Zahar Bujha Satya

Zahar Bujha Satya
If you have Steel Ears, You are Welcome!

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शुक्रवार, जून 29, 2018

क्या है अवयस्कता और अश्लीलता

भारतीय कानून में महिला के चूचुक (nipple), योनि, पुरुष के लिंग को obseen (18+) माना जाता है। इसी कारण इनको दिखाने की अनुमति बच्चों के सामने (सार्वजनिक स्थानों में जहाँ अवयस्क आ सकते हैं) नहीं दी जाती।

जैसे कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंन्त्रता, देशद्रोह, समानता का अधिकार, स्त्रियों के लिये एक पक्षीय कानून, स्वएच्छिक समलैंगिकता, पुरुष बलात्कार को अनदेखा करने इत्यादि में मतभेद और विसंगति है वैसे ही यह भी है। बिना किसी कारण के इसे कानून में रखा गया है। इसलिए जब लोग इसका विरोध करेंगे तो यह हट जाएगा।

बच्चे क्यों नहीं देख सकते वह जो उनके पास भी है, यह समझ से परे है। लेकिन वह हैं न कि वर्चस्व उन्हीं का होता है जो संख्या में ज्यादा होते हैं न कि बुद्धि में। 96% मूर्ख दुनिया चला रहे हैं और 4 प्रतिशत मेरे जैसी पोस्ट बना रहे हैं। नमस्कार। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

मैं हूँ पृथ्वीवासी

मुझे लगता है भारत के लोग एक दूसरे से ही इतनी नफरत करते हैं कि उन्होंने अपने-अपने प्रान्त/क्षेत्र में पैदा होने के जैसे तुच्छ कार्य को ही गौरव का विषय बना लिया है। यही बात आपने फ़िल्म चक दे इंडिया में भी देखी थी। उसका कोई असर भारतीयों पर नहीं पड़ा। बल्कि अब तो वह अपनी DP भी अपनी जाति, धर्म व स्थान पर गर्व करने को लेकर समर्पित करे दे रहे हैं।

क्या हम कभी भारतीय नहीं बनेंगे? क्या पाकिस्तान, तेलंगाना, नेपाल, भूटान, उत्तराखंड, पश्चिम-पूर्व उत्तरप्रदेश आदि जैसे तमाम टुकड़े होते रहेंगे? खालिस्तान, हरिजनिस्तान आदि कितने टुकड़े करने पर लोग आमादा हो रहे हैं?

मैं तो यह भी नहीं चाहता था कि पृथ्वी पर कोई सरहद भी होती। मैं खुद को भारतीय कह सकता हूँ जब मैं दूसरे देश में हूँ तो लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा हूँ उस दिन का जब इंसान अपनी गलतियों को सुधार लेगा। जनसँख्या कम करके धर्ममुक्त, विवाहमुक्त, सन्तानमुक्त (जब तक जनसंख्या नाजुक स्तर पर न पहुंचे), Vegan और तर्कवादी बन जाएगा, तब मैं गर्व से कह सकूँगा कि हाँ मैं पृथ्वीवासी हूँ। ~ Vegan, Religion free, Rationalist, Antinatalist (child free), marriage free Shubhanshu Singh Chauhan

बुधवार, जून 27, 2018

सही कहा न?

हम किसी को नही बदल सकते। जिनको बदलना है वे हमारे विचार पढ़ कर बदल जाएंगे। कुआ प्यासे के पास नहीं जाता। हम तो मस्त हैं। दुनिया पस्त है। ज़रूरत है तो वह हमारे पास आएगी।

मुझे लोगों के लिये नहीं बदलना। लोगों को बदलना है तो मुझे देख के बदल जायें या तेल लेने जाएं। हम किसी को चम्मच से नहीं खिला सकते। सही कहा न? ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free 😀

कश्मीर जी और शुभाँशु जी

आप सभी को बड़ी मेहनत से मुफ्त में जानकारी दी जा रही है तो जो आपको अपने काम की लगे, लीजिये और बांटिए। कश्मीर जी व्यक्तिगत तौर पर कुछ भी हों लेकिन वे केवल पुस्तकों में लिखे सत्य को सामने लाते हैं जिसको कोई प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं। सहमत हैं तो बस छोटा सा प्रोत्साहित करता हुआ रिप्लाई कर दें। काफी रहेगा। प्रमाणित बात को बहस का मुद्दा न बनने दें। संशय होने पर उनसे सन्दर्भ मांग लें।

मैं काश्मीर जी से मेरे एक पुराने fb मित्र Shailendra Kumar जी के द्वारा तब परिचित हुआ जब मेरा एक नास्तिक समूह के एडमिन के गाली देने पर उसकी रिपोर्ट दूसरे एडमिन से करने पर मुझे बहुत ज्यादा गाली गलौच करके जान से मारने की धमकी देने और ग्रुप से निकालने की धमकी देने पर मुझे ग्रुप छोड़ना पड़ा था। उस दौरान मुझे शैलेंद्र ने इनसे मिलने की सलाह दी कि इनसे मिलिए यह उन एडमिन की तरह पक्षपाती नहीं हैं। तब उनके द्वारा दिये गए लिंक से मेरी इनसे भेंट हुई।

कुछ दिनों बाद पता चला कि इनको भी वही झेलना पड़ा जो मेरे साथ हुआ था उस समूह में। तब हम दोनों ने स्क्रीनशॉट एक दूसरे को दिखाए एडमिनिस्ट्रेशन के और तब हम लोगों को एक दूसरे से सहानुभूति भी हो गई। 

Kashmir जी ने अपनी एक वेबसाइट मेरी जानपहचान के बाद बनाई dharmamukt.in.

मुझे उन्होंने इसमें लिखने के लिये आमंत्रित किया। हम दोनों के लेखन में ज़मीन आसमान का अंतर था इसलिये एक ही वेबसाइट पर दोनो का लेखन उलझन पैदा करने लगा। इसलिये मैंने अपनी एक अलग वेबसाइट बनाई और कश्मीर जी ने मुझे अपना डोमेन देकर दोस्ती बनाये रखी।

इसलिए मैंने जो वेबसाइट बनाई उसका नाम zaharbujhasatya.dharmamukt.in पड़ा। ज़हरबुझा सत्य मेरा चुनाव था और धर्ममुक्त.इन मुझे कश्मीर जी ने दिया। मैं सामाजिक/वैज्ञानिक/व्यंग्य/लेख/निबंध/कथा आदि समस्त विषयों पर लिखता हूँ इसलिये मेरी अलग वेबसाइट होना बहुत ज़रूरी था और यह हो भी गया। धन्यवाद कश्मीर जी।

मेरा और कश्मीर जी का बस दोस्त जैसा रिश्ता है जैसा आपसे है। हम दोनों धर्ममुक्त के सिद्धांत पर एक समान हैं इसलिए दोस्त बने। न वे मेरे गुरु है और न मैं उनका। हम सहयोगी हैं बस। हम दोनों बाकी बहुत जगह पर अलग और भिन्न सोच वाले हैं लेकिन एक दूसरे को बदलने की कोशिश नहीं करते। एक दूसरे को चेताते/सावधान ज़रूर करते हैं लेकिन अंत में वही करते हैं जो मन करता है। कोई बाध्यता न मैं लगाता हूँ और न वे।

मेरे और उनके व्यक्तित्व/व्यवहार बिल्कुल अलग हैं जिनके लिये हम खुद ज़िम्मेदार हैं। कृपया हम लोगों को एक सा समझ कर अपनी मूर्खता का परिचय न दें। हर इंसान अपनी खूबियों और कमियों के साथ पैदा होता है जिससे सभी लोग समर्थन नहीं भी रखते हैं। यह मौलिकता ही हमें किसी को याद रखने में मदद करती है।

अतः सभी से निवेदन है कि सभी लोग खुद को समझदार समझें और एक दूसरे को व्यक्तिगत तौर पर हमारे बारे में फालतू बोलने और सोचने पर रोकें, समाज सुधार पर ध्यान दें। न कि अपनी बहन/बेटी के लिये हमसे रिश्ता जोड़ने के लिये व्यक्तिगत चरित्र प्रमाणपत्र देने लगें। वैसे भी वे शादीशुदा बीवी/बच्चेधारी हैं और मैं विवाहमुक्त डेटिंग/लिवइन समर्थक। धन्यवाद।

आशा करता हूँ कश्मीर जी भी मेरी इस बात से सहमत होंगे। आपका प्रिय Mr. Shubhanshu Singh Chauhan, Vegan, Non Religious (धर्ममुक्त)। M.Sc. Zoology, DFD, PGDM, PDCA

Veganism एक धर्ममुक्त/तटस्थ जीवनशैली है ~ Shubhanshu

वीगनिस्म को लोग हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख धर्म से जोड़ कर देख लेते हैं, जबकि कोई भी हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख vegan नहीं होता। वो lacto-ovo-honay-vegetarian होते हैं। अर्थात dairy, honey और eggs को वनस्पति अधारित भोजन के साथ खाने वाले।

जबकि धर्म के नज़रिए से देखा जाए तो मांसभक्षियो में सिख, मुस्लिम, ईसाई, पारसी इत्यादि आते हैं। शाकाहार एक सर्वाहारी प्रकार की diet है जबकि वीग्निसम एक जीवनशैली है जिसमे herbivores diet सिर्फ एक भाग है जो ये भी साबित करती है कि मनुष्य का सर्वाहारी होना एक मिथक है।

मनुष्य पूरी तरह स्वस्थ√ और लम्बा यौवन भरा* जीवन जी सकता है अगर वह इसे जल्दी ही अपनाता है अर्थात, 30 साल की उम्र से पहले। मैंने 10 वर्ष की उम्र में अपनाया।

उसके बाद अपनाने में जो carsinogens, bad cholesterol, hormones etc मजबूती और गहराई से जमा हो चुके होते हैं उनको हटाने में बहुत देर हो सकती है। तब तक शायद वे अपना काम कर जाएं।

साथ ही

1. क्रूरता मुक्त जीवन शैली।
2. खुद को जानवरों के साथ जोड़ने का आनंद, जैसे आप अपने कुत्ते को प्यार करते हैं।
4. जियो और जीने दो के सिद्धांत के पालन का सुख।
5. जानवरों को वस्तु न समझ कर मित्र समझने का सुख।
6. उनका शोषण रोकने में, जैसे तांगा, बैल गाड़ी इत्यादि।
7. उनका फर, चमड़े, और भोजन (जैसे शहद, दूध इत्यादि) को न लेना।
8. Dairy उद्योग नर बछड़े के हिस्से का दूध छीन कर उसे मार देने का और जानवर के साथ बलात्कार तथा अत्याचार का प्रमुख ज़िम्मेदार है।

√क्योकिं arteries में cholesterol ही अवरोध पैदा करता है और ह्रदयघात का मुख्य कारण है। सभी के मांस, अंडे और दूध में carsinogens और cholesterol पाए जाते हैं, जो कैंसर, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, गठिया और अन्य लाइलाज बीमारियों का जनक बनता है। जबकि वनस्पति जगत इन सब से मुक्त है।

*क्योकि फ्री रेडिकल जो बूढ़ा बनाता है, उसे नष्ट करने वाला एंटीऑक्सीडेंट केवल वनस्पतियों में ही पाया जाता है।

- एक खास post उनके लिये जिनको वीगनिस्म धार्मिक लगता है। vegan नास्तिकों से जुड़ने के लिये vegan atheist ग्रुप join करें। Shubhanshu

विज्ञानवादियों के लिये चेतावनी ~ Shubhanshu

मेरे Scientific Method Friends♀ आपको एक गहरी सलाह। आप किसी से अनर्गल बहस न करें। आपकी सोच को चोट लगी तो उलझ जायँगे और फिर भटक सकते हैं।

अग्नोस्टिक लोग आपको Atheist or Theist or Rational बन कर मिल सकते हैं और वे आपका समय खराब कर सकते हैं, उल्टे सीधे ट्रिक प्रश्नो से जिनको इनके आकाओं (तथाकथित आध्यत्मिक गुरु) ने बहुत मेहनत से तैयार करके दिया है। उनमें आप उलझ जाओगे। वह कुछ साबित नहीं करेंगे। बस कह देंगे कि कोई है और आप सारा घर छान मारोगे और वे कहते रहेंगे कि है कोई, ढूँढो।

वे बैठे रहेंगे लेकिन आप की घुइयां बिक जाएंगी, उसे ढूंढते-ढूंढते। यही है सन्देह पैदा करो की नीति। चक्रव्यूह वाली नीति। जिससे आज तक आस्तिकता जीतती आई है और परोपकारी नास्तिक उनकी मदद करने के बहाने बर्बाद होते रहे हैं।

वे पूछेंगे कि ब्रह्मांड कैसे बना?

आप कहोगे कि बिग-बैंग या स्ट्रिंग सिद्धान्त से लेकिन वे कहेंगे कि यह तो सिद्धान्त है। क्या सुबूत है कि ऐसा ही हुआ था?

आप फिर उलझ जाओगे और आपके मन में भी यह लोग सन्देह पैदा कर देंगे, क्योकि हम लोग भूतकाल में जाकर कुछ नहीं देख सकते।

ये फिर कहेंगे कि यह दुनिया अपने आप कैसे चल रही है? जीवन-मृत्यु क्यों हो रही है? नए जीव जंतु, पृथ्वी का घूमना, सुबह, शाम का होना कैसे है?

आप इनको गुरुत्व का सिद्धांत बताओगे तो वे कहेंगे कि यह भी क्या सत्य है? क्या पता यह घनत्व हो? सूर्य चन्द्र वैसे न हों जैसा विज्ञान बताता है। क्या पता यह सब झूठ हो? आपने थोड़े ही जाकर देखा है उपर अंतरिक्ष में। फिर आपको सन्देह उतपन्न हो जाएगा क्योकि आप ऐसे ही नासा के यान में नहीं जा सकते।

गए भी तो वह कहेंगे कि आप झूठे हो। उन्होंने (नासा) आपको खरीद लिया है और आप उनकी बोली बोल रहे हो। सब सुबूत नकली हैं। आप फिर से हताश हो जाओगे।

फिर वह कहेंगे कि शरीर से ऐसा क्या निकल जाता है (जबकि शरीर स्वस्थ हो) जिससे मृत्यु हो जाती है?

यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रश्न है। आप ऐसे ही इसका उत्तर नहीं दे सकते। यह प्रश्न ही गलत है क्योकि पूछने वाले को पता ही नहीं है कि मस्तिष्क की मृत्यु ही असली मृत्यु है। मस्तिष्क में कोई समस्या होने पर मृत्यु हो सकती है या बूढ़ा शरीर दिमाग को रक्त भेजने में असमर्थ हो जाये तब भी।

पूछने वाला पहले से आत्मा की अवधारणा से ग्रस्त है। वह बस आपके मुहँ से यह निकलवाना चाहता है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हैं। आत्मा जैसा कुछ होता तो हमारा शरीर कभी मरता ही नहीं। जैसे आत्मा मृत शरीर में घुस कर उसको जीवित कर देने का कथित गुण रखती है उस प्रकार तो आत्मा को स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए। जबकि खून बहने, ज़हर से शरीर क्षतिग्रस्त होने भर से मृत्यु हो जाती है।

कुछ लोग कोमा में लकवाग्रस्त होकर वर्षों तक जीवित रहते हैं लेकिन उनकी कथित आत्मा उनका साथ नहीं छोड़ती। 4 हाथ-पैर से लाचार लोग भी पूरा जीवन जीते हैं। इस हिसाब से आत्मा बेकार के शरीर को छोड़ देती है जैसी अवधारणा भी समाप्त हो गई।

अतः शरीर के कमजोर होने से या क्षतिग्रस्त होने से ही मानसिक मृत्यु हो सकती है। हेड ट्रांसप्लांट के ज़रिये यह बात भी साबित हो रही है कि हम सिर्फ दिमाग ही है और हम शरीर बदल सकते हैं यदि अनुकूल उपकरण और तकनीक उपलब्ध हो।

लेकिन इतना ज्ञान इन अनपढों के पास नहीं होता इसलिये आप इनको कितना भी समझा लो वे कहते रहेंगे, "क्या? कुछ समझ में नहीं आ रहा।" कोई लिंक देंगे तो भी इनका वही जवाब होगा कि कुछ समझ में नहीं आया। दरअसल यह वह सब पढ़ते ही नहीं। उनको थोड़े ही बदलना है खुद को। वे तो आपको तोड़ने आये हैं।

दीवार पर सिर मारने से दीवार को चोट नहीं लगती। शायद आप समझ गए हों। बाकी आपकी मर्जी। सत्यमेव जयते!

♀ Scientific Method (वैज्ञानिक विधि): देखें विकिपीडिया। जिसने इसे जान लिया समझो दुनिया को जान लिया। गहरा राज़ है जो आपको बता रहा हूँ क्योंकि आपसे कुछ उम्मीदें हैं। मानवता को बचाने की। मैं तो मस्त हूँ। नमस्ते। ~ Mr. Shubhanshu Singh Chauhan Vegan Dharmamukt (Religion Free)  2018/06/27 03:24

सफेद कपड़े का रहस्य ~ Shubhanshu

नेता जनता को पति समझ कर उसकी सेवा करने का संकल्प लेता है। लेकिन ज्यादातर मामले में जनता मर जाती है।

उसपे मारने का आरोप न लगे इसलिये पहले से विधवा बना घूमता है।

अब कोई मुझे, सच्चाई, पवित्रता, सादगी, ईमानदारी, शांति का रंग सफेद मत बताने लगना नहीं तो अच्छा नहीं होगा। नेता ऐसे नहीं होते। हाँ ये और बात है कि कायरता यानी संधि का रंग भी सफेद होता है यह हम मानते हैं। ~ Mr. Shubhanshu 2018©

मंगलवार, जून 26, 2018

आह्वान ~ Shubhanshu

पूर्व में हुए महान लोगों की उपलब्धियों को देखते हुये लगता है कि इनके जितना कर पाना सम्भव नहीं है। लेकिन ये तो मुझे भी स्कूल देख के लगा था कि इसे पास कर पाना सम्भव नहीं है। पहाड़ देख कर कभी नहीं लगता कि हम कभी इस पर चढ़ भी पाएंगे लेकिन पता भी नहीं चलता कब पार कर गए हम उसको।

अतः मान लीजिये कि पहले वाले लोगों ने कुछ ज्यादा नहीं कर पाया तभी तो हम आज भी दुःखी हैं। आप और हम मिल कर उनसे भी बड़े महापुरुष/महास्त्री बन कर दिखलायेंगे। आ जाओ इस अघोषित प्रतियोगिता में। छोड़ दो घर-बार घर-गृहस्थी। हो जाओ आज़ाद और निकल पड़ो, कलम और कागज लेकर अपना जीवन बदलने। विचार बनाये मानव, मानव बनाये दुनिया। विचार बनाये दुनिया।

कहीं ठोकर खाना तो मुझे खूब गालियां देना लेकिन कुछ बन जाओ तो मेरा नाम न लेना। अपनी ही शक्ति से तुम कुछ पा लोगे। मेरे नाम से सब खो जाएगा। सब तुम्हारा होकर भी मेरा हो जाएगा। तुम सब पाकर भी खो दोगे। मुझ को मील का पत्थर समझो और भूल जाओ।

तुम अपना जीवन लाये थे उसे जी जाओ। इस असली ज्ञान को पी जाओ। छोड़ो आलस, और अपने चाहने वालों को, जियो अपने सपने अपने ही दम पर। आओ, निकलो घर से, निकलो समाज से, अकेले हो जाओ। दुनिया तुमको ढूंढेगी, तुमसे मिलना चाहेगी। अभी कुछ नहीं हो तुम तब बहुत कुछ होंगे। अभी बुद्धू हो तुम, तब बुद्ध होंगे। ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion Free, आह्वान एक नए युग का, आह्वान एक नए जीवन का, आह्वान एक नई सदी का। 🙆

शनिवार, जून 23, 2018

मैं हूँ अंक 1 ~ Shubhanshu

जानिए कि क्यों हूँ मैं सँख्या क्रमांक 1:-

1. यह डिजिटल दुनिया है।

2. यह कंप्यूटर की बाइनरी भाषा में लिखी गयी है।

3. इस भाषा में 0 और 1 का ही प्रयोग सब कुछ बनाने में किया जाता है। बाइनरी मतलब 2 अंक।

4. 1 का अर्थ होता है on यानी yes और 0 का अर्थ होता है off यानी no.

5. वास्तविक दुनिया में yes मतलब सकारात्मक (positive) और no मतलब नकारात्मक (negative).

6. सकारात्मक विचार नकारात्मक से 1000 गुना शक्तिशाली पाया गया है। इसी को आशा कहते हैं और यह ही हमको जीवित रखती है। सुना होगा कि उम्मीद पर दुनिया कायम है।

7. मैं positivist हूँ अतः सकारात्मकता वादी (तर्कवादी), परफेक्शनिस्ट भी इसलिये मेरे लिये इस बाइनरी भाषा वाली दुनिया के लिये 1 अंक उचित है।

8. शून्य (0) बर्बादी का प्रतीक है। विनाश का प्रतीक है। 1 का मतलब सृजन है। मैं बनाता हूँ इसलिये मेरे लिए यह 1 उचित लगा खुद को दर्शाने के लिये।

~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Religion free 2018©

माफ़ करना! जीरो नहीं हूँ मैं।

एक हाल ही का अनुभव बताता हूँ। मुझे fb ने कुछ लोगों के नाम सुझाये जिनके प्रोफाइल में लिखा था "शून्य हूँ मैं या जीरो हूँ मैं" आदि। मुझे लगा कि बेचारे सीधे हैं सच में। मैंने इनको लिस्ट में जोड़ लिया।

अब इनकी post देखीं। सभी में यह खुद को सर्वे सर्वा बता रहे थे। इनकी सोच अंतिम सोच होती है। इसके आगे कोई सोच ही नहीं सकता ऐसा महसूस हुआ।

इनकी व्यवहार शैली भी एक समान मिली। मेरे fb app में जब कोई दूसरा कमेंट करता है जब मैं लिख रहा होता हूँ तो सारा लिखा हुआ गायब हो जाता है। इसलिये मैं एक दो वाक्य लिखते ही या जैसे ही कोई कमेंट लिख रहा है का संकेत आता है तो मैं लिखा हुआ ही पोस्ट कर देता हूँ। इसको ये लोग कहते हैं कि मैं उत्तेजित हो गया हूँ या दूसरे को मौका ही नहीं देता हूँ। धैर्य नहीं है मुझमें आदि तमाम व्यक्तिगत आक्षेप लगा देते हैं।

खुद मेरे एक भी विचार को like  नहीं करेंगे, टिप्पणी तभी करेंगे जब अपमान करना हो और भाषा में आप ज़रूर होगा लेकिन लहज़ा बार बार आप के ऊपर हंसने वाला, मजाक उड़ाने वाला होगा। फिर सोचता हूँ कि वह जीरो कैसे आया इनके दिमाग में।

दरअसल इनको इनके घमण्ड के चलते सब लोगों ने डांटा है कि आप अपने को समझते क्या हैं? आप कुछ नहीं हैं! आप जीरो हैं।

बस इन्होंने यह ताना इतनी बार सुना कि सुधरने के स्थान पर खुद को ही जीरो का टैग लगा दिया। अब लोग इनको बोलेंगे जीरो, तो ये कहेंगे कि हां वे तो पहले से ही लिखे हुए हैं। यह घमण्ड और खुद को सर्वेसर्वा समझने की निशानी है कि कोई खुद को शून्य लिखे।

खुद को अहं बृहमास्मि कहने वाले जानते हैं कि यह सच नहीं इसलिये विनोदी व्यवहार के लिये ऐसे शब्द प्रयोग करते हैं जिनसे खुद के लिए आदर का भान होता है। लेकिन वे दिल के साफ होते हैं। उनसे आप कहेंगे कि आप कुछ नहीं हैं तो वे कहेंगे कि आप सिखा दीजिये।

आगे से खुद की तारीफ करने वाले अकेले पड़ गए लोगों को गलत मत समझियेगा क्योकि वे अपनी तारीफ इसलिये करते हैं क्योकि कोई और नहीं करता।

लेकिन जो खुद को कमतर और नीचा दिखाते हैं वे दरअसल बेशर्म होते हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या कहा जायेगा इसलिये वे खुद को ढीठ बनाने के लिये पहले ही वह लेबल लगा लेते हैं।

मैं किसी का नाम नहीं लिख रहा लेकिन देखना उनकी ईगो उनको यहाँ खींच लाएगी। वह सुना है न, चोर की दाढ़ी में तिनका। 😀 ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan Dharmamukt 2018©

सोमवार, जून 18, 2018

अविवाहित नवयुवतियों के लिये मौका

यदि आप महिलाओं को अंध्विश्वास, मुक्त सोच के प्रति जागरूक करते हैं तो आप समझिये आपने उसके पूरे वंश को जागरूक कर दिया।

माँ ही होती है बच्चे की पहली शिक्षक फिर लडकियों की तो हर कोई सुनना चाहता है। रुचि होने के कारण उनका प्रयोग जब धर्म और चुनाव जैसे बेकार कामो में किया जा रहा है तो अच्छे कार्यों में क्यों नहीं?

इसीलिये अविवाहित महिला मित्रों से निवेदन है कि मुझसे व्यक्तिगत तौर पर मिल कर जागरूकता फैलाएं। विवाहितों को तो उनके पति ही न आने देंगे। इसलिये उनको इससे मुक्त रखा है। ~ Shubhanshu The Satisfaction 2018©

रविवार, जून 17, 2018

ज़हरबुझा फल

बुद्धिमान मित्र: भाई आजकल फलों की दुकान ऑनलाइन चालू की है क्या?
भोला शुभ: नहीं भाई, खुद भूखा सो रहा हूँ।
मित्र: फिर ये क्या है खरबूजा सत्य?
शुभ: 😵 रहम कर भाई। तेरे से न हो पायेगा! रहन दे। चश्मा बनवा लियो जाकर आज ही। नहीं तो मिल मत जाना दोबारा। समझे। 😬😤
~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

शनिवार, जून 16, 2018

दो दोस्त

दो लोग आपस में बात कर रहे थे।

😂: यार ये देख, ये कबूटिया कौन है? इसकी फ़ोटो देख। एक दम कोई स्मैकिया लग रहा है। बाल भी उड़े हुए हैं और दाढ़ी तो जैसे दादा की लगा ली है। कैसे-कैसे लोग fb पर आ जाते हैं।

😬: तुझें पता है? ये कौन हैं?

😂: हाँ Shubhanahu Singh Chauhan.

😬: तो ये बात उनके प्रोफाइल pic पर जा के लिख दे न? दाढ़ काहे फटे जा रही है लिखने में?

😕: अब क्या कहूँ। लिख दूँगा तो पता नहीं वो क्या करे। कहीं ब्लॉक मार दिया तो?

😒: मतलब क्या है तेरा? जुड़ा ही क्यों है उनसे जब पसन्द नहीं करता तो? तेरा 1 भी लाइक नहीं देखा मैंने उनकी किसी post में।

😧: अब कुछ कह दूँ जो जैसे बाकियों की धोते हैं मेरी भी धुल देंगे तो अपनी बेइज़्ज़ती न करवानी उनसे। like इसलिये नहीं करता क्योंकि उनको और मेरे दोस्तों को पता चल सकता है कि मुझे उनकी सभी post पसन्द आती हैं।

😮: अभी तो कह रहा था कि स्मैकिया हैं वो?

😧: तो वो मैं फ़ोटो की बात कर रहा था। फ़ोटो और शक्ल का क्या अचार डालना है? ये आदमी सिर्फ नास्तिकता पर नहीं लिखता बल्कि और भी बहुत कुछ लिखता है जो बहुत रोमांचक है, नया है और हैरान करने वाला है।

एक पोस्ट से असहमत हो भी जाओ तो दूसरी से सहमत होना ही पड़ता है। अब बताओ कैसे छोड़ दूं इनको? जितना ये जानते हैं उतना मेरा पण्डित बाप भी नहीं जानता तो बताओ कौन बड़ा?

पता नहीं क्या है इस आदमी में कि बस दिन भर इसी की पोस्ट पढ़ता रहता हूँ। आदमी है या कंप्यूटर? इतना जानकारी लाता किधर से है? अपने से तो गूगल पर गूगली ही हो जाती है। एक दिन में 50 पोस्ट कर देता है ये। ज्यादा भी। कोई भरोसा नहीं।

😑: अबे करेले के बीज, तू बुराई कर रहा है या तारीफ?

😁: यार कुछ मत पूछ, मेरा तो दिमाग ही बन्द हो गया है। दिन भर इसी के post दिमाग में घूमते रहते हैं। खुद दुनिया से भरोसा उठने लगा है। ये आदमी है क्या चीज़?

😏: भाई तू रहन दे। दिमाग पर ज्यादा जोर न डाल। तू समझने लगा है उनको और तुझे पता है वे क्या कहते हैं?

😶: क्या कहते हैं?

😀: जो उनको समझ गया, वो गया...

😗: मतलब मर गया?

☺: नहीं। उनके जैसा हो गया और फिर तू भी समाज में अजूबा बन जायेगा और मूर्ख समाज तुमको भी उनकी तरह पागल कहेगा। यानी तुम्हारी सामान्य ज़िन्दगी गई। दोस्त और रिश्तेदार भी। फिर वह मरे के समान ही हुआ न? दूसरे के लिए?

😊: अच्छा ये बात है। सुन एक बात कहूँ?

😏: बोल?

😁: भाड़ में जाये दुनिया!

शुक्रवार, जून 15, 2018

पौधे और जंतुओं का ज़हरबुझा सत्य ~ Shubhanshu

सामान्यतः जंतु तकलीफ महसूस करते हैं क्योंकि उनमें मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र होता है। सामान्यतः वनस्पतियों में मस्तिष्क और तंत्रिकाओं का पूर्णतः अभाव होता है इसलिये जगदीशचंद्र बसु का क्रिस्कोग्राफ सिर्फ एक धोखाधड़ी वाला प्रयोग था।

मस्तिष्क हीन जंतु जैसे जेलीफिश और बहुत से जलीय स्थिर जंतु खुद पौधे जैसे दिखते हैं होते हैं वे दर्द महसूस नहीं करते बल्कि जलीय दबाव के प्रति क्रिया दर्शाते हैं। उसे एक निर्जीव क्रिया समझा जा सकता है।

पौधों की जन्तुओ से तुलना करने वाले मूर्ख लोगों को यह पता होना चाहिए कि पौधे और जंतुओं को जोड़ने वाली कड़ियाँ सिर्फ अपवाद होती हैं जो कि वर्गीकरण में भिन्न स्थान पर रखी जाती हैं।

मूल वर्गीकरण पौधे और जंतु में किया गया है जो कि मस्तिष्क हीन जीवन और मस्तिष्क युक्त तंत्रिका तंत्र से व गतिमान अवस्थाओं, जंतु-वनस्पति कोशाओं के मूलभूत अंतर पर और मानव से उसकी समानता पर जंतु जगत में और सजीव परन्तु जड़ निकायों के रूप में पौधों (वनस्पतियों) में किया गया है।

स्वपोषी में भी क्लोरोफिल वाली वनस्पतियों के अतिरिक्त कवक व मशरूम शामिल हैं जो अपना भोजन मृतोपजीवी के रूप में स्वयं ही बनाते है। प्रकृति में भोजन स्वयं बनाने वाली प्रत्येक खाने योग्य वस्तु/जीव जो किसी का अन्य का शिकार न करती हो वह प्राथमिक भोजन होती है।

जो जैसे पाचन तंत्र के साथ पैदा हुआ है उसे वैसा ही भोजन करना चाहिए और मानव वनस्पति आधारित पाचनतंत्र के साथ पैदा हुआ है यही अंतिम सत्य है। सर्वाहारी जंतु के रूप में भालू और बंदर आपके सामने हैं उनसे खुद की तुलना करके खुद देख लें। धन्यवाद! ~ Shubhanshu Singh Chauhan Vegan 2018©

बुधवार, जून 13, 2018

Rationalism Campaign India

Marriage Free India Campaign

ॐ का आविष्कार

निष्कर्ष: बाबाओं की कुटिया से लगातार उई माँ-उई माँ जैसी आवाजों के आने से इस शब्द का उद्भव हुआ। जो कालांतर में उइम होकर ॐ हुआ।

छात्र: क्या सुबूत है इस बात का?

शुभ्: पुरातन काल की बातों का सिर्फ तर्क होता है सुबूत नहीं।

मेनका, उर्वशी की कहानियों में ऋषियों के उनसे सम्भोग का वर्णन है जो वे उनसे अपनी कुटिया में करते थे। जब बाहर आते थे तो वे इसे योग बोल कर अपने कर्म छुपा लेते थे।

उन्हीं आवाजों को लोग जब पूछते तो वे उनसे कहते थे कि वह महिला योग शब्द बोल रही है।

वही शब्द लोगों ने याद करके अफवाह की तरह फैलाया जो बाद में ॐ बन गया।

छात्र: क्यों?

शुभ्: क्योकि अप्सरा की तरह जब चाहे स्वर्ग और मृत्युलोक आजा सकें उसके लिए अप्सरा द्वारा बोला गया प्रत्येक मंत्र महत्वपूर्ण होता था।

यही आज बाबाओं के नित्य कर्म में भी दिखता है। ॐ का उच्चारण सम्भोग की इच्छा दर्शाने के लिये ऋषि बोलते थे जिसे सुनकर अप्सरा चली आती थी। आज भी ॐ बोलने पर यही होता है। बस आज अप्सराओं की जगह महिलाओं ने ले ली है।
~ शुभाँशु जी 2018©

मुस्कुराहट: मुरब्बा

मित्र: यार शुभ जल्दबाजी में फैसला मत लिया करो।

शुभ: क्यों?

मित्र: कल आपने जिस आदमी का मुरब्बा बना के पैक करके पार्सल किया है, वह आपसे पिटने नहीं, बल्कि आपको पीटने आया था।

शुभ: ओह मुझे सुनने में गलती हो गई। कल मैंने उससे पूछा था कि क्यों आये हो तो वह बोला, "पिटने"। तो मैंने भी उसे सन्तुष्ट करके भेजा था। अब ये उसकी गलती है कि वह आगे से मात्राओं की गलती न करे।

वैसे एक बात बता, तुझे कैसे पता कि वह क्या करने आया...अबे किधर गया? अभी तो यहीं खड़ा था। भाग गया ससुरा। इसी ने भेजा था।

मिल जाये तो मुरब्बा part 2 भी रिलीज करूँगा। ~ शुभाँशु जी 2018©

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सोमवार, जून 11, 2018

डॉक्टर की डॉटर

शुभ: डॉक्टर साहब मुझे बहुत भयंकर बीमारी हो गयी है।
Dr: क्या बीमारी है?
शुभ: एक दम सफेद सच बोल देता हूँ।
Dr: 😂 हो ही नहीं सकता। प्रमाणित करें।
शुभ: बाहर जो नर्स बैठी है उसे आप जानते हैं?
Dr: हाँ, वह मेरी बेटी है। अभी नर्सिंग का कोर्स फिनिश करके मेरे ही हॉस्पिटल में भर्ती हुई है उसकी।
शुभ: मैं बाहर अभी वेटिंग में बैठा था तो मुझे प्यास लगी। मैंने नर्स से पानी मांगा। उसने लाकर दे दिया। फिर मुझे पता नहीं क्या हुआ मुझे हल्का सा चक्कर आया और मैं गिरते-गिरते बचा। आपकी बेटी ने मुझे पकड़ लिया था। फिर हम दोनों साथ में बैठ गए और मैंने अपना सिर उसकी गोद में रख लिया। अरे Dr साहब आप ये गुस्से वाला मुहँ क्यों बना रहे हैं?
Dr: अ...वो मैं बना नहीं रहा हूँ। वह अपनेआप बन गया। आप ध्यान न दें। आगे बताइये जल्दी। क्या हुआ फिर...(दांत पीसते हुए)।
शुभ: हाँ तो Dr साहब, फिर मैंने ऊपर देखा।
Dr: गोद में लेटे-लेटे?
शुभ: जी। लेकिन मुझे कुछ दिखा नहीं।
Dr: क्या मतलब?
शुभ: मेरा मतलब, कुछ बीच में था तो मैं आपकी बेटी का चेहरा नहीं देख पा रहा था लेटे हुए।
Dr: जल्दी बोल आगे...हफ़...हफ़...
शुभ: सत्यवादी का अपमान? आप गुस्सा क्यों हो रहे हैं? अभी आपने प्रमाण माँगा था और अब गुस्सा हो रहे हैं।
Dr: अरे हां! आपकी बीमारी बहुत गजब है। तभी आप इतना ख़तरा उठा रहे हैं। मानना पड़ेगा। आगे बताओगे sir जी?
शुभ्: ये हुई न बात। तो आगे सुनिए। फिर मैंने उठना चाहा तो मैं उस अवरोध से टकरा गया और फिर वापस गोद में गिर गया।
Dr: (घूंरते हुए) हाँ-हाँ आगे बोलो। कुछ नहीं।
शुभ: फिर मुझे उठने का मन ही नहीं हुआ। वह भी मेरे बालों में उंगलियां फिराने लगी तो अच्छा लगने लगा था।
Dr: आगे बोल झोपड़ी के...कब से यही अटका हुआ है। अ...न न मेरा मतलब वो नहीं था। सॉरी। कृपया ज़ल्दी से आखिर में पहुंचिये।
शुभ: एक दम से आखिर में?
Dr: हाँ आखिर में क्या हुआ? ज़ल्दी कहिये मुझे और भी पेशेंट देखने हैं।
शुभ: तो मैं बाद में आता हूँ।
Dr: अरे कहां चले? रुको। ऐसे नहीं जा सकते आप। पूरी बात बताये बिना।
शुभ: लेकिन अभी आपने कहा कि मरीज देखने हैं।
Dr: भाड़ में जाये मरीज। आपको देखूंगा आज सिर्फ।
शुभ: Okay! फिर यह हुआ कि मुझे सूसू आई और मैं उठने लगा। पानी पीने के बाद पेशाब आती है मुझे।
Dr: आगे...?
शुभ: मैं चलने को हुआ तो वह भी मुझे टॉयलेट तक ले गयी। मैंने कहा कि मैं अपने आप कर लूंगा तो वह बोली कि नर्स से शर्माना नहीं चाहिए। आप मुझसे डरे बिना अंदर चलिये।
Dr: गुर्र...
शुभ: क्या हुआ?
Dr: आगे...?
शुभ: आगे नहीं बताऊंगा।
Dr: ये लो 10000 रुपए और बताओ।
शुभ: आपके हॉस्पिटल में टॉयलेट का दरवाजा खराब है क्या? हम दोनों अंदर गए तो वह बन्द हो गया और खुला ही नहीं। बहुत देर तक। ये क्या है आपके हाथ में? Gun। हॉस्पिटल में gun कैसे लाये आप?
Dr: तुम उसे मत देखो बालक। आगे बोलो।
शुभ: आगे नहीं बताऊंगा। आपके इरादे नेक नहीं लग रहे।
Dr: ये लो 50000 रुपये। अब बताओ।
शुभ: 1 घण्टा हम अंदर बन्द रहे। इस दौरान हमारी जान पहचान हो गई। उसने आपके बारे में काफी कुछ बताया। जैसे आप 2 नंबर का पैसा किधर छुपाते हो और आपका कितनी नर्सों से चक्कर है आदि।
Dr: ये लो 10 लाख का चेक। व्हाइट मनी। किसी से कुछ मत कहना।
शुभ: जी इसकी क्या ज़रूरत थी। मैं क्यों किसी को कुछ बताउंगा भला?
Dr: आपको सत्य बोलने की खतरनाक बीमारी जो है।
शुभ: देखा। आखिर आप मान गए न। अब दवाई लिखो आप।
Dr: अब सोनी मेरा मतलब नर्स कहाँ है?
शुभ: आप फोन कर लो उसे। मेरी जान मत खाओ।
Dr: Ok। मतलब सब ठीक है। आप अपना blood सेंपल दीजिये। अभी तक ऐसी दवा बनी नहीं है जो झूठ बोलना सिखा दे या सच छुपाना। हम आपके ब्लड सीरम से दवा बनाएँगे। (डॉक्टर रक्त निकाल लेता है।)
शुभ: Okay!
Dr: आप 1 हफ्ते बाद मुझे इस नम्बर पर काल कर लेना।
शुभ: Okay!
Dr: रुकना यार।
शुभ: जी?
Dr: फिर क्या हुआ यार? आपके जानकारी लेने के बाद?
शुभ: जी मैंने इनकम टैक्स विभाग को फोन लगाया।
Dr: बेड़ा गर्क हो। सत्यानाश हो गया। तुझें तो मैं जिंदा गाड़ दूँगा।
शुभ: रिलेक्स। मैंने फोन लगाया लेकिन वह आउट ऑफ कवरेज जा रहा था।
Dr: Oh! बच गया। ये लो 20 लाख का चेक और। सब बियरर हैं। ऐश करो।
शुभ: आगे सुनाऊं?
Dr: ज़रूर।
शुभ: मैंने दोबारा try किया तो उठ गया फोन उधर से।
Dr: वापस कर सारे चेक कमीने!
शुभ: रिलेक्स। वह नम्बर कहीं और लग गया था। रोंग नम्बर था वह।
Dr: अरे! अभी जो बोला, उसके लिए माफी।
शुभ: कोई बात नहीं। सोनी के बारे में आप भूल गए एक दम।
Dr: अरे हां। उसका क्या हुआ?
शुभ: मेरे साथ टॉयलेट में बन्द हो जाने को लेकर मैं बहुत डर गया था कि कहीं सोनी ने शोर मचा दिया कि मैं उसके साथ कुछ कर रहा हूँ तो क्या होगा?
Dr: शाबाश! फिर क्या हुआ? उसने शोर मचाया?
शुभ: नहीं। उसने कहा कि वह कुछ बोलेगी तो सबको पता चल जाएगा कि वह मेरे साथ टॉयलेट में बन्द थी।
Dr: फिर? क्या हुआ? दरवाजा कैसे खुला?
शुभ: अपने आप थोड़े ही खुला। हम दोनों ने ताकत लगाई तब जाकर खुला। हम धोखे से एक साथ दरवाजे से टकरा गए और हम एक साथ बाहर आ गिरे। वह मेरे ऊपर थी।
Dr: ऐसा क्या कर रहे थे तुम दोनों?
शुभ: हमने एक साथ धक्का दिया दरवाजे को।
Dr: अच्छा। कितने धक्के मारे दोनो ने मिल कर।
शुभ: क्या? अ... होंगे 40-50 धक्के।
Dr: इतने धक्के लगाने पड़े? तब तो दरवाजा बहुत बुरा अटका होगा।
शुभ्: अरे कहां? आपकी लड़की ने ही उसमे अपनी चिमटी फंसा के जाम किया था।
Dr: अरे नहीं। सोनी बहुत बिगड़ गयी है। उसने कुछ कहा तुमसे? इस बारे में?
शुभ्: हाँ, कह रही थी कि चिमटी नहीं मिल रही। बार-बार बाल माथे पर आ रहे थे उसके।
Dr: और कोई बात जो कहना चाहते हो?
शुभ्: जी, उसने मुझे आपके घर कल आपके पीठ पीछे मिलने को बुलाया है। मुझे लगा कि आपको बताना चाहिए।
Dr: ओह। सही किया बताकर आपने। आना कल। कोई बात नहीं। मेरी बेटी की चॉइस कभी गलत नहीं हो सकती। मैं तो अब कल घर उस टाइम पर जाऊंगा नहीं।
शुभ: जी धन्यवाद!
अगले दिन मैं Dr साहब के घर गया। खूब मस्ती की हम दोनों ने। चैस खेला। फिर घर आ गया। क्रमशः ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan 2018©

रविवार, जून 10, 2018

Decoding The Vegan Shubhanshu!

धर्ममुक्त तर्कवादी नास्तिक:

कुछ समय पूर्व जब मैं आस्तिकों को दूर होने को कहता था तब मुझे नास्तिकों से ही ताने मिलते थे कि अकेले में ही खेलोगे क्या फिर?

दरअसल उनको पता ही नहीं था कि नास्तिकता के अलावा भी दुनिया है कोई। नास्तिक जल्दी समझ जाते हैं इसलिये उनको जोड़ना अच्छा था। आप किसी को तब तक नास्तिक नहीं बना सकते जब तक वह खुद ही सवाल न खड़े करने लगे ईश्वर के ऊपर। साफ है कि आप किसी को उसके सवालों को समझने में उनकी मदद कर सकते हैं लेकिन किसी को उसकी इच्छा (will) के बिना बदल नहीं सकते। भले ही तर्क में जीत जाएं।

इसलिये मैं एक मिनट में जान जाता हूँ कि मैं किस से बात कर रहा हूँ। इसी प्रकार आपको मेरे साथ रह कर सिर्फ नास्तिकता के ऊपर बने घिसे पिटे post नहीं मिलते बल्कि जो भी उससे सम्बंधित मिलता है वह एक दम अनोखा और असरदार होता है। तुरन्त असर करने वाला।

आपको मेरे साथ रहकर ऐसी जानकारी मिलती है जो गूगल पर भी उपलब्ध नहीं। ऐसा मुझे कुछ लोगों ने हाल ही में कहा है इसलिये लिख रहा हूँ। कुछ का कहना है कि गूगल पर वे कुछ ढूंढ नहीं पाते जो मैं ढूंढ कर दे देता हूँ।

मेरा खुद का जीवन ही त्याग और तपस्या का परिणाम है। तपस्या का मतलब ईश्वर का ध्यान नहीं बल्कि कष्टों का वह अंधड़ है जो मैंने पार करके सुख को पा लिया है। मैंने बहुत कम उम्र में ही जीवन के उन रहस्यों को जान लिया जो लोग गहन रिसर्च से भी नहीं जान सके। मुझे यह भी आप ही लोगों ने कहा है।

कुछ ने कहा कि अब आपको जानने के लिये कुछ नहीं बचा। आप सब जान गए। लेकिन यह उनका कहना था। मेरा नहीं। मेरे लिये मैं ही हूँ अपना पालक और मैं कहता हूं कि ज्ञान कभी खत्म नहीं होता। वह हमेशा आपके लिए मौजूद रहेगा।

गृहस्थ जीवन का त्याग: विवाह मुक्त

लोग जब सुखों की बात करते हैं तो गृहस्थ जीवन को सुखों की खान बोलते हैं। इसको सबसे ऊपर रखते हैं क्योंकि यह पौराणिक कथाओं में लिखा है और बड़ों ने कहा भी है। इसके लिये वे जान भी दे सकते हैं। उनके लिए सबसे बड़ा सुख विपरीत लिंग ही है। मैने इसे त्याग दिया। अधिक जानकारी के लिये post देखें "राज़ प्रेम का"

जीवन साथी की अनिश्चितता:

दूसरा सुख लोग जीवन साथी की निश्चितता को मानते हैं जो कि एकल व्यक्ति पर निर्भर होता है लेकिन मैंने इसे भी सबके लिये खुला छोड़ दिया। मैंने लिव इन रिलेशन को भी त्याग दिया। जो जब तक संग रहना चाहे रहे जब जाना हो चला जाये। मैं नहीं भगाऊँगा, जब तक तंग नहीं करोगे। post देखें "मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ"

शिशुमुक्त जीवन:

लोगों के लिये सन्तान सुख सर्वोच्च होता है। अपने आनुवांशिक गुण आगे अग्रसारित करना प्रत्येक जीव की तरह मानव में भी कोडेड है। लेकिन प्रकृति में यह सिर्फ महिला को हक़ है कि वह अपने बच्चे को दूध पिलाये, पाले पोसे। हर माँ में अपने बच्चे के प्रति यह लगाव ही ममता कहलाता है।

पुरुष का कार्य बस सम्भोग करना और भाग जाना है। एक महिला 1 वर्ष में गर्भवती होकर प्रायः 1 बच्चा पैदा करती है जबकि पुरुष उस दौरान लाखों महिलाओं के साथ अपना जींस शेयर कर चुका होता है। उसमें भी उसका दोष नहीं। प्रकृति में किसी का दोष नहीं होता। वह वही कर रहे हैं जैसा उनके डीएनए में लिखा है।

महिलाओं को प्रतिमाह 1 अंडा मिलता है बच्चा पैदा करने के लिए। जब अंडा निकलता है उस दिन महिला को सम्भोग की प्राकृतिक इच्छा होती है लेकिन यह पुरुष को क्या पता? इसलिये वह हर समय सम्भोग की इच्छा के साथ पैदा हुआ।

उसके हर सम्भोग से बच्चा होना असम्भव है लेकिन वह जितना ज्यादा करेगा उतने ही मौके उसे ज्यादा मिलेंगे। अतः पुरुष बच्चों से प्रेम नहीं करते। स्त्रियां करती हैं। कालांतर में वंश चलाने, अपने धन-संपत्ति के हस्तांतरण के लिये पुरूष भी बच्चे को ज़रूरी समझने लगे।

वह समय और था जब इंसान जंगल में अपनी मौत से जूझता था और उसके लिए उसे ज्यादा से ज्यादा आबादी और सुरक्षा के लिये लोग चाहिए होते थे। शेर, गीदड़, भेड़िए, चीते, गुलदार, तेंदुआ, लकड़बग्घे, बंदर जैसे जंतु मानव के शत्रु बन गए थे। मानव की जनसँख्या बहुत कम थी। तब बच्चा पालना ज़रूरी कार्य था।

लेकिन आज क्या हाल है? आज सब सुरक्षित हैं। खतरनाक जानवर इंसान ने मार डाले। जंगल खत्म कर दिए और विज्ञान ने लोगों को महामारियों और दुर्घटना से बचाना शुरू कर दिया है। फिर अब अस्पताल तो जच्चा-बच्चा का जीवन बचा लेते हैं जो पहले प्रसव के समय ही खत्म हो जाता था। आज भी आपके प्रसव से मरने के चांस 90% हैं।

महिला का काल होता है प्रसव। बहुत भयानक समय, 6 माह के सम्भोग के मजे का बेहद दर्दनाक अंत। दर्द की अति। जान जाने का 90% खतरा। इसे मजाक न समझें। बहुत ज़रूरी हो तभी बच्चा करें।

ज़रूरी? ज़रूरी तो तब होगा जब सड़कों पर ट्रैफिक न हो। जब कंपनियां आपके घर आकर आपका इंटरव्यू लें। मोटी रकम पर काम देने के लिये। जब कहीं लाइन न लगी मिले, जब ट्रेनों/बसों/ऑटो में खालीपन सा लगे। स्कूल आपके घर आकर बच्चों को बिना एडमिशन फीस के "पढा कर तो देखिये" की तर्ज पर लालच देने लगें। वस्तुएं इतनी सस्ती हो जाएं कि 10 रुपये में, 10,000 की खरीदारी हो जाये। टैक्स भी कम हो जाएगा, जब लोग कम होने से सरकारी धन का दुरुपयोग रुकेगा।

यह सब होने का सपना पूरा तब होगा जब आप कुछ समय, करीब 10 वर्ष तक सम्भोग करें लेकिन गर्भनिरोधक के साथ। लेकिन आप वह भी नहीं करेंगे तो हम क्यों लाएं नया बच्चा, इस सड़े हुए सिस्टम में? सड़ाने के लिये? जहाँ भीड़ कभी कम ही नहीं होती? जहाँ ज़िन्दगी झंड है। मुझे माफ़ कीजियेगा। मैं जुआ नहीं खेलता। post देखें "मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ"

वस्त्रों के प्रति अरुचि:

1. वैज्ञानिक कारण: जब तक ज़रूरी न हो जैसे सर्दी, गर्मी, बरसात तब तक वस्त्रों का सीमित प्रयोग। सूर्य की प्राणदायक रौशनी हमारे शरीर को विटामिन D देती है जो कि साबित करता है कि हमारा शरीर photo sensitive है। मेलेनिन सूर्य के प्रकाश से नियंत्रित होता है जो हमारी त्वचा को गहरा रंग देता है और यह रंग ही हमें त्वचा कैंसर से बचाता है।

विटामिन D का सीधा सम्बन्ध हमारी हड्डियों से है। आपको पता होना चाहिए कि बलूव्हेल के शरीर में कई टन कैल्शियम होता है यह उसमें कहाँ से आया? लगभग हर मछली में काँटा यानी हड्डियों का ढांचा होता है। यह सब आता है पानी में घुले कैल्शियम से। लेकिन फिर भी हमें वह क्यों नहीं प्राप्त हो पाता?

कारण है कपड़े। दरअसल हमारा शरीर तब तक कैल्शियम को नहीं देखता जब तक शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन D न हो। जब आप डॉक्टर से कैल्शियम की गोली लेंगे तब वह आपको विटामिन D के साथ आने वाली गोली ही देंगे। यानि बिना विटामिन D के सारा कैल्शियम बेकार है। और वह कैसे बने बिना ऊपर से खाये, मुफ्त में? समझदार को इशारा काफी।

2. सामाजिक कारण: "बंधी मुट्ठी लाख की और खुली मुठ्ठी खाक की।" यानि रैपर में लिपटी चीज़ के प्रति ज्यादा आकर्षण होता है। आदिमानवों में वस्त्रों का अभाव था और उनके वंशज आज भी आदिवासी कहलाते हैं।

उनमें एक दूसरे के प्रति ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जो नज़रों से हो जाये। केवल शरीर के छूने से ही और गंध से ही कामोत्तेजक असर होता है। इसलिये कपड़े कभी भी उनकी जरूरत नहीं बने।

सभ्यता के नाम पर दूसरे को सिखाने का जो जाल फैलाया गया, इंसान खुद की सुनना बन्द कर बैठा। शिक्षा ने विद्वान नहीं पैदा किये बल्कि गुलाम पैदा किये जो कि बस सुना/पढ़ा ही करता रहा। उन्हीं में से एक है अनावश्यक वस्त्रों का जाल। अनावश्यक मतलब घूरती आंखों से बचने के लिये पहने जाने वाले वस्त्र।

लेकिन क्या आपको कभी घूरना बन्द किया गया? मुझे रोज लोग घूरते हैं। मैं तो लड़का हूँ तब भी। घूरना सम्विधान में क्रूरता के रूप में वर्णित है जिसकी सज़ा है। यह एक मानसिकता है जो लोगों ने अपना रखी है बिना छुए घायल करने की। इसका इलाज है पुलिस। ऐसा पाया गया है कि डंडे पड़ने के बाद यह आदत समाप्त हो जाती है।

अब देखिये कपड़ों का खेल। पूरी पोर्न इंडस्ट्री, वैश्यावृत्ति और फैशन इंडस्ट्री कपड़ों पर टिकी है। पोर्न/वैश्यावृत्ति और कपड़ों का क्या मेल? है न? नहीं यही पर आप मात खा जाते हैं।

कानून यौनांगों (जिसमें अकारण केवल महिला स्तनाग्र भी शामिल हैं) को छिपाने को बाध्य करता है और ज्यादातर धर्म भी। जब हम यौनांग नहीं देख पाते तो शरीर और दिमाग भ्रमित होकर तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है। जो भी उसे उभार और अंदाज़ा मिलता है वह उसे नग्न रूप में एक दम अपनी पसन्द के अनुरूप कल्पना कर लेता है और कामोत्तेजित हो जाता है। यह घटना आपको सभोंग में सक्रिय लोगों और प्रेमी जोड़ों में चिरपरिचित मिलेगी। ज़िसमें कपड़े बहुत बड़ा योगदान देते हैं।

जब कुछ अधूरा दिखता है मनुष्यों का मस्तिष्क अपने आप उस खाली स्थान को भर लेता है। वह उसे उत्तम भाग से भरता है जिससे प्रबल स्तरीय कामोत्तेजना प्रकट होती है। इसी कारण से नए लड़के लड़कीं के जांघों पर ही वीर्यपात तक कर देते हैं।

पूर्ण नग्न होते ही मन में मौजूद कल्पना को झटका लगता है और मन मुताबिक न होने के कारण कामोत्तेजना शनेः शनेः (धीरे-धीरे) समाप्त होने लगती है। इस घटना को न्यूड बीच (नग्न समुद्र तट; स्पेन, ब्राजील और गोआ में सीक्रेट न्यूड बीच हैं जिनमें गोआ वाले में भारतीयों का आना प्रतिबंधित है।) के नियम में परिलक्षित होते हुए देखा जा सकता है। न्यूड बीच में कोई भी व्यक्ति अपना तना हुआ उत्तेजित शिश्न लेकर नहीं घूम सकता। वह लोगों को तंग करता है। इसलिये इनकी परीक्षा होती है।

परीक्षा के लिये एक स्विम सूट वाली लड़की लड़के के सामने नग्न हो जाती है। अगर शिश्न में तनाव आया तो एंट्री निरस्त। ऐसी दशा मे उनको अलग बैठना पड़ता है और दूर से ही देख सकते हैं। कुछ दिन बाद उस लड़के का लिंग शिथिल हो जाता है और टेस्ट पास कर लेता है। यही है कपड़ों की सच्चाई से पर्दा उठाने का प्रमाण भी। इसलिये सभी लोगों को सार्वजनिक नग्नता का समर्थन करना चाहिये। भले ही सार्वजनिक सम्भोग पर प्रतिबंध जारी रखें।

दरअसल कानून ने लगभग सभी देशों में महिला के अभद्र निरूपण (vulgur presentation), nipples, vagina, Anus hole, penis के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगा रखी है। केवल अध्ययन शिक्षा और समाजसुधार के लिये किये गए प्रदर्शन ही मान्य हैं।

अगर इस नियम का उल्लंघन होता है तो कड़ी सजा का प्रावधान है। भारत में IPC धारा (292-294) 2 से 5 साल कैद और 5000 रुपये जुर्माना। अभी तक इच्छा से निर्वस्त्र होने पर क्या समस्या है यह पता नहीं चला है। पता चलते ही अद्यतन (अपडेट) कर दूंगा।

जब किसी औपचारिक जगह जाना हों तभी सूट या पैंटशर्ट टाई, बूट आदि पहने जा सकते हैं। post देखें "हमाम में सब नँगे"

प्राकृतिक जीवनशैली:

मैं ज़रूरी होने पर ही, ब्रश, स्नान, हाथ-मुहँ धोना, शेव करना, भोजन करना आदि कार्य करता हूँ। मेरे लिये भोजन प्राथमिक कभी नहीं था। मेरा मानना है कि खाने के लिये जीना गलत है, हमें जीने के लिये ही खाना चाहिए।

वीगन जीवन शैली:

पशुओं को उनका जीवन जीने दो। हम अपना जियें। यह है इसका एक सार। परन्तु यह 2 हिस्सों में है।

नाम: पशुक्रूरता निरोधक जीवन शैली (veganism)

| 'vee-gu, ni-zum |

1. किसी भी नैतिक सिद्धांत या जीवन का तरीका जो जानवरों के शोषण पर आधारित किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों और सेवाओं का सख्ती से उपयोग नहीं करता है।

2. एक आहार का पालन करने का अभ्यास जिसमें मांस, मछली, दूध और दूध उत्पादों जैसे किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों को शामिल नहीं किया जाता है, अंडे, शहद, पशु वसा या जिलेटिन आदि।

विस्तृत जानकारी के लिये "What the health" नामक documentary देखें व peta.org और vegansociety.com की वेबसाइट पर जाएं।

Note: मेरे भीतर यह सभी गुण प्राकृतिक थे। मैंने केवल इनका अद्ध्ययन किया है कि यह सही हैं या नहीं। इसलिये मैं अब वापस बदल नहीं सकता। इसलिये किसी प्रकार की बहस का स्वागत नहीं होगा। समस्त जानकारी के स्रोत ऊपर दिए गए हैं। उनका इस्तेमाल करें।
नमस्कार!

लिखते-लिखते थक गया। बाकी फिर कभी। क्रमशः
2018/06/10 22:18
Article ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan

कृपया पूरी वेबसाइट पर दी गई post देखें। ज्यादा समझदार बनेंगे।