धर्ममुक्त तर्कवादी नास्तिक:
कुछ समय पूर्व जब मैं आस्तिकों को दूर होने को कहता था तब मुझे नास्तिकों से ही ताने मिलते थे कि अकेले में ही खेलोगे क्या फिर?
दरअसल उनको पता ही नहीं था कि नास्तिकता के अलावा भी दुनिया है कोई। नास्तिक जल्दी समझ जाते हैं इसलिये उनको जोड़ना अच्छा था। आप किसी को तब तक नास्तिक नहीं बना सकते जब तक वह खुद ही सवाल न खड़े करने लगे ईश्वर के ऊपर। साफ है कि आप किसी को उसके सवालों को समझने में उनकी मदद कर सकते हैं लेकिन किसी को उसकी इच्छा (will) के बिना बदल नहीं सकते। भले ही तर्क में जीत जाएं।
इसलिये मैं एक मिनट में जान जाता हूँ कि मैं किस से बात कर रहा हूँ। इसी प्रकार आपको मेरे साथ रह कर सिर्फ नास्तिकता के ऊपर बने घिसे पिटे post नहीं मिलते बल्कि जो भी उससे सम्बंधित मिलता है वह एक दम अनोखा और असरदार होता है। तुरन्त असर करने वाला।
आपको मेरे साथ रहकर ऐसी जानकारी मिलती है जो गूगल पर भी उपलब्ध नहीं। ऐसा मुझे कुछ लोगों ने हाल ही में कहा है इसलिये लिख रहा हूँ। कुछ का कहना है कि गूगल पर वे कुछ ढूंढ नहीं पाते जो मैं ढूंढ कर दे देता हूँ।
मेरा खुद का जीवन ही त्याग और तपस्या का परिणाम है। तपस्या का मतलब ईश्वर का ध्यान नहीं बल्कि कष्टों का वह अंधड़ है जो मैंने पार करके सुख को पा लिया है। मैंने बहुत कम उम्र में ही जीवन के उन रहस्यों को जान लिया जो लोग गहन रिसर्च से भी नहीं जान सके। मुझे यह भी आप ही लोगों ने कहा है।
कुछ ने कहा कि अब आपको जानने के लिये कुछ नहीं बचा। आप सब जान गए। लेकिन यह उनका कहना था। मेरा नहीं। मेरे लिये मैं ही हूँ अपना पालक और मैं कहता हूं कि ज्ञान कभी खत्म नहीं होता। वह हमेशा आपके लिए मौजूद रहेगा।
गृहस्थ जीवन का त्याग: विवाह मुक्त
लोग जब सुखों की बात करते हैं तो गृहस्थ जीवन को सुखों की खान बोलते हैं। इसको सबसे ऊपर रखते हैं क्योंकि यह पौराणिक कथाओं में लिखा है और बड़ों ने कहा भी है। इसके लिये वे जान भी दे सकते हैं। उनके लिए सबसे बड़ा सुख विपरीत लिंग ही है। मैने इसे त्याग दिया। अधिक जानकारी के लिये post देखें "राज़ प्रेम का"
जीवन साथी की अनिश्चितता:
दूसरा सुख लोग जीवन साथी की निश्चितता को मानते हैं जो कि एकल व्यक्ति पर निर्भर होता है लेकिन मैंने इसे भी सबके लिये खुला छोड़ दिया। मैंने लिव इन रिलेशन को भी त्याग दिया। जो जब तक संग रहना चाहे रहे जब जाना हो चला जाये। मैं नहीं भगाऊँगा, जब तक तंग नहीं करोगे। post देखें "मैं विवाह मुक्त क्यों हूँ"
शिशुमुक्त जीवन:
लोगों के लिये सन्तान सुख सर्वोच्च होता है। अपने आनुवांशिक गुण आगे अग्रसारित करना प्रत्येक जीव की तरह मानव में भी कोडेड है। लेकिन प्रकृति में यह सिर्फ महिला को हक़ है कि वह अपने बच्चे को दूध पिलाये, पाले पोसे। हर माँ में अपने बच्चे के प्रति यह लगाव ही ममता कहलाता है।
पुरुष का कार्य बस सम्भोग करना और भाग जाना है। एक महिला 1 वर्ष में गर्भवती होकर प्रायः 1 बच्चा पैदा करती है जबकि पुरुष उस दौरान लाखों महिलाओं के साथ अपना जींस शेयर कर चुका होता है। उसमें भी उसका दोष नहीं। प्रकृति में किसी का दोष नहीं होता। वह वही कर रहे हैं जैसा उनके डीएनए में लिखा है।
महिलाओं को प्रतिमाह 1 अंडा मिलता है बच्चा पैदा करने के लिए। जब अंडा निकलता है उस दिन महिला को सम्भोग की प्राकृतिक इच्छा होती है लेकिन यह पुरुष को क्या पता? इसलिये वह हर समय सम्भोग की इच्छा के साथ पैदा हुआ।
उसके हर सम्भोग से बच्चा होना असम्भव है लेकिन वह जितना ज्यादा करेगा उतने ही मौके उसे ज्यादा मिलेंगे। अतः पुरुष बच्चों से प्रेम नहीं करते। स्त्रियां करती हैं। कालांतर में वंश चलाने, अपने धन-संपत्ति के हस्तांतरण के लिये पुरूष भी बच्चे को ज़रूरी समझने लगे।
वह समय और था जब इंसान जंगल में अपनी मौत से जूझता था और उसके लिए उसे ज्यादा से ज्यादा आबादी और सुरक्षा के लिये लोग चाहिए होते थे। शेर, गीदड़, भेड़िए, चीते, गुलदार, तेंदुआ, लकड़बग्घे, बंदर जैसे जंतु मानव के शत्रु बन गए थे। मानव की जनसँख्या बहुत कम थी। तब बच्चा पालना ज़रूरी कार्य था।
लेकिन आज क्या हाल है? आज सब सुरक्षित हैं। खतरनाक जानवर इंसान ने मार डाले। जंगल खत्म कर दिए और विज्ञान ने लोगों को महामारियों और दुर्घटना से बचाना शुरू कर दिया है। फिर अब अस्पताल तो जच्चा-बच्चा का जीवन बचा लेते हैं जो पहले प्रसव के समय ही खत्म हो जाता था। आज भी आपके प्रसव से मरने के चांस 90% हैं।
महिला का काल होता है प्रसव। बहुत भयानक समय, 6 माह के सम्भोग के मजे का बेहद दर्दनाक अंत। दर्द की अति। जान जाने का 90% खतरा। इसे मजाक न समझें। बहुत ज़रूरी हो तभी बच्चा करें।
ज़रूरी? ज़रूरी तो तब होगा जब सड़कों पर ट्रैफिक न हो। जब कंपनियां आपके घर आकर आपका इंटरव्यू लें। मोटी रकम पर काम देने के लिये। जब कहीं लाइन न लगी मिले, जब ट्रेनों/बसों/ऑटो में खालीपन सा लगे। स्कूल आपके घर आकर बच्चों को बिना एडमिशन फीस के "पढा कर तो देखिये" की तर्ज पर लालच देने लगें। वस्तुएं इतनी सस्ती हो जाएं कि 10 रुपये में, 10,000 की खरीदारी हो जाये। टैक्स भी कम हो जाएगा, जब लोग कम होने से सरकारी धन का दुरुपयोग रुकेगा।
यह सब होने का सपना पूरा तब होगा जब आप कुछ समय, करीब 10 वर्ष तक सम्भोग करें लेकिन गर्भनिरोधक के साथ। लेकिन आप वह भी नहीं करेंगे तो हम क्यों लाएं नया बच्चा, इस सड़े हुए सिस्टम में? सड़ाने के लिये? जहाँ भीड़ कभी कम ही नहीं होती? जहाँ ज़िन्दगी झंड है। मुझे माफ़ कीजियेगा। मैं जुआ नहीं खेलता। post देखें "मैं शिशुमुक्त क्यों हूँ"
वस्त्रों के प्रति अरुचि:
1. वैज्ञानिक कारण: जब तक ज़रूरी न हो जैसे सर्दी, गर्मी, बरसात तब तक वस्त्रों का सीमित प्रयोग। सूर्य की प्राणदायक रौशनी हमारे शरीर को विटामिन D देती है जो कि साबित करता है कि हमारा शरीर photo sensitive है। मेलेनिन सूर्य के प्रकाश से नियंत्रित होता है जो हमारी त्वचा को गहरा रंग देता है और यह रंग ही हमें त्वचा कैंसर से बचाता है।
विटामिन D का सीधा सम्बन्ध हमारी हड्डियों से है। आपको पता होना चाहिए कि बलूव्हेल के शरीर में कई टन कैल्शियम होता है यह उसमें कहाँ से आया? लगभग हर मछली में काँटा यानी हड्डियों का ढांचा होता है। यह सब आता है पानी में घुले कैल्शियम से। लेकिन फिर भी हमें वह क्यों नहीं प्राप्त हो पाता?
कारण है कपड़े। दरअसल हमारा शरीर तब तक कैल्शियम को नहीं देखता जब तक शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन D न हो। जब आप डॉक्टर से कैल्शियम की गोली लेंगे तब वह आपको विटामिन D के साथ आने वाली गोली ही देंगे। यानि बिना विटामिन D के सारा कैल्शियम बेकार है। और वह कैसे बने बिना ऊपर से खाये, मुफ्त में? समझदार को इशारा काफी।
2. सामाजिक कारण: "बंधी मुट्ठी लाख की और खुली मुठ्ठी खाक की।" यानि रैपर में लिपटी चीज़ के प्रति ज्यादा आकर्षण होता है। आदिमानवों में वस्त्रों का अभाव था और उनके वंशज आज भी आदिवासी कहलाते हैं।
उनमें एक दूसरे के प्रति ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जो नज़रों से हो जाये। केवल शरीर के छूने से ही और गंध से ही कामोत्तेजक असर होता है। इसलिये कपड़े कभी भी उनकी जरूरत नहीं बने।
सभ्यता के नाम पर दूसरे को सिखाने का जो जाल फैलाया गया, इंसान खुद की सुनना बन्द कर बैठा। शिक्षा ने विद्वान नहीं पैदा किये बल्कि गुलाम पैदा किये जो कि बस सुना/पढ़ा ही करता रहा। उन्हीं में से एक है अनावश्यक वस्त्रों का जाल। अनावश्यक मतलब घूरती आंखों से बचने के लिये पहने जाने वाले वस्त्र।
लेकिन क्या आपको कभी घूरना बन्द किया गया? मुझे रोज लोग घूरते हैं। मैं तो लड़का हूँ तब भी। घूरना सम्विधान में क्रूरता के रूप में वर्णित है जिसकी सज़ा है। यह एक मानसिकता है जो लोगों ने अपना रखी है बिना छुए घायल करने की। इसका इलाज है पुलिस। ऐसा पाया गया है कि डंडे पड़ने के बाद यह आदत समाप्त हो जाती है।
अब देखिये कपड़ों का खेल। पूरी पोर्न इंडस्ट्री, वैश्यावृत्ति और फैशन इंडस्ट्री कपड़ों पर टिकी है। पोर्न/वैश्यावृत्ति और कपड़ों का क्या मेल? है न? नहीं यही पर आप मात खा जाते हैं।
कानून यौनांगों (जिसमें अकारण केवल महिला स्तनाग्र भी शामिल हैं) को छिपाने को बाध्य करता है और ज्यादातर धर्म भी। जब हम यौनांग नहीं देख पाते तो शरीर और दिमाग भ्रमित होकर तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है। जो भी उसे उभार और अंदाज़ा मिलता है वह उसे नग्न रूप में एक दम अपनी पसन्द के अनुरूप कल्पना कर लेता है और कामोत्तेजित हो जाता है। यह घटना आपको सभोंग में सक्रिय लोगों और प्रेमी जोड़ों में चिरपरिचित मिलेगी। ज़िसमें कपड़े बहुत बड़ा योगदान देते हैं।
जब कुछ अधूरा दिखता है मनुष्यों का मस्तिष्क अपने आप उस खाली स्थान को भर लेता है। वह उसे उत्तम भाग से भरता है जिससे प्रबल स्तरीय कामोत्तेजना प्रकट होती है। इसी कारण से नए लड़के लड़कीं के जांघों पर ही वीर्यपात तक कर देते हैं।
पूर्ण नग्न होते ही मन में मौजूद कल्पना को झटका लगता है और मन मुताबिक न होने के कारण कामोत्तेजना शनेः शनेः (धीरे-धीरे) समाप्त होने लगती है। इस घटना को न्यूड बीच (नग्न समुद्र तट; स्पेन, ब्राजील और गोआ में सीक्रेट न्यूड बीच हैं जिनमें गोआ वाले में भारतीयों का आना प्रतिबंधित है।) के नियम में परिलक्षित होते हुए देखा जा सकता है। न्यूड बीच में कोई भी व्यक्ति अपना तना हुआ उत्तेजित शिश्न लेकर नहीं घूम सकता। वह लोगों को तंग करता है। इसलिये इनकी परीक्षा होती है।
परीक्षा के लिये एक स्विम सूट वाली लड़की लड़के के सामने नग्न हो जाती है। अगर शिश्न में तनाव आया तो एंट्री निरस्त। ऐसी दशा मे उनको अलग बैठना पड़ता है और दूर से ही देख सकते हैं। कुछ दिन बाद उस लड़के का लिंग शिथिल हो जाता है और टेस्ट पास कर लेता है। यही है कपड़ों की सच्चाई से पर्दा उठाने का प्रमाण भी। इसलिये सभी लोगों को सार्वजनिक नग्नता का समर्थन करना चाहिये। भले ही सार्वजनिक सम्भोग पर प्रतिबंध जारी रखें।
दरअसल कानून ने लगभग सभी देशों में महिला के अभद्र निरूपण (vulgur presentation), nipples, vagina, Anus hole, penis के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगा रखी है। केवल अध्ययन शिक्षा और समाजसुधार के लिये किये गए प्रदर्शन ही मान्य हैं।
अगर इस नियम का उल्लंघन होता है तो कड़ी सजा का प्रावधान है। भारत में IPC धारा (292-294) 2 से 5 साल कैद और 5000 रुपये जुर्माना। अभी तक इच्छा से निर्वस्त्र होने पर क्या समस्या है यह पता नहीं चला है। पता चलते ही अद्यतन (अपडेट) कर दूंगा।
जब किसी औपचारिक जगह जाना हों तभी सूट या पैंटशर्ट टाई, बूट आदि पहने जा सकते हैं। post देखें "हमाम में सब नँगे"
प्राकृतिक जीवनशैली:
मैं ज़रूरी होने पर ही, ब्रश, स्नान, हाथ-मुहँ धोना, शेव करना, भोजन करना आदि कार्य करता हूँ। मेरे लिये भोजन प्राथमिक कभी नहीं था। मेरा मानना है कि खाने के लिये जीना गलत है, हमें जीने के लिये ही खाना चाहिए।
वीगन जीवन शैली:
पशुओं को उनका जीवन जीने दो। हम अपना जियें। यह है इसका एक सार। परन्तु यह 2 हिस्सों में है।
नाम: पशुक्रूरता निरोधक जीवन शैली (veganism)
| 'vee-gu, ni-zum |
1. किसी भी नैतिक सिद्धांत या जीवन का तरीका जो जानवरों के शोषण पर आधारित किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों और सेवाओं का सख्ती से उपयोग नहीं करता है।
2. एक आहार का पालन करने का अभ्यास जिसमें मांस, मछली, दूध और दूध उत्पादों जैसे किसी भी प्रकार के पशु उत्पादों को शामिल नहीं किया जाता है, अंडे, शहद, पशु वसा या जिलेटिन आदि।
विस्तृत जानकारी के लिये "What the health" नामक documentary देखें व peta.org और vegansociety.com की वेबसाइट पर जाएं।
Note: मेरे भीतर यह सभी गुण प्राकृतिक थे। मैंने केवल इनका अद्ध्ययन किया है कि यह सही हैं या नहीं। इसलिये मैं अब वापस बदल नहीं सकता। इसलिये किसी प्रकार की बहस का स्वागत नहीं होगा। समस्त जानकारी के स्रोत ऊपर दिए गए हैं। उनका इस्तेमाल करें।
नमस्कार!
लिखते-लिखते थक गया। बाकी फिर कभी। क्रमशः
2018/06/10 22:18
Article ~ Vegan Shubhanshu Singh Chauhan
कृपया पूरी वेबसाइट पर दी गई post देखें। ज्यादा समझदार बनेंगे।