोगे? घण्टा!

अतः ये बकवास बात है, केवल तसल्ली देने के लिये, ताकि कोई गुस्से में गलत कदम न उठा ले।

किस्मत कुछ नहीं है। बस अवसरों की एक कड़ी है जो आपकी सोच से चलती है। जी हाँ आपकी सोच से।

बहुत लोग कहते हैं कि शुभ तुम जो कहते हो, वही कर दिखाते हो। कैसे? असम्भव कार्य भी कैसे कर देते हो? इतना कॉन्फिडेंट कैसे रह लेते हो। जो हमको ओवर कॉन्फिडेंस लगने लगता है। क्या तुम कोई जादू जानते हो? इतना लकी कैसे?

हकीकत यह है कि हम लोग अपने मस्तिष्क को कभी ठीक से समझ नहीं पाते। हमारा दिमाग ही हमारा जादूगर है। हाँ मैं वैज्ञानिक हूँ, और मैं किस्मत को अपनी जेब में रखता हूँ। वैज्ञानिक तरीके से।

आपकी बदकिस्मती आपकी बनाई हुई है और आपकी खुशकिस्मती भी। और इसको आप बदल सकते हैं।

मेरी ये बात अपराधी भी सुन रहे होंगे और वो भी जो अपराध करना चाहते हैं। वो भी जो गलत करके बच जाना चाहते हैं। इसलिए ये राज़ सबको नहीं बताना चाहिए। एक संकेत ही दे रहा हूँ कि सब आपकी ही करनी है जो आज आप भर रहे हो और आगे भी भरोगे। अच्छा या बुरा सब आपका अपना चुनाव है। ~ Shubhanshu The Luck Builder 2020©

मंगलवार, मई 12, 2020

I am not Covid19 ~ PM




PM: lockdown में सबकी गांड फट गई होगी। बोलो, फण्ड में से कितना राशन भेज दूँ?
जनता: दारू-दारू-दारू!
PM: गलत बात! 70% टैक्स लगा दूँगा। मत पीना।
जनता: दारू-दारू-दारू, देता है या गांड फाड़ दूँ?
PM: तुमने रामायण मांगी, दे दी, महाभारत मांगी, दे दी, श्री कृष्णा मांगा, दे दिया। अब ले लो दारू भी ले लो। हमें लगा अनाज चाहिए, इसलिये फंड में दान मांगा।

चलो तुम टैक्स देने पर आमादा हो, तो टैक्स ही दे दो! मैं तो उसी दिन समझ गया था कि तुम सब मूर्ख हो, जिस दिन मैंने ताली-थाली-दीवाली की बात कही और तुम फट से मान गए। जितना कहा, उससे ज्यादा किया।

भारत माता की कसम, जब से PM बना हूँ, तब से देख रहा हूँ। मैं तो चाय बेचता था। कम पढा-लिखा था। इसलिये मूर्खतापन्ति करता हूँ। लेकिन तुम तो एक से बढ़कर एक धुरंधर हो। फिर काहे मूर्खतापन्ति करते हो?

इस साल की शुरुआत से ही, पूरी दुनिया में बर्बादी के दिन शुरू हो गए। जो इस देश में हजार साल में नहीं हुआ वो इस साल हो गया। बहुत बुरा समय है। अर्थव्यवस्था का नाश हो गया। पहली बार इतने समय तक देश घरों में बन्द रहा। अघोषित इमरजेंसी लगानी पड़ गई।

कामगार मजदूरों पर असर पड़ा। उद्द्योग धंधे चौपट हो गए। सरकार पर बिना काम के वेतन देने का अतिरिक्त दबाव पड़ा। देश 10 साल पीछे चला गया। पूरी दुनिया 10 साल पीछे चली गई। फिर भी मैं इस छोटे से दिमाग से जो भी बन पड़ रहा है, अपने एक्सपर्ट सलाहकारों से जाँच करवा कर कर रहा हूँ।

उधर कांग्रेस गांड मार रही है, तो दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी हथोड़ा और हंसिया दिखा रही है। लगी पड़ी है। अरे इस कठोर समय में तो राजनिति न करो। ऐसा तुम्हारी सरकार के साथ भी हो सकता था। अफवाहें उड़ा कर मरे को क्यों मांर रहे हो।

अनपढ़ नागरिक परेशान है, उसे पता भी नहीं कि हो क्या रहा है? उसे समझाने की जगह, भड़काया जा रहा है। उकसाया जा रहा है। ये तक कह दिया कि कोरोना मैंने फैला दिया है। अरे निर्लज्जों, चीन में कोरोना मैंने फैला दिया? अमेरिका में मैंने फैला दिया? अरे मैं तो अभी भला चंगा हूँ, मुझे ही कोरोना है, बता दिया कमीनो। अभी ज़िंदा हूँ मैं।

राज्यों में फिर से मजदूर काम पर लौट सकें इसलिये मजदूर एक्ट में अस्थायी संशोधन की ज़रूरत पड़ी। हमने कहा कि मजदूर काम पर लौट आये। उनकी और उनके ऊपर निर्भर व्यापारों की हालत सुधरे। राज्य सरकारों ने उसे सुना। उनको अपनाया। अब मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर भी काम कर सेकेंगे।

ज्यादा काम करना चाहें तो ओवर टाइम ले सकते हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं है। अपनी सहूलियत से कार्य करें। कोई आपको तंग करे तो शिकायत कीजिये। सुरक्षा के सारे नियम पूर्ववत हैं। किसी का हक नहीं मारा जाएगा। हंगामे से दूर रहें। आपके भले के लिये ही होगा। सब काम आपके लिए ही कर रहा हूँ। आपका ही सेवक हूँ।

बस धैर्य रखिये। भड़काऊ नेताओं से दूर रहिये। वो आपके खून पर अपना गुजारा करते हैं। आपके घर जला कर रोटी सेकेंगे। मैंने भी सेंकी थीं। गुजरात दंगे याद हैं? करवाने पड़े। क्या करता, सीट बचानी थी। हो गयी गलती। बहक गए कदम। बहका दिया राजनीती ने मुझे। लेकिन अब नहीं। अब बस। बहुत खून बह गया। बहुत लाशें बिछ गईं। मैं बूढ़ा हो गया। अब राजनीति नहीं होती। दलदल है ये। फंस जाते हैं अच्छे-अच्छे। कितना भी अच्छा कर लो। फेकू ही कहलाता हूँ। नहीं होता अब। पहले भी कहा था कि कह दो एक बार, कह दो एक बार कि नहीं चाहिए मोदी। मेरा क्या है? झोला लेकर चला जाऊँगा। इस पर भी राजनीति हो गई।

कहा गया कि झोले में क्या ले जाओगे? अरे झोले में मैं लोढ़ा ले जाऊँगा भोसड़ी वालों। अरे झोले में एक फकीर क्या ले जाता है? वही एक जोड़ी कपड़े, तेल, साबुन, आटा, दाल, नमक, और हो सका तो 2-3 आलू प्याज टमाटर भी। अब इसको भी नहीं ले जाने दोगे तो डाल लो अपनी गांड में। मैं फिर कहीं से पैदा कर लूंगा। अभी दम है हाथों में। कहीं मजदूरी कर लूंगा। चाय बेच लूंगा। लेकिन जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जय हिंद देशवासियों! 👍 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Disclaimer: व्यंग्य। केवल मनोरंजन हेतु। इसका किसी असली जीवित व्यक्ति से सम्बंध नहीं है।

शनिवार, मई 09, 2020

सरकार व्यापारियों का ऋण माफ कर रही है मगर किसानों का नहीं, आखिर क्यों?




कुछ विद्वानों को लगता है कि करोड़ो रूपये माफ कर दिए विलफुल डिफॉल्टर के और किसानों का कर्ज माफ नहीं कर रहे। इन विद्वानो को न तो कानून पता हैं और न ही नियम। ये कम्युनिस्ट संविधान को नहीं मानते इसलिये ऐसी सोच रखते हैं।

NPN कानून के तहत जब व्यक्ति के पास कुछ सम्पत्ति नहीं शेष रह जाती है तो उसे दिवालिया कहा जाता है। यानि हम उससे कुछ वसूल नहीं कर सकते। नँगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?

इसको ऐसे समझो। स्थिति 1: माना आपने नियमो का पालन करके सम्पत्ति गिरवी रख कर लोन लिया और एक मंदिर बनाया। खूब कमाई हुई। फिर अचानक एक दिन lockdown लग गया। गांड फट गई। एक एक पैसे के मोहताज हो गए। लोन की किस्त गांड से बाहर आने लगी। तब आपने कहा कि ले लो मंदिर, ले लो घर। मेरी पूरी तरह से फट गई है। अब सिलने को धागा तक न बचा। तब बैंक आपकी जांच करेगी और आपकी सम्पत्ति के वर्तमान मूल्य का आंकलन करके उसे नीलाम कर देगी।

अब मान लो मंदिर नीलाम हुआ कम कीमत पर। जैसे 1 करोड़ का मंदिर अब 1 लाख का रह गया, आपने लोन लिया 50 लाख का। क़िस्त चुकाना बन्द कर दिया क्योंकि आमदनी कम हुई। ब्याज बढ़ता गया। 1 करोड़ हो गया। अब बैंक को 100 लाख की जगह केवल 1 लाख मिला। आप खड़े नँगे, बेघर, सड़कछाप, तब बैंक आपका 99 लाख NPN के नियम से माफ कर देगी और रिजर्व बैंक से मदद लेगी।

स्थिति 2: अगर आप ने पैसा होते हुए भी क़िस्त नहीं दी और भाग गए देश छोड़ कर, तो आप विलफुल डिफाल्टर हुए। ऐसी दशा में आपको इंटरपोल पुलिस पकड़ेगी और पकड़ने के बाद जो भी सम्पत्ति मिलेगी, उससे लोन चुकायेगी और बचा हुआ लोन, चूंकि कुछ बचा ही नहीं है अगले पर, उसे माफ कर देगी। लेकिन जेल भेजा जाएगा।

स्थिति 3: आप किसान हैं। आपने 20 लाख लोन लेकर अपना खेत गिरवी रखा। इस पैसे से बेटी की शादी में दावत करी। उत्सव मनाया। खूब कर्जा लेकर दारू पिया। सब 20 लाख उड़ा दिया। अब कमाई हुई कम। तो गांड फ़टी कि लोन कैसे चुकाएँ? ब्याज बढ़ता जा रहा है। तब आप सरकार को कोसते हैं कि कारपोरेट के करोड़ो माफ कर दिए, हमारे लाखों माफ नहीं कर रहे। अरे भाई, आप भी खेत-मकान बेचकर सड़क पर आ जाओ। दिवालिया हो जाओ। भीख मांगो। आपका भी लोन माफ हो जाएगा। या पैसा हो तो विदेश भाग जाओ। पुलिस जब पकड़ेगी तो जीवन भर जेल में रहना। तब तक ऐश करना। हाँ लोन उसमें भी माफ हो जाएगा, इधर की सम्पत्ति नीलाम करने के बाद बचा हुआ।

तो आपने समझा कि भिखारी बन गए व्यक्ति को धन दिया जाता है, न कि लिया जाता है। इतना तो खुद जानते होंगे। वैसे भी विलफुल डिफाल्टर को अपराधी माना जाता है। तो कानून तो अपना काम करेगा ही। भगोड़े को पकड़ने के प्रयास चल ही रहे हैं। उसकी संपत्ति लोन चुकाने के लिये पर्याप्त नहीं है तो उसका लोन माफ होना तय है। उसकी गांड से नहीं पैसा बन जायेगा। अगले पर नहीं है तो पैसा कहाँ से ले लोगे? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गुरुवार, मई 07, 2020

My B.Ed. From Jugal kishor college of Gawan



संविधान अमीर - गरीब के लिये विभाजित नहीं है। सब नागरिक समान अवसर और हक रखते हैं। सबके कर्तव्य भी एक समान हैं। जो शोषित हैं, उनको आरक्षण बराबरी पर लाने हेतु दिया गया है न कि अलग दिखाने के लिए। शोषक सोच वालों के मुहं पर तमाचा है आरक्षण।

आरक्षण प्रतिनिधित्व पर केंद्रित था और 90% है भी। जो 10% जाति पर आधारित है, वह खत्म होने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता बहुजन समाज से ही हैं और सम्पन्न बहुजनों के भी आरक्षण से लाभ उठाने पर आपत्ति जताते हैं। ज़ाहिर है कि जो जन सामान्य की बराबरी पर आ गए, उनको आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहिये।

धन आधारित लाभ केवल गरीब को मिलना है। जहाँ भी धन का लाभ आय प्रमाण पत्र देखे बिना मिल रहा है उनका लाभ बन्द होना चाहिए। प्रतिनिधित्व आधारित लाभ की ज़रूरत धन की व्यवस्था के बाद पड़ती है। इसलिये धन उपलब्ध करवा दिया जाता है। परंतु यदि हम बिना आय प्रमाण पत्र के कोई आर्थिक सहायता पा रहे तो नियमों में कुछ गड़बड़ी है।

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि मैं 2012 में बीएड करने के लिये गंवा (बबराला के पास, उत्तर प्रदेश) गया था। मैंने पहली बार अपना जातिआय प्रमाण पत्र इस्तेमाल करने की सोची। फॉर्म में लिखा था कि शोषित वर्ग को 0 फीस देनी है। मैं जाति प्रमाण पत्र और 6 माह से ज्यादा पुराना आय प्रमाण पत्र ले गया। कारण था कि आय प्रमाण पत्र का कोई जिक्र फॉर्म में नहीं था। अन्यथा नया बनवा लेता।

काउंसलिंग के दौरान पता चला कि 6 माह के अंदर बना आय प्रमाण पत्र साथ में लाना है। उन्हीं की फीस माफ होगी। कुछ अन्य लोग भी नहीं लाये थे। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होने के बाद ड्राफ्ट जमा करना था। जिनका आय प्रमाण पत्र 4 लाख तक का था उनको 0 फीस भरने की स्लिप मिली। मेरा पुराना आय प्रमाण पत्र 85000₹/वार्षिक का था फिर भी मुझे 56000 रुपये भरने पड़ गए।

इस तरह यह तो साबित हुआ कि केवल जाति प्रमाण पत्र से रेंक में लाभ मिल सकता है (मेरी रेंक सामान्य वर्ग में आई थी) लेकिन आर्थिक लाभ के लिये जाति प्रमाणपत्र के साथ, निश्चित धनराशि का आय प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। क्या यह सब जगह है? मुझे पता नहीं। मैंने पहली बार इनको प्रयोग किया था।

घर से 200 km दूर रोज़ आना जाना सम्भव नहीं था। कोई साधन नहीं था जो सीधे उधर पहुँचा सके। मैंने किराये पर कमरा देखा तो पता चला हगने के लिये खेत में जाऊं। किसी अनजान के खेत में हगते हुए कोई पीट सकता था। इसलिये लेट्रिन-पानी वाला रूम पूछा। पता चला कि वह कॉलेज से काफी दूर पर 2000 रु महीना वाला है। ये सब देख सुन के मेरी फट चुकी थी, अतः मैं हताश हो गया। पहले ही कॉलेज घुसते हुए ही 500₹ रिश्वत ले चुका, फिर फॉर्म भरने के समय 20000₹ मांगने लगा तो मैंने कहा, "गांव मराओ झोपड़ी वालों।" और वापस घर आ गया।

एक दिन फोन आया, "क्या आपने बीएड छोड़ दिया है?" मैंने कहा, "हाँ, तुम लोगों का पेट कभी भरता नहीं और मुझको तुम्हारे कॉलेज में पैसा भी फ्री में बांटो तो भी नहीं रहना। दिन में भी मक्खी जैसे मच्छर काटते हैं, रहने-खाने और आने जाने की व्यवस्था नहीं और होस्टल बन्द करके रखते हो। रख लो मेरी फीस (जिसमें से मुझे कोई भी सामान, सुविधा नहीं दी गयी)। मैं उधर पूरे 60000₹ बर्बाद करके चला आया था। बरेली कॉलेज से सुदूर स्थित गांव जाना प्रमोशन नहीं, डिमोशन था। दोबारा बीएड न करने की शपथ ली और चला आया। (लग गए लोढ़े 😢) ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

सोमवार, मई 04, 2020

Poverty is projected on us, by us!




शिक्षित अमीर के यहाँ पति-पत्नी दोनो कमाते हैं। अधिकतम खर्च, स्वास्थ्य पर। ज्यादातर दुर्व्यसन (तंम्बाकू/शराब/नशा) से दूर। नशा करने वाले भी ब्रांडेड, कम खतरे वाले नशे करते हैं। बच्चे 1-2 पैदा करते हैं। निजी खर्च वाले महंगे विद्यालयों में पढ़ाते हैं। गरीबों को अपने से उल्टे काम करते देख कर चिढ़ते हैं।

गरीब के यहाँ कमाने वाला केवल 1, समस्त दुर्व्यसन युक्त नशेड़ी आदमी। अधिकतम ख़र्च घटिया गुणवत्ता के दुर्व्यसन पर। 5-8 बच्चे पैदा करते हैं। 10% सरकारी चुंगी विद्यालय में मुफ्त में पढ़ाते हैं। बाकी के 90% उनको खड़ा होते ही, सीधे बाल मजदूरी पर लगा देते हैं। लड़का बाहर, लड़की भीतर। अमीरों के स्वास्थ्य पर हुए भारी खर्चे पर हंसते हैं। अमीरों को फालतू खर्च करने वाला समझ कर चिढ़ते हैं जबकि खुद पर दुर्व्यसन का खर्च फालतू ही करते हैं।

दोनो को बच्चा पैदा करने से पहले ही अपनी औकात पता होती है। सोचो, गरीबी को बनाया गया है। वह है नहीं। अमीर और गरीब इंसान को उसका नज़रिया बनाता है। मांगने के लिए, दूसरों के पैरों में गिरने वाले, कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Communism and its opposite Communists




साम्यवाद कहता है कि सबको केवल बेसिक सुविधाएँ दी जाएं। यानि सादा संतुलित भोजन, मौसम से बचाने हेतु सस्ते वस्त्र और काम चलाऊ आवास।

जिनके पास ये सब है, वो खुद को नितांत गरीब बोलते हैं। साम्यवाद का अर्थ है सब पर बराबर संसाधन हों। इसलिये सब जनसंख्या के हिसाब से बंटेगा और उसकी कीमत तानाशाह की फैक्टरियों में जी तोड़ श्रम करके चुकानी पड़ेगी। तभी भोजन और भत्ता मिलेगा। तानाशाह अमीर होता जाएगा। जनता गरीब रहेगी।

अब तानाशाह शाही जीवन जिये और जनता मजदूरी करके आधारभूत सुविधाओं के साथ बस ज़िंदा रहे। जनसंख्या पर रोक लगा दी जाएगी एक दिन बिना बताये, अचानक। तब पकड़ के नसबंदी करी जाएगी क्योंकि संसाधन सीमित हैं। अभी हेलमेट/सीटबेल्ट के बिना सिर्फ जुर्माना देते हो, तब सीधे गोली मार दी जाएगी। अभी सरकार सख्ती करती है तो तानाशाह कहते हो। जब सच में तानाशाही होगी तो कहने लायक ही न छोड़ा जाएगा।

जियोगे, लेकिन जैसे देश ही एक जेल हो। अंग्रेजी गुलामी याद है न? बस वही है साम्यवाद। इसे दंगों से ही लाया जाता है। लूटपाट और हत्याकांड से संसद भवन पर कब्जा कर लिया जाता है। सेना को गोरिल्ला युद्ध में धोखे से मार डाला जाता है। जो डरपोक होते हैं उनको अपना गुलाम बना लिया जाता है। इस तरह अपने ही देश की सरकार, पुलिस और कानून से नफरत पैदा करवा कर दंगे करके मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं और देश को खुद ही बर्बाद करके उस पर तानाशाही लागू कर दी जाती है।

जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने ही देश पर चढ़ाई करके सरकार हथिया ली थी और पाकिस्तान का तानशाह बना था। उसे फांसी हुई। सद्दाम हुसैन, गद्दाफी भी यही करके मारे गए। भविष्य में और नाम जुड़े तो कोई हैरानी नहीं होगी।

परन्तु हर भोला साम्यवादी चाहता है कि अमीरों की तरह 7 स्टार होटलों में रहूँ, हवाई यात्रा से विदेश घूमूं। बेचारे का सपना कभी पूरा नहीं होगा। अगर हुआ तो वह साम्यवादी नहीं रहेगा। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

Without Education/Knowledge, we will always be Poor




मित्र: तुम भी बहुजन हो, तुम पर भी बाबा साहब के एहसान हैं। तुम क्यों नहीं धूप अगरबत्ती-मोमबत्ती-फूल से बाबा साहब का सम्मान करते हो? जयंती भी नहीं मनाते हो? सवर्ण बन गए क्या?

शुभ: 1. मैं आत्मा में भरोसा नहीं करता। जो मर गया वो क्या जानेगा कि हम अपमान कर रहे या सम्मान?

2. जो व्यक्ति पूजा-पाखण्ड को लात मारते-मारते मर गया उसकी तस्वीर-मूर्ति लगा कर वही सब तुम लोग कर रहे। इससे बड़ा अपमान उस महापुरुष का क्या होगा टूटिये?

3. मेरे पास फालतू समय भी नहीं है कि मैं जो व्यक्ति जयंती लोकतंत्र के खिलाफ है, उसे पसन्द नहीं, ये लिख कर मर गया उसकी जयंती को उत्सव की तरह मनाऊं और उनकी शिक्षाओं को कभी पढूं ही न। नाचूँ-गाउँ, लोकतंत्र का अपमान करके जिसके सम्मान के लिये वो महामानव अपनी ऐसी-तैसी करवाता रहा।

4. जिस लोकतंत्र ने हम को बराबरी का हक दिया। जो सब नागरिकों को एक समान मानता है। उसी लोकतंत्र के नियम का उल्लंघन करके 1 आदमी को तानशाह की तरह ईश्वर तुल्य मान कर हमने लोकतंत्र को ही खत्म कर दिया है। तानशाह के अनुयायियों की तरह हम लोग बाबा साहब के खिलाफ बोलने वाले पर FIR करते फिरते हैं और लड़ने-मारने जुट जाते हैं। तानाशाह के अनुयायियों की तरह उनके गुंडे बने फिरते हैं।

5. कम्युनिस्ट के साथ मिल कर लाल सलाम-जय भीम बोलते फिरते हैं। जबकि बाबा साहब कह कर गए कि लोकतंत्र में साम्यवाद/समाजवाद ज़हर की तरह है और ये संविधान को नष्ट कर देगा। साम्यवाद में संविधान नहीं होता है। एक तरफ हम संविधान की जय जय करते हैं और दूसरी तरफ संविधान को नष्ट करने वालों का साथ दे रहे हैं। ऐसे कैसे चलेगा?

6. इससे बड़ा अपमान क्या होगा कि इमरजेंसी के दौरान सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार न रखकर समाजवाद को संविधान में शामिल कर दिया गया? लोकतंत्र की हत्या हो गयी। सरकारों को लोगों से सम्पत्ति छीनने का हक मिल गया। लोगों की मेहनत की कमाई सम्पत्ति पर उनका ही हक न रहा।

7. आज समाजवादी लोगों के चक्कर में हम शिक्षा की बात नहीं करते। गरीबों को शिक्षित करने की बात नहीं करते। जनसंख्या कम करने की संवैधानिक बात नहीं करते बल्कि अशिक्षितों को मुफ्त में सुविधाओं की मांग करते हैं। उनको शिक्षा देने की जगह गरीब और अज्ञानी बने रहने को कहते हैं जबकि बाबा साहब ने कहा था, शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो। ये क्रम से है और पहला कार्य है शिक्षित होना। मेरे पिता ने पढ़ाई करी और दादा किसान-मजदूर थे। अगर पिता न पढ़ते, संघर्ष न करते, तो आज मैं भी कहीं गरीबी में जी रहा होता।

8. इसलिये दोस्त, ये बकवास बन्द करो। पाखण्ड हर वह कार्य है जिससे कोई लाभ न हो। बल्कि हानि हो सकती है। जैसे धन की हानि, समय की हानि, विचारों की हानि, सिद्धान्तों की हानि। धूपबत्ती, मोमबत्ती, तसवीर, फूल आदि पर धन खर्च होता है। इस सब का कोई वास्तविक लाभ आज तक ज्ञात नहीं हुआ है। इसलिए ये तो इनको बनाने वालों का सामान बिकवाने का जाल मात्र है। जैसे ब्राह्मण बिना किसी की मदद किये उससे पैसा ले लेते हैं उसी तरह ये बेकार का सामान बेचने वाले हमसे पैसा ले लेते हैं। जिस तरह हमको ब्राह्मण ठगते रहे, उसी तरह ये भी हमको ठग रहे हैं। किसी मूर्ख को ही ठगा जा सकता है। और अब मैं मूर्ख नहीं रहा। पहले मैं भी था। गलती सबसे होती है। लेकिन दोबारा करने वाला ही महामूर्ख होता है। अभी समय है, सम्भल जाओ।

मित्र: चुप भो*ड़ी के। साला बाबा साहब का अपमान करता है? तुझसे सवाल क्या किया, भाषण दे डाला। सुनते-सुनते कान पक गए। भक। तुझे नहीं करना तो मत कर। हमको रोक के दिखा साले। दोबारा नहीं पूछुंगा। बोल चलेगा?

मैं समझ गया कि ये महामूर्ख है। उधर से चला आया। समझ गया था कि इस मूर्ख से बात करना अपना समय बर्बाद करना है इसलिये ये वार्तालाप बुद्धिमानो के सामने लाना ही उचित समझा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, मई 03, 2020

Food and Help: Universal tools to spread religions



खालिस्तान बनाने के लिये ज्यादा से ज्यादा सिख बनाने का अभियान चलता है। लंगर उसी का एजेंडा है। फंडिंग विदेशी करते हैं। अभी जनसंख्या कम है तो शांत रहते हैं। पंजाब में जो किया वो आप पता कर के देखो। इंदिरा गांधी को इन्होंने ही मार दिया था।

सिख इस समय 4थे स्थान पर हैं इसलिये इनकी नफ़रत उसी के अनुपात में जिसके साथ खड़े होते हैं, उसके पक्ष में पैदा हो जाती है। जैसे मुझे सिख जब मिलते हैं तो मुझे हिन्दू समझ कर मिलते हैं। मिलते ही मुस्लिम की बुराई शुरू कर देते हैं। जबकि सिख और इस्लाम करीब-करीब रहने वाले धर्म रहे हैं। पाकिस्तान की लगभग 60% आबादी पंजाबी बोलती है। भारत में सिख और मुस्लिम साथ-साथ पले-बढ़े हैं।

परन्तु आज इस्लाम 2सरे स्थान पर सिख 4थे स्थान पर क्यों हैं? इस धार्मिक रेस में पीछे होने पर अब पहले स्थान वाले को पटाना आवश्यक हो जाता है कि उसके साथ मिल कर दूसरे स्थान वाले को खत्म कर दिया जाए। ऐसा करके प्रथम तो हिंदू सिख को पसन्द करने लगेगा फिर दोनों मिल कर इस्लाम को मिटाने पर जुट जाएंगे।

अब पहले यारी करके फिर उसी को काटा भी जाना है तो क्या करेंगे? इसके लिये गरीबों को चुना जाता है। गरीबों का धर्म है रोटी। उनके धर्म को उनको दो और वो किसी की भी तूती बजाने लगेंगे। लंगर खिलाना धर्म को फैलाने का सबसे आसान तरीका है। कुत्ते को वफादार बनाना है तो उसे रोटी डालो। यह सब जानते है और यही बात इंसान पर भी लागू होती है।

जिस तरह शिरडी में साई धर्म को फैलाने के लिये 10₹ में शाही भोजन उपलब्ध है वैसे ही स्वर्णमंदिर में भी सबसे बड़ी रसोई लगती है। सबसे ज्यादा भीड़ जिनकी होती है उनमें गरीब हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है। लंगर स्थल पर जाते ही आपको धार्मिक बनाया जाने लगता है। देखा जाता है कि आप उनकी गुलामी करते हो या नहीं? आपको सिर ढकने की तानाशाही बात माननी ही होगी, अन्यथा आपके लिये रास्ते बंद हैं।

जिसका नमक खाओगे उसी के होकर रह जाओगे। देर-सवेर सिख बन ही जाओगे। शूरुआत सिखों की तारीफ करके होगी। जगह जगह पगड़ी पहने सिख लंगर लगाते, शरबत पिलाते दिखते हैं। उनकी फोटो/वीडियो सोशल मीडिया पर डालोगे। उनकी तारीफ करोगे। सेना में उनकी बहादुरी के किस्से सुनाओगे जबकि सैनिक का सिर्फ एक ही धर्म होता है, देश की रक्षा। कोई धर्म उनको दूसरे सैनिक से अलग नहीं बनाता।

सिख बहुत पैसा कमाते हैं ऐसा दिखता है। अमेरिका में भारत से सबसे ज्यादा सिख ही गए हैं जबकि कहानी का पेच खुलता है इनके दहेज की मांग से। हर दूसरे सिख का बेटा NRI निकलता है। जबकि उसका बाप मामूली किसान है। ऐसा कैसे? दरअसल सिख दहेज में लाखों करोड़ों रूपये मांगते हैं। उस रकम से अपने लड़कों को विदेश भेजते हैं। सिख, अपने ही धर्म में अपनी लड़की का विवाह करते हैं जबकि दूसरे धर्म से लड़की लानी हो तो बिना दहेज के भी ले आएंगे।

विदेश में खालसा पंथ की स्थापना के लिये दुआ की जाती है। झंडा फहराया जाता है। विदेश में भारत को खालिस्तान बनाने के लिये कई संस्थाओं ने बीड़ा उठाया है। उनका सारा ध्यान हिन्दू आबादी को जल्द से जल्द सिख बनाने पर टिका है। भारी फंडिंग उधर से होती है जिससे गुरुद्वारे कभी खाली नहीं होते। सुबूत के लिये आप गूगल कर सकते हैं कि कैसे विदेशों से भारत में खालिस्तान बनाने की मुहिम चल रही है।

ऐसे ही जब मैं मुस्लिमों के साथ खड़ा होता हूँ तो मुस्लिम किसी की साफ शब्दों में बुराई न करके, अपने धर्मस्थलों पर घुमाने ले जाने की बात करने लगते हैं जैसे किसी दरगाह आदि पर। कारण है इस्लाम में दूसरे धर्म की बुराई करना मना है। सीधे उड़ा दो सालों को। ऐसा समझा जाता है। अपने धर्म में आ जाये तो स्वागत है। खूब आवभगत होगी।

ईसाई से मिलता हूँ तो बेचारे ज्यादा नहीं बोलते लेकिन जल्द से जल्द चर्च में बुलाएंगे। घर जाओगे तो खूब खातिरदारी होगी।

जब भी कोई अल्पसंख्यक धर्म का व्यक्ति दूसरे बहुसंख्यक धर्म के व्यक्ति से अच्छा व्यवहार करता है तो उसका मकसद होता है अगले को अपने धर्म में खींचना। इसाई मिशनरी खुल कर सामने आते थे तो वे बदनाम हो गए। तब से बाकी धर्मों के मिशनरी गुप्त एजेंडे के तहत कार्य करते हैं।

यदि दूसरे धर्म की एक महिला अपने धर्म में खींच ली जाए तो उस धर्म की एक पूरी पीढ़ी सिख/ईसाई/मुसलमान/हिन्दू आदि बनेगी और दूसरे धर्म में उतनी आबादी कम होकर सिखों/ईसाईयों/मुसलमानों/हिंदुओं आदि में जुड़ जाएंगी। इस तरह बहुसंख्यक धर्म बनते ही अलग देश की मांग करने के हक मिल जायेंगें।

अगर आप इतने सीधे हैं कि किसी धर्म को पसन्द करने लगे हैं तो यह आपकी गलती नहीं है। ये प्लान ही पढ़े लिखे धार्मिकों के हैं जो मनोविज्ञान पर आधारित हैं। औसत बुद्धि के लोग इसको समझ नहीं सकते और जाल में फंस जाते हैं। लेकिन धर्मजातिमुक्त बुद्धिवादी सब समझ जाते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, मई 02, 2020

A small journey of my life on facebook




आपके आसपास जो ज्यादातर लोग नास्तिक/कम्युनिस्ट का लेबल लिये घूमते हैं, वे राजनीतिक प्रचारक हैं। उनका प्रमुख कार्य नफ़रत फैला कर गृह युद्ध (दँगा) करवाना है। वे इंसानियत से दूर हैं। इसलिये धार्मिक लोग उनसे नफरत करते हैं। मुझे भी उनके धोखे में कोसा जाता रहा है। इसीलिए मुझे नास्तिक कहलाने में शर्म आनी लगी थी।

तब मैने खुद के लिये एक शब्द चुना, युक्तिवादी (rationalist). इसी नाम से ग्रुप बनाये और यही अपने प्रोफाइल में भी लिखा था। लोगों को यही समझाने भी लगा कि मैं राजनीतिक नहीं हूँ। मैं कुछ अलग तरह का नास्तिक हूँ। मैं प्रेम करने वाला नास्तिक हूँ। मुझे इंसान और जानवर दिखते हैं। धर्मजातिवर्ग नहीं।

इसी कड़ी में मेरी व्यक्ति पूजापाठ वाले, जयजयकारे वाले राजनीतिक, साम्यवादी, नकली भीमवादी नास्तिकों से मुठभेड़ हुई और सबसे दुश्मनी होती चली गई। कश्मीर जी ने धर्ममुक्त शब्द दिया था। जो युक्तिवादी से ज्यादा सरल था। उनकी भी ऐसे नकली नास्तिको से लड़ाई हो रखी थी।

हम दोनों मिले और बस उनकी मुहिम मेरी मुहिम बन गई। उनके दुश्मन मेरे और मेरे दुश्मन उनके हो गए। जब उनको अंधभक्त ग्रुप ब्लॉक करते तो मुझे भी कर देते। हम दोनों 1 और 1 मिल के 11 हो गए थे। इस दौर में एक विडंबना ये भी रही कि सलीम भाई भी हमारी तरह सोचते थे लेकिन वे हमारे साथ नहीं आये। फेसबुक पर हम 3 लोग ही ऐसे थे जिनका नाम ज्यादा लोग जानते थे।

सलीम भाई भी जानते थे इन अन्धज्ञानी अंधभक्त लोगों के बारे में। उन्होंने भी झेला है उनका विरोध। हमारे कई विचार मिलते थे लेकिन वे मुझ पर ज्यादा भरोसा नहीं करते थे/हैं। हालांकि वे मेरे साथ दोस्तों की तरह ही व्यवहार करते हैं और मैं भी उनको अपना मानता हूँ। वह मदद को हमेशा तैयार भी रहते हैं।

उस समय कश्मीर जी फंडिंग करते थे और हम लोग साथ देते थे। उन्होंने ही मुझे धर्ममुक्त.in डोमेन दिया था। एकदम मुफ्त। जो उनकी असमय मृत्यु से फंड न हो पाने से नष्ट हो गया। उनकी और मेरी मेहनत मिट गई। (अब मेरी वेबसाइट http://poisonoustruthlive.blogspot.com है)

समय के साथ कुछ आस्तिक भी हम दोनों से वादविवाद करने आये और धर्ममुक्त नास्तिक बन गए। महीनों मैसेंजर पर बहस होती रहती थी लेकिन फिर भी मैंने सबको जवाब दिए। आखिर में उन धार्मिक लोगों में इंसानियत जागी और वे कहने लगे कि तुम अलग हो। तुम उन जैसे नहीं हो। तुम आस्तिकों और नास्तिको, दोनो से अलग हो। बेहतर हो। कई बोले कि भाई मैं आस्तिक हूँ लेकिन मुझे आपको पढ़ना है। आप से बहुत कुछ सीखने को मिला है। पहले जैसा आस्तिक भी न रहा/रही। आप खास हो। कुछ तो अपमान करवा कर भी अड़े रहे। कहते कि नास्तिकों को जूतों पर रखता हूँ, तुम पहले हो जो अच्छे लगते हो। अलग हो उनसे। मैं बार बार अमित्र कर देता वो फिर गिड़गिड़ाने चले आते।

लगने लगा कि क्या मैं वाकई अलग हूँ? इसी दौरान संदीप सोम भाई जुड़े। बढ़िया लिखते थे। आम जीवन में कमाल के किस्से लाते थे। वे भी मुझे परखने लगे। उन्होंने बहुत बुराई सुनी थी मेरी उन नकली आस्तिकों और नास्तिकों से। वे मेरी हर पोस्ट की बारीकी से जांच करते। वे बहुत घनिष्ट होते गए। उन्होंने माना कि मेरे विचारों ने उनमें बड़ा परिवर्तन लाया। वो भी मेरी लड़ाई लड़ने लग गए। वे उन लोगों को मेंशन करते जो मुझसे नफरत करते थे। वे लोग फिर से नफरत दिखाते। अंत में उन्होंने माना कि मुझ पर घमण्ड का आरोप लगाने वाले वे लोग ही घमंडी थे।

हमारी घण्टों बातें होतीं। हम लोग एक दूसरे से सामाजिक और वैज्ञानिक मुद्दों पर बात करते थे। वे बहुत ज्यादा घनिष्ठ मित्र बन गए। हमने तय किया कि कभी असल जीवन में भी भेंट होगी। देहरादून आकर उनके विद्यालय में मिल सकता हूँ ऐसी बात हुई थी। लेकिन समय के साथ अचानक उनकी उपस्थिति गायब हो गई। वे लापता हो गए। साल भर होने को आया उनका कोई अता पता नहीं है। उन्होंने अपना फोन नंबर भी नहीं दिया था।

मेरे सम्पर्क में आकर वे vegan बने थे और बाकायदा लोगों को समझाने भी लगे थे। आज उनके बिना अकेला सा महसूस होता है। पहले कश्मीर जी से दस्तावेजी सहायता का अभाव हुआ और फिर संदीप जी की अनुपस्थिति से तार्किकता का। अवश्य ही संदीप जी के साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ है। लेकिन एक उम्मीद भी है कि शायद वे लौट आएं।

अभी फेसबुक पर फिर से अकेला महसूस होता है। अभी बीच में सुनील भाई भी लापता हुए थे तो घबराहट हुई थी कि कहीं ये भी तो नहीं चले गए छोड़ के? परन्तु अभी कल-परसो वो वापस आ गए। ये भी अच्छे मित्र हैं। बहुत भले मानस हैं। ये भी मेरे सम्पर्क में रहकर vegan बन गए थे और एक कदम मुझसे भी आगे चल कर raw vegan बने। काफी तार्किक हैं और मेरी मदद भी करने को तैयार रहते हैं। अच्छा लगा वापस पाकर।

Kaustubhrao मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं लेकिन बहुत ही तीव्र बुद्धि के स्वामी हैं। इन्होंने मुझसे ज्यादा किताबें पढ़ीं और कई भाषाओं को सीखा है। वे दक्षिण भारतीय है और उत्तर भारत में पैदा हुए मेरे जैसे परग्रही के लगभग डुप्लीकेट हैं। समान विचारों के चलते इनसे बहुत प्रभावित हुआ। कम उम्र में इतनी समझदारी वाकई आकर्षक थी। तो ये मिलते ही प्रिय हो गए। ये भी गायब हो जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। इनकी भी ज़रूरत है मुझे।

Sandeep भी उम्र में छोटे हैं और साधारण ग्रामीण परिवार से हैं। एक बार उनकी बड़ी बहन ने मेरे मित्र को एक कागज का फोटो भेजा। उस पर नामों की एक लिस्ट थी। हेडिंग थी, मेरे सबसे पसंदीदा लोग। सबसे पहले मेरा पूरा नाम लिखा हुआ था। देख कर दिल भर आया। उस समय संदीप भी मुसीबत में था उसका फोन उसके पास नहीं रहता था। वह बात नहीं कर पा रहा था। फिर भी हम लोग उसका इंतजार करते हैं।

हम लोग? जी हाँ, हम लोग। हम लोग हैं, संजय वर्मा, कुमार आकाश और मैं। हमारा एक चैट समूह है मैसेंजर पर। शुरू में हमने कई लोगों को आमंत्रित किया था इस समूह में लेकिन सिर्फ ये लोग ही एक्टिव रहते थे। इसलिये आज भी साथ हैं। सजंय जैसा इंसान भी कहीं न मिला। ये भी अनोखे हैं। ईमानदार, समझदार और तार्किक। इनके भी विचार मिलते चले गए। ये हमारे विचारों को प्रक्टिकल करके साबित कर देते हैं। चिकित्सा जगत से जुड़े हैं और मेरे सभी दावों को सत्यापित करते रहते हैं। ये भी बहुत अच्छे इंसान लगे मुझे।

आकाश भाई बहुत प्रेम करते हैं मेरे विचारों से। जब ये मुंबई में रहते थे तो केवल हमसे मिलने के लिये रातदिन का सफर करके बरेली आने को तैयार थे। इनको भी मेरे बहुत से आलोचकों ने संपर्क किया था। वे उनके शकों का भी समाधान करते रहे। फिर भी वे न माने तो उन्होंने उनको भी कड़ा जवाब दिया कि वे ही गलत हैं। मुझे काफी परखने के बाद ही जुड़े हुये हैं।

Shiv Kant जी एक आध्यत्मिक व्यक्ति हैं। मेरे आध्यात्म पर मतभेदों के बावजूद वे मुझसे स्नेह रखते हैं। मुझको सलाह देते हैं और मेरे विचारों को समर्थन देते हैं। उनके अच्छे पोस्ट मैं शेयर करता रहता हूँ।

कुछ और भी लोग हैं जिनके नाम मैं अभी भूल रहा हूँ तो वे कृपया अपने बारे में मेरा मत जानने हेतु मेरे बारे में अपने मत के साथ याद दिलाने की कृपा करें। मैं उनको भी इस लेख में शामिल कर लूंगा। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, मई 01, 2020

Labouring is Equally important as other Occupations




मजदूरी हर कार्य के लिए किया गया श्रम होता है। हर कोई श्रमिक है, परंतु जो अधिक श्रम करता है, वही आमतौर पर श्रमिक कहलाता है। अधिक श्रम तभी हो सकता है जब आवश्यक tool न हों। टूल देकर समान दर्जा दिया जाय मजदूरों को, बाकी व्यवसाय की तरह।

इस तरह समान न्यूनतम वेतनमान निर्धारित किया जाए जिससे कम देना अपराध हो। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि अकुशल मजदूर को समान वेतन मिलेगा। कुशल मजदूर ही समान वेतनमान का अधिकारी होगा। काम खराब करने पर उसका कोई मूल्य नहीं दिया जा सकता।

मजदूरों की पूरी ट्रेनिंग होनी चाहिए। ट्रेन्ड मजदूरों को ही सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलेगा। बिना प्रशिक्षण प्राप्त मजदूर भी परीक्षा देकर व उत्तीर्ण होकर कुशल होने का प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकते हों। ऐसी व्यवस्था हो।

न्यूनतम आय के बाद, प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ने पर वेतनमान का बढ़ना भी स्वाभाविक होगा। जैसे एक व्यक्ति अगर 10 लोगों के बराबर उत्पादन करता है (बुद्धि, योजना, उपाय, आविष्कार आदि से) तो उसे 10 लोगों के बराबर वेतनमान दिया जाना चाहिए। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Will the problem be solved or escalated by civil war?




दँगा करने के लिये, किसान, मजदूर, दलित, गरीब, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध आदि अशिक्षित लोगों को तुष्ट करके शेष जनसंख्या को मारने के लिये प्रेरित करना ही भारतीय कम्युनिस्ट का सपना है।

देश को आर्थिक हानि पहुँचा कर इसे कमज़ोर और असहाय करना होता है। इसके लिये पूँजी/धन के प्रति नफरत भरना ज़रूरी है। ये कार्य कार्लमार्क्स को आगे करके किया जाता है। इसलिये सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान करना प्रमुख मकसद रहता है। इससे रूस, चीन और पाकिस्तान से मिल कर आसानी से भारत पर कब्जा कर लेंगे।

बाबा साहब और कार्लमार्क्स एकदूसरे के वैचारिक दुश्मन थे। (पढ़िये कार्लमार्क्स और बुद्ध, राष्ट्र दर्शन, बाबा साहेब के भाषण) ये बात न तो दलितों को पता है और न ही कम्युनिस्टों को। कारण है अशिक्षा और अंधभक्ति। कुछ धूर्त नेता दोनो प्रसिद्ध व्यक्तियों को आगे रख कर दलितों, मुस्लिमों आदि को और किसान/मजदूरों को लुभा रहे हैं। भावनात्मक ब्लैकमेलिंग कर रहे हैं।

बाबा साहेब लोकतंत्र के समर्थक थे तो कार्लमार्क्स तानाशाही के। दोनो एक-दूसरे के जानी दुश्मन। लेकिन भोला, गरीब, अशिक्षित इंसान इनको कहाँ से पढ़ेगा? हिंदी में बाबा साहब की 17वी पुस्तक से बाबा साहब का जय भीम पत्रिका में छपा जय भीम और जयंती के खिलाफ लिखा आलेख हटा दिया जाता है। (जबकि वह मूल संस्करण इंग्लिश में 17वी पुस्तक के दूसरे भाग में पेज 83 पर है) ताकि बाबा साहब को भी एक तानाशाह के रूप में दर्शाया जा सके। चीन में जिस तरह से तानशाह ज़ी शिनपिंग की पूजा होती है, वैसे ही भारत में भी बाबा साहब की पूजा होती है। जो कि बाबा साहब को बहुत ही अपमान जनक लगा था।

लेकिन गृहयुद्ध करके देश को भीतर से खोखला करने वाले विदेशी एजेंट जानते हैं कि भारत का अधिकतम नागरिक भोला और अशिक्षा का शिकार है। उनको उतना ही बताओ जिससे वह देश के खिलाफ़ हो जाये। झूठी खबरें बनाओ ताकि लगे कि नागरिक भूख से मर रहे हैं। आदिवासियों के बच्चों और महिलाओं को सेना की लूटी हुई वर्दियों को पहन के मारो, बलात्कार करो और फिर कपड़े उतार कर खुद आदिवासी बन जाओ और अपने कबीले को उकसा कर और नए आतंकी बनाओ।

आदिवासी, दलित, मुसलमान, बौद्ध, सिख, ईसाई, किसान, मजदूर जैसे अशिक्षित समाज को शिक्षित नागरिकों के खिलाफ भड़का कर देश को आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त किया जा सकता है। जनसंख्या कम करने की बात इन विदेशी एजेंटों को नागवार गुजरती है क्योंकि कम जनसंख्या ही तो समस्या का समाधान है। समस्या का समाधान हो गया तो रूस, पाक और चीन कब्जा किसपे करेंगे? जनसंख्या बढाने को कहा जाए तो ही तो इन गरीबों को और गरीब, अशिक्षित और असंतुष्ट बनाया जा सकता है। तभी तो दंगे के लिये नये सैनिक मिलेंगे।

बाह्मण समाज के लोग ये बात जान गए थे कि भविष्य में उनके प्रति असंतोष का माहौल बनेगा इसलिए उन्होंने पहले ही भारत में एक अलग तरह का साम्यवाद लाने की सोची। भारत में साम्यवाद लाने वाला एक ब्राह्मण ही था और आज ये अजीबोगरीब साम्यवाद ब्राह्मणों में ही सबसे अधिक मिल रहा है। सोचो, ब्राह्मण और नास्तिक साम्यवादी? फिर धार्मिक पूँजीवादी कौन है? 😊😘 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©