Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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मंगलवार, अक्टूबर 27, 2020

Female of Her Species is more deadly than the Male ~ Rudyard Kipling




मैं एक पुरुष हूँ लेकिन शर्मिंदा हूँ इसी लिंग के अन्य उन पुरुषों पर जिन्होंने जहाँ से भी लाभ मिला उस वस्तु या पेड़, जन्तु या इंसान का शोषण किया।

पेड़ व पशु उनके जितने धूर्त नहीं थे और स्त्री भी उनके जितना धूर्त नहीं थी क्योंकि उसमें वो हार्मोन ही उतनी मात्रा में नहीं था जो उसे विद्रोही बनाता।

टेस्टास्टरोन व Adrenaline के मिश्रण से पुरुष तो जम कर विद्रोही और तानाशाह हुए लेकिन बाकी जीवों ने अपने भोले पन और मुकाबला न कर पाने की नाक़ाबिलियत का नुकसान उठाया। तीनों का जम कर उपयोग किया गया। तीनों का वस्तुकरण किया गया। तीनो को अपने उपभोग की वस्तु बनाया गया और उनका शोषण किया गया।

कुछ की तो किस्में, विरासत और प्रजाति ही नष्ट कर दी गईं और जो बचे हैं उनका बाजार खोल दिया गया है। आओ और खरीदो; लकड़ी, जानवर और औरत!

क्या फर्क है एक व्यक्ति और एक उत्पाद में?

उत्पाद बेजान वस्तु की तरह है। उसकी कोई ज़िन्दगी नहीं। उसकी कोई माँ, बहन, बेटी, बेटा, प्रेमी या पति नहीं होता। उसका कोई परिवार नहीं होता।

उसको मार दीजिये, खा लीजिये, नोच डालिये, फाड़ डालिये, इस्तेमाल कीजिये, कोई रोकने-टोकने नहीं आएगा।

यूँ तो बाजार कभी बुरे नहीं थे। वे तो सुविधा थे और हैं। लेकिन इनको बुरा बनाया गया। लालच की अति ने और खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को निम्न समझने की हवस ने। कोई रोकने वाला नहीं था तो अति होनी ही थी। सरकारी अंकुश से अब व्यापार कुछ हद तक नियंत्रण में रहते हैं। परन्तु कुछ कानूनी कमी के चलते, तो कुछ गैरकानूनी रूप से, अमानवीय व्यापार चल ही रहे हैं।

हम जब इंसानों की बिक्री से मुहं मोड़ते हैं तो समाज हमको विवाह संस्था की ओर मोड़ता है। विवाह दरअसल महिला पर समाज द्वारा आरोपित पुरुषों की गुलामी है। विवाह का अर्थ ही है वंश बढाने के लिये और उस वंशज को पालने के लिये घर में एक सस्ता सुलभ गुलाम लाना जो यौन क्षुदा को भी आपातकाल में मिटाए।

आपातकाल का अर्थ यहाँ कोई नई स्त्री का न मिल पाना है। कुल मिला कर देखा जाए तो विवाह में और वैश्यावृत्ति में कोई फर्क नहीं है। दोनो में ही दूसरे घर से स्त्री बिना प्रेम के लाई जाती है। दोनो का शोषण होता है और दोनो को ही अंत में नफरत झेलनी पड़ती है।

विवाह में पहले दिन/रात से ही महिला को नोंचना शुरू कर दिया जाता है। उससे कोई मित्रतापूर्ण बात नहीं करता। कोई उसे नहीं समझता। कोई उसके हालचाल से मतलब नहीं रखता। मतलब रखता है तो केवल ये कि उत्पाद 'पहले इस्तेमाल तो नहीं हुआ? उसकी सील तो नहीं टूटी? उसका चरित्र* तो ठीक है?' आदि सवालों से।

*विवाह पूर्व संभोग न करने को ही चरित्र मान लिया गया है।

कोई बीवी/पत्नी नहीं लाता। सब एक उत्पाद लाते हैं। माँ जो कभी खुद सामान की तरह घर आई थी, उसने स्वीकार कर लिया है कि हाँ नारी है ही वस्तु। इसीलिए वह कहती है कि मैं देख परख कर बढ़िया माल दिलवाऊंगी। बाप कहता है, 'हाँ बढ़िया और प्रतिष्ठित कम्पनी (परिवार) का माल मिलेगा तुझको बेटा।'

ऐसे ही स्त्री/पशु/लकड़ी का दुकानदार कहता है, "दूध/अंडे/योनि/माल में मजा न आये तो पैसे वापस कर देना।"

विवाह का संस्कार/करार केवल उत्पाद की रसीद है। चोरी का माल लाना गलत है। इसीलिए कोई बिना रसीद (विवाह) के प्रेम करे, संभोग करे, प्रजनन करे तो समाज रूपी पुलिस सक्रिय हो जाती है। धरपकड़ चालू। सज़ा on the spot.

मैं समझ गया, इस सिस्टम को बचपन में ही। तभी से समाज को कदमो में रखता हूँ। समाज कौन है? हमारे माता-पिता, रिश्तेदार, आपके पडोसी, आपके पड़ोसियों के पड़ोसी। सबके सब इस सिस्टम के आगे हथियार डाल कर आत्मसमर्पण करे हुए सामाजिक पुलिस के सिपाही।

इसीलिए दूर रहता हूँ सबसे। क्या पता कब मेरी किस बात से इस सामाजिक घटिया पुलिस का पारा हाई हो जाये और मेरा एनकाउंटर हो जाये? यहाँ तो बोलना भी गुनाह है।

लेकिन तभी तक, जब तक आप इनके आगे पीछे घूमते हो। इनसे मतलब रखते हो। इनसे प्रेम करने लगते हो? कमाल है; बेड़ियों, अपने मालिक/हंटर बाज, कसाई से प्रेम? हाँ, हो जाता है जब धूर्तता की जाती है। धूर्त कभी नही बताता कि वह आपका शोषण कर रहा है। वह सारी जिंदगी धोखा दे सकता है। वह मुर्गी को हलाल करते समय कोई आयत या मंत्र पढ़ देता है और मुर्गी को लगता है कि वो मरी नहीं, जन्नत/स्वर्ग चली गई।

यही महिला के साथ है। उससे कहा जाता है कि पत्नी बने बिना तुम पूर्ण नहीं। पति के साथ ही जीवन आराम से कटेगा। बच्चे होंगे तो बुढ़ापे में साथ देंगे।

पर ऐसा होता नहीं। कितने श्रवण कुमार या कुमारी वास्तव में खुद की सोच से बने हैं? 1 या 2 जो उदाहरण हैं वे केवल अटेंशन सीकर सोच के कारण है। कि शायद टीवी में आ जाऊँ। दो कौड़ी का गरीब जीवन है। ऐसे ही कुछ कर जाउँ। काम धंधे के तो लायक नहीं।

जबकि रोज़ खबरों से अखबार पटा रहता है कि बच्चों ने माँ बाप मार डाले। माँ बाप ने बच्चे मांर डाले। पति ने पत्नी मार डाली। पत्नी ने पति मार डाला। इतनी नफ़रत? समय पर कोई चीज काम न आये या आपके मनमुताबिक कार्य न करे तो आप उसे पटक के तोड़ देते हो। उसी तरह जब वस्तु समझ कर अगले को देखोगे तो उसके साथ भी वही करोगे। क्योंकि तब आपके भीतर ये एहसास नहीं होगा कि अगले से भी गलती हो सकती है। अगले की भी कुछ सीमाएं हैं। अगला भी तुम्हारी ही तरह एक इंसान है। कोई सामान नहीं जो दूसरा आ जाएगा, इसे तोड़ डालो।

अभी होश में आइये। अन्यथा अगर किसी की बेहोशी अधिक समय तक रहती है तो उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। उम्मीद है कि वक्त रहते जाग जाओ। विद्रोह जब महिला करती है तो पुरूष बौना हो जाता है। जाने-अनजाने उसी पर निर्भर हो गए हो तुम। जब वो गुस्से में आएगी तो तुम सब रोओगे। तब शायद माफी भी न मिले। तब सिर्फ सज़ा मिलेगी। पुरुष समाज ने भी यही किया है और फिर महिला ऐसा नहीं करेगी ऐसा कैसे सोच सकते हैं? आखिर महिला भी तो इसी समाज में रहती है। ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2020/07/10 10:59

The Female of the Species
Rudyard Kipling
1911

1 When the Himalayan peasant meets the he-bear in his pride,

2 He shouts to scare the monster, who will often turn aside.

3 But the she-bear thus accosted rends the peasant tooth and nail.

4 For the female of the species is more deadly than the male.

5 When Nag the basking cobra hears the careless foot of man,

6 He will sometimes wriggle sideways and avoid it if he can.

7 But his mate makes no such motion where she camps beside the trail.

8 For the female of the species is more deadly than the male.

9 When the early Jesuit fathers preached to Hurons and Choctaws,

10 They prayed to be delivered from the vengeance of the squaws.

11 'Twas the women, not the warriors, turned those stark enthusiasts pale.

12 For the female of the species is more deadly than the male.

13 Man's timid heart is bursting with the things he must not say,

14 For the Woman that God gave him isn't his to give away;

15 But when hunter meets with husbands, each confirms the other's tale --

16 The female of the species is more deadly than the male.

17 Man, a bear in most relations -- worm and savage otherwise, --

18 Man propounds negotiations, Man accepts the compromise.

19 Very rarely will he squarely push the logic of a fact

20 To its ultimate conclusion in unmitigated act.

21 Fear, or foolishness, impels him, ere he lay the wicked low,

22 To concede some form of trial even to his fiercest foe.

23 Mirth obscene diverts his anger --- Doubt and Pity oft perplex

24 Him in dealing with an issue -- to the scandal of The Sex!

25 But the Woman that God gave him, every fibre of her frame

26 Proves her launched for one sole issue, armed and engined for the same,

27 And to serve that single issue, lest the generations fail,

28 The female of the species must be deadlier than the male.

29 She who faces Death by torture for each life beneath her breast

30 May not deal in doubt or pity -- must not swerve for fact or jest.

31 These be purely male diversions -- not in these her honour dwells.

32 She the Other Law we live by, is that Law and nothing else.

33 She can bring no more to living than the powers that make her great

34 As the Mother of the Infant and the Mistress of the Mate.

35 And when Babe and Man are lacking and she strides unchained to claim

36 Her right as femme (and baron), her equipment is the same.

37 She is wedded to convictions -- in default of grosser ties;

38 Her contentions are her children, Heaven help him who denies! --

39 He will meet no suave discussion, but the instant, white-hot, wild,

40 Wakened female of the species warring as for spouse and child.

41 Unprovoked and awful charges -- even so the she-bear fights,

42 Speech that drips, corrodes, and poisons -- even so the cobra bites,

43 Scientific vivisection of one nerve till it is raw

44 And the victim writhes in anguish -- like the Jesuit with the squaw!

45 So it cames that Man, the coward, when he gathers to confer

46 With his fellow-braves in council, dare not leave a place for her

47 Where, at war with Life and Conscience, he uplifts his erring hands

48 To some God of Abstract Justice -- which no woman understands.

49 And Man knows it! Knows, moreover, that the Woman that God gave him

50 Must command but may not govern -- shall enthral but not enslave him.

51 And She knows, because She warns him, and Her instincts never fail,

52 That the Female of Her Species is more deadly than the Male.

शुक्रवार, अक्टूबर 02, 2020

Boycott Marriage or Rape Crisis Will Be Continue



मैंने अधिकतर देखा है कि पुरुष छेड़खानी रोक देते हैं जब महिला का पति या भाई आकर उसे बचाता है। लेकिन यदि साथ में बॉयफ्रेंड है तो बलात्कार होना तय है। यह दर्शाता है कि बलात्कारी महिला को विवाहित देखना चाहते हैं।

अभी भी यदि कोई छेड़खानी होती है तो महिला को ही ताना पड़ता है कि अकेली आई क्यों? या बॉयफ्रेंड के साथ काहे घूम रही? इतनी आग लगी है तो विवाह क्यों नहीं कर लेती? विवाह ही है बलात्कार की जड़।

भारतीय संस्कृति भी यही कहती है कि महिला घर से अकेले बाहर न जाये। यूरोप, एशिया, अमेरिका और अरब की संस्कृति भी यही दोहराती है।

यह सभी संस्कृति धर्मो से निकली हैं। जो स्त्री को तो डिब्बे में बंद करके रखने की हिदायत देती है लेकिन पुरुषों को अकेली महिला देख कर उसकी हिफाज़त की हिदायत नहीं देती।

इसीलिए पुरुषों ने खुद ही उनको डिब्बे में बंद कर देने की हिदायत को मनवाने का कारगर तरीका खोज लिया है। 90% बलात्कार/छेड़छाड़ धार्मिक संस्कृति को बचाने के लिए ही होते हैं।

बाकी के 10% पुरुष, विवाहमुक्त महिला के संभोग साथी के रूप में न मिलने से मिली यौन कुंठा से ग्रस्त होकर और हस्तमैथुन को गलत मानने के कारण करते हैं। लेकिन इनके बलात्कार भीभत्स और भयंकर नहीं होते। कानून से बचने के चक्कर में भले ही वे बेमन से किसी को नुकसान पहुंचा दें।

पोर्न सिर्फ हस्तमैथुन न करने वाले के मस्तिष्क को बलात्कार की तरफ ले जा सकता है क्योंकि वह अपनी आग को भड़का तो लेता है लेकिन बुझाने के लिए उसे योनि ही चाहिए।

इसलिए सभी महिलाओं को, हस्तमैथुन न करने वाले/इसका विरोध करने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिये क्योंकि ऐसा व्यक्ति जब भी कामोत्तेजित होगा तो आपका बलात्कार तय है। और उसे कामोत्तेजित करने के लिए हर बार पोर्न की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि अगर बहुत समय तक संभोग न किया जाए तो विपरीत लिंग की शक्ल/आवाज और साये से भी यौन उत्तेजना जाग्रत हो सकती है। यही कारण है कि बुर्का/दुपट्टा किसी काम के नहीं हैं।

अगर वास्तव में बलात्कार जैसी घृणित परिस्थिति को खत्म करना है तो मैरिटल रेप को स्वीकृति देने वाली विवाह संस्था को नष्ट करना ही होगा। विवाह और बच्चों को पैदा करना आप पर थोपा जाता है। यह आप कभी स्वयं करना नहीं चाहते। इसका जीता जागता प्रमाण है; विवाह पूर्व सम्भोग और बच्चा हो जाने पर गर्भपात करवाना या आत्महत्या कर लेना। बॉयकॉट विवाह! 👍 ~ Shubhanshu 2020©

शुक्रवार, सितंबर 04, 2020

Government doesn't affect by your social media posts, it's a fact


कुछ लोग बोलते हैं कि "वो तुमको फलां में उलझाएंगे, तुम फलाँ पर डटे रहना।" इस पर मेरा कहना है कि मैंने पिछले दिनों, सरकार के बनाये कई कानूनों और अव्यवस्थाओं पर पोस्ट किए।

जैसे,

● स्पेशल विवाह कानून के फार्म में धर्म को पूछना व निषिद्ध सम्बन्धों में विवाह न होना लेकिन धर्म या रिवाज इजाजत दे, तो उचित है और पहले से, अनजाने में ऐसा विवाह करने पर सज़ा व जुर्माना क्यों?

● पशुक्रूरता निरोधी कानून में पशुबली व भोजन हेतु पशुहत्या की छूट।

● सरकार व न्यायालय में धर्म से जुड़े सिम्बल और कोट्स आदि।

क्या सरकार को पता चला? क्या सरकार को कोई फर्क पड़ा? सरकार को सोशलमीडिया पर हमारे विरोध या समर्थन से कोई फर्क नहीं पड़ता है। फर्क केवल हमारे दिमाग पर पड़ता है। हम सब थोड़ा और फ्रस्ट्रेशन में चले जाते हैं। वैसे भी हो तो हम से कुछ पाना नहीं है।

● RTI डालने में जान से जाने का डर बोल के फट जाती है।
● पुलिस थाने में कम्प्लेंट करने में हमारी फट जाती है क्योंकि गलती तो हमारी भी होती है।
● करने भी जाओ तो अपराधियों का दलाल दरोगा रिपोर्ट दर्ज नहीं करता और हम भाग आते हैं।
● फिर तो हम कतई SSP से शिकायत करने नहीं जाते, क्योंकि हमारी दरोगा से भी फटती है। कहीं झूठे केस में अंदर न कर दे।
● मानवाधिकार आयोग की जानकारी है भी तो कौन जाए केस करने? कहीं हमारी सड़क दुर्घटना में मौत न हो जाये।
● कौन जाए वकील करने? पैसा लगेगा। बहुजन को फ्री में वकील विधिक समिति से उपलब्ध है, लेकिन फ्री वाले पर भरोसा नहीं है।
● फ्री के इलाज से भी डर लगता है। इसलिए जिला अस्पताल नहीं जाएंगे। महंगा इलाज करवा के निजी अस्पताल ने किडनी निकाल ली, लाखों का बिल बना दिया, गलत रिपोर्ट बना दी, मार डाला और अब लाश नहीं दे रहे बिल भरे बिना।
● सरकारी कोई सुविधा नहीं चाहिए। तुम रखो अपनी सब्सिडी, हम ब्लैक में लेंगे।
● सरकारी स्कूल में पढ़ा कर क्या बच्चों को भीख मंगवाई जाएगी? उसमें तो मजबूर पढ़ते हैं। हमारे बच्चे बिगड़ जाएंगे। हम तो कॉन्वेंट में डालेंगे।
● जेनरिक दवा नहीं लेंगे। क्योंकि वो सरकारी है। 100₹ की दवा 1₹ में कैसे मिल रही है? नकली होगी।
● डीलक्स निरोध कंडोम सिर्फ 1₹ और बाकी कंडोम 10₹ से शुरू। ज़रूर घटिया होगा। फट गया तो? हम तो 50₹ वाला लेंगे।
● जिला अस्पताल में डिलीवरी? न जी न, जच्चा बच्चा मरवाना थोड़े ही है। चाहे गुर्दे निकल जाएं, हम तो बड़ा बिल फड़वाने वाले हैं।

तो इस तरह केवल गरीब और मजबूर ही सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है। जिसके पास विकल्प है वो तो उसे पीठ ही दिखाने वाला है। फिर भी हम सब विकल्प वालों को सोशल मीडिया पर सरकार की बहुत फिक्र है। भले ही पिछली सभी सरकारों ने हमारे लोढ़े लगा रखे हैं। ~ Vegan Shubhanshu Dharmamukt, धर्ममुक्त जयते, सत्यमेव जयते। 2020©

Orgasmed women is more relaxed and successful



ये पोस्ट सामाजिक भेदभाव के चलते मिट चुकी प्राकृतिक संवेदनशील भावनाओं का प्रतीक है। जहां महिला केवल धन समृद्धि के लालच में पुरुष ढूढ़ती है जबकि प्रकृति में ये चाहत केवल कामसुख के कारण उपजती है।

महिलाओं की काम-वासना को धर्म और समाज मिटाने में काफी हद तक सफल हो चुका है और ये महिलाओं के मानसिक शोषण का प्रमाण है। आपसी बातचीत और सवालों से मिली जानकारी के अनुसार, अनुमानतः 95% महिलाओं को कभी यौनानन्द (चर्मोत्कर्ष/ओर्गास्म) की प्राप्ति नहीं हुई है। घर्षण आनन्द को ही वे चरमसुख समझे बैठी हैं। इसीलिए सर्वे के आंकड़े भी प्रायः गलत आ रहे हैं।

ओर्गास्म/चरमसुख पुरुष के एजुकुलेशन/वीर्य पात के समान एक क्रिया होती है जो कि महिला के पूरे दिमाग को सक्रिय कर देती है। आज तक कोई भी तरीका पूरे दिमाग को सक्रिय नहीं कर सका है लेकिन, चर्मोत्कर्ष चाहे पुरुष का हो या स्त्री का, यह पूरे मस्तिष्क को सक्रिय करता है। जो कि एक जांचा परखा फैक्ट है।

इस क्रिया के तहत सम्भोग के समय शरीर में एक तेज़ झटका सा लगता है और पूरा शरीर कांप उठता है। गर्भाशय मुख से लेकर सिर तक एक तेज़ आनंद लहर जाती है और एकदम रिलेक्स फील होता है और संभोग रोकने का मन करता है, और पूर्ण होने का एहसास होता है। बहुत ही सुख का अनुभव होने, दिमाग के सक्रिय होने और मूड बेहतर होने के कारण ही इसे चरमसुख कहा गया है।

इससे दोनो ही के मानसिक स्वास्थ्य में भी अनुमानतः सुधार होने लगता है। ऐसा पाया गया है कि जो महिलाएं चर्मोत्कर्ष पाती हैं वे बाकी महिलाओं की तुलना में अधिक समझदार होती हैं। पुरुषों का दिमाग इसीलिए ज्यादा चलता है क्योंकि वे हर सेक्स में चर्मोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। जो उनके मस्तिष्क को सक्रिय बनाये रखता है।

हालात ऐसे हैं कि आत्मनिर्भर महिला अब पुरुषों की जगह हस्तमैथुन, डिल्डो, डिल्डो डॉल का सहारा लेना ज्यादा उचित समझती है। जबकि यही हाल अच्छे व सच्ची सोच वाले कुछ कुछ आत्मनिर्भर पुरुषों का भी है, जो आत्मनिर्भर महिलाओं को ही दोस्त बनाने के इच्छुक होते हैं।

उनको ऐसी महिला नहीं मिलती इसलिए वे भी इन्हीं साधनों पॉकेटपुसी, सेक्स डॉल आदि का इस्तेमाल हस्तमैथुन करने में प्रयोग करते हैं। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, अगस्त 07, 2020

I am living an unique, logical, cruelty free, quality life



मैंने इतने जीवन में ये तो पाया है कि बुद्धिमान लोग हर जगह हो सकते हैं। देखने में चाहें वे कैसे भी लगते हों लेकिन हम बुद्धि को शक्ल से नहीं पहचान सकते।

Vegan (पशुउत्पाद मुक्त व क्रूरता मुक्त जीवन शैली) और धर्ममुक्त/तर्कवादी (किसी भी अतार्किक कार्य को न करना व मानना) हो जाना ही बुद्धिमान होने की पर्याप्त निशानी होती है।

उससे ऊपर जाने पर आप विवाह मुक्त (अप्राकृतिक बंधन मुक्त), Antinatalist (बच्चा मुक्त: बच्चे पैदा करने की समाज प्रेरित ललक का त्याग) और Nonconformist (समाज के पाखण्ड/सामाजिक व्यवहार को न मानना व औपचारिक न होना) यानि Social Norms से भी मुक्त हो सकते हैं।

उससे भी ऊपर जाने पर आप नेचरिस्ट/न्यूडिस्ट (नग्नतावाद), polyamorous, LGBTQ* और incest* को भी प्रकृति की देन जानने लगोगे।

*Naturism/Nudism: प्रकृति ने हम सबको नग्न पैदा किया है ताकि हमारे शरीर पर सूर्य की रोशनी लग कर विटामिन D बना सके। जिससे हमारी हड्डियों को भोजन व पानी से कैल्शियम का अवशोषण करके पोषण मिल सके। अपने बदन का मजाक उड़ाने वालों से डरना, अपने जिस्म, जिसे आप लोग मंदिर की तरह रखते हो शर्मनाक समझना मूर्खता की निशानी है। मौसम के अनुरूप सहन योग्य कपड़े पहन सकते हैं लेकिन शर्म के कारण कभी नहीं।

*Polyamorous: क्या हो, यदि आपको एक से अधिक साथियो से प्रेम हो जाये? एक दूसरे से छुपा कर सबको एकलौता प्रेमी बता कर धोखा दोगे? नहीं, धोखा किसलिए? मन से प्रेम है सदा के लिये। जिस्म से प्रेम ज़रूर अस्थायी है। फिर क्या दोस्ती तोड़ोगे? इस जीवनशैली में आप एक से अधिक साथियों से प्रेम होने पर उनके साथ परिवार की तरह या उनकी सहमति से अलग-अलग रह सकते हैं। सबको एक दूसरे के बारे में आपके उसके मध्य सेक्सुअल या asexual जो भी सम्बंध हो, पता होना चाहिये। ईर्ष्या हेतु कोई जगह नहीं बचेगी। समाज में प्रायः ऐसा कोई मौका पड़ता है तो केवल 2 लोग ही जुड़ पाते हैं और बाकियों को रोना पड़ता है या प्रेम मजबूत है तो जान भी देनी पड़ सकती है। अतः समाज का केवल 1 जोड़े वाला प्रेम हत्यारा है। अमानवीय और हिंसक है। प्रकृति polyamorous है।

*Incest: यह एक दुर्लभ संयोग हो सकता है कि आपको अपने जीवनकाल में ऐसा कुछ कभी देखना पड़े लेकिन जिनके साथ ऐसा हुआ है और जो भी ऐसा सहमति से करते हैं, उनको मना करना गलत है। दो प्रेम करने वाले चाहे एक परिवार से हों या दूसरे से। उनको रोकना-टोकना अमानवीय और कानून के खिलाफ है। मेरे जीवन मे ऐसा कभी नहीं हुआ। लेकिन किसी के साथ ऐसा होता है तो मैं उसका समर्थन करूँगा।

*LGBTQ: lesbian, Gay, bisexual, transgender, Questioned लिंग व काम आकर्षण के सामान्य (heterosexual) से भिन्न childfree प्रकार (sexual orientations) हैं। मैं अगर ऐसा कोई है तो उसका समर्थन करता हूँ।

यद्दपि मैं केवल विपरीत लिंग में ही रुचि रखता हूँ वो भी तब जब समान विचारधारा की female हो।

इन सबके अलावा भी मेरे जीवन में बहुत से तर्कवादी अनुशासन हैं जो कि प्रकृति और तर्क पर आधारित हैं। जिनको आप मेरे साथ रह कर ही जान सकोगे। मैं ऐसी किसी विचारधारा को नहीं मानता जो समाज में शांतिपूर्ण ढंग से लागू न की जा सके। जो विचारधारा हिंसक है वो veganism जैसी अहिंसक जीवनशैली के साथ भला कैसे टिक सकती है?

अतः जिस विचारधारा की सफलता का इतिहास रक्तरंजित और मानवाधिकार के खिलाफ है। वह विचारधारा लोकतंत्र और संविधान के पक्ष में कभी नहीं हो सकती। और जो विचारधारा मानवाधिकार का हनन करे, तानाशाही करे, वह विचारधारा त्याज्य है। उसका त्याग करें तुरन्त।

अब जो भी इन सब को अपना चुका है वो कम से कम 90% मेरे जैसे दिमाग के साथ पैदा हुआ है। बाकी साथी जितने भी अनुशासन/विचारधारा को समझ सके और अपना सके, वे उतने ही बाकी सामान्य लोगों से अधिक बुद्धिमान है।

हर विचार जो आपको जन समान्य से अलग और तार्किक रूप से सही साबित करता है, आपके सामान्य से अधिक बुद्धिमान होने की निशानी है। जितनी अधिक सही और सटीक विचारधारा, उतना वास्तविक और तार्किक जीवन प्रकृति के अनुरूप जीने की संभावना। उतना ही सफल जीवन जीने का आनन्द।

कोई भी आपको टोके, समझिये वह व्यक्ति नादान है। अज्ञानी है। हो सके तो उसको कोई सोचने वाला सवाल करके छोड़ दो। अक्ल होगी तो खुद खोजेगा और नहीं होगी तो फिर कितना भी समझा लो वो नहीं समझ सकता। तो फिर गर्व से जीवन जियें। प्रसन्नता से जियें और खुद को बधाई दें कि आपने अपनी बुद्धि का सदुपयोग किया। पढ़ने हेतु धन्यवाद! 😊 ~ Shubhanshu 2020©

गुरुवार, जुलाई 02, 2020

Problems are everywhere, but I don't care! 😊



गर्मी में कूलर के सामने ही पड़ा रहना पड़ता है। वह भी पर्याप्त वेंटिलेशन न होने के कारण ज्यादा ठंडी हवा नहीं फेंकता। उमस से उंगलियाँ चिपकने लगती हैं फोन पे। 20 साल बिना कूलर के गुजारे, अब गर्मी इतनी पड़ती है कि सो नहीं सकते बिना कूलर के।

अलग से इन्वर्टर लेना पड़ा क्योंकि बिजली बहुत जाती है इधर। उसको भी 4 साल हो गए। वारन्टी खत्म। गनीमत है कि चल रहा है। मैं कई दिन से नंगा रहता हूँ। कपड़े पहनो तो धुलने पड़ेंगे। चादर तो साबुन पानी में भिगो कर टब में धो लूंगा। वाशिंग मशीन में कपड़े नहीं धुल रहा। वाशिंग मशीन का मोड चेंजर नॉब मेकेनिज्म टूटा है, ओवन और सीलिंग फैन खराब है।

रेफ्रिजरेटर के कम्प्रेसर की गैस निकल गयी थी। डलवाने को दिया तो उसने उसका पाइप ही तोड़ दिया। नया रेफ्रिजरेटर अब कम बिजली खाने वाला मिल नहीं रहा। तो बर्फ छोड़ो, ठंडा पानी भी नहीं पी सकता।

ऐसे ही किसी तरह सादा गर्म सा पानी पीता हूँ सारी गर्मी। खाना भी खराब हो जाता है ज्यादातर बचा हुआ। रूहआफ़ज़ा और टैंगो सॉफ्टड्रिंक लाया था। ऐसे ही गर्म पानी में पी लेता हूँ।

वाटर टैंकों का वाल्व टूटा है, पानी लीक होता रहता है छत पर ओवरफ्लो होकर। घर के खिड़की दरवाजों और दीवारों से दीमक की बांबी निकल रही है। छत का मुख्य और छज्जे की जाली वाला बोर्ड का दरवाजा गल के टूट गया है। जीने के दरवाजे की चौखट खराब है जिससे लॉक नहीं हो रहा। उस पर लगी जाली का डोर क्लोज़र खराब पड़ा है।

जीने पर रेलिंग और पाइप लगवाना है। गिरने का डर रहता है। कमरों में रद्दी और भंगार का सामान फैला है। सब सामान धूल खा रहा और एक के ऊपर एक चढ़ा हुआ है। कुछ सामान खोया हुआ भी है। अलुमिनियम सीढ़ी 6-7 स्टेप की 2400₹ की है लेकिन वो घर पे कैसे लेकर आऊं? बहुत दूर मिल रही है। वो आ जाये तो पंखा खोल के ठीक करने का जुगाड़ करूँ।

टुल्लू पम्प खुला पड़ा है। उसका सामान चुरा लिया था पिछले मिस्त्री ने। उसको भी ठीक करवाना है। घर में पुट्टी होनी है, रंग रोगन होना है। जालियों और ग्रिलो पर पेंट होना है। बोर्ड के पल्लों के किनारों में दीमक नाशक लगा के पेंट करना है।

किचन के पल्ले दीमक खा गई। उनको ठीक करवाना है। ऊपर लटका कबर्ड धीरे धीरे unstable होकर झुक रहा है उसको भी रोकने का जुगाड़ करना है।

आंगन का पानी की निकासी का पाइप चोक है फेविकोल से। उसे निकाल के बदलना पड़ेगा। टाइल लगा है जो अब मिलता नहीं। तोड़ना पड़ेगा। बेमेल लेकर लगाना पड़ेगा।

पानी का शावर जाम है। कमोड का जेट सेट ढीला है। उसके प्लास्टिक के स्क्रू की चूड़ी स्लिप हैं। बमटी पर छत डलवानी है। टीन अब गल चुका है।

एक दीवार के टाइल निकल गए हैं उनको लगवाना है, एक कमरे में रिनोवेशन के चक्कर में हुए काम से मच्छर आने का रास्ता खुल गया है उसे भी बन्द करना है सीमेंट से और न जाने क्या क्या करना बाकी है। कुछ काम तो इतने खर्चीले हैं कि करने ही नहीं है। क्या क्या बताऊँ?

फिर भी कभी नहीं रोता आपके सामने! मस्त रहता हूँ। जीवन इसी का नाम है। समय आने पर सब काम हो जाएंगे। 😍 सब बढ़िया है! 👌 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020

सोमवार, जून 29, 2020

Civilization is the state of mind, not from someone's dressing sense



जब भी कोई पुरुष या महिला आपको कपड़ों को लेकर टोकता/ती है तो उसके 2 मतलब होते हैं:

1. अगर मैं (पुरुष) उत्तेजित हो गया तो तेरा यहीं बलात्कार कर दूंगा और इसमें तेरी ही गलती होगी।

2. अगर किसी पुरुष ने उत्तेजित होकर तेरा बलात्कार कर दिया तो इसमें तेरी ही गलती होगी। उसकी नहीं।

अब सोचो, ये खुले आम पुरुष प्रधान समाज की धमकी है कि उसे सजा का कोई डर नहीं है। उसे अगर मन किया तो वह किसी भी महिला को सड़क पर गिरा के *ध सकता है और अगर उसने विरोध किया तो जला कर मार भी सकता है। ये खुली गुंडई है और जो महिलाएं उनका साथ देती हैं, वे उन पुरुषों के ऊपर निर्भर हैं, इसलिये उन्हीं का साथ देती हैं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

There is no any problem with female, problem is boundations



यदि आप इसलिये विवाह नहीं कर रहे कि महिलाएं नरक का द्वार हैं या वे बुरी या धोखेबाज होती हैं; ऐसी बात कहीं से सुन पढ़ रखी है, तो आप 1 नंबर के मूर्ख हैं।

दरअसल विवाह जिससे भी कर लोगे, वह आपसे बंध कर जल्द ही उकता जाता है और फिर वह अपनी जंजीर तोड़ने के लिये क्लेश करता है।

आज़ादी के लिये दुनिया मे लाखों लोग बली चढ़ गए लेकिन आज़ादी के बिना रोटी नहीं खाई। यही हमारे खून में है। हम सबको आज़ाद रहना है। आप पर कोई रोक टोक करे और आपको उसके टोकने में कोई भलाई न दिखे तो आप उससे कुढ़ने लगोगे।

यही नफ़रत क्लेश का कारण बनेगी। इसे दबा कर मन ही मन कुढ़ कर कैदी की तरह जी लिए तो विवाह सफल और अगर अंदर से इंकलाब ज़ोर मार गया तो मौके पर मौत या कत्ल के जुर्म में जेल। या कमज़ोर निकले, मुकाबला न कर सके; तो तलाक होना तो तय है।

फिर काहे अपनी "उसमें" छुरा कर रहे खुद ही? आपके विवाह का, चाहे आपकी मर्जी हो या न हो, एकमात्र ज़िम्मेदार, सिर्फ आप हो। और कोई नहीं। ये बात याद रखना। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

बुधवार, जून 24, 2020

Communism is a false propaganda, it's not possible completely



100% कोई भी समाज, आर्थिक रूप से बराबर नहीं हो सकता। कोई न कोई तो अधिक आर्थिक संपन्न होगा, तभी कमाई सम्भव है। जितने भी कम्युनिस्ट कम्युनिज़्म को बराबरी का उपाय बताते हैं वे झूठे हैं। बराबरी होने पर सभी कार्य रुक जाएंगे। जैसे, मजदूर, मजदूर के यहाँ नौकरी नहीं करेगा।

सब पर समान मात्रा में धन होगा तो वह खर्च करते ही असमान हो जाएगा। धन नहीं होगा तो हम वापस पाषाण काल में पहुंच जाएंगे और आदिवासी जीवन जीने लगेंगे।

क्या हम वापस आदिवासी बनना चाहते हैं? उधर भी मुखिया होता है जो साबित करता है कि कोई बराबर नहीं हो सकता। सब अपनी योग्यता से अपना स्थान पाते हैं।

सबके लिये अवसर समान हैं लेकिन किसी से धन सम्पत्ति लेकर (छीन कर) किसी फिजूलखर्ची को देना और बदले में उसी मूल्य का देनदार को कुछ न देना लूट है और इस तरह की बराबरी से सब आधुनिक समाज नष्ट हो जाएगा।

कम्युनिस्ट देश की करेंसी होने का अर्थ है कि वह देश कम्युनिस्ट नहीं है बल्कि उसकी आड़ में देशवासियों का शोषण कर रहा है। ताकि वह विश्वगुरु लग सके। घमंड ही इसकी बुनियाद है। इसीलिए इनका तानाशाह खुद को ईश्वर समझता है। ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, जून 20, 2020

In a hotel of Nainital


लड़की: कोई भी रूम नहीं है! अब क्या करूँ?

शुभ: बुरा न माने तो आप मेरे साथ कमरा शेयर कर सकती हैं। इतनी रात में बाहर सोना उचित नहीं।

लड़की: तुम लड़के हो, मैं तुम्हारा भरोसा कैसे करूँ?

शुभ: हाँ, उचित प्रश्न है। वैसे, मेरी भी माँ-बहन है। एक लड़का जब उनके साथ एक घर में जीवन भर रह सकता है तो आपके साथ तो केवल कुछ ही घण्टों की बात है। हो सकता है कोई और लड़का शराफत का सुबूत देने के लिये कमरे से बाहर सो जाता। लेकिन वो सुबूत कहाँ हुआ?

ये तो आप उसके छेड़खानी करने पर भी करवा सकती थीं। ये तो अपनी हवस का प्रमाण देना हुआ कि कंट्रोल नहीं है खुद पर इसलिये बाहर निकल गए। मुझे खुद पर पूरा भरोसा है। बस आप शरीफ़ निकलें इसकी आशा करता हूँ।

कभी-कभी मदद के बदले लूटमार हो जाती है। मदद मैं कर रहा हूँ, नुकसान मेरा है। मेरी प्राइवेसी में दखल रहेगा। हांलाकि आपको आधा किराया शेयर करना चाहिए लेकिन ये मैं आपके ऊपर छोड़ता हूँ। पर इसके बाद भी क्या आप मुझे अच्छा इंसान समझेंगी? क्या मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ? ये सवाल ज्यादा जरूरी है। बजाय इसके कि आप मुझ पर भरोसा क्यों करें?

लड़की: Wow! Please show me your room! I also want to know more something about you. You looks very interesting person! 👌

शुभ: Sure! Here we go! 😊

गुरुवार, जून 18, 2020

Chameleon Atheists: Snakes in your arms




गिरगिट नास्तिक: ऐसा व्यक्ति जो खुद को धार्मिक नहीं कहता, खुद कोई धार्मिक कार्य नहीं शुरू करता लेकिन कोई और करवा रहा तो उसमें बढ़चढ़ के हिस्सा लेता है। धार्मिकों की लड़कियों/लड़कों पर लार टपकाता है और लड्डू नास्तिक बांट रहा हो या आस्तिक, उनको बस खाने से मतलब है। ये धार्मिकों के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर उनको सफल बनाते हैं। इनकी नास्तिकता इनकी गांड में घुसी रहती है जिसे सिर्फ वही देख सकते हैं टॉयलेट में जाकर। बाकी दुनिया उनको धार्मिक ही समझती है। फेसबुक पर वे नास्तिक हैं। घर में राजा बेटा-बेटी हैं। हवन में आहुति देते हैं, होली-दिवाली पे पूजा में बैठते हैं। रक्षाबंधन से लेकर बसंत पँचमी, ईद और क्रिसमस दिल खोल कर मनाते हैं। ये बस एक न्यूट्रल व्यक्ति होते हैं जिनकी दरअसल एक ही विचारधारा होती है। दसों उंगलियां घी में और मुहँ गटर में। 😁

ऐसे लोग कुतर्क देते हैं: नास्तिकता मन से होती है। हम धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लें, होली, दीवाली, रक्षाबंधन, भाई दूज मनाएं या प्रशाद-भंडारा खाने जायें। इससे आस्तिक नहीं बन जाते। हम खुद तो नहीं जाते मंदिर। हम खुद तो नहीं मनाते अकेले कोई त्योहार। कोई मना रहा है तो उसके साथ हम भी घुलमिल गए। दोस्ती खराब नहीं करते और बेमतलब में अलग बैठने तो जा नहीं सकते। अपने त्योहार अलग बना लें क्या?

ये तो वही बात हुई जैसे सुपर मैन स्पाइडर मैन का ड्रेस पहन लें तो स्पाइडर मैन थोड़े ही बन जायेगा? या स्पाइडर मैन सुपर मैन की पोशाक पहन ले तो सुपर मैन नहीं बन जायेगा।

करके देखिये। समझ आ जायेग़ा कि खुद पर आस्तिकता थुपवा लेना, दूसरों को न बताना कि आप उनकी विचारधारा के खिलाफ हैं; दरअसल, उनका फायदा उठाना है। उनके साथ और अपने साथ धोखा है। एक कायर और डरपोक आदमी भी यही करता है। उसकी धर्मिको से इतनी फटती है कि जैसा वो लालच देते हैं, वैसे ही ललचा जाते हैं। धार्मिकों के समारोह में लड़कियों/लड़कों को ताड़ने का प्लान होता है। नास्तिकों की तो भारी कमी है तो लड़की किधर पटाई जाय? फ्री में प्रशाद और खाना मिल रहा, कैसे ठुकराया जाय? हराम का और पाखण्ड का कमाया हुआ खाने की आदत कैसे छूट जाएगी? जितना भ्रष्ट धार्मिक है, उतना ही भ्रष्ट धर्ममुक्त भी न हो गया तो क्या लाभ है?

आपको त्योहार चाहिए क्यों? किसी के पाखण्ड में आपको लालच क्यों आ रहा है? आपको हर वही चीज क्यों चाहिए जो धार्मिकों पर है? दरअसल आप उन लोगों के साथ हो जो नास्तिकता को धर्म का ही हिस्सा बताते हैं। चार्वाक को भी किसी विचारधारा से मतलब न था। वो भी बस करेक्टर लेस नास्तिकता के समर्थक थे। जिधर जो लाभ मिल रहा, ले कर निकल लेने वाले मक्खी/मच्छर जैसे जंतु। 😁 मक्खी नहीं देखती कि किसकी टट्टी पर बैठ रही है। मच्छर नहीं देखता कि किसका खून पी रहा है। ऐसे ही गिरगिट नास्तिक हैं।

जबकि तर्कवादी होना, सत्य को पकड़ के बैठने का नाम है। जड़ें सत्य के लिये अटल हों। सत्यवादी होना तो ज़रूरी है। खुद से तो झूठ न बोलो। खुद को धोखा मत दो। आपको अगर गंदगी से नफ़रत है तो उससे दूर रहो। नहीं है तो आप भी गंदगी चट हो।

नास्तिक-आस्तिक केवल आपकी शुद्धि और अशुद्धि हैं। कोई नियम, या वेशभूषा नहीं है इसकी। लेकिन शुद्धता तो रहेगी। शुद्ध होना ज़रूरी है। अन्यथा आपका कोई वजूद नहीं। आप मजाक बना रहे विचारधारा का। ये तो वैसा ही है जैसे विजय माल्या खुद को मार्क्सवादी कहे। मार्क्सवादी आंदोलन चलाये। MK गाँधी ब्रिटेन की महारानी के पैर धोकर पियें। मदर टेरेसा खाली समय में स्टेनगन चलाती हों।

आप पाखण्ड की गंदी गटर/नाली से बाहर आ गए और साफ हो गए। दोबारा नाली में लोट लगा कर उसी गंदगी को प्रेम करना है क्या?

ज़हर है धार्मिकता और ये मीठी उसी को लगती है जो नास्तिक होने का ढोंग करता है, भीतर से धार्मिकता उबाल मार रही हो लेकिन नास्तिक दोस्त भी बड़े काम के हैं। उनसे भी बना कर रखनी है। उनसे भी यारी है और आस्तिकों से तो है ही। ऐसा क्यों? ताकि उसको दोनो जगह से लड्डू मिल सकें।

ऐसे लोगों को नास्तिक नहीं, गिरगिट नास्तिक नाम देना ही बेहतर होगा। ये लोग तो नास्तिकों को कत्ल करवा कर आस्तिकों से मिल जाएंगे और आस्तिकों के मरने पर नास्तिकों से मिल जाएंगे। इनकी सोच और कुछ नहीं, केवल मुफ्त का माल बटोरना होती है। हिम्मत ही नहीं होती कि सत्य स्वीकार सकें। नाम का आस्तिक और नाम का नास्तिक बन जाना ही इन मौका परस्त लोगों की कायरतापूर्ण अभिव्यक्ति होती है। इनको अभी कोई नास्तिक आंदोलन करने को बोलो, तो कथा/जागरण/कीर्तन में जाकर बैठ जांएगे।

इनसे आप किसी तरह की मदद की उम्मीद मत रखियेगा। ये दोनों तरफ खाते हैं। कभी आपके ऊपर आतंकी हमला हो जाये तो ये हाथ खड़े कर देंगे। ये बोलेंगे कि हम तो इनके यहाँ रोज आते जाते हैं, साथ खाते और त्योहार मनाते हैं। इनके खिलाफ कैसे कुछ बोल दें या कर दें? और किसी दिन इन्हीं पर हमला हो जाये तो धार्मिक तो हाथ जोड़ के कह देगा कि धर्म की रक्षा कर रहा हूँ आपकी दोस्ती और जान उसके आगे कुछ नहीं। तब ये बेशर्मी से उन्हीं नास्तिकों से मदद मांगेंगे जिनको पिछली बार हाथ जोड़ के मना कर आये थे। थू है ऐसे लोगों पर।

हर विचारधारा का एक चरित्र होता है। उसकी विशेषता होती है। जिसने अपनी विशेषताओं को ही खो दिया वह अपने करेक्टर से ही निकल गया। स्पाइडर मैन सुपर मैन बन कर जाले फेंक रहा है और सुपर मैन स्पाइडर मैन बन के उड़ रहा है। वाह! यही नास्तिकता को बना कर रख दिया है इन जैसे गिरगिटों ने। 😁 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020© वाकई धर्ममुक्त!

शनिवार, जून 13, 2020

Learn basic science before listening to the experts. They maybe wrong.




विकासवाद को समझने का सही तरीका बहुत से लोग नहीं जानते हैं। भ्रम से उपजा तरीका ही सब गड़बड़ी पैदा कर देता है। अवशेषी अंग, इस्तेमाल में न आने से गायब नहीं हुए बल्कि ऐसे मानव ही ज़िंदा बचे, जिनमें संयोग वश हुई आनुवंशिक गलती से उनकी अगली पीढ़ी में वे अंग समाप्त हो गए थे। पुराने अंगों के कारण हुई समस्याओं से पुराना मानव खत्म हो गया।

दिमाग में ये बात डाल ली जाए कि पहलवान/गणितज्ञ/वैज्ञानिक/कलाकार आदि का बेटा/बेटी जन्म से कभी पहलवान/गणितज्ञ/वैज्ञानिक/कलाकार नहीं होता। ये सभी बाद में अर्जित किये गए गुण हैं जो केवल सिखाने या उसके खुद सीख लेने पर ही आ सकते हैं। अतः अर्जित गुण अगली पीढ़ी में नहीं जाते।

यदि मानव कोई भोजन करके इस जीवन में स्वास्थ्य लाभ उठाता है तो उसकी अगली पीढ़ी में वह स्वास्थ्य प्रेषित नहीं होगा। अतः बाहरी प्रभाव कभी भी अगली पीढ़ी में नहीं जाते। कुछ वैज्ञानिकों द्वारा भोजन से मस्तिष्क के विकास की बात सिर्फ प्रोपोगंडा है। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, जून 05, 2020

Without understanding the modern constitution you can't live well




जितनी जनसंख्या, संसाधनों पर उतना ही हक?
ठीक है, ये कबीले में होता है। शहरीकरण में जो जितना योग्य है वह उतना संसाधन पा सकता है। अब प्रकृति का सिद्धांत है 'योग्यतम की उत्तरजीविता।' प्रकृति के खिलाफ कैसे जाया जाए?

कबीला एक परिवार होता है। इसलिये जो मिलता है सब आपस में बांटा जाता है। सबकी सोच एक जैसी, एक जैसे विचार होते हैं। परंतु एक संगठित समाज में हर तरह के लोग होते हैं। अलग धर्म और अलग सोच विचार के। उनमें एकता नहीं होती।

जहाँ एकता नहीं, एक सोच विचार नहीं, वहाँ कैसे कोई परिवार बन सकता है? शत्रु ही बनेंगे। कबीलों में भी कौन सी एकता है? अपने कबीले के अतिरिक्त क्या कभी दूसरे कबीले को अपने संसाधनों को बांटा है? नहीं न? उनके तो जानी दुश्मन होते हैं कबीले वाले।

जब हर कबीला अपना अपना वर्गीकरण करके बैठा है और एक दूसरे से नफरत करता है तो फिर वही तो आगे चला आया। बल्कि शिक्षा और शहरीकरण ने तो वैमनस्य कम किया है। आज आप सनातनी होकर भी एक मुसलमान के साथ कार्य कर सकते हो। उसके साथ सौदे कर सकते हो।

अब तो विवाह भी हो जाते हैं अंतरजातीय और अंतर्धार्मिक। इतनी सुविधा और प्रेम पहले कभी नहीं था। संविधान ने देशों को जोड़ा है। कबीले वाले तो अवैध सम्बंध की सज़ा के तौर पर योनि (चूत) में पत्थर भर देते हैं, गुदा (गांड) में भाला डाल के मुहं से निकाल देते और तड़पते इंसानो को मैदान में टांग देते हैं।

तब भी हम समझते हैं कि बहुत से लोग योग्य नहीं होते। उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है इस आधार पर। मानवता यहां आकर अयोग्य की भी मदद करती है। अयोग्य को समाज में निर्धन कहा जा सकता है। निर्धन को सरकार मदद देने के लिये समाज कल्याण विभाग बनाये बैठी है।

उसका कार्य ही सहारा देने का है। शिक्षा मुफ्त देने, चिकित्सा मुफ्त देने, आवास मुफ्त देने, और अब तो अनाज भी मुफ्त देने की व्यवस्था हो गयी। इस बार तो गजब ही हुआ। ट्रेनें ही मुफ्त कर दी गईं।

संसाधन बंट तो रहे हैं। अमीरों से टैक्स लेकर गरीबों को संसाधन उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। अगर आपको लेना नहीं आ रहा तो उसके लिये ग्राम पंचायतों ने आंगनवाड़ी, नुक्कड़ नाटक करवा कर जानकारी भी दी है ताकि जागरूक हो अशिक्षित नागरिक।

प्रकृति के खिलाफ इससे अधिक गए तो अमीर टैक्स देना ही बन्द कर देंगे और तब क्या करोगे? अमीरों से इतनी भी नफ़रत कैसी? सोनू सूद भी अमीर है। बाकी और भी अमीरों ने अभी अरबों रुपये दान किये। क्या सरकार को वो इतना टैक्स देते थे? नहीं। उन्होंने अपना टैक्स कटने के बाद बचा अपने हक का, अपनी योग्यता से कमाया हुआ धन आपकी सेवा में दे दिया। बुरे होते तो क्या ऐसा करते?

अपनी सोच बदलिये। कबीले मत बनाइये, इस आधुनिक दुनिया में। अमानवीय मत बनिये अगर मानवता को अहिंसक समझते हो। संविधान को समझने के लिये साक्षर हो जाओ। फिर देखो दुनिया कुछ अलग ही दिखेगी। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

गुरुवार, जून 04, 2020

Superiority Complex is the root of all evil



  • इंसान खुद को जानवरों से श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • पुरुष खुद को महिला से श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • ब्राह्मण बाकी सब से खुद को श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • गोरा काले से खुद को श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • बड़ा छोटे से खुद को श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • अमीर गरीब से खुद को श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • धार्मिक दूसरे धार्मिक से खुद को श्रेष्ठ समझता है। हिंसा करता है।
  • विपरीत सोच के देश, बाकी देशों से खुद को श्रेष्ठ समझते हैं। हिंसा करते हैं।
  • बुद्धिमान मूर्ख से खुद को श्रेष्ठ समझते हैं। दूर चले जाते हैं।
  • ज्ञानी अज्ञानी से खुद को श्रेष्ठ समझते हैं। वाक युद्ध करते हैं।

ये श्रेष्ठ समझना ही दरअसल सभी तरह की हिंसाओं की जड़ है। जबकि बुद्धिमान व्यक्ति जो उसे पसंद नहीं, उससे दूरी बना लेता है और यही श्रेष्ठ होना है। हिंसा करना नहीं। ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

सोमवार, जून 01, 2020

Arrogance makes you great by provoking you




विनम्रता दरअसल लोगों को हतोत्साहित करने का एक मोहक उपाय है। "आप महान हैं, मैं तुच्छ हूँ" कहना, ये जानते हुए भी कि सामने वाले की कोई औकात नहीं है, दरअसल वह जैसा है, उसे वैसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाने की कला है। हमारे जितने भी कम प्रतिद्वंद्वी होंगे, हमारा रास्ता उतना ही आसान होगा। अगला अपने को बड़ा समझ कर खुश हो जाएगा और रास्ते से हट जाएगा।

जबकि यदि मैं कहता हूँ, "अबे हट, न आता न जाता, चुनाव चिन्ह छाता।" या "न खाता, न बही, तू जो बोले, सो सही?"

अब क्या होगा? अब पक्का वह आपकी राह में रोड़ा बनेगा। वह आपको कुछ बन के दिखा देगा। वह आपकी राह में प्रतिद्वंद्वी बन कर आ खड़ा होगा।

अपमान से, उसमें महत्वाकांक्षा जाग जाती है। जबकि सम्मान से वह वहीं खत्म हो जाता है। सम्मान न देने से, सम्मान पाने की इच्छा अगले में जाग जाती है और वह सम्मान के लायक बनना चाहता है।

तमाम उदाहरण इस घटना के मिल सकते हैं। 2 उदाहरण पेश हैं:

1. तुलसीदास को उनकी पत्नी ने देह के मोह के प्रति अपमानित किया और उन्होंने रामचरित मानस लिखी।
2. दसरथ राम मांझी को उसकी पत्नी ने मोह के प्रति अपमानित किया और उसने अकेले पहाड़ काट के रास्ता बना दिया।

अगर अपमान न किया जाए तो लोग कभी कामयाब ही नहीं होते। अपमान करने वाले ही किसी महान व्यक्ति के गुरु होते हैं। घमंडी निस्वार्थ भाव से अपमान करके लोगों को महत्वाकांक्षी बनाते हैं। मनोविज्ञान और मोटिवेशनल जगत में इसे रॉकेट के पीछे की आग कहते हैं। जलोगे नहीं तो उड़ोगे नहीं। इसीलिए प्रिंसिपल, बॉस, मालिक खड़ूस होते हैं। अपने घमंडी व्यवहार से वह बाकियों को उकसा कर ऊंचा उठा देते हैं।

जो विनम्र है, वह चालू है। वह चुपचाप सब लड्डू खा लेना चाहता है। सबको वह नीचे रख कर, खुद ऊपर चला जाता है। वह जानता है कि किसी का अपमान करना, उसे उसके सामने लाकर खड़ा कर देगा। जिसे उसे हराने में ऊर्जा खर्च करनी होगी। बेहतर होगा कि किसी को अपने इरादों की भनक लगे बिना ही अपना काम करते जाओ। जो सामने पड़े, सम्मान से, विनम्रता से बोल कर उसे नतमस्तक कर दो, उसे खुश कर दो। वह चला जायेगा।

तो ये विनम्रता केवल और केवल अपने स्वार्थ के लिए है। ताकि कोई दुश्मन न खड़ा हो जाए। घमण्ड में उल्टा बोल के हम अपने दुश्मन बना लेते हैं और वे हमसे बेहतर निकल जाएंगे तो हमे पीछे छोड़ देंगे। इसीलिए घमंड खुद के लिए घातक है। लेकिन यही घमण्ड अपमान सहने पर आपको महत्वकांक्षी बना कर सर्वोच्च भी बना देता है।

साधारण विनम्र मानव तो मरा हुआ होता है। उसे कितना भी अपमानित कर लो, उसका खून नहीं खौलता। वह बस नौकर अच्छा बनता है। मालिक तो कभी बन ही नहीं सकता।

तो क्या सीखा? सामने वाले की विनम्रता, आपको कमज़ोर करती है और सामने वाले का घमंड आपको मजबूत बनाता है। अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा है तो किसी घमंडी के साथ लग जाओ। 😝 ~ Shubhabshu 2020©  2020/06/01 21:22 

A real teacher maybe a master but doesn't want slaves



गुरुओं के जाल में भी बहुत लोग आ फंसे हैं। खुद फंस गए तो दूसरों को फंसाने का कार्य मत्थे मढ़ जाता है। जैसे विवाह संस्था वाले बस सबका विवाह-बच्चे करवा देना चाहते हैं, वैसे ही जैसे कोई अपने गुरु का सबको शिष्य बना देना चाहता है।

अगर आप किसी 1 गुरु से बंध गए तो दूसरा उससे लाख बेहतर ज्ञान देते-देते मर जायेगा लेकिन आप आँख-कान बन्द करके उसको गाली देने लगोगे। बस यहीं से अंधी अज्ञानता शुरू होती है। जिसने इंसान को इंसान से काट दिया। जानवरों और प्रकृति का दुश्मन बना दिया।

जो आपको आपकी ज़रूरतों को पूरा करने का तरीका नहीं बता रहा, वह आपकी ज़रूरतों को खत्म करने को कह रहा है। हारा हुआ है और हारना ही सिखा रहा है। जीतने में हिम्मत और मेहनत लगती है। हारना आसान है। आसान कार्य के लिये गुरु नहीं चाहिए। कठिन कार्य के लिये गुरु चाहिए।

बुद्ध ने कहा, "सब त्यागो।"
सन्यासियों ने कहा, "सब त्यागो।"

मैं भी कहता हूँ कि हाँ, त्यागो लेकिन सब नहीं। केवल वही, जिसकी तुमको ज़रूरत नहीं। तुम निद्रा, भोजन, जल, काम, मद, लोभ, क्रोध, मोह अगर सामान्य मानव हो, तो नहीं त्याग सकते। हाँ इन पर नियंत्रण रख सकते हो। जितेंद्र बन सकते हो।

नियंत्रण का मतलब रोक नहीं होता। घोड़ा घुड़सवार के नियंत्रण में है, ट्रेन उसके ड्राइवर और कंट्रोल रूम के, हवाई जहाज और पानी के जहाज के साथ भी ऐसा ही है। क्या इनको सदा के लिए रोकना उचित होगा?

दमन को नियंत्रण नहीं कहते।

दँगा होता है तो दमन किया जाता है। जब कोई सही बात नहीं सुनता और न मानता है, तो दमन करना पड़ता है। दमन एक उपाय है रोकने का।

लेकिन दँगा शांत करने का उपाय है, समस्याओं का समाधान। तभी भीड़ रुकेगी। तभी दोबारा दंगे नहीं होगें। 

भीड़ को सन्तुष्ट करो।
दँगा रुक जायेग़ा।
हमेशा के लिये।

भीड़ की मांगें गलत हैं तो उनको गलत और सही समझाओ। उनको सही तक लेकर आओ। ये काम कर सकता है, एक असली सत्य खोजी गुरु।

हमारी इंद्रियों के दंगे को खत्म करने के लिये हम क्या करते हैं?

दमन? या उनको संतुष्ट करते हैं?

आपने चीटियों को नियंत्रित किया है। आपने थोड़ा आटा अलग दिशा में डाला और चींटी ने अपना रास्ता बदल दिया। वह सन्तुष्ट हो गई। एक ऐसा प्राणी जो आपकी भाषा नहीं समझता, उसे भी अभी आपने संतुष्ट करके अपना कार्य करवा लिया।

ऐसे ही भूखी इंद्रियों को खाना दो। उनको नियंत्रित सिर्फ इतना ही करना है कि वे किसी बेगुनाह को नुकसान न पहुँचा दें।

जैसे गुस्से में लोग ट्रिगर पर रखी उंगली नहीं हटाते लेकिन समझाने पर उसकी नली की दिशा बदल देते हैं।

ट्रिगर दबता है। गुस्से को निकलने का मौका मिलता है।

अक्सर लोग गुस्से में जब किसी ज़िंदा दोषी को चोट नहीं पहुँचा पाते तो बेजान वस्तुओं को तोड़ कर, वह अपना गुस्सा निकाल देते हैं या खुद को चोट पहुँचा कर अपना गुस्सा कम कर लेते हैं।

हम इससे आगे बढ़ कर थोड़ा और स्मार्ट बन सकते हैं। हम बेजान चीजों को भी क्यों तोड़ें? उसमें भी तो खर्च हुआ है। उसमें भी तो किसी की मेहनत, यादें जुड़ी हैं। 

दरअसल दोबारा वापस न पाने की भावना ही इस निराशा को जन्म देती है।

इंसान मोह में पागल है। जिससे भी वह मोह रखता है, वह वस्तु नष्ट हो जाती है। तब खोने का दुःख उसे रुलाता है, गुस्सा दिलाता है। जबकि मोह उससे करो जो अनश्वर है। जो हमेशा साथ रहेगा। जिसकी मृत्यु निश्चित है, उससे कैसा मोह?

परंतु हमको जो अनश्वर लगता है, उससे मोह ही नहीं होता। हमको तो उस वस्तु से मोह होता है, जो जल्दी नष्ट होने वाली है।

उदाहरण के लिये, आपके सामने 2 लोग घायल पड़े हैं। 1 कम घायल है और थोड़ी देर और जी सकता है। जबकि दूसरा ज्यादा घायल है। देर करने पर उसकी जान जा सकती है। अब आप पहले किसे बचाओगे?

सीधी बात है कि आप जो जल्दी मरने वाला है, उसे बचाओगे। यानी जो खुद अपनी देखभाल नहीं कर सकता और कमज़ोर है, उसी के प्रति दया उमड़ती है। उसी से मोह होता है। देखा? कैसा जाल है मोह का?

खो देने का डर ही मोह है। पाने का मोह लालच है। इसी से दुःख पनपता है क्योंकि हर किसी की एक सीमा है। उसी सीमा तक वह जाकर रुक जाता है या असफल हो जाता है।

हमें अगर जीतना है तो कुछ अलग करना होगा। वह अलग क्या है?

यह उपाय है कि देखो, जिससे मोह है, क्या वह तुम्हारे लिए वाकई ज़रूरी है? यदि नहीं, तो उससे पीछा छुड़ाओ। यही सही त्याग होगा। जो ज़रूरी है, उसी को रखो। बाकी सब को त्याग दो।

मैं, मेरा खुद का उदाहरण देता हूँ। कई बार मेरे कंप्यूटर की पूरी हार्ड डिस्क का डाटा मिट गया। मेरा न जाने कितना शोध और न जाने क्या-क्या प्रिय सामग्रियों का समंदर नष्ट हो गया। ऐसा लग़ा जैसे कोई अपना दोस्त या रिश्तेदार मर गया हो।

मैं बहुत भावुक रहा हूँ। बेजान वस्तुओं से जिंदा इंसानो के मुकाबले ज्यादा प्यार करता हूँ। बेजान किताबों, शब्दों ने मुझे जीना सिखाया। इंसानो ने बस उलझाया, ठगा और लूटा। ऐसा लग़ा जैसे अगले को कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई मरे या जिये।

लोग ऐसे बुरा व्यवहार करते हैं, जैसे उनके साथ कोई वैसा व्यवहार कर ही नहीं सकता। यही झूठा घमण्ड है। 

ऐसे लोगों का घमंड टूटा है। बहुत बार टूटा है। मैंने तोड़ा है। लोगों का घमंड तोड़ने के लिए मुझे उनसे भी ज्यादा काबिल बनना पड़ा।

इसी कारण मैं हर क्षेत्र में ज्यादा जान पाया। जब भी किसी ने कहा, "तेरी औकात क्या है?" तो मैंने उसे चुनोती माना। अपनी औक़ात उससे ज्यादा बनाईं फिर उससे पूछा, "तेरी औकात क्या है?" और कमाल है कि उसकी औकात कभी उससे ज्यादा नहीं हुई।

क्यों? क्योंकि वह बस जहाँ पहुँच गया, उस पर ही घमंड कर रहा। यानी जो लहर पर पत्ते की तरह तैर रहा और किनारे लग गया, वह पत्ता खुश है कि उसने नदी पार करी है। वह जांबाज़ है।

जबकि, संघर्ष ही जांबाजी है। ज़रूरी नहीं कि संघर्षकर्ता, सड़कों पर, अपने लिए बेसिक ज़रूरतें ही जोड़ते हुए दिखे। हर वह जीव संघर्षकर्ता है, जो जी रहा है। इसी को जीवन संघर्ष कहते हैं। यदि आप सांस भी ले रहे तो यह संघर्ष है। नहीं लोगे तो मर जाओगे। एक ऐसा काम जो आपको सोते हुए भी करना है। फिर हम किस संघर्ष की बात कर रहे?

हम बात कर रहे हैं अपनी इच्छाओं और हुनर को सही जगह प्रयोग करने के प्रयास की। दरअसल दुनिया में बहुत हुनर है। बहुत प्रतिभा है। लेकिन लोगों को उसकी कद्र नहीं है। तमाम प्रतिभाओं का गला घोंट दिया जाता है।

मेरी खुद की प्रतिभाओं का गला घोंट दिया गया। तभी सोशल मीडिया पर लिखता हूँ। जानता हूँ कि मेरी योग्यता या कीमत क्या है। बहुतों से जाना है। बहुतों ने सलाह दी है। कोई कहता, उपन्यास लिखो, कोई कहता, इतना ज्ञान है तो नेता बन कर देश बदल डालो। कोई कहा, उपन्यास छापो, कविता की किताब निकालो, हम लेंगे। मैं बस इसे अपनी हौसला अफजाई समझ कर मुस्कुरा देता। इस से आत्मविश्वास उत्तपन्न होता है।

मेरे माता-पिता और उनके पिता-माता, सब के सब साधारण बल्कि अतिसाधारण बुद्धि के मानव थे। उनका जीवन आम लोगों की एकदम नकल था। दादा दादी अंगूठा छाप थे। ताऊ बेरोजगार, हस्ताक्षर कर लेते हैं।

मूक बधिर होने के कारण विवाह नहीं हुआ और पापा को बचपन में किसी अपमानजनक सामाजिक घटना के चलते, ज़िद करके, मार-मार के विद्यालय भेजा गया।

दादा खाना कम खाते लेकिन पैसा बचा कर सरकारी कॉलेज तक पढाई करवाई। मां प्राइमरी पढ़ी थीं तो उनको अपने पति को भी पढ़ा लिखा देखने की ज़िद रही और उन्होंने भरसक प्रयास किये कि पिताजी किसी तरह स्नातक कर लें। पिता गांव से शहर पहुँचे तो दोस्तों की बुरी संगत में पड़ गए। 1-2 साल फेल भी हुए। कॉलेज छोड़ के सिनेमा देखते थे।

मेरे दादा ने पापा को इसलिए पढ़ाया था क्योंकि दादा जी एक ओझा थे और लोहे के हंटर से लोगों का भूत उतारते थे। किसी ने उनका अपमान कर दिया। अपमान तो वैसे भी ब्राह्मण करते ही थे और दादा उनके यहाँ बेगारी काम भी करते थे। ये 1954 से पहले व उसके बाद की बात है। इसी वर्ष 1954 के अंतिम माह में मेरे पिताजी ने जन्म लिया था। और इसी के 1 वर्ष बाद 1955 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई। ये मैंने क्यों बताया आगे देखिएगा।

दादा-मम्मी-पापा-ताऊ, दादी आदि वो सब मिट्टी-छप्पर के बने एकदम निम्न श्रेणी के गाँव में रहे थे। जब आस-पास के गांवों में, बिजली और सड़क आ गई, तब हमारे गाँव में इस विकास का जमकर विरोध हुआ। लोगों ने कहा कि बिजली से हम चिपक के मर जाएंगे, सड़कों से गाड़ी हमको कुचल देगी और रसोई गैस से सिलेंडर फट जाएगा और सब जल कर मर जाएंगे। 😝

ये समय अब उस नर्क को छोड़ने का था। मेरे पापा ने पढाई पूरी कर ली। उनको अफसर पद के लिये इंटरव्यू का लेटर मिला था। तभी उनके पिता को भयानक खांसी हुई। डॉक्टर ने बताया कि फेफड़े का कैंसर है। बच नहीं पाएंगे। लेकिन पापा उनको लेकर यहाँ वहाँ भटकते रहे। उनकी वह जॉब हाथ से निकल गयी। दादा जी भी गुजर गए।

इसके बाद पापा LLB की तैयारी करने लगे। उस समय वकालत 3 साल की होती थी। पापा ने 2 साल पूरे कर लिए लेकिन तभी उनको रोजगार कार्यालय से स्टेट बैंक के इंटरव्यू का लेटर मिला। उसी इंटरव्यू में तमाम परीक्षाओं को पास करते देखने के बाद अंत में पापा से पूछा गया कि ये साधारण कपड़े और इतने लम्बे दाढ़ी, मूछ व बाल के साथ यहाँ क्यों आये? शेव क्यों नहीं काटी?

पापा की आंखों में आंसू आ गए। बोले, "ब्लेड खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं।" इसी के साथ बोर्ड ने एकसाथ कहा, "you are selected!"

अब समझ आया कि ऊपर स्टेट बैंक का नाम क्यों लिया था? 😁

बस उस दिन से हमारे दिन बदलने शुरू हुए और पिताजी ने शहर में किराए के मकानों में रहते हुए एक-एक करके बर्तन खरीदे। आज भी मां बताती हैं कि 1-1 करके चम्मच कटोरी खरीदी हैं तभी कोई सेट नहीं है हमारे घर में। हर बर्तन अलग ही डिजाइन का था। हर चम्मच अलग ही डिजाइन का था।

मेरे पैदा होने के पीछे भी माता-पिता का बहुत संघर्ष रहा। एक लड़की पैदा होने के बाद माता की फैलोपियन ट्यूब बन्द हो गयी। बहुत वर्षो तक कोई बच्चा नहीं हुआ। ये लोग देश के सारे तीर्थ कर आये। हर डॉक्टर को दिखा डाला। कोई लाभ न हुआ। फिर एक दाई ने मां से कहा कि मैं तुम्हारी मालिश से ट्यूब खोल दूँगी। मुझे बनारसी साड़ी दिलाना, जब बालक हो।

कमाल हुआ, और मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्म ने माता-पिता को तानों से बचाया और वंश वृद्धि के सपने भी जगाए। परन्तु, बचपने से ही मैं विवाह का विरोधी हो गया। बचपने से ही धर्ममुक्त हो गया, बचपन से ही मैं vegan हो गया। तब घरवालों को लगा कि बच्चे तो ऐसा बोलते-करते रहते हैं और बड़े होकर सब बदल जायेगा।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैंने जो कहा, न सिर्फ जीवन में उतारा बल्कि उसे कायम रखा। आज भी मैं हैरान हो उठता हूँ कि बचपने के फैसले, बड़ों के फैसलों से भी ज्यादा शक्तिशाली कैसे निकले? आज जब मैं उन फैसलों के लिये तमाम ज्ञान प्राप्त करके एक मजबूत आधार खड़ा कर चुका हूँ, तब सोचता हूँ कि शुरू से ही सही होना, कितना गौरवशाली होता है।

इस गौरव ने मुझसे मेरी बहुत सी प्रिय लगने वाली वस्तुएं, भोजन और दोस्त छीन लिए। समाज से अलग होना, समाज को बर्दाश्त नहीं होता।

 - मैं लोगों के साथ बैठ कर खा नहीं सकता क्योंकि मेरे सिद्धान्त उनके पशुउत्पाद युक्त भोजन को क्रूरतापूर्ण और अन्यायपूर्ण मानते हैं।
 - मैं महिलाओं से घुलमिल नहीं पाता, क्योंकि कहीं न कहीं आकर वे विवाह के बारे में मेरे विचार जानना चाहती हैं और जानते ही दूर हो जाना भी चाहती हैं। जो लिव इन में रुचि रखती हैं, वे मेरे बच्चे न पैदा करने के प्रण को लेकर नाराज़ हो जाती हैं। 
 - मेरा नशामुक्त स्वभाव, महिलाओं के प्रति समानता का नजरिया, मुझे घटिया सोच और नशे-जुए वाले लड़कों में बैठने नहीं देता।
 - मेरा धर्ममुक्त विचार, धार्मिकों को आतंकी बना देता है। वह मारने-पीटने की हद तक गुस्सा हो जाते हैं।
 - मेरा राजनीति मुक्त निष्पक्ष सोच व्यवहार राजनीतिक लोगों को गुस्सा दिला देता है। कई बार तो "मैं वोट नहीं देता" जान कर कई लोगों ने मुझे देशद्रोही तक कह डाला।
 - मैं सत्य के अतिरिक्त किसी की जय नहीं बोलता तो हर तरह के लोग मेरे खिलाफ हो गये।
 - मैंने रिश्तों को धर्मों द्वारा बनाया बताया, तो लोग मुझे मां-बहन की गाली देने लगे।
 - मैंने सेक्स को जीवन का हिस्सा और ज़रूरत बताया न कि बच्चों को तो लोगों ने मुझे ठरकी कहा।
 - जब नौकरी की जगह आत्मनिर्भर होने के लिये प्रतिभा प्रयोग करने को प्रोत्साहन दिया ताकि मालिक बन सकें तो लोग मुझे मूर्ख कहने लगे।
 
कुल मिला कर अधिकतर दुनिया के लिये मैं एक घटिया इंसान हूँ। जबकि मेरी नज़र में इनसे घटिया कोई नहीं है।

मैं समझाऊँ तो मैं सब सही और बेहतर कर रहा पाओगे और न समझाऊँ तो मैं इतना घटिया लगूँगा कि आप दूर ही होना पसंद करोगे। दोनो ही हालातों में मैं सुखी रहूँगा क्योंकि "कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगें खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर!" जाओ, नहीं बनता मैं किसी का गुरु! अभी वैसे भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। 😊 ~ Shubhanshu 2020©  2020/06/01 21:51

शुक्रवार, मई 29, 2020

Modern Indian Suger is now Vegan too!




Modern Indian Sugar is Vegan. No any factory using bone char as a refining agent.

Well, bone char is a charcoal made by burning of animal's bones in the form of tablets which is never dissolves in water. So your old sugar was still plant based. We just don't want to use any animal product in anyway because their demand will cause death of more animals.

USDA already banned it in USA. Also Indian companies claimed that they stopped using bone char in filtration of sugar, years ago. Now a days no any sugar company using this shit anymore. Links are in comment. Don't be fooled by rumours and the old unhygienic sugar making by bone char Videos on the internet and youtube.

Be happy, but please use it low as possible because you have already enough sugar in your other foods. Have a nice day! ~ Shubhanshu 2020©

For Information/Evidence Click here

बुधवार, मई 27, 2020

Right and Wrong are not depends on our point of view.




आपत्ति: जो आपकी सोच के विपरीत या खिलाफ़ है आप उसे खुद से दूर कर देते हैं। इस तरह आप भी वर्णवाद कर रहे हैं।

शुभ: कोई मेरी सोच के खिलाफ नहीं है। दरअसल वे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ हैं। मेरी सोच कोई धार्मिक या अवैज्ञानिक मान्यता नहीं है जो साबित न की जा सके। इसलिये यह स्पष्ट है कि गलत और सही को अलग करना सम्भव है।

घटिया इंसानो की संगत करने से घटिया ही बनते हैं। जब कोई अपराध करता है तो उसी समय निर्दोष और अपराधी के गुट बन जाते हैं।

इसलिये गलत और सही, चोर और पुलिस में यदि वे वाकई में अपने प्रति ईमानदार हैं तो दोस्ती नहीं हो सकती। गलत और सही विज्ञान और नैतिकता तय करती है। नैतिकता हम जो खुद के लिए व्यवहार चाहते हैं वही दूसरो से करें यह तय करता है। अपराध कानून तय करता है।

ऐसा लगता है कि गलत और सही आपका नज़रिया होता है। परंतु फिर कानून किसी को गलत कैसे ठहराता है? दरअसल गलत और सही, दूसरे निर्दोष का नुकसान करने वाला या उसके अधिकारों का हनन करने वाला ही होता है और इसे कोई नज़रिया नहीं बदल सकता। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, मई 26, 2020

No any vegan food is harmful, if you eat them as a food!




प्रायः कोई भी प्राकृतिक vegan उत्पाद स्वास्थ्य को नुकसान नहीं करता। नशे जैसे तम्बाकू, गांजा, अफीम, दारू और ड्रग आदि के दुरूपयोग के अलावा।

वनस्पति घी: भी अप्राकृतिक तरीके से बनता है (रिफाइंड तेल पर धातु के उत्प्रेरण से) और अगर इसमें saturated fat और ट्रांस फैट स्वीकृत मात्रा से अधिक है तो दिल के लिये नुकसानदेह होगा। 0% कोलेस्ट्रॉल

रिफाइंड तेल (unsaturated fat, दिल के लिये best): ये मांस, अंडे, दूध, मक्खन, देशी घी (पशुवसा) से जमा कोलेस्ट्रॉल को साफ करता है और आपकी उम्र लम्बी करता है। 0% कोलेस्ट्रॉल

मैदा: बारीक पिसा गेंहू। 0% कोलेस्ट्रॉल। मैदा को शोधन करने में कोई भी हानिकारक पदार्थ, उसमें नहीं छोड़ा जाता है। शोधन की प्रक्रिया केवल उसे साफ करने के लिये होती है, न कि गन्दा करने के लिये।

लेकिन कुछ अपवाद हैं। जैसे RO Water। RO water शोधन प्रक्रिया में उसकी अकुशलता के चलते पानी में कुछ हानिकारक पदार्थ जल में मिल जाते हैं जो उसे कड़वा बनाते हैं। इस पर आपको पूरी प्रमाणित रिपोर्ट गूगल पर मिल जाएगी। WHO ने क्लोरीन और कार्बन फिल्टर वाले पानी को 100% सुरक्षित बताया है।

कोई भी सब्जी, फल या अनाज हो, सब के सब सुरक्षित और पौष्टिक है। कोई वनस्पतियों में अपवाद होगा तो वह जनमानस के लिये उपलब्ध ही नहीं होगा।

और कोई हानिकारक पदार्थ आपको वनस्पति जगत से बताया गया हो तो मुझे बताइये। मैं उसका भी वैज्ञानिक विश्लेषण करके बताऊंगा उसका सत्य। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

रविवार, मई 24, 2020

Nature drived instincts are our real religion




प्रचलित धार्मिक (रिलिजियस) दिखने के लिये डरपोक होना ज़रूरी है और प्रचलित धार्मिक होने के लिये मूर्ख होना ज़रूरी है।

प्रचलित धर्म: मानव निर्मित एक ऐसी नौटंकी जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

प्राकृतिक धर्म: प्रकृति ही सबका पहले से स्थापित धर्म है। हम सब जीव-जन्तु एक समान हैं। सबको यहाँ अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार जीवन जीने का हक है। अतः हम सबका धर्म हमारा अपना स्वभाव है जैसे हर जानवर का अपना स्वभाव होता है।

संविधान: जो स्वभाव से परे जाते हैं उनके लिये संविधान है। अर्थात व्यवस्थित समाज में अव्यवस्था फैलाने वाले लोगों और जन्तुओ को रोकने, कैद करने व सज़ा देने का विधान! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शनिवार, मई 23, 2020

Feelings are your source of all miseries




जब भावना ही नहीं होगी, तो सब वही करेंगे जो विज्ञान और प्रकृति से, स्वभाव से उचित होगा। न कोई नफरत करेगा, न प्रेम के दिखावे की ज़रूरत पड़ेगी। हर इंसान ईमानदार होगा क्योंकि लालच की भावना नहीं होगी। कोई झगड़ा ही नहीं होगा क्योंकि बात सही या गलत बिंदु पर खत्म होगी।

न सम्मान की भावना न गुस्से और अपमान की भावना जागेगी। तब न तो कोई धर्म होगा और न ही कोई वफादारी के न मिलने पर कत्ल करेगा। क्योंकि लोग सिर्फ सत्य का साथ देंगे। वफ़ा तो पक्षपाती होती है। विवाद शांतिपूर्ण तरीके से निबट जाएंगे क्योंकि तब कोई अपनी मनवाने के लिये ज़िद नहीं करेगा। जो सही होगा वही मान लिया जाएगा।

अच्छी भावनाओं से ही बुरी भावना जुड़ी होती है। आप किसी से प्रेम करते हैं तो बाकियो से नफरत हो जाएगी। आप किसी पर दया करते हैं तो उसे दयनीय बनाने वाले पर आप नफरत और गुस्से से टूट पड़ोगे।

जब आप अच्छे और ईमानदार बनोगे तो जो आप जैसे नहीं हैं, उनको आप मार डालने की सोचोगे। गर्व की भावना आपको बाकियो से श्रेष्ठ दर्शा कर दूसरों को तुच्छ बना देगी और आप उनको नफरत से देखोगे।

जानवरों में भी भावनाओं का ज्वार होता है लेकिन वह इंसान जितना घमंडी नहीं होता। उसे खुद पर घमण्ड नहीं होता। इसलिये वह इतना भावुक नहीं दिखते जितने कि घमण्डी मानव। इंसान घमंडी था नहीं। इसे धर्म और कुछ धर्म द्वारा संचालित वैज्ञानिकों ने ऐसा बनाया। उन्होंने कहा कि इंसान श्रेष्ठ है, क्योंकि उस पे ज्यादा आयतन का मस्तिष्क है या इंसान कल्पित ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। परन्तु इस अतिरिक्त मस्तिष्क की आवश्यकता क्या है? ये वे कभी नहीं बता पाए। चलिये मैं बता देता हूँ।

इंसान इतना तुच्छ जंतु है कि ये प्रकृति में ज्यादा देर टिक नहीं पाता। उसका सारा मस्तिष्क प्रकृति को कैसे बर्बाद और नष्ट करके आलस्य बढाने वाले कार्य करें, इस पर केन्द्रित रहता है। इसमें इतनी भी क्षमता नहीं कि मौसम और एक दूसरे की हवस भरी नज़रों की मार से बच सके। उसने इसके लिये अपने ऊपर जानवरो की खाल ही कपड़े बना कर ओढ़ ली।

इससे गिरी हुई हालत और क्या होगी कि इंसान को अपनी त्वचा तक बेकार लगती है। उसको ढकने के लिये उसने बलात्कार संस्कृति और फैशन बाजार की व्यवस्था की। अब वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता, क्योंकि उसे चप्पल या जूते चाहिए।

उसे हाथ खुले रखने में भी समस्या है। दस्ताने पहनता है। वह अपने चेहरे व शरीर से भी संतुष्ट नहीं है। उसे उस पर भी लाखों रुपये लगाकर मेकअप और सर्जरी करवानी हैं या छेद करवा कर उसमें कील कांटा पहनना है। कुछ नहीं तो स्थाई टैटू बनवा कर ही दूसरे से अलग दिखना है। चाहें भद्दे ही क्यो न दिखें!

वह इतनी जल्दी बीमार पड़ता है कि मर ही जाता, अगर उसने चिकित्सा जगत की खोज न की होती। इंसान की ज़िंदगी छुई मुई सी है, जो इसने अपने मस्तिष्क की मदद से बचा रखी है। इसका मस्तिष्क केवल अपनी कायर और विकलांग ज़िन्दगी को बचाने के लिये काम आया।

इस कायर और विकलांग ज़िन्दगी को जीकर इसे खुद पर गुमान हो आया कि अरे वाह, देखो मैं भी जानवरों के जैसे अनुकूल जीवन जी सकता हूँ। प्रकृति ने तो मुझे अनुकूल बनाया ही नहीं।

लेकिन उसने जानवरो से भी ईर्ष्या रखी क्योंकि जानवरों पर पहले से सबकुछ था, जिससे वे मस्त होकर जीवन जीते थे। इससे चिढ़ कर उसने उनको ही खत्म कर देने की ठानी। इसलिए उसने Zoo बनाये, उनका व्यापार किया, उनका इस्तेमाल किया, उनका दोहन किया, उनका दूध चूसा, उनका कत्ल किया, उन पर प्रयोग करके उनको काटा, नोचा, खाया। उसने मेडिकल साइंस में बिना किसी प्रमाण के खुद को सर्वाहारी दर्शाया। जबकि सर्वाहारियो का एक भी लक्षण वह नहीं रखता था।

इतना कमज़ोर है इंसान और खुद को ही श्रेष्ठ कहता है? फिर जब कोई इसको खुद को श्रेष्ठ कहता दिखता है, तो ये उसे भी टोकने पहुँच जाता है और कहता है, "वाह! जी वाह! अपने मुहं और मिया मिट्ठू? घमंडी कहीं का।" क्योंकि, कोई और उस जैसा सोचे, तो उस घमण्डी को बर्दाश्त कहाँ होगा? एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

शुक्रवार, मई 22, 2020

Breasts are important, don't neglect them




स्तनों की बनावट में 2 महत्वपूर्ण घटक होते हैं। वसा (fat) और प्रोटीन। प्रोटीन की वास्तविक बढ़त व सीमा, ऑक्सीटोसिन हार्मोन (प्रेम हार्मोन) की मात्रा, माता-पिता के जीन्स और पोषण की सही मात्रा निर्धारित करती है। अतः स्तन एक बार जिस सीमा तक विकसित हो जाते हैं उससे ज्यादा बड़े, सख्त और तनाव युक्त नहीं हो सकते।

इसी लिये स्तनों को उभारने, पुष्ट और तनाव युक्त करने के लिये इम्प्लांट सर्जरी ही विकल्प रह जाता है।

आपने जितने भी, सर्जरी के अलावा उपायों से फायदा देखा है उसके पीछे कुछ सामान्य कारण होते हैं। जैसे

1. फैट की मात्रा अधिक होने से स्तन अस्थाई रूप से बड़े दिख सकते हैं लेकिन लटके रहेंगे।
2. प्रोटीन की कमी से भी बड़े और कठोर स्तन ढल जाते हैं।
3. प्रोटीन और फैट, दोनो ही सही मात्रा में न हों तो पोषण, मसाज और व्यायाम स्तनों को कामुक और ठोस बना सकते हैं।
4. प्रोटीन स्तन का आभासी कंकाल बनाता है जो दबाने पर कठोर जालिका के रूप में महसूस किया जा सकता है। वसा लिपिड्स के रूप में इन प्रोटीन रेशों को चिकनाहट और सहारा प्रदान करता है। दोनो के संयोग से स्तनों का सही विकास होता है।
5. स्तन दबाने और मालिश करने से और मजबूत व सख्त होते हैं। ऐसा उनमें मौजूद प्रोटीन की मांसपेशियों के टूटने और दोबारा और मोटे जोड़ बना कर जुड़ने से होता है। ऐसा हर बॉडीबिल्डिंग करने वाले के शरीर के साथ वजन उठाने पर भी होता है। स्तनों को इतना ही दबाएं जितना बर्दाश्त कर सकें। परंतु हल्का दर्द भी हो, तो ही स्तन मजबूत और सख्त होंगे। दर्द मासंपेशियों के टूटने से होता है। निप्पलों पर हल्का पानी दिखना पर्याप्त मर्दन के लिये काफी है, परन्तु इतना भी न दबाया जाय कि रक्त निकल आये।
6. स्तन दबाने से ढीले नहीं होते। ढीले होने की अफवाह संकीर्ण विचारों वालों ने फैलाई है। दरअसल स्तन दबने के बाद लड़कियों को आनंद आता है (प्रायः संभोग के दौरान) और वे ज्यादा रिलेक्स हो जाती हैं। इस कारण से उनके स्तन भी रिलेक्स हो जाते हैं जो केवल कुछ समय के लिये ही ढीले होते हैं।
7. स्तन कोई लड्डू नहीं हैं जो दबाने पर फूट जाएंगे। इनका निर्माण ही स्पंजी कोशिकाओं से हुआ है जो दबाने के लिए ही बने हैं। ये मैथुन गद्दी कहलाते हैं जो मेढ़क में दूसरे तरीके की पाई जाती है। स्तन मसलने से वे मैथुन के समय योनि में तरलता लाते हैं और ओर्गास्म जल्दी होता है। जो महिला मैथुन के समय अपने स्तनों को मर्दन करवाती हैं उनको ओर्गास्म खूब बढ़िया और जल्दी होता है।
8. सभी तरह की ब्रा स्तनों को ढीला, बेडौल और दर्दभरा बनाती हैं। अगर बहुत ज़रूरी हो जैसे दौड़ते समय उछलने से रोकना, तो ही मुलायम स्पोर्टस ब्रा पहनिए। निप्पल दिख रहा है, ऐसा सोच कर कभी ब्रा न पहनिए। निप्पल है तो दिखेगा ही। बिना निप्पल के भला कौन आपको पसन्द करेगा?
~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Feelings can make or destroy you!



मैं हर सबक अति करके ही सीखा हूँ। मैं बहुत ज्यादा भावुक हूँ ये सब जानते हैं। इसीलिए vegan भी बना, प्रेमी भी और अच्छा इंसान भी लेकिन इसी कारण मुझमें गुस्सा, लालच और नफरत भी भर गई। समय रहते इन पर नियंत्रण करने के लिये लोगों से दूर हो गया। खुद पर कार्य किया।

खुद में बदलाव लाये। फेसबुक को अखाड़ा बनाया और जो काम बाहर होता वह इधर करके जांच करी कि खुद पर कितना नियंत्रण हैं। 2017 से lockdown तक कोई भी स्पष्ट भद्दा शब्द नहीं बोला था। फिर पाया कि जो जितने भद्दे शब्द प्रयोग करता है उसके उतने ही ज्यादा चाहने वाले होते हैं तो खुद पर ढील दी ताकि फ्रस्ट्रेशन निकले।

मैं फेसबुक से समझ गया कि मेरा लोगों से मिलना जुलना खतरनाक है। इधर लोग मेरे ज़रा से सत्य बोलने पर भड़क कर जान से मारने की धमकी दे देते हैं, बदतमीजी करते हैं तो सोचो सामने होते तो मार ही डालते। इसलिये अनजान लोगों से दूरी ही भली।

जो भी मेरे जैसे या मेरे विचारों को पसन्द करने वाले मिलते हैं उनको ही असल जीवन मे भी मित्र बना सकता हूँ। मेरे जितना ज़हरबुझा प्राणी आम लोगों के जैसा घटिया नहीं है। इसलिये बढ़िया लोगों में ही मेरी पटती है। और बढ़िया लोग होते ही कितने हैं? ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

मंगलवार, मई 19, 2020

The so called luck now you can create in reality



किस्मत क्या है? किसी के साथ लगातार अच्छा होना या लगातार बुरा होना। अच्छा होना good luck और बुरा होना bad luck.

किस्मत को बदला नहीं जा सकता, ये माना जाता है। इसीलिये इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। किस्मत/भाग्य/luck शब्द दरअसल विधि के विधान की ओर इशारा करता है। लोगों की मान्यता है कि भाग्य पहले से लिखी कोई योजना है जो आपकी मर्जी के बिना ही आपको ऊंचा या नीचा गिरा सकती है। नीचे गिरने को बुरा भाग्य और ऊपर उठने को अच्छा भाग्य कहा जाता है। इसे केवल देखा और महसूस किया जाता है परंतु नियंत्रित नहीं किया जा सकता, ऐसी मान्यता धार्मिक दे गए हैं।

परन्तु इतिहास गवाह है कि बहुत अधिक सफल लोगों के पास कोई न कोई लकी वस्तु होती है। कुछ मामलों में तो किसी का दोस्त, कोई पोशाक, कोई जानवर भी लकी पाया गया है। हैरी पॉटर की कहानी में भी लकी पोशन यानि भाग्यशाली काढ़ा सारी कहानी पलट देता है। इसे सबसे ताकतवर काढ़ा माना जाता है। कभी लकी सिक्का, कभी लकी जर्सी, कभी लकी ब्रेसलेट, कभी ताबीज आदि तमाम वस्तुओं को लोगों ने अपने लिए लकी बताया है।

ये सब बातें किसी न किसी वास्तविक सच्चाई की ओर इशारा कर रही हैं। कैसे कोई इतना मेहनती व्यक्ति अपनी जीत को एक वस्तु को समर्पित कर देता है? जब कभी भी ये लकी वस्तु उनके पास नहीं होती है तो वे वाकई हार जाते हैं।

कई मेधावी छात्र इसी प्रकार के टोटके को मानते देखे गये हैं। वे इनको कई बार आजमाते हैं, हर बार उनका अनुमान सही निकलता है। वे उसे धोते नहीं। उसे वैसा ही रखते हैं जैसा उनकी पहली जीत के समय वह था।

इस प्रकार यह तो तय है कि बहुत से अमीर मानते हैं कि उनकी मेहनत तो थी ही परंतु उनके साथ उनका भाग्य भी था। तभी वे बाकी अपने प्रतिद्वंद्वीयों से आगे निकल सके। इन बातों ने इतना प्रभाव डाला कि इन लकी वस्तुओं की चोरियां तक हुईं। उनको वापस पाने के लिये मुंहमाँगे इनाम रखे गए।

कहने का तातपर्य है कि बहुत लोग भाग्यवादी होते हैं और उपर्युक्त उदाहरणों से धार्मिक मान्यताओं जिनमें 'भाग्य बदला नहीं जा सकता', जैसा बताया गया है की धज्जियाँ उड़ जाती हैं।

मतलब ये तो पक्का हो गया है कि ये कथित भाग्य अटल तो कतई नहीं है। इसे बदला जा सकता है। उपर्युक्त उदाहरण कहते हैं कि भाग्य वस्तुओं से भी बदल सकता है। जबकि वैज्ञानिक जांच से हर लकी वस्तु दूसरी किसी वस्तु की तरह ही साधारण पाई गई। फिर इनमें ऐसा क्या था कि इनके धारक इनमें कोई शक्ति महसूस करते हैं?

इन सब सवालों के वैज्ञानिक सिद्ध जवाब मेरे पास हैं। कथित भाग्य होता तो कुछ नहीं है, परंतु आप इसे बना सकते हैं। कुछ भी पहले से लिखा नहीं है। सब आप अपने मन से लिख सकते हैं। आप अपना भविष्य अभी तय कर सकते हैं। ये पहले से निर्धारित भविष्य ही आपका असली भाग्य है। मैं इसी नये बने भाग्य को ही सरलता से समझाने के लिए पुराना भाग्य नाम दे रहा हूँ क्योंकि ये नया वाला उसी काल्पनिक जैसा कार्य करता है। दरअसल विज्ञान ने उपर्युक्त घटनाओं में छिपा रहस्य खोज लिया है।

हाँ आप अपना भाग्य बना सकते हैं। ये एकदम जादू की तरह महसूस होगा क्योकि आपको उसकी विधि पता नहीं होगी। बस उसका परिणाम पता होगा। बिल्कुल जैसे कहा जाता है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। फल मीठा ही मिलेगा।

निराशा हमारी खुद की बनाई बदकिस्मती है। जब हम निराश होते हैं तो हम बर्बादी की ओर बढ़ जाते हैं। अब हम जो भी करेंगे, परिणाम बुरा ही होगा। इसलिए नकारत्मकता से दूर रहने को कहा जाता है। इसीलिए अच्छा सोचने और बोलने को कहा जाता है।

आपने मनहूसियत और काली जुबान वाले लोगों के बारे में भी सुना होगा। इसके पीछे भी यही रहस्य कार्य करता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मेंटलिस्ट डैरिन ब्राऊन ने इस पर कई प्रयोग किये और कई लोगों की बदकिस्मती को खुशकिस्मती से बदल दिया। इसका प्रसारण टेलीविजन पर हो चुका है। यूट्यूब पर आपको इसके बहुत से वीडियो मिल जाएंगे।

यानि कुल मिला कर किस्मत होती है और इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यह एक मानसिक उपकरण की तरह है। जो वाकई कार्य करती है। अच्छा या बुरा? ये आप तय करेंगे।

हैरिपोटर की कहानी में हैरी भाग्यशाली काढ़े को रौन वीसली के पेय में डालने का ढोंग करता है और रौन वाकई बेहतर प्रदर्शन कर देता है। यानि बात काढ़े की, लकी वस्तु की नहीं है। ये है आपके मन की। ये मन मैं काबू करना सिखाता हूँ। मैं हूँ the luck builder! ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Poverty is a highest selling emotional product for communists and politicians



मजदूरों और किसानों की हालत खुद उन्होंने ही ज्यादा देखी है। भड़कने पर गृहयुद्ध भी उनको ही करना है। फ़िर सोशलमीडिया पर गरीबी पोस्ट करके किसे भड़काया जा रहा है? किसी को नहीं। ये बस like पाने की हवस, उनके नाम पर दान मांग कर ऐश करना और फेमस होने की हवस मात्र है।

मोबाइल-इंटरनेट वाला बस रिएक्शन कमेंट देकर, समोसे खाने चला जाता है। उसने पोस्ट फॉरवर्ड करके गरीबों का भला कर तो दिया है। उधर मजदूर और किसान अशिक्षा के मारे भटक रहे हैं गली-गली। उनके पुरखों ने यही किया था, वो भी कर रहे हैं। पहले उनको पढ़ने नहीं दिया जातिवाद ने और अब उनको कम्युनिस्ट पढ़ने नहीं दे रहे। उनकी रोटी तो गरीबों के खून को बहाकर उसकी फोटो वायरल करने से ही तो चलती है। सलाम तो सभी करते हैं लेकिन उसका रंग लाल तो खून से ही होगा।

कम्युनिस्टों की हाँ में हाँ तो मिलाते रहना है, अन्यथा आप निर्दयी, कठोर और गरीबों से नफरत करने वाले जो बन जाओगे। 🤣 गरीबों का क्या है? कट रही है ज़िन्दगी। 3-4 बच्चे उन्होंने बालमजदूरी के लिये पैदा कर लिए हैं। (भाड़ में गया कानून 😊) सरकार बच्चा पैदा करने पर इनाम जो देती है। 🤣

उनको राजनीति, सरकार से कुछ चाहिये होता तो मेहनत नहीं करते। आमरण अनशन पर बैठ जाते, अन्ना हजारे की तरह, गांधी की तरह! जिसे हम मोटे पेट वाले लोग देख कर आंसू बहाते हैं न, उनको इसकी अब आदत पड़ चुकी है। उनको अपनी हालत से कोई समस्या नहीं है और न ही आप उनका कोई भला कर सकते हैं, क्योंकि मदद उसी की कर सकते हैं जो मदद मांग रहा हो। ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

You can be lucky, it's a psychological effect




सन 2000 से मेरे बुरे दिन शुरू हुए। आने वाले वर्षों में मुझे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई शैक्षिक परीक्षाओं में अनुत्तीर्ण हो गया। सन 2005 में मुझे मेरी wapsite (माइक्रोब्लॉग) tagtag.com/shubhanshu पर मेरे आतंकवाद के खिलाफ आह्वान को पढ़ लेने पर ओसामा बिन लादेन की धमकी मिली। दिल्ली में बम विस्फोटों की चेतावनी और मुझे जान से मारने की धमकी भी।

मैंने अमरउजाला अखबार से सम्पर्क किया। पत्रकार पवन चन्द्र जी ने आकर मेरा बयान लिया और मेरे मोबाइल से एक इंटरनेट कैफ़े जाकर उस सन्देश का प्रिंट भी लिया। अगले दिन हेडलाइन में मेरी खबर छपी।

मेरा नाम मेरे कहने पर बदल कर सुभाष रखा गया। अगले 3 दिन तक इस खबर पर कार्यवाही होती रही। मुझे छुप कर, दाढ़ी बढा कर रहने को कहा गया। मुझे कुछ दिन तक पवन जी के फोन आते रहे। उन्होंने कहा कि पुलिस तुमको ढूढ़ रही है। मैंने तुम्हारी पहचान छुपा रखी है। लेकिन फिर भी सावधान रहो। वेबसाइट डिलीट कर दो और अपने फोटो भी इंटरनेट से हटा लो। पुलिस में लादेन के लोग हो सकते हैं।

इस खबर के खुलने पर ओसामा का गैंग सावधान हो गया और 3 माह तक कुछ नहीं हुआ। फिर अचानक दिल्ली में 11 में से 10 बम धमाके हुए। एक फुस्सी निकल गया। न्यूज़ में आया कि 3 माह पहले ही बरेली एक लड़के ने बम धमाकों की सूचना पुलिस को दी थी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।

मेरी हालत पतली थी। मेरे चक्कर में मेरे परिवार को खतरा हो सकता था। मैं मरने की सोचने लगा था और तब तरस खाकर मुझे किसी ने एक राज़ बताया। वो राज़ जानकर मैं चौंक पड़ा। मेरा सारा डर और निराशा दूर हो गई।

उस दिन से मैंने यह मनोविज्ञान आजमाना शुरू कर दिया। अगले ही वर्ष 2006 में मैंने इस मनोविज्ञान का प्रयोग किया। मुझे आयशा टाकिया नामक हीरोइन पसन्द थी। मैंने उससे सम्पर्क करने की इच्छा की। इस मनोवैज्ञानिक विधि में मेरी हर जायज इच्छा पूरी करने का दावा था। इच्छा की पूर्ति के लिये कुछ जायज प्रयास भी करने थे। तभी luck अपना काम करेगा।

ये वैसा ही है जैसे बिना लॉटरी टिकट लिये लॉटरी जीत जाने की इच्छा करना। मतलब पहले लॉटरी खरीदनी पड़ेगी तभी वह लगेगी।

मैंने कुछ प्रयास किये और एक दिन चमत्कार हुआ। मुझे आयशा ने ईमेल किया। मैंने सोचा ऐसा सम्भव नहीं। कोई फ्रॉड है। मैंने ईमेल ट्रेस किया। मुम्बई का निकला। थोड़ा विश्वास बढा। फिर मैंने क्रॉस सवाल किए और छोटी से छोटी बात पर भी सन्देह किया। आयशा ने सभी सन्देह दूर कर दिए।

फिर हमने करीब 2 साल तक ईमेल पर बात की। इसी दौरान मुझे उस इंसान का ध्यान आया जिसने मुझे यह राज़ बताया था। मैंने उससे पूछा, कि ये राज़ मुझे क्यों बताया?

उसने कहा, "तुम्हारा दुर्भाग्य बड़ा था, तभी साधारण सा बालक होकर भी ओसामा बिन लादेन को प्रभावित करके दुश्मन बना लिया। तुम्हारी लिखाई गजब की है। ऐसे इंसान को मैं खो नहीं सकता। तुम ही सही पात्र हो इस राज़ के। ये राज़ बहुतों पर है लेकिन वे पात्र नहीं हैं।

खुद देखो, तुमने कुछ ऐसा लिखा कि पहले ओसामा बिन लादेन, डर गया और दूसरी बार तुमने कुछ ऐसा लिखा कि फ़िल्म अभिनेत्री ने तुमको सम्पर्क किया। तुम बस अपने luck का इस्तेमाल ठीक नहीं कर रहे थे। मैंने बस दिशा दी है। तुम जो चाहो हासिल कर सकते हो। बस इसका गलत इस्तेमाल मत करना कभी।"

उसकी बातों ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया। मैंने फिर से इसे आजमाने की सोची। और ओसामा बिन लादेन मारा गया।

अचानक मैं डर भी गया। मेरे सपने छोटे हो गए। मैं घबराने लगा अमीर हो जाने से, फेमस हो जाने से। मैं इसके लिये तैयार नहीं था। मांगते ही मिल जाने का डर सताने लगा। क्या हो कि जो मांगू उसे सम्भाल न पाऊं? तब तो खतरा हो सकता है।

तब से मैं वैरागी सा हो गया। जब किस्मत आपके कब्जे में हो तो एक डर भी सताने लगता है कि जब लोग पूछेंगे कि 2 कौड़ी का इंसान अचानक राजा कैसे बन गया? तब क्या जवाब दूँगा? इसलिये मेहनत से ही आगे जाने में इज़्ज़त है। अतः मैंने इस विधि का सीमित प्रयोग तय किया।

अब बस मैंने संतोष का रास्ता चुना और उतना ही मांगा जितना पर्याप्त हो। बाकी लोगों के संसाधनों पर मैं अकेले कब्जा करना नहीं चाहता था। मेरी महत्वाकांक्षा मर गई थी। इसलिए मैंने केवल इन्वेस्टमेंट के लिए धन एकत्र करने पर फोकस किया। आज मैं लाखों रुपयों का मालिक हूँ। लेकिन रहता फकीरों की तरह नँगा हूँ। इसी में आराम है। कपड़ों में घुटन है। आज इस लायक हूँ कि मकान भी है और बिना कोई हाथ-पैर चलाये साल के 374000₹ कमा लेता हूँ।

मेरे ऊपर न तो मंहगाई असर करती है और न ही lock डाउन। अपने सभी शौक पूरे करता हूँ। माता पिता भी मुझे लकी मानते हैं। पिता को मैंने अपने मनोविज्ञान से जिंदा रखा हुआ है। डॉक्टर कहते हैं कि ये ज़िंदा कैसे हैं? इनको तो 20 साल पहले ही मर जाना चाहिए था। बहुत ही लकी आदमी हैं। और दूसरी तरफ पापा मुझे अपनी ज़िंदगी का जीवन दूत मानते हैं।

मैंने 2008 में एक महिला दोस्त बनाई। उसने खुद ही आकर मुझे प्रपोज किया। दरअसल मेरी इच्छा थी कि वह ऐसा करे और उसने कर दिया। मुझे लोगों ने कहा था कि तुम इतने ज्यादा अच्छे हो कि अच्छे से अच्छे लड़के तुम्हारे आगे दोषी हैं। तुमको कोई अपने जैसी महान नहीं मिलेगी। मैंने कहा अच्छा, चलो अपना luck आजमाते हैं। मुझे प्यार करने वाली दोस्त मिली। उसने अपने घरवालों से विरोध करके मेरा साथ दिया। मैंने कभी कोई पंगा नहीं लिया। उसको जैसा समझाता, वह वैसा ही करती और उसके घरवाले भी उसे टोकना बन्द कर गए।

आज हम दोनों वैसे ही आज़ाद हैं जैसे कोई बिना माँ बाप का इंसान आज़ाद होता है। सब कहते हैं कि तू लकी है। उधर मेरी दोस्त को सब कहते हैं कि वो लकी है कि उसे मैं मिला। तन और मन दोनो से खुश रखने वाला।

मैंने आगे के तमाम कामों में ऐसी सफलता पाई कि लोग मेरी इज़्ज़त करने लगे। बड़े बड़े घमण्डी पैर पड़ गए। माफी मांगी। सबने एक ही डायलॉग मारा, "Shubhanshu हम तुमको जैसा समझते थे, तुम वैसे नहीं हो।"

और मेरे होठों पर बस एक मुस्कान बिखर जाती है। ~ Shubhanshu 2020©

शनिवार, मई 16, 2020

Farmership and Labourship are not reserved for Illiterates

मजदूरों और किसानों के कार्य महत्वपूर्ण होते हुए भी उनको सम्मान से नहीं देखा जाता। उसका कारण उनका कम या बिल्कुल शिक्षित न होना है। अनपढ़ व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता है, जब तक उसे नेता या धनवान बनते न देखा जाए। 

किसानों और मजदूरों की दुर्दशा अशिक्षा के कारण ही है क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति को शिक्षित व्यक्ति तब तक अपमान से देखता है, जब तक वह शिक्षित या धनवान न हो जाये। निर्धनता तो पढ़े लिखों का भी सम्मान छीन लेती है। सब उनको नकलची या फेक डिग्री वाला समझने लगते हैं।

शिक्षा ही आपकी आज़ादी की और सम्मान की चाभी है। इसे पाकर ही आप समाज में उच्च स्थान पा सकते हैं। शिक्षा पाकर आप किसानी कीजिये या मजदूरी भी कर सकते हैं तो वही कीजिये। कोई भी काम छोटा नहीं होता, अगर उसे कुशल और शिक्षित व्यक्ति करे।

नौकरी वही करे जिसे नौकर बनना हो। किसान और मजदूर तो अपने मालिक खुद बन सकते हैं। गर्व से लोगों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर श्रम कीजिये और गर्व से सबके लिये अपने खेतों में फसलों का सोना उगाइये।

जय शिक्षित मजदूर, जय शिक्षित किसान! तभी होगा मेरा भारत महान! ~ Dharmamukt Shubhanshu 2020©

The Luck Builder

इंसान जो भी भुगत रहा अच्छा या बुरा, यह उसका खुद का चुनाव है। कर्म करो फल की इच्छा न करो का अर्थ है कि घबराओ मत। डरो मत। अच्छा कार्य करो। परिणाम अच्छा ही आएगा! पिछला जन्म होता नहीं तो पिछले जन्म के कर्म किधर से आ गए?

मान भी लो कि पिछला जन्म होता है, तो भी जब आपको अपने पिछले जन्म का घण्टा कुछ याद नहीं है तो सज़ा पाकर क्या पश्चाताप करोगे? घण्टा!

अतः ये बकवास बात है, केवल तसल्ली देने के लिये, ताकि कोई गुस्से में गलत कदम न उठा ले।

किस्मत कुछ नहीं है। बस अवसरों की एक कड़ी है जो आपकी सोच से चलती है। जी हाँ आपकी सोच से।

बहुत लोग कहते हैं कि शुभ तुम जो कहते हो, वही कर दिखाते हो। कैसे? असम्भव कार्य भी कैसे कर देते हो? इतना कॉन्फिडेंट कैसे रह लेते हो। जो हमको ओवर कॉन्फिडेंस लगने लगता है। क्या तुम कोई जादू जानते हो? इतना लकी कैसे?

हकीकत यह है कि हम लोग अपने मस्तिष्क को कभी ठीक से समझ नहीं पाते। हमारा दिमाग ही हमारा जादूगर है। हाँ मैं वैज्ञानिक हूँ, और मैं किस्मत को अपनी जेब में रखता हूँ। वैज्ञानिक तरीके से।

आपकी बदकिस्मती आपकी बनाई हुई है और आपकी खुशकिस्मती भी। और इसको आप बदल सकते हैं।

मेरी ये बात अपराधी भी सुन रहे होंगे और वो भी जो अपराध करना चाहते हैं। वो भी जो गलत करके बच जाना चाहते हैं। इसलिए ये राज़ सबको नहीं बताना चाहिए। एक संकेत ही दे रहा हूँ कि सब आपकी ही करनी है जो आज आप भर रहे हो और आगे भी भरोगे। अच्छा या बुरा सब आपका अपना चुनाव है। ~ Shubhanshu The Luck Builder 2020©

मंगलवार, मई 12, 2020

I am not Covid19 ~ PM




PM: lockdown में सबकी गांड फट गई होगी। बोलो, फण्ड में से कितना राशन भेज दूँ?
जनता: दारू-दारू-दारू!
PM: गलत बात! 70% टैक्स लगा दूँगा। मत पीना।
जनता: दारू-दारू-दारू, देता है या गांड फाड़ दूँ?
PM: तुमने रामायण मांगी, दे दी, महाभारत मांगी, दे दी, श्री कृष्णा मांगा, दे दिया। अब ले लो दारू भी ले लो। हमें लगा अनाज चाहिए, इसलिये फंड में दान मांगा।

चलो तुम टैक्स देने पर आमादा हो, तो टैक्स ही दे दो! मैं तो उसी दिन समझ गया था कि तुम सब मूर्ख हो, जिस दिन मैंने ताली-थाली-दीवाली की बात कही और तुम फट से मान गए। जितना कहा, उससे ज्यादा किया।

भारत माता की कसम, जब से PM बना हूँ, तब से देख रहा हूँ। मैं तो चाय बेचता था। कम पढा-लिखा था। इसलिये मूर्खतापन्ति करता हूँ। लेकिन तुम तो एक से बढ़कर एक धुरंधर हो। फिर काहे मूर्खतापन्ति करते हो?

इस साल की शुरुआत से ही, पूरी दुनिया में बर्बादी के दिन शुरू हो गए। जो इस देश में हजार साल में नहीं हुआ वो इस साल हो गया। बहुत बुरा समय है। अर्थव्यवस्था का नाश हो गया। पहली बार इतने समय तक देश घरों में बन्द रहा। अघोषित इमरजेंसी लगानी पड़ गई।

कामगार मजदूरों पर असर पड़ा। उद्द्योग धंधे चौपट हो गए। सरकार पर बिना काम के वेतन देने का अतिरिक्त दबाव पड़ा। देश 10 साल पीछे चला गया। पूरी दुनिया 10 साल पीछे चली गई। फिर भी मैं इस छोटे से दिमाग से जो भी बन पड़ रहा है, अपने एक्सपर्ट सलाहकारों से जाँच करवा कर कर रहा हूँ।

उधर कांग्रेस गांड मार रही है, तो दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी हथोड़ा और हंसिया दिखा रही है। लगी पड़ी है। अरे इस कठोर समय में तो राजनिति न करो। ऐसा तुम्हारी सरकार के साथ भी हो सकता था। अफवाहें उड़ा कर मरे को क्यों मांर रहे हो।

अनपढ़ नागरिक परेशान है, उसे पता भी नहीं कि हो क्या रहा है? उसे समझाने की जगह, भड़काया जा रहा है। उकसाया जा रहा है। ये तक कह दिया कि कोरोना मैंने फैला दिया है। अरे निर्लज्जों, चीन में कोरोना मैंने फैला दिया? अमेरिका में मैंने फैला दिया? अरे मैं तो अभी भला चंगा हूँ, मुझे ही कोरोना है, बता दिया कमीनो। अभी ज़िंदा हूँ मैं।

राज्यों में फिर से मजदूर काम पर लौट सकें इसलिये मजदूर एक्ट में अस्थायी संशोधन की ज़रूरत पड़ी। हमने कहा कि मजदूर काम पर लौट आये। उनकी और उनके ऊपर निर्भर व्यापारों की हालत सुधरे। राज्य सरकारों ने उसे सुना। उनको अपनाया। अब मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर भी काम कर सेकेंगे।

ज्यादा काम करना चाहें तो ओवर टाइम ले सकते हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं है। अपनी सहूलियत से कार्य करें। कोई आपको तंग करे तो शिकायत कीजिये। सुरक्षा के सारे नियम पूर्ववत हैं। किसी का हक नहीं मारा जाएगा। हंगामे से दूर रहें। आपके भले के लिये ही होगा। सब काम आपके लिए ही कर रहा हूँ। आपका ही सेवक हूँ।

बस धैर्य रखिये। भड़काऊ नेताओं से दूर रहिये। वो आपके खून पर अपना गुजारा करते हैं। आपके घर जला कर रोटी सेकेंगे। मैंने भी सेंकी थीं। गुजरात दंगे याद हैं? करवाने पड़े। क्या करता, सीट बचानी थी। हो गयी गलती। बहक गए कदम। बहका दिया राजनीती ने मुझे। लेकिन अब नहीं। अब बस। बहुत खून बह गया। बहुत लाशें बिछ गईं। मैं बूढ़ा हो गया। अब राजनीति नहीं होती। दलदल है ये। फंस जाते हैं अच्छे-अच्छे। कितना भी अच्छा कर लो। फेकू ही कहलाता हूँ। नहीं होता अब। पहले भी कहा था कि कह दो एक बार, कह दो एक बार कि नहीं चाहिए मोदी। मेरा क्या है? झोला लेकर चला जाऊँगा। इस पर भी राजनीति हो गई।

कहा गया कि झोले में क्या ले जाओगे? अरे झोले में मैं लोढ़ा ले जाऊँगा भोसड़ी वालों। अरे झोले में एक फकीर क्या ले जाता है? वही एक जोड़ी कपड़े, तेल, साबुन, आटा, दाल, नमक, और हो सका तो 2-3 आलू प्याज टमाटर भी। अब इसको भी नहीं ले जाने दोगे तो डाल लो अपनी गांड में। मैं फिर कहीं से पैदा कर लूंगा। अभी दम है हाथों में। कहीं मजदूरी कर लूंगा। चाय बेच लूंगा। लेकिन जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जनता का पैसा लेकर ऐश नहीं करूंगा। जय हिंद देशवासियों! 👍 ~ Shubhanshu Dharmamukt 2020©

Disclaimer: व्यंग्य। केवल मनोरंजन हेतु। इसका किसी असली जीवित व्यक्ति से सम्बंध नहीं है।