सन 2000 से मेरे बुरे दिन शुरू हुए। आने वाले वर्षों में मुझे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई शैक्षिक परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण हो गया। सन 2005 में मुझे मेरी wapsite (माइक्रोब्लॉग) tagtag.com/shubhanshu पर मेरे आतंकवाद के खिलाफ आह्वान को पढ़ लेने पर ओसामा बिन लादेन की धमकी मिली। दिल्ली में बम विस्फोटों की चेतावनी और मुझे जान से मारने की धमकी भी।
मैंने अमरउजाला अखबार से सम्पर्क किया। पत्रकार पवन चन्द्र जी ने आकर मेरा बयान लिया और मेरे मोबाइल से एक इंटरनेट कैफ़े जाकर उस सन्देश का प्रिंट भी लिया। अगले दिन हेडलाइन में मेरी खबर छपी।
मेरा नाम मेरे कहने पर बदल कर सुभाष रखा गया। अगले 3 दिन तक इस खबर पर कार्यवाही होती रही। मुझे छुप कर, दाढ़ी बढा कर रहने को कहा गया। मुझे कुछ दिन तक पवन जी के फोन आते रहे। उन्होंने कहा कि पुलिस तुमको ढूढ़ रही है। मैंने तुम्हारी पहचान छुपा रखी है। लेकिन फिर भी सावधान रहो। वेबसाइट डिलीट कर दो और अपने फोटो भी इंटरनेट से हटा लो। पुलिस में लादेन के लोग हो सकते हैं।
इस खबर के खुलने पर ओसामा का गैंग सावधान हो गया और 3 माह तक कुछ नहीं हुआ। फिर अचानक दिल्ली में 11 में से 10 बम धमाके हुए। एक फुस्सी निकल गया। न्यूज़ में आया कि 3 माह पहले ही बरेली एक लड़के ने बम धमाकों की सूचना पुलिस को दी थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।
मेरी हालत पतली थी। मेरे चक्कर में मेरे परिवार को खतरा हो सकता था। मैं मरने की सोचने लगा था और तब तरस खाकर मुझे किसी ने एक राज़ बताया। वो राज़ जानकर मैं चौंक पड़ा। मेरा सारा डर और निराशा दूर हो गई।
उस दिन से मैंने यह मनोविज्ञान आजमाना शुरू कर दिया। अगले ही वर्ष 2006 में मैंने इस मनोविज्ञान का प्रयोग किया। मुझे आयशा टाकिया नामक हीरोइन पसन्द थी। मैंने उससे सम्पर्क करने की इच्छा की। इस मनोवैज्ञानिक विधि में मेरी हर जायज इच्छा पूरी करने का दावा था। इच्छा की पूर्ति के लिये कुछ जायज प्रयास भी करने थे। तभी luck अपना काम करेगा।
ये वैसा ही है जैसे बिना लॉटरी टिकट लिये लॉटरी जीत जाने की इच्छा करना। मतलब पहले लॉटरी खरीदनी पड़ेगी तभी वह लगेगी।
मैंने कुछ प्रयास किये और एक दिन चमत्कार हुआ। मुझे आयशा ने ईमेल किया। मैंने सोचा ऐसा सम्भव नहीं। कोई फ्रॉड है। मैंने ईमेल ट्रेस किया। मुम्बई का निकला। थोड़ा विश्वास बढा। फिर मैंने क्रॉस सवाल किए और छोटी से छोटी बात पर भी सन्देह किया। आयशा ने सभी सन्देह दूर कर दिए।
फिर हमने करीब 2 साल तक ईमेल पर बात की। इसी दौरान मुझे उस इंसान का ध्यान आया जिसने मुझे यह राज़ बताया था। मैंने उससे पूछा, कि ये राज़ मुझे क्यों बताया?
उसने कहा, "तुम्हारा दुर्भाग्य बड़ा था, तभी साधारण सा बालक होकर भी ओसामा बिन लादेन को प्रभावित करके दुश्मन बना लिया। तुम्हारी लिखाई गजब की है। ऐसे इंसान को मैं खो नहीं सकता। तुम ही सही पात्र हो इस राज़ के। ये राज़ बहुतों पर है लेकिन वे पात्र नहीं हैं।
खुद देखो, तुमने कुछ ऐसा लिखा कि पहले ओसामा बिन लादेन, डर गया और दूसरी बार तुमने कुछ ऐसा लिखा कि फ़िल्म अभिनेत्री ने तुमको सम्पर्क किया। तुम बस अपने luck का इस्तेमाल ठीक नहीं कर रहे थे। मैंने बस दिशा दी है। तुम जो चाहो हासिल कर सकते हो। बस इसका गलत इस्तेमाल मत करना कभी।"
उसकी बातों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया। मैंने फिर से इसे आजमाने की सोची। और ओसामा बिन लादेन मारा गया।
अचानक मैं डर भी गया। मेरे सपने छोटे हो गए। मैं घबराने लगा अमीर हो जाने से, फेमस हो जाने से। मैं इसके लिये तैयार नहीं था। मांगते ही मिल जाने का डर सताने लगा। क्या हो कि जो मांगू उसे सम्भाल न पाऊं? तब तो खतरा हो सकता है।
तब से मैं वैरागी सा हो गया। जब किस्मत आपके कब्जे में हो तो एक डर भी सताने लगता है कि जब लोग पूछेंगे कि 2 कौड़ी का इंसान अचानक राजा कैसे बन गया? तब क्या जवाब दूँगा? इसलिये मेहनत से ही आगे जाने में इज़्ज़त है। अतः मैंने इस विधि का सीमित प्रयोग तय किया।
अब बस मैंने संतोष का रास्ता चुना और उतना ही मांगा जितना पर्याप्त हो। बाकी लोगों के संसाधनों पर मैं अकेले कब्जा करना नहीं चाहता था। मेरी महत्वाकांक्षा मर गई थी। इसलिए मैंने केवल इन्वेस्टमेंट के लिए धन एकत्र करने पर फोकस किया। आज मैं लाखों रुपयों का मालिक हूँ। लेकिन रहता फकीरों की तरह नँगा हूँ। इसी में आराम है। कपड़ों में घुटन है। आज इस लायक हूँ कि मकान भी है और बिना कोई हाथ-पैर चलाये साल के 374000₹ कमा लेता हूँ।
मेरे ऊपर न तो मंहगाई असर करती है और न ही lock डाउन। अपने सभी शौक पूरे करता हूँ। माता पिता भी मुझे लकी मानते हैं। पिता को मैंने अपने मनोविज्ञान से जिंदा रखा हुआ है। डॉक्टर कहते हैं कि ये ज़िंदा कैसे हैं? इनको तो 20 साल पहले ही मर जाना चाहिए था। बहुत ही लकी आदमी हैं। और दूसरी तरफ पापा मुझे अपनी ज़िंदगी का जीवन दूत मानते हैं।
मैंने 2008 में एक महिला दोस्त बनाई। उसने खुद ही आकर मुझे प्रपोज किया। दरअसल मेरी इच्छा थी कि वह ऐसा करे और उसने कर दिया। मुझे लोगों ने कहा था कि तुम इतने ज्यादा अच्छे हो कि अच्छे से अच्छे लड़के तुम्हारे आगे दोषी हैं। तुमको कोई अपने जैसी महान नहीं मिलेगी। मैंने कहा अच्छा, चलो अपना luck आजमाते हैं। मुझे प्यार करने वाली दोस्त मिली। उसने अपने घरवालों से विरोध करके मेरा साथ दिया। मैंने कभी कोई पंगा नहीं लिया। उसको जैसा समझाता, वह वैसा ही करती और उसके घरवाले भी उसे टोकना बन्द कर गए।
आज हम दोनों वैसे ही आज़ाद हैं जैसे कोई बिना माँ बाप का इंसान आज़ाद होता है। सब कहते हैं कि तू लकी है। उधर मेरी दोस्त को सब कहते हैं कि वो लकी है कि उसे मैं मिला। तन और मन दोनो से खुश रखने वाला।
मैंने आगे के तमाम कामों में ऐसी सफलता पाई कि लोग मेरी इज़्ज़त करने लगे। बड़े बड़े घमण्डी पैर पड़ गए। माफी मांगी। सबने एक ही डायलॉग मारा, "Shubhanshu हम तुमको जैसा समझते थे, तुम वैसे नहीं हो।"
और मेरे होठों पर बस एक मुस्कान बिखर जाती है। ~ Shubhanshu 2020©