Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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बुधवार, मई 30, 2018

Shubhanshu: एक अकेला

मित्र: आप बताइये शुभाँशु जी, आपको ज्यादा पता है।

शुभ: हाँ, मुझे सच में ज्यादा पता है। क्यों न हो? जिस इंसान ने सारी जिंदगी अपनी मदद से अकेले गुजारी हो उसे ज्यादा पता होना ही होता है। मेरे पास कोई नहीं था जिससे मैं कुछ पूछ सकता।

इसलिये जो किया खुद ही किया। खुद ही जाना, खुद ही दुनिया के सभी रंग देखे। हाँ मैं घायल हुआ, बहुत ज्यादा हुआ लेकिन मरहम भी मुझे ही लगाना था और पट्टी भी मुझे ही बांधनी थी।

इसलिये मैं डॉक्टर भी बना, वकील भी, अपनी रक्षा भी खुद करनी थी तो मैं पुलिस भी बना, अपना गुरु भी मैं ही हूँ और अपना शिष्य भी मैं ही हूँ। आज आप मुझसे पूछ सकते हैं लेकिन याद रखिये मुझे किसी ने नहीं बताया था। ~ शुभाँशु जी 2018©

मंगलवार, मई 29, 2018

सुखद और दुःखद पल: Shubhanshu

शुभाँशु जी की ज़िंदगी के भारत में 2 बहुत ही सुखद और दुःखद पल:

1. असली आयशा टाकिया अभिनेत्री से ईमेल पर 2 साल व्यक्तिगत सम्पर्क। 2006-2007 (सुखद)

2. शुभाँशु की मोबाइल wapsite http://tagtag.com/shubhanshu पर आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी आर्टिकल पढ़ कर, असली ओसामा बिन लादेन से 15 अगस्त 2005 को दिल्ली बम धमाकों की और शुभाँशु की हत्या की धमकी मिलना और अमरउजाला अखबार की हेडलाइन बनना। (2005)

चूँकि सूचना दी जाने से पुलिस सक्रिय हो गयी थी तो वह योजना ओसामा ने 3 माह आगे टाल दी। लेकिन 3 माह बाद लापरवाही कर दी गयी। परिणाम स्वरूप 11 बम धमाकों में 3 माह बाद काफी लोग मारे गए। ~ शुभाँशु जी 2018©

मेरी सभी post को पढ़ने का उचित तरीका व नियम।

1. एक ग्लास ठंडा पानी जग के साथ पास में रखें। घबराहट में काम आएगा।
2. घबराहट दूर करने वाली चूसने वाली गोली खरीद लें।
3. गुस्सा, इससे बचने के लिये 10 तक गिनती गिने मुट्ठी बन्द करके। लम्बी सांस लें। फिर छोड़ें।
4. आदत डालने के लिये timeline पर खुद रोज नियम बना कर post चेक करें।
5. अकेले बैठ कर पढ़ें और पढ़ने के तुरन्त बाद किसी के पास न जाएं। हिंसक होने की आशंका रहती है।
6. तबियत ज्यादा खराब हो जाये या पतले दस्त लग जाएं तो कृपया अस्पताल का नम्बर साथ रखें।
7. कोई अच्छा सा टट्टी खोलने वाला लैक्सटिव भी रखें। हर बार दस्त नहीं लगते कई बार टट्टी भी बन्द हो जाती है कई लोगों की।

आशा करता हूँ कि आप यह उपाय अपनाएंगे तो अधिक समय तक टिके रहँगे (धरती पर) अन्यथा ब्लॉक का बटन दबा कर मुक्ति लें। ~ शुभाँशु जी 2018©

Nudism: हमाम में सब नँगे

चलो सभी फालतू कपड़ों को आग लगा दें। खुद को गंदगी समझना बन्द कर दें। जिसे छिपाना पड़े। आप यह पतले, मोटे, गोरे, काले, बड़े, छोटे, स्वर्ण, अछूत का भेद खत्म कर दें।

समानता बिना कपड़े उतारे कभी नहीं मिलने वाली। आप जो भी खरीद लीजिये। दूसरा उस से महंगा खरीद कर चिढायेगा।

इसे खत्म करना होगा। यह बहुत कुछ बदलने वाला है। किसी को पता भी नहीं कि फैशन इंडस्ट्री विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली इंडस्ट्री है। क्या यह ज़रूरी थी?

नहीं। हमें बस एक कम्बल, एक चादर की ज़रूरत है, मौसम की मार से बचने के लिए। एक कमर से बंधा बैग या पिट्ठु बैग चाहिए अपना ज़रूरी सामान लेकर चलने के लिये। जो आज भी हम लेकर चलते हैं।

सुरक्षा के लिये विशेष जैकेट प्रयोग करना होगा। प्रदूषण से बचने के लिए मास्क। जब यह आम होने लगेगा। तब इसके लिए सुविधाएं और इसका भी बाजार आ जायेगा। करना क्या है? विश्वास, सुरक्षा, सहयोगी माहौल चाहिए। सुरक्षा के लिये पिस्टल लीजिये। होलेस्टल में डाल कर पहनिए उसे।

अभी यह अपने कमरे में आप शुरू करें। मिल कर बात करते रहें बाकी घर और मित्र सदस्यों से। फिर हिम्मत करके पारिवारिक विश्वास को जांचें। फिर मित्रो (समान लिंग) को शामिल करें। और फिर एक कम्युनिटी बना लीजिये।

समूह में हम ज्यादा हिम्मत महसूस कर सकते हैं। जब हम क्या सही है और विश्वास करना व निभाना सीखते हैं तो यह गैर जरूरी शर्म खत्म हो जाती है।

जब हम समान लिंग के बाथरूम में होते हैं तो कोई शर्म सामने नहीं आती लेकिन विपरीत लिंग पर हमें भरोसा ही नहीं है। यह बनाना होगा। पहले प्रेमी-प्रेमिका (जोड़े) इसे जोड़ेंगे फिर वह सब भी, जो धीरे-धीरे विश्वास करना सीख जाएंगे।

विश्वास, एक ऐसा शब्द जो कपड़ों का मोहताज नहीं रहना चाहिए। हमाम में सब नँगे होते हैं। मालूम है न? ~ Shubhanshu SC 2018©

आओ ईसाई बनें। पाठ एक। 😂😂😂

ईश्वर ने पृथ्वी की रचना ऐसे की। 😂

याद रखें,

1. दिन की गणना सूर्य के उगने और अस्त होने से होती है। (बिंदु 14)

2. सूर्य से ही प्रकाश (उजियाला 😂) होता है। शाम और भोर सूर्य के गति करने से होती हैं। बिना सूर्य के यह दोनो सम्भव नहीं। (बिंदु 14 के नियम देखें)

3. परमेश्वर की आत्मा जल के ऊपर मंडरा रही है। मतलब ईश्वर मर चुके हैं। उनकी आत्मा निकल कर भटक रही थी।😂 (3)

4. उजियाला होने के बाद भी पृथ्वी पर प्रकाश (उजियाला 😂) करने के लिये सूर्य बनाया (16) और फिर से अंधियारे और उजियाले को अलग करने के लिये उनको काम सौंपा। (18)

5. सूर्य और चन्द्र को 4थे दिन बनाया गया। तब तक दिन की गणना अज्ञात (शायद आधुनिक घड़ी 😂) से की गई। 

6. बिंदु 29 और 30 कहते हैं कि माँस खाना मना है। सभी जंतुओं का भोजन वनस्पति है।

7. बिंदु 26 और 28 कहते हैं कि मनुष्य को कुछ जन्तुओ का अधिकार दिया गया। सम्भवतः अधिकार का अर्थ है उनकी रक्षा का अधिकार न कि उनको इस्तेमाल करने का/मारने का। ~ शुभाँशु जी 2018©

पवित्र बाइबिल Hindi Holy Bible 😂

उत्पत्ति - अध्याय 1

अध्याय 1

1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। 

2 और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। 

3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 

4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया। 

5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया॥ 

6 फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। 

7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 

8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया॥ 

9 फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे; और वैसा ही हो गया। 

10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

11 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीज वाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। 

12 तो पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

13 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया॥ 

14 फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों। 

15 और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देने वाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। 

16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया। 

17 परमेश्वर ने उन को आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, 

18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया॥ 

20 फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। 

21 इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

22 और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें। 

23 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया। 

24 फिर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात घरेलू पशु, और रेंगने वाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। 

25 सो परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगने वाले जन्तुओं को बनाया: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

26 फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। 

27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। 

28 और परमेश्वर ने उन को आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तुओ पर अधिकार रखो। 

29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं: 

30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया। 

31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया॥

सोमवार, मई 28, 2018

मेरे FB मैसेंजर पर लोग

5000 लोगों में से post पर कम ही लोग नज़र आते हैं। ऑनलाइन न हों, पोस्ट दिखती न हो, या उनके मतलब का नहीं है लेखन आदि कारण वाले। लेकिन मैं हर पोस्ट fb स्टोरी में भी डाल रहा हूँ तो उधर बहुत लोग लगे हुए हैं क्योकि वे post नहीं करते, fb की सेटिंग करते हैं चैट में।

अब उधर क्या होता है यह देखिये।

1. 😶: चार (सर्) जी आपको गुजराती आती है? (रोमन)
शुभ्: नहीं सिर्फ हिंदी-इंग्लिश।
😶: आपको सीखनी चाहिए। (रोमन में)
शुभ्: हिंदी या इंग्लिश में लिखें। मुझे रोमन नहीं आती।
😶: टूटीफूटी हिन्दी में ज्ञान।

2. Please join whatsapp...

3. हेलो, अपना दे दो, मेरी ले लो।

4. 👰: हमें इग्नोर कर रहे हैं?
शुभ्: इग्नोर उसे करते हैं जिसे देखा हो। आप हैं कौन?
😤: लड़कियों से बात करने की तमीज नहीं है आपको?
शुभ्: नहीं। कृपया मुक्ति लें।

5. 👸: हेलो dear!
शुभ् (3 दिन बाद): हेल्लो।
तुरन्त 👸: हेलो, क्या कर रहे हैं आप?
शुभ्: लैट्रिन में बैठा हूँ और आप?
👸: अरे...मैं खाना खा रही थी। भूख मर गई।
शुभ्: रुको अभी सुच्ची कर लूं।
👸: फ्री हो गए?
शुभ: नहीं बहुत सी चैट पर जवाब देने हैं। आप जैसे कई लोग हैं।
👸: पहले फ्री हो लें।
शुभ्: (1 घण्टे बाद) जी कहिये क्या इमरजेंसी है?
👸: पहले थी, अब नहीं है। अब कल होगी।
शुभ्: समझ गया। 😂😂😂

6. 👱: आप कहाँ से हैं?
शुभ्: Earth से। और आप?
👱: वेरी फनी, ये तो मेरा डायलॉग है।
शुभ्: मेरा और भी है। जैसे मंगल, बुध, शुक्र और प्लेनेट ross 128 b आदि।
👱: ok ok आप कहाँ रहते हैं?
शुभ: जी घर में।
👱: अरे वो तो मैं भी रहती हूं। घर कहाँ है आपका?
शुभ: ATM के सामने।
👱: ATM कहाँ है?
शुभ: मेरे घर के सामने।
👱: अरे...दोनो कहां हैं?
शुभ्: आमने-सामने।
👱: LOL! नहीं बताना है तो मत बताइये। आपकी फ़ोटो नही देखी प्रोफाइल में।
शुभ्: आपकी भी कहाँ लगी है?
👱: 10 फ़ोटो received।
शुभ्: ok।
👱: कैसी लगी मैं आपको?
शुभ्: जैसी और लगती हैं। लड़की लग रही हैं।
👱: एक बात बताऊँ आपको, ये फोटो fb पर डाल दूँ तो अभी 1500 लाइक्स और कॉमेंट आ जाते। और आप इतने रूखे हैं।
शुभ्: जी, तो डाल दें। लाइक्स ले लें।
👱: अरे, लड़कीं को अपनी तारीफ बहुत पसन्द होती है।
शुभ्: जी बताने का धन्यवाद्।
👱: तो करते क्यों नहीं?
शुभ्: तारीफ वाला कोई काम तो करिये पहले।
👱: good, सही कहा। 😕 good bye।

1 माह बाद

👱: hi!
शुभ्: hi
👱: कैसे हो?
शुभ्: आपने तो गुडबाय बोल दिया था।
👱: अरे आप उसे भूल जाओ। वो ऐसे ही लिख दिया था।
शुभ्: ok good bye।
👱: हेल्लो... हेलो...

2 दिन बाद

👱: नाराज़ हो गए क्या? गुडबाय क्यों लिखा?
शुभ्: ऐसे ही लिख दिया था।
👱: मेरे साथ भी मजाक?
शुभ्: आप कर सकती हैं तो मैं भी।
👱: आपका fav ड्रेस क्या है?
शुभ्: नँगा रहता हूँ।
👱: हट...नॉटी।
शुभ्: ok bye।
👱: अरे नहीं, आपने मजाक ही ऐसा किया।
शुभ्: अरे नहीं, सच में नँगा बैठा हूँ। nudism के बारे में पढ़ा है आपने?
👱: नहीं।
शुभ्: सर्च करें। (लिंक देता हूँ nudism से सम्बंधित)
👱: offline

1 माह बाद

👱: hi
शुभ्: hi आप फिर आ गईं? मुझे लगा नागा बाबा समझ के भाग गईं।
👱: न न, वैसे आप बाहर normal क्या पहनते हैं?
शुभ: सूट बूट
👱: nice, कौन सा रंग?
शुभ्: काला।
👱: nice मेरा fav है पिंक
शुभ: ok
👱: अभी क्या पहनें हैं?
शुभ्: चड्डी।
👱: nice, क्या रंग है?
शुभ्: क्या करोगी?
👱: बताओ न आप।
शुभ्: क्रीम रंग
👱: वेरी गुड! Nice चॉइस।
शुभ्: आपका fav क्या है?
👱: *****************
शुभ: ok
👱: आप अकेले हो...रूम में...
शुभ्: नहीं अभी-अभी बीवी बच्चे आ गए हैं कमरे में। बाद में बात करता हूँ। 😁 (बाल बाल बचा)
👱: ओह, बाई!
शुभ्: 😁

7. फलाना sent you a link
8. ढिमका sent you a photo
9. Both sent a video.
10: good morning! शुभांशु जी, उधर क्या टाइम हो रहा है?

~ शुभाँशु जी 2018©

अशुभ

विवाहमुक्त, शिशुमुक्त, धर्ममुक्त, क्रूरता मुक्त और कम से कम कपड़े पहनने का विचार मुझे तब से याद है जब से मुझे अपना बचपन नज़र आया। मुझे तभी से समझ में आ गया था कि क्या करना है और क्या नहीं। मेरा अबोध लगने वाला मन दरअसल बहुत तेजी से आसपास की घटनाओं को रिकॉर्ड कर रहा था। मुझे अपने बचपन में, लोगो से कही गई इस विषय में बातें याद हैं।

सब कहते रहे कि अभी बच्चा है, बड़ा होकर बदल जायेगा। लेकिन नहीं। जब से बोलना सीखा, पढ़ना आया तब से मैंने अपने विचारों को जांचने का काम शुरू कर दिया। मुझे जानना था कि जो मुझे सही लगता है वह दूसरों को गलत क्यों लगता है?

मैंने सबकुछ किया जो लोगों ने करने की ज़िद की। लेकिन बेमन से। बस विवाह के लिये मैं रुक गया और बच्चे के लिये भी। यह बहुत मुश्किल था क्योंकि पता नहीं क्यों मुझे लड़कियाँ आकर्षित करती थीं लेकिन मैं जानता था कि यह क्षेत्र प्रयोग का नहीं। इसमें दूसरे का जीवन शामिल है। बिना इसे समझे कुछ करना उचित नहीं। इसका भी समय आएगा। जब मैं फैसले लूँगा।

उपरोक्त विचार मेरे भीतर कौंधते रहे और मुझे लगता रहा कि मैं सही हूँ। बस मुझे पक्का प्रमाण चाहिए था। क्या मेरे जैसा कोई नहीं? यही सोच कर अकेला रहता था। लड़कियों से दोस्ती करने में डरता था कि कहीं मुझे या उनको मुझसे प्यार हो गया तो यह सारी दुनिया विवाह करने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा देगी और अभी मुझे जानना था कि विवाह करना सही क्यों नहीं है। आगे चल कर इस विषय में बहुत जानकारी मिली।

मंदिर जाता तो सोचता कि वाह! कोई जादुई दुनिया है लेकिन जब कुछ भी होता नहीं फिर भी लोग यहाँ क्या मांगने आये हैं? मैंने बहुत try किया। कुछ लाभ न हुआ। समझ गया कि यह सब बकवास है। पास ही में एक मस्जिद थी। बहुत प्रसिद्ध। मैं उसमें गया। सिर ढंकने को कहा गया। वहाँ भी मांग कर आया, कुछ नहीं मिला, फिर एक गुरुद्वारे चला गया। उधर भी सिर ढका और अपने लिये कुछ मांगा। कोई लाभ नहीं। चर्च चला गया। उधर भी जीजस से वही माँगा लेकिन कोई लाभ नहीं। एक साधु से मिला उनसे सब बात कही वह बौद्ध भंते निकले। उन्होंने बाकी सभी ईश्वरो को नकार दिया तो सही लगा। लेकिन फिर वह बुद्ध के मंदिर ले आये। बोले इनसे मांग के देखो। मैंने उनसे भी वही माँगा लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।

लेकिन ऐसा हर जगह लगा जैसे मैं कुछ भूल रहा हूँ। मैंने कहीं पैसा नहीं दिया। मेरे पास था ही नहीं।

कोई बोला, पैसा फेक तमाशा देख। ऊपर वाला भी ऊपरी कमाई लेता है जान कर बहुत कुछ इंसान जैसा लगा। मैंने एक व्यक्ति की मदद की। बदले में कुछ पैसे मिले। कुछ पैसे से बन खरीद के खाया और बाकी सब धार्मिक जगह चढ़ा आया।

लेकिन परिणाम कभी नहीं मिला। बड़ा हुआ। पढ़ाई करी। अखबार में मुझे मेरे जैसे विचारों वाले बहुत से लोग पढ़ने को मिले। बुद्ध से इसलिये प्रभावित था क्योकि उनके बारे में पढ़ा सुना कि उन्होंने पत्नी शिशु त्याग कर तपस्या से ज्ञान प्राप्त किया और नाम कमाया। क्या मैं भी वैसा ही हूँ? मुझे स्कूली पढ़ाई पसन्द नहीं थी। सबकुछ सही कम और गलत ज्यादा लगता था।

सोचा पढ़ाई छोड़ दूँ क्योंकि एडिसन ने भी छोड़ दी थी। जब वह इतना महान हो सकते थे तो मैं क्यों नहीं? लेकिन मैं घिसट-घिसट कर पढ़ता रहा क्योकि मुझे चेलेंज दिए गए कि मूर्ख है साला। तभी पढ़ाई नहीं कर पाता। मैंने कहा मैं एडिसन जैसा नया आविष्कार करूँगा। उसे बेच कर अमीर बन जाऊँगा तो लोगों ने कहा, "उसकी किस्मत थी। तुम क्या लाये हो?" मैंने कहा, "जी बस ये दो हाथ।" वो बोले तो जाकर फैला सबके आगे। शायद कोई भीख दे दे।

मैं घर में रोज मार खाता था। पड़ोस के बच्चो से कुछ अश्लील गालियाँ सीख लीं थीं। पीटने पर घरवालों को गालियाँ सुना दीं फिर तो बहुत पिटाई हुई। घर छोड़ के भाग आया। रोज-रोज की कुटाई नहीं सह पाया।

एक रात बाद होश आया कि अब भूख कैसे मिटाऊं? जिस घर से खाना मांगा, हर वह दरवाजा बंद हो गया। मैं नाबालिग था। कोई काम भी नही दे रहा था। क्या करता? भीख माँगू क्या?

मैंने वह भी किया। लेकिन मुझे किसी ने भीख भी नहीं दी। शायद मुझे इसका अनुभव नहीं था। फिर मैंने एक भिखारी को भीख मांग कर दारू पीते और मुर्गा खाते देखा तो कुछ अजीब लगा। क्या ये लाचार दिखने वाले लोग बेईमान हैं? नफरत सी हो गई। मैं रोटी के लिये भीख मांग रहा था और वह नशे और स्वाद के लिये?

एक ढाबे पर गया। मालिक से पूछा कि क्या खाना खिला देंगे? मालिक बोला, "आप ही की दुकान है। आइये-आइये। क्या पेश करूँ?"

मैंने दाल रोटी चुनी। सबसे सस्ती। खाना ख़ाकर धन्यवाद् बोला और जाने लगा तो किसी ने हाथ पकड़ लिया।

मालिक बोला, "पैसे नहीं दिए आपने।" दिल अचानक धक्क हो गया। पैसे की बात तो हुई नहीं थी। फिर अब पैसे क्यों? मैंने कहा कि मैं तो आपसे दया करके खिलाने को कह रहा था और आपने कहा कि आप ही की दुकान है तो अब पैसे क्यों मांग रहे हैं?

मालिक ने खूब गालियां सुनाई और मुझे बर्तन धोने का काम दे दिया। मैं पिटने से बचने के लिये धोने लगा बर्तन। थक कर गिर गया उधर ही। आधा पेट खाना ही खाया था। कमज़ोरी आ गई।

पड़ा रहा उधर ही। कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह किसी ने लात मारी पेट में। बहुत दर्द हुआ। देखा कि ढाबे का मालिक पास ही खड़ा था। वहां काम करने वाले ने मुझे कुत्ते की तरह मारा। मैंने पूछा रोते हुए, "क्यों मार रहे हो? बर्तन धो तो दिए थे!"

वह बोला, "साले तेरे बाप का होटल है जो बीच रास्ते में पड़ा है। साला दारू पीकर सब इधर ही गिरते हैं।"

इतना घटिया इल्जाम! खाने को नहीँ और दारू पीने का आरोप! मैं रोता हुआ भाग आया उधर से। सोचा, "कहाँ हैं वो अच्छे धार्मिक लोग? मुझे दिखते क्यों नहीं?"

दूर से देखा, ढाबा मालिक पूजा कर के धूप बत्ती सुलगा रहा था। मैंने देखा, यही तो हैं वे दयालु धार्मिक लोग। विश्वास खत्म हो गया। अब और नहीं। मैंने खुद से कहा, "यहाँ मदद नहीं मिलती। यहाँ खुद की मदद खुद करनी पड़ती है शुभ्। और हां, अभी तू अशुभ है सबके लिए। तुझे शुभ् बनना होगा। क्रमशः

शेष फिर कभी। ~ शुभाँशु जी 2018© मौलिक रचना

नोट: सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक् हैं। यदि किसी से यह मिलती हो तो वह केवल संयोग मात्र होगा। धन्यवाद्।

शनिवार, मई 26, 2018

I am different! Why?

I am normal because I haven't any problem with my alone life.

When I met normal people, I felt that I am not normal. There are very few people who are thinking right and doing the same. Only these few people are some compatible with me.

Why this normal world is not doing good? Why I am able to judge people, theories, governments, countries, phenomenon, machine and the way of life? Why most of people aren't?

Being better between who's aren't is also a pain. How you can say that hurt others but you said it because it's nessesory for them. For there welfare?

Why quantity (majority) called normal but quality isn't?

Science said that humans are intelligent, but can you tell me that you never found any unintelligent person?

Actually, intelligent people are very few. Not every mathematics genius can also intelligent in the daily life. Not every high IQ scorrer can solve the problems of daily life.

So what we are? What am I? Why I found that veganism, nudism, feminism, being introvert, open relationship, religion free athism, rationalism, humanity, compassion, sympathy, trust, honesty are better way of life? Why so called normal people are saying me wrong? Why are they so confident on their lie?

How I can change my self into a so called normal person? How I can make me wrong? Question is not that how I can become a so called normal person but Why? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018© Sat, may 26, 2018 IST

शुक्रवार, मई 25, 2018

एक दिन नई मित्री के नाम (A Date with Shubhanshu)

😒: सुनिए माँ, कल सुहाग रात पर उन्होंने कुछ नहीं किया। मैंने कपड़े उतारे तो मुझे बार-बार देख के वे बाथरूम आते-जाते रहे पूरी रात।

😂: शुभाँशु होगा, साला! बहुत हस्तमैथुन पर लिखता रहता है। (अचानक पापा टॉयलेट से बाहर आये और सुनकर बोल पड़े)

😬: ख़बरदार! जो उनके बारे में एक लफ्ज़ भी मुहँ से निकाला तो! शुभाँशु जी को इतना पढ़ते हैं कि ये भी भूल गए कि शादी आपने किसी और से कराई है जबकि वे तो विवाहमुक्त हैं। समझे आप लोग? मैं जा रही उनके पास। तलाक के पेपर ये पड़े हैं। मैंने साइन कर दिए हैं।

पापा की बोलती बंद हो गयी थी।

😞: लेकिन बेटी उस कलमुहे के पास क्या काम है तुमको? माँ पीछे से बोली।

😬: आपसे मतलब? जो काम कल अधूरा रह गया था वह पूरा करना है मुझे। दनदनाते हुए लड़की शुभाँशु जी से बताई हुई जगह पर मिलने चल दी।

कुछ समय बाद

शुभाँशु: जी कहिये, आपने व्हाट्सएप पर कहा कि आपके पास कोई ज़रूरी जानकारी है मेरे लिये?

💋: है न! Now I am single again! 💓

शुभाँशु: देखिये मैडम आप मुझे गलत समझ रही हैं। मैं कोई ऐसा-वैसा लड़का नहीं हूँ। मैं शरीफ़ लड़का हूँ। 😨

💋: क्या नाटक लगा रखा है? फेसबुक पर तो बड़ी-बड़ी डींगें हांकते हो! इतने घण्टे तक, उतने घण्टे तक, जब लड़की सामने आई तो फुस्स?

शुभाँशु: अरे! क...क्या कह रही हैं! आप तो एक दम भूखी लग रही हैं।

💋: सही पकड़े हैं। भूखी ही तो हूँ। पूरी रात नींद नहीं आई मुझे भूख के मारे।

शुभाँशु: चलो पास में ही एक अच्छा ढाबा है। वहीं खाना खा लेते हैं। 😓

😞: काहे सारे मूड की वाट लगाए दे रहे हैं? हम आपके इतने बड़े फैन हैं और आप हैं कि...चलिये जाने दीजिये। शायद हम आपको पसन्द नहीं आये।

शुभाँशु अचानक बेहद गम्भीर होकर बोला: देखिये मैडम! मेरे बारे में कोई धारणा मत बनाइये। मैं ऐसे ही किसी ऐरे-गैरे के साथ बिस्तर पर कबड्डी नहीं खेलने लगता हूँ। मैं ओपन माइंडेड अवश्य हूँ लेकिन मैं जब चाहें जिसके लिए चाहे, उपलब्ध भी नहीं हूँ।

जब तक हमारे बीच में अपनापन नहीं होता, मेरा यह ज़िस्म गर्म नहीं होगा। आप बहुत खूबसूरत और सेक्सी अवश्य हैं लेकिन इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिये मेरी साथी सिर्फ माँस का लोथड़ा नहीं है। वह जैसे मेरा अपना एक अंग है। जब तक वह ऐसी नहीं बनती, तब तक मुझे वह वासना से देखना भूल जाए।

यही कारण है कि मैं कभी सेक्स के बाज़ार नहीं जाता। मैं जा ही नहीं सकता। मैं पोलिगेमस अवश्य हूँ लेकिन हर ज़िस्म का भूखा भी नहीं।

मेरे लिये वासना प्रेम के बाद आती है। बाकियों का मुझे पता नहीं। हो सकता है कि मैं आपके साथ दोस्ती कर सकूँ लेकिन फिर मैं उस दोस्ती को कभी तोडूंगा भी नहीं। हो सकता है, ऐसे ही मैं अपने जीवन में बहुत सी दोस्त बनाऊं, जिनमें से कई साथी वासना तक भी पहुचें लेकिन आपको परिग्रह (possessiveness) त्यागना होगा। उनसे मित्रवत व्यवहार वैसे ही करना होगा जैसे आप अपने कॉमन मित्र के साथ करती हैं।

हम में से कई अगर चाहें तो एक साथ एक ही समय में अंतरंग (इंटिमेट) हो सकते हैं। झिझक त्यागनी पड़ सकती है। यह एक और वर्जना तोड़ेगा। ईर्ष्या होगी, मुझे आपके किसी मित्र से तो आपको मेरी मित्र से इर्ष्या अवश्य होगी। लेकिन उस पर नियंत्रण करना सीखना होगा। ऐसा आपसी विश्वास से होगा।

भरोसा यहाँ रिश्ते बनाता है। असली रिश्ते। कोई कागजी या धागे वाले रिश्ते नहीं। जैसे मैं दोस्ती के लिये आज़ाद हूँ वैसे ही आप भी हैं। यहाँ कोई दोहरा मापदंड नहीं होगा। केवल STDs और गर्भावस्था से सुरक्षित रहिये। हमेशा 5 कंडोम का पैकेट अपने साथ रखें। 3 खत्म होते ही, 5 का पैक और ले लीजिए।

सेक्स और प्रेम को मिलाना नहीं है; हालांकि उनको जब चाहें सक्रिय करना आ जायेगा समय के साथ। सेक्स की इच्छा हो और मैं उपलब्ध न होंउं तो आप स्वतन्त्र हैं, उसकी सुरक्षित पूर्ति के लिए। No strings attached!

अभी इतना ही। बाकी फिर कभी। अभी तो पहली date है। हिल गईं न? कोई बात नहीं। आप पहली नहीं हैं। सभी को शुभ पहली बार बुरा ही लगता है।

🙏: आपके चरण कहाँ हैं शुभ जी! I am in love with you!

शुभाँशु: अब तेल लगाना बन्द कीजिये। आप मेरी इज़्ज़त करने लगी हैं, न कि आपको इतनी जल्दी प्यार हो गया।

🙇: यार आप हो किस ग्रह के? इतना आदर्श आप लाते किधर से हैं? फिर उसको जीवन में भी उतारना! आदमी हो या कोई एलियन हो? मुझे कोई ऐसा नहीं दिखा कभी और न ही दिखने की उम्मीद है कभी। पता नहीं आपकी जगह मैं किसी और के प्रति आकर्षित हो भी पाऊंगी या नहीं। एक किस दोगे लिप 2 लिप प्लीज़?

शुभाँशु: मंजन तो किया है न?...मजाक कर रहा हूँ। आओ तुम भी क्या याद करोगी कि किसी दिलदार से पाला...उफ्फ..kiss 💋.

लड़की ने बात पूरी होने से पहले ही शुभाँशु के सिर को पकड़ कर अपने होठ उसके होठों पर रख दिये और दोनो आनंद के सागर में डूबते चले गए।

कुछ पलों बाद

शुभाँशु: बस बस! अभी इतना काफी है। चलो मूवी देखते हैं। कह कर शुभाँशु और वह लड़की एक मल्टीप्लेक्स में जा घुसे। दोनो ने अपने-अपने टिकट खुद लिए।

आगे की कहानी खुद सोचते रहिये। इतना काफी है। कैसी लगी कहानी? ज़रूर बताइएगा। धन्यवाद्! ~ शुभाँशु जी 2018© 5:53 am, 25th may 2018

शनिवार, मई 19, 2018

कुछ लोग जो बदलने में शर्म महसूस करते हैं।

पुराना इर्ष्या करने वाला मित्र मिला कल।

मित्र: और आज कल क्या कर रहा है?

शुभ: समाज सुधार।

मित्र: 😂 क्या-क्या सुधार लिया अब तक?

शुभ्: खुद को सुधार लिया। अब उसके परिणाम सबको बताता हूँ। जो भी सुधरे हैं मैं उनकी गारंटी नहीं लेता। वैसे भी मैंने कोई ठेका नहीं लिया दुनिया बदलने का।  मेरा मन होता है तो उपाय बाँट देता हूँ। कोई अपनाए या नहीं, मुझे फर्क नहीं पड़ता।

मित्र: मतलब परिणाम शून्य है न? मैंने कहा है कि जीवन में कोई aim बना कर चला कर। ऐसे खाली समय खराब करता है। आदर्शवाद के चक्कर में तू चक्कर ही काटता रहेगा सारी जिंदगी और मैं मेज के नीचे से पैसा सरका के अपना काम निकलवा लूंगा।

शुभ्: भाई, मैं समझता हूँ कि आपने अपने घरवालों की लाखों रुपये की जमा पूँजी गलत व्यापार में बर्बाद कर के अपनी खटिया खड़ी कर ली थी और आज दहेज में मिली घाघरा चोली की दुकान चला रहे हो, साथ ही मैक्स न्यू लाइफ इंश्योरेंस के दलाल बने घूमते हो। महीने के 20-30 हज़ार कमा कर अपनी गर्भवती पत्नी के साथ जीवन में जूझ रहे हो।

मुझसे कहते हो कि कभी अकेले अपने दम पर कुछ करके दिखाओ, पिछले वाले सबकुछ को छोड़ कर। लेकिन नहीं बताते कि तुम्हारी समस्या क्या है?

मेरा सपना तो बेहतर जीवन जीना है। जो किसी मेरे जैसे भले इंसान के काम आए तो बेहतर लेकिन तुम बताओ क्या उद्देश्य है तुम्हारा? शादी कर चुके, बच्चे आ रहे हैं, उनको पालोगे, पढ़ाओगे, इलाज करवाओगे और क्या करोगे? बताओ?

ज्यादातर लोग तो खुद को मर्द और स्त्री साबित करने के लिये और सेक्स का घर में ही मुफ्त में इन्तज़ाम करने के लिए, कुछ दहेज के लालच में तो कुछ पति की कमाई मुफ्त में खाने के लिये विवाह करते हैं।

मित्र: ऐसा नहीं है। शादी का मतलब सिर्फ बच्चे पैदा करना नहीं है। बाकी भी नहीं है जो तुमने बताया।

शुभ्: फिर क्या है?

मित्र: तुम गलत हो।

शुभ्: कैसे?

मित्र: कुछ लोगों की तो शादी भी नहीं हो पाती है। यह होना भी किस्मत की बात है। भगवान् कि कृपा होती है तभी ऐसा हो पाता है। परमात्मा का अंश है आत्मा। यह न चाहे तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते।

शुभ्: तुम किस्मत को मानते हो? तेजी से आती ट्रेन के सामने कूद जाना। आत्मा को भी? आत्मा किसी शरीर को चला रही है तो शरीर खराब होने पर उसे छोड़ क्यों देती है? कोई शरीर बिल्कुल बेकार हो जाये तब भी मनुष्य ज़िंदा रह लेता है, उसका शरीर आत्मा क्यों नहीं छोड़ देती? जबकि दिल का दौरा पड़ने से अच्छा खासा शरीर भी मर जाता है। आत्मा उसे चलाती थी तो दिल का क्या काम था? जो वह रुका तो मर गए?

बातों को बदल रहे हो तुम बस। अपनी ज़िंदगी झंड है और मेरी ज़िंदगी में बिन मांगे डण्डा डाल रहे हो। मै खुश हूँ और अपनी मदद खुद कर लेता हूँ यही काफी है। मुझे धन की कमी नहीं है। लेकिन मैं कभी दिखावा नहीं करता।

आपके रिश्तेदार की तरह पुण्य कमाने का दिखावा करने वाला नाटक भी नहीं करता। मुफ्त में खाना बाँट कर आप गरीबी नहीं खत्म कर सकते। आप और गरीब पैदा कर रहे हो। सोचो जो लोग अभी मेहनत से कमा कर खाते हैं, वे क्या मुफ्त का खाना देख कर कल से काम कर पाएंगे?

उनके हाथ पैरों में जंग लग जायेगी, फिर वे दोबारा मेहनत नहीं कर सकेंगे। वे चोर बनेंगे। अपराधी बनेंगे। आप लोग जो अपना काला धन ठिकाने लगाने के लिये यह पुण्य का दिखावा करते हो न, उसके भले ही मानसिक, धार्मिक या राजनैतिक कारण हो लेकिन आप बस देश को बर्बाद कर रहे हो। याद रखना, आप किसी को जीवन भर नहीं खिला सकते तो उसकी कमाने की आदत मत खराब करो।

जिस पर खाने को नहीं है उसे काम दिलाओ और नहीं दिला सकते तो उसे संघर्ष करने की हिम्मत दो। उसे अपाहिज मत बनाओ। उसे खड़ा होने का हौंसला दो। उसे चाहिए होगा तो वह फायदा लेगा और नहीं चाहिए तो आप गलत इन्सान के साथ खड़े हैं।

आप अनजाने में अपराध करके उसे अपना बेहतरीन कार्य बताते हो लेकिन याद रखो। अपनी गलती मानने वाला ही श्रेष्ठ होता है। वही बेहतर बन सकता है। आपने मेरी कोई गलती नहीं बताई। बस विरोध किया। आपने आलोचना नहीं की बल्कि नीचे गिराने, हतोत्साहित करने और निराश करने वाली बातें करके खुद को सही कहना चाहा कि बस अपना अस्थाई लाभ देखो।

जैसे बस यही सही है और मैं बड़ी-बड़ी बातें करना बंद करके आपके जैसा गधा बन जाऊँ जो बस वही कर रहा है जो एक आम अनपढ़/अबौद्धिक जानवर करता है जिसमें कोई प्रतिभा नहीं होती जिसका कोई और उद्देश्य नहीं होता जीवन का, सिवाय सिर्फ बच्चे पैदा करने के।

मित्र: बहुत देर हो गई मुझे घर जाना है। तुम गलत हो शुभाँशु और हमेशा रहोगे। 😀😂

इतना कह कर वह जला-भुना दोस्त अपने रास्ते चला गया। मैं भी खुद को गौरवशाली महसूस करता हुआ और उस बेचारे पर तरस खाता हुआ घर चला आया। ~ शुभाँशु जी 2018© (आप बीती)

शुक्रवार, मई 18, 2018

Poke का रहस्य

तर्क:

1. फेसबुक के बारे में मार्क जुकरबर्ग से ज्यादा फेसबुकिया जानता है! सज़ा कम नही होगी यह तो लिखा मिल गया। लेकिन poke से उंगली के सिवाय और कुछ होता है ऐसा नही मिला।

2. जब एक व्यक्ति सज़ा पाता है तो केवल poke ही कर सकता है बताने के लिए कि वह सज़ा भुगत रहा है। ऑनलाइन है, मतलब अंदाज़ा लगा लें। इसी बात का गलत मतलब निकाला गया कि यह कोई उपाय है।

3. और अगर गलती से ऐसा कुछ होता भी होता तो poke केवल ब्लॉक (पनिशमेंट) होने पर ही करना सम्भव होता जबकि वह कभी भी कर सकते हैं। मतलब आप अंध्विश्वास को कहीं भी अपना सकते हैं चाहे वह फेसबुक ही क्यों न हो।

शर्म कीजिये आप लोग तो समझदार लगते थे मुझे। ~ शुभाँशु जी 2018©

Note: ऐसे ही कह के लेंगे अगर खुद प्रमाणित कार्य करने शुरू नहीं करते सभी मित्र।

शनिवार, मई 12, 2018

पशुओं में प्रायः नहीं होता है बलात्कार

मादा ज्यादा खतरनाक और ताकतवर होती है ताकि किसी भी प्रकार के बल का विरोध कर सके और अपने बच्चों की रक्षा कर सके।

रुक्य्वार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध कविता में इसी का ज़िक्र है "the female of the species is the more deadly than the male" उसी कविता का प्रसिद्ध उद्धरण भी है।

मानवों में महिलाओं से व्यायाम करने और भारी कार्य करने से रोक कर उनको कमज़ोर कर दिया जाता है।

जहां तक कुछ लोगों को पशुओं में बलात्कार की प्रवृत्ति की धारणा है, वहीं गहन अध्ध्यन कुछ और ही कहानी कहता है।

जानवरों में भी मानव की तरह झिझक होती है सेक्स के प्रति इसलिये शुरू में आपको ऐसा लगता है कि बल का प्रयोग हुआ। लेकिन नर प्रजनन ऋतु में केवल तभी सम्भोग का प्रयास करता है जब उसकी नासिका में मादा के सम्भोग के लिये मौजूद श्लेष्मा और गन्ध फेरोमोन का स्राव पर्याप्त संकेत छोड़ देता है।

पशुओं में कभी-कभी खुर चुभ जाते हैं तो मादा कतराती है और आगे भागती और विरोध करती नज़र आती है लेकिन ऐसा तो सभी प्रेमियों में भी होता है। कभी कभी गलत आसन लग जाने से या नाखून लग जाने से मादा या नर एक दूसरे को रोक कर टोक देते हैं। यह तो एक सामान्य सी बात है। इसका सहमति भंग से कोई लेना देना नहीं है। ~ शुभाँशु जी 2018©

मंगलवार, मई 08, 2018

गिरगिट हैं हम सब या हैं खरबूजा।

बदलाव आएगा। मुझे लगता है। आपके लगने न लगने से मुझे कोई लेना देना नहीं है। पूछा ही इसलिये था कि कौन कौन मेरे साथ बदलना चाहता है और कौन कौन नहीं। हम किसी को पकड़ कर नहीं बदल सकते।

जिसमें हिम्मत न हो उसे दिलवा ज़रूर सकते हैं। बदलाव की इच्छा ही काफी है। बदलाव कुछ नहीं बस अपने आप को बदलना हैं। मैंने बदला और मुझे देख के आप भी बदल सकते हो।

अगर इतने ही निराशावादी हैं तो एक काम करें। खुद को गिरगिट या खरबूजा समझ लें और जान लें कि मैं भी एक गिरगिट हूँ और मैं इस समय रंग बदल रहा हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

सोमवार, मई 07, 2018

विचार और अनुभव

विचार और अनुभव (इंद्रियों का) अलग अलग काम करते हैं। जब हम सोच नहीं सकते (नींद में) तब हमारा मस्तिष्क हमारा मनोरंजन करता है, शरीर की आवश्यकता के अनुसार अनुभव पैदा करता है जैसे भूखे सो गए तो भोजन खाते दिखोगे, सेक्स किये बिना सो गए तो वह करोगे, यहाँ तक कि मल मूत्र त्याग की ज़रूरत होने पर दिमाग आपको जगाए बिना टॉयलेट में पहुँच गए ऐसा दर्शा कर बिस्तर पर ही काम तमाम करवा सकता है। तब स्पर्श इंद्री आपको मल-मूत्र का अनुभव करवा कर आपको जगा देती है कि यह भी ठीक नहीं। मतलब इंद्रियां अवचेतन मन (अनियंत्रित विचार) की दुश्मन हैं। ~ शुभाँशु जी 2018©

जानकारी ही बचाव है।

हर धर्म का व्यक्ति अपनी जनसँख्या बढ़ा कर खुद को सुरक्षित करना चाहता है। यही कारण है कि शादी की सलाह और मुफ्त की सलाह आपको मिलती रहेगी।

मुफ्त की सलाह इसलिये भी क्योंकि कहीं आप परेशान होकर यह देश छोड़ कर ही न भाग जाओ।

और हाँ, कल एक बात और पता चली आप लोगों से कि जो जितना पढ़ता है वह उतना विद्वान होता है। इस हिसाब से मैने जो कुछ लिखा वह कहीं से पढ़ कर नहीं लिखा। मुझे पढ़ने से बहुत तकलीफ होती है।

जो देखता, महसूस करता और जो विश्लेषण करता हूँ वही लिख देता हूँ। जब आप लोग उसका सुबूत मांगते हो तब गूगल करता हूँ और मिल गया तो सुबूत भी दे देता हूं। आज तक सिर्फ 5% गलत सोचा है। यह तो है सफलता की दर।

लिखने में ही लगा रहता हूँ, पढा तो मैं कभी स्कूल में भी नहीं। जैसे तैसे पास होता रहा और आज भी अखबार तक नहीं पढ़ता और न ही कभी tv देखता हूँ। (कौन करे फालतू खर्च)। मेरा अनुभव ही काफी है। फिर भी लोग कहते हैं कि आप में व्यवहारिक ज्ञान नहीं है। अब हर क्षेत्र में नहीं भी हो सकता है। क्योकि हर फटे में घुसने का शौक भी न है। उसकी जानकारी है, वही काफी है। सुना है जानकारी ही बचाव है? ~ शुभाँशु जी 2018©

जीवन यात्रा चल रही है।

मैं शुभाँशु जी हूँ बस! ये क्या है? क्यों है? इससे मुझे कोई लाभ नहीं। कुछ दिन का जीवन है। न जाने कब यह एकाउंट खत्म हो और मैं खत्म।

तो इस नकली दुनिया में 4 दिन के लिये आया मानव खुद को कुछ समझ बैठे तो वह केवल अपना समय बर्बाद कर रहा है।

जिसे जो समझना है, वे समझते रहेंगे। हम बस अपनी जीवन यात्रा पर हैं। ~ शुभाँशु जी 2018©

रविवार, मई 06, 2018

लेस्बियन कृपया लिंगभेद न करें।

जब पुरुष से मिलने नहीं दोगे, लड़की को भोग्य समझोगे तो वह अपनी इच्छा कहीं तो शांत करेगी न? प्रेम से, शांति से, इज़्ज़त से। ज्यादातर ऐसी लड़कियाँ bisexual होती हैं।

कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन विपरीत लिंग से नफरत अपराध की श्रेणी में आता है जिसे sexism (लिंग भेद) कहते हैं। इसके अतिरिक्त जो लड़कियाँ शुरू से ही लड़कियों में इंट्रेसेटेड हैं वे पैदाइशी लेस्बियन हैं। उनको कोई नहीं बदल सकता।

साथ ही उनको पुरुषों से वैसे ही व्यवहार करना चाहिए जैसे एक पुरुष दूसरे के साथ तथा एक महिला एक महिला के साथ करती है। यानी समानता का व्यवहार। उनको अपनी sexuality कभी छिपानी नहीं चाहिए और न ही ईर्ष्या करनी चाहिए उस लड़के से जो आपकी पसंदीदा लड़कीं का प्रेमी या पति हो। अन्यथा गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। उदाहरण: बॉलीवुड फिल्म "girlfriend". ~ शुभाँशु जी 2018©

शनिवार, मई 05, 2018

मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ?

विवाह एक अनुबंध/करार/contract होता है। इसमें पहले से बनी विचित्र प्रतिज्ञाएँ ली जाती हैं। जिनका पालन कोई नहीं कर पाता। इसीलिए विवाह नामक संस्था असफल है।

जितने भी विवाहित सफल-सफल चिल्ला रहे हैं सब बस अपना-अपना फायदा और मजबूरी देख कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योकि उन्होंने खुद ही जली रोटी मुहँ में डाली है तो अब उगलने का कोई लाभ नहीं।

तिरस्कार ही होगा। दूसरों को भी कष्ट में डला देख कर कष्ट में पड़े व्यक्ति को अपूर्व आनन्द आता है और इसी की पूर्ति सेक्स के लिये लालायित युवाओं को विवाह का रास्ता सुझा कर वे एक तीर से दो शिकार करते हैं।

विवाह का रिश्ता एकल विवाह में मोनोगेमस और कुछ समाजों में निश्चित पोलिगेमस कहलाता है। अर्थात एक बार में चुन लो सीमित मात्रा में और फिर उतने से ही संतोष करो। यहाँ बात प्रेम की नहीं बल्कि सेक्स की ही होती है।

जबकि मनुष्य असीमित पोलिगेमस यानी बहुविवाही ही है। (विवाह=संभोग)

फिर इस रासायनिक, जैव वैज्ञानिक पृवृत्ति को जबरन दबा कर कुंठित क्यों किया जाए? क्या बलात्कारी बनाना है? सबको पता है कि एक ही व्यक्ति (sex mate) के साथ लम्बे समय तक साथ रहने में सेक्सुअल भावना निष्क्रिय हो जाती है जैसे कि भाई-बहनों के बीच होता है। ज़रूरी नहीं कि सेक्स किया भी जाये।

फिर क्यों अपनी मूर्खता पूर्ण समाजिक सोच लाद कर सबको अपनी तरह मूर्ख बनाने में लगे हुए हैं? क्यों नहीं आज़ाद कर देते लोगों को सेक्स एडुकेशन देकर?

जब सब सहमति से ही अपना साथी चुन सकेंगे तो बलात्कार जैसे शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे। प्रकृति से सीखो। वही जीतेगी। ~ शुभाँशु जी 2018©

मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ?

कुछ लड़कियाँ और लड़के जो शादी के सपने देखती/देखते हैं, वे बच्चों को पसन्द करने का अभ्यास करती/करते रहती/रहते हैं। जबकि मुझे बच्चे के प्रति सिर्फ ज़िम्मेदारी का भाव रहता है। उनको पैदा करने की भावना नहीं उतपन्न होती है क्योकि देश बढ़ती जनसँख्या से इतना बर्बाद हो चुका है कि नए के लिये यहाँ बेहतर माहौल ही नहीं। वह या तो अपराधी बन जायेगा या भृष्टाचारी।

सत्यवादी हुआ मेरी तरह तो उसकी हत्या कर दी जाएगी। कैसे भी कोई सूरत नज़र नहीं आती। इसलिये मैं बच्चा मुक्त ही बेहतर हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

महिलाओं चलो करो आंदोलन

महिलाएं दबा कर रखी गई हैं उनके बारे में कुछ पता कैसे चले। पुरुष दबंग है समाज के सहारे से। फिर? जिसको प्रोत्साहन मिलता है वह काम भी करता है। महिलाओं को कौन प्रोत्साहित करें? वह खुद ही चुप्पी साधे बैठी हैं। हम किसी को परोस के तो दे सकते हैं लेकिन चम्मच से खिलाना हमारे वश का नहीं। मुकाबला करना है समाज से तो सड़को पर आओ महिलाओं। दिखाओ अपनी ताकत या फिर शिकायते करना भी बन्द कर दो। ~ शुभाँशु जी 2018©

सेक्स पर टिके समाज से एक अपील

एक लड़के का गैंग रेप हुआ था कुछ अमीर लड़कियों द्वारा। दूसरी घटना में होस्टल में प्रेमिका से मिलने आये के साथ हुआ। हॉस्पिटल जाना पड़ा।

इन घटनाओं ने आज से 35 साल पहले न सिर्फ महिलाओं के बलात्कारी पुरुषों में डर पैदा कर दिया बल्कि कई सालों तक महिलाएं खुले आम मनपसंद कपड़ों में घूम सकी थीं। फिर दोबारा से जब लोग इन घटनाओं को भूल गये तब फिर से पासा पलट गया।

डर से किस तरह के बलात्कारी प्रभावित होते हैं? यह वे होते हैं जिनको लगता है कि महिला ने उनकी बात नहीं मानी जबकि वह तो भोग्य है यानी पुरूष अहं/male ego वाले ऐसे लोग जो उसे बस सम्भोग की विषयवस्तु मानते हैं। इन लोगों की पहचान है कि यदि आप कुछ भी विपरीत लिंग जैसा करेंगे तो यह आपका मजाक उड़ाएंगे।

यह दोनो वर्ग में हो सकता है। जगह और स्थान बदलने पर लोगों की सोच विपरीत भी हो सकती है यानी महिला भी पुरुष के साथ वही व्यवहार करने लगती है जैसा उसने किया था। बात इस पर निर्भर करती है कि प्रभावी (dominant) कौन है।

जो भी प्रभावी है उसके मन में ऐसा धर्म/समाज/संगत/शिक्षा मिलकर डालता है। ये वे लोग भी हैं जो लड़कीं को खुली तिजोरी समझते हैं और हीरा/सोना जैसा बहुमूल्य सम्पत्ति बताते हैं। यही लड़कों के मामले में भी कुछ जगह पर।

अभी हम महिला के विषय में बात करेंगे:

यह क्या चक्कर है? महिला और सम्पत्ति? जी हाँ। भूल गए वह उपन्यास जिसको महाभारत कहा जाता है? भूल गये वह उपन्यास जिसे वाल्मीकि रामायण कहा जाता है?

महाभारत: पांडवों पर धन/सम्पत्ति समाप्त हो गयी। पँचाली को दांव पर लगा दिया।

वाल्मीकि रामायण (पौलस्य वध): राम से अपनी सगी बहन के ऊपर किये गए विवाहित से प्रणय निवेदन के विरोध में अत्याचार और अंगभंग के विरोध में राम की पत्नी का अपहरण क्योंकि राम पर धन नहीं था वनवास के दौरान। एक मात्र सम्पत्ति उनकी सीता ही थी।

अब? सम्पत्ति किसके लिये है? सीधी बात विपरीत लिंग के लिये या समान समलिंगी के मामले में। कारण? प्रजनन की प्रकृति/पृवृत्ति/इंस्टिंक्ट; हर हाल में अपनी सन्तति को उतपन्न करके अपनी प्रजाति को बनाये रखना। उसके लिए अबोध मन मे बना हार्मोनल सिस्टम। जिसे हवस कहिये या lust। दोनो में होता है यह।

बल्कि LGBTQ में भी। वह पृकृति में बस बन गए उसकी (रैंडम) गलती से लेकिन उनका सिस्टम तो समान ही है।

इस पर काबू पाना है तो जंगलवासी बनो, एकांत में रहो। विपरीत लिंग (आकर्षित करने वाला) से मिलो ही मत या फिर मेडिकली (चिकित्सीय रूप से) खुद के भीतर से वह हार्मोन खत्म करवा दो जो विपरीत लिंग (या जो भी लिंग आपको आकर्षित करता हो) के प्रति आपको आकर्षित करते हैं।

या आपके पास धर्ममुक्त/विवाहमुक्त/मुक्तविचार सोच हो जो संयम पैदा करना सिखाती है। अच्छा आहार हो जिनमें हार्मोन न हों। यह सब भी आपको खुद को मजबूत इंसान बनने में मदद करेंगे। अधिकारों और कानून को पढ़ो। जानो। महसूस करो। लड़ो उनके लिये। दूसरों को प्रोत्साहित करो। विपरीत लिंग से जानपहचान करो उनको अपना सच्चा मित्र समझो। बराबरी रखो।

छीन कर नहीं, request से भी नहीं, दूसरे के दिल में आकर्षण पैदा करके उसका दिल जीत लो। फिर चुनते रहिये अपने दिल का राजा/रानी।

जब लगे कि खुद पर काबू नहीं हो रहा और कुछ गलत सा जोर जबरदस्ती जैसा विचार मन में आये (आता है कभी-कभी जब आहार-विहार-संगत गलत हो) तो किसी कोने में जाकर खुद को ठंडा कर लो। ठंडा पानी पियो। नहा लो। अंग विशेष पर ठण्डा पानी डालो। न बात बने तो हाथों से या किसी इसी कार्य के लिये बने उपकरण की मदद ही ले डालो।

खाली इच्छा हो रही है और अंग तैयार नहीं तो अच्छा पोर्न देखो और उसे जागृत करके वही कर डालो जो ऊपर सुझाया था और उसे शांत कर लो। लेकिन इस सेक्स को बलात्कार में बदल कर सभ्य समाज में इसे मुद्दा मत बनाओ। खुद को बर्बाद मत करो किसी और को बर्बाद करके।

मैं जानता हूँ कि सब मेरे जैसे नहीं, इसीलिये सबके लिये उपाय सुझाये हैं। कुछ रह गया हो तो सहयोग करें। सुझाएँ अपने शोध। दूसरों के शोध को अपना बोल कर समय न खराब करें यह भी कहना चाहूंगा।

अपने अनुभवों को ही बताएं तो मदद भी कर सकूंगा। कोई लिंक/सर्वे को मैं धारणा कायम करने का प्रयास भर मानता हूं जो भरोसे लायक नहीं। हर इंसान यूनिक होता है और प्रत्येक के लिए मेरे शोध में जगह है। आपका स्वागत है। ~ शुभाँशु जी 2018©

शुक्रवार, मई 04, 2018

मेरा वर्जित सत्य

मैं 8वी कक्षा से सेक्स के बारे में सब जानता हूँ। पोर्न कुछ किताबों से फिर बाद में 9वी में आकर इंटरनेट पर खुद ढूंढा। बहुत पैसे खर्च किये पोर्न को देखने में। फिर cd ली, फिर dvd, लेकिन मुझे सामान्य पोर्न ही ठीक लगा और मैंने देखा और हस्तमैथुन भी किया लेकिन कभी ज्यादा नहीं किया।

सभी तरह के पोर्न देख कर मुझे कुछ फील नहीं होता है, सिर्फ कुछ मॉडल से ही फीलिंग आती हैं। मेरी पसन्द भी सबकी जैसी नहीं। असली जीवन में भी मुझे केवल कुछ ही लड़कियों से आकर्षण हुआ, हर कोई मुझे महिला ही नहीं लगती। लड़का ही लगती है। कोई-कोई ही होती है ऐसी जिनसे मैं शर्मा जाता हूँ।

तब से अब तक बहुत शोध किया है पोर्न पर लेकिन मेरे भीतर कभी कोई दुर्भावना उतपन्न नहीं हुई। न ही मेरे दोस्तों के मन में। वे सामान्य जीवन जीते हैं। लड़कियों का सम्मान करते हैं और एक मित्र जो 8वी कक्षा से साथ है वह भी मेरी तरह विवाहमुक्त हो गया जब उसको उसकी प्रेमिका ने धोखा दे दिया।

उस समय मेरे सहयोग से उसे उसकी प्रेमिका से मिलाने के भरसक प्रयत्न किए गए लेकिन लड़की चाहती ही नहीं थी उसे पाना, तो सम्भव न हो सका। फिर वह हार कर मेरी बताई बातों पर गौर करने लगा कि मैं क्या कहता रहा उसे हमेशा। उसके बाद उसने मुझसे जानकारी मांगी, मैंने दी और वह धर्ममुक्त और विवाहमुक्त हो गया। ~ शुभाँशु जी 2018©

गुरुवार, मई 03, 2018

विवाह से मुक्ति यानि जीवन में संतुष्टि!

कह दीजिये अपने घरवालों से कि हमको अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने हैं। हम पर जबरन नई जिम्मेदारी (जो अभी है ही नहीं) मत थोपो। ज़िम्मेदारी अपने आप आ जाती है लोगों पर। जबरन ली नहीं जाती। सेक्स की ज़रूरत जिनको है, उसके लिये विवाह कहीं से भी ज़रुरी नहीं।

कानून में कोई भी रोक नहीं कि कोई भी स्वतन्त्र नागरिक परस्पर सहमति से एक दूसरे के साथ संभोग न कर सके। सबको छूट है। चाहे वह कोई रिश्तेदार ही क्यो न हो या कोई समूह ही क्यों न हो। विवाह एक अनुबंध (एग्रीमेंट) है जिसे करने के बाद तोड़ना अपराध है। इसीलिये जब तक दोनो पक्ष राजी नहीं होते तब तक मुकदमा चलता है।

समस्या आती है, बच्चों के पैदा करने पर। तो जो प्रेम को तिलांजलि देना चाहते हैं वे बच्चा कर सकते हैं। बच्चे पैदा होने पर प्यार बंट जाता है और समय के साथ खत्म हो जाता है। यह पृकृति है। उसका काम ही बच्चे पैदा करवाना है। वह हुए और बस आपस में आकर्षण खत्म होने लगता है।

बच्चे न सिर्फ एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी बन जाते हैं बल्कि समाज/राष्ट्र में उनकी अधिकता पालन पोषण की गुणवत्ता में कमी पैदा करती है। परिणाम स्वरूप वे गलत राह पकड़ते है और अपराध जन्म लेता है।

हर गलत व्यक्ति/अपराधी का जन्मदाता एक खराब जोड़ा है जिसने उसे पैदा किया। बच्चे को सज़ा देने का कोई लाभ नहीं क्योकि वह फिर वही करेगा जिसके लिये उसे तैयार किया गया है। प्रोडक्ट खराब हो तो सज़ा प्रोडक्ट को नहीं बल्कि उसके निर्माता को दी जाती है।

हम 150,0000000 से भी ज्यादा (प्रति सेकेंड हजारों की संख्या में बढ़ते और मरते हुए) हो चुके हैं। समाज अपराध और लैंगिक अनुपात की समस्या से जूझ रहा है। संकीर्ण मानसिकता ने लोगों को कुंठित करके ज्वालामुखी भड़का दिए हैं। लीगल पोर्न, सेक्स एडुकेशन और हस्तमैथुन जैसे विषय अभी तक वर्जित हैं। अगर अभी हम विवाह और बच्चो से मुक्ति पाने के विषय में नहीं सोच सके तब प्रेम तो खत्म है ही। हम भी एक दूसरे को नोच कर एक दूसरे को जल्द ही खत्म कर देंगे।

हम जानते हैं कि कुछ लोग सिर्फ माँ-बाप बनने के लिए ही आये हैं। हम उनको नहीं बदल सकते। उनको प्रेम नहीं सिखा सकते उनकी पृवृत्ति ही ऐसी है। इसे natalism की instinct कहते हैं। इनको सिर्फ खेलने के लिये बच्चे चाहिए क्योकि पति दिन भर कमाने में व्यस्त रहता है।

वे कभी देश को निर्जन नहीं होने देंगे लेकिन शायद हम तब जनसँख्या कम करके, रोजगार और संसाधनों को बढ़ा कर प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ा देंगे (क्योकि अभी देश का सीमित धन बहुत लोगों में बंटा हुआ है और आय कम होती है) और यही असफल माता-पिता एक सफल नागरिक का पालन पोषण करके  देश में हम जैसे ज़िम्मेदार लोगो को पैदा करेंगे।

तभी हम एक उत्तम राष्ट्र की ओर बढ़ने में सक्षम होंगे। विजयी मेरा भारत देश! ~ शुभाँशु जी 2018©

समय सत्य को स्वीकारने का है और समाधान ढूंढने का।

गांव में जब शेर आ जाया करते थे तो जंगल की सीमा पर कुछ बकरे बाँध दिए जाते थे। शेर उनको खा कर वापस लौट जाते थे और गाँव सुरक्षित रहता था।

Porn वह बकरे हैं और शेर वह desperate ठुकराए हुए लड़के हैं जिनको संस्कारी लड़कियों ने कभी भाव नहीं दिया। पिता ने और टीचर ने हस्तमैथुन करने को शीघ्रपतन और नामर्दी का कारण बताया। प्रॉस्टिट्यूशन अवैध होने के कारण वहाँ ठगी हो जाती है तो आखिर में वे करें तो क्या करें?

पिछली post में हमने हस्तमैथुन के लाभ बताये थे। इसलिये ताकि जो लोग पोर्न देख कर कामोत्तेजना बढाते तो हैं लेकिन उसे हस्तमैथुन से बुझाते नहीं। इसी कारण पोर्न पर कुछ लोग गलत होने का आरोप लगाते हैं लेकिन सीमित मात्रा में डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक इसको समाज को नियंत्रित करने वाला बताते हैं।

संभोग की क्रिया को अपने जुगाड़, हाथ, सेक्स टॉय से करने को हस्तमैथुन करना कहते हैं। यह एक समान है संभोग के। दिन में 3 बार से ज्यादा करने से अंग दुखने लगते हैं यही वास्तविक सम्भोग में भी होता है।

जिन लोगों को इस पोस्ट से खुद पर नियंत्रण करने का लाभ मिले वह कृपया टिप्पणी में अवश्य बताये। धन्यवाद्! आलोचक कृपया इस पोस्ट से दूर रहें। यह समय आलोचना का नहीं समाधान का है। मुझे चाहिए एक बलात्कार मुक्त समाज। कैसे भी। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुधवार, मई 02, 2018

स्वप्रसंशा: हीन भावना निवारक! आत्महत्या निरोधक!

विशेष: आपको मेरा लहजा स्वप्रसंशा वाला लग रहा होगा। जब आप अगले से कम होते हैं तो हम उसके ऊपर घमण्ड करने का आरोप लगा कर तुष्ट हो जाते हैं। हमें बड़े से बड़ा शख्सियत वाला व्यक्ति एक दम दीन-हीन गिड़गिड़ाने वाली हालत में ही पसन्द आता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि एक घमंडी व्यक्ति भी ऐसे ही देखना चाहता है सभी को। फिर घमंडी/अहंकारी/एरोगेंट कौन हुआ? मैं तो अपने बारे में सत्य लिख रहा हूँ आप पढ़ रहे हैं। फिर भी मैं आपको अगर घमंडी दिखा तो खुद सोचिये कि अगर मैं घमंडी होता तो आपको ज़लील कर रहा होता। जबकि मैं तो आपको अभी तक जानता भी नहीं। फिर आप कोई भी हों, मुझे जब पता नहीं तो क्या फर्क पड़ता है? अपने बारे में एक अकेला रहने वाला इंसान खुद अपनी तारीफ कर भी रहा है तो अच्छा है न! अपनी बुराई वह करे जो बुरा हो।

अगर आप दूसरे को झुका हुआ देखना चाहते हैं तो घमंडी आप हैं। जो सिर उठा के चलते हैं दुनिया उसी के आगे सिर झुकाती है, सम्मान से।

"हमको इतनी शक्ति देना कि जग विजय करें,
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें।" ~ शुभाँशु जी! 💐

हाँ मैं सनकी हूँ। पागल भी हूँ। सत्यवादी ऐसे ही होते हैं।

मैं केवल यूनिवर्सल truth देने का प्रयास करता हूँ। भले ही समझा नहीं पाता कम शब्दों में। लोगों को 3 घण्टे के प्रवचन समझ आ जाते हैं लेकिन मेरी 30 शब्दों की पोस्ट समझ में नहीं आ पाती। इसीलिये कमेंट में चर्चा होने लगती है। मैं कोई आम विषय नहीं उठाता। मैं वह विषय उठाता हूँ जिसे उठाते हुए लोग थर-थर कांपते हैं। ब्लॉक हो जाने से डरते हैं और मित्र खो देने का खतरा उठाने से बचते हैं।

जबकि मैं बस सत्य का पथिक हूँ जो सत्य है वह सुनाता/दिखाता/पढ़ाता रहूँगा। शायर भी हूँ, गीतकार भी, लेखक और उपन्यासकार भी, वैज्ञानिक भी हूँ और आविष्कारक भी (अभी पेटेंट नहीं) कवि भी हूँ और विश्लेषक भी, लेकिन आपको मैं बस वही दिखाता हूँ जो कड़वा लगे क्योकि सत्यवादी जो ठहरा। इसलिये आप यह सब अनदेखा कर देते हैं और बस एक शब्द आपको याद रहेगा कि मैं सनकी हूँ। ~ शुभाँशु जी 2018©

जनसँख्या विस्फोट: एक सच्चाई और एक अभिशाप

क्या विवाह और बच्चे न करने से यह ग्रह निर्जन हो जाएगा? यह समय पर छोड़ दीजिये। कोई परफेक्ट नही होता। सभी कभी एक से नहीं होते। यह बहुत आदर्शवाद की स्थिति है कि सब एक सा सोचे। कुछ लोग प्रेम नहीं करना चाहते, इसलिये ही विवाह करते हैं। उनकी ज़रूरतें पूरी हो जाएं बस। वही जनसँख्या बढ़ाते हैं। प्रेमी तो जान दे देते हैं। उनके वंश नहीं चलते।

सवाल तो यह है कि क्या अगर हमने जनसँख्या को न रोका तो क्या यह ग्रह निर्जन नहीं हो जाएगा? ~ शुभाँशु जी 2018©

बिखरे पन्ने: मौत को शह और मात: Shubhanshu

मैं कुछ महान लेखकों की लंबी पोस्ट पढ़ कर कई बार गद गद हो जाता हूँ कि कितना ज्यादा डेटा हैं इनमें। फिर खुद को याद करता हूँ, जैसे मेरा सीधा FB पर पोस्ट फायर करना। बिना ज्यादा मसाले, डेटा और लम्बज्ञान के। मैं कस्टमर केयर जैसा महसूस करता हूँ। मेरी हर पोस्ट पर "शुभाँशु जी हाय-हाय" के नारे लग रहे होते हैं, लोगों को लम्बी बहस में छोटी-छोटी बातें समझानी पड़ती हैं तब उनमें से डायरेक्ट फायर होती है नई पोस्ट। उसी को उठा कर पोस्ट कर देता हूँ। 

अनायास ही नित नई जानकारियां फूटती हैं और नया बाग तैयार होता है। मैं कोई किताब नहीं पढ़ता, कोई नेट पर ज्ञान नहीं खोजता, कोई ज्ञानी व्यक्ति सम्पर्क में नहीं है जिससे सवाल पूछता हूँ। यह ज्ञान कैसे, किधर से निकलता है, मुझे खुद पता नहीं। बस जवाब हाज़िर होता है हर उचित सवाल के साथ और मैं दे देता हूँ। जितनी तेजी से आपको मेरे जवाब मिलेंगे, उतनी तेजी से बहुत कम लोग खुद मुझे जवाब दे पाते हैं।

मैं कोई स्कॉलर नहीं रहा था। मैं अपनी कक्षा का सबसे मूर्ख और दयनीय छात्र रहा हूँ। मुझे कहा गया था कि मैं कभी हाईस्कूल पास नहीं कर पाऊंगा और मैं कर भी नही पाया। फिर एक दिन जोश चढ़ा। मैंने चुनौती स्वीकार की। फिर से पढ़ाई की और पास हो गया। फिर अगली कक्षा में लुढ़क गया। फिर दया की भीख से अगली कक्षा में सरकाया गया। फिर इंटरमीडिएट में अनुत्तीर्ण हो गया। 

लगा जैसे पढ़ाई मेरे लिये बनी ही नहीं। फिर भी हार नहीं मानी। दो बार ज़हर खाया। फिर भी बच गया। किसी को पता भी नहीं चला। मैं ज़हरबुझा हो गया। इससे पहले के भी भयंकर किस्से हैं। 9 माह की उम्र में बिजली के झटके से मौत हुई, वापस जीवित हुआ, मोटरसायकिल दुर्घटना में बाल-बाल बचा। चलती ट्रेन से लटक कर मरते-मरते बचा, साला कुछ था ऐसा जो मरने ही नहीं दे रहा था।

फिर मैंने सोचा कि शायद मैं गलत कर रहा हूँ। इसलिये सही करने की सोची। सोचा मुझे हर बार दूसरा मौका मिल रहा है। लग जाओ काम पर। लग गया। पास हो गया इंटरमीडिएट में। फिर तो पहाड़ तोड़ डाले। आगे की पढ़ाई में धुआंधार पास होता गया। डिप्लोमे किये तो सबमें top मारा। सोच रहा था कि क्या मैं इतने आगे के लिये बना हूँ? क्या इसलिये बेसिक में कमज़ोर रह गया?

इसी दौरान पेचिश की बीमारी हो गई। हफ्ते भर व्यस्त रहने के कारण ध्यान नहीं दिया। बढ़ कर खूनी पेचिश हो गई। लगा जान निकल जायेगी। डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने 3000 की दवा और टेस्ट लिख दिये। मेरे पास इतना पैसा नहीं, हिम्मत नहीं और समय भी नहीं था। सोचा, अभी तो बहुत लोग मुझे चाहने लगे हैं। अभी मरना उचित नहीं। इसलिये डॉक्टर के पास दोबारा गया। कहा कि मुझे अभी ठीक करो। मेरे पास यह आखिरी रात है।

डॉक्टर ने मेरी आँखों में सत्य देखा और पर्चे की दवाई काट दी। पूछा कि इंजेक्शन लगवा दूँ? मैंने कहा कि नेकी और पूछ पूछ? डॉक्टर ने 4 इंजेक्शन लिखे। दाम सिर्फ 20 रुपया। उन्ही के अस्पताल में दूसरे डॉक्टर ने डराते हुए इन वेन में इंजेक्शन लगाया। धीरे-धीरे...उंगलियां हिलाते रहना, पलकें झपकाते रहना...हो गया। सवेरे तक मैं बेहतर था। अगले दिन एक और इंजेक्शन लगवाया और बस चंगा हो गया। 2 इंजेक्शन रखे-रखें खराब हो गए और मैं निकल आया इस बवाल से।

परास्नातक के दौरान और बुरा हुआ। शाहजहांपुर के गांधी-फैज-ए-आम कालेज में 2 वर्ष में 2 बार डेंगू बुखार हुआ। 5 दिन में अपने तरीके से और डॉक्टर के तरीके को मिला कर ठीक हो गया। इतनी fast recovery कि डॉक्टर को लगा कि कोई गड़बड़ है, कहा कि आप अस्पताल में भर्ती हो जाओ। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब जूलॉजी पढ़ रहा हूँ, अपना ध्यान रख सकता हूँ।

रख भी लिया। पैर जवाब दे गए थे फिर भी किसी को पता तक न चला कि इस लड़के के भीतर सिर्फ 50000 प्लेटलेट्स बची थीं। प्लेटलेट्स काउंट 3 दिन में 4 लाख तक पहुँच गया। कोई मानता नहीं था। सब रिपोर्ट मांगते थे कॉलेज में। लेकर गया। सब हतप्रभ। कोई बोला नकली रिपोर्ट होंगी। मैंने सीखा कि सफ़ाई चाहे जितनी दीजिये वह अगले के अविश्वाश को खत्म नहीं कर सकती।

कालेज के पास नाला था। दिन में भी मच्छर काटते थे। फिर काट लिया अगले वर्ष भी। इस बार कॉलेज ही चला गया। पहली रिपोर्ट लेकर। सबने देखा कि यह मुर्दा दौड़ कैसे रहा है?

रोज शाम को खून की जांच होती और सुबह वह कॉलेज में। सबने देखा कि मैं फिर से 3 दिन में रिकवर हो गया। लैब वाले sir ने एक दिन प्लेटलेट्स काउंट करना सिखाया। सबको अनीमिया निकला। लड़कियों मे ज्यादा और लड़कों में कम। मेरी बारी आई। sir ने 3 बार चेक किया। 3 बार खून निकाला सुई भोंक कर के फिर भी यकीन नहीं आया कि इस लौंडे में पूरी क्लास से ज्यादा खून कैसे। बचे sir जी। उनको भी एनीमिया निकल आया। शर्मिंदा हो गए। मैं तो जैसे साइंस एक्सपेरिमेंट हो गया। अजूबा।

इसी तरह के न जाने कितने किस्से हैं। जो याद आया, धाराप्रवाह लिखता चला गया। पता नहीं क्यों लिखा? बस लिख दिया। दिल में आया और उंगलियों ने छाप दिया। वैसे भी मैं कोई पोस्ट सोच समझ कर लिखता भी नहीं। सोचता तो आप आज मुझे जानते भी नहीं। ~ शुभाँशु जी 2018©

बुद्धत्व: 10 जन्मों का निष्कर्ष?

बुद्ध एक अवस्था है। जिसे बुद्धत्व कहते हैं यह सिर्फ एक कल्पना है। कोई नहीं जानता कि उसका पिछला जन्म क्या था। जितने भी केस हैं वे सभी पिछड़े इलाके के हैं और जिनको इसके लिये ही तैयार किया जाता रहा है। लॉजिक ही नहीं है तो कुछ सम्भव ही नहीं। सब फेक है।

इंसान धर्म के लिए क्या नहीं करता। मुस्लिम उग्रवादी आत्महत्या कर लेता है। सिख फांसी चढ़ जाता है। यहूदी शूली चढ़ जाता है। हिन्दू सती, जीभ काट देता है, भूत चढ़ने के ढोंग करते हैं, मुस्लिम जिन आने के ढोंग करते हैं। लेकिन बन्दूक दिखाओ तो हाथ ऊपर। ~ शुभाँशु जी 2018©

बलात्कारी समाज की पहचान

विदेशों में लड़कियाँ छोटे और चुस्त कपड़े इसलिये पहनती हैं क्योंकि वहाँ के लड़के उनको भाव नहीं देते। उनको आकर्षित करने के लिये वे नग्न तक होना चाहती हैं। दरअसल वहाँ अधिकतर लड़के विवाह के खिलाफ हैं और पोर्न तथा सेक्स टॉय से अपनी कामोत्तेजना को शान्त रखते हैं।

इंटरनेट पर जो आंकड़े बलात्कार के देखने को मिलते हैं वे सभी ज्यादातर झूठे होते हैं क्योंकि असली बलात्कार में प्रायः हत्या ही कर दी जाती है सज़ा से बचने के लिये। अधिकतर बलात्कार के मामले पैसे हड़पने के या विवाह का दबाव डलवाने के लिये किये गए प्रयास या बदला होते हैं।

असली बलात्कारी कभी पकड़े ही नहीं जाते हैं। इसीलिए वे कुछ लोग बलात्कार करते ही रहते हैं। हम समाज में महिलाओं के अज़ादख्याली होने के स्तर से ही समाज में पुरुषों की हवस की मात्रा जान सकते हैं।

जितना ज्यादा बदन ढका होगा, उतना ही महिला को पुरूष से बलात्कार का खतरा होता है, इसी आधार पर कोई महिला खुद को खुला या ढका रखती है। ~ शुभाँशु जी 2018©  2018/05/02 04:51

मंगलवार, मई 01, 2018

विकास का पिता: मजदूर

अगर श्रमिक नहीं होते तो हम आज बंगलों में न बैठे होते। कारें, बसें, इमारतें, सड़के, खेत सिर्फ पत्थरों पर बने होते कोयले से या कंदराओं में, गुफाओं में। क्योकि कागज और कलम भी तो किसी मजदूर की मेहनत से ही बनती है।

मजदूर/श्रमिक हैं तो विकास है, प्रगति है। यह छोटा पेशा नहीं है। इसे सभी को अपनाना चाहिए। इसकी तनख्वाह/वेतन भी ऊंचा होना चाहिए और इसे भी सामान्य नौकरी की तरह समझना चाहिए।

उत्तम विश्व निर्माण में यही पसीने से दुर्गंध मारता असभ्य सा दिखने वाला इंसान ही सभ्यता को यथार्थ में बदलता है। जिसकी सुगंध लिए हम वर्षों तक अपनी धरोहरों पर गर्व करते फिरते हैं। इसलिये एक् श्रमिक/मजदूर को सम्मान से देखो।

मैं आज भी मजदूर बनना गौरव की बात समझता हूँ क्योंकि एक यही ऐसा पेशा था जिसने मुझे शून्य से अनन्त तक पहुचने का रास्ता दिया क्योंकि मैं न तो कभी पूंजी लेकर आया था और न ही भीख मांगने की हिम्मत थी मुझमें। आज एक मई 2018 को मैं शुभाँशु अपने मन की बात इस विषय पर पहली बार आपके समक्ष रख रहा हूँ। उम्मीद है कि आप समझेंगे। नमस्कार! ~ शुभाँशु जी 2018©